Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 81
________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा मोना शाह Date - Wed. 02 Sep. 1998 12:50:47 EDT From: "Kingcross Beach" kingcross@hotmail.com महत्वपूर्ण बहुमूल्य ई-मेल के लिए आभार। मैं कितना अज्ञानी हूँ यह जान कर मैं शर्म महसूस करता है। यह जानकारी मैं अपने मित्रो को दूँगा । - एन. रवि From Date - Mon. 24 Aug. 1998 12:25:57 PDT "PARIND SHAH" parind@hotmail.com मेरे एक काकाजी द्वारा ई-मेइल से भेजा हुआ गाय-भैंस संबंधी आपका लेख मैंने पढ़ा। मैं यहाँ पिछले १.५ वर्षों से आया हूँ तब से जमीं कंद नहीं खाने का प्रयत्न कर रहा हूँ जिसमें मैं अधिकांश रूप से सफल भी हुआ हूँ। परंतु मैं दूध और तज्जन्य वस्तुओं का उपयोग करता हूं... मैने जो वास्तविक हकीकत (आपके लेख द्वारा) ज्ञात की वह अति भयानक है। कृपया आप मुझे यह समझायें कि प्रतिदिन के जीवन व्यवहार में दूध और उसके उत्पादनों का त्याग आपने कैसे किया ? - परिन्द शाह Date - Mon. 24 Aug. 199821: 23 : 14 EDT From - hkmehta1@juno.com (Haresh Mehta ) मेरा नाम रिद्धि महेता है और मैं १६ वर्ष की हूँ। मैं हाल ही में कोलंबिया एस.सी. के बोस्टन एम. ए. से आई हैं। आपने जो माहिती प्रस्तुत की उससे मुझे बहुत आघात लगा । वह आपके अभिप्राय से नहीं अपितु आपने जो मानव कसाई की बात प्रस्तुत की उससे । कोलंबिया में श्री पू. चित्रभानु जी के प्रवचन सुनकर १९९७ के मई महिने से मैंने अंडे व पनीर जिन व्यंजनों में डाले जाते हैं उन पदार्थों का खाना बंद कर दिया है। मैं जो भूल गई थी उसे पुनः स्मरण कराने हेतु दी गई जानकारी के लिए आपका आभार मानती हूँ । - रिद्धि Date Tue. 21 Apr. 1998 18:25:27 EDT From Instyplanoinsty plano@aol.com 81 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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