Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा १२. प्राणिज पदार्थों के दुरुपयोग की वास्तविकता
एवं उसके विकल्प
-प्रमोदा चित्रभानु इस आलेख में प्रस्तुत जानकारी आपको सजीव प्राणियों के प्रतिदिन होने वाले शोषण और पीड़ा को कम करने में मददगार होगी। (अमरीका की अपेक्षासे) जबकि अधिकांश लोग शाकाहार का प्रारंभ करते हैं तब अंडा और दूध के प्रमाण में वृद्धि कर देते हैं। रोमदार वस्त्र, चमड़े से बनी वस्तुएँ, उनी गरम वस्त्र एवं डेयरी उद्योगों को मददरूप होने के लिए प्राणियों का जो स्थूल शोषण होता है उसका अनेक शाकाहारी अनुभव ही नहीं करते । यहाँ पर कुछ वास्तविकताओं एवं विकल्पों की जानकारी प्रस्तुत करेंगे। यह जानकारी जैन फेडरेशन सेन्टर, न्यूयार्क की ओर से संकलित की गई है। हिंसा की वास्तविकताः
वर्तमान में फेक्टरी फार्मिंग एक अत्यंत अमानवीय / निंदनीय परिस्थिति में चौपगे पशु एवं पक्षियों के एकमात्र उत्पादन की मशीन के रूप में उपयोग करके, आधुनिक मशीनों द्वारा निश्चित प्राकर के लक्ष्य की पूर्ति हेतु की जाने वाली प्रजोत्पत्ति एवं उसके पालन पोषण की प्रक्रिया है। जिसके परिणाम स्वरूप प्राणियों को खेंच, रोग, पीडा व दुःख उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता। गाय-भैंसः
गाय-भैंस प्राकृतिक रूप से गरीब (सीधे) प्राणी हैं। ये प्राणी आज होर्मोन्स एवं एन्टिबायोटिक्स दवाओं, इन्जेक्शनों एवं अन्य औषधियों द्वारा सिर्फ बछड़ा-बछड़ी, पाड़ा-पाड़ी के स्वरूप में माँस ओर दूध देने की मशीन के रूप में परिवर्तित होकर रह गये है। जब यही गाय-भैंस, बछड़े-बछड़ी, पाड़ापाड़ी माँस या दूध का योग्य उत्पादन करने में सक्षम नहीं रहते तब इनको कत्लखाने में अनेक भयानक यातनायें सहन करनी पड़ती है।
सामान्य प्रमाण के दूध से ४०० गुना अधिक दूध प्राप्त करने के लिए गाय-भैंस को जबरदस्ती कृत्रिम रूप से सगर्भावस्था में रखा जाता है । विविध प्रकार के एन्टिबायोटिक्स दवायें एवं अकुदरती परिस्थितियों के कारण उनको महद् अंश में अनजाने रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
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