Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Churni
Author(s): Sthaviracharya, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 25
________________ भगवतीचूर्णिः अपदेसो वा ? दोण्हं च । णेरत्तियत्तेणागहणमिच्छिजति । तेण सिय सप. सिय अप. । एवं सव्वठाणेसु सिय बहुत्तेण जीवाणं कालादेसेण स सव्वे वि जीवा न कत्तिमासपदे । एवं णेरतिया तिसिं उववायविरहातो जे वा उववजंति ते वा दुपदेससमयादिसु णेय । तेहिं विरहो तेण सव्वे वि ताव सपदेसा । अहवा एते य एक्को य पढम समयोववाती । अहवा एते य बहुया य पढमसमयोववातिणो एगिदिएसु पुढवि, आउ, तेऊ, वाऊ, वणस्सतिसु असंखेजा अणुसमयमणंता य वणस्सतिसु उववजंते तेण सपदेसा य अपदेसा य अभंगगं । सेसेसु णेरतियतुल्ला हाणेसु सिद्धं, तेसुं विरहित्तातो तिण्णि सामण्णं ण आहारो आभोगअणाभोगतो वा, आहारादितो जीवादियो जीवपवण्णेयो । बहुत्तेण पुच्छा - तहेव जीवपदे । एगेंदिएसु य आहारा कालादेसेण सपदेसा य, वितियसमयादियाहारिणो तहा उववादिपढमसमये अपदेसा आहारका कालाभावदेसेण बहुत्तातो अविरहियत्तातो य नेरतियादिसेसट्टाणेसु सव्वे याव होजा आहारगा कालापदेसेण सपदेसा अहवा सपदेसा य । एगो य आहारतो सपदेसा य अपदेसा य । बहवो अणाहारतो अणाहारतो ब्भुयो । अणाहारगत्तपढमसमये अप. सेसो वितियादि अणाहारगत्तसमये सपदेसो । एगत्तेण जीवादिसु सिद्धं । तेसु सिय सव्वत्थ बहुत्तेण कालादेसेणं अणाहारगा जीवा अणाहारगत्तपढमसमयबितियसमयेसु बहवो संती तेण अभंगगं । णेरतिया अणाहारगा सव्वे ताव होज बितियसमये सयदेसव्वा । अहवा अणाहारगपढमसमयवत्तिणो वा तेण अपदेसबहुं । अहवा दोण्हि आइट्ठसमये एगो बितियसमया अणाहारगो । एगो पढमसमए ३ अहवा एगो दुसमए दो पढम समये ह ।४। अहवा दो दुतियादि समएसु एगो पढम समए । र्तृ ॥५॥ अहवा अपढमसमए बहवो पढमसमए बहवो ॥ ( (६)॥ एवं अणाहारगविरहविवित्तियातो वेमाणियंतेसु छब्भंगा। एगेंदिएसु णिच्चं । विभंगगतिपढमदुतियादिविणहवत्तिणा बहवो, तेण अभंगगं । अणाहारगा कालादेसेण एगिदिया सपदेसा य अपदेसा य । सिद्धपदे सिद्धा सव्वे ताव अणाहारा सपदेसा कालतो, अहवा सपदेसा य । एगो पढमसमयमज्झिमाणो, बहुवा सिज्झमाणा वि बहवो एवं तिए भंगो । भवसिद्धिया जीवा कालादेसेणं सपदेसा सपदे, तत्थ भवसिद्धियत्तं अणादिपरिणामितो भावो जीवो जीवत्तेण जहा । एवं अभवसिद्धिय भावो वि एते रासी असंसिद्धा मग्गियव्वा । जधानि भवियाऽभविया एवमितरे वि भवनसिद्धस्स पत्थि कारणस्सेव कारियत्तपरिणयस्स कारणाभावो । जहा तेण सिद्धपदेण तं अभवत्तमवि णत्थि तेणव्वंतं असंबंधातो, एवमेव भवसिद्धिय अभवसिद्धिय पदा दो जीवदंडएण तुल्ला, एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि, णोभवसिद्धिया णोअभवसिद्धिया कालसपदेस-अपदेसेण जीवा जहा, सव्वे ताव होज सपदेसा, अहवा सपदेसा य अपदेसे य । अहवा Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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