Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 79
________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा -बीना-लालन Date - Mon. 08 Sep.1997 16.38-50-0700 From-DeepakPatel <dpatel@BayNetworks.com> मुझे आपका पत्र / लेख पसंद आया। मैं जानता हूँ कि इसमें पसंद या नापसंद का कोई प्रश्न ही नहीं है । (आप द्वारा प्रदत्त) यह एक खतरनाक वास्तविकता है। मैं शाकाहारी हूँ। - दीपक पटेल Date - Wed. 19 Aug 1998 08:33:28-0700 (PDT) From - Frank Riela friela.@conflictnet.org आपकी टिप्पणी ने मुझे पूर्ण विश्वस्त बनाया है। पिछले कई वर्षों से मैं शाकाहारी बन गया हूँ। यद्यपि इन सब तथ्यों को पढ़कर मैं बेचैन हो गया हूँ। पर, यह बात इतनी अच्छी है कि हमें कैसे जीना चाहिए उसका स्मरण कराती है। मेरा रक्त भी उत्तम रूप से कार्यरत हैं। कोलेस्टेरोल कम है एवं लोह तत्व भी उत्कृष्ट है। जब से मैं शाकाहारी बना हूँ तब से मेरा वजन भी सप्रमाण है एवं मैं शारीरिक तथा मानसिक शांति का अनुभव करता हूँ। - Fran Riela Date : Sun. 2 Nov. 1997 08 : 28 : 43-0500 From - lan R. Duncan आपके डेयरी उद्योग के विषयक लेख का मैं आदर करता हूँ। यह लेख अनेक लोगों के लिए अत्यंत जिज्ञासा एवं आतुरता का कारण बना है। यद्यपि अमरीका सहित पश्चिम में विशिष्ट धार्मिक सिद्धांतो को छोड़कर आरोग्य एवं नैतिक मूल्याधारित संपूर्ण शाकाहारी (Vegan) परंपरा का उद्भव हो रहा है। - lan R. Duncan, Rome. Italy Date - Thu. 20 Aug. 1998 10:48 : 15-400 From - Joanne Stepaniak joanne@vegsource.org http://www.vegsource.org/jonne ___मैंने आपका लेख “मेरी डेयरी मुलाकात” अन्य लोगों को भी भेजा है एवं जैन समाज में शाकाहार (Vegan) के प्रति संपूर्ण जागृति आये उसके लिए आप जो प्रयत्न कर रहे हैं उसके लिए आपका आभार मानना मुजे अच्छा 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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