Book Title: Taporatna Mahodadhi
Author(s): Bhaktivijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी मारमानंद जैन समाना नं. २७ (मावृत्ति बीजी.) || श्री सिद्धचक्राय नमः । श्रीमद्विजयानंदसरिपादपद्मभ्यो नमः श्री तपोरत्न-महोदाध. (तपावलीय) भनेक ग्रंथो, नागमो, जाणकारोने पूछीने करलो संग्रह. मूल संपादक भने संशोधकप्रवर्तक भी कांतिविजयजी महाराजना सुशिष्य मुनिराजश्री भनिधियो . प्रकट कर्ता-- भी जैन आत्मानंद समा-मावनगर. मानद मेस-भावनगर For Private Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपमहिमा-तप विधान. ज्ञानेश्चतुर्भिरपि युक्ततया विजानन्, योऽस्मिन भवेऽपि समकमलयं स्वकीयम । तेपे तपोऽममफलं ममसर्वसत्वं, तं वर्धमानजिनपादकजं नमामः ।।१।। जे ( वर्धमानस्वामी दीक्षा लीधी त्यारथी) चार ज्ञाने करीने युक्त छता अने तेथी कगने ते ज भवमा पोताना समग्र कर्मना क्षयने जाणतां छतां पण, अनुपम फलने आपनारा तपर्नु आचरण करता हता, ते सर्व प्राणीओने विष समदृष्टिवाळा श्री वर्धमानस्वामीना चरणकमळने अमे नमीए लीए.. ForPrivate LPersonal use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % AA% C AEa 4 Himaxammamtixnmoorancommmmoothacommunanamom E सुशील श्री हीराव्हेननु संक्षिप्त जीवन. गूजरातमा पाटण शहेर परंपराथी जैनपुरी गणाय छे; भूतकाळमां महान | विभूति श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज जेवा विद्वान आचार्यों, श्री परमाहत कुमारपाळ महाराजा जेबा महान धर्मना उपासक राजवी विगेरे थइ गया होवाथी ते ऐतिहासिक शहेर गणाय छे. त्यांना जैन कुटुम्बो श्रद्धालु अने 3 संस्कारी छे. धार्मिक श्रद्धा अने संस्कार परंपराथी प्राप्त थयेला छे. ते जैन पुरी शहरमा शेठ श्री छोटालालभाइ जेवा धर्मी पुरुषने त्यां श्रीमती हीराव्हननो संवत १९५० नी सालमा जन्म थयो हतो. लघु वयमा सामान्य स्कुलनो अभ्यास लेवा छतां धार्मिक शिक्षण पण माथे लीधेल इतुं. श्रद्धा तो कुटुंब परंपरागत होवाथी धार्मिक जीवन जीवतां हता. अढार वर्षनी उमरे तेवाज संस्कारी कुटुम्बमां शेठ डाह्याभाइ चुनीलाल साथे हीराव्हेननु लग्न थयुं हतुं. शेठ डाह्याभाइ धार्मिक पुरुष होवा साथे सरल हता. तेओ B. A. थया हता, नेमज कुशल व्यापारी होवाथी तेओ धंधार्थे आमलनेर (खानदेश) गया हता. आ दंपति त्यां बहुज सुखी जीवन गाळतां % % 9C- % गंगाम्ब० मीमती हीराबहेन छोटालाल. BLADDOOKMoxxnconomfianconoceex mmommanu000008 % Main Education International Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हतां, परंतु भावीन नहि गमतुं होवाथी शेठ डाह्याभाइनो स्वर्गवास थयो के जे बखते हीराबहेनने ३७ वर्ष चालतं. संततिमां हतुं नहि, जेथी विधवा या पक्षी पिता छोटालालाइ अने प्रिय बंधुओ नटवरलालसा बगरनो संपूर्ण प्रेम होवाथी हीराब्देन पीयरमां पाटण रहेवा आव्यां अने आत्मकल्याण साधवा लाग्यां विशेष प्रकारे नीचे प्रमाणे विविध प्रकारे पाओ करवा लाग्यां. १ वशिस्थानकनी ओळी. २ अक्षयनिधि त ३ स तप ४ नवपदीनी ओळी, ५ एकमायी, दोदमामी, aarit, arrarai, Barमी तप, ६ बावन जिनालय तप ७ पांचम, अर्गीयारस, बीज. ८ वर्धमान तपनी २१ मी ओळी ( चाले छे । ९ श्री शत्रुंजयना छ, अट्टम १० त्रणे उपधान. ११ पालीताणा चातुमांस करवा साधे नवाणुं यात्रा. १२ बीजीवार उपरोक्त प्रमाणे पूज्य पिताश्री साथे १३ तिथिए पोसह घणा वखतथी करे छे. उपरोक्त रीत धार्मिक जीवन जीवी मनुष्य जन्मनुं सार्थक करे छे. दरम्यान हीरानने आ ग्रन्थ जीवामां आवत करवा उपर प्रेम होवाथी ते निमित्ते के आर्थिक सहाय आपवानी इच्छा थ. जे raina dear frय बन्धु नटवरलालभाइने जाणni aani नटवरलालमाइनी प्रेरणाथी हीराच्छेने रु. ५०० पांचसोनी आर्थिक सहाय करी के. जे मांटे तेमनी आभार मानवामां आवे छे संस्कारी अने श्रद्धा कुटुम्बमां जन्मी हीराव्हेन आ ते जीवन सार्थक करे हे जे अन्यने अनुमोदनीय है. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना तपोरत्नमहोदधि EिACHECIPES श्री तपोरत्न महोदधि. (बीजी आवृत्ति ) नी . प्रस्तावना. आजथी त्रीश वर्ष पहेला आ महत्वशाळी ग्रंथनी प्रथम आवृत्ति आ सभा तरफथी प्रगट करवामां आवेली हती; ते दर. म्यानमां अने पछी पण आ अपूर्व ग्रंथनी जोइए तेवी किमत अंकाइ न होती, तेम जजोइए तेटली आवश्यकता जणाई न होती, छता पण ते वखते आ उपयोगी ग्रंथनी प्रचारनी दृष्टिए अने भविष्यमा पण उपयोगी थाय ते अपेक्षाए तेनी घणी नकलो तो विना मूल्ये भेट आपवामां आवी हती. हाल पांच वर्ष थयां तो तेनी एक पण नकल सिलीके पण रही नहोती, परंतु दिवसानुदिवस मुनिमहाराजोना उपदेशी तपनो आदर वधतो गयो, वस्तु समजाती गइ अने अनेक गामो अने शहेरोमां वर्द्धमान तप खातानो ८ जन्म थवा लाग्यो, शाश्वती चैत्र. आसो मासनी ओळीनुं महात्म्य पण वधवा लाग्यु, समाजमां जुदा जुदा तीर्थोंए अने मोटा शहरोमां होंगे होशे बने ओळीओनो श्रद्धापूर्वक प्रचार वध्यो, घणा बंधुओ अने बहेनो महामंगलकारी तप करवा लाग्या; ते दरम्यानमां आ तपोरत्न महोदधि ग्रन्थनी पण अनेक स्थळोएथी आ सभा पासे मागाओ थवा लागी. ते वखते युरोपर्नु महायुद्ध चालतुं हतुं, बीजी वस्तुओनी जेम काग तथा छापकामना पण एटला बधा भावो वधी गया के आ ग्रन्थनी चीजी आवृति SOTREKAR ॥३॥ For Private Personal use only wanaw.jainelorary.org Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना सपोरत्नमहोदधि ॥४॥ AURAHARIUSIMARA प्रगट करवानी आ सभानी इच्छा प्रथम न वधी परंतु सभा पासे आ ग्रन्थनी मागणीना विशेष विशेष पत्रो आवंवा लाग्या, जेथी सख्त मोघवारी चालती होवा छतां पण आ बीजी आवृत्ति प्रकट करवानो निर्णय थतां आजे ते प्रगट करवामां आवे छे. जैन साहित्य, इतिहास, कथा, तत्वज्ञान, आचारविचार, आवश्यक क्रिया अने चरित्रो विगेरेना अनेक ग्रन्थो प्रकट थाय छे, छतां तप संबंधीना आवी रीते विधिविधानपूर्वकना अन्य ग्रंथो प्रसिद्ध थयेला जोवामां आव्या नथी. कर्मने तोडी मोक्ष मेळववा माटेर्नु तपोविधान, शास्त्रामा मुख्य स्वीकारायेल होवाथी घरे घरे तेनी उपयोगिता माटे जरुरीयात तो छे ज, तेथी | आ ग्रंथनी अनेक आवृत्तिओ थाय तेम पण आ सभा इच्छे छे. प्रथम आवृत्तिना संशोधक, संपादक शांतमूर्ति प्रवर्तकजी महाराजश्री कान्तिविजयजी महाराजना स्वर्गवासी शिष्य चारित्रपात्र मुनिराज श्री भक्तिविजयजी महाराज हता अने तेओ साहेबे घणा परिश्रमे आ ग्रंथ तैयार करी सभाने सुप्रत न कर्यो होत तो आ बीजी आवृत्ति पण प्रगट न थात, तेटलुंज नहिं पण तेओ साहेबनो जैन समाज उपरनो आ महान उपकार पण नहिं भूली शकाय तेवो होबाथी आ सभा ते कृपालश्रीनो आ वखते पण उपकार मान्या सिवाय रहेती नथी. तेओ साहेबर्नु आ स्मारक तो कायम रहेशे ज तेम मानवू अस्थाने नथी. आ ग्रन्थ तप संबंधीनो होवाथी तेनो महिमा-महात्म्य अने जरुरीयात विगेरे माटे केटलुक विवेचन आप, ते अहिं जरुरी होवाथी, तेमज धर्मशास्त्रोमा तपने महत्व- केवु स्थान अपायेलं छे अने ते मोक्ष मेळववा माटे केवु अपूर्व महामंगळ विधान छ ? ते पण जाणवानी आवश्यकता छे. ॥४॥ For Private Personal use only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स प्रस्तावना सपोरत्नमहोदधि ॥५॥ जे तप करवाथी तन, मन अने आत्मानी शुद्धि थाय, अशुभ कर्मो नाश पामे ते ज खरेखरो तप कहेवाय छे. - तप बार प्रकार छे. छ बाह्य अने छ आभ्यंतर. तपने शास्त्रकार महाराजे रसायनरूप जणावेल छे, अने आत्माने अनादि काळथी लागेल कर्ममेलरूपी रोगोने भस्मीभूत करवा माटे अपूर्व औषधि समान कहेल छे. . जैन धर्मना चार शाखा-प्रकारो छे, जेमां दान, शील, तप अने भाव-तेमा तपने त्रीजो वर्णवेल छे. दशवकालिक सूत्रनी प्रथम गाथामा धम्मो मंगलमुक्किटं, अहिंसा संजमो तवो-त्रण अनुष्ठानो धर्मना उत्कृष्ट मंगळ तरीके कहेल छे. जेमां तप छे. पांच प्रकारना आचारमा चोथो प्रकार तपाचार गणावेल छे. दश प्रकारना यतिधर्ममा आठमो यतिधर्म तप बताव्यो छे. श्री नवपद आराधनमां नवमा पदमां तपने योग वर्णव्यो छे. . तीर्थकर गोत्र त्रीजे भवे बांधवामा कारणभूत वीश स्थानक तप छे, जेनी ओळी पण करवामां आवे छे तेममं १४मा स्थानकमां तपन आराधन करवानुं कहेवामां आवेल छ के जेनाथी तीर्थकरगोत्र पण बंधाय छे. ...तपर्नु उपरोक्त महात्म्य होवाथी ते विधिविधान अने श्रद्धापूर्वक करवाथी आत्मा परमात्मा स्वरूप थाय छे, तेम | तीर्थकर भगवान कहे छे. आ ग्रन्थमा अनेक प्रकारना तपो आपेला छे अने आत्माने जे जे प्रकारनी सिद्धि प्राप्त करवी होय ते ते सिद्धि तेमां बतावेल विधिविधान प्रमाणे करवाथी प्राणीने अवश्य ते प्राप्त थाय छे. शास्त्रोमां अनेक प्रकारना तपो होवा छतां अहिं मात्र प्रचलित संशोधन थयेला, अने उपयोगी जणाया तेटला तपो तेना विधि विधान सहित ये भागमा आप्या छे. तेमा प्रथम भागमा ८८ प्रकारना तपो आचार दिनकरमा कहेला अने बीजा RRRRRRRRRECECa For Private Jain Education Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *प्रस्तावना तमोरत्नमहोदधि KISARGAHRAICCAREECIENCE भागमा ८४ प्रकारना अन्य ग्रंथोमां जणावेला मळी १६२ विधिविधान साथे आपेला छे, अने तेने माटे आचारदिनकरादि जे जे ग्रंथोनो आधार लेवामां आव्यो छे ते, तेमज आगाढ अने अनागाढ बनेमांथी कयो तप कया प्रकारनो छे ते पण तपना नामनी विधि साथे जणावेल छे. प्रथम भागमा जणावेल ६ अथवा ७ तपो जिनोक्त छ एम आचारदिनकरमा कहेल छ, प्रथम भागमा आवेल ८८ तपो पैकी केटलाक आचारदिनकर सिवायना अन्य ग्रंथोमां पण छे.जे अमोए ते ते तपोना नाम साथे जणाव्यु | छे. बीजा भागमा आवेला तपो उपरोक्त ग्रंथमां नथी परंतु तेमांना ठेल्ला १२ तपो विधिप्रपा ग्रंथमाथी लीधेला छे. अने विधि प्रपामा ते सिवाय वीजा तपो पण बताटेला छे ते उपर आवी गयेला छे. बने विभागमा केटलाक तपो अने तेना गुणणां बहु ज विस्तारथी आपवामां आवेला छे. प्रथम भागमा आवेल अष्ट कर्मसूदन, एक सोचीश कल्याणक, एकसोसित्तेर जिन-महाधन अने अक्षयनिधि तप वगेरे तथा बीजा विभागना वीश स्थानक,अष्टकर्म, उत्तरप्रकृति, पीस्ताळीश आगम, छन्नु जिन ओळी तप अने नवपद ओळी तप इत्यादि तपो विस्तारथी आपवामां आवेल छे तेमज साथीआ, काउसम्ग, खमासमण विगेरे सांकेतिक शब्दथी सूचव्युं छे. आ ग्रंथमा तपनो महिमा केटलो सुंदर छे ते बतायवा आचारदिनकरमाथी ३३ श्लोको सिंदूरप्रकरमाथी ४ श्लोक अने तप कुलकमांथी एक गाथा अर्थ साथे पाछळ आपवामां आवेल छे. जे वांचता आल्हाद उत्पन थाय तेवू छे. अने तपने लगती बीजी पण जाणवा जेवी हकीकत साथे बतावेल * छे. सेनप्रश्नादिमांथी तपने लगता प्रश्नोत्तरो तेज रीते जणावेल छ के जे खास उपयोगी छे. दरेक तपनी अनुक्रमणिका छेवटे आपी अने ग्रंथनी शरुपात करवामां आवीछे. ॐICROSORE ॥६॥ For Private Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि 119 11 दरेक तपोनुं विधान शास्त्राधार साथै जणावेल अनेक ग्रंथो, बुको, तपना टीपणाओ, छूटक पत्रोमाथी तेमज चालु प्रचार 'विगेरेथी जेटला जाणवामां आव्या तेटला बधा संपादक महात्माए ग्रंथमां दाखल करेल छे. आ ग्रंथमां आवेल तपोना विधिविधानमा जे अपूर्णता हती, ते वृद्ध परंपराथी मेळवी, अनुभवीने पूछीने संपादक महाराजे दूर करी ले. जे जे तपना गुणणामां स्त्रीओ माटे शब्दो काठीन्य जणाया छे त्यां त्यां बीजा सरळ शब्दोवाळा गुणणा बताच्या छे तेनाथी चाली शकशे छतां मां सुधाराने अवकाश होई कोई स्थळे स्खलना होय के द्रष्टि दापथी के प्रेसदोपथी भूल रही गई होय तो अमोने लखी जणाववा कृपा करवी, जेथी ते सुधारी लेवामां आवशे. जावा प्रमाणें अत्यार सुधी अनवस्थितपणे अनेक प्रकारना तपो करवामां आवता हता ते एकसरखी संकलनाथी करवा कराववामां आवे अने अनेक अप्रगट रहेल तपोनी माहिती सर्व तपाभिलाषीओने मळे ए आ ग्रंथ प्रसिद्ध करवानो हेतु पण छे. आ ग्रंथ मननपूर्वक यांची श्री चतुर्विध श्रीसंघ आ ग्रंथमां आपेला तप करवाने उजमाळ थाओ अने तेनो लाभ संशोधक महाराजश्री तथा आर्थिक सहाय आपनारने तथा आ सभाने प्राप्त थाओ एम इच्छी आ प्रस्तावना समाप्त करीए छीए. आ ग्रंथनी प्रथम आवृत्ति सभाना प्रमुख शेठ श्री गुलाबचंद आनंदजीना स्वर्गवासी पूज्य पिता शेठ श्री आनंदजी पुरुषोत्तमनी सीझ तरीके ते वखतना सभाना धारा सुजन प्रगट करवामां आवी हती. परंतु अत्यारे सख्त मोंचवारीना सबवे तेमणे आपली सीरी झनी रकममांथी आ ग्रंथ प्रगट न थई शकवाथी आ बीजी आवृत्तिमां गं. स्व. श्री हीराबहेने रु. ५०१) मददना आप्या ते आभार साधे आ ग्रंथ प्रगट करवामां आव्यो हे. आत्मानंद भवन ज्ञानपंचमी ( संवत २००२ ) } गांधी वल्लभदास त्रिभुवनदास - भावनगर ) प्रस्तावना ॥७॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 300mbna . तपोरत्नमहोदधि ॥८॥ प्रथादि आचार. RECAU ग्रंथादि आधार. आ तपोरत्न महोदधि ग्रंथमां नीचे लखेला पुस्तकोमांथी तपस्याओना नाम, विधि, उद्यापन, निर्णय तथा मरणां विगेरे लीधेला छे, पुस्तकोना आधार सिवाय तेमज अनुभवी साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाना प्रचलित रूढिना अनुभव सिवाय कोइ पण लखवामां आव्यु नथी. जरुरवाळा स्थानोमां ते ते ग्रंथोना नामो पण लखवामां आव्या छे. प्रथमना अठासी तपो तो श्री आचारदिनकरमांथी जलीधां छे, परंतु तेमां केदलीक हकीकतनुं विशेष वर्णन अन्य ग्रंथोमांथी करवामां आव्युं छे. १ आचार दिनकर. २ पंचाशक. ३ प्रवचनसारोद्धार ४ विधिप्रपा. ५ तप कुलक (धर्मरत्न मंजूषा), ६ प्रति नं. ब. ७ प्रति नं• अ. ८ प्रति नं. क. ९ प्रति नं० ख. १. प्रतिनं० ग. ११ प्रति नं० घ. १२ प्रति न.ट. १३ प्रति नं० ठ. १४ प्रति नं. ड. १५ टीपणुं. १६ परचुरण तपस्या(लाभत्रीजीनी)प्रत. १७ जैन प्रबोध. १८ नैन धर्म सिंधु. १९ आंचलिक पूजा. २० जापमाळा. २१ तपावळी पं. कमळविजयजीए छपावेली. २२ रामविनोद. २३ सेनप्रश्न २४ बार मासिक पर्वकथा (संस्कृत). RAPATRA ॥ RL For Private Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द तपोरत्न- 18 २५ श्रीरंगविजयजीनी प्रति. २६ छुटक पत्रो. २७ श्राद्ध विधि. १३सांकेतिक महोदधि २८ प्रचलित परंपरा संबंधी पत्रो. २९ जैन धर्म प्रकाश पु. २५. ३० तपावलिनुं टीपणुं. ॥९॥ सांकेतिक शब्द. | सांकेतिक शब्द नीचे आंक मुक्या छे ते प्रमाणे खमासमण देवा, साथीया करवा, काउसग्ग करवा. अने नवकारवाळी गणवी. ख.-तेटला खमासमण देवा. सा-सेटला साया करवा. लो०-तेटला लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. नो-तेटली नवकारवाली गणवी. आ ढूंका चार अक्षरनी नीचे लखेलां अंको ते तेनुं प्रमाण समजवू. तेमज तपना नामनी साथे सकेला अक्षरो;-जै० प्र०-जैन प्रबोध. जै. सिं-जैन धर्म सिंधु. २० वि.-श्री रंगविनयजीनी प्रति. ला० श्रीलाभश्रीजी पासेथी मळेल पत्रो. पं०त. पंन्यास श्री कमळविजयजीनी छपावेल बपावळी. वि. प्रविधिप्रपा, प्र. प्रचलित. रा. वि. राम विनोद. जा. जापमालानी बुक. छु. प.छुटक पत्र. श्रा०वि० श्राद्धविधि छापेली. प.प्र. परंपराधी प्रचलित. टी० तपावलि टीपणुं. ते वे ग्रंथोमांधी लीधेल समजबुंः तपमहिमा-तप विधान. श्री आचारदिनकरमा श्रीवर्द्धमानसूरि कहेछ के ॥९॥ HERABANGLA HAMROCESS MainEducation For Private Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरत्नमहोदधि ॥ १० ॥ यदूरं यदुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् । तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥ २॥ अर्थ - जे ( वस्तु ) अत्यंत दूर छे, जे दुःखवडे आराधी शकाय तेवी छे, तथा जे दूर रहेली छे ते सर्व वस्तु तपस्यावडे साध्य छे. कारण के तपस्या एटले तपस्यानो प्रभाव दुरतिक्रम छे, एटले तेने कोइ उल्लंघन करी शके तेम नथी. २ तपः शिवकुमारवच्चरति मन्दिरस्थोऽपि यः स देवपरिषद्यपि द्युतिमहत्त्व विस्फुर्तिभृत् । कृशान्वकृशता पनोल्लसितवर्णकं काञ्चनं स धातुष्षु विशिष्टतां नृपतिमौलितामेति च ॥ ३ ॥ अर्थ - जे माणस शिवकुमारनी जेम गृहस्थाश्रममां रहीने पण तपस्यानुं आचरण करे छे, ते मनुष्य देवसभामां कांति अने महत्वनी स्फुर्तिने धारण करनार ) थाय छे. जेम अग्निना घणा तापमां तपाववाथी जेनो वर्ण उल्लास पांमेलो छे एवं सुवर्ण सर्व धातुओमां विशिष्टपणाने अने राजाना मुगटपणाने पामे छे, तेम ते सर्व मनुष्योमां विशिष्टपणुं अने राजाओमां शिरोमणिपणुं पामे छे. ३. तपः सकलकर्मभिद्विविधलब्धिनिश्चितं गृहे पुरि च दुर्भगोऽप्यहद्द नन्दिषेणो द्विजः । व्रते शमतपः परः सुरनरैकवंद्योऽभवद्रविज्वलन तापितः श्रयति दीप्तिमामो घटः ॥ ४ ॥ अर्थ — तप समग्र कर्मने भेदनारो छे अने विविध प्रकारनी लब्धिने प्राप्त करनारो छे. अहो ! नंदिषेण नामनो ब्राह्मण | पोताना घरमा तथा नगरमां पण महादुर्गामी हतो, ते चारित्र ग्रहण करीने शमयुक्त तपमां तत्पर थवाथी देव तथा मनुsra बंदन करवा योग्य थया. जुओ ! " सूर्य अने अनिथी तपावेलो काचो घडो पण कांतिने पामे छे, " ४ ) 300 तपमहिमातप विधान ॥ १० ॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि तपमहिमा से तप विधान REC RECECREE यस्तपोविधिराम्नातो जिनर्गीतार्थसाधुभिः । तं तथा कुर्वतां सन्तु मनोवांछितसिद्धयः ॥५॥ अर्थ-तीर्थकरोए तथा गीतार्थ मुनिश्रोए जे तपनो विधि कह्यो छे, ते तपने ते विधिए करनार माणसोनी मनवांछित | सिद्धिओ थाय छे.५. असत्यां दानशक्तौ च देहशक्तिमवेक्ष्य च । अनुष्ठेयं पुण्यवद्भिस्तपःकर्म सुदुष्करम् ॥ ६॥ अर्थ-जो दान देवानी शक्ति न होय, तो पुण्यवंत माणसोए पोताना शरीरनी शक्ति प्रमाणे अत्यंत दुष्कर एवं | तपकर्म करवू. ६ तद्वै द्वादशरूप स्वाद्वाह्याभ्यत्तर भेदतः। संयोज्यं षड्विध बाह्यमुपवासादि कर्ममि ॥ ७॥ तपोनिधिः श्रेणियुक्त्या प्रोक्तोऽहद्भिश्च साधुभिः कश्चित्केवलिसंदिष्टः कश्चिद्गीतार्थभाषितः ॥ ८॥ कश्चित्फलार्थिभिश्वीर्णस्त्रिविधः स तपोविधिः । योगोपधानमुख्यो यः स विधिः केवलीरितः ॥९॥ _ अर्थ-तीर्थकरोए तथा मुनिवरोए श्रेणिनी युक्तिवडे तपनो विधि कहलो छे, तेमां कोइक तप केवळीए कह्यो छे, कोइक गीतार्थ मुनिओए कहेलो छ, तथा कोइक तप फळना अर्थीओए आचरेलो छ, ए रीते ते तप विधि त्रण प्रकारनो छे, तेमां योगोपधान जेमां मुख्य छ एवो जे विधि छे ते केवळीए कहेलो छ.८-९. कल्याणादिपुंडरीकतपोमुख्यो मुनीरितः । रोहिणीकल्पवृक्षादि विधिः फलतपोमयः ॥१०॥ अर्थ--जेमां कल्याणादिक पुंडरीक तप मुख्य छे, ते तप गीतार्थ मुनिओए कहेलो छ, तथा रोहिणी अने कल्पवृक्षा| दिकनो जे विधि छे ते फळतपोमय एटले फळनी अपेक्षावाळो तप छे. १० REASON ॥११ For Private & Personal use only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥१२॥ SROAMRAP56 wwwwwww एवं समिल्य विद्वद्भिस्तपाश्रेणिः प्रदर्शिता । कार्य न साधुसाध्वीभिः प्रतिमावायुपासकैः तपमहिमाकृतोपधानः सम्यक्त्वधारिभिः फलदं तपः । नोह्या योगा गृहस्थैव शेषं सर्व तपोऽपि हि ॥१२॥ तपविधान विधेयं श्रावकै शान्तः श्राविकाभिस्तथाविधम् । शान्तोऽल्पनिद्रोऽल्पाहारो निःकामो निकषायकः॥ १३ ॥ धीरोऽन्यनिन्दारहितो गुरुशुश्रूषणे रतः । कर्मक्षयार्थी प्रायेण रागद्वेषविवर्जितः ॥ १४॥ दयालुर्विनयापेक्षी प्रेत्येहफलनिःस्पृहः । क्षमी नीरुक निरूत्सेको जीवस्तपसि युज्यते अर्थ-आ प्रमाणे विद्वानोए एकत्र थइने तपस्याओनो समूह बताव्यो छे. साधुओए, साध्वीओए तथा जेमणे प्रतिमा है वहन करी होय, जेमणे उपधान कर्या होय अने जेमणे समकित धारण कयु होय एवा श्रावकोए फळनी अपेक्षावाळी बप. स्याओ करवी नहीं. वळी गृहस्थाश्रमीओए योगोद्वहन करवू नहीं, (मुनिए करवू ) अने बाकीनां सर्वे सपो शांत गुणवाळा श्रावकोए तथा श्राविकाओए करवां. शांत, अल्पनिद्राबाळो, अल्पाहारी, कामना रहित, कषायवर्जित, धैर्ववान, अन्यनी निंदा नहीं करनार, गुरुजननी शुश्रूषा( सेवा )मां तत्पर, कर्मक्षय करवानो अर्थी, प्राये राग द्वेष रहित, दयालु, बिनयनी अपेक्षावाळो, परलोक तथा आ लोकना फलनी इच्छा रहित, क्षमावान, नीरोगी अने उत्कंठा रहित एवो जीव तप करवाने लायक छे. ११-१५. पाण्मासिके वार्षिके च मासोव॑तपसि स्फुटे । त्यक्तं प्रतिष्ठादीक्षासु कालं तस्मिन्नपि स्यजेत् ॥१६॥ अर्थ-प्रतिष्ठा तथा दीक्षामां जे का तजेलो छे, ते काळ छमासी तपमां, वर्षी तपमा, तथा एक मास करता अधिक ५ ॥१ RADINGSADRAKAR ww Jain Education For Private & Personal use only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तषोरत्नमहोदधि ॥१३॥ तपमहिमातप विधान SHARESHOBHADANA वखतना तपना प्रारंभमां पण तजवो.१६ शुभे मुहूर्ते प्रारब्धे कांडान्यायांतु यान्तु च । पक्षमासदिनाद्वानि न पश्येत्तत्र दूषणम् ॥१७॥ &ा अर्थ-शुभ मुहूर्ते तपनो प्रारंभ कर्या पछी पखवाडीयु, महिनो, दिवस के वरस अशुभ आवे ने जाय तोपण तेमां कांड | दोष नथी. १७. मृध्रवचरक्षिरे वारे भौम शनि विना | आघाटनतपोनन्द्यालोचनादिषु मं शुभम् ।।१८॥ ॐा अर्थ-प्रथम विहार, तप, नंदी अने आलोयणने विषे मृदु, ध्रुव, चर अने क्षिप्रं ए संज्ञावाळा नक्षत्रो शुभ छ, तथा | मंगळ अने शनि सिवायना बीजा वारो शुभ छे. १८. क्रियमाणे तपस्यन्तस्तपः पुण्यतिथौ यदि । आयाति नियमात्कार्य दुर्लध्यो नियमः सताम् ॥ १९॥ प्रवर्धमानं संस्थाप्य पश्चात्तत्क्रियतां तपः । तपोमध्ये तपाकार्ये गरिष्ठं तप आचरेत् ॥ २० ॥ अवशेषं लघुतपः कार्य पश्चात्ततोऽपि हि।। अर्थ-तप करतां वचमां जो पर्वतिथिनो तप आवे तो वधता (मोटा) तपने राखी मूकीने ते पर्वतिथिनो तप अ. वश्य करवो. अने चालतो आवतो मोटो तप पछीथी करवो. कारण के सत्पुरुषनो नियम दुलंध्य छे. वळी एक तपना मध्यमां १ मृगशिर, चित्रा, अनुराधा, रेवती. २ रोहिणी, उत्तरा त्रण. ३ पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा. ४ अश्विनी, पुष्य, हस्त, अभिनित. CORRECECAP For Private Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ १४ ॥ जो तप करवानुं प्राप्त थयाथी जे तप मोटो होय ते करवो. अने बाकी रहेलो लघु तप त्थारपछी पण करवो. ( अर्थात कोइ तप एकासणे करवा मांड्यो होय तेमां बीजा कोई तपनो उपवास करवानुं उपस्थित थाय तो उपवास करवो, एका स पछी कर). १९-२० अनाभोगादिभिर्भग्ने तपःकर्मणि मध्यतः ।। २१ ।। आलोचनीयं तत्तत्र कार्य पश्चात्तपोऽथवा । क्रमजे तपसि प्रायो न गणयेत्तितिक्रमः ॥ २२ ॥ अर्थ - अनाभोगादिकना कारणे तपना मध्यमां तप भांग्यो होय तो तेनी ते तपमांज आलोयण लई लेवी, अथवा पछीथी संबंधी तप करवो. अनुक्रमवाळा तपमां प्राये करीने तिथिनो क्रम गणवो नहीं अर्थात् तिथिए खावानुं आवे अने वगर तिथिए उपवासादि आवे तो तेम कर. २१-२२ तिथिजे तपसि श्रेष्ठा सूर्योदयगता तिथिः । तिथेः पाते च पूर्वस्मिन्नहि वृद्धौ परत्र च ॥ २३ ॥ कार्य तिथितपःकर्म प्राहेति भगवान् जिनः । अर्थ - तिथिनी मुख्यतावाळा तपमां सूर्योदयवेळानी तिथि लेवी श्रेष्ठ छे पण जो तिथिनो क्षय होय तो पूर्वनी तिथि लेवी अतिथिनी वृद्धि होय तो ( बेमां ) बीजी तिथि लेवी. ए रीते तिथिना प्राधान्यवाळो तप करवो एम भगवान श्री जिनेश्वरे कह्युं छे. ।। २३ ।। कालवृद्धे रसत्यागाद्वृत्तिसंक्षेपतस्तथा ।। २४ ।। तपमहिमा - तप विधान ॥ १४ ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि तपमहिमापविधान, ASIA औनोदर्यमनशनं कायक्लेशान्तरेषु च । अधिकं यत्तपस्तत्तु ज्ञेयं वृद्धयोत्तरोत्तरम् ॥ २५॥ अर्थ-काळवृद्धि, रसत्याग अने वृत्तिसंक्षेपथी तेमज औनोदर्य, अनशन अने कायक्लेशमा-ए छ प्रकारना तपमा उत्तरोत्तर वृद्धिए अधिक अधिक तप जाणवो, अर्थात् क्रमसर एक बीजाथी उत्तरोत्तर अधिक समजवा. (ते आगळ बतावे छे), अहीं ₹ काळवृद्धि नामनो तप विशेष बताब्यो छे अने संलीनता तपनो कायक्लेशनी अंदर समावेश कर्यो छे, एम करीने बाह्य तपना | भेदनी संख्या छनी कायम राखी छे. २५. । मौहूर्तिकं प्राहरिकं सार्घप्राहरिकं तथा । मध्याह्वमपराह्नं च तपः कालोत्तरोत्तरम् ॥ २६ ॥ अर्थ-नवकारशी, पोरसी, साढपोरसी, पुरिमट्ट अने अबढ् ए तपोमां पूर्व पूर्वनी अपेक्षाए उत्तर उत्तर तप काळे करीने मोटो मोटो जाणवो. २६. संख्याविकृतिकं चैव तथा नैर्विकृति पुनः । आचाम्लमेकसिक्थं च रसत्यागोत्तरोत्तरम् ॥ २७ ॥ अर्थ-संख्यावाळी विगइ अर्थात् अमुक एक चे विगइनो त्याग, नीवी, ऑविल अने एक सिक्थ (एक दाणो) ए रस स्याग तपोमां पण पूर्व पूर्वनी अपेक्षाए उत्तर उतर तप मोटो मोटो जाणवो. २७. द्विभक्तमेकभक्तं च संख्याकवलदत्तिकम् । उपवासमनीरं च वृत्ति संक्षेप मोत्तरम् ॥ २८॥ ___ अर्थ-बेसणु, एकास[, संख्यावाळा कवळ अने दत्ति, तिविहारो उपवास अने अनीर एटले पाणी विनानो चोविहारो | उपवास, ए वृत्तिसंक्षेप तपोमां पण पूर्व पूर्वनी ओझाए उत्तरोत्तर तप मोटो छे. २८ RECIPEk in Edustanem For Private Personal use only wanaw.jainelorary.org Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि ॥ १६ ॥ आ प्रमाणे बाकीना त्रण तपोमां पण उत्तरोत्तर अधिकता समजवी. दृष्टांत तरीके ऊणोदरी तपमां एक कवळऊण, बे कवळऊण, त्रण कवळऊण एम उत्तरोत्तर अधिकता जाणवी. अनशन तपमां एक उपवास, बे उपवास, त्रण उपवास एम उत्तरोत्तर अधिकता जाणवी अने कायक्लेश तपमां विशेष विशेष कायाने लोचादि कष्ट आपवाथी अधिकता जाणवी. तपःप्रारंभ कार्यमष्टधा जिनपूजनम् । तपोनिर्वाहसिद्ध्यर्थं पौष्टिकं विधिसंयुतम् ॥ २९ ॥ अर्थ- सपने प्रारंभ तपना निर्वाहनी सिद्धि माटे आठ प्रकारे श्री जिनेश्वरनी पूजा करवी तथा विधि पूर्वक पौष्टिक कर्म कर. २९. पौष्टिक कर्म नीचे प्रमाणे जाणवुं. ग्रहदिक्पालयक्षाणां मुद्रांनैवेद्य सत्फलैः । यदर्चनं गुरु कुर्यात्तत्पौष्टिकमुदाहृतम् ॥ ३० ॥ अर्थ - नवग्रह, दश दिक्पाल अने यक्षोनुं द्रव्य ( नाणुं ) नैवेद्य अने सारां फळोथी जे मोढुं पूजन करवु ते पौष्टिक कर्म कहेतुं छे. ॥ ३० ॥ पुस्तकांवर पात्रान्नाशनं शुद्धं गुरुष्वपि । संघार्चनं क्षेत्रदेवीपुरदैवत पूजनम् ॥ ३१ ॥ अर्थ तथा तपने प्रारंभ गुरुने ( साधुने ) निर्दोष पुस्तक, वस्त्र, पात्र अने अन्ननुं दान देनुं, तथा संघपूजा करवी अने क्षेत्रदेवता तथा पुरदेवतानी पण पूजा करवी. ३१. गोपधानप्रतिमा नन्दः कार्या मुनीद्वैर्विधिसंनिवेदिताः । शेषे तपः कर्मणि शक्र संस्तवैरावश्यकादिर्वतवाचनाविधिः । ३२ । तपमहिमातपविधान. ८॥ ॥ १६ ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि तपमहिमा| तपविधान, KI अर्थ-योगवहनमा, उपधान वहनमा अने प्रतिमा बहनमां नंदीनी स्थापना अवश्य करवी के जे नंदीनी विधि मुनींद्रोए कहेली छे. वीजा तपोने विषे शक्रस्तवे करीने आवश्यकादिक ब्रतनी वाचनानो विधि करवो. ३२ शुद्धं तपः केवलमप्युदारं सोद्यापनस्यास्य पुनः स्तुमः किम् । हृद्यं पयो धेनुगुणेन तत्तु द्राक्षासिताक्षेादयुतं सुधैव ॥३३॥ अर्थ-केवळ शुद्ध तपज उदार छे ( मोटा फळवाळु छे). पछी जो तेवो तप उद्यापन सहित होय तो तेनी शी स्तुति | ( श्लाघा) करवी ? केमके गायना गुणे करीने ज दूध मनोहर छे. पछी ते धराख अने साकरना चूर्ण सहित होय त्यारे तो ते अमृत जेवू ज छे. ३३. बृक्षो यथा दोहदपूरणेन कायो यथा सद्रसभोजनेन । विशेषशोभा लभते यथोक्तेनोद्यापनेनैव तथा तपोऽपि ॥ ३४ ॥ अर्थ-जेम दोहद पूर्ण थवाथी वृक्ष विशेष शोभे छ (फळ आपे छे ) अने जेम सारा रसवाळा भोजनथी शरीर विशेष शोभा पामे छे, तेम तप पण विधिपूर्वक उद्यापने करीने विशेष शोभाने पामे छे एटले विशेष फलदायक थाय छे. (तेथी दरेक तपर्नु उद्यापन करवू अवश्यतुं छे.) तपना माहात्म्य विषे श्री सोमप्रभ आचार्ये पण सूक्तमुक्तावली अपरनाम सिंदूरप्रकरणमां नीचे प्रमाणे कधुं छेयत्पूर्वा जितकर्मशैलकुलिशं यत्कामदावानल-ज्वालाजालजलं यदुग्रकरणग्रामाहिमंत्राक्षरम् । यत्प्रत्यूहतमःसमृहदिवसं यल्लब्धिलक्ष्मीलता-मूलं तद्विविधं यथाविधि तपः कुर्वीत वीतस्पृहः ॥ ८१ ।। अर्थ-जे तप पूर्व उपार्जन करेला कर्मरूपी पर्वतने छेदवामा वज्र समान छे, जे तप कामदेव रूपी दावामिनी ज्वाळाना | R RAKASHAPERSA S ALCHES १७॥ For Private Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि तपहियातपविधान. IECRETUREX समूहने शमन करवामां जळ समान छ, जे तप उग्र इंद्रियोना समूहरूपी सर्पने वश करवामां (गारुडी) मंत्राक्षर समान छ, जे तप विनरूपी अंधकारना समूहनो नाश करवामा दिवस तुल्य छ, तथा जे तप लम्धिनी संपदारूप लतार्नु मूळ छे, एवा विविध प्रकारना तपने इच्छा रहितपणे यथाविधि करवो. ८१. यस्माद्विघ्नपरंपरा विघटते दास्यं सुराः कुर्वते, कामः शाम्यति दाम्यतीन्द्रियगणः कल्याणमुत्सर्पति ।। उन्मीलन्ति महर्द्धयः कलयति धंसं चयः कर्मणां, स्वाधीनं त्रिदिवं शिवं च भजति श्लाघ्यं तपस्तन किम् ॥ ८२ ॥ अर्थ-जे तपथी विघ्ननी श्रेणी नाश पामे छे, देवताओ दासपणुं करे छे, काम शांत थाय छ, इन्द्रियोना समूहनुं दमन थाय छे, कल्याण प्रसरे छ, मोटी ऋद्धि ओ प्राप्त थाय छे, कर्मोनो समूह नाश पामे छ, तया स्वर्ग अने मोक्ष पोताने आधीन थाय छे, एवो तप शुं श्लाघा करवा लायक नथी १८२. कांतारं न यथेतरो चलयितुं दक्षो दवाग्नि विना, दावाग्निन यथेतरः शमयितुं शक्को विनामोधरम् । निण्णातः पवनं विना निरसितुं नान्यो यथाभोधर, काँघ तपसा विना किमपरं हतुं समर्थस्तथा ।। ८३ ॥ अर्थ-जेम अरण्यने बाळवामां दावाग्नि विना बोजु कोई चतुर ( समर्थ) नथी, तथा जेम दावाग्निने समाववामां मेघ विना बीजु कोइ समर्थ नथी, तथा जेम मेघने वीखेरी नाखवामां पवन विना बीजु कोइ निपुग ( समर्थ) नथी. तेज प्रमाणे कर्मना समूहनो नाश करवामां शुं तप विना बीजं कोई समर्थ छ ? नथीज. ८३. RECRUCHAMELCOME CATEGOR Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। १९ ।। संतोषस्थूलमूलः प्रथमपरिकरस्कन्ववन्ध प्रपंच, पंचाक्षीरोध शाखः स्फुरदमपदलः शीलसंपत्प्रवाल: । श्रद्धांभः पूरसेकाद्विपुल कुलवलैश्व सौन्दर्य मोगः, स्वर्गादिप्राप्तिपुष्युः शित्रसुख रुद्रः स्यात्तपः पादपोऽयम् ॥ ८४ ॥ अर्थ-संतोषरूपी मोटा मूळबाळ, क्षनाना परिवाररूप स्कंधनी रचनावाको पांच इन्द्रियोना रोधरून शाखावाळो, स्फुरणायमान अभयदानरू पांदडांवाळ, ब्रह्मवर्यरूपी संपत्तिर करी नवपल्लवाको श्रद्धारूप जळ छांटवाथी विस्तारवंत कुल, बल, ऐश्वर्य अने सुंदरताना मोगवाळ, स्वर्गादिकनी प्राप्तिरूप पुष्पोत्राको तथा मोक्षमुखरूरी फड़ने देवावाळो आ तपरूपी (कल्प ) वृक्ष छे. ८४. तपकुलकमां पण कां छे के- अथिरं पिथिरं बंक पि उज्जु श्रं दुल्लई पि तह सुलई । दुसवं वि सुसभ्यं तवेग संपजए कज्जं ॥ १ ॥ अर्थ-जे वस्तु अस्थिर होय ते तपनां प्रभावधी स्थिर थाय छे, जे वस्तु वक्र होय ते सरळ थाय छे, जे दुर्लम होय ते सुलभ थाय छे, अने जे दुःसाध्य होय ते सुसाध्य थाय छे. चक्रवर्ती छ खंड साधवानी जेम सर्व कार्य तपाड ज सिद्ध थाय छे. १ आ ते तपनो प्रभाव अनेक प्रकारे आचार्योए वर्गत्रेलो छे, तेनुं मात्र अहीं दिग्दर्शन ज क छे. तपमहिमा - तप विधान. ॥ १९ ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरनमहोदधि ॥२०॥ 9594DDHRUMAL दरेक तपमा करवानो सामान्य विधि. ददरेक तपमा १ वे टंक प्रितिक्रमण करवू. २ त्रण टंक देववंदन विधिपूर्वक करवं. ३ वे टंक पडिलेहण करवी. करवानो ४ विधिपूर्वक पच्चख्खाण पारवू ने करवु. ५जिनेश्वरनी पूजा-भक्ति करवी. ६ गुरुवंदन करवू ने तेमनी पासे पच्चरूखाण लेवू. सामान्य ७ ज्ञाननी पूजा भाक्त करवी. ८ प्रभु पासे बतावेल संख्या प्रमाणे अक्षतवडे साथिया करी तेनी उपर यथाशक्ति फळ नैवेद्य चडाव. विधि. ९ दरेक तपमा बतावेलुं गुणणुं २० नवकारवाळी प्रमाण गणवू. १० बताबेली संख्या प्रमाणे खमासमण देवा. ११ बतावेली संख्या प्रमाणे लोगस्सनो काउसम्ग करवो. १२ ज्या ज्यां गुरुपूजा कही होय त्यां त्यां गुरु पासे स्वस्तिक करी ते उपर यथाशक्ति द्रव्य मूक अने गुरुने वंदन करी तेमनो वासक्षेप लेवो. ते द्रव्य साधु साध्वीखाते जमे करावq. १३ तपस्याने दिवसे सज्झायध्यान-भण गणवं विशेषे कर. १४ ब्रह्मचर्य पाळवू-भूमिशयन करवू. १५ साघु साध्वीनी वैयावच्च करवी. १६ तपने पारणे यथाशक्ति स्वामीवच्छळ करवु, वधारे न बने तो समान तप करनारा श्रावक या श्राविकाने यथाशक्तिएक वे चार विगेरेने जमाडवा. १७-मोटा मोटा तपने अंते या मध्यमां तेनु महोत्सवपूर्वक उजमणुं करवं. सामान्य तपोमां लख्या प्रमाणे उद्यापन एटले उजमणुं करवू. १ साधु साध्वी खातानु द्रव्य साधु साध्वीना यावच्चादि कार्यमा उपयोगमां आवे छे. UCARRIERRECIPECAR Iw.jainelibrary.org Jain Education indime For Private & Personal use only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥२१॥ १८ गौतम पडधो, चंदनवाळानो अठम, क्षीरसागरना सात उपवास इत्यादि तपमा जे द्रव्य आपवानुं होय ते गुरुने आपवान नथी पण साधु साध्वीखाते जमे कराववानुं समजवू. आवा तपोमां गुरुने आपवानी जे प्रवृति कोई कोई स्थानके थयेली छे ते यति विगेरेना समागमथी जणाय छे, ते दूर करवी. | १९ दरेक तपमा जो पाणी वापरवानुं होय तो ते अचित्त पाणी ज समजबु. २० रात्रिए तो दरेक तपमा चौविहार ज समजवो. २१ कोइ पण तप सांसारिक-पौद्गलिक आशाथी न करवो. २२ कषायनोजेम बने तेम विशेष रोध करखो. क्षमायुक्त तप करवामां आवे तेज पूर्ण फळदायक थाय छे एटलं ध्यानमा राखq. दरेक तपमा करवानो सामान्य विधि. SASUREGA सेनप्रश्नमांथी तपस्याने लगता उपयोगी प्रश्नोत्तरो. (उल्लास त्रीजो) प्रश्न ११८-चैत्र मास अधिक होय तो कल्याणकादिक तप पहेला मासमां करवो के बीजा मासमां करवो ? उत्तर-पहेला चैत्रना कृष्णपक्षमा तथा बीजा चैत्रना शुक्लपक्षमा तप करवो. ए प्रमाणे पूज्यपाद हीरसूरि भगवान करावता हता एम जोयुं छे, माटे तेज प्रमाणे करवू जोइए. नहीं तो भादरवा मासनी वृद्धि होय, त्यारे मासक्षमणादिक तप क्यारथी कराय ? ( दरेक अधिक मासमां आ प्रमाणे ज जाणवू.) Jain Education For Private & Personal use only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CHECO सेनप्रश्र तपोरनमहोदधि ॥ २२॥ मांथी उपयोगी प्रश्रोत्तरी. HAGRAMCGRECOM प्रश्न १२८-बसो ने ओगणत्रीश छह संबंधी तप करवानो शरु को छे, पग पाछळथी छठ करवानी शक्ति न रही होय तो एकांतर उपवास करी शके के नहीं ? उत्तर--चसो ओगणत्रीश छ? तप उचर्यों होय तेणे छठ ज करवा जोइए, एकांतर उपवास करी शकाय नहीं. प्रश्न १२९-आश्विन तथा चैत्रना अस्वाध्यायना दिवसोमा जे उपवासो कराय ते वीश स्थानकनी ओळी मां गणी शकाय के नहीं ? उत्तर-आश्विन तथा चैत्रना अस्वाध्यायना दिवसोमा सातम, आठम तथा नोम ए त्रग दिवसोनां करेला उसास बीश स्थानकनी ओळीमां गणाय नहीं. प्रश्न २००-चैत्र तथा आश्विनना अस्वाध्यायना दिवसोमां जे तप कर्यो होय ते रोहिगी तपमां अने आलोचनादिकमां गणी शकाय के नहीं ? उत्तर-सातम, आठम अने नोमने दिवसे करेलो तप आलोचनामा गगाय नहीं. तथा रोहिणी ने तेनी गाज बीजा (एटले के जे तप भूली जवाय तो आखो तप निष्फल थाय, अने फरीयी शरू करवो पडे एवा) तपमा गगी शकाय छ परंतु अन्य तपोमां गणवा नहीं, ( उल्लास चोथो) प्रश्न १५६–विश स्थानक तप, अष्ट कर्मसूदन तप, तथा आंबिल वर्धमान ता, अस्वाध्यायना त्रण दिवसोमा SAREERENCE t२२॥ Main E stoniemeting For Private & Personal use only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ २३॥ CHECAR सेनप्रश्नमा थी उपयोगी ४ प्रश्नोत्तरो. ICCISHRAGA (चैत्र तथा आश्विन शुक्लपक्षनी सातम, आठम अने नोममा ) गणाय के नहीं ? उत्तर--वीश स्थानक तप तथा अष्टकर्मपदन तप ए वे तपमा अस्वाध्यायना त्रण दिवस गणवा नहीं अने ऑविलवर्धमान तपमा तो एत्रण दिवस गणाय छे. एवी परंपरा छे. प्रश्न ३६--पाखीनो छट करीने महावीरस्वामीना छठमां नाखोए, अने पाखीनो उपवास स्वाध्यायादिकवडे पूर्ण करीए, तो आ छट महावीरस्वामीना छठमां आवे के नहीं ? उत्तर--अल्प शक्तिमान मनुष्य जो पाक्षिक छठने महावीरस्वामीना छठमां नाखे तो चाली शके पग पाक्षिक तप उपवासादिक करीने जलदीथी पूरो करवो. प्रश्न ३७- महावीरस्वामीना छठने पारणे बेसणु विगेरे करवु जोइए ? के शक्ति प्रमाणे करवं.? उत्तर-शक्ति प्रमाणे करवू. प्रश्न १५७--अष्टकर्ममदन तप जो उपवासवडे करवानी शक्ति न होय, तो आंबिलथी करी शकाय के नहीं ? उत्तर--जो उपवास करवानी सर्वथा शक्ति न होय तो आंबिल बडे पण थइ शके छे. (आ उत्तर १५८ उत्तर प्रकृति आश्री तपने माटे संभवे छे.) प्रश्न ९९--पहेले दिवसे चौविहार उपवास करी बीजे दिवसे तिविहार उपवास करे. ए प्रमाणे छठ करवाथी ते महावीरस्वामाना छठमां नांखी शकाय के नहीं ! GRECIRECRAKAR ॥ २३॥ ForPrivate LPersonal use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परत्न महोदधि ॥ २४ ॥ उत्तर -- बे उपवास जूदा जूदा करेला होवाथी महावीरस्वामीना छट्टमां गणी शकाय नहीं; कारण के २२९ छठ्ठ तपना आरंभमां छठ उच्चरवामां आवे छे. तेथी ते प्रमाणेज करखो जोइए परंतु आलोचनामां आवी शके. प्रश्न १४१ - - पहेले दिवसे चोविहार उपवास करीने बीजे दिवसे पूर्वना उपवासने साथे राखीने छठनुं के अठम विगेरेनुं पच्चख्खाण करी शकाय के नहीं ? उत्तर-- पहेले दिवसे एक उपवासनुं पञ्चख्खाण लीघेलुं छे, पण उठनुं लीघेलुं नथी. तेथी जो बीजे दिवसे छठनुं पचखाण ले तो पछीनो त्रीजो उपवास पण करवो पडे. आ प्रमाणे सामाचारी छे. श्री हीरप्रश्ने. प्रश्न ३४ -- सांवत्सरिक, पाक्षिक, अष्टमी, रोहिणी इत्यादि तप उच्चरेला होय तेमांनां वे तप एक दिवसे आवता et अने छ करवानी शक्ति न होय तो कयो तप करे ? उत्तर -- छठ करवानी शक्ति न होय तो जे तप पहेलो आवे ते करे, पछवाडेनो तप पछी करी आपे. मोहनीय कर्म संबंधी २४ अट्टम करतां वच्चे तिथि संबंधी तप के रोहिणी आवे तो चालता तपथी चाली शके. इति सेनप्रश्ने The : {हीर प्रश्नमां थी उपयोगी प्रश्नोत्तते. ॥॥ २४ ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरन अनुक्रम णिका. महोदधि ॥२५॥ RECEBSIGDP अनुक्रमणिका. १ मुख पृष्ठ १ ५ तपमहिमा-तपविधान. पा. ९ उपयोगी प्रश्नोत्तर पा. २ प्रस्तावना. ३ ६ दरेक तपमा करवानी ८ श्री हीरप्रश्नमांथी. ३ ग्रंथादिआधार. पा. ८ सामान्य विधि. पा. २० ९ अनुक्रमणिका. ४ सांकेतिक शब्द. ९ ७ सेनप्रश्नमांथी तपस्याने लगता ग्रंथनी अनुक्रमणिका (शरुआत) पत्रांक पत्रांक पत्रांक १ इंद्रियपराजय तप १ ७ अष्ट कर्म सदन तप. ७ १२ चांद्रायण तप. २ कषाय जय तप. २ ८ एकसो वीश कल्याणक तप. १० १३ तीर्थकर वर्धमान(श्रमणसंध)तप२२ ३ योगशुद्धि तप. ३ ९ ज्ञान तप. १८ १४ परम भूषण तप. २३ ४ धर्मचक्रवाल. (लघु) तप ४ १० दर्शन तप. १५ जिनदीक्षा तप. | ५-६ लघुअष्टाहिका तप. ५-६ ११ चारित्र तप. १८ १६ तीर्थकर ज्ञान तप. २४ ARTERESTRARAORECASTRA २५॥ Main Education For Private Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ २६ ॥ १७ तीर्थकर निर्वाण तप. २५ १८ ऊनोदरिका, तप पांच प्रकारे २७ १९ संलेखना तपः २९ २० महावीरप (सर्वसंख्या) तप ३० २१ कनकावली तप. ३१ २२ मुक्तावली तप. २३ रत्नावली तप. २४ लघु सिंहनिःक्रीडित तप. २५ बृहत् सिंहनिःक्रीडित तप. २६ भद्र तप तप. २७ मद्दाभद्र तप. २८ भद्रोत्तर तप २९ सर्वतोभद्र तप ३० गुणरत्न संवत्सर तप. ३३ ३४ ३५ ३६ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ३१ अगियार अंग तप. ४३ ४४ ३२ संवत्सर तप. ३३ नंदीश्वर तप. ४५ ३४ पुंडरिक (चैत्री पूर्णिमा) तप. ४६ ३५ माणिक्य प्रस्तारिका ( पावडी ) तप. ४७ ३६ पद्मोत्तर (कमळनी ओळी ) तप. ४९ ३७ समवसरण ४९-५१ नानुं तथा मोटुं तप ३८ श्री वीर गणधरतप (श्री महावीरना ११ ) तप. ३९ अशोक वृक्ष तप. ४० एकसो सीतेर जिनतप. (विजय ओली ) तप. ४१ नवकार तप. ५२ ५३ ५४ ५८ ४२ चौद पूर्व तथा चतुर्दशी तप. ६० - ६२ ४३ एकावली तप. ६२ ४४ दशविध यतिधर्म तप. ६४ ६५ ६६ ६८ ६९ ६९ ७०-७३ ४५ पंच परमेष्ठि तप. ४६ लघुपंचमी तप. ४७ बृहत् पंचमी तप. ४८ चतुर्विध संघ तप ४९ घन तप. ५० महा घन विगेरे तप. ५१ वर्ग तप. ५२ श्रेणी तप. ५३ पंचमेरु (मेरुमंदिर) तप. ५४ बत्रीश कल्याणक तप. ५५ च्यवन तथा जन्म तप. ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ अनुक्रमणिका. ।। २६ ।। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रम जिका. तपोरत्न- || ५६ सूर्यायण तप. ७८ ६८ मुकुट सप्तमी तप. ९५ महोदधि । ५७ लोकनालि तप. ७९ ६९ अंबिका देवी तप. ९६ ५८ कल्याणक अष्टालिका तप. ८० ७. श्रुतदेवता तप. ५९ आंबिल वर्धमान तप. ८१ ७१ रोहिणी तप. ६० माघमाला तथा श्रीमहावीर तप ८१ ७२ तीर्थकर मातृ तप. ६१ लाखी पडवो तप. ८२ ७३ सर्व सुख संपत्ति तप. ९९ ६२ सर्वांगसुंदर तप. ८३ ७४ अष्टापद पावडी तप. १०० ६३ निरुज शिख तप. ७५ मोक्षदंड (मोक्षकरंडक)तप.१०. ६४ सौभाग्य कल्पवृक्ष तप. १४७६ अदुःखदर्शी (पखवासो)तप.१०१ ६५ दमयंती (तिलक) तप. ६६ आयतिजनक तप. ७७ (बीजो) तप.१.२ ६७ अक्षयनिधि तपः ७८ गौतम पतद्ग्रह तप.. १०३ ६७-२ ७९ निर्वाण दीपक तप १.४ ॥ इति प्रथमो विभागः ॥ ८. अमृताष्टमी तप. १०५ ८१ अखंड दशमी तप. १०६ ८२ परत्रपाली तप. १.६ ८३ सोपान तप (सप्तसप्तमिका . विगैरे) तप. १.७ ८४ कर्मचतुर्थ तप. ८५ नवकार तप (नानो) तप. १०९ ८६ अविधवा दशमी ( वैधव्य हरण ) तप. ८७ बृहमंद्यावर्त तप.. ८८ लघु नंद्यावर्त तप. * ॐॐॐॐॐॐ AAAAAAA * २७॥ Jain Eventon International For Private Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥२८॥ २४३ विभाग बीजो अनुक्रमणिका। विभाग ८९ विंशति स्थानक तप. ११३ १०१ (मौन) एकादशी तप. १३० बीजो ११२ छन्नु जिननी ओळी तप. १३८ ९. अंगविशुद्धि तप. ११८ १.२ कंठाभरण (सिद्धिवधु ११३ जिनगुण संपत्ति तप. १४१४ अनुक्रम९१ अठ्ठावीश लब्धि तप. ११८ कंठाभरण तप.) १३० ११४ जिनजनक तप. १४१ णिका ९२ अशुभ निवारण तप. ११ १०३ क्षीरसमुद्र तप. १४१ ११५ तेर काठीया तप. ९३ अष्टकर्मोत्तर प्रकृति तप. १२ १०४ कोटिशिला तप. १३१ ११६ देवल इंडा तप. ९४ अष्ट प्रवचन मातृ तप. १२ ११७ द्वादशांगी तप. २४३ ९५ अष्टमासी तप. १२७ । १०५ पांच पञ्चख्खाण(ओळी)तप १३३ ११८ नव निधान तप. ९६ कर्मचक्रवाल तप. १२८ १०६ गौतम कमळ तप. १३३ ११९ मोटादश पच्चख्खाण तप १४४ ९७ आगमोक्त केवळी तप. १२८ १०७ घडिया बेघडिया तप. १३३ १२. नाना दश पञ्चख्खाण तप १५५ ९८ अष्टापद (चत्तारि अट्ठ १०८ पीस्तालीश आगम तप. १३४ १२१ नव पदनी ओळी तप, १४५ दस दोय) तप. १२८ १०९ चतुर्गति निवारण तप. १३६ १२२ नव ब्रह्मचर्य गुप्ति तप. १४९ ९९ कलंक निवारण (सीतातप.) १२९ ११. चउसही तप. १३७ १२३ निगोद आयुःक्षय तप. १४९ १०. ऋषभनाथजी का तूला(हार)तप१२९ १११ चंदनवाला तप. १३७ १२४ निजिगीष्ठ तप, १५०१॥२८॥ १४४४ PRASHArm+ in Educatan International For Private Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभाग बीजो अनुक्रमणिका तपोरल-115| १२५ पदकडी तप १५० महोदधि १२६ दारियहरण तप. १५१ ॥२९॥ १२७ पंचामृत (तेला) तप. १५ १२८ पंच छह (बेला) तप. १५१ १२९ पंचमहाव्रत तप. १३. श्री पार्श्वजिन गणधर तप.१५२ १३१ पोष दशमी तप. १३२ बीजनो तप. १३३ मोटो रत्नोत्तर तष. १५४ १३४ रत्नरोहण तप. १५५ | १३५ बृहत संसार तारण तप. १५५ || १३६ लघु संमार तारण तप. १५६ १३७ श्री ऋषभदेवसंवत्सर (वरसी) तप. १५६ १३८ छमासी तप. १५७ १५१ अष्ट महासिद्धि तप. १६४ १३९ शत्रंजय मोदक तप. १५८१५२ रत्नमाळा तप. १४० शत्रुजय छठ्ठ अट्ठम तप. १५८ १५३ चिंतामणि तप. १४१ मेरुत्रयोदशी तप. १६० १५४ परदेशी राजानो छह तप. १६५ १४२ शिवकुमारना बेला तप. १६० १५५ सुख दुःखना महिमानो तप.१६६ १४३ पट्काय तप. १६१ १५६ रत्नपावडी तप. १६६ १४४ सात सौख्य आठ मोक्ष तप.१६१ १५७ सुंदरी तप. १६७ १४५ सिद्धि तप. १६१ १५८ मेरु कल्याणक तप. १६७ १४६ सिंहासन तप. १६२ १५९ तीर्थ तप. १४७ सौभाग्य सुंदर तप. १६२ १६. प्रातिहार्य तप. १४८ स्वर्गकरंड (स्वर्ग दंड)तप १६२ १४९ स्वर्ग स्वस्तिक तप. १६३ १६१ पंचरंगी तप. १५० बावन जिनालय तप. १६३ १६२ युगप्रधान तप. RECORICAE%-सिर ॥२९॥ For Private Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154%ะพานห้จนจะนานจนจะ5-จจะ Jain Education Intern For Private & Personal use only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि इंद्रियजय तप. RSHA-SARKAR-SARKARSA तपोरत्नमहोदधि। (तपावली.) [जिनोक्तानि तपांसि.] १. इंद्रियजय तप. पूर्वाईभक्तमेकं च विरसाम्ले उपोषितम् । प्रत्येकमिंद्रियजयः पञ्चविंशतिवासरः ।। १॥ अर्थ-पुरिमट्ट, एकास', नीवी, आंचल अने उपवास, ए प्रमाणे पांच दिवसे करवाथी एक इंद्रियजयनो तप थयो. ए रीते पांच इंद्रियोना जय माटे पांच ओळी करवाथी पचीश दिवसे आ तप पूरो थाय छे. तपस्याना दिवसोमा भूमि उपर शयन करवु, ब्रह्मचर्य पाळg, उद्यापनमां जिनेश्वरनी पासे अथवा ज्ञाननी पासे पूजापूर्वक पवीश पचीश पकवान (मोदक ), फळ विगेरे ढोकचा. तथा तेटली संख्यावाळा मोदक विगेरे साधुओने आपवा. संघ वात्सल्य करवू. आ तप करवाथी दुष्ट इंद्रियोनी अशुभ प्रवृत्ति थती नथी. आ साधु तश्चा श्रावक बन्नेने करवानो तप छे. गरj विगेरे नीचे प्रमाणे. साथीया. खमासमण. काउसग्गना लोगस्म. नवकारवाली. पहेली ओळी--स्पर्शन्द्रिय जयतपसे नमः .... ८ .... ८ २० बीजी ओळी-रसेन्द्रिय जयतपसे नमः .... ५ .... ५ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कपायजय तपोरत्नमहोदधि तप. GROSSERECTOR त्रीजी ओळी--घाणेन्द्रिय जयतपसे नमः ... २ .... २ चोथी ओळी--चक्षुरिद्रिय जपतपसे नमः .... ५ ..... पांचमी ओळी-श्रोत्रोंद्रिय जपतपसे नमः .... ३ .... ३ अथवा " इन्द्रियजयाय नमः" ए रीते पांचे ओळीमां गणवू. तथा साथीया, खमासमण अने काउसग्ग पांच पांच करवा. नोकारवाळी वीश गणवी. २. कषायजय तप. इक्कासणगं तह, निविगइयमायंबिलमभत्तट्टे । इय होइ लयचउक्कं, कसायविजए य तवचरणे ॥१॥ पहेले दिवसे एकास[, बीजे दिवसे नीवी, वीजे दिवसे आंबील, चोथे दिवसे उपवास ए प्रमाणे एक कषायने माटे चार दिवसनी एक लता (ओळी) थई, एवी कपायविजय तपाचरणमां चार लता (ओळी) करवी एटले सोळ दिवसे आ तप पूरो थाय छे. उद्यापनमा जिनेश्वर पासे अथवा ज्ञान पासे पूजापूर्वक सोळ सोळ मोदक, फळ विगेरे ढोकवा. मुनिओने पण तेटलुं दान देवू. आ तप करवाथी सर्व कषायनो नाश थाय छे, आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरj विगेरे दरेक दिवसे नीचे प्रमाणे, CARSASALARSHPECIESee Jain Education international For Private & Personal use only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥३॥ योगशुद्धि तप. REGISTE सा० ख. लो. नो १ अनंतानुबन्धि क्रोधजयाय नमः .... ९ अनतानुबन्धि मायाजयाय नमः २ अप्रत्यास्यान क्रोधजयाय नमः .... १० अप्रत्याख्यान मायाजयाय नमः ... १६ १६ १६ २० ३ प्रत्याख्यान क्रोधजयाय नमः .... ११ प्रत्याख्यान मायाजयाय नमः १६ १६ १६ २० ४ संज्वलन क्रोधजयाय नमः .... १२ संज्वलन मायाजयाय नमः ५ अनंतानुबन्धि मानजयाय नमः .... १३ अनन्तानुबन्धि लोभजयाय नमः ६ अप्रत्याख्यान मानजयाय नमः ... १४ अप्रत्याख्यान लोभजयाय नमः ... १६ १६ १६ २० ७ प्रत्याख्यान मानजयाय नमः ....१५ प्रत्याख्यान लोभजयाय नमः ... १६ १६ १६ २० ८ संज्वलन मानजयाय नमः .... १६ संज्वलन लोभजयाय नमः .... १६ १६ १६ २० अथवा "सर्वकषायजयाय नमः" ए रीते सोळे दिवसे गणवू, अथवा चार चार दिवस नीचे प्रमाणे गणवु:१ क्रोधजयतपसे नमः (पहेली ओळी) ३ मायाजयतपसे नमः (त्रीजी ओळी)... ४ ४ ४ २० २ मानजयतपसे नमः (बीजी ओळी) ४ लोभजयतपसे नमः (चोथी ओळी).... ४ ४ ४ २० PASSECCOREOGRESS R ३. योगाशुद्धि तप. योगे प्रत्येकं विकृतिकाचाम्लं चाप्युपोषितम् । IES ॥३ ॥ in Heston International For Private & Personal use only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मचक्र तप. तपोरत्नमहोदधि ॥४॥ KAREGIRIDHAKRECASTI एवं नवदिनोगशद्धिःसंपूर्यते ततः॥१॥ आ तप मन, वचन अने कायाना योग( व्यापार )ने शुद्ध करनार होवाथी योगशुद्धि नामे कहेवाय छे, तेमा मनोयोगने आश्रीने पहेले दिवसे नीवी, बीजे दिवसे आंबील अने त्रीजे दिवसे उपवास. ए रीते वचन अने कायाना योगने आश्रीने पण त्रण त्रण दिवस करवं. एटले नव दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा जिनेश्वर पासे अथवा ज्ञान पासे छ विगईना पदार्थो तथा नव नव मोदक, फळ विगेरे ढोकवा. ज्ञानपूजा तथा देवपूजा करवी, अष्टमंगलिक करवां आ तप करवाथी मन, वचन अने कायाना योगनी शुद्धि थाय छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. उद्यापने अष्ट मंगल कराववानुं जैन प्रबोधमा लख्खु छे. गर' विगेरे नीचे प्रमाणे--- सा० ख० लो० नो० मनोयोगतपसे नमः (पहेली ओळी) वचोयोगतपसे नमः (बीजी ओळी) ... काययोगतपसे नमः (त्रीजी ओळी) ४. धर्मचक्र तप. विधाय प्रथमं षष्टं षष्टिमेकान्तरांस्तथा।। उपवासान् धर्मचक्रे कुर्याद्वयक(१२३)वासरैः ॥ १॥ ॥४ ॥ For Private Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 धर्मचक्र तपोरत्नमहोदधि % 94%ACRECORRECE धर्मेनुं चक्र एटले समूह, अथवा भगवान अरिहंतनुं अतिशयरूप धर्मचक्र. तेनी प्राप्तिन कारण होवाथी धर्मचक्र नामे तप कहेवाय छे. तेमा प्रथम एक छठ करीने पारणुं कर. पछी एकांतर साठ उपवास करवा. ए प्रमाणे आ तप १२३ दिवस पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा रत्नजडित सुवर्णतुं अथवा रुपार्नु धर्मचक्र करावीने जिनेश्वर पासे पूजापूर्वक ढोकg, साधुने अन्नादिक दान देवु, यथाशक्ति संघपूजा, स्वामीवात्सल्य करवं. आतप करवाथी अतिचार रहित बोधिनी प्राप्ति थाप छे. आ यति तथा श्रावकोने करवानो आगाढ तप छे. (आचारदिनकर.) बीजी रीत. प्रथम एक अहम करीने पारणुं करवं. पछी एकांतर ३७ उपवास करवा. त्यार पछी छेडे एक अहम करीने पार| करवू. एटले कुल उपवास ४३ अने पारणाना दिवस ३९ मळी ८२ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापन उपर प्रमाण. (प्रत्यंतर नंबर क) त्रीजी रीत. अथवा आंबील २४ निरंतर करवा. उद्यापन उपर प्रमाणे (विधिप्रपा.) गरणुं विगेरे नीचे प्रमाणे सा० ख० लो० नो. धर्मचक्रिणे अरिहंताय नमः ..... १२ १२ १२ २० अथवा-"नमो अरिहंताणं " ए गरगुं गणवं. ॥ ५ ॥ For Private Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि ॥६॥ लह बोधी रीत. अथवा प्रथम एक अहम करीने पारणं करं. पछी श्रीश एकांतर उपवास करवा. पछी एक अहम करीने पारं कर. पछी त्रीश उपवास एकांतर करवा. हेल्लो एक अहम करीने पारणं कर. आ रीते करतां उपवास ६९ तथा पारणां ६३ मळी १३२ दिवसे तप पूर्ण थाय छे. ( आ तपने महाधर्मचक्रवाल तप पण कहे छे. ) ५- ६. लघु अष्टाहिका तपद्वय. अष्टमीभ्यां समारभ्य शुक्लाश्वयुतचैत्रयोः । राकां यावत्सप्तवर्षे स्वशक्त्याष्टाहिकातपः ॥ १ ॥ आ आठ आठ दिवसनो तप होवाथी अष्टाहिका तप कहेवाय छे. आ तप आश्विन अने चैत्र मासनी शुक्ल अष्टमी ए आरंभ क पूर्णिमाए करवो हमेशां पोतानी शक्ति प्रमाणे एकासणुं, नीवी आंबील के उपवास करवो. ए प्रमाणे सात वर्ष सुधी करखूं. तपना दिवसमां मोटी स्नात्रविधिए जिनपूजा करवी. उद्यापनमां छप्पन छप्पन मोदक, फळ, पुष्प विगेरेवडे देवपूजा करवी. साधुने दान देवं यथाशक्ति संघपूजा करवी. आ बन्ने तप दुर्गतिनो नाश करनार छे. आ साधु तथा श्रावकने करवाना आगाढ तप छे. ( अहिं आश्विन अष्टाहिका तपने चैत्र अष्टाहिका तप एम बे जुदा जुदा तप होवाथी ने विधि सरखी होवाथी तपना नंबर वे चाडव्या छे.) | लघु अष्टाहिका तप द्वय, ॥ ६ ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न गरणुं विगेरे अष्टकर्मसुदन तपमा कह्या प्रमाणे जाणवु. (जुओ तप नंबर ७) महोदधि ४ अष्टकर्मसूदन तप ॥७॥ ७. अष्टकर्मसूदन तप. प्रत्याख्यानान्यष्टौ, प्रत्येकं कर्मणां विघाताय । इति कर्मसूदनतपः, पूर्ण स्याधुगरसमिताहैः ॥ १॥ उपवासमेकभक्तं, तयैकसिक्यैकसंस्थिती दत्ती। निर्विकृतिकमाचाम्लं, कवलाष्टकं च क्रमात्कुर्यात् ॥२॥ आठ कर्मनो क्षय करवा माटे आ प्रमाणे आ तप करवो:-- पहेले दिवसे उपवास करयो, बीजे दिवसे एकासणुं करवू, त्रीजे दिवसे एकसिक्थ (एक दाणो) स्थानके चोविहार आंबील करव, चोथे दिवसे एक अंगी (एकलठाणु) एकासणुं ठाम चोविहारवालू करवू, पांचमे दिवसे ठाम चोविहार एकदची (एकी वखते पात्रमा पडेलुज खावु ते) करवू, छठे दिवसे लूखी नीवी करवी, सातमे दिवसे आंबिल करवू तथा आठमे दिवसे आठ कवळनं एकास' कर. ए आठे दिवसे अनुक्रमे गर| विगरे नीचे प्रमाणे गणवं. वीश नोकारवाळी गणवी. १ ज्ञानावरणीय कर्मक्षये श्रीअनंतज्ञानसंयुताय नमः। ३ वेदनीयकर्मक्षये श्रीअन्यायाधगुणसंयुताय नमः। २ दर्शनावरणीयकर्मक्षये श्रीअनन्तदर्शनसंयुताय नमः। ४ मोहनीयकर्मक्षये श्रीअनन्तचारित्रगुण संयुताय नमः। ॥७॥ Jain Fiston International For Private & Personal use only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MORE तपोरत्नमहोदधि | अष्टकर्म सूदन तप. RECASI-A564 ५ आयुःकर्मक्षये श्रीअक्षयस्थितिगुणसंयुताय नमः। ७ गोत्रकर्मक्षये श्रीअगुरुलघुगुणसंयुताय नमः। ६ नामकर्मक्षये श्रीअरूपिनिरंजनगुणसंयुताय नमः। ८ अन्तरायकर्मक्षये श्रीअनन्तवीर्यगुणसंयुताय नमः। अथवा नीचे प्रमाणे गणg-- प्रकृति. प्रकृति. १ श्री अनंत ज्ञानगुणधारकाय नमः। २ श्री अनंत दर्शनगुगधारकाय नमः। ९ ३ श्री अव्याबाधगुणधारकाय नमः। ४ श्री क्षायिकसम्यकत्वगुणधारकाय नमः। २८ ५ श्री अक्षयस्थितिगुणधारकाय नमः। ४ ६ श्री अमूर्तिगुणधारकाय नमः। १०३ ७ श्री अगुरुलघुगुणधारकाय नमः । ८ श्री अनन्तवीर्यगुणधारकाय नमः। कायोत्सर्ग, साथीया तथा खमासमणा कर्मप्रकृति प्रमाणे करवा. जे दिवसे जे कर्मनो तप चालतो होय ते दिवसे ते कर्मनी पूजामांथी एक एक ढाळ अनुक्रमे भणाववी (स्नात्र सहित.) (तेनी रीत चोसठप्रकारी पूजामांथी जाणवी.) उजमणामां आठ कर्मनी १५८ प्रकृति सूचवनाएं आठ शाखा ने १५८ पत्रोवाळू रुपार्नु पृक्ष अने कर्मवृक्षना छेदनने माटे तेना मूळमा मकवानो सोनानो कुहाडो तथा चोसठ मोदक ज्ञाननी पामे ढोकवा अथवा देवनी पासे ढोकवा. ज्ञाननी पूजा करवी तथा दान देवू. मोटी स्नात्रविधिए जिनपूजा करवी. संघ वात्सल्य करवं. ए रीते प्रथम ओळी थई. एवी आठ ओळी करवी. एटले चोसठ दिवसे कर्ममुदन तप पूर्ण थाय. आतपर्नु फळ कर्मनो क्षय थाय ए छे. आ साधु तथा श्रावकने करवा 5 For Private & Personal use only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARROR तपोरत्नमहोदधि ॥९॥ अष्टकर्म| सूदन तप. P R RROR-SHASTRA लायक आगाढ तप छे. अथवा बीजी रीते आ तप आ रीते पण करवामां आवे छे. प्रथम एक अट्ठम करवो, पछी साठ एकातर उपवास करवा. ल तथा छल्ले एक अट्ठम करवो. कुल ६६ उपवास अने ६२ पारणा थवाथी चार मास अने आठ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. आ विधिए तप करतां सिद्धपदनुं गर| गगवं. ज्ञान, गुरु अने संघनी भक्ति करवी. उद्यापन उपर प्रमाणे कर. (जैनधर्मसिंधु) - आ प्रमाणे साधु तथा श्रावकने करवा लायक अगीयार आगाढ तप श्री जिनेश्वरे कहेला छे. मुनिओए करली तपस्याओना उद्यापन माटे मूल ग्रन्थमां आ प्रमाणे कयुं छे उद्यापने च गृहिभिः कार्य कर्म यथोदितम् । काराप्यं यतिभिः श्राद्धस्तदभाचे 'ध मानसम् ॥१॥ अर्थ-गृहस्थीओए उद्यापनमां तपविधिमां कह्या प्रमाणे कर्म करवं, तथा साधुओए तपस्या करी होय तो तेर्नु उयापन श्रावको पासे कराव, अथवा तेम न बने तो मानसिक उद्यापन करवू. यदिनान्तरितं कार्य तदनागाढमुच्यते । एकश्रेण्या विधेयं यत्तदागाढं जगी जिनः ।। २॥ अर्थ--जे तप दिवसने आंतरे करवामां आवे ते अनागाढ कहेवाय छे, अने जे आंतरा विना श्रेणीबंध करवामां आवे ते * उपर खेला ७ उपरांत उपधान तप, योगोद्वहन, श्रावकनी ११ प्रतिमा ने मुनिनी १२ प्रतिमा-कुल अगियार. in Educatiemations For Private Personal use only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि आगाढ तप कहेवाय छे एम जिनेश्वरे का छे. एकसो वीश कल्याणक तप. ISISAMARKS ८. एकसो वीश कल्याणक तप. यस्मिन् दिने तीर्थकरस्य गर्भावतारजन्मवतकेवलानि । मोक्षो बभूवात्र दिने तपो यत्कल्याणकं तत्समुदाहरन्ति ॥१॥ ___ अर्थ--जे दिवसे तीर्थकरनो गर्भावतार ( च्यवन ), जन्म, दीक्षा, केवळज्ञान अने मोक्ष थयो होय ते दिवसे जे तप | करवो ते कल्याणकतप कहेवाय छे. कल्याणक एकस्मिन्नेकाशनमेतयोयोर्विरसम् । आचाम्लं त्रितयेऽपि हि चतुष्टयेऽप्यनशनं प्राहुः ॥२॥ अर्थ-जे दिवसे एक कल्याणक होय ते दिवसे एकासणुं करवं, जे दिवसे बे कल्याणक होय, ते दिवसे नीवी करवी, | त्रण कल्याणक होय ते दिवसे आंबील करवू अने चार कल्याणकने दिवसे उपवास करवो एम कयुं छे. (पांच कल्याणकने दिवसे एकासणापूर्वक उपवास करवो. एटलुं आचार उपदेशमा अधिक कडुं छे.) अथवा एक कल्याणके एकासगुं, वे कल्याणके आंबिल, त्रणे आंबिल तथा एकास', चारे उपवास अने, पांच कल्याणके उपवास तथा एकास[ ए प्रमाणे करवू. BREGASARASHASABREAK For Private & Personal use only Jain Educato Interational Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ----- - तपोरत्न महोदधि एकसो वीश कल्याणक तप, 336993GRESSERIES चोवीश तीर्थकरना च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान अने निर्वाण ए पांच कल्याणकना १२० दिवसोने विष उपवासादिक तप करवा, एकासणाथी जे पंचकल्याणक आराधे ते मागशर शुदि १० Y आंबिल करे ने मागशर शु. ११ नो उपवास करी ६कल्याणक आराधे अने उपवासथी पंचकल्याणक आराधे ते मागसर शुदि १० ने अग्यारसनो प्रथम छह करी शरु करे तो पांच वर्षे कल्याणकतप पूरो थाय. उजमणे कनकसिंह राजानी जेम चोवीश जिनेश्वरोनी प्रतिमा भराववी. तिलक २४, पकवान २४ खाजा २४ अने कुंपी, कचोली विगेरे पूजानां उपकरणो २४-२४ ढोकवा. च्यवन कल्याणके "परमेष्ठिने नमः ए मंत्रनो जाप बे हजार (वीश नोकारवाळी) करवो. जन्म कल्याणके " अर्हते नमः"नोबे हजार जाप करवो. दीक्षा कल्याणके "नाथाय नमः" एनो जाप बे हजार करवो. ज्ञान कल्याणके "सर्वज्ञाय नमः" एनो बे हजार जाप करवो. निर्वाण कल्याणके "पारंगताय नमः" एनो वे हजार जाप करवो. तथा च्यवन कल्याणके साधर्मिक वात्सल्य, जन्म कल्याणके गोळ घीनुं दान, दीक्षाए टोपरा गोळ बहेंचवा, ज्ञाने संघपूजा अने निर्वाणे मोटी पूजा भणाववी. जे उपवासथी आ तप करे तेणे दरेक कल्याणके उपवास करवो. बे अथवा वधारे कल्याणक जे दिवसे होय तेनुं आराधन बीजा वर्षोमां करवु, ज्यां भगवंतनी कल्याणक भूमि होय त्यां मोटा महोत्सवथी संघ सहित यात्रा करवा जवु, विधि युक्त यात्रा करवी. तथा सर्व भगवंतोना पंचकल्याणकोनो उत्सव करवो. गरगुं विगेरे नीचे प्रमाणेतिथि. आसो वद. (गुजराती) कल्याणक. तिथि. आसो वद. ( गुजराती) कल्याणक, ५ श्री संभवनाथ सर्वज्ञाय नमः। केवल १२ श्री पद्मप्रभाहते नमः। जन्म CATEGRECASSECURRECA5% Jain Education For Private & Personal use only www.ainelibrary.org Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥१२॥ १२ - श्री पद्मप्रभ नाथाय नमः। श्री नेमिनाथ परमेष्ठिन नमः। श्री महावीर पारंगताय नमः। श्री सुविधिनाथ सर्वज्ञाय नमः । एकसो वांश कल्याणक तप. श्री अरनाथ सर्वज्ञाय नमः। च्यवन १३ मोक्ष कार्तिक शुदी. केवल. कार्तिक वद. जन्म ११. मागशर शुदी. श्री सुविधिनाथाहते नमः। श्री महावीर नाथाय नमः। दीक्षा श्री सुविधिनाथ नाथाय नमः। श्री पद्मप्रभ पारंगताय नमः। जन्म दीक्षा मोक्ष जन्म श्री अरनाथाहते नमः। श्री अरनाथ नाथाय नमः। श्री मल्लिनाथ नाथाय नमः। श्री नमिनाथ सर्वज्ञाय नमः। श्री संभवनाथ नाथाय नमः। श्री अरनाथ पारंगताय नमः। श्री मल्लिनाथाहते नमः ।। श्री मल्लिनाथ सर्वज्ञाय नमः। श्री संभवनाथाहते नमः। RRRRRRRRRR केवल जन्म दीक्षा केवल दीक्षा मागशर वद. जन्म ११ १० श्री पार्श्वनाथाहते नमः। श्री पार्श्वनाथ नाथाय नमः। दीक्षा ॥१२॥ For Private Personal use only wronw.tainelibrary.org Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि १२ श्री चन्द्रप्रभाहते नमः। श्री शीतलनाथ सर्वज्ञाय नमः। जन्म केवल १३ श्री चन्द्रप्रभ नाथाय नमः । दीक्षा एकसोकांश | कल्याणक तप. श्री विमलनाथ सर्वज्ञाय नमः। श्री अजितनाथ सर्वज्ञाय नमः । श्री धर्मनाथ सर्वज्ञाय नमः। पोष शुदी. ९ १५ केवल केवल केवल ११ श्री शांतिनाथ सर्वज्ञाय नमः । श्री अभिनन्दन सर्वज्ञाय नमः। केबल पोष वद CROCHURCHURE जन्म मोक्ष १२' श्री पद्मप्रभ परमेष्ठिने नमः। च्यवन १२ श्री शीतलनाथार्हते नमः। श्री शीतलनाथ नाथाय नमः। दीक्षा १३ श्री आदिनाथ पारंगताय नमः। श्री श्रेयांसनाथ सर्वज्ञाय नमः केवल माघ शुदी. श्री अभिनंदनाहते नमः । जन्म २ - श्री वासुपूज्य सर्वज्ञाय नमः। श्री धर्मनाथाहते नमः। जन्म श्री विमलनाथाहते नमः। श्री विमलनाथ नाथाय नमः। दीक्षा ८ श्री अजितनाथाहते नमः। केवल जन्म ४. जन्म ॥१३॥ For Private Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न- महोदधि श्री अभिनंदन नाथाय नमः। दीक्षा SURES एकसो वीश कल्याणक ॥१४॥ तप. मोक्ष ९ 4m 7942 केवल च्यवन जन्म KAKKARISHADIRECECEM श्री अजितनाथ नाथाय नमः। दीक्षा १२ श्री धर्मनाथ नाथाय नमः। दीक्षा माघ वद. श्री सुपार्श्वनाथ सर्वझाय नमः। केवल श्री चन्द्रप्रभ सर्वझाय नमः केवल श्री आदिनाथ सर्वज्ञाय नमः । श्री मुनिसुव्रत सर्वज्ञाय नमः। केबल श्री वासुपूज्याईते नमः। जन्म __फागण शुदी. श्री अरनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन ४ श्री संभवनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन १२ श्री मुनिसुव्रत नाथाय नमः। दीक्षा फागण वद. श्री पार्श्वनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन ४ श्री सुपार्श्वनाथ पारंगताय नमः। श्री सुविधिनाथ परमेष्ठिने नमः श्री श्रेयांसनाथाहते नमः । श्री श्रेयांसनाथ नाथाय नमः । श्री वासुपूज्य नाथाय नमः। दीक्षा दीक्षा श्री मल्लिनाथ परमेष्ठिने नमः। श्री मल्लिनाथ पारंगताय नमः च्यवन मोक्ष ४ श्री पार्श्वनाथ सर्वज्ञाय नमः । EREURSt केवल Jain Education inte For Private & Personal use only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Comment तपोरत्नमहादधि श्री आदिनाथाहते नमः जन्म एकसो वीश कल्याणक तप, मोक्ष Form ur SHOROREGAREACTICAL मोक्ष श्री चन्द्रप्रभ परमेष्ठिने नमः। च्यवन ८ श्री आदिनाथ नाथाय नमः। दीक्षा _ चैत्र शुदी. श्री कुंथुनाथ सर्वज्ञाय नमः। केवल श्री संभवनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्री सुमतिनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्री महावीराईते नमः। जन्म चैत्र वद. श्री कुंथुनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्वी कुंथुनाथ नाथाय नमः। दीक्षा श्री नमिनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्री अनन्तनाथाहते नमः। जन्म १४ श्री कुंथुनाथाहते नमः। जन्म वैशाक शुदी. श्री अजितनाथ पारंगताय नमः। श्री अनन्तनाथ पारंगताय नमः। श्री सुमतिनाथ सर्वज्ञाय नमः। श्री पद्मप्रभ सर्वज्ञाय नमः। केवल केवल RECAREKARSARKARISPRER मोक्ष श्री शीतलनाथ पारंगताय नमः। श्री शीतलनाथ परमेष्ठिने नमः। श्री अनन्तनाथ नाथाय नमः। श्री अनन्तनाथ सर्वज्ञाय नमः। जाय नमः। च्यवन दीक्षा केवल Main Education item For Private & Personal use only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकसो वीश तपोरत्नमहोदधि ॥१६॥ च्यवन जन्म श्री अभिनंदन परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री अभिनंदन पारंगताय नमः। मोक्ष श्री सुमतिनाथ नाथाय नमः। दीक्षा श्री विमलनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री धर्मनाथ परमेष्टिने नमः। श्री सुमतिनाथाहते नमः। श्री महावीर सर्वज्ञाय नमः। श्री अजितनाथ परमेष्ठिने नमः। केवल च्यवन बैशाक वद. ReceRRERY Urmy श्री श्रेयांसनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री मुनिसुव्रत पारंगताय नमः। मोक्ष श्री शान्तिनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष १३ श्री मुनिसुव्रताहते नमः। श्री शान्तिनाथार्हते नमः । श्री शान्तिनाथ नाथाय नमः । जन्म जन्म दीक्षा KALRAKARMARREARRRRRAIS: जेष्ठ शुदी. श्री धर्मनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्री सुपार्श्वनाथाहते नमः। जन्म . १२ श्री वासुपूज्य परमेष्ठिने नमः । श्री सुपार्श्वनाथ नाथाय नमः। च्यवन दीक्षा १३ जेष्ठ वद. ७ श्री विमलनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष ४ ९. श्री आदिनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री नमिनाथ नाथाय नमः। दीक्षा ॥१६॥ Jain Education international Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C तपोरत्नमहोदधि ॥१७॥ अषाढ शुदी. ८ एकसो चीन कल्याणक श्री नेमिनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्री महावीर परमेष्टिने नमः। च्यवन श्री वासुपूज्य पारंगताय नमः। मोक्ष ४ %%A ३ श्री श्रेयांसनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष श्री नमिनाथाहते नमः। जन्म श्री अनन्तनाथ परमेष्ठिने नमः । श्री कुंथुनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन च्यवन आषाढ वद. ७ ९ श्रावण शुदी. ५ ८ ECERIORRESTERPRs श्री सुमतिनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री नेमिनाथ नाथाय नमः । दीक्षा श्री मुनिसुव्रत परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री नेमिनाथाहते नमः । श्री पार्श्वनाथ पारंगताय नमः । जन्म मोक्ष CEBOOK श्रावण वद ७ श्री चंद्रप्रभ पारंगताय नमः। माक्ष श्री शांतिनाथ परमेष्ठिने नमः। च्यवन श्री सुपार्श्वनाथ परमेष्टिने नमः। च्यवन भादरवा शुदी. lainEducation internation For Private Personal use only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * तपोरत्नमहोदधि ज्ञान,दर्शन, चारित्र तप. ९ श्री सुविधिनाथ पारंगताय नमः। मोक्ष भादरवा वद. | ८)) श्री नेमिनाथ सर्वज्ञाय नमः। केवल १३ ने दिवसे श्री महावीरनो गर्भापहार थयो, ते कल्याणक गणवू नहीं. . आसो शुदी. १५ श्री नमिनाथ परमेष्ठिने नमः च्यवन बाकीनी विधि उपर कहेली रीत प्रमाणे जाणवी. दरेक कल्याणके साथीया १२ करवा, खमासमण १२ देवा, काउसग्ग १२ लोगस्सनो करवो अने नवकारवाळी २० गणवी. ९-१०-११ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप. - एकान्तरोपवासैश्च त्रिभिर्वापि निरन्तरैः । कार्य ज्ञानतपश्चोद्यापने ज्ञानस्य पूजनम् ॥१॥ एकांतरा त्रण उपवास करवा अथवा लागठ उपवास व्रण (अट्ठम) करवा. ए प्रमाणे ज्ञानतप करवो. उद्यापनमा साधुने पुस्तक तथा ज्ञानना उपकरण- दान देQ. ज्ञानपूजा करवी, ज्ञाननी पासे छए विगइना पदार्थो ढोकवा. आ तप करवाथी निर्मळ ज्ञाननी प्राप्ति थाय छे. तेमां पण यथाशक्ति सिद्धांतादि पुस्तक लखावीने मूकबु. ॥ प्रवचनसारोद्वारे ॥ दर्शन तप पण ए जीते उपर प्रमाणे करवो. उद्यापनम्म मोटी स्नात्रविधिए देवनी पूजा भणाववी. जिनप्रतिमानी पासे छए ASNCREASRAMASOOK Jain Edu For Private & Personal use only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चांद्रायण तप. ॐ सा. % तपोरत्न-15 विगइना पदार्थो ढोकवा. साधुओने वस, पात्र विगेरेनु दान देवू. समकितनी छ भावनानुं श्रवण करवू. देरासरनी प्रमार्जना, महोदधि पुंजना विगेरे करवू. आ तपनुं फळ निर्मळ बोधिनो लाभ थाय ते छ. * चारित्र तप पण एज प्रमाणे करवो. उद्यापनमा मुनिओने छए विगइना पदार्थोर्नु दान देवू, तथा वस्त्र, पात्र विगेरेनु दान देवं. आ तप करवाथी निर्मळ चारित्रनी प्राप्ति थाय छे. आ त्रणे तप साधु तथा श्रावकने करवाना आगाढ तप छे. लो० नो० ज्ञान तपर्नु गर[-ॐ ही नमो नाणस्स. दर्शन तपनुं गरj-ॐ ही नमो दंसणस्स. ६७२० चारित्र तपर्नु गरj-ॐ ही नमो चारित्तस्स. अथवा साथीया विगेरे ज्ञानतपमा पांच, दर्शनतपमां बार अने चारित्रतपमां सतर करवा. १२ चांद्रायण तप. चांद्रायणं च द्विविधं प्रथमं यवमध्यकम् । द्वितीयं वज्रमध्यं तु तयोश्चर्या विधीयते ॥१॥ यवमध्ये प्रतिपदं शुक्लामारभ्य वृद्धितः। एकैकयोासदत्यो राकां यावत्समानयेत् ॥ २॥ * अमना दिवसोमा पौषध अपश देशावकाशिक क जोईए. पत्त. SAROKGAUReciCAR A49CRE -RECCASH ॥१९॥ Jain Education ForPrivate LPersonal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चांद्रायण तफ तपोरत्नमहोदधि ॥२०॥ PROCERedeeca HEREIDOES ततः कृष्णप्रतिपदमारभ्यकैकहानितः। अमावास्यां तदकत्वे यवमध्यं च पूर्यते ॥३॥ वज्रमध्ये कृष्णपक्षमारभ्य प्रतिपत्तिधि । कार्या पंचदशग्रासदत्तिभ्यांहानिरेकतः ॥४॥ अमावास्याश्च परतो ग्रासदत्ति विवर्धयेत् । गायत्तश्चदशैव स्युः पूर्णमास्यां मासतः ॥ ५ ॥ एवं मासद्वयेन स्यात्पूर्ण च यववज्रकम् ! चान्द्रायणं यतेर्दत्तेः संख्या ग्रामस्य गहिनाम् ॥६॥ चंद्रनु अयन एटले जर्बु ते. अर्थात हानि अने वृद्धि, तेणे करीने जे थयेलु ते चांद्रायण तप कहेवाय छे. ते वे प्रकारे छे. पहेलुं ययमध्य अने चीजें वज्रमध्य. तेमनुं स्वरूप आ प्रमाणे छे-जवनी जेम जेनो मध्यभाग स्थूळ होय अने आदि-अंत भाग हीण (पातळो) होय ते यवमध्य कहेवाय छे. तथा बननी जेम जे बच्चे सूक्ष्म (पातळो) होय अने आदि अंतमां स्थूल होय ते वज्रमध्य कहेवाय छे. अहीं स्थलता अने हीनता (सूक्ष्मता) ए करीने दत्ति तथा ग्रासनी बहुलता अने अल्पता जाणवी. पहेलै यवमध्य चांद्रायण आ प्रमाणे करवु-शुक्लपक्षनी प्रतिपदाने दिवसे एक, बीजने दिवसे चे, एम एक एक दति तथा कवळनी वृद्धि करी पूर्णिमाने दिवसे पंदर दत्ति तथा कवळ लेवा. पछी कृष्णपक्षना पडवाए पंदर, बीउने दिवसे चौद, एम एक एक दत्ति तथा कवळ ओडो करी अमावास्याए एक दति तथा कवळ लेवो. ए प्रमाणे यवमध्य चांद्रायण यति तथा श्रावकने बन्नने माटे जाणवू. वनमध्य चांद्रायण पण साधु अने श्रावक बन्नेने आ प्रमाणे जाणवू. कृष्णपक्षनी प्रतिपदथी आरंभीने पंदर ग्रास तथा दत्तिमाथी एकएक ओछो करवाथी अमावास्याने दिवसे एक एक ग्रास अने दत्ति रहे छे. पछी शुक्लपक्षना पडवाथी आरंभीने एक एक ग्रास अने दत्तिनी वृद्धि करी पूर्णिपाए पंदर ग्रास तथा दत्ति थाय छे. आ प्रमाणे वजमध्य reCRecene ॥२०॥ For Private Personal Use Only . Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चांद्रायण तपोरत्नमहोदधि दावा चांद्रायण पण एक मासे पूर्ण थाय छे. एरीते यवमध्य अने वज्रमध्य चांद्रायण चे मासे पूर्ण थाय छे. अहाँ दत्तिनी जे संख्या आपी छ ते साधु आश्री जाणवी, तथा ग्रास(कवळ)नी संख्या आपी छे ते गृहस्थी आश्री जाणवी. (पंचाशक) उद्यापने जिनप्रतिमाने मोटी स्नात्र विधिए स्नात्र करावीने छए विगइना नैवेद्य सहित ४८० मोदक, फळ विगेरे ढोकवां तथा चंद्रनी रूपानी मूर्ति तथा सुवर्णना जव (३२) अने यन्त्र करावी देव पासे ढोकवा. साधुओने वव, पात्र, अन्न विगरेनु दान देवू, संबनी पूजा भक्ति करवी. आ तप करवाथी सर्व पाफ्नो क्षय तथा पुण्यनी वृद्धि थाय छे. आ साधु तथा श्रावकने कर. बानो आगाढ तप छे. एकडं यवमध्य चांद्रायण करे तो २४० मोदक ढोकवा तथा वन ढोकवो नहीं, ते ज प्रमाणे केवळ वन. मध्य करे तो तेमां पण ४० मोदक ढोकवा अने जब ढोकवा नहीं. बोजी रीत. शुक्लपक्षनी प्रतिपदाथी आरंभीने एक उपवास अने एक आंबिल एम पंदर दिवस सुधी करवू. उद्यापनमा मोदक १५ तथा रुपानो चंद्र करावी प्रभु पासे ढोकवो. गरगुं विगेरे नीचे प्रमाणे. सा० ख. लो० नो० ॐ नमो सिद्धाणं. ८ ८ ८ २० पहेली रीत प्रमाणे करे तो कवळनी संख्या प्रमाणे साथी या विगेरे करवा. C॥२१॥ For Private Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ २२ ॥ Jain Education १३ तीर्थंकर वर्धमान तप ( श्रीभ्रमण संघ तप ) ऋषभादेर्जिनसंख्यावृध्या तावंति वैकभक्तानि । वीरादेरप्येवं वलमानं वर्धमानतः ॥ १ ॥ अथ चैकैकमन्तं प्रत्येकाशनकानि च । पञ्चविंशति संख्यानि षट्शताहेन पूर्यते ॥ २ ॥ जे वृद्धि पाये ते वर्धमान कहेवाय ते तप आ रीते करवो. प्रथम ऋपमदेवजीने आश्री एक एकासशुं करवुं, अजितनाथ जीने आश्री ने एकास करवा. ए रीते वधतां महावीरस्वामीने आश्री चोवीश एकासां करवां त्यारपछी पश्चानुपूर्वी वडे महावीरस्वामी श्री एक एकासनुं, पार्श्वनाथ आश्री वे एकासणां, ए रीते करतां ऋषभदेवजी आधी २४ एकासणां करवा. अर्थात् दरेक जिनने आधीने पचीश पचीश एकासणां कुल थाय छे. अथवा एकी साथे दरेक जिनने आश्रीने पचीश पचीश एकासणां करवां. आ बन्ने रीते करतां कुल छसो दिवसे एटले छसो एकासणे आ तप पूर्ण थाय छे, उद्यापनमां चोवीश जिनेश्वरोनी मोटी स्नात्रपूजा करी चोवीश चोवीश पुष्प, फळ, पक्वान्न, मोदक विगेरेथी पूजा करवी. तथा जे दिवसे जे तीर्थंकर श्री तप चालतो होय ते दिवसे ते देवनी विशेष पूजाभक्ति करवी. संवनी पूजा तथा वात्सल्य करवुं. आ तपनुं फळ तीर्थंकर नामकर्म नो ध छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे उपर जे एकासनां करवानां कलां छे ते बदल नीवी अथवा आंबील करवानुं जैनप्रबोध तथा जैनसिंधुमां कह्युं छे. जे जे तीर्थंकरना तप चालतो होय ते ते तीर्थकरना नामनुं गरणं वीश नोकारवाळीनुं गणधुं. साथीया, खमासमणा अने तीर्थंकर वर्धमान तप. ॥॥ २२ ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि ॥२३॥ o nvenormone परम भूषण nirmnnabinomn CRECRCONSTRRCANCIENCE लोगस्स-ए वार बार करवा. .१४ परम भूषण तप. शभेात्रिंशदाचाम्लरेकभक्तं तदनन्तरे । वासराणां चतुःषष्टया, तपः परमभूषणम् ॥१॥ अ तप करवाधी ज्ञान, दर्शन अने चारित्रादिक अथवा चक्रवर्तीने योग्य एवा मुकुट-कुंडलादिक उत्कृष्ट भूषण पामीए तेनुं नाम परम भूषण तप कहेवाय छे. आ तपमा एकांतर एकासणांवाळा बत्रीश आंबील करवा. एटले आ तप ६४ दिवसे पूर्ण थाय छे. (अथवा लागट पत्रीश आंबिल करवा. “जैन प्रबोध)" उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधि पूर्वक जिनपूजा करी | जिनेश्वरने रत्नजडित सुवर्णमय मुकुट, कुंडल, हार, तिलक विगेरे आभूषण चडावां, तथा बत्रीश बत्रीश पक्वान्न, फळ विगेरे ढोकवां. आ तप करवाथी परम संपत्ति तथा गुणनी प्राप्ति थाय छे. आ यति अने श्रावकने करवानो अनागाढ तप छे. गरj विगेरे नीचे प्रमाणे सा० ख० लो० नो. ॐ नमो अरिहंताणं. ... .... १२ १२ १२ २० १५. जिनदीक्षा तप. दीक्षातपसि चाहद्भिर्येनैव तपसा व्रतम् । जगृहे तत्तथा कार्यकान्तरितयुक्तितः॥१॥ अरिहंतनी दीक्षाने अनुकरण करनारो तप, ते दीक्षातप कहेवाय छ, तेमां ने तीर्थकरे जे तपस्या करीने दीक्षा ग्रहण करी SHARCOTICE For Private Personal Use Only wronw.iainelibrary.org Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनदीक्षा तपोरत्नमहोदधि 1॥ २४॥ PRESEARCH होय ते तप एकांतरितनी युक्तिवडे करवो. एटले के सुमतिनाथस्वामीए एकास' करीने दीक्षा लीधी तेथी तेने आश्रीने एकासणुं करवू. वासुपूज्यस्वामीए उपवास करीने दीक्षा लीधी तेथी तेने आश्रीने उपवास करवो. पार्श्वनाथजीए अने मल्लिनाथजीए अहम करीने दीक्षा लीधी तेथी तेमने आश्रीने एक एक अहम करवो. बाकीना वीश तीर्थकरोए छठ करीने दीक्षा लीधी तथी तेमने आश्रीने एक एक छह करवो. सर्व मळीने ४७ उपवास तथा एक एकासणुं थाय. दरेक प्रभु आश्री तपना अंतरमा एकास' कर. एटले ७० दिवसे तप पूर्ण थाय. केमके अंतरना २३ दिवसमा एक एकासणुं पांचमा प्रभुपाश्री करवान होवाथी २२ दिवस आंतराना थाय. उद्यापनमा एकास' करी मोटी स्नात्र विधिए जिनेश्वरनुं स्नात्र करी अष्ट प्रकारी पूजा भणाववी, छए विगइना पदार्थो तथा मोदक ४८, फळ ४८ विगेरे प्रभु पासे ढोकवा. आतप करवाथी निर्मळ व्रतनी प्राप्ति थाय छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो अनागाढ तप छे. जे तीर्थकरना नामनो तप चालतो होय ते प्रभुना नामनी साथे "नाथाय नमः" एटलुं पद जोडी गरj वीश नवकारवाळी, गणवु तथा साथीया विगेरे बार बार करवा. उपर प्रमाणे छह अहम करवानी पण शक्ति न होय तो एकांतर एकासणावडे ४७ उपवास ने एक एकासणुं करी ९४ दिवसे तप पूर्ण करयो. १६. तीर्थंकर ज्ञान तप. __ येन तीर्थकृता येन तपसा ज्ञानमापत । तत्तत्तथा विधेयं स्यादेकान्तरितवृत्तितः॥१॥ तीर्थकरना ज्ञानने अनुकरण करनारो तप, ते ज्ञान तप कहेवाय छे. तेमां जे तीर्थकरे जे तपवडे ज्ञानने प्राप्त करें, ते २४ For Private & Personal use only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न- महोदधि ता. तीर्थकरने आश्रीने ते तप एकांतर वृत्तिवडे करवो एटले के आदिनाथ, मल्लिनाथ, नेमिनाथ अने पार्श्वनाथे अहमपडे केवळज्ञान 6 तीर्थकर प्राप्त कयु तेथी तेमने आश्रीने चार अट्टम करवा, वासुपूज्यस्वामीने एक उपवासवडे केवळज्ञान थयु तेथी तेने आश्रीने एक निर्वाण उपवास करवो. पाकीना ओगणीश तीर्थकरोने छवाडे केवळजान थयु, तथा तेमने आश्रीने १९ छठ करवा. सर्व मळी उपवास एकावन श्या. ते आंतरे एकासगावाळा करवा जेथी ७४ दिवसे ए तप पूर्ण थाय. तेनां २३ अंतरना २३ एकासणा समजवा. उद्यापनमा दीक्षा तप प्रमाणे करवू, पण मोदक विगेरे ५१ ढोकवा. __आतपर्नु फळ विशुद्ध ज्ञाननी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु अने श्रावकने करवानो अनागाढ तप छे. जे तीर्थकरने आधीने तप चालतो होय ते प्रचना नामनी साथे "सर्वज्ञाय नमः" ए पद जोड. नवकारसाळी वीश गणत्री. साथीया विगेरे बार सर करवा. | उपर प्रमाणे इष्ट अहम करवानी पण शक्ति न होय तो एकांतर एकासणावडे ५१ उपवास करवा जेथी १.१ दिवसे तप पूर्ण थाय. १७. तीर्थकर निर्वाण तप. येन तीर्थकृता येन तपसा मुक्तिराप्यत । तत्तथैव विधेयं स्पादेकान्तरितवृत्तितः ॥१॥ तीर्थकरना निर्वाणे करीने ओळखातो जे तप, ते निर्वाण तप कद्देवाय छे, तेमां जे तीर्थकर जे तपस्या करीने मुक्ति पाम्या होय, ते तप तेज प्रकारे एकांतरनी युक्तिवडे करवो. तेमां श्रीवादिनाथजी छ उपवासे करीने मुक्ति पाम्या छ, महावीर. ॥२५॥ ॐACCIAS RESPEC For Private LPersonal use only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपौरत्नमहोदधि ॥