Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा जब दूध पिया जाता है तो तात्कालिक संतोष मिलता है, परंतु यह राहत (संतोष) क्षणिक होती है । वास्तव में दूध-अम्लता पैदा करता है । जो अन्ततोगत्वा होजरी की आंतरिक भाग को नष्ट करता है।
दूध की डेयरी के उत्पादन द्वारा जिनकी अल्सर की चिकित्सा की जाती है उनकी हृदयरोग के आक्रमण की संभावना दो से छ गुनी बढ़ जाती है । यह बात तर्क संगत है क्योंकि दूध बछड़े के लिए उत्पन्न भोजन है जिससे बछड़े का वजन एक ही महिने में चारगुना बढ़ जाता है। दूध में चरबी का प्रमाण सर्वाधिक होता है, जिससे मेदवृद्धि एवं स्थूलता बढती है और यह मेदवृद्धि ही वर्तमान रोगों का सर्वाधिक कारणभूत है । इसी दृष्टि से आयुर्वेद में दूध को पाँच प्रकार के श्वेत विषों में से एक विष माना है। प्रश्नः भारतीय सदियों से दूध का उपयोग करते है। उनमें से कोई ऐसी
बीमारियों में नहीं फँसे। उत्तरः इसका आधार बीमारी की व्याख्या पर है । सामान्यतः अधिकांश लोग जोड के दर्द, ओष्टोपोरोसीस, अस्थमा, दम, शिरदर्द, कुपच की उपेक्षा ही करते हैं। इनको एक सामान्य स्थिति के रूप में स्वीकार कर लेते हैं एवं केन्सर जैसे रोग को भगवान की इच्छा मान लेते हैं। प्रश्नः दूध को दैत्य के स्वरूप में मानने से क्या हमारी प्राचीन संस्कृति और
परंपराओं का विध्वंस नहीं होगा ? उत्तरः हजारों वर्षों से लोगों की यह मान्यता थी कि सूर्य पृथ्वी के इर्द-गिर्द परिभ्रमण करता है। कोपरनिक्स ही वह पहला व्यक्ति था जिसने कहा था कि सूर्य पृथ्वी के इर्द-गिर्द नहीं घूमता है परंतु पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती है । उस समय उसका भयंकर विरोध हुआ था । भूतकाल में भारत में भी सतीप्रथा (मृत पति के साथ पत्नी का जीवित जलकर मरना) का एवं चरसगांजा पीने का, अफीण खाने की प्रथा थी। क्या आज ये कानूनी हैं ? मैंने हिन्दू संज्ञा पर एक पुस्तक लिखी है, जिस कारण से मुझे हिन्दु धर्म के अनेक शास्त्रों का पठन करना पड़ा है उसमें कहीं भी दूध पीने का उल्लेख नहीं है। हाँ ! घी के हवन का विधान है। दुर्भाग्य से हमारी स्मरण शक्ति अत्यंत अल्प होती है, और वस्तुओं के प्रति हम दृढ होते हैं और तत्संबंधी ज्ञान अत्यल्प होता है। डॉ. स्पोक जो बालपोषण के तजज्ञ थे, जो अपने दूध के प्रति किए गये अपने सकारात्मक विचारों के प्रति क्षमा याचना करते हुए कहते हैं कि बालकों को दूध नहीं पिलाना चाहिए। गाय-भैंस के प्रति निर्दयताः
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