Book Title: Agam Suttani Satikam Part 24 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
३५०
आवश्यक मूलसूत्रम्-१-१/१ तुट्टेण छोडिआ, दिट्ठो लेहो, अवगए लेहत्थे विसन्नो पोत्ताई फालेऊण निग्गओ, चिंतियंचणेणंजाव एसा न पाविया ताव कहमच्छामित्ति परिभसंतो य अन्नं रज्जं गओ, सिद्धपुत्ताण ढुक्को, तत्थ नीई वक्खाणिज्जइ, तत्थवि अयं सिलोगो
- 'न शक्यं त्वरमाणेन, प्राप्तुमर्थान् सुदुर्लभान् ।
भार्यां च रूपसम्पन्नां, शत्रूणां च पराजयम् ॥१॥ एत्य उदाहरणं-वसंतपुरे नयरे जिनदत्तो नाम सत्थवाहपुत्तो, सो य समणसट्टो, इओ य चंपाए परममाहेसरो धनो नाम सत्यवाहो, तस्स य दुवे अच्छेरगाणि-चउसमुद्दसारभूया मुत्तावली धूया य कन्ना हारप्पभत्ति, जिणदत्तेण सुयाणि, बहुप्पगारं मग्गिओ न देइ, तओऽनेन चट्टवेसो कओ, एगागी सयं चेव चंपं गओ, अंचियं च वट्टइ, तत्थेगो अज्झावगो, तस्स उवढिओ पढामित्ति, सो भणति-भत्तं मे नत्यि, जइ नवरं कहिंपी लभसित्ति, धणो य भोयणं ससरक्खाणं देइ तस्स उवट्ठिओ, भत्तं मे देहि जा विजं गेण्हामि, जं किंचि देमित्ति पडिसुयं, धूया संदिट्ठाजं किंचि से दिज्जाहित्ति, तेन चिंतियं-सोहणं संवुत्तं, बल्लूरेणं दामिओ विरालोत्ति, सोतं फलाइरोहिं उवचरइ, सा न गेण्हइ उवयारं, सो य अतुरिओ णीइगाही थक्के थक्के संमं उवचरइ, ससरक्खा यतं खरंटेइ, तेन सा कालेणावजिया अज्झोववन्ना भणइ-पलायऽम्ह, तेन भणियं-अजुत्तमेयं, किंतु तुम उम्मत्तिगा होहि, वेजावि अक्कोसेजाहि, तहा कयं, वेजेहिं पडिसिद्धा, पिया से अद्धितिं गओ, चट्टेण भणियं-परंपरागया मे अत्यि विज्जा, दुक्करो य से उवयारो, तेन भणियंअहं करेमि, चट्टेण भणियं-पउंजामो, किंतु बंभयारीहिं कजं, तेन भणियं-अत्यि भगवंतो ससरक्खा ते आनेमी, चट्टेण भणियं-जइ कहवि अबंभयारिणो होति तो कजं न सिज्झइ, ते य परियाविजंति, तेन भणियं-जे सुंदरा ते आणेमि, कतिहिं कज्जं?, चउहि, आनीया सद्दवेहिणो य दिसावाला, कयं मंडलं, दिसापाला भणिया-जओ सिवासद्दोतं मणांगं विंधेजह, स सरक्खा य भणिया हुंफुटत्तिकए सिवारूयं करेजह, दिक्करिगा भणिया-तुमं तह चेव अच्छेजह, तहा कयं, विद्धा ससरक्खाण, पउणा चेडी, विपरीणओ धण्णो, चट्टेण वुत्तं-भणियं मए-जइ कहवि अबंभयारिणो होति कजं न सिज्झईत्यादि, धणेण भणियं-को उवाओ ?, चट्टेण भणियंएरिसा बंभयारिणो हवंति, गुत्तीओ कहेइ, दगसोकराइसु गवेसिओ नत्थि, साहूण ढुक्को-तेहिं सिट्ठाओ
'वसहिकहनिसिजिंदियकुथुतरपुव्वकीलियपणीए । अइमायाहारविभूसणा य नव बंभगुत्तीओ ॥१॥ एयासु वट्टमाणो सुद्धमनो जो य बंभयारी सो।
जम्हा उ बंभचेरं मनोनिरोहो जिणाभिहियं ॥२॥ उवगए भणिया-बंभयारीहिं मे कजं, साहू भणइ-न कप्पइ निग्गंथाणमेयं, चट्टस्स कहियंलद्धा बंभयारी न पुण इच्छंति, तेन भणियं-एरिसा चेव परिचत्तलोगवावारा मुणओ भवंति, किंतु पूजिएहिंवि तेहिं कजसिद्धी होइ, तंनामाणि लिक्खंति, न ताणि खुद्दवंतरी अक्कमइ, पूइया, मंडलं कयं, साहुणामाणि लिहियाणि, दिसावाला ठविया, न कूवियं सिवाए, पउणा चेडी, धनो साहूणमल्लियंतो सड्डो जाओ, धम्मोवगारित्ति चेडी मुत्ताफलमाला य तस्सेव दिन्ना,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452