Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 6
________________ संपादकीय निवेदन [5 अनुकूलता रहेशे. अने अथी होंशे होंशे उत्साही मुनि भगवंतो सूत्रो कंठस्थ करीने आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. 2, 5, के 10, 20 सूत्र कंठस्थ करनारा अने पुरतो प्रयत्न थाय तो अक लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमा थइ शकशे. 'ज्ञानधनाः साधवः' 'शास्त्रचक्षुषः साधवः' ओ विधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनु श्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थतां श्रीसंघने माटे श्री शासन ने माटे घणी उज्वलता फेलाशे. अने ओ आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादन रूप श्रुतभक्तिमा स्वपरना श्रेयनी भावना पूर्वक रस लइ रह्यो छे. चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे. अ ज्वलंत जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने अजवालनारो चने ते माटे योग्यता अने अधिकार मुजब जिनवाणीनी उपासना भक्तिमां भावोल्लास पूर्वक सौ उजमाल बनी एज मारा अंतरनी शुभ भावना के. / वीर सं. 2501 वि. सं. 2031 आषाड सुद 1 शुक्रवार शांताक्रम हालार देशोद्धारक कविरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय. ममृतसूरीश्वरजी महाराजानो चरण सेवक पं. जिनेन्द्रविजय गणी

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