Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१२)
प्रत सूत्रांक
[१९]
दीप
अनुक्रम [१९]
औपपातिकम्
॥ ३८ ॥
मूलं [... १९]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ........आगमसूत्र [१२], उपांग सूत्र [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
“औपपातिक” - उपांगसूत्र - १ ( मूलं + वृत्ति:)
किं तं भिक्खायरिया १, २ अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा- दव्बाभिग्गहचरए खेत्ताभिग्गहचरए कालाभिग्गहचरण भावाभिग्गहचरए उक्खितचरए णिक्खित्तचरए उक्खिन्तणिक्खितचरए णिक्खितउक्खितचरए वट्टिमाणचरए साहरिज़माणचरए उवणीअचरए अवणीअथरए उवणीअअवणी अचरए अवणी अडवणी* अचरए संसद्वचरए असंसङ्घचरए तज्ज्ञातसंसट्टचरए अण्णायचरए मोणचरए दिट्ठलाभिए अहिलाभिएं २) पुट्ठलाभिए अपुलाभिए भिक्खालाभिए अभिक्खलाभिए अण्णगिलायए ओषणिहिए परिमितपिंडवाइए सुद्धेसणिए संखायत्तिए, से तं भिक्खाधरिया ।
'चियतोवगरण साइजणय'त्ति चित्तं प्रीतिकरं त्यक्तं वा दोषैर्यदुपकरणं वस्त्रपात्र व्यतिरिक्तं वस्त्रपात्रमेव वा तस्य या श्रयणीयता स्वदनीयता वा सा तथा, 'अप्पाहारे' त्ति द्वात्रिंशत्कवलापेक्षया अष्टानामल्पखात्, 'अवहोमोयरियत्ति द्वात्रिंशतोऽर्द्ध षोडश, एवं च द्वादशानामर्द्धसमीपवर्तित्वादुपाऽवमोदरिका द्वादशभिरिति, 'दुभागोमोयरिय'त्ति द्वात्रिंशतः षोडश द्विभागोऽर्द्धमित्यर्थः, ततः षोडशकवलमाना द्विभागावमोदरिकेत्युच्यते, 'पत्तोमोयरिय'त्ति चतुर्विंशतेः कवलानां द्वात्रिंशद्वितीयार्द्धस्य मध्यभागं प्राप्तत्वाच्चतुर्विंशत्या कवलैः प्राप्तावमोदरिकेत्युते, अथवा प्राप्तेव प्राप्ता द्वात्रिंशतखयाणां भागानां प्राप्तत्वाच्चतुर्थभागस्य चाप्राप्तत्वादिति, 'किंचूणूमोयरियत्ति एकत्रिंशतो द्वात्रिंशत एकेनोन|| त्वात्, 'पमाणपते 'ति द्वात्रिंशता कवलैः प्राप्तप्रमाणो भवति साधुर्न म्यूनोदर इति, 'एसी'ति इतो द्वात्रिंशत्कवलमानादेकेनापि 'घासेणं'ति प्रासेन 'णो पकामरसभोईति वत्तवं सिया' इति नात्यर्थमन्नभोकेति वाच्यं स्यादिति, 'अप्पसद्दे 'ति
तपस: बाह्य अभ्यंतर भेदा:
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बाह्यत०
सू० १९
॥ ३८ ॥
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