Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(१२)
“औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
------------ मूलं [३३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
औपपा
॥७७॥
प्रत सूत्रांक [३३]
दीप अनुक्रम
|5|| ति चेटिकाभिः अनार्यदेशोत्पन्नाभिर्वा युक्ता इति गम्यं, 'बामणीहि अत्यन्तहस्वदेहाभिः इस्वोन्नतहृदयकोष्ठाभिर्वा 'पडभि-18 धर्म तिकम् दयाहिंति वदभिकाभिर्वक्राधःकायाभिः बदरीहिति बर्बराभिधानानार्यदेशोत्पन्नाभिः, एवमन्याभ्यपि षोडश पदानि, 'णाणादे
सीहि नानाजनपदजाताभिः, विदेशपरिमंडियाहिं' विदेशः परिमण्डितो यकाभिस्तास्तथा 'विदेसपरिपिडियाहिति वाचना- सू०३४ कान्तरं, तब विदेशे परिपिण्डिता-मिलिता यास्तास्तथा ताभिः, इंगियचिंतियपस्थियवियाणियाहिं' इङ्गितेन-चेष्टितेन चिन्तित || ||
प्रार्थितं च वस्तु जानन्ति यास्तास्तथा, पाठान्तरे 'इंगियचिंतियपत्थियमणोगतवियाणियाहिं' इङ्गितेन चिन्तितप्रार्थिते मनोगते-मनसि वर्तमाने वचनादिनाऽनुपदेशिते विजानन्ति यास्तास्तथा ताभिः, 'सदेसणेवत्थगहियवेसाहि' स्वदेशनेपथ्यमिव गृहीतो वेषो यकाभिस्तास्तथा ताभिः, तथा 'चेडियाचक्वालवरिसधरकंचुइजमहत्तरवंदपरिक्खित्ताओं वर्षधरा:वतिकाः कञ्चुकिनस्तदितरे च ये महत्तरा-अन्तःपुररक्षकास्तेषां यद्वन्दं तेन परिक्षिप्ता यास्तास्तथा, 'णियगपरियाल सद्धिं संपरिवुडाओत्ति निजकपरिवारेण लुप्ततृतीयैकवचनदर्शनात् सार्ध-सह संपरिवृताः-तेनैव परिवेष्टिताः 'ठियाउ चेव'त्ति का ऊर्ध्वस्थिता एवेति ॥ ३३ ॥
तए णं समणे भगवं महावीरे कूणिअस्स भभसारपुत्तस्स सुभद्दाप्पमुहाणं देवीणं तीसे अ महतिमहालियाए परिसाए इसीपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए अणेगसयवंदाए अणेगस- ॥७७॥
यवंदपरिवाराए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमिअवलवीरियतेयमाहप्पकंतिजुत्ते सारयनवत्थणियमहुडीरगंभीरकोंचणिग्घोसदुंदुभिस्सरे उरेवित्थडाए कंठेऽवढियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए
[३३]
कोणिक-राज्ञ: सुभद्रा नामक राज्य: भगवत् महावीरस्य वन्दनार्थे गमन-यात्राया: वर्णनं
~ 157~
Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244