Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee
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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
तैयार नहीं । जहाँ प्राणियों के प्रति आदर भाव है उसी भूमि में गाय-भैंस को अपनी पवित्रता का उच्च मूल्य चुकाना पड़ेगा ।
६. शाकाहारः करुणासभर जीवन पथ
अनदेखे होते हैं पीडित, अनसुने आक्रंद करते हैं तीव्र वेदना से कराहते वे बिना आवाज ही मृत्यु पाते हैं। देखकर इनकी मौत ऐसी क्या तुम्हारा हृदय कसमसाता नहीं ?
- प्रमोदा चित्रभानु
ये पंक्तियाँ अभिव्यक्त करती हैं उन प्राणियों के दुःख और पीड़ा को जो मनुष्य के लोभ के कारण उनका शोषण करते हैं, उन्हें पीड़ा देते हैं।
अज्ञानी, गूंगे, निःसहाय एवं लाचार प्राणि जिन्हें हमारी नजरों से दूर निर्दय पीड़ा सहन करने के लिए छोड़ दिया जाता है, यह उन प्राणियों का निराशाजनक चित्र हैं। यह विचार मात्र ही किसी के भी हृदय को वेदना और पश्चाताप से भर देता है। जब अपने ही छोटे भाई-बहिन भयंकर परिस्थिति में हों तब हम शांत कैसे बैठ सकते हैं ? क्या उनकी मदद करना या उनकी रक्षा करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी नहीं है ? पर, मनुष्य को समझना कितना दुष्कर हैं ! विलियम सेरोयन (William Saroyan) कहते है- "मनुष्य एक अभिनेता है, वह मनुष्य की समस्त क्रियाओं / चेष्टाओं का अभिनय कर सकता है कि जो प्रत्येक क्रिया झूठी होती है ।" संभवतः वे सत्य कहते हैं कि जिस दुनियाँ में हम सब निवास कर रहे हैं उस दुनिया को मनुष्य में निहित पशुताने हैवानियत से हिंसक एवं विघातक बना दी है।
इस धरती पर परोक्ष (परदे के पीछे) रूप से अत्यंत हिंसा एवं पीड़ा चल रही है जिसे रहस्यमय ढंग से अत्यंत गुप्त रखा जाता है। हमें लंबे समय से छला जा रहा है कि प्राणियों में आत्मा नहीं होती, उसे कोई दुःख नहीं होता क्या अज्ञानी एवं मूक प्राणियों पर आचरित निर्दयता को रोकने के लिए, प्राणियों की हिंसा रोकने के लिए हमें निद्रावस्था से जागृत होकर सत्य को उजागर करने का समय नहीं आया है। हिंसा में से हिंसा व प्रेम से प्रेम जन्म लेता है। हिंसा को समाप्त करने के लिए प्रत्येक प्राणी को मात्र मनुष्य के उपोग हेतु निर्मित वस्तु के रूप में न देखकर उन्हें सजीव प्राणि के रूप में देखना चाहिए । जैसे हम सुख-दुःख आनंद का अनुभव करते हैं उसी प्रकार भावों से प्राणियों का जीवन भावनाओं से भरा रहता है। A Place of Revelation नामक पुस्तक में उनके लेखक नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. आल्बर्ट स्वाइत्झर कहते हैं कि “तुम जहाँ भी जीवन ( जीवंत प्राणी) देखो वहाँ
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