Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
जब मैं पूर्ण शाकाहारी बना तब मेरी उम्र ५५ वर्ष की थी। उस समय मुझे ऐसा वहम था कि यदि में दूध, घी आदि का त्याग कर दूंगा तो मेरी तंदुरस्ती खतरे में पड जायेगी (कम हो जायेगी)। मैं संपूर्ण शाकाहारी (Vegan) बना उससे पूर्व का एवं उसके पश्चात् का विवरण निम्नानुसार है
संपूर्ण शाकाहारी (Vegan) संपूर्ण शाकाहारी (Vegan)
होने से पूर्व १९९५ होने के बाद १९९७ कॉलेस्टेरोल एच.डी.एल. (HDL) ३४ ट्रायिग्लस राइड
१७५ शाकाहारी बनने के पश्चात् मेरे शरीर को विशेष शक्ति प्राप्त हुई है। शरीर में कैल्सियम की कमी महसूस नहीं होती । मेरी हड्डियों में मजबूती यथायोग्य हैं। यद्यपि सभी को शाकाहारी बनने के बाद अपने शरीर की रासायणिक जांय निरंतर करवानी चाहिए । मेरे डॉक्टर मेरे (स्वास्थ्य) परिणामों से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने मुझे अन्य किसी विटामिन्य या कैल्शियम लेने की भी सलाह नहीं दी। १९९८ में भी मेरा आरोग्य विवरण (Report) उतना ही उत्तम था। जैन धार्मिक द्रष्टिकोणः
अहिंसा जैनधर्म का उच्चतम आदर्श है। यद्यपि जीवन निर्वाह हेतु गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं को किन्हीं अंशों में मर्यादित हिंसा की छट भी है। जैनधर्म ग्रंथों में स्पष्ट रूप से कथन है• स्वयं के जीवन निर्वाह हेतु, साधु/साध्वियों के जीवन निर्वाह हेत, शास्त्र, धर्मग्रंथ एवं ग्रंथालय, जिनालय, उपाश्रय आदि के संरक्षण हेतु अत्यंत आवश्यक परंतु मर्यादित प्रामाण में मिट्टी, रेती, चूना, पत्थर, पानी, अग्नि (दीपक) आदि वायु और वनस्पति कायिक एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा करने
की गृहस्थ श्रावक/श्राविकाओं को प्रायश्चित के साथ अनुमति दी गई है। • द्वि इन्द्रियों से पंचेन्द्रिय तक के किसी भी त्रस जीव उदा. पशु-पक्षी, जीवजन्तु एवं मनुष्यादि की किसी भी परिस्थिति में उन्हें किसी भी प्रकार का त्रास देना या उनही हिंसा करने की छूट श्रावक-श्राविकाओं को नहीं दी गई
• साधुओं का पूर्ण रूपसे अहिंसक होना आवश्यक है । साधु पृथ्वी, पानी,
अग्नि, वायु या वनस्पति सहित किसी भी स्थावन या त्रस जीवन की हिंसा नहीं करते हैं।
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