Book Title: $JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Author(s): Pramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 31
________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा (३) कुछ मृत प्राणियों में पिस्सु युक्त पट्टा होता है उसमें से ऑरगेनोफॉस्फेट इन्सेक्टिसाइड नामक जहरीला जन्तुनाशक द्रव्य पैदा होता है। (४) अनधिकृत डी.डी.टी. द्वारा विकृत मछली का तेल (५) जन्तुनाशक पशु मलम के स्वरूप में जन्तुनाशक द्रव्य (Dursban) (६) पशुओं को दिये जाने वाले एन्टीबायोटिक में से उत्पन्न जहरीले रसायन । (७) जूते के पीते, सर्जिकल पिन, सुई आदि के रूप में वजनदार धातुऐं। (८) स्टीरोफॉम ट्रे में पेकिंग एवं सुपर मार्केट में विक्रय नहीं हए माँस, मच्छी, मुर्गी, पशुओं के बांधने वाली रस्सियां, प्लास्टिक में पैक की हुई जन्तु नाशक मलम, मरे हुए पशुओं को प्लास्टिक की जिन थैलीयों मेर रखा जाता है वे थैलियां और उनका प्लास्टिक। महंगी मजदूरी के कारण कत्लखाने के व्यापारी ऊपर बताये गये पदार्थों को मृत प्राणियों के अंगों से अलग नहीं करते और अनावश्यक कारण से वह पशु आहार में घुलमिल जाते हैं। रूपान्तर करने की प्रक्रियाः रूपान्तर करने वाले कारखानों में प्रक्रिया की राह में विपुल मात्रा में कच्चा माल बडे-बडे गंज के रूप में पड़ा रहता है। इस कच्चे माल पर ९० डिग्री गर्मी में मृत प्राणियों के ढेर पर लाखों की संख्या में कीडे-मकोडे रेंगते हुए नजर आते हैं। सर्वप्रथम कच्चे माल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है पश्चात दूसरे विभाग में सूक्ष्म टुकडों के लिए भेजा जाता है। इसके बाद उन टुकडों को २८० डिग्री गरम पानी में एक घंटे तक उबाला जाता है। इस निरन्तर उबलने की प्रक्रिया से हड्डियों में से माँस अलग होता है। यह प्रक्रिया २४ घंटे और सप्ताह के सातों दिन निरन्तर चलती ही रहती है। इस गर्म सूप को उबालने की प्रक्रिया में पीले रंग का ग्रीस या चर्बी जो ऊपर तैरने लगते हैं उन्हें उपर से अलग निकाल लिया जाता है। गर्म किये हुए माँस और हड्डियों को हैमर मील में भेजा जाता है जहाँ उसमें से शेष आर्दता को सुखा दिया जाता है और रेती की तरह बारीक पाउडर जैसा चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को घने तार वाली चलनी से चाल कर उसमें से बाल और हड्डीयों के बडे टुकडे दूर किये जाते हैं। इसमें से तीन वस्तुएँ बनाई जाती है (१) पुनरूत्पादित माँस (२) प्राणिज चर्बी (पीला ग्रीस) 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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