Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 78
________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा Dae - Mon. 29 Sep. 1997 09:15:46 to 0500 From – Sailu<sl_comdc@sriven.scs.co.in> आपका पत्र / लेख पड़कर मेरी प्रसन्नता ही खो गई है। वास्तवमें दो दिन पूर्व ही आपका पत्र / लेख पढ़ा। इन दो दिनोंमें मैंने जब जब चाय का घूंट पिया तब मुझे आपकी आलेखित बातों का स्मरण होता रहा । सत्यमें जो वास्तविकता है उसे पचाना बड़ा कठिन है। -शैलू Date – Tue. 23 Sep. 1997 00:32:55-500 (EDT) From - Apati@aol.com डेयरी की मुलाकात में सहभागी बनाने हेतु आपका खूब - खूब ही आभार । मेरा हृदय जैसे चौंककर जग ही गया है । मैं अल्प मात्रा में शाकाहारी है। मैंने हावर्ड लीमेन ( Haward Lyman) का भाषण सूना है। मुझे मादा प्राणियों के जीवन और अधिकार की प्रवृत्तियाँ स्वप्न में दिखाई दी । उडीसा में मेरे पति को हार्टएटैक हुआ था । वे अर्धशाकाहारी हैं और अब अपने पूर्वज से प्राप्त वंशपरंपरागत शाकाहार की ओर मुड़े हैं। मैंने आपका लेख उन्हें भेजा है। आपकी आभारी हूँ- पुनः पुनः आभार मानूँगी। - अनीता पाटी Date - 25 Aug. 9811:59:27-0700 From – RAMARNAT@us orecle.com आपका लेख अति सुंदर है। मैं जैन नहीं हूँ परंतु संपूर्ण शाकाहारी (Vegen) बनने में प्रयत्नशील तमिल शाकाहारी (Vegan) हूँ एवं हम सभी अहिंसा में विश्वास करते हैं । हमारे घर कुत्ते, बिल्ली, गाय-भैंस, बकरी... आदि पशु हैं। हम उन्हें अधिकाधिक सुख से पालेंगे। आपने जो लिखा उसके प्रत्येक शब्द का अर्थ में समझा हूँ। - अमर Date Thu. 04 Sep. 1997 12:13:139-0700 From – Janak Lalan jlalan @pacbell.net मि. प्रविण शाह यह माहिती प्रदान करने के लिए आपका खूब खूब आभार। मुझे लगता है कि थोड़े ही समय में आप महसूस करेंगे कि आपने बहुत बडा कार्य किया है। आप सही अर्थों में 'सच्चे जैन' हैं। 78 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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