Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 214
________________ आगम (१२) प्रत सूत्रांक [४१] दीप अनुक्रम [५१] औपपातिकम् ॥१०५॥ “औपपातिक” - उपांगसूत्र - १ ( मूलं + वृत्ति:) मूलं [४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१२], उपांग सूत्र [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः अणगारा भवंति - ईरियासमिया भासासमिया जाव इणमेव णिग्गंधं पावयणं पुरओकाउं बिहरंति तेसि णं भगवंतपुर्ण पणे विहारेणं विहरमाणानं अत्येगइयाणं अनंते जाब केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जइ, ते बहुई | वांसाई के बलिपरियागं पाउणति जाव पाउणित्ता भत्तं पञ्चक्रवति भत्तं बहूई भत्ताई अणसणाइ छेदन्तिरत्ताजसट्टाए कीरह णग्गभावे० अंत करंति, जेसिंपि य णं एगइयाणं णो केबलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ ते बहु वासाई | छउमत्थपरियागं पाउ णन्ति२ आवाहे उप्पण्णे वा अणुप्पण्णे वा भत्तं पचक्वंति, ते बहई भत्ताई अणसणाए छेदन्ति २ ता जस्साए कीरह जग्गभावे जाब तमहमाराहित्ता चरिमेहिं ऊसासणीसासेहिं अनंत अणुत्तरं निव्वाघायं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदंसणं उप्पार्डिति, तओ पच्छा सिज्झिहिन्ति जाय अंत | करेहिन्ति । एगचा पुण एगे भयंतारो पुत्र्वकम्माबसेसेणं कालमासे कार्य किया उक्कोसेणं सवसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवति, तहिं तेसिं गई तेत्तीसं सागरोवमाई दिई आराहगा, सेसं तं चैव २१ से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुआ भवंति, तंजहा सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्वसंगातीता सव्वसिणेहातिकंता अकोहा णिकोहा स्वीणकोहा एवं माणमायालोहा अणुपुवेणं अट्ठ कम्मपयडीओ ॥ १०५ ॥ खवेत्ता उपिं लोयग्गपट्टाणा हवंति ( सू० ४१ ) ॥ 'अयसकारण 'त्ति पराक्रमकृता सर्वदिग्गामिनी वा प्रख्यातिर्यशः तत्प्रतिषेधादयशः 'अवण्णकारयत्ति अवज्ञा-अनादरः अवर्णो वा वर्णनाया अकरणं 'अकित्तिकारग'त्ति दानकृता एकदिग्गामिनी वा प्रसिद्धिः कीर्तिस्तनिषेधाद कीर्तिः Education International For Pale Onl ~213~ जीवोvo सू० ४१

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