Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 64
________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा तक सगर्भावस्था में ही उससे दूध प्राप्त किया जाता है। बच्चे के जन्म एवं पुनः गर्भाधान के बीच मात्र ६ से ८ सप्ताह का ही अन्तर रखते हैं। इन गाय-भैंसो को दिन में दो बार दुहा जाता है। भारतीय दूध उद्योग की औसतन गाय-भैंस की लगभग ५ बार प्रसुति कराई जाती है या फिर आनुवंशिक रूपसे सगर्भावस्था में बड़े कोमल थन रहते हैं तब तक सगर्भा बनाया जाता है । अधिक दूध प्राप्त करने हेतु गाय-भैंस को जो अनेक मनुष्यों का भोजन है उस सोयाबीन की रोटियाँ खिलाई जाती है। इसके बावजूद दूध का उत्पादन उनकी भूख को पूरी नहीं कर पाता अर्थात् गाय-भैंस को जितना खिलाया जाता है उससे भी अधिक दूध की माँग होती है। अधिक दूध प्राप्ति हेतु उसके कोषों को ही नष्ट करने लगते हैं परिणाम स्वरूप उस गाय-भैंस को कीटोसीस (Kitosis) नामक रोग हो जाता है । रूमेन एसीडोसीस (Rumen Acidosis) नामक अन्य रोग गाय-भैंस को उम्र से पूर्व संकुचित (कमजोर) बना देता है। यह रोग जल्दबाजी में किए जाने वाले कार्बोहाइड्रेटस के कारण जल्दी पनपता है । यह रोग गाय-भैंस को पंगु बना देता है । गाय-भैंस को अधिकांश समय सँकरे स्थान में उसी के मल-मूत्र में बाँधकर रखा जाता है जिससे उसके थनों में असह्य वेदना होती है। इस लंबी बिमारी के दौरान गाय-भैंस को एन्टिबायोटिक्स दवायें हॉर्मोन्स एवं अन्य दवायें देकर जीवित रखा जाता है । इन सभी दवाओं का अंश हमारे उस दूध में भी होता है जिसका हम उपयोग करते हैं । 9 प्रति वर्ष डेयरी की गाय-भैंसो में से २०% गाय-भैंसो को रोग या दूध नहीं देने के कारण दूर किया जाता है । फिर उनको भूखा मारा जाता है या फिर कत्लखाने भेज दिया जाता है । वहाँ उनकी कत्ल उन लोगों की माँसपूर्ति के लिए किया जाता है जो माँस खाने में कोई बुराई नहीं मानते । इस प्रकार दूध उत्पादन एवं माँस के व्यापार का अत्यंत घनिष्ट संबंध है । कोई भी गाय-भैंस इसी कारण अपनी प्राकृतिक आयु को पूर्ण नहीं कर पाती । गाय-भैंस को तब तक पालते पोषते हैं जब तक वह दूध देती है- पश्चात् वह बीमार हो जाती है और अंत में उसे मार डाला जाता है । उस गाय के बछड़ेबछड़ी, पाड़े-पाड़ी का क्या होता हैं ? तुम्हें खबर है ? अधिकांश बछड़ेबछडी, पाड़ा-पाड़ी को उनकी माता गाय-भैंस से सिर्फ ३ दिनों में ही अलग कर दिया जाता है। यदि बछड़ी या पाड़ी तन्दुरुस्त हो तो डेयरी के गाय-भैंस के स्थान पर उसे रखने हेतु दूध के वैकल्पिक खुराक पर उसे रखा जाता है । पर यदि प्रसूत बछड़ा या पाड़ा हो तो उसे बांधकर रखते हैं और भूखों मार 64 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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