Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१२)
“औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
----------- मूलं [४०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[४०]
दीप अनुक्रम
जीवोप. औपपा-1 हिइत्ति मोक्ष्यते सकलकाँशैः परिणिवाहिइत्ति परिनिर्वास्यति कर्मकृत्तसन्तापाभावेन शीतीभविष्यति, किमुक्तं भव-|| तिकम् | ति..-'सबदुक्खाणमंतं काहिइ'त्ति व्यक्तमेवेति १४ ॥ ४० ॥
सू०४१ ॥१०॥
II से इमे गामागर जाच सण्णिवेसेसु पब्वइया समणा भवंति, तंजहा-आयरियपरिणीया उषज्झायपडिमणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया आयरियउवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बह
हिं असम्भावुभावणाहिं मिच्छत्साभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा बुप्पाएमाणा विहरित्सा वह वासाई सामपणपरियागं पाउणंति बहु० तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिकंता कालमासे कालं किया उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिचिसिएम देवकिञ्चिसियत्साए उबवत्तारो भवंति, तहिं तेसिं गती तेरससागरोवमाई ठिती अणाराहगा सेसं तं चेव १५ । सेजे इमे सपिणपंचिंदियतिरिक्खजोणिया पज्जत्तया भवंति, तंजहा-जलयरा खयरा थलयरा, तेसि णं अत्थेगइयाणं सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं लेसाहिं विमुज्झमाणाहिं तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं इहावूहमग्गणगवेसणं करेमाणाणं सपणीपुब्ब|जाईसरणे समुप्पजइ । तए णं ते समुप्पण्णजाइसरासमाणा सयमेव पंचाणुब्बयाई पडिवजति पडिवजित्ता बहुर्हि सीलब्वयगुणवेरमणपचक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावमाणा बहई वासाई आउयं पालेंति | पालित्ता भत्तं पच्चक्खंति बहई भत्ताई अणसणाए छेयंति २त्ता आलोइयपडिकता समाहिपत्ता कालमासे | कालं किया उकोसेणं सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तहिं तेर्सि गती अहारस सागरोवमाई|
KARANA
[५०]
१०३॥
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