२६॥ तीर्थकर निर्वाण तप. स्वामी छातपडे निर्वाण पाम्या छ, बाकीना बाशि किरो एक मास उपवासवडे मोक्षेपद पाम्यावे. ते सर्व तपना उपवासो एकांतर एकासगावडे करवा, कारण के ए प्रमाणे अविच्छिन तप करवानी हालमा शक्ति नथी. उद्यापनमा मोटा स्नात्रपूर्वक चोवीश चोवीश मोदक, फळ विगरे ढोकवा. साधुभक्ति, संघभक्ति करवी. आतपर्नु फळ आठ भवनी अंदर मोक्षनी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने 'करवानो अनागाढ तप के. जे तीर्थकरने आधीने तप चालतो होय तेना नाम साथे "पारंगताय नमः" ए पद जोडी वीश नवकारवाळी गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. दीक्षा, ज्ञान अने निर्वाण तपनो कल्याणक तपमा समावेश थाय छे, पण तेमां एटलो विशेष छे के-कल्याणकनो तप आमाढ होवाथी कल्याणकना दिवसोने स्पर्श करीने ज ते करवामां आवे छे. अने आत्रण तपो तो अनागाढ होवाथी ते ते तपनी संख्याए करीने करवामां आवे छे. एटले के एक दिवसे च्यवन अने जन्म कल्याणक होय तो उपवासथी कल्याणक तप करनार एक कल्याणकनी आराधना करीने बीजा कल्याणकर्नु आराधन बीजे वर्षे ते दिवसे करे छे. अने एकासणा के आंबीलबडे कल्याणक तप करनार एक तीर्थकरना के वे तीर्थकरना कल्याणकनी आराधना करीने बाकी रहेल आराधना बीजे वर्षे ते दिवसे करे . एटले ते तप कल्याणकनी तिथिनिबद्ध छ अने दीक्षा, ज्ञान अने निर्वाण ए त्रण कल्याणकना उपर बतावेला ४. तप तो तीर्थकर भगवते करलो तपना उपवास प्रमाणे करवाना छे. तेने माटे अमुक दिवसे' कावानो नियम नथी. तेमां पण निर्वाण कल्याणक संबंधी तप तो २२ मास ने ८दिवस प्रमाणनो होवाथी एकांतर उपवासवडे करता ४४ मास ने १६ दिवसे थई शके छे. Vi॥२६॥ For Private Jain Education Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि 1150 11 १८ ऊनोदरिका तप ( पांच प्रकारे ) अल्पाहार १ अवड्डा २ दुभाग ३ पत्ता ४ तहे व देसुणा ५ । अठ्ठे ८ दुबास १२ सोलस १३ चवीस २४ तहिकतीसा ३१ य || १ || अल्पाहारा, अपार्धा, द्विभागा, प्राप्ता अने देशोना (किंचिदूना) ए पांच प्रकारे ऊनोदरिका तप कद्देवाय छे, तेमां एकथी आठ कवळ सुधी अल्पाहारा, नवथी बार कवळ सुधी अपार्धा, तेरथी सोळ कवळ सुधी द्विभागा, सत्तरथी चोवीश कवळ सुधी प्राप्ता अने पचीशथी एकत्रीश कवळ सुधी किंचिदूना आ पांचे प्रकारनी ऊनोदरिका ऋण ऋण प्रकारनी छे, ते आ प्रमाणे- एकादिक कवळवडे जघन्य, वे आदि कवळवडे मध्यम अने आठ आदि कवळवडे उत्कृष्ट आ प्रमाणे पांचे प्रकारनी ऊनोदरिका समजवी. तेमां अल्पाहारा ऊनोदरिका एक ग्रासे करीने जघन्य, ने, त्रण, चार अने पांच ग्रासे करीने मध्यम अने छ, सात तथा आठ कवळवडे उत्कृष्ट जाणवी. अपार्धा ऊनोदरिका नव ग्रासवडे जघन्य, दश तथा अगियार ग्रासवडे मध्यम अने चार ग्रासवडे उत्कृष्ट जाणवी २. द्रिभागा ऊनोदरिका तेर ग्रासवडे जघन्य, चौद तथा पंदर ग्रासवडे मध्यम अने सोळ ग्रासवडे उत्कृष्ट जाणवी ३ प्राप्ता ऊनोदरिका सत्तर तथा अढार ग्रासवडे जघन्य, ओगणीश, वीश, एकवीश तथा बावीश कवळे करीने मध्यम, अने त्रेवीश तथा चोवीश ग्रासवडे उत्कृष्ट जाणवी ४. किंचिदूना ऊनोदरिका पचश तथा छत्रीय ग्रासवडे जघन्य, सतावीश, अठावीश तथा ओगणत्रीश ग्रासवडे मध्यम अने त्रीश तथा एकत्रीश ग्रासवडे उत्कृष्ट जाणवी ५. पुरुषनो संपूर्ण आहार नत्रीश कवळनो के, तथा एकत्रीश कवळ सुधी किंचिदून ऊनोदरिका थाय छे. आ प्रमाणे पांचे प्रकारनी ऊनोदरिका तप. ॥ २७ ॥ = Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि 4॥२८॥ ऊनोदरिया तप. RSHASTRISecte ऊनोदरिका पंदर दिवस पूर्ण थाय छे. स्त्रीओनो संपूर्ण आहार अठावीश कवळनो छे, तेथी तेने आश्रीने पांचे प्रकारनी ऊनादरिका आ प्रमाणे जाणवी- एकथी सात कवळ सुधी अल्पाहारा १, आठथी अगियार कवळ सधी अपार्धा २. बारथी चौद कवळ सुधी द्विभागा ३, पंदरथी एकवीश कवळ सुधी प्राप्ता ४ तथा वावीशथी सतावीश कवळ सुधी किंचिदना उनोदरिका ५. आ पांचे प्रकार पण जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट भेदे करीने त्रण त्रण प्रकारे आ प्रमाणे छे.-अल्पाहारा ऊनोदरिका एक तथा वे ग्रासवडे जघन्य. त्रण, चार तथा पांच ग्रामवडे मध्यम अने छ तथा सात ग्रासाडे उत्कृष्ट १. अपार्धा ऊनोदरिका आठ ग्रासवडे जघन्य, नव ग्रास करीने मध्यम अने दश तथा अगियार ग्रासवडे उत्कृष्ट जाणवी २. द्विभागा ऊनोदरिका चार प्रासे करीने जघन्य, तर प्रासवडे मध्यम अने चौद ग्रासवडे उत्कृष्ट जाणवी ३. प्राप्ता ऊनोदरिका पंदर तथा सोळ ग्रासे करीने जघन्य, सत्तर, अढार तथा ओगणीश ग्रासवड मध्यम अने बीश तथा एकवीश ग्रासवडे उत्कष्ट जाणवी ४. तथा किंचिदना ऊनोदरिका बारीश तथा वीश कवळवडे जघन्य, चोवीश तथा पचीश ग्रासवडे मध्यम अने छवीश तथा सत्तावीश ग्रासदंड उत्कृष्ट जाणवी ५. आ प्रमाणे पंदर दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. आ द्रव्य ऊनोदरिका जाणवी. भाव ऊनोदरिका आगममां आ प्रमाणे कही छे.कोहाइ अणुदिणं चाओ जिणवयण भावणाउ अ। भावोणोदरिया विह पन्नता वायरामहि ॥१॥ निरंतर क्रोधादिकनो त्याग करवो, तथा जिनेश्वरना वचननी भावना भाववी. ए भाव ऊनोदरिका वीतरागे कहेली छ. १ CIRCLECTLECTECHESTERIES ॥२८॥ in Education international For Private Personal use only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥२९॥ संलेखना तप. RECIPE लोकप्रवाह ऊनोदरिका आ प्रमाणे छ-प्रथम दिवसे आठ कवळ. बीजे दिवसे वार. श्रीजे दिवसे सोळ, चोथे दिवस चा. वांश तथा पांचमे दिवसे एकत्रीश कवळ लेवा.खीओए पहेले दिवसे सात, बीजे दिवसे अगियार,त्रीजे दिवसे चौद, चाथ दिवसे एकवीश तथा पांचमे दिवसे सत्तावीश कवळ लेवा. ए प्रमाणे आ तप पांच दिवमे पूर्ण थाय छे. गरणुं नीचे प्रमाणे. सा. ख. लो. नवकारवाली. ऊदरितपस नमः .... .... .... .... १२ १२ १२ २० १९. संलेखना तप. चसारि विचिताई विगह निजरिआईचत्तारि। संवच्छरे अदनिज पगंतरिअंच आयाम ॥१॥ नाइनिविगओ अतवे छम्मासे परम्मिच आयामं| अवरे विअ उम्मासे होइ विगटुं तवा कम्म ॥ २॥ वास कोडिसहिअं आयामं कह आणुपनीए । एसो यारस परिमाह होड संलहणाहतवा ॥३॥ प्रथम चार वरस विचित्र तप करवा पछी बीजा चार वरस नीविना आंतरावाळा उपवास एज प्रमाणे करवा. त्यारपछी च वरस सुधी नीविना आंतरावाळा आंचिल करवा. त्यारपछी छ मास सधी उपवास तथा छह पग्मित भाजनवाळा आषा: मालन आतर करवा. त्यारपछी छ मास सुधी आंबीलना आंतरावाळा चार चार उपवास करवा. त्यारपछी एक वर्ष सुधी निरंतर आंबिल करवाए प्रमाणे चार वरसे आतप पूर्ण थाय छे. नमो तरम्म"ए पदनां गाणानी वीश नवकारवाळी । For Private & Personal use only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥३०॥ है श्री महावीर तप. MUSSRHCCCCCCC गणवी. साधीया विगरे बार बार करवा.' __यंत्रमा आ प्रमाणे लख्युं छे. .. वर्ष ४ यावत् उ २ए। उ ४ए। उ ५ए । उ६ ए। उ १५ए। उ ३.ए। वर्ष ४ यावत उ २ नि । उ ३ नि । उ ४ नि । उ ५ नि । उ १५ नि । उ ३० नि । वर्ष २ यावत आं। नि । आँ। नि । इत्यादि पूरणीया। मास ६ यावत् उ१ आं। उ२ आं। उ३ आं। पूरणीया । .. मास ६ यावत् उ ४ आं। उ४ आं। उ४ आं। पूरणीया। वर्ष १ यावत् आचाम्लानि कर्तव्यानि । .... . २०. सर्व संख्या श्री महावीर तप. बारस चेव य वासा मासा छ चव अहमासो अ । वीरवस्स भगवंउ एसो छउमत्थ परियाओ॥१॥ बार वरस, छ मास तथा अर्द्धमास, आटलो काळ श्री महावीरस्वामी छअस्थपणे रह्या. ते वखते तेमणे जे तपस्या करी ते आ प्रमाणे-एक मासी तप, एक बीजु मासी तप पांच दिवस न्यून, नव चातुर्मासी तप, बे त्रिमासिक तप, वे अढी मासिक तप, छ द्विमासिक तप, वे दोढ मासिक तप, बार मासखमण, बोंतेर पक्षखमण, वे दिवसनी भद्रप्रतिमा, चार दिवसनी महाभद्रप्रतिमा, दश दिवसनी सर्वतोभद्र प्रतिमा, बसें ओगणत्रीश छ, बार अहम, त्रणसो ओगणपचास Hora cicces LAG३०॥ En dan Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनकावलि तपोरत्नमहोदधि तप. PRICA Sko पारणाना दिवस तथा एक दीक्षानो दिवस, सर्व मळी बार वरस साडाछ मास थया. आ तप यथाशक्ति एकतिर उपवासे करवा. शक्ति न होय तेणे आ सर्व तपमाथी कोईपण तप शक्ति तथा काळने अनुसरीने करवो. उद्यापनमा श्री महावीरनी मोटी स्नात्र विधिए स्नात्र करवापूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करवी. छ विगइना पक्वाज, विविध फळो विगैरे ढोकवा. ( गोधूम मण १, घीइ मण ॥) संघ वात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपनुं फळ तीर्थकरनामकर्मना बंध थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "श्रीमहावीरनाथाय नमः" ए मंत्रनां गरणांनी वीश नवकारवाळी गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. २१. कनकावलि तप. . तपसः कनकावल्याः काहलादाडिमे अपि । लता च पदकं चान्त्यलता दाडिमकाहले ॥१ एकदिव्युपवासतः प्रगुणिते संपूरिते काहले, तत्राष्ट्राष्टमितैश्च षष्ठकरणैः संपादयेद्दाडिमे । एकाद्यैः खलु षोडशान्तगणितेः श्रेणी उभे युक्तितः, षष्ठेस्तैः कनकावलौकिल चतुस्त्रिंशन्मितो नायकः।२।। तपस्वीओना हृदयने शोभावनार होवाथी आ कनकावलि नामनो तप कहेवाय छे. तेमा प्रथम एक उपवास करी पार|| करवू, पडी छठ करी पाणुं करवू, पछी अम करी पारणुं करवू. ए रीते एक काहलिका पूर्ण थाय छे, त्यारपछी आठ छठ करवा, तथा एक दाडिम पूर्ण थाय छे. त्यारपडी एक उपवास करी पारगुं, बे उपवास करी पार[, त्रण उपवास करी पार', ए रीते अनुक्रमे वधतां वधतां सोळ उपवास करी पारणुं करवं. एम करवाथी हारनी एक लता (सेर) पूर्ण थाय छे. GRAPHemander lain d an Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनकावति P तण सपोरत्न-5 महोदधि ॥ ३२ ॥ R Correci-NCRORE त्यारपछी चोत्रीश छट्ट करवाधी ते लतानी नीचे पदक संपूर्ण थाय छ. त्यारपछी साळ उपवास करीन पारणु, पंदर उपवास करीने पारj, चौद उपवास करीने पारj, ए रीते प्रतिलोमे अनुक्रमे उतरतां उतरतां एक उपवास करीने पार| करवु. एम करवाथी हारनी चीजी लता उत्पन्न थाय छे. त्यार पठी आठ छट्ट करवाथी तेनी उपरर्नु बीजु दाडम उत्पन्न थाय छे. त्यारपछी अहम करीने पारj, पछी छह करीने पारणुं अने पछी एक उपवास करीने पारणुं करवू तेथी उपरनी बाजी काहलिका उत्पन्न थाय छे, अहीं जे उपवास, छह अने अहम लख्या छे तेनं पारणं करीने तरत बीज दिवस ज उपवासादिक करवा, पण वचमा आंतरं पाडवू नहीं. आ तपमा कुल पारणाना दिवसो ८८ थाय छे. तथा उपवास ३८४ थाय छ, एटल आ तप एक वर्ष त्रण मास अने चावीश दिवसे पूर्ण थाय छे. (ए प्रमाणे चार वार करवाथी पांच वर्ष चे मास अन अहावीच दिवस थाय छ, एम चारगणो तप करवान प्रवचनसारोद्धारमां कडेलं.) अहीं पारणामां पहली श्रणाए विगइ सहित इच्छित भोजन करे, चीजी श्रेणीए नीवी, त्रीजी श्रेणीए अलेप द्रव्य एटले जे चीज खातां हस्त विगेरेने लेपन थाय एवा चणा, वाल विगरे खावा, तथा चोथी श्रेणीए आंबिल करवा. ( सर्वे पारणाना दिवसो एकासणाना ज छे.) उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा भणाववी. उपवासनी संख्या प्रमाणे सुवर्ण टंकनी माळा बनावा प्रभुना कंठमा नांखवी. तथा छए विगहना पक्कानो. विविध फको विगेरे ढोकवा. साधुओने अन्नदान देवू. संघ वात्सल्य संघपूजा करवी. आ तप करवाथी सर्व भोग तथा मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. आ साध तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छ. विशप एटलो छ के अंतकृतदशादि सूत्रोमां कनकावलिना पदकोमा तथा दाडिमोमां बगडा (पष्ट ) ले तेने स्थाने तगडा ( अहम)। ECORRECORDC ३२॥ Shw.iainelibrary.org For Private & Personal use only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्तावली तए. नपोरत्न || कसा छ अने रत्नावलिमां अहम छ तेने स्थाने पष्ठ मकवा एवं श्री प्रवचनसारोद्धारनी टीकामां कहेलं छे. गरगुं "उ महोदधि नमो अरिहंताणं " ए पदन वीश नोकारवाळीवडे गणवं. साथीआ विगेरे बार बार करवा, २२. मुक्तावली तप. . मुक्तावल्यां चतुर्थादि षोडशायावलीद्वयम् । पूर्वानुपूर्व्या पश्चानु-पूर्या ज्ञेयं यथाक्रमम् ॥ १ ॥ एकत्येकगुणैकवेदवसुधाबाणैकषड्भूमिभिः सप्तकाष्टमहीनवैकदशभिर्भूरुद्रभूभानुभिः। भूविश्वैः शशिमविलातिथिधरा विद्यासुरीभिर्मितै-रेतदव्युत्क्रमणोपवासगणितैर्मुक्तावली जायत ॥२॥ तपस्वीओने कंठना आभरणरूप निर्मळ मुक्तावळी सदृश होवाथी आ तप मुक्तावळी नामनो कहेवाय छे. ते मुक्तावळीमा उपवासादिक सोळ सुधी वे आवळी आनुपूर्वीवडे तथा पश्चानुपूर्वीवडे अनुक्रमे जाणवी. तेमां प्रथम एक उपवास उपर पारणु, ॐ पछी उह उपर पार[, पछी उपवास उपर पारगुं, पछी अहम उपर पारगुं, पछी उपवास उपर पारj, पछी चार उपवास उपर पारणु, पछी उपवास उपर पारj, पछी पांच उपवास उपर पारणं, पछी उपवास उपर पारj, पछी छ उपवास उपर पारण, पछ। उपवास उपर पारj, पछी सात उपवास उपर पारणं. पठी उपवास उपर पारणं. एरीते सोळ उपवास उपर पारणु, पछी उपवास उपर पारणुं करवू. त्यारपछी पश्चानुपूर्वीए लेवू. एटले के प्रथम सोळ उपवास उपर पारगुं, पछी उपवास उपर पारणु, पछी पंदर उपचास उपर पारj, पही उपवास उपर पारj, पछी चौद उपवास उपर पारj, पछी उपवास उपर पारणु, पछी तेर उपवास उपर पारj, पछी उपवास उपर पारj, ए रीते छेवट एक उपवास उपर पारणुं करवू. आ प्रमाणे उपचास ३०० PRESEARCH सोळ उपवास उपर उपवास उपर पारण ॥३३॥ Main Educatan international Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥३४॥ रक्तावली तप. तथा पारणांना दिवसो ६० मळी एक वर्षे आ तप पूर्ण थाय छे. तेने कनकावळीनी जेम चार बार करवाथी चार वर्ष पूर्ण थाय छ. तपने अंते उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिपूर्वक पूजा भणावीने प्रभुना कंठमां मुक्तावळी (मोतीनी माळा) आरोपवी. संघ वात्सल्य, संघपूजा करवी. आतप करवाथी विविध प्रकारना गुणोनी श्रेणि प्राप्त थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छ. गरगुं" नमो अरिहंताणं" नी नोकारवाळी वीश गणवी. साथिया विगेरे बार बार करवा. २३. रत्नावळी तप.. कालिका दाडिमकं लता तरल एव च । अन्या लता दाडिमकं काहलिकेति च क्रमात् ॥१॥ एकद्वियुपदासैः स्तः काहले दाडिमे पुनः । तरलश्चाष्टममथो रत्नावल्यां लतेव तत् ॥२॥ एकदिव्युपवासतो ह्यभ इमे संपादिते काहले, अष्टाष्टाष्टमसंपदा विरचयेद्युक्त्या पुनर्दाडिमे। एकाद्यैः खलु षोडशान्तगणितैः श्रेणीयं च क्रमात् । पूर्ण स्यात्तरलोऽष्टमैरपि चतुस्त्रिंशन्मितैर्निर्मलैः॥३॥ गुणरूप रत्नोनी आवळी होवाथी आ तप रत्नावळी नामनो कहेवाय छे. तेमां अनुक्रमे काहलिका, दाडिम, लता, तरल ( पदक ), बीजी लता, दाडिम अने काहलिका, ए प्रमाणे रत्नावळी थाय छे. तेमां प्रथम काहलिकाने विषे एक उपवास, त्यार पछी पारणुं करवं. त्यार पछी ये उपवास उपर पारj, पछी त्रण उपवास उपर पारणुं करवु. त्यार पछी दाडिमने विषे आठ अठ्ठम करवा, त्यार पछी एक उपवास उपर पारj, पछी बे उपर पारगुं, पछी त्रण उपवास उपर पारगुं, ए प्रमाणे अनुक्रमे सोळ उपवास सुधी करवाथी एक लता ( सेर ) थाय छे. पछी चोत्रीश अहम करवाथी पदक थाय छे. त्यारपछी SCORRESS * CREAK ॐ॥ ३४ ॥ For Private Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + C तपोरत्नमहोदधि लघुसिंह निःक्रीडित तप. KAR पश्चानुपूर्वीवडे एटले सोक उपनाम उपर पारj, पछी पंदर उपवास उपर पार|, पछी चौद उपवास उपर पारj. ए प्रमाणे र उतरतां उतरतां एक उपवास मुधी आवq. एम करवाथी बीजी लता पूर्ण थाय छे. त्यारपछी बीजा दाडिमना आठ अट्ठम करवा. पछी अहम करीन पार गुं. पछी छठ करीने पारणुं अने पछी उपवास करीने पारणुं करवाथी बीजी काहलिका पूर्ण थाय छ. ए प्रमाण उपवासना दिवस कुल ४३४ तथा पारणाना दिवस ८८ थाय छे. सर्व मळी ५२२ दिवसे आ ता पूर्ण थाय छे. ( कोईना मन आतप पण चार परिपाटीए करतां पांच वषे नव मास अने अढार दिवस थाय छे.) । उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधि पूर्वक घणा मूल्यवाळी निर्मळ रत्ननी माळा प्रभुना कंठमा पहेराववी. गुरुपूजा, संघपूजा, संघ. वात्सल्प करवू. आतप करवाथी विविध प्रकारनी लक्ष्मी मळे छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छ. गर| पर्वनी जेम"नमा अरिहंताणं "वीश नोकारवाळी प्रमाण गणवू. साथीआ विगेरे बार बार करवा. ___२४ लघुसिंहनिःक्रीडित तप., गच्छन् सिंहो यथा नित्यं पश्चाद्भागं विलोकयेत् । सिंहनि:क्रीडिताख्यं च तया तप उदाहृतम् ॥ १॥ एकद्वयकत्रियुग्मैर्युगगुणविशिखैर्वेदषट्पश्चताक्ष्यः, षटकुंभाश्वैर्निधानाष्टनिधिहयगजैः षट्रयैः पश्चषड्भिः । वाणयुगद्वित्रिशशिभुज कुभिश्चोपवासश्च मध्ये, ATARAKHAND www.jainelibrary.oro lain Education Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरनमहोदधि वृहत् सिंहनिाक्रीटित R कुर्वाणानां समन्तादशनमिति तपः सिंहनिःक्रीडितं स्यात् ॥२॥ जेम सिंह चालता चालतां पाछळनो भाग जुए छे, ते ज प्रमाणे सिंहनिःक्रीडित तप कहेलुं छे. तेनां प्रथम एक उपवास उपर पारj, पछी वे उपवास उपर पारj, पछी एक उपवास उपर-पारj, पछी त्रण उपवास उपर पारj, पछी वे उपवास, पछी चार उपवास, पछी त्रण, पछी पांच, पछी चार, पडी छ, पछी पांच, पछी सात, पछी छ, पछी आठ, पछी सात, पछी नव, पछी आठ ए प्रमाणे उपवास करी पार[ करवू. पछी पश्चानुपूर्वीए लेवू एटले के प्रथम नव उपवास, पछी सात, पछी आठ, पछी छ, पछी सात, पछी पांच, पछी छ, पछी चार, पछी पांच, पछी त्रण, पछी चार, पछी बे, पछी त्रण, पछी एक, पछी ये अने पछी एक उपवास करी पार| करवं. आ तपमा उपवासना दिवस १५४ तथा पारणाना दिवस ३३ मळी कुल १८७ दिवस थाय छे. (आतप पण चार परिपाटीए करतां वे वरस अने अठावीश दिवसे पूरो थाय छे एम मतांतर छे.) उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिपूर्वक प्रभुनी पूजा भणावी उपवासनी संख्या प्रमाणे मोदक, फळ, पक्काम विगेरे ढोकवां. | आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरगुं विगेरे पूर्ववत् " नमो अरिहंताणं" नुं गणq. २५ बृहत् सिंहनिःक्रीडित तप. एकद्वयककपाटयोनियमलवंदत्रिवाणाधिभिः षट्पञ्चाश्वरसाष्टसप्तनवभिर्नागैश्च दिग्नन्दकैः । मद्राशारविभद्र...विबुधर्मार्तडमन्वन्वितैर्विश्वेदेवतिथिप्रमाणमनभिश्चाष्टिप्रतिथ्यन्वितैः ॥ १॥ कलामनुतिथित्रयोदशचतुर्दशार्यान्वितैस्त्रयोदशशिवांशभिर्दशगिर्राशनन्दैरपि । ECORE For Private & Personal use only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAROKAR बृहत् सिंहनिक्रीडित तप. N तपोरन. दशाष्टनवसप्तभिर्गजरसाश्ववाणै रसैश्चतुर्विशिखवहिभियुगभुजत्रिभूद्वीन्दुभिः ॥ २॥ महोदधि उपवासैः क्रमाकार्या पारणा अन्तरान्तरा । सिंहनिःक्रीडितं नाम बृहत्संजायते तपः ॥३॥ ॥ ३७॥ आ तप पण पूर्वनी जेवो ज छे, परंतु अहीं तपस्याना दिवसो अधिक छे. ते आ प्रमाणे-प्रथम एक उपवास उपर पारj, पछी बे उपवास उपर पार[, पछी एक उपवास, पछी त्रण, पछी चे, पछी चार, पछी त्रण, पठी पांच, पछी चार, पछी छ, पछी पांच, पछी सात, पछी छ, पछी आठ, पछी सात, पछी नव, पछी आठ, पछी दश, पछी नव, पछी अगियार, पछी दश, पछी बार, पछी अगियार, पछी तेर, पछी बार, पछी चौद, पछी तेर, पछी पंदर, पछी चौद, पछी सोळ अने पछी पंदर उपवास करीने पारणुं करवू. त्यारपछी पश्चानुपूर्वीए आ प्रमाणे लेवु-प्रथम सोळ उपवास पछी चौद, पछी पंदर, पछी तेर, पछी चौद, पछी बार, पछी तेर, पछी अगियार, पछी बार, पछी दश, पछी अगियार, पछी नव, पछी दश, पछी आठ, पछी नव, पछी सात, पछी आठ, पछी छ, पछी सात, पछी पांच, पछी छ, पछी सात, पछी पांच, पछी छ, पछी चार, पछी पांच, पछी त्रण, पछी चार, पछी थे, पछी त्रण, पछी एक, पछी बे अने छेवट एक उपवास करी पारj कर(ए रीते दरेकने अंते पारणु करवू. आ रीते कुल उपवासना दिवसो ४९७ तश पारणाना दिवसो ६१ मळी कुल ५५८ दिवसे एक वर्ष छ मास ने अढार दिवसे आ तप पूरो थाय छे.) (आ तप पण चार परिपाटीए करतां छ वर्ष, वे मास अने बार दिवसे पूरो थाय छे लए मतांतर छ. ) उद्यापनमा मोटा स्नात्रपूर्वक पूजा भणावीने उपवासनी संख्या प्रमाणे पुष्प, फळ तथा मोदकादिक नैवेद्य अर्पण करवु. साधुने अन्नादिकनुं दान देवं, संघपूजा, संघवात्सल्य करवू. आ तपनुं फळ उपशमश्रेणीनी प्राप्तिरूप छे. आ NEHATEGORECASES AROG ॥३७॥ Jain Education Internationa For Private & Personal use only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भद्रतप. तपोरत्नमहोदधि ॥३८॥ PEOPLE यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. नंबर २१ थी २५ सुधीना तपो चार परिपाटीए करवाना श्री प्रवचनसारोद्धारमां कहेला छे. गरणुं विगैरे पूर्ववत् " नमो अरिहंताणं " २६ भद्र तप. एकद्वित्रिनतुःपञ्चत्रिचतुःपञ्चभूद्वयैः । पञ्चैकद्वित्रिवेदैश्च द्वित्रिवेदेषुभूमिभिः ॥१॥ चतुःपञ्चकद्वित्रिभिश्चोपवासैः श्रेणिपञ्चकम् । भद्रे तपसि मध्यस्थपारणश्रेणिसंयुतम् ॥ २॥ आ तप भद्र एटले कल्याणकारक होवाथी भद्र नामे कहेवाय छे. तेमा प्रथम श्रेणिमा पहेलो एक उपवास करी पार| करवू. पछी वे उपवास उपर पारj, पछी त्रण उपर पार[, पछी चार अने पछी पांच उपवास उपर पारणुं करवू. बीजी श्रेणीए प्रथम त्रण उपवास, पछी चार, पछी पांच, पछी एक अने पछी बे उपवास करी पारणुं कर. त्रीजी श्रेणीए प्रथम पांच उपवास, पछी एक, पछी बे, पछी त्रण अने पछी चार उपवास करी पारणुं करवू, चोथी श्रेणिए प्रथम वे उपवास, पछी त्रण, पछी चार, पछी पांच अने पछी एक उपवास करी पारणुं करवू, पांचमी श्रेणिए प्रथम चार, पछी पांच, पछी एक. पछी बे अने पछी त्रण उपवास करी पारणुं करवू. सर्वने छेडे एक ज पारणानो दिवस आवे. आ रीते करतां कुल उपवास दिन ७५ तथा पारणा दिन २५ मळी त्रण मास अने दश दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा जिनेश्वरने स्नान करावq. फळ, नैवेद्य, मोदक विगेरे शक्ति प्रमाणे ढोकत्रां. आतपर्नु फळ कल्याणनी प्राप्ति REBCARTOGA%ECRECOLOG RESS ॥३८॥ For Private Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ३९ ॥ Jain Education In थाय ए छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " श्री महावीरस्वामिनाथाय नमः " ए पदनी नत्रकारवाळी वशि गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. २७ मद्दाभद्र तप. एकद्वित्रिचतुः पञ्चषट्सप्तभिरुपोषणैः । निरन्तरैः पारणकमायश्रेणौ प्रजायत || १ || द्वितीयपाल्यां वेदेषुषट्सप्तैकद्विवह्निभिः । तृतीयपाल्यां सप्तैकद्वित्रिवेदशरै रसैः ॥ २ ॥ चतुर्थपाल्यां त्रिचतुःपंचषट्सप्तभूभुजैः । पञ्चम्यां रसस्तै द्वित्रिवेदशिलीमुखैः ॥ ३ ॥ षष्ट्यां द्वित्रिचतुःपञ्चषट्सप्तैकैरुपोषणैः । सपम्यां पञ्चषट्सप्तभूयुग्मत्रिचतुष्टयैः ॥ ४ ॥ एवं संपूर्यते सप्तश्रेणिभिर्मध्यपारणैः । महाभद्रं तपः सप्तप्रस्तारपरिवारितम् ॥ ५ ॥ आ महाभद्र तप पण पूर्वनी ज जेम थाय छे, तेमां तपना दिवसो अधिक छे ते आ प्रमाणे- प्रथम श्रेणीमां एक, बे, त्रण, चार, पांच, छ अने सात उपवास अनुक्रमे आंतरा रहित पारणावाळा करवा. बीजी श्रेणिमां चार, पांच, छ, सात, एक, वे अने ऋण उपवास आंतरा रहित पारणावाळा करवा. श्रीजी श्रेणीमां सात, एक, बे, त्रण, चार, पांच अने छ उपवास ए ज ते करवा. चोथी श्रेणीमां त्रण, चार, पांच, छ, सात, एक अने वे-ए प्रमाणे पूर्वनी जेम उपवास करवा. पांचमी श्रेणीमां छ, सात, एक, बे, त्रणं, चार अने पांच ए प्रमाणे करवा. छठ्ठी श्रेणीमां बे, त्रण, चार, पांच, छ, सात अने एक -ए प्रमाणे उपवास करवा. सातमी श्रेणीमां पांच, छ, सात, एक, त्रे, त्रण अने चार-ए प्रमाणे आंतरा रहित पारणावाळा उपवास अनु ) महाभद्र तप. ।। ३९ ।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि 44 ४० ॥ Jain Education Internati क्रमे करवा. आ रीते आ तपमां उपवासना दिवस १९६ तथा पारणाना दिवस ४९ धाय. सर्व मळीने २४५ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमां मोटी स्नात्र विधिपूर्वक पूजा भणाववी. यथाशक्ति फल, नैवेद्य, मोदक विगेरे ढोकवा. गुरुपूजा, संघपूजा विगेरे कर. आ तपनुं फळ सर्व विमनो नाश तथा पुण्यनी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरं विगेरे भद्र तप प्रमाणे. ( जुओ तप नंबर २६ ) २८ भद्रोत्तर तप आद्य श्रेणी पञ्चषभिः सप्ताष्टनवभिस्तथा । द्वितीयायां च सप्ताष्टनवाणरसैरपि ॥ १ ॥ तृतीयायां नन्दवाणषट्सप्ताष्टभिरुत्तमैः । चतुर्थ्यां रससताष्टनवबाणमितैः क्रमात् ॥ २ ॥ पञ्चम्यामष्टनन्देषु षट्सप्तभिरुपोषणैः । निरन्तरं पारणाभिर्भद्रोत्तरतपो भवेत् ॥ ३ ॥ भद्र एटले कल्याण करीने उत्तर एटले उत्तम होवाथी आ भद्रोत्तर नामे तप कद्देवाय छे. तेमां प्रथम श्रेणिए अनुक्रमे पांच, छ, सात, आठ अने नव उपवास आंतरा रहित पारणावाळा करवा. बीजी श्रेणिमां सात, आठ, नव, पांच अने छ उपवास करवा. त्रीजी श्रेणिमां नव, पांच, छ, सात अने आठ उपवास करवा. चोधी श्रेणिमां छ, सात, आठ, नव अने पांच उपवास करवा. तथा पांचमी श्रेणिमां आठ, नव, पांच, छ अने सात उपवास निरंतर पारणावाळा करबा. तेथी भद्रोत्तर तप थाय छे. आ तपमा उपवास दिन १७५ तथा पारणा दिन २५ मळी बसो दिवसे आ तप पूर्ण धाय छे. उद्यापन भद्र तपनी मद्रोचर तप ॥ ४० ॥ ww.jainelibrary.org Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C rate तपोरत्नमहोदधि सर्वतोभद्र तप. s RGRAMORE पेठे जाणवू. आ तप करवाथी सर्व वांछितनी सिद्धि थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाह तप छ, गरगुं विगेरे तप नंबर २६ प्रमाणे समजबु. २९ सर्वतोभद्र तप. आद्यापञ्चषडश्वनागनदभिर्दिकछंभुभिः श्रेणिका, नागैनन्दककुशिवः शररसैरश्वैद्वितीया च सा । रुद्राणरसाश्वनागनवभिर्दिग्भिस्तृतीया भवंत, तुर्या सप्तगजैश्च नन्ददशभिः श्रीकंठयाण रसैः॥१॥ काष्ठारुद्रशरै रसैहयगजैनन्दान्वितैः पश्चमी, षष्ठी षट्तुरगेभनन्ददशभिः श्रीकंठवाणैः परा।। नन्दाशाशिवबाणपट्यगजैः पूर्णावलिः सप्तमी, ते वै पारणकान्तरा निगदिता नित्योपवासा बुधैः ॥२॥ चोतरफथी कल्याण करनार होवाथी आ तप सर्वतोभद्र कहेवाय छे. अहीं प्रथम श्रेणी अनुक्रमे निरंतर पारणावाळा पांच, छ, सात, आठ, नव, दश अने अगियार उपवासवडे थाय छे. बीजी श्रेणि आठ, नव, दश, अगियार, पांच, छ अने सात उपवासघडे थाय छे. त्रीजी श्रेणि अगियार, पांच, छ, सात, आठ, नत्र अने दश उपवासवडे थाय छे. चोथी श्रेणि सात, आठ, नव, दश, अगियार, पांच अने छ उपवासवडे थाय छे. पांचमी श्रेणी दश, अगियार, पांच, छ, सात, आठ अने नव उपवासे करीने थाय छे. छटी श्रेणि छ, सात, आठ, नव, दश, अगियार अने पांच उपवासवडे थाय छे. तथा सातमी श्रेणी नव, दश, अगियार, पांच, छ, सात अने आठ उपवासवडे थाय छे. आ तपना दिन ३९२ तथा पारणाना दिन ४९ थाय छे. कुल आ तप (४४१) दिवसे पूर्ण थाय छे. उद्यापन भद्र तपनी पेठे जाणवू. HCRecieo CHc For Private & Personal use only wanyong Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥४२॥ गुणरत्नसंवत्सर तप. HिARINEERASHIONS केटलाएक आचार्यों आ चारे भद्रादिक तपना उद्यापनमा उपवासनी संख्या प्रमाणे पुष्प, फळ, पक्वान्न विगेरे ढोकवान कहे छे. आ तपनुं फळ सर्व प्रकारनी शांति तथा सर्व कर्मना क्षयनी प्राप्ति थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरगुं विगेरे तप नंबर २६ प्रमाणे जाणवू. ३० गुणरत्नसंवत्सर तप. गुणरत्नं षोडशभिर्मासैः संपूर्यते पुनस्तत्र । मासे चैकादिषोडशान्ताः स्युरुपवासाः पश्चदश ॥१॥ गुणरूपी रत्नोनी प्राप्तिनुं कारण होबाथी आ गुणरत्न तप कहेवाय छे. (आ तप श्री महावीरस्वामीना शिष्य स्कंदजीए आचर्यो हतो.) तेमा पहेला मासमा एक उपवास अने एक पारगुं, ए रीते पंदर उपवास अने पंदर पारणा मळीने त्रीश दिवसे पूर्ण थाय छे. बीजे मासे वे उपवासने आंतरे पारणा करवाथी वीश उपवास तथा दश पारणा मळी त्रीश दिवसे पूर्ण थाय छे. बीजे मासे त्रण त्रण उपवासे पारगुं करवाथी चोवीश उपवास तथा आठ पारणा मळी बत्रीश दिवस थाय छे. चोथे मासे चार चार उपवास उपर पारणुं करवाथी चोवीश उपवास अने छ पारणां मळीने त्रीश दिवस थाय छे.पांचमे मासे पांच पांच उपवास उपर पारणां करवाथी पचीश उपवास अने पांच पारणां मळीने त्रीश दिवस थाय छे. छठे मासे छ छ उपवास उपर पारणां करवाथी चोवीश उपवास अने चार पारणा मळीने अहावीश दिवस लागे छे. सातमे मासे सात सात उपवास उपर पारणां करवाथी एकवीश उपवास अने त्रण पारणां मळी चोवीश दिवसे पूर्ण थाय छे. आठमे मासे आठ आठ उप वास उपर पारणां करवाथी चोवीश उपवास तथा त्रण पारणां मळीने सताधीश दिवस थाय छे. नवमे मासे नव नव उपवास ॥४२॥ Jain Education For Private & Personal use only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बह अग्यार अंग तपोरत्नमहोदधि O nline - उपर पारणा करवाथी सतावीश उपवास अने त्रण पारणा मळी त्रीश दिवस थाय छे. दशमे मासे दश दश उपवास उपर पारणा | करवाथी त्रीश उपवास अने त्रण पारणा मळी तेत्रीश दिवस थाय छे. अगियारमे मासे अगियार अगियार उपवास उपर पारणा करवाथी तेत्रीश उपवास अनेत्रण पारणा मळी छत्रीश दिवस थाय छे. बारमे मासे बार बार उपवास उपर पारणा करवाथी चोवीश उपवास अने बे पारणा मळी छत्रीश दिवस थाय छे. तेरमे मासे तेर तेर उपवास उपर पारणा करवाथी छवीश उपवास अने बे पारणा मळी अठ्ठावीश दिवस थाय छे. चौदमे मासे चौद चौद उपवास उपर पारणा करवाथी अठ्ठावीश उपवास अने बे पारणा मळी त्रीश दिवस थाय छे. पंदरमे मासे पंदर पंदर उपवास उपर पारणा करवाथी त्रीश उपवास अनेचे पारणा मळी बत्रीश दिवस थाय छे. सोळमे मासे सोळ सोळ उपवास उपर पारणा करवाथी बत्रीश उपवास अने चे पारणा मळी चोत्रीश दिवस थाय छे. आ रीते आ तप न्यूनाधिक तथा सरखा दिवसोए करीने बराबर सोळ मासे ज पूर्ण थाय छे. ( एकंदर गणतां ४८० दिवसो थाय छे.) __उद्यापनमा मोटा स्नात्रपूर्वक जिनपूजा, साधुपूजा, संघपूजा विगेरे यथाशक्ति करवू. आ तपन फळ उच्च गुणस्थानF| पर आरोहण थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " गुणरत्नसंवत्सरतपसे नमः" आ पदनी नोकरवाळी वीश गणवी. साथीआ विगरे बार बार करवा. ३१ अग्यार अंग तप. एकादश्यां समारभ्य शुक्लायां रुद्रसंख्यया । मासैस्तपो यथाशक्ति पूर्यतेऽङ्गन्तपः स्फुटम् ॥१॥ romanARI GESCORROREGORIES ॥४३॥ Jain Education For Private & Personal use only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवत्सर तपोरत्नमहोदधि ॥४४॥ MAKRECRPORRORS शुक्ल एकादशीथी आरंभीने अग्यार मासनी एकादशीए यथाशक्ति तप करवाथी अंग तप पूर्ण थाय छे. आचारांग विगेरे अगियार अंगनो आ तप होवाथी अंग तप कहेवाय छे, तेमां शुक्ल एकादशीने दिवसे यथाशक्ति एकास', नीबी, आंबिल के उपवास करवो. ए प्रमाणे दरेक शुक्ल एकादशीए अथवा बन्ने पक्षनी एकादशीए करवू. ते अगीयार मासे पूर्ण थाय छे. [बन्ने पक्षनी एकादशी लेवाथी अगियार पखवाडीये तप पूरो धाय छे, एम पण कोई आचार्यनो मत छे.) उद्यापन लघु पंचमीनी पेठे करवु. विशेष एटलो के आ तपमा अग्यार अंग लखावया तथा अगियार अगियार वस्तु ढोकवी. आ तप करवाथी आगमना बोधनी प्राप्ति थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. १ श्री आचारांग सूत्राय नमः २ श्री मुयगडांग पत्राय नमः ३ श्री ठाणांग ४ श्री समचायांग , ५ श्री भगवती ६ श्री ज्ञानाधमकथांग ,, , ७ श्री उपासकदशांग ,,, ८ श्री अंतकृतदशांग , , ९ श्री अनुत्तरोक्वाइ ,, १. श्री प्रश्नव्याकरण , , ११ श्री विपाक - ३२ संवत्सर तप. सांवत्सरं तपः सांवत्सरिके पाक्षिकेऽपि च । चातुर्मासे कृते लोचे क्रियते तदुदीर्यते ॥१॥ ।।४४ JainEducation international For Private Personal Use Only . Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥४५॥ नंदीश्वर तप. एक वर्षमा निश्चे जे तप कराय ते सांवत्सर तप कहेवाय छे, तेमां पाक्षिक आलोचना एटले पंदर दिवसनी आलोचना माटे दरेक चौदशे उपवास करवो ते अर्थात् बार मासनी चोवीश चतुर्दशीना उपवास करवा. तथा चातुर्मासनी आलोचना माटे त्रणे चोमासीए एटले कार्तिक चोमासी, फागण चोमासी तथा अपाड चोमासीए चये उपवास करवाथी छ उपवास थाय. टू तथा संवत्सरी आलोचना माटे त्रण उपवास संवत्सरीना करवा. ए सर्व मळीने तेत्रीश उपवास करवा. आ तप करवाथी वर्षमा करेलां पापनो क्षय थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ( बीजो वर्षी तप जुदी जातनो छे. जुओ तप नंबर १३७.) "संवत्सरतपसे नमः" गरj नोकारवाळी वीश. साथीया विगेरे बार बार करवा. ३३ नंदीश्वर तप. नंदीश्वरतपो दीपोत्सवदर्शाउदीरितः । सप्त वर्षाणि वर्ष वा क्रियते च तदर्चनैः ॥१॥ ___ नंदीश्वरनो तप दीवाळीनी अमावास्याथी शरु करवानो कहेलो छे. ते सात वर्षे अथवा एक वर्षे ते( नंदीश्वर )नी पूजा* वडे पूर्ण कराय छे. ___नंदीश्वरद्वीपमा रहेला चैत्योनी आराधना माटे आ तप कहेलो छे, तेमां दीवाळीनी अमावास्याने रोज पट्ट उपर नंदीश्वरनुं चित्र काढी तेनी पूजा करवी. ते दिवसे शक्ति प्रमाणे उपवास. आंबिल, एकासणुं के निवि करवी. पछी दरेक अमावा. स्याए तेज तप करचो. ए प्रमाणे सात वर्ष करवो, अथवा एक वर्ष सुधी करवो. उद्यापनमा मोटी स्नात्रविधिए जिनपूजा JainEducationind For Private Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुंडरिक तपोरन- महोदधि तप. ॥gan ROPRABHASKRISH करीने सुवर्णना करावेला नंदीश्वरनी पासे बावन बावन जातिना मोदक, फळ, पुष्प, पक्वान्न विगेरे ढोकवा. साधुपूजा, संघकरीने सुवणना कर पूजा, संघवात्सल्य विगेरे कर. आ तप करवाथी आठ भवे मोक्ष प्राप्त थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. बीजी रीत. उपर जे सात वर्ष सुधी तप करवान लख्युं छे, तेमां मतांतर आ प्रमाणे छे-दीवाळीनी अमावास्याए शरु करीन तर अमावास्या सुधी तप करवो, पछी फरीथी दीवाळीनी अमावास्याए शरु करी तेर अमावास्याए पूरो करवो. ए प्रमाणे चार वार करवो. आ प्रमाणे करवाथी पण सात वर्षे पूरो थाय छे. उपवास ५२ थाय छे. एक वर्षना संबंधमां पण मतांतर आ प्रमाणे छे-दीवाळीनी अमावास्याए उट करवो. पछी दरेक पुनम तथा अमावास्याए छठ करवोए रीते तेर महिने आ तप पूर्ण थाय छे. एटले २६ छठना ५२ उपवास थाय छे. "नंदीश्वरद्वीपतपसे नमः " नोकारवाळी वीश, साथीआ विगेरे बार बार करवा. ३४ पुंडरीक तप. (चैत्री पुनम तप) __ सप्त वर्षाणि वर्ष वा पूर्णिमायां यथावलम् । तपः प्रकुर्वतां पुंडरीकाख्यं तप उच्यते ॥१॥ पुंडरीक एटले श्री ऋषभदेवना पहेला गणधरनी आराधना माटे आ तप छे, तेथी पुंडरीक तप कहेवाय छे, ते गणधर चैत्री पूर्णिमाने रोज सिद्धाचल पर सिद्धिपद पाम्या छे तेथी ते दिवसे पुंडरीकस्वामीनी प्रतिमानी पूजा करवी, तथा शक्ति प्रमाणे उपवास एकासणादिक तप करवो. कसुंबी रंगवाळा वखथी पूजा करवी, कसुंची रंगनी पीळ करवी, नेत्रांजन कर, ॥४६॥ Jnin Education Intern ww.jainelibrary.org Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपारत्न महोदधि ॥४७॥ नव KOREAKE SHIKARI हरिद्रा रागे करीने पण पूजा करवी. त्यारपछी दरेक पूर्णिमाए ते प्रमाणे तप तथा पूजा करवी. ए प्रमाणे सात वर्ष अथवा एक वर्ष सुधी कर. अथवा बार वर्षनी बार चैत्री पूर्णिमाज करवी. (पंदर वरस करवानुं पण बार मासिक पर्व कथामां कचं हे.) उद्यापनमा स्त्रीए नणंदनी दीकरीने तथा पुरुषे बेननी दीकरीने घणां मांडानुं भोजन करावी हरिद्रा राग, कसंबी वखनो जोटो, तांबूल, कंकण, नूपूर विगेरे आप. साधु साध्वीओने रजोहरण, मुखवत्रिका, वस्त्र, पात्र विगेरेनु दान देवं. तथा धणां मांडा वहोराववा. तेमज श्रावकना सात घरे घणा मांडा देवा. आ तप करवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. आ यति तथा | श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " श्रीपुंडरीकगणधराय नमः" नोकारवाळी वीश, साथीया विगरे १५० दोढसो करवा. ___ चैत्री पुनम तपनो विधि. पोताने स्थाने रहीने जेने तप करवो होय तेने माटे विधि कहे छे-मुख्यताथी तो श्री पुंडरीक भगवानना ज प्रतिमाजी होवा जोइए. तेना अभावे श्री गौतमस्वामीना, तेना अभावे श्री ऋषभदेवजीना प्रतिमाजी, तेना अभावे जे प्रभुजीनं चिंच होय तेनी पासे विधि करवो. छेवट स्थापनाचार्य पासे पण करवो. १५० प्रदक्षिणा देवी. १५० खमासमणा देवा. १५० साथीआ करवा. १५० फूलनी माळाओ चडाववी ने १५० लोगस्सनो काउसम्ग करवो. जो एक साथे न थई शके तो १०२०३०॥ ४०॥ अने ५० लोगस्सनो जुदो जुदो करीने १५० नो पूरो करवो. ३५ माणिक्य प्रस्तारिका तप. (माणिक्य पावडी) PORGISHRSHASTREETIRECIRRER Vin४७॥ JainEducation For Private & Personal use only [w.jainelibrary.org Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि माणिक्य प्रस्तारिक तप. ॥४८॥ UCAREOGRAMMERCISESEX माणिक्यप्रस्तारी चाश्विन शुक्लस्य पक्षसंयोगे। आरभ्यकादशिकां राकां यावद्विदध्याच्च । १॥ माणिक्यनी प्रस्तारिकानी जेम आ तपनो विस्तार होवाथी माणिक्य प्रस्तारिका कहेवाय छे, ते आश्विन शुक्ल एकादशीए आरंभी पूर्णिमा सुधी करवानो छे. एटले के एकादशीए उपवास, द्वादशीए एकासj, त्रयोदशीए नीवी, चतुर्दशीए आंबिल अने पूर्णिमाए बेसणुं करवू. अथवा एकादशीए उपवास, द्वादशीए आंबिल, त्रयोदशीए नीवी, चतुर्दशीए एकास', तथा पूर्णिमाए बेसणुं ए प्रमाणे कर. तथा ते पांच दिवसोमा प्रभाते सूर्योदय पहेला स्नानपूर्वक सारा भाग्यवाळी सुवासिनी स्त्रीनुं मुखमंडन तथा उद्वर्तन कर. पछी पोते पण पवित्र सुंदर वस्त्रो अथवा कसुंची वस्त्रनुं युगल पहेरीने तथा संपत्ति प्रमाणे अलंकारो पहेरीने, अखंड अक्षतनी अंजळी भरीने ते उपर एक जातिफळ ( जायफळ) मृकी मंगलोच्चारपूर्वक चैत्यने प्रदक्षिणा करीने ते अंजली जिनेश्वर पासे मूकवी. पछी बीजी प्रदक्षिणामां श्रीफळ मूकबुं. त्रीजी प्रदक्षिणामां डीट तथा पर्ण सहित बीजोरं अक्षतनी अंजळी उपर मूकबुं तथा चोथी प्रदक्षिणामा अक्षतनी अंजली उपर सोपारी मृकी प्रदक्षिणा करीने अंजळी देव पासे मुकवी. पछी सात धान्य, लवण, एकसो आठ हाथ वस्त्र, एकसो आठ राती चणोठी, तथा कसंची वस्त्र देव पासे मूक. आ प्रमाणे चार वर्ष सुधी करवं. उद्यापनने विषे एकसो आठ पूर्ण कुंभ दीवा सहित देव पासे ढोकवा. तथा एक रुपानी दीवो सुवर्णनी वाट सहित ढोकवो. संघपूजा, संघवात्सल्य करवं, आ तप करवाथी निर्मळ गुणनी प्राप्ति थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवा लायक आगाढ तप छे. "माणिक्यप्रस्तारिकातपसे नमः" नोकरवाळी वीश. साधीआ विगेरे बार बार करवा. RSIMMUSIC ॥४८॥ For Private Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pr पयोत्तर तपोरत्नमहोदधि ॥४९॥ तप. CALCALIBRARole ३६ पद्मोत्तर तप. (कमळनी ओळी) प्रत्येकं नवपद्मष्वष्टाष्ट प्रत्येकसंख्यया । उपवासा मीलिताः स्यु सप्ततिरनुत्तराः॥१॥ पंझ एटले कमळनी जेम लक्ष्मीवडे उत्कृष्ट होवाथी आ तप पद्मोत्तर नामे कहेवाय छे. तेमां नव पोने विषे दरेक पलमां आठ आठ पांखडी होवाथी ते दरेकनो एकांतर एकासणाना पारणावाको एक एक उपवास करवो. एवी रीते नव वार करवू. तेथी आ तप बोतेर उपवास अने बोतेर एकासणाए करीने पूर्ण थाय छे. आ तप शुक्लपक्षनी नवमीने रोज शरु करवो. उद्या. पनमा मोटी स्नात्रविधिए जिनपूजा करवी. आठ पांखडीवाळा सुवर्णना नव कमळ करावी प्रभु पासे ढोकवा. साधुने अन्नादिकनुं दान देवू. संघपूजा, संघवात्सल्य करवू. आ तप करवाथी मोटी लक्ष्मी प्राप्त थाय छे. आ यति तथा भावाने करवानो आगाढ तप छे. "पद्मोत्तरतपसे नमः" अथवा "नमो अरिहंताणं" ए पदनी नोकारवाळी वीश गणवी.तथा साथीया विगेरे बार बार करवा ३७ समवसरण तप. श्रावणमथ भाद्रपदं कृष्णप्रतिपदमिहादितां नीत्वा । षोडश दिनानि कार्य वर्षचतुष्कं स्वशक्त्यातपः॥१॥ समवसरणनी आराधना माटे आ तप छे. तेमां गुजराती श्रावणवद एकमने दिवसे आरंभीने पोतानी शक्ति प्रमाणे वेसणुं अथवा एकास' विगेरे करवू. ए रीते सोळ दिवस करवू. हमेशां समवसरणनी पूजा करवी, आ प्रमाणे चार वर्ष कर. उद्या. पने ( दर वरसे) समवसरणनी मोटी स्नात्रीवधिए पूजा करी छ विगइनी वस्तुओना थाळ ( पकवान फळ विगेरे ) ढोकवा. CAREERSTATURES ४९॥ Jain Education Internations For Private & Personal use only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपारत्नमहोदधि R-KAREKASHASTRE है संघवात्सल्य, संघपूजा करवी, आ तपनुं फळ साक्षत् तीर्थकरतुं दर्शन थाय ते छे. आ साघु तथा श्रावकने करवानो त समवसरण आगाढ तप छे. तप. प्रवचनसारोद्धार विगेरेमां एवं वा छ के-पहेले बरसे सोळ एकासणां, बीजे परसे सोळ नवी, बीजे बरसे सोळ उपवास करवा,* ____ जो लागट उपवास न करी शके तो चार चार उपवासने आंतरे पारणुं करवू एम जैन प्रबोधमा कयुं छे, पण चारे वरस आ रीतेज उपवास करवानुं लखे छे, आ तपने मोटुं समवसरण पण कहे छे. जो लागट उपवास न करी शके तेने माटे बीजी रीत ए छ के-पहेले दिवसे एकासगुं, बीजे दिवसे नीवी, त्रीजे दिवसे आंबिल, चौथे दिवसे उपवास. ए एक ओळी थई. एवी चार ओळी करवाथी सोळ दिवस थाय. ए रीते पण चार वरस 12 कर. (प्रत नं.अ) समवसरण तप. (वीजुं) आ तपने नानुं समवसरण पण कहे छे. आतप श्रावण वद चोथथी आरंभ करी भादरवा शुदी चोथने दिवसे एटले | सोळ दिवसे पूर्ण करवू. तेमां (एकासणादिक) यथाशक्ति तप करवो. उद्यापन विगरे उपर प्रमाणे. (आचारदिनकर.) चार श्रेणीना चार प्रकारे गरणां विगेरे नीचे प्रमाणे, * प्रत नं. अमां पण आ रीत छे, RECRECIENCEKACIRECASHREEREY SONG R iww.jainelibrary.org Jain Education For Private & Personal use only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ५१ ॥ Jain Education in श्रीभावाजिनाय नमः ... सा०१० ख०१० लो०१० नो० २० श्रीश्रुतसमवसरण जिननाथाय नमः सा०९ख०९ लो०९ नो०२० श्रीमनः पर्यवते नमः १२ १२ १२ ८ ८ ८ २० २० श्री केवलिजिनाय नमः समवसरण तप. एक्कासणाइएहिं भवय चउक्कगग्मि सोलसहिं । होइ समोसरणतवो, तप्पूआ पुब्वविहिएहिं ॥ १ ॥ ( प्रवचनसारोद्धार गाथा ५६५ ) .... आतप एकारुणादिके करीने एटले चार एकासणां, चार नीवी, चार आंबिल तथा चार उपवास करवाथी थाय छे. अर्थात् पहेले दिवसे एकारुणुं, बीजे दिवसे नीवी, श्रीजे दिवसे आंबिल अने चोथे दिवसे उपवास, ए प्रथम श्रेणि थई. एवी चार श्रेणि ए एटले सोळ दिवसे आ तप पूरो थाय छे. आ तप श्रावण कृष्ण चतुर्थीथी आरंभी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीए एटले संवत्सरीने दिवसे पूर्ण करतो. ए रीते चार वर्ष सुधी कर. अथवा श्रावण कृष्ण चतुर्थीथी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी सुधी सोळे उपवास करवा, अथवा श्रावण कृष्ण प्रतिपद्यी आरंभ करवो तेमां प्रथम चार उपवास करी पारणे एकासनुं अथवा बेस कर. एवी रीते चार श्रेणीए करी संवत्सरीने दिवसे पूर्ण करे. ए रीते चार वर्ष करवं. हंमेशां समवसरणनी पूजा करवी. उद्यापने जिन पूजापूर्वक थाळ ४ नैवेद्य भरीने मूकवा.. ( समवसरणनो तप पूरो थया पछी पांचमे वरसे सिंहासन तप अवश्य करवो जोइए एवी प्रवृत्ति छे. ते तप माटे नंबर १४६ वा तप जुओ. समवसरण तपनी साथे साधे पण सिंहासन तप थई शके छे. आ तप एक वर्षमां करवो होय : समवसरण तप. ॥ ५१ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BRECI श्रीवीर गणधर तप. सपोरत्न- तो वर्षे वर्षे ओळी नहीं करता एक वर्षमा ज बधी ओळी करवाथी पण थाय छे.) महोदधि ३८ श्रीवीर गणधर तप. ॥५२॥ चरमजिनस्यैकादशशिष्यगणधारिणस्तदर्थ च। प्रत्येकमनशनान्यप्याचाम्लान्यय विदध्याच ॥१॥ गणधरनी आराधना माटे जे तप ते गणधर तप कहेवाय छे. तेमां श्री वर्धमानस्वामीना अगियार गणधरो छे. तेमनी आराधना माटे दरेक गणधरने आश्रीने एकांतर अगीयार अगीयार उपवास अथवा अगीयार अगीयार एकांतर आंबिल करवा. (मतांतरे दरेक गणधर आश्रीने एक एक उपवास अथवा आंबिल करवानुं पण कयु छ.) उद्यापनमा अगीयार अगीयार चारित्रना उपकरण साधुने आपवा. गणधरनी मूर्तिनी पूजा करत्री. संघ वात्सल्य संघपूजा करवी. आतपर्नु फळ केवळज्ञाननी प्राप्ति थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरगुं विगरे नीचे प्रमाणे (जे गणधरनो तप चालतो होय ते नामर्नु गरणुं गणवू.) ___उपरनो आ तप वैशाख शुदि ११ थी शरु करवामां आवे छे. ते दिवसे श्री गणधरना देव बदि. आ तप ११ छठ करीने पण कराय छे. साख लो० नो १ श्री इन्द्रभृति गणधराय नमः ११ ११ ११ २० ७ श्री मौर्य पुत्र गणधराय नमः ११ ११ ११ २० 5२ श्री अग्निभूति गणधराय नमः ११११ ११ २० ८ श्री अकंपित गणधराय नमः ११११ ११ २० BHASHASHRSHIFAIRSACRECENGA RCTERecentUCRECASTE सा० ख० लो० नो. ॥५२॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशोकवृक्ष तुप, सपोरत्न- श्री वायुभूति गणधराय नमः ११११ ११ २० ९ श्री अचलभ्रातृ गमधराय नमः ११ ११ ११ २० महोदधि | ४ श्री व्यक्तभूति गणधराय नमः ११ ११ ११ २० १० श्री मेतार्य गणधराय नमः ११ ११ ११ २० ॥५३॥ ५ श्री सुधर्मस्वामि गणधराय नमः ११११ ११ २० ११ श्री प्रभास गणधराय नमः ११ ११ ११ २० ४६ श्री मंडित गणधराय नमः ११ ११ ११ २० तप नंबर ३८ नी बीजी रीत. गणधर एकादशी ११ वर्ष सुधी करवी. प्रथम बैशाक शुदी ११ ने दिवसे उपवास करवो. "श्री इन्द्रभूतिसर्वज्ञाय नमः" ॐाए पदनी वीश नवकारवाळी गणवी. बीज वर्षे बैशाक शुदी ११ ने दिवसे उपवास करी "श्री अग्निभूतिसर्वज्ञाय नमः" ए पदनी वीश नवकारवाळी गणवी. ए प्रमाण अगीयार वर्षे अगीयार गणधरनी आराधना करवी. ३९ अशोकवृक्ष तप. आश्विनशुक्ल प्रतिपदमारभ्य तिांश्च पंच निजशक्त्या। कुर्यात्तपसा सहिताः पंच समा इदमशोकतपः।। ___अशोक वृक्षनी जेम आ तप मंगलकारी होवाथी अशोक तप कहेवाय छे. तेमां आश्विन शुक्ल पक्षनी एकमने दिवसे आरंभीने शुद पांचम सुधी एटले पांच दिवस सुधी शक्ति प्रमाणे एकासणादिक तप करतो. हमेशां अशोक वृक्ष सहित श्री जिनेश्वरनी पूजा करवी. आ प्रमाणे पांच वर्ष कर. (जैन प्रबोधमां तथा जैन धर्मसिंधुमां एवं लख्युं छे के-आसो मासमा पंदर उपवास अने पंदर एकासणां एकांतरे करवा. आ रीते करीए तो एकज वर्षे आ तप पूर्ण थाय छे. ) उद्यापनमा अशोक mor REGISTEGORKSHOCIES SRUNGARRENOGRES Jain Education interna For Private & Personal use only maw.jainelibrary.org Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपारत्नमहोदधि ॥५४॥ JECE A ॐRA वृक्ष सहित नवीन जिनपिंच करावी विधि प्रमाणे प्रतिष्ठा करावी. छ ऋतुना पुष्प, फळ, सोपारी विगेरेथी पूजा करवी. यथा- एकसो शक्ति फळ, मोदक, नैवेद्य ढोकवा. आ तपनुं फळ सर्व सुखनी प्राप्ति छे. आ माधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ते सीत्तर जिन "अशोकवृक्षतपसे नमः"नोकारवाळी वीश. साथीया विगेरे बार बार करवा. ४० एकसो सीत्तेर जिन तप (विजय ओळी तप सप्ततिशतजिनानामुद्दिश्यकै कभक्तंच। कुर्वाणानामुद्यापनात्तपः पर्यते सम्यक् ॥१॥ एकसो सीत्तेर जिनेश्वरोनी आराधना माटे आ तप छे. तेमां एकसो सीत्तेर तीर्थकरोने आश्रीने आंतरा रहित एक एक एकासगुं करवू एटले एकसो सीत्तेर लगोलग एकासणां करवा. अथवा तो वीश एकासणां लगोलग करीने पछी एक पार|| कर, ए प्रमाणे आठ वार करवाथी एकसो साठ एकासणां थाय. ते पछी १० एकासणां करवां एटले १७० एकासणा ने नव पारणां थाय छे. उथवा एकांतरा एक सो ने सीतेर उपवास करवानुं पण केटलाकना मतमा छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्रविधिए जिनपूजा करीने एकसो सीत्तेर पक्वान्न, फळ, पुष्प विगेरे ढोकवा. संघपूजा, संघवात्सल्य करवू. आ तपन फळ आर्यक्षेत्रमां जन्म थाय ते छे. जे दिवसे जे तीर्थकरनो तप चालतो होय, ते दिवसे ते तीर्थकरना नामर्नु गरणुं गण. साथीया, खमासमणा अने काउस्सग्ग बार बार समजवा. नोकारवाळी वीश वीश गणवी. गरj नीचे प्रमाणे गण, श्री जंबूद्वीपना प्रथम महाविदेहे जिननाम.. १ श्री जयदेव सर्वज्ञाय नमः । २ श्री कर्णभद्र सर्वज्ञाय नमः। ३ श्री लक्ष्मीपति सर्व०। ४ श्री अनन्तहर्ष सर्व। ॥५४॥ GARATHORE For Private Jain Education Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ५५ ॥ Jain Education ५ श्री गंगाधर स० । ६ श्री विशालचंद्र स० । ७ श्री प्रियंकर स० । ८ श्री अमरादित्य स० । ९ श्री कृष्णनाथ सर्व । १० श्री गुणगुप्त स० । ११ श्री पद्मनाभ स० । १ श्री वीरचंद्र सर्वज्ञाय नमः २ श्री वत्ससेन स० । ३ श्री नीलकान्ति स० । ४ श्री मुंजकेशि स० । ५ श्री रुक्मिक स० । १२ श्री जलघर स० । १३ श्री युगादित्य सु० / १४ श्री वरदत्त स० । १५ श्री चंद्रकेतु सः । १६ श्री महाकाय स० । १७ श्री अमरकेतु स० । १८ श्री अरण्यवास स | ( धातकी खंडना प्रथम ६ श्री क्षेमंकर स० । ७ श्री मृगांकनाथ स० । ८ श्री मुनिमूर्ति स० । ९ श्री विमलनाथ स० । १० श्री आगमिक सर्व ० । १९ श्री हरिहर स० । २० श्री रामेंद्र स० । २१ श्री शांतिदेव स ० । २२ श्री अनन्तकृत्स स० । २३ श्री गजेन्द्र स० । २४ श्री सागरचंद्र स० । २५ श्री लक्ष्मीचंद्र स० । महाविदेहे जिननाम. ) ११ श्री निष्पापनाथ स० । १२ श्री वसुंधराधिप स० । १३ श्री मल्लिनाथ स० । १४ श्री वनदेव स० । १५ श्री बलभृत्स० । : २६ श्री महेश्वर स० । २७ श्री ऋषभदेव सः । २८ श्री सौम्यकांति स० । २९ श्री नेमिप्रभ स० । ३० श्री अजितभद्र स० । ३१ श्री महीधर स० । ३२ श्री राजेश्वर स० । १६ श्री अमृतवाहन स० । १७ श्री पूर्णभद्र स० । १८ भी रेखांकित स० । १९ श्री कल्पशाख स० । २० श्री नलिनीदत्त स० । एकसो सीत्तेर जिन तप. ॥ ५५ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -सपोरत्न महोदधि ॥ ५६ ॥ २१ श्री विद्यापति स० । २२ श्री सुपार्श्वनाथ स० । २३ श्री भानुनाथ स० । २४ श्री प्रभंजन स० । २५ श्री विशिष्टानाथ | २६ श्री जलप्रभ स० । ( धातकी खंडना द्वितीय १ श्री धर्मदत्त सर्वज्ञाय नमः । ९ श्री चन्द्रप्रभ स० । २ भूमिपति स० । 12 १० भूमिपाल स० । ३ " मरुदत्त स० । " सुमित्र स० । ५ श्रीषेणनाथ स० । ६ श्री प्रभानन्द स० । ७ श्री पद्माकर स० । ८ श्री महाघोष स० । 11 ११, १२, १३ श्री तीर्थभूति स० । १४ ललितांग स० । अमरचंद्र स० । समाधिनाथ स० | १५ १६ सुमतिषेण स० । अतिच्यु ( श्रुत स० । २० (अच्युत ) 11 15 २७ श्री मुनिचंद्र स० । ( महाभामस०) ३० श्री भूतानंद स० । २८ श्री ऋषिपाल स० । ३१ श्री महावीर स० । २९ श्री कुडंगदत्त स० । ३२ श्री तीर्थेश्वर स० । महाविदेहे जिननाम. ) " १७ श्री मुनिचंद्र स० । १८ १९ " "" जगदीश्वर सर्वज्ञाय नमः | २१ श्री देवेन्द्रनाथ सर्व ० । २९ २२ " महेंद्रनाथ स० । शशांक स० । २५ श्री कपिलनाथ स० । २६, प्रभाकर स० । २७ जिनदीदिक्त स० । २८ सकलनाथ स० । " गुणनाथ स । ३० २३ 11 उद्योतनाथ स० । ३१ २९, नारायण स० । ३२ : 11 "" श्री शिलारनाथ स० । वज्रधर स० । 19 , सहस्रार (भ) स० । अशोकाख्य स० । 11 एकसो सीत्तर जिब तप ॥ ५६ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकसो तपोरत्नमहोदधि लसीचर जिन तप. PECRkRECRUKSSS om so 5 w av (श्री पुष्कराः प्रथम महाविदेहे जिननाम.) १ श्री मेघवाहन सर्वज्ञाय नमः। ९ श्री महामहेंद्र स०। १७ श्री सिद्धार्थनाथ स०। २५ श्री दृढरथ स०।। २ , जीवरक्षक सः। १०, अमरभूति स०। १८, सफलनाथ स. । २६, महायशा स.। ३ , महापुरुष स०। ११ , कुमारचंद्र स०। १९, विजयदेव स०। २७ ,, उष्मांक स०। ,, पापहर म०। , वारिषेण स । २० ,, नरसिंह स०। , प्रद्युम्ननाथ स.। ,, मृगांकनाथ स.। , रमणनाथ स.। २१ , शतानंद। " महातेज स०। ६ ,, सूरसिंह स०। , स्वयंभू स०। २२ ,, वृंदारक स । ३० ,, पुष्पकेतु स०। ७ ,, जगत्पूज्य स.। १५, अचलनाथ स.। २३, चंद्रातप स. ३१, कामदेव स। ८, सुमतिनाथ स.। १६ , मकरकेतु स.। २४ , चित्र(चंद्र )गुप्त सः । ३२ ,, समरकेतु स.। (पुष्कराः द्वितीय महाविदेहे जिननाम.) १ श्री प्रसन्नचंद्र सर्वज्ञाय नमः । ४ श्री सुवर्णबाहु स०। ७ श्री विमलचंद्र स०। १० श्री वज्रसेन सः । २, महासेन स. ५, कुरुचंद्र (कुरुविंद) स । ८, यशोधर स.। ११, विमलबोध स०। ३, वज्रनाथ स०। ६,, वनवीर्य सः । ९, महाबल स.। १२ ,, भीमनाथ स.। FORSCRECCAN CSCIECRECRUCIES For Private & Personal use only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ५८ ॥ Jain Education in १८ श्री प्रतिमाधर स । २३ श्री ब्रह्मभूत (ति) स० । २८ श्री महीधर स । १३ श्री मेरुप्रभ स० । १४, भद्रगुप्त स० । १९, अतिश्रय स० । (अजितनाथ स० ) । २४, हित ( दिन) कर स० । २९, कृत ब्रह्म स० । (कृतवर्म स० ) १५,, सुदृढसिंह स० । २०, कनककेतु स० । १६,, सुव्रत स० । २१, अजितवीर्य स० । १७, हरिचंद्र स० । २२,, फल्गुमित्र स० । १ श्री जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे - श्री अजितनाथ सर्वज्ञाय नमः । २ धातकीखंड प्रथम भरत क्षेत्र - श्री सिद्धांतनाथ सर्व • । " ३ ● धातकीखंडे द्वितीय भरतक्षेत्रे - श्री करणनाथ स० । ४ पुष्करार्धे प्रथम भरतक्षेत्रे - श्री प्रभासनाथ स० । . ३०,, महेंद्र स० । ३१, वर्धमान स० । ३२,, सुरेंद्रदत्त स० । २५, वरुणदत्त स० । २६,, यशःकीर्ति स० २७, नागेंद्र स० । ६ श्री जंबूद्वीपे ऐरवतक्षेत्रे - श्री चंद्रनाथ स० । ७ धातकीखंडे प्रथम ऐरवतक्षेत्रे - श्री जयनाथ स० । धातकीखंडे द्वितीयैरवतक्षेत्रे - श्री पुष्पदन्त स० । ९, पुष्करार्धे प्रथमैरवतक्षेत्रे - श्री अग्राहिक सर्व० । " ८ १०, पुष्करार्धे द्वितीयैरवतक्षेत्रे - बलि (ल) भद्र सर्वज्ञाय नमः । आ तप जैन प्रबोध विगेरेमां पण छे. 22 ५ " पुष्करार्धे द्वितीय भरतक्षेत्रे - श्री प्रभावकनाथ स० । ४१ नवकार तप. नमस्कार तपश्चाष्टषष्टिसंख्यैकभक्तकैः । विधीयते च तत्पादसंख्यायास्तु प्रमाणतः ॥ १ ॥ नवकार मंत्री आराधना माटे जे तप, ते नवकार तप कहेवाय छे. तेमां पहला पदमां सात वर्ण छे, तेथी तेना सात : नवकार तप. 1146 11 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवकार तप. तपोरत्नमहोदधि ॥ ५९॥ SARASTRORES ARCHROO MASHASHRECE उपवास अथवा सात एकासणां करवा, बीजा पदमां पांच अक्षर होवाथी पांच उपवास अथवा पांच एकासणां करवा. त्रीजा पदना सात, चोथा पदना सात, पांचमाना नव तथा छठा, सातमा, आठमाना आठ आठ अने नवमाना नव उपवास अथवा एकासणां करवा. आ प्रमाणे करवाथी अडसठ उपवास अथवा एकासणां थाय छे. आ उपवास अथवा एकासणां लगोलग करवा. अथवा शक्ति न होय तो संपदाए संपदाए पारणुं करीने करवा. (संपदा उपर प्रमाणे जाणवी. पण आठमा अने नवमा पदनी संपदा एक ज गणवी.) उपवास करे तो एकांतरा पण करे.' तेमां पारणे बेसणुं तेविहारुं करवं. उद्यापनमा रुपाना पतरा उपर सुवणेनी लेखणवती पंचपरमेष्ठिनो मंत्र' लखीन ज्ञानपूजा करवी. अडसठ अडसठ फळ, पुष्प, रुपानाणुं पक्वान्न, विगेरे ढोकवा. गुरुपूजा, संघपूजा, संघवात्सल्य करवू. पोतपोतानी संपदार्नु गर| गण, साथीया विगेरे नीचे प्रमाणे. सा. ख. लो० नो. सा• ख. लो० नो. पहेली संपदाए नमो अरिहंताणं ७ ७ ७ २० चीजी संपदाए नमो सिद्धाणं ५ ५ ५ २० त्रीजी, नमो आयरियाणं ७ ७ ७ २० चोथी, नमो उवज्झायाणं ७ ७ ७ २० पांचमी, नमो लोए सव्वसाहूर्ण ९ ९ ९ २० छठी, एसो पंच नमुकारो ८ ८ ८२० १ आठमा अने नवमा पदे सात छठ तथा एक अठ्ठम करवा एवो संप्रदाय छे.. २ बीजी प्रतिओमां कस्तूरीथी लखवान कहेलुं छे. .. ARKARI aw.jainelibrary.org Jain Education intamand For Private & Personal use only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौद पूर्व तपोरत्न- महोदधि SAXCXCAREER सातमी ,, सव्वपावप्पणासणो ८ ८ ८ २० आठमी ,, मंगलाणं च सव्वेसिं पढम १७ १७ १७ २० - हवइ मंगलं आ तपर्नु फळ सर्व सुखनी प्राप्ति थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो अनागाढ तप छे. नवकार पदनो तप सेनप्रश्नमां आ प्रमाणे लखेल छे. प्रथम पदना सात अक्षर माटे लागठ सात उपवास करवा. बीजाना पांच अक्षर माटे पांच उपवास लागठ करवा. एवी रीते सात पद सुधी दरेक संपदाना अक्षरो प्रमाणे उपवासो लागठ करे अने आठमी नवमी संपदाए शक्ति होय तो १७ उपवास एकी साथे करे ने शक्ति न होय तो पहेला आठ करी पारणुं करी फरी नव उपवास करे. दरेक पदनुं गरj एक एक लाख गणे अने जो आठमी नवमी भेगी करे [ १७ उपवास लागठ करे ] तो एबे पदनो भेगो बे लाख जाप करे. प्रथम पदनो तप करे त्यारे सात दिन सुधी “नमो अरिहंताणं" नो एक लाख जाप करे, एवी रीते जे जे पदनो तप करे ते ते पदनो जाप एक लाख करे अने जो शक्ति न होय तो दरेक पदनुं वे हजार गरगुं गणे. साधीया खमासगण विगेरे पूर्वनी पेठे जाणवां. १ चौद पूर्व तप. शुक्लपक्षे तप: कार्य चतुर्दश चतुर्दशीः । चतुर्दशानां पूर्वाणां तपस्तेन समाप्यते ॥ १ ॥ RECRUSSSSSS in Education International For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। चौद पूर्व R तपोरत्न- चौद पूर्वनी आराधना माटे जे तप, ते चौद पूर्व तप कहेवाय छे. तेमां शुभ मुहूर्ते शुद चौदशने रोज शरू करी चौद महोदधि मासनी शुद चौदशे चौदशे शक्ति प्रमाणे उपवास अथवा एकासणादिक तप करवो. अथवा चने चौदश लईने सात मासे तप ॥६१॥ | पूरो करवो. (आ चतुर्दशी तप पण कहेवाय छे.) अथवा शुद चौदशने दिवसे आरंभीने लगोलग चौद दिवस सुधी एकासणां है करी पूरो करवो. प्रथम आगमनी स्थापना करवी. वासक्षेपथी तेनी पूजा करवी. ज्ञान पासे नीचे बताब्या प्रमाणे नित्य साथीया करवा. नित्य चैत्यवंदन करवू, ज्ञाननी यथाशक्ति रूपानाणे पूजा करवी. ज्ञाननी पूजा भणाववी. स्तवनने स्थाने ज्ञाननी पूजा कहेवी. (छेल्ले दिवसे वरघोडो चडावबो.) | उद्यापन ज्ञानपंचमीनी पेठे करबु. (जुओ नंबर ४७ अथवा ४६) विशेष एटलो के १४ पुस्तको लखावीने मूकवां. तथा चौद चौद पदार्थो-उपकरणो लेवां. गुरुपूजा, संघपूजा, संघवात्सल्य विगेरे करवू. आ तपर्नु फळ सम्यक् श्रुतज्ञाननी | प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे, गुणणुं विगेरे नीचे प्रमाणे. जे पूर्वनो तप चालतो होय ते पूर्वनुं गण. चौद पूर्वना नाम. सा. ख. लो. नो. सा० ख० लो० नो. | १ श्री उत्पादपूर्वाय नमः १४ १४ १४ २० ८ कर्मप्रवाद पूर्वाय नमः ३० ३० ३० २. | २ श्री आग्रायणी पूर्वाय नम:२६ २६ २६ २० ९ प्रत्याख्यानप्रवाद पूर्वाय नमः २. २० २० २. PROCESSORISAMMEROSSES ECEBOB Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CR तपोरत्नमहोदधि ॥६ ॥ RRBACHAR ३ वीर्यप्रवाद पूर्वाय नमः १६ १६ १६ २० १० विद्याप्रवाद पूर्वाय नमः १५ १५ १५ २० ४ अस्तिप्रवाद पूर्वाय नमः २८ २८ २८ २० ११ कल्याणप्रवाद पूर्वाय नमः १२ १२ १२ ५ ज्ञानप्रवाद पूर्वाय नमः १२ १२ १२ २०.