Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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राजप्रश्नीयसूत्रे छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये आमलकल्पा नाग नगरी अभवत् ऋद्धस्तिमितसमृद्धा यावत् प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा प्रतिरूपा । तस्याः खलु आमलकल्पाया नगर्या बहिरुत्तरपौरत्त्ये दिग्भागे आम्रसालवनं नाम चैत्यमासीत्-यावत् प्रतिरूपम् । अशोकवरपादपः पृथिवीशिलापट्टकः,
सूत्राथ-( तेण कालेण तेणं समएणं ) उसकाल और उस समय में ( आमलकप्पा नाम नयरी होत्था ) आमलकप्पा नामकी नगरी थी यह नगरी (रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा जाव पासादीया दरिसणिज्जा, अभिरूबा) ऋद्धाअपने विभव और भवन आदिकों को लेकर विशेष वृद्धि को प्राप्त थी स्तिमिता-स्वचक्र और परचक्र के भय से रहित होकर स्थिरथी समृद्धधनधान्यादि रूप समृद्धि से युक्त थी यहां 'जाव' शब्द से यह सूचित किया गया है कि इस नगरीका और भी अवशिष्ट वर्णन औपपातिक सूत्र में वर्णित चंपानगरी के वर्णन जैसा जानना चाहिये-इसे जिसे देखना हो वह
औपपातिक सूत्र के ऊपर की गई मेरी पीयूषवर्षिणी टीका को देखे । यह नगरी प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप थी ( तीसेणं आमलकप्पाए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीमाए अबसालवणे नामं चेईए होत्था) उस आमलकल्पा नगरी के बाहर उत्तरपूर्व दिशा के अन्तराल में ईशान कोन में-एक चैत्य-उद्यान था जिसका नाम आम्रसालवन था ( जाव पडिरूवे ) यावत् यह प्रतिरूप था ( असोगवरपायवे, पुढवी सिलापट्टए क्त्तव्वया उवाइयग
सूत्रार्थ-(तेण कालेण तेण समएण) ते आणे भने ते समये (आमलकप्पानामं नयरी होत्था ) भामस४८५ नोभे नगरी ती ते नगरी (रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पासादीया, दरिसणिज्जा, अभिरूवा पडिरूवा) *--वैभव भने ભવન વગેરેથી તે સવિશેષ સંપન્ન હતી, સ્વિમિતાસ્વચક તેમજ પરચકના ભયથી તે રહિત થઈને સ્થિર હતી, સમૃદ્ધ-ધનધાન્ય વગેરે સમૃદ્ધિઓથી યુક્ત હતી, અહીં 'जाव' श७४थी से वात २५४ ४२वामा मापीछे है मा नसरीन शेषन मी५५lતિકસૂત્રમાં વણિત ચંપા નગરીના વર્ણન જેવું સમજી લેવું જોઈએ. જિજ્ઞાસુ પાઠકે ઔપપાતિક સૂત્ર ઉપર કરેલી મારી પીયૂષવર્ષિણી ટીકાને જુવે. તે નગરી प्रासाहीय, शनीय मलि३५ भने प्रति३५ ती. (तीसेणं आमलकप्पाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अंबसालवणे नामं चेइए होत्था) ते माम४६५ નગરીની બહાર ઉત્તરપૂર્વદિશાની વચ્ચે-ઈશાન કોણમાં એક ચિત્ય-ઉદ્યાન-હતું. तेनुं नाम मा सासवन तु. (जाव पडिरूवे ) यावत् ते प्रति३५ तु. (असोगवर.
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૧