Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Churni
Author(s): Sthaviracharya, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 80
________________ भगवतीचूर्णिः दस । गंधे एगत्ते दो । अहवा सुब्भि-दुभि एगो । अण्णत्थ पज्जायाण एगो पडति । जाता तिण्णि स सव्वे पंच । जहा वण्णे तहा रसे फासे चत्तारि एगत्ते परमाणु तुल्ला, ति फासपरिणमे सव्वे सीतो । एगत्ते परमाणु तुल्ला, ति फासपरिणमे सव्वे सीते । एगो गिद्धो एगो दुपदेसो । अभेदेण लुक्ख परिणतो ।१। अहवा सव्वे सीते एगे णिद्धे दो लुक्खाभेदपरिणतो तेण चउत्थी पडति । अहवा सव्वे सीते दो भेदेण णिद्धपरिणता, ततिता पडति एगो लुक्खो।३। एवं उसिणे णिद्धलुक्खातो उन्भा बितिते लुक्खा पडति । ततिया ततिए णिद्धा पडिति बितिया ।३। एवं णिद्ध-लुक्खा वि चारेतव्वा । एक्केक्क छ तिण्णि सव्वे बारस ।१२। जति चउफासे देसे उसिणे एगत्थ दो परमाणू अभेदेण । तच्चेव दो देसा णिद्धलुक्खेसु संचरंति एगो अभेदत्थो देसे सीते उसीणे णिद्धे लुक्खे पढमो भंगो । लुक्खे दो भेदेण तत्थ अंता पडति ।२। ततिए णिद्धे दो तत्थ ततिया पडति ।३। तहा मज्झिमाते पडिताते एगो कालंगुलिए बितियो पडंति मज्झिम तदनंतरातो पडंति ३। तहा आदिल्ला पडति। तहा पडियाए चेव पज्जाएण अतिण्णातो पडंति । दो समुदिता तिन्नि सव्व चतुफासा ९। सव्वे तिपदेस फासा पंचवीसं २५ । चतुष्पदेसे एत्थं भाणिऊणं एगवण्णपरिणमे जहा परमाणू पंचसु हाणेसु, एगतरम्मि ५ । जति विवण्णपजातीतो दस दुग संजोगा होंति एगेगो चतुभंगो । चत्तालीसं भंगा । तिवण्णपज्जाए तिण्णि ठाणाणि । एगो एगो कमेण पडति । चत्तारि भंगा एग तिग संजोगे संजोगा दस सव्वे चत्तालिसं भंगा ४०, चउवण्णपज्जाए एगंतरियगमणेण पंचठाणाणि । तत्तिया चेव भंगा ५ । सव्व चतुष्पदेसवण्णपरिणामरासी ९० । गंधे सुब्भि वा दुब्भि वा । सुरभि-दुब्भिगंधा वा । सुरभिगंधा दुन्भिगंधा वा सुरभिगंधा दुन्भिगंधा छब्भंगा । रसा जहा वण्णा । चतुपदेसो फासेहिं मग्गिज्जति । तत्थ पढमो दुफासेहिं मग्गिजति । तत्थ पढमो दुफासेण सो य । जहा परमाणू सीतलो णिद्धो वा लुक्खे वा उसिणो वा गिद्धो वा, लुक्खो (ए)त्थ ४ ति फासत्ते सीतपज्जाती सव्वो चतुपदेसो देसो णिद्धो देसो लुक्खो १। अहवा सव्वो सीतो देसो गिद्धो, देसा लुक्खा । अहवा सव्वो सीतो देसो णिद्धो देसो लुक्खो ३ । अहवा सव्वो सीतो देसा णिद्धा देसा लुक्खा ४ । एवं उसिणे चतुभंगो ४ । एवं गिद्धो सञ्चो सीत उसिणेहिं समं चउभंगं ४ । एवं गिद्धो सव्वो सीत उसिणेहिं समं चउभंगो ४ । एवं सव्व लुक्खे चतुभंगो ४। सव्वे ति फासत्ते सोलस भंगा १६। चतुपदेसस्स चतुफासे मग्गणा । चत्तारि पोग्गला दोसु सव्व चतुभंगो त्ति कट्ठ चतुसु अंगुलीसु सोलस भंगा १६, सव्व चतुपदेसफाससंखा छत्तीसं ३६ । एतेय अणंतो जाव सुहुमपरिणतो ताव सामण्णबादरे मग्गिस्सामो । उवरि वण्ण पुरं काउं पंचय दसो वण्णेसुं चेव मणिजंति । गंध-फासेहिं णत्थि चतुपदेसातो विसेसो पुच्छ, भाणितूणं एगवण्णत्ते पंच संभवो ५, दुवण्णत्ते जह चतुष्पदेसो दस संजोगा चतुभंगिया भंगा ४०, ति पज्जाए एगो उस्सासु १। बितितो अंतपडिता, ततिय Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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