Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 46
________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा प्रकार भोजन में तब्दीली करने का प्रयत्न करेगा तो उसके शरीर व मन की परिस्थिति में परिवर्तन का अनुभव करेगा। वर्तमान विश्व में शाकाहार क्या है उसे समझें 'Vegetarian' शब्द लेटिन भाषा में Vegetus शब्द से अवतरित है जिसका अर्थ है- संपूर्ण, चैतन्ययुक्त, स्वस्थ, ताजा । शाकाहारी मनुष्य किसी भी प्रकार का माँ, मछली, मुर्गी, या पक्षी के अंडे नहीं खाते । इसके बावजूद अमरीका में कुछ ऐसे लोग है जो अंडा खाकर भी स्वयं को शाकाहारी कहलाते हैं । इस दृष्टि से वर्तमान में शाकाहारियों को तीन विभागो में विभाजित किया है। Ovo-lacto Vegetarians : ऐसे लोग पक्षी, प्राणी, गाय-भैंस, मुर्गी, सुअर आदि के माँस मछली एवं समुद्री जलचरों का आहार नहीं करते है परंतु अंडा, दूध, दहीं, मक्खन आदि दूध के उत्पादनों का सेवन करते हैं । (कुछ अमरीकन स्वयं को शाकाहारी कहलाते हैं परंतु मुर्गी एवं मछली खाते हैं, वे इस व्याख्या के अनुसार शाकाहारी नहीं है।) Lacto-Vegetarian : ऐसे लोग पशु-पक्षी का माँस, अंडा या उनसे बने पदार्थ, मछली एवं समुद्री जलचरों का आहार नहीं करते हैं परंतु दूध और उससे बने पदार्थों का उपयोग करते हैं। Vegen: ये लोग संपूर्ण शाकाहारी होते हैं जो संपूर्ण प्रकार के प्राणिज पदार्थों का त्याग करते हैं । ये माँस, मछली, समुद्री, जलचर, अंडा, अंडे से बने पदार्थ, दूध, दही, घी, मक्खन एवं डेरी उत्पादनों, शहद आदि वस्तुओं का त्याग करते हैं। उपरांत चमडा, ऊन, रेशम एवं अन्य प्राणिज वस्तुओं का उपयोग नहीं करते। हमने शाकाहार के संदर्भ में नैतिक, प्राकृतिक, पर्यावरण एवं आरोग्य संबंधी दृष्टिकोण समझे। अब हम शाकाहार के संदर्भ में आध्यात्मिक, धार्मिक दृष्टिकोण को समझेंगे। प्राचीनकाल से किए गये शास्त्रों के अध्ययन एवं अनुसंधान से एक ही बात प्रकट हुई है कि सभी प्राणी जीने की इच्छा रखते हैं, सभी सुखी होना चाहते है। किसी को भी मृत्यु पसंद नहीं, कोई भी दुःखी नहीं होना चाहता। परंतु मनुष्य अपने आनंद और सुख के लिए, अपने लोभ और उसकी संतुष्टि के लिए प्राणियों का शिकार करके हिंसा करके, उन्हें पिंजरे में कैद करके या फिर 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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