Book Title: Agam Suttani Satikam Part 24 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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आवश्यक मूलसूत्रम्-१-१/१ भणित्ता कहिंति पुट्ठो य छाहिं दंसेइ, तओ से पिया लजिओ, सोऽवि एवं विहोत्ति तीसे घनरागो जाओ, सोऽवि विसभीओ पियाए समं जेमेइ । अन्नया पियरेण समं उज्जेनिं गओ, दिट्ठा णनयरी, निग्गया पियापुत्ता, पिया से पुणोऽवि अइगओ ठवियगस्स कस्सइ, सोवि सिप्पाणईए पुलिणे उज्जेनीनयरीं आलिहइ, तेन नयरी सचच्चरा लिहिया, तओ राया एइ, राया वारिओ, भणइ-मा राउलघरस्स मज्झेण जाहि, तेन कोउहल्लेण पुच्छिओ-सचच्चरा कहिया, कहिं वससि ?, गामेत्ति, पिया से आगओ । राइणो य एगूनगाणि पंचमंतिसयाणि, एक्कं मग्गइ, जो य सव्वप्पहाणो होज्जत्ति, तस्स परिक्खणनिमित्तं तं गाम भणावेइ, जहा-तुब्भं गामस्स बहिया महल्ली सिला तीए मंडवं करेह, ते अद्दण्णा, सो दारओ रोहओ छुहाइओ, पिया से अच्छइ गामेण समं, ओसूरे आगओ रोयइ-अम्हे छुहाइया अच्छामो, सो भणइसुहिओऽसि, किह ?, कहियं, भणइ-वीसत्था अच्छह, हेट्ठओ खणह खंभे देह थोवं थोवं भूमी कया, तओ उवलेवणकओवयारे मंडवे कए रन्नो निवेइयं, केण कयं ?, रोहएण भरहदारएणं । एसा एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी एव सव्वेसु जोएज्जा।
तओ तेसिं रन्ना मेढओ पेसिओ, भणिया य-एस पक्खेण एत्तिओ चेव पञ्चप्पिणेयव्यो न दुब्भलयरो नावि बलिगयरोत्ति, तेहिं भरहो पुच्छिओ-तेन विरूवेण समं बंधाविओ जवसं दिन्नं, तं चरंतस्स न हायइ बलं विरूवं च पेच्छंतस्स भएण न वड्डइ । एवं कुक्कुडओ अदाएण समं जुज्झविओ । तिलसमं तेल्लं दायव्वंति तिला अदाएण मविया । वालुगावरहओ-पडिच्छंद देह । हथिमि जुनहत्थी गामे छूढो, हत्थी अप्पाउओ मरिहितित्ति अप्पिओ मउत्तिन निवेइयव्वं, दिवसदेवसिया य से पउत्ती दायव्वत्ति, अदानेवि निग्गहो, स्ो मओ, ते अद्दन्ना, भरहसुयवयणेण निवेइयं जहा-सो अज्ज हत्थी न उठेइ न निसीयइ न आहारेइ न नीहारेइ न ऊससइ न नीससइ एवमाई, रन्ना भणियं-किं मओ?, तुब्मे भणहत्ति । अगडे आरन्नओ आगंतु न तीरइ नागरं देह । वनसंडे पुव्वं पासं गओ गामो । परमानं करीसओण्हाए पलालुण्हाए यत्ति। तओ रन्ना एवं परिक्खिऊण पच्छा समाइटुं, जहा तेणेव दारएणागंतव्वं, तं पुण न सुक्कपक्खे न कण्हपक्खे न राइंन दिवसे न छायाए न उण्हेणं न छत्तेणं न आगासेणं न पाएहिं न जाणेणं न पथेणं न उप्पहेणं न ण्हाएणं न मलिनेणंति, तओ तस्स निवेइयं, पच्छा अंगोहलिं काऊण चक्कमज्झभूमीए एडगारूढो चालणीनिमिउत्तिमंगो, अन्नो भणंति-सगडलट्टणीपएसबद्धओ छाइयपडगेणं संझासमयंमि अमावासाए संधीए आगओ नरिंदपासं, रन्ना पूइओ, आसन्नो य सो ठिओ, पढमजामविबुद्धेण य रन्ना सद्दाविओ, भणिओ य-सुत्तो ? जग्गसि ?, भणइसामि ! जग्गामि, किं चिंतेसि ?, भणइ-असोत्थपत्ताणं किं दंडो महल्लो उयाहु से सिहत्ति ? रन्ना चिंतियं-साहु, एवं पच्छा पुच्छिओ भणइ-दोवि समाणि, एवं बीयजामे छगलियाओ लेडियाओ वाएण, ततिए खाडहिल्लाए जत्तिया पंडरारेहा तत्तिया कालगा जत्तियं पुच्छं तद्दहमित्तं सरीरं, चउत्थे जामे सहाविओ वायं न देइ, तेन कंबियाए छिक्को, उडिंओ, राया भणइजग्गसि सुयसि?, भणइ-जग्गामि, किं करेसि?, चिंतेमि, किं ?, कहहिं सि जाओ, कइहिं?, पंचहि, केण केण?, रन्ना वेसमणेणं चंडालेणं रयएणं विच्छुएणं, मायाए निबंधेण पुच्छिए कहियं, सो पुच्छिाओ भणइ-यथा न्यायेन राज्यं पालयसि तो नज्जसि जहा रायपुत्तोत्ति, वेसमणो
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