Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा प्रश्नः डॉ. कुरियन डेयरी उद्यो को उत्तम उद्योग मानते हैं जबकि आप
उससे विपरीत आक्षेप कर रहे हैं। उत्तरः डेयरी उद्योग उत्तम है ही नहीं । वास्तविक्ता यह है कि खाने-पीने की माँग अंततोगत्वा गाय-भैंस का ही बलिदान लेती है। उनकी ही बलि चढाई जाती है। हा ! यह कभी ठीक भी था जबकि प्रत्येक गृहस्थ के पास अपनी गाय-भैंस होती थी और उसकी देखभाल कुटुंब के एक सदस्य के रूप में की जाती थी पर आज वह महद् अंश में सत्य नहीं है। प्रश्नः वर्तमानकाल में भारत में दूध की प्राप्ति कैसे होती है ? उत्तरः इस समय गाय-भैंस को प्रतिवर्ष सगर्भा बनाया जाता है। बछड़े को जन्म देने के पश्चात दस माह तक वह दूध देती हैं, परंतु बछड़े के जन्म के तीन महिने बाद ही उन्हें पुनः कृत्रिम गर्भाधान द्वारा सगर्भा बनाया जाता है। जिससे वे सगर्भा होने के बावजूद दूध देती रहती हैं। ये गाय-भैंस जितना दूध देती हैं उसकी तुलना में माँग अधिक होती है जिससे उनके कोष टूटते हैं या नष्ट होते हैं- जिसके फलस्वरूप उन्हें कीटोसीस (Ketosis) नामक रोग होता है। गाय-भैंस को दिन-रात एक तंग कोठरी में उसीके मूत्र-मल की गंदगी में बाँध कर रखा जाता है जिससे इन पशुओं को मेस्टिट्स (Mastitis) नामक रोग हो जाता है। दूसरा कारण यह भी है कि जिन हाथों से इनको दूहा जाता है वे कर्कश-कठोर-गंदे होते हैं। खराब भोजन एवं अशक्ति के कारण गाय-भैंस को रयुमेनासीडोसिस (Rumenacidosis) नामक रोग हो जाता है। गायभैंसों को अत्यधिक मात्रा में एन्टिबायोटिक्स दवायें एवं होर्मोन्स देकर उनकी कार्यक्षमता समान रखी जाती है। प्रतिवर्ष डेयरी उद्योग से २०% गाय-भैंस ट्रकों या रेल्वे द्वारा अनधिकृत कत्लखानों में भेजी जाती हैं या फिर उन्हें गाँव व शहर की गलियों-सडकों पर बेमौत भूखे मरने के लिए छोड दिया जाती है । यद्यपि भारत के लोगों को दयालु होने के कारण गाय-भैंसों को रोटी के टुकडे खिलाते हैं या फिर उन्हें पांजरापोल (पशुरक्षण केन्द्र) में भेज देते हैं।
यह अब प्रसिद्ध एवं जाहिर तथ्य है कि अमुल डेयरी द्वारा गाँवों में कत्लखाना प्रारंभ किया गया है। इस प्रकार किसी भी गाय-भैंस को उसका प्राकृतिक जीवन नहीं जीने दिया जाता । गाय-भैंस को प्रारंभ में अधिक दूध प्राप्ति की लालसा में बीमार बना दिया जाता है और बाद में मार डाला जाता है। इन मृत गाय-भैंस के बछड़े-बछड़ी, पाड़े-पाडी के प्रति जो निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया जाता है वह तो उससे भी बदतर है। इन्हें निरंतर बाँधकर रखा जाता है एवं भूख से तडपा कर मार डाला जाता है या कत्लखाने भेज
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