Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१२)
“औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः )
----- मूलं [...३८] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्राक
[३८]
गाथा:
वाकवासिणो' त्ति वल्कलवाससः 'चेलवासिणों त्ति व्यक्तं पाठान्तरे 'वेलवासिणो' त्ति समुद्रवेलासन्निधिवासिनः 'जलवासिणो' त्ति ये जलनिमग्ना एवासते, शेषाः प्रतीताः, नवरं 'जलाभिसेयकढिणगाया' इति ये अस्नात्वा न भुञ्जते है स्नानाद्वा पाण्डुरीभूतगात्रा इति वृद्धाः, पाठान्तरे जलाभिषेककठिनं गात्रं भूताः-प्राप्ता ये ते तथा, 'इंगालसोल्लिय' त्ति |
अङ्गारैरिव पक्कं 'कंडुसोल्लियं' ति कन्दुपक्वमिवेति पलिओवमं वाससयसहस्समभहिय' ति मकारस्य प्राकृतप्रभवत्वाद्धपार्षशतसहस्राभ्यधिकमित्यर्थः, अथवा पल्योपमं वर्षशतसहस्रमभ्यधिकं च पल्योपमादित्येवं गमनिका ॥१०॥ | से जे इमे जाव सन्निवेसेसु पव्वया समणा भवंति, तंजहा-कंप्पिया कुकुइया मोहरिया गीयरइप्पिया नचणसीला ते णे एएणं बिहारेणं विहरमाणा बहई वासाई सामण्णपरियाय पाउणति पदई वासाई साम-18 |पणपरियायं पाणिशा तस्स ठाणस्स अणालोइअअप्पडिकंता कालमासे कालं किया उफोसेणं सोहम्मे कप्पे | कैदप्पिएम देवेसु देवत्ताए उचवत्तारो भवति, तहिं तेसिंगती तहिं तेसिं ठिती, सेसं तं चेष, णवरं पलिओवर्म
बाससहस्समभहियं ठिती ११ । से जे इमे जाव सन्निवेसेसु परिव्यायगा भवति, तंजहा-संखा जोई कविला k|भिउच्चा हंसा परमहंसा पहुउदया कुडिव्वया कण्हपरिवायगा, तत्थ खलु इमे अह माहणपरिग्वाघगा
भवति, तंजहा-कण्हे अ करकंडे य, अंबडे य परासरे। कण्हे दीवायणे चेव, देवगुत्ते अणारए ॥१॥ तस्थ खलु इमे अट्ठ खत्तियपरिब्वायया भवति, तंजहा-सीलई ससिहारे(य), णग्गई भग्गई तिअ । विदेहे राया रापी रोपारामे बलेति अ॥१॥ते गं परिब्वायगा रिउब्वेदजमुब्वेदसामवेयअहव्वणवेय इतिहासपंचमाणं
दीप अनुक्रम [४४-४८]
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