Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१२)
प्रत
सूत्रांक
[३१]
दीप
अनुक्रम [३१]
“औपपातिक”
-
उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः)
मूलं [... ३१]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ........आगमसूत्र [१२], उपांग सूत्र [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
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तए णं से कूणिए राया हारोत्थयसुकयरयवच्छे कुंडलउज्जोविआणणे मउडदित्तसिरए परसीहे णरवई णरिंदे परवस हे मणुअरायवसभकप्पे अन्महिअरायते अलच्छीए दिव्यमाणे हत्यिक्खंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज़माणेणं सेअवरचामराहिं उद्धच्वमाणीहिं २ बेसमणो चेव णरवईअमरवईसण्णिभाए इडीए पहियकिसी हयगयरपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए समनुगम्ममाण| मग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेहए तेणेव पहारित्थ गमणाए, तए णं तस्स कूणिअस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स पुरओ महंआसा आसघरा उभओ पासिं जागा नागधरा पिइओ रहसंगेलि ।
अथाधिकृत वाचनानुश्रीयते-'तए णं से कूणिए राया' इत्यादि महंआसा' इत्येतदन्तं सुगमं व्याख्यातप्रायं च, नवरं 'पहारेत्थगमणाए 'त्ति सम्बन्धः, नरसीहे शूरत्वात् नरवई स्वामित्वात् नरिंदे परमैश्वर्ययोगात् नरवसमे अङ्गीकृतकार्य भरनिर्वाहकत्वात् 'मणुयरायव सहकप्पे' मनुजराजानां नृपतीनां वृषभा नायकाश्चक्रवर्तिन इत्यर्थः, तत्कल्पः- तत्सन्निभ उत्तरभर तार्द्धस्यापि साधने प्रवृत्तत्वात् एवंविधश्व 'वेसमणे चेव' यक्षराज इव, तथा 'नरवईअमरवईसन्निभाए इडीए पहिय| कित्ती' नरपतिरसौ केवलममरपतिसन्निभया ऋद्ध्या प्रथितकीर्तिः- विश्रुतयशा इति, 'जेणेव पुष्णभद्दे 'त्ति यस्यामेव दिशि पूर्णभद्रं चैत्यं 'तेणेव 'त्ति तस्यामेव दिशि 'पहारित्थ'त्ति प्रधारितवान् विकल्पितवान् प्रवृत्त इत्यर्थः, 'गमणाएं'त्ति गमनाय गमनार्थमिति । 'महंआस' ति महाश्या - बृहत्तुरङ्गाः 'आसघर'त्ति अश्वधारकपुरुषाः 'आसवर'ति पाठान्तरं
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कोणिक-राज्ञः भगवत् महावीरस्य वन्दनार्थे गमन-यात्रायाः विशद वर्णनं
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