Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 67
________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा कैसे उसकी माता का दूध पी सकते हैं ? अग्नि एशिया एवं मध्य पूर्व के देशों में अधिकांशतः कोई किसी हल्की वस्तु का स्पर्श भी नहीं करता है जो सही है । अधिक अभ्यास करने से पता चला है कि एशियन अधिक मात्रा में लेक्टोस को पचा ही नहीं सकते। भारत में वर्षों से चल रहे विज्ञापन युद्ध ने यह बात लोगों में ऐसी दृढता से प्रचारित की है कि दूध प्राकृतिक संपूर्ण आहार है । परंतु यह नितांत असत्य है, यह मात्र गलत मान्यता के अलावा कुछ भी नहीं है और यह अति भयंकर है। एक ग्लास दूध, एक कप आइस्क्रीम या मक्खन आप खाते है उससे आपको तो नुकशान होता ही है परंतु वास्तविक रूप से आप एक अच्छे प्राणी और उसकी जिन्दी के महत्त्वपूर्ण वर्षों के साथ असह्य क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर रहे हैं । यहाँ एक बात और स्पष्ट कह दूँ कि धार्मिक महोत्सवों में मंदिरों में भी अज्ञानता के कारण दूध एवं उसके उत्पादनों का उपयोग किया जाता है । मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का अभिषेक करना, विधि विधानों में दूध से बनी मिठाइयाँ नैवेद्य के रूप में चढाने का रिवाज घुस गया है। इससे मंदिर की पवित्रता दूषित हो गई है। इस प्रकार ( अभिषेक के कारण) दूध गिरकर गटर में जाता है जो वहाँ चीटियाँ और बेक्टेरिया आदि जीवों की उत्पत्ति का कारण व स्थान बनता है। इस प्रकार के विधि-विधान बंद होने चाहिए । भगवान का अभिषेक मूल प्राचीन पद्धति के अनुरूप शुद्ध जल से ही हो उसका पुनः प्रचलन करना चाहिए । 67 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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