Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
९. अंडा विषयक वास्तविकता
- प्रमोदा चित्रभानु
कितने लोगों को पता है कि रेशमी वस्त्र पहिनने या उसका उपयोग करने में तथा गौरव के साथ धार्मिक स्थानों पर ऐसे रेशमी वस्त्र पहनने में हिंसा का दोष लगता है ? दुर्भाग्यपूर्ण या विचारणीय बात तो यह है कि रेशम की उत्पत्ति उसके निर्माण की प्रक्रिया के विषय में किसी भी प्रकार का प्रश्न किए बिना ही हम परंपरा का अंधानुकरण करते हैं।
ई.स. ११३३ में जब महाराज कुमारपाल गुजरात के राजा थे तब से धार्मिक पूजाविधि में रेशमी वस्त्रों के प्रयोग का प्रारंभ हुआ। महाराज कुमारपाल के शासन काल में वे तत्कालीन जैनाचार्य कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी से अति प्रभावित थे। श्री हेमचंद्रसूरिजी जैन तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी की उस परंपरा में हुए महान जैनाचार्य थे। उनके अहिंसा व जीवदया के प्रवचनों से प्रभावित होकर उसने अपने संपूर्ण राज्य में आहार, खेलकूद, एवं मनोरंजन हेतु की जानेवाली हिंसा पर संपूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था । ऐसा कथन है कि श्री हेमचंद्राचार्य जी की प्रेरणा से महाराज कुमारपाल ने अपने धर्मनिष्ठ जीवन का प्रारंभ किया था एवं भगवान महावीर स्वामी के प्रति अपना भक्तिभाव प्रकट करने हेतु वह प्रतिदिन मूर्ति की चंदन आदि द्रव्यों से पूजन करता था । महाराज कुमारपाल से यह कहा गया था कि वह पूजन में कीमती वस्त्र परिधान करें अतः उन वस्त्रों को प्राप्त करने की उसने आज्ञा दी । महाराजा के सेवकों ने सर्वाधिक मूल्यवान, सुन्दर, कोमल चीन से आये वस्त्रों का चयन किया । उस समय महाराज कुमारपाल को यह ज्ञात नहीं था कि उनके लिए चुने गये एवं परदेश से आयातित वस्त्रों के निर्माण में कीड़ों को मार डाला जाता हैं एवं ये वस्त्र पूर्ण हिंसक हैं । यदि उन्हें इस तथ्य का पता होता तो वे कभी पूजा में इन वस्त्रों का उपयोग न करते । परंतु ऐसी मान्यता है कि उसी समय से धार्मिक प्रभू पूजा जैसे प्रसंगों में, धार्मिक स्थानों पर रेशमी वस्त्रों का उपयोग प्रारंभ हुआ है। यह दुर्भाग्य ही है कि आज भी लोग धार्मिक विधि विधानों में रेशमी वस्त्र पहिनते हैं एवं उन्हें सही बतलाते हुए गौरव से कहते हैं कि महाराज कुमारपाल ने भी ऐसे वस्त्र पहने थे ।
अब यह समय आ गया है कि लोगों को वह सत्य समझाकर जागृत किया जाये कि रेशम की उत्पत्ति कैसे होती है, उसके निर्माण में क्या प्रक्रिया होती है। भारत में 'ब्युटी बिधाउट क्रुअल्टी' नामक संस्थाने इस क्षेत्र में कार्य
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