Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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मापना
प्रयास मैंने किया हैं, ताकि पाठक उन दोनों के अनुशीलन से स्वयं की बुद्धि-कसौटी पर उसे कसकर निर्णय करें। चूणि एवं वृत्ति के विशिष्ट अर्थों को मूल संस्कृत के साथ हिन्दी में भी दिया गया है । जहाँ तक मेरा अध्ययन है, अब तक के विवेचनकर्ता संस्कृत को ही महत्व देकर चले हैं, चूर्णिगत तथा वृत्ति-गत पाठों को मूल रूप में अंकित करके ही इति करते रहे हैं, किन्तु इससे हिन्दी-पाठक के पल्ले कुछ नहीं पड़ता, जबकि आज का पाठक अधिकांशतः हिन्दी के माध्यम से ही जान पाता है । मैंने उन पाठों का हिन्दी अनुवाद भी प्रायशः देने का प्रयत्न किया है यह संभवतः नया प्रयास ही माना जायेगा।
आगम पाठों से मिलते-जुलते अनेक पाठ, शब्द बौद्ध ग्रन्थों में भी मिलते हैं जिनकी तुलना अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है, पाद-टिप्पण में स्थान-स्थान पर बौद्ध ग्रन्थों के वे स्थल देकर पाठकों को तुलनात्मक अध्ययन के लिए इंगित किया गया है, आशा है इससे प्रबुद्ध पाठक लाभान्वित होंगे । अन्त में चार परिशिष्ट हैं, जिनमें गाथाओं की अकारादि सूची; तथा विशिष्ट शब्द सूची भी है। इनके सहारे आगम गाथा व पाठों का अनुसंधान करना बहुत सरल हो जाता है । अनुसंधाताओं के लिए इस प्रकार की सूची बहुत उपयोगी होती है। पं० श्री विजय मुनि जी शास्त्री ने विद्वत्तापूर्ण भूमिका में भारतीय दर्शनों की पृष्ठभूमि पर सुन्दर प्रकाश डालकर पाठकों को अनुग्रहीत किया है।
इस संपादन में युवाचार्य श्री मधुकरजी महाराज का विद्वत्ता पूर्ण मार्ग-दर्शन बहुत बड़ा सम्बल बना है। साथ ही विश्रुत विद्वान परम सौहार्दशील पंडित श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल का गंभीर-निरीक्षण-परीक्षण, पं० मुनि श्री नेमी चन्द्रजी महाराज का आत्मीय भावपूर्ण सहयोग-मुझे कृतकार्य बनाने में बहुत उपकारक रहा है, मैं विनय एवं कृतज्ञता के साथ उन सबका आभार मानता हूँ और आशा करता हूँ श्रुत-सेवा के इस महान कार्य में मुझे भविष्य में इसी प्रकार का सौभाग्य मिलता रहेगा।
३० जनवरी १९८२
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