Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
View full book text
________________
Jain Education International
करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
तेइन्द्रिय (४) चउरिन्द्रिय एवं (५) पंचेन्द्रिय । पाँच इन्द्रियों का क्रम निम्नानुसार है । (१) स्पर्शनेन्द्रिय- त्वचा (२) रसेन्द्रिय- जीभ (३) घ्राणेन्द्रियनाक (४) चक्षुरिन्द्रिय-आंख एवं (५) श्रोत्रेन्द्रिय-कान । जितनी इन्द्रियों की अधिकता, उतनी जीव की उच्च स्थिति (कक्षा) । वनस्पति एकेन्द्रिय हैं अतः उसके एकमात्र स्पर्शनेन्द्रिय ही है। जबकि अनेक प्राणी, पशु-पक्षी पंचेन्द्रिय हैं उनकी पाँचों इन्द्रियों हैं। किसी भी जिबको एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय की अवस्था प्राप्त करने में अत्यंत पुरुषार्थ करना पड़ता है। किसी भी पशु-पक्षी को मार डालना अर्थात् उसके द्वारा अत्यंत पीड़ा और दुःखपूर्वक प्राप्त की गई उच्च कक्षा का संपूर्ण विनाश करना | वनस्पति में, मनुष्य या प्राणियों जैसा रक्त युक्त चैतन्य नहीं होता । इससे उन्हें दुःख भी कम होता है यह अव्यक्त एवं अस्पष्ट होता है । जहाँ रक्त होता है वहाँ अधिक भावुक्ता, अधिक भावनायें एवं दुःख की गहरी अनुभूति भी होती है। अतः जब किन्ही अंशों में हिंसा अनिवार्य हो तब भी न्यूनतम हिंसा करनी चाहिए।
२६०० साल पूर्व अहिंसा एवं करुणा के पुरस्कर्ता महावीर स्वामी ने बताया था कि हमारे विचार जो कि हमारे कर्म में अभिव्यक्त होते हैं वे हमारे आचरण में से ही निष्पन्न होते हैं। "जैसा अन्न वैसा मन" जैसा आहार ग्रहण करते हैं उसका प्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व पर शारीरिक रूप से एवं भावात्मक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप में निश्चित रूप से पडता है । स्वस्थ, पवित्र एवं नुकसानदेय न हो ऐसा भोजन स्वास्थ्य, पवित्रता एवं उत्तम विचारों में उत्क्रांति लाता है। यदि एक बार विचार स्वस्थ, पवित्र एवं उन्नत बनें तो हमारे आचरण में भी पवित्रता आती है। जिनका मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता है उनके चारित्र में भी निर्बलता आती है।
पिछले पाँव साल में विज्ञान ने यह खोजकर बताया है कि हमारी जिन्दगी में सुख और सफलता का आधार चरित्र व व्यक्तित्व का निर्माण हमारे शरीर की आंतरिक कार्यपद्धति पर आधारित है। व्यक्तित्व का आविर्भाव एवं अभिव्यक्ति भौतिक शरीर द्वारा ही होती है। चेहरे पर हास्य आदि आनंद के भाव, सुख एवं करुणा दया की अभिव्यक्ति करते हैं जिसका समावेश 'मनुष्य के व्यक्तित्व में होता है । स्वस्थ शरीर के बिना ये भाव संभव ही नहीं।
इस प्रकार शाकाहार सूक्ष्म जीवों से लेकर विशालकाय जीवों के प्रति, निम्न कक्षा के जीवों से लेकर उच्च कक्षा के चैतन्य युक्त जीवों की ओर,
48
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org