Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 186
________________ आगम (१२) “औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ----------- मूलं [...३८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्राक [३८] सू०३८ औपपा Iणिग्घंटण्डाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चजण्हं चेयाणं सारगा पारगा धारगा वारगा सडंगवी सद्वितंतवि-12 जीवोप० तिकम् ||४|| सारया संखाणे सिक्खाकप्पे घागरणे छंदे णिरुत्ते जोतिसामयणे अण्णेसु य भण्णएसु अ सस्थेसु सुप-1४| रिणिहिया यावि हुत्था । तेणं परिव्वायगा दाणधम्मं च सोअधम्मं च तिस्थाभिसेअंच आघवेमाणा पण्ण |वेमाणा परूषमाणा विहरंति, जपणं अम्हे किंचि असुई भवति तपणं उदएण य महिआए अपक्वालि ४ मुई भवति, एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवेत्ता अभिसेअजलपूअप्पाणो अवि ग्घेण सग्गं गमिस्सामो, तेसि णं परिवायगाणं णो कप्पइ अगई वा तलायं वा गई वा वाविं वा पुक्ख-13 |रिणी वा दीहियं वा गुंजालिअंचा सरं वा सागरं वा ओगाहित्तए, णण्णस्थ अद्वाणगमणे, णो कप्पह सगड वा जाव संदमाणिों वा दुरुहिता णं गच्छित्तए,तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पड आसं वा हस्थि वा उ वा गोणिं वा महिसं चा खरं वा दुरुहिता णं गमित्तए, तेसि णं परिवायगाणं णो कप्पड़ नडपेच्छा इ वा| |जाव मागहपेच्छा इ वा पिच्छित्तए, तेर्सि परिवायगाणं णो कप्परहरिआणं लेसणया वा घणया या धंभ-IN णया वा लूसणया वा उप्पाडणया वा करित्तए, तेसिं परिवायगाणं णो कप्पड इथिकहा इ वा भत्सकहा इवा ॥९ ॥ | देसकहा वारायकहा इ वा चोरकहा इ वा अणस्थदंड करित्सए, तेसि परिब्वायगाणं णो कप्पह अयपायाई वा तउअपायाणि वा तंवपायाणि वा जसदपायाणि वा सीसगपायाणि वा रुप्पपायाणि वा सुवण्णपायाणि वा अण्णयराणि वा बहुमुल्लाणि वा धारित्तए, णण्णत्व लाउपाएण वा दारुपाएण वा महिआपाएण वा, तेसि 68554ॐ गाथा: दीप अनुक्रम [४४-४८] 1-500 -600-5 ~ 185~

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