Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 197
________________ आगम (१२) “औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ----------- मूलं [४०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४०] दीप अनुक्रम अम्मडे परिष्वायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्बइत्तए?, णो इणड्डे समहे, | गोयमा! अम्मडे गं परिब्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीचे जाव अप्पाणं भावमाणे विहरह, णवरं जसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी ण वुच्चइ अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पञ्चक्खाए जावज्जीवाए जाव परिग्महे णवरं सव्वे मेहुणे पचक्खाए जावज्जीवाए, अम्मडस्स णं णो कप्पड़ अक्खसोतप्पमाणमेतंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए णण्णस्थ अद्धाणगमणेणं, अम्मडस्स ण णो कप्पइ सगई एवं चेव भाणियन्वं जाव णण्णत्व एगाए गंगामट्टियाए, अम्मडस्स णं परिब्वायगस्स णो कप्पइ आहाक|म्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इवा अज्झोअरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिचे इ वा अणिसिहे इ वा अभिहडे इ वा ठहत्तए वा रइत्तए वा कंतारभत्ते इ वा दुबिभक्खभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा | गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिब्वायगस्स णो कप्पद मूल भोयणे वा जाव बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिब्वायगस्स चउब्धिहे अणत्थदंडे पञ्चक्खाए जावज्जीवाए, तंजहा-अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे, अम्मडस्स कप्पड़ मागहए अहाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए सेऽविय वहमाणए नो चेव णं अवहमाणए जाव सेऽविय पूए नो चेव णं अपरिपूए सेविय सावजेत्तिकाऊंणो चेव णं अणवजे सेविय जीवा इतिकट्ट णो चेव १ नेदं प्रत्यन्तरे णबरमित्यावितः. [१०] अंबड-परिव्राजकस्य कथा ~196~

Loading...

Page Navigation
1 ... 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244