Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 5
________________ संपादकीय निवेदन 45 मूल आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिवरो छे. साध्वीजी महाराजो श्रीआवश्यक सूत्र आदि मूल सूत्रोना तेमज श्रीआचारांग सूत्रना योगवहन करवा पूर्वक अधिकारी छे. श्रावक श्राविकाओं उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवकालिकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यतना श्रुतना अधिकारी छे. आम आगमश्रुतना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निर्मल बनावे के अने योग्यता मुजब धर्मकथा द्वारा जिणवाणीनु पान करावी साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे. 45 आगमसूत्रो 6 विभागोमां वहेंचायेल छ (1) अंगसूत्रो-११ (2) उपांगसूत्रो-१२ (3) पयत्नासूत्रो-१० (4) छेदसूत्रो-६ (5) मूलसूत्रो-४ (6) चूलिकासूत्रो-२. आ सूत्रोनु स्वाध्याय आदि अध्ययन वधे ते माटे उपयोगी बने ते रीते 45 मूल सूत्रो श्वेतांबर मर्तिपूजक श्रीसंघमां सळंग मुद्रित नथी अने जेथी आगम सूत्रोना स्वाध्याय आदिनी अनुकूलता थाय ते माटे शक्य प्रयत्ने संशोधन करीने प्रगट करवानी योजना विचारवामां आवी छे, ते योजना मुजब 45 आगमसूत्रो 14 विभागमा संपादन थशे प्रथम विभाग प्रगट थड गयो छे. आ आठमो विभाग प्रगट थाय छे बारमो अने तेरमो विभाग पण नजीकमा प्रगट थशे. - आ आठमा विभागमा दश पयन्ना सूत्र आपवामां आव्या छे. साथे मतांतरथी दश पयन्ना सूत्रोमा गणाता बे पयन्ना सूत्र पण आपवामां आव्या छे ते अनुक्रम जोवाथी ख्याल आवशे. आ मत्रोमा जदी जुदी प्रतो मेळववा साथे टीकामा रहेला पाठान्तरो मेलवीने मूल सूत्रो साथे कोशमा आपेला छे. पू. आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज द्वारा संशोधित श्री आगम मंजूषा, बाबुश्री घनपतसिंहजी द्वारा प्रकाशित पयत्रा संग्रह, आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित प्रकीर्णक दशक छाया सह तथा गच्छाचार प्रकीर्णक सटीक, पू. आ. श्री विजयक्षमाभद्र सू. म. सा.संपादित केशर बाई ज्ञानमंदिर प्रकाशित श्री चंद्रवेध्यक प्रकीर्णक, शेठ देवचंद लालभाइ पुस्तकोद्धारक फंड प्रकाशित श्री तन्दुवैयालिकप्रकीर्णक सटीक तथा चतुःशरण प्रकीर्णक सावसरि, श्री विजय सिद्धिसूरिजी जैन ग्रंथमाला प्रकाशित आराधना सार संग्रह मा प्रकाशित प्रकीर्णको, पू. आचार्य देवश्री विजय जंबूसूरीश्वर जिनागम रत्नकोश(डभोई)नी वीरस्तव पयन्नानी हस्तप्रत विगेरेनो आधार आ सूत्रो माटे संशोधनमा लेवामां आव्यो छे.. श्री श्रमणसंघमा आगमो कंठस्थ करवामां स्वाध्याय करवामां विस्तृत टीकाओना वाचन पछी मूलसूत्रोनु पुनरावर्तन करवामां आ मूल स्त्रोना संयुक्त संपादनथी घणी

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