१२ प्राणावाय पूर्वाय नमः १३ १३ १३ ६ सत्यप्रवाद पूर्वाय नमः २ २ २ २०१३ क्रियाविशाल पूर्वाय नमः ३० ३० ३० ७ आत्मप्रवाद पूर्वाय नमः १६ १६ १६ २० २४ लोकबिंदुसार पूर्वाय नमः । २५ २५ २५ २० चतुर्दशी तप... शुक्ल पक्षनी चउदशने दिवसे जे तप करवानो होय ते तपने चतुर्दशी तप कहीए. ते तपमां चौद शुक्ल पक्षनी चतुर्दशीओए एकासणादि यथाशक्तिए करवामां आवे छे. उद्यापनमा चौद जातिना धान्यो तथा चौद फलादि ज्ञान पासे वा प्रभु पासे धराय छे. शुक्ल अग्यारश ११ मास सुधी करवी अने शुक्ल चौदश १४ मास उपवासथी करवी. ते बंने तपमा मौनपणाथी रहे. ते तपने श्रुतदेवी तप पण करे छे. एम एक प्राचीन प्रतिमां लखेलु छे... ४३ एकावळी तप. एकदिव्युपवासैः कालिके द्वे तथा च दाडिमके। वसुसंख्यैश्चतुर्थः श्रेणी कनकावलीवञ्च ॥ १ ।। चतुस्त्रिंशचतुर्थश्च पूर्यते तरलः पुनः । REARRERIKA ॥१२॥ For Private Personal use only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकावळी तपोरत्नमहोदधि RSSICALFASHIKRECIA समाप्तिमेति साधुनामेवमेकावली तपः ॥ २ ॥ एक आवळीनी जेम उपवास करवाथी एकावळी तप थाय छे, तेमां प्रथम एक उपवास पछी पार', पछी बे उपवास उपर पारj, पछी त्रण उपवास उपर पारj, एम करवाथी प्रथम काहलिका थाय, छे. पछी एकांतर पारणावाळा आठ उपवास करवा, तेणे करीने काहलिकानी नीचे दाडिम पुष्प उत्पन्न थाय छे. त्यारपछी एक उपवास उपर एक पारj, पछी बे उपवास उपर एक पारगुं, पछी त्रण उपवास उपर एक पारणु, ए रीते चडतां चडतां सोळ उपवास उपर एक पारणुं करवाथी हारनी एक सेर पूरी थाय छे । त्यारपछी चोत्रीश उपवास एकांतर पारणांवडे करवाथी ते हारनुं पदक थाय छे । त्यारपछी विलोमना क्रमथी एटले सोळ उपवास उपर एक पारj, पंदर उपवास उपर एक पारj, चौद उपवास उपर एक पारj, एम उतरता उतरता छेवट एक उपवास उपर एक पारणुं करवाथी बीजी सेर पूरी थाय छ। पछी पारणाना आंतरावाळा आठ उपवास करवाथी बीजा दाडिमना पुष्प उत्पन्न थाय छे । त्यारपछी व्रण उपवास उपर एक पारj, पछी बे उपवास | उपर एक पारणुं अने छेवट एक उपवास उपर पार[ ए रीते करवाथी बीजी काहलिका पूर्ण थाय छे. आम करवाथी कुल ३३४ उपवास अने ८८ पारणां थाय छे. उद्यापनमा बृहतस्नात्रपूर्वक विधिथी पूजा करीने प्रतिमान मोटो मुक्ताफळनो एक सेस्नो हार पहेराववो.* संघवात्सल्य, *तथा सुवर्ण अक्षरमय पुस्तक लखावी मुविहित मुनिने आपq तेवो जोग न होय तो श्री संघना भंडारमा मूक्वं, पण पोतानी निश्राए न राखg. RECEIAS JainEducation ine | Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 तपरत्न- महोदधि ॥६४॥ ५ % GOR संघपूजा, गुरुपूजा विगेरे करवू. आ तप करवाथी निर्मळ गुणनी प्राप्ति थाय छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. दशविध बीजी रीते एकास' १, नीवी १, आंबिल १ तथा उपवास १, ए रीते एक ओळी थई. एवी पांच ओळी करवाथी पण यविधर्म एकावळी तप थाय छे (आ मतांतर विधिप्रपामा छे.) तप. "नमो अरिहंताणं" ए पदनी नोकारवाळी वीश गणवी, साथीया विगेरे बार बार करवा. ४४ दशविध यतिधर्म तप. संयमादौ दशविधे धर्मे एकान्तरा अपि । क्रियन्त उपवासा यत्तत्तपः पूर्यते हि तैः॥१॥ दश प्रकारना यति धर्मनी आराधना माटे आ तप छे तेमा दश उपवास एकांतरे करवा. तेणे करीने आ तप पूर्ण थाय छे (आ तप शुक्ल पक्षमां शरु थाय छे. जैन प्रबोध ) उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिए देवपूजा करी दश दश फळ, पक्वान्न | विगेरे वस्तुओ ढोकवी. तथा मुनिने वस्त्र पात्रादिकनुं दान देवू. संघपूजा, संघवात्सल्य करवू. आ तपनुं फळ शुद्ध धर्मनी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. तपने दिवसे अनुक्रमे गुणणुं विगेरे नीचे प्रमाणे:१ शांतिगुणधराय नमः ६ संयमगुणधराय नमः २ मार्दवगुणधराय नमः ७ सत्यगुणधराय नमः ३ आर्जवगुणधराय नमः ८ शौचगुणधराय नमः an६॥ UNREGISTEREOREG G EOCON 1( I wow.jainelibrary.org. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सपोरत्नमहोदधि र तप. 3603945CTORRECORRECCESS ६ मुक्तिगुणधराय नमः ९ अकिंचनगुणधराय नमः पंचपरमेष्टि ५ तपोगुणधराय नमः १. ब्रह्मचर्यगुणधराय नमः साथीया १० खमासमण १० काउसग्ग १० लोगस्सनो अने नवकारवाळी २० गणवी. ४५ पंचपरमेष्ठि तप. उपवासैकस्याने आचाम्लैकाशने च निर्विकृतिः। प्रतिपरमोष्टि च षटकं प्रत्याख्यानस्य भवतीदम् ।।१।। पांच परमेष्ठिनी आराधना माटे आ तप छे. तेमां पहेले दिवसे उपवास, बीजे दिवसे एकलठाणुं, (मात्र एक ज हाथ हाले पण चीजें कोई अंग हालवून जोईए. तथा स्थानके ज चौविहार करवो जोईए) त्रीजे दिवसे आंबिल, चौथे दिवसे एकासणुं, पांचमे दिवसे नीची, छ? दिवसे पुरिमख अने सातमे दिवसे आठ कवळ ( अथवा बीजी प्रतो आधारे चेस' पण छे. ) ए प्रमाणे सात दिवसनी एक ओळी धई. एवी पांच ओळी करवाथी ३५ दिवसे तप पूर्ण थाय छे. उद्यापने पंचतीर्थी बिंब भरावयु, अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधुनी भक्ति करवी. मोदक ३५ तथा बीजी वस्तु पांच पांच प्रभु पासे ढोकवी. संघपूजा, संघवात्सल्य करवं. आतपर्नु फळ सर्व विघ्ननी शांति थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ॐ नमो अरिहंताणं १२ १२ १२ २० ॐ नमो आयरियाणं ३६ ३६ ३६ २० ॐ नमो सिद्धाणं ८ ८ ८ २० ॐ नमो उवज्झायाणं २५ २५ २५ २. १५। ६५॥ KAUSHASTROLARULAR Jain Education Internationa For Private & Personal use only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि लघुपंचमी तप. SAHARASH ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं २७ २७ २७ २० ४६ लघुपंचमी तप. लघुपंचम्यां दूयशनादि पञ्चमासोत्तरं तपः कृत्वा । तत्पश्चविधं समाप्ती समाप्यते मासपंचविंशत्या ॥१॥ पंचमीने दिवसे करवानो तप ते पंचमी तप कहेवाय छे. ते तप श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, पोष अने चैत्र, एटला मास वर्जीने वीजा मासमां शुद पांचमे शरु करवो. पुरुषे अथवा स्त्रीए जिनचैत्यने विषे जात्यादिक पुरुषोवडे देवपूजा करवी. पछी ज्ञान- स्थापन करी तेनी पण पुष्पादिवडे पूजा करवी. पछी तेनी आगळ शुभ (अक्षत) तंदुलवडे सुंदर स्वस्तिक करवो. तेना पर घृतपूर्ण दीपक पांच वाटवाळो देदीप्यमान मूकवो. पासे फळ, मोदक आदि नैवेद्य मूकबु. पोते मस्तक पर गंध, अक्षत अने चंदनने धारण करी, गुरु पासे जई शुक्ल पंचमीतपनो आरंभ करवो. पांच मासनी शुकल पांचमने दिवसे बेसणुं करवु. पछी पांच मासनी पांच शुक्ल पंचाए एकासणुं करवू, पछी पांच मासनी पांच शुक्ल पंचमीए नीवी करवी. पछी पांच मासनी शुक्ल पंचमीए आंबिल करवा, पछी पांच मासनी शुक्ल पंचमीए उपवास करवा. ए प्रमाणे पाश मासे ते तप पूर्ण थाय छे. कोई गच्छमां पचीशे मासनी दरेक पंचमीए जेवी रीते आरंभ कर्यो होय एटले के बेस' के एकास' के नीवी विगेरे जे तपवडे आरंभ कयों होय तेज तप करवानी पद्धति छे. अथवा आ तप उपर प्रमाणे शुक्ल पंचमीए आरंभ करी शुक्ल तथा कृष्ण एम बने पंचमी लई पचीश पंचमीए एटवे एक वर्षे पूर्ण करवामां आवे छे. (नं. अ.) IRCASSAGE For Private lain Education Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥६ ॥ लघुपंचमी तप. FREERICARROCARRIES अथवा उपर प्रमाणे शुक्ल पंचाए आरंभी शुक्ल तथा कृष्ण एम बने पंचमी लई पांच पंचमीए आ तप पूरो करवामां आवे छे. तेमां उद्यापने पक्वान्न फळ विगरे तथा ज्ञानना उपकरण पांच पांच ढोकवा. (नं. ग.) अथवा शुक्ला पंचाए शरु करी दरेक पंचमीए उपवास करवो. ए रीते पचीश पंचमीए एटले एक वर्षे तप पूर्ण करवो. (पं. बु.) उद्यापनमां जिनप्रतिमानी मोटी स्नात्र विधि पूर्वक पूजा करवी. पांच पांच विविध प्रकारना पक्वान्न, फळ, रुपाना' विगरे ढोकवां तथा अंग, उपांग अथवा नानी पोथी पांच लखावी साधुने बहोराववी. तेना अभावे संघना भंडारमा मूकवी. पुस्तक (ज्ञान)नी आगळ सापडा, पाटी, रुमाल, दोरी, पीछी, नोकारवाळी, वासक्षेपनो वावटो अथवा दाबडो, लेखण, खडीओ, मुखवस्त्रिका, दांडो, रजोहरण, ठवणी, ओघानो पाटो, छाबडी, अंगलूहणां, सुखड, वासक्षेप विगैरे ज्ञान, दर्शन तथा चारित्रना उपगरणो सर्वे पांच पांच ढोकवा. पांच प्रकारना धान्य ढोकवा. संघपूजा, संघवात्सल्य, गुरुभक्ति विगरे करवु, आ तपनुं फळ ज्ञाननो लाभ थवारूप छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. आ तप मुख्यताए करी ज्ञानने उद्देशीने छे, तेमां ज्ञान लखाक्यूँ तथा तेनां उपगरणो करावयां एनी आवश्यकता छे. ज्ञान लखाववानो महिमा आचारोपदेशमां आ प्रमाणे वर्णव्यो छेलिखाप्यागमशास्त्राणि यो गुणिभ्यः प्रयच्छति । तन्मात्राक्षरसंख्यानि वर्षाणि त्रिदशो भवेत् ॥१॥ अर्थ-जे माणस आगमशास्त्रो लखावीने गुणी मुनिओने आपे छे, ते पुस्तकना अक्षर जेटला वर्ष देवलोकमां SECROSSES-5 ॥६७॥ Main E ton International For Private & Personal use only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ६८ ॥ से छे. (इत्यादि.) "ॐ नमो नाणस्स " पदनी नोकारवाळी वीश, साथीया विगेरे ५१ करवा अथवा पांच पांच करवा. ४७ बृहत् पंचमी तप (ज्ञानपंचमी). एवमेव तपो वर्षपञ्चकं कुर्वतां नृणाम् । वृहत्पश्चमिकायास्तु तपः संपूर्यते किल ॥ १ ॥ एजप्रमाणे पांच वर्ष सुधी तप करता मनुष्योने बृहत्पंचमीनुं व्रत पण पूर्ण थाय छे. आ तपनो आरंभ लघु पंचमीनी जेम करवो. विधि पण ते ज प्रमाणे जाणवो. एक वर्षनी शुक्ल पांचमे बेसणं कर, वीजे वरसे एकासथुं, त्रीजे वर्ष नीवी, चोथे वर्ष आंबिल अने पांच वर्षे उपवास करवा. ए प्रमाणे पांच वर्षे पूर्ण थाय छे. उद्यापन लघु पंचमीनी जेम कर. ( जुओ तप नं. ४६ ) तेमां सर्व वस्तु पचीश पचीश ढोकवी. आ तपनुं फळ महाज्ञाननी प्राप्ति थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छ. अथवा आप पांच वर्ष अने पांच मासनी दरके अजवाळी पांचमें उपवास अथवा एकास करवार्थी पण थाय छे. गरणुं विगेरे लघु पंचमीवत् आणं. एक प्राचीन प्रतिमां लखेल छे जे रोगादि कारणे पछवाडेथी पण तप पूर्ण कराय छे अने उद्यापने आद्यमां, मध्यमां के अन्ते ज्यारे अवसर मळे त्यारे यथाशक्तिए करवानुं छे. तेमां पांच पुस्तक भरावदा विगेरे करवानुं छे. आतप उत्कृष्टथी आवी रीते पण करवामां आवे छे दरेक शुक्ल पंचमीनो उपवास जावज्जीव करवो. पांच वरस पछी ) वह बहत् पंचमी तप. 1111 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % चतुर्विध संघ तप तथा धन तप %* ॐ तपोरत्न-18| उद्यापन विगैरे करवु. गर| नं. ४६ ना तप प्रमाण जाण.. महोदधि १८ चतुर्विध संघ तप. ॥६९॥ उपवासदयं कृत्वा ततः ख रससंख्यया । पकान्तरोपवासैश्च पूर्ण संघतपो भवेत ॥१॥ चतुर्विध संघनी आराधना माटे आ तप छे. तेमा प्रथम एक छठ करी पारणुं करवू. पछी एकांतर साठ उपवास करवा. ★ए रीते करवाथी आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा संघवात्सल्य अने संघपूजा करवी. आ तपर्नु फळ तीर्थकरनामकम उपा जन थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. __ "ॐ नमो तीत्थस्स" नोकारवाळी वीश, साथीया विगेरे बासठ वासठ अथवा पचीव पचीश करवा. ४९ घन तप. एकद्वयेकद्विवेकयुग्मशशिसंख्ययोपवासश्च । पारणकान्तरितैरपि निरन्तरैः पूर्यतेऽत्र धनम् ॥१॥ आ तप आंकडाना घननी युक्तिए थाय छे. तेमां प्रथम एक उपवास करी पारणुं कर. पछी बे उपवास करी पारशें, पछी एक उपवास करी पार', । पछी बे उपवास करी पार', पछी फरीथी चे उपवास करी पार[, पछी एक उपवास करी पारगुं, पछी वे उपवास करी पारj, अने पछी एक उपवास करी पारणुं करवं. आ रीते उपवास बार तथा पारणां आठ मळी वीश दिवसे आ तप पूरो थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्रविधिए पूजा करी उपवासनी संख्या प्रमाणे पुष्प, फळ, मोदक विगेरे देव पासे ढोकवा. संघ वात्सल्य, संघपूजा करवी. मुनिने दान देवू. आतपर्नु फळ महालक्ष्मी (मोक्षलक्ष्मी)नी SCRECHEMESSASSACREDISHANGA RECERS For Private Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि प्राप्ति थाय ते छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " नमो अरिहंताणं" नोकारवाळी वीश, साथीया विगेरे बार बार करवा. महाधन तप. RSSCRECIRCLES ५० महाघन तप. महाघनतपः श्रेष्ठं एकद्वित्रिभिरेव हि । उपवासनवकृत्वः पृथकूछेणिमुपागतः ॥१॥ घनना आंकडाना बाहुल्यपणाथी आ महाधन कहेवाय छे. आ तपमा प्रथम श्रेणिए अनुक्रमे एक, वे अने त्रण उपवास, एकांतर पारणासळा निरंतर करवा. बीजी श्रेणिमा अनुक्रमे वे, त्रण अने एक उपवास एकांतर पारणावाळा करवा. त्रीजी श्रेणिमा त्रण, एक अने बे उपवास, चोथी श्रेणिमां बे, त्रण अने एक उपवास, पांचमी श्रेणिमा त्रण, एक अने बे उपवास, उही श्रेणिमा एक, ये अने त्रण उपवास, सातमी श्रेणिमा त्रण, एक अनेचे उपवास, आठमी श्रेणिमा एक, बे अने त्रण उपवास तथा नवमी श्रेणीए बे, त्रण अने एक उपवास एकांतर पारणावाळा निरंतर करवा. आरीते करवाथी उपवास ५४ तथा पारणा २७ मळी सर्व दिन ८१ ए आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापने मोटी स्नात्रपूर्वक एकाशी एकाशीपुष्प, फळ, मोदक विगेरे ढोकवा. गुरुपूजा, संघपूजा, संघ वात्सल्य विगेरे करवू. आतपर्नु फळ चक्रवर्तीनी ऋद्धि प्राप्त थाय ते छे. आ | मुनि तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " नमो अरिहंताणं " पदंनी नोकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. AMORECASSETTE ॥७०। Main Education International For Private & Personal use only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ७१ ॥ यंत्र स्थापना बीजी रीत (जैन प्रबोध ) ( चार पर्यंत घन ). प्रथमनी रीत करतां अधिक तप करवो होये तो आ रीते करवो. प्रथम श्रेणीए एक, बे, त्रण अने चार निरंतर उपवास एकांतर पारणावाळा करवा. बीजी श्रेणीए वे, त्रण, चार अने एक. त्रीजी श्रेणीमां त्रण, चार, एक अने बे. चौथी श्रेणीमा चार, एक, वे अने त्रण. पांचमीमां बे, त्रण, चार अने एक छडीमां त्रण, चार, एक अने वे. सातमीमां चार, एक, वे अनें त्रण. aani एक, बे, ॠण अने चार, नवमीमां त्रण, चार, एक अने बे. दशमीमां चार, एक, वे अने त्रण. अगियारमीमां एक, बे, व्रण अने चार, बारमीमां बे, त्रण, चार अने एक. तेरमीमां चार, एक, वे अने त्रण. चौदमीमां एक, बे, त्रण अने चार. पंदरमीमां बे, त्रण, चार अने एक तथा सोळमीमां त्रण, चार, एक अने वे, ए प्रमाणे अनुक्रमे निरंतर उपवास एकांतर पारणावाळा करवा. ए रीते उपवास १६० तथा पारणा ६४ मळी २२४ दिवसे पूर्ण थाय छे. ३ ४ २ ३ : यंत्र स्थापना. महाधनः तप. ॥ ७१ ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाधन तपोरत्नमहोदधि ॥ ७२॥ GIRCRECrew त्रीजी रीत (पांच पर्यंत घन ). प्रथम श्रेणीए अनुक्रमे एक, बे,त्रण, चार अने पांच निरंतर उपवास एकांतर पारणावाळा करवा. बीजी श्रेणीए चे, त्रण, चार, पांच अने एक. त्रीजी श्रेणीए त्रण, चार, पांच, एक अने चे. चोथी श्रेणीए चार, पांच, एक, वे अने त्रण. पांचमी श्रेणीए पांच, एक, चे, त्रण अने चार. छठी श्रेणीए बे, त्रण, चार, पांच अने एक. सातमी श्रेणीए त्रण, चार, पांच, एक. अने बे. आठमी श्रेणीए चार, पांच, एक, बे ने त्रण. नवमी श्रेणीए पांच, एक, बे, त्रण ने चार. दसमी श्रेणीए एक, बे, त्रण, चार ने पांच. अगियारमी श्रेणीए त्रण, चार, पांच, एक ने बे. बारमी श्रेणीए चार, पांच, एक, बे ने त्रण. तेरमी श्रेणीए पांच, एक, बे, प्रण ने चार. चौदमी श्रेणीए एक, बे, त्रण, चार ने पांच. पंदरमी श्रेणीए बे, त्रण, चार, पांच ने एक. सोळमी श्रेणीए चार, पांच, एक, बे ने त्रण. सत्तरमी श्रेणीए पांच, एक, बे, त्रण ने चार. अढारमी श्रेणीए एक, चे, त्रण, चार ने पांच, ओगणीसमी श्रेणीए बे, त्रण, चार, पांच ने एक. वीसमी श्रेणीए त्रण, चार, पांच, एक ने चे. एकवीशमी श्रेणीए पांच, एक, चे, त्रण ने चार. बावीशमी श्रेणीए एक, बे, त्रण, चार, ने पांच. त्रेवीशमी श्रेणीए चे, त्रण, चार, पांच ने एक. चोवीशमी श्रेणीए त्रण, चार, पांच, एक ने बे तथा पचीशमी श्रेणीए चार, पांच, एक, बे ने त्रण. आ रीते करवाथी उपवास दिन ३७५ तथा पारणा दिन १२५ मळी कुल दिन ५.. एटले सोळ मास ने दिन वीशवड आ तप पूर्ण थाय छे. नमो अरिहंताणं पदनी नवकारवाळी २०, साथीया विगेरे १२ करवा. BHILAI७ FA७२। For Private Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महाधन महोदधि ॥७३॥ CAREECA BARSHRSHREEG ४ापा२३ ४/५/१|२| | १|२ ३ | |५ ३/४/५१२ ४|५|१|२|३|| ५|१|२|३|४| |१|२|३|४|५ २|३|४| |१ |४|५|१|३|३| |१|२|३|४|५| ५|१|२| | चोथी रीत (छ पर्यंत घन) प्रथम श्रेणीए १२३४५६ तेरमी श्रे० ३४५६ १२ पचीशमी श्रे. ५६१२३४ बीजी , २ ३ ४ ५६१ चौदमी, ४५६१२३ छवीशमी, ६१२३४५ त्रीजी , ३४५६१२ पंदरमी, ५६१२३४ सत्तावीशमी, १२३४५६ ४५६१२३ सोळमी, ६१ २ ३ ४ ५ अठयावीशमी,, २३४५६१ पांचमी, ५६१२३४ सत्तरमी, १२३४५६ ओगणत्रीशमी, ३४५६१ छठी ,६१२३४५ अढा. २३४५६१ त्रीशमी ४५६१२३ सातमी , २ ३ ४ ५ ६१ ओग. ४५६१२३ एकत्रीशमी, ६१२३४५ आठमी, ३४५६१२ वीशमी, ५६१२३४ वत्रीशमी, १२३४५६ चोथी " R EERSAEEG ॥७ ॥ Main Education International For Private & Personal use only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि ॥ ७४॥ नवमी ,४५६१२३ एकवी०, ६१२३४५ तेत्रीशमी, २३४५६१ दशमी, ५६१२३४ बावशि०, १२३४५६ चोत्रीशमी , ३४५६१२ अग्यारमी, ६१ २ ३ ४ ५ वीश.,, २३४५६१ पांत्रीशमी, ४५६१२३ बारमी, १२३४५६ चोवीश., ३४५६१२ छत्रीशमी, ५६१ २ ३ ४ आ रीते करवाथी उपवास ७५६, तथा पारणा २१६ सर्व दिन ९७२ एटले वे वर्ष आठ मास ने बार दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. " नमो अरिहंताणं " पदनी नवकारवाळी २०, साथिया विगेरे १२ बार करवा. ५१ वर्ग तप, एकद्धयेककयुग्मयुग्मवसुधायुग्मेन्दुभूयामलक्ष्मायुग्मद्वयभूमियुग्मधरणीयुग्मेन्दुयुग्मैककैः । एकद्वयेक भुजद्विभूमियुगलज्याज्यादिभूमिदयैरेकद्वयेक भुजद्विचन्द्रयमलेरेकैकयुग्मेन्दुभिः ॥१॥ द्विद्वयेकदिमहीद्विभूमियुगलज्याज्याद्विममिदयैर्येकर्येकमहीद्विचन्द्रयुगलैः श्रेण्यष्टकत्वं गतः।। वर्गाख्यं तप उच्यते शनशनैमध्योल्लसत्पारणैः सर्वत्रापि निरन्तरैरपि दिनान्यस्मिन् खषभूमयः॥२॥ वर्गना आंकवडे जे तप ते वर्ग तप कहेवाय छे. तेमां नीचे प्रमाणे एकांतर पारणावाळा निरंतर उपवासवडे आठ श्रेणीए तप करवो. SANSKRITESUCCESS RUARGECASIRSA annanAnnnnnnnnnhannel ॥७४॥ For Private Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। ७५ ।। 13 ** 19 चौथी श्रेणी २१२११२१२ पांचमी १२१२२१२१ छठ्ठी १२१२२१२१ एटले के प्रथम एक उपवास करी पार कर, पछी बे उपवास करी पारशुं, पछी एक उपवास करी पारणं, पछी बे उपवास करी पारणुं, पछी ने उपवास करी पारणुं, पछी एक उपवास करी पारणं, पछी वे उपवास करी पारं अने पछी एक उपवास करी पारं. ए रीते पहेली श्रेणी थई. ते प्रकारे बीजी साते श्रेणीओ करवी. ते प्रमाणे करतां उपवास ९६ तथा पारणा ६४ मळी कुल दिन १६० थाय. उद्यापने मोटी स्नात्र पूर्वक १६० मोदक, फळ, पुष्प विगेरे ढोकai. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी आ तपनुं फळ महाऋद्धि प्राप्त थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे गुणणामां " नमो अरिहंताणं " पदनी नोकारवाली वीश मणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ५२ श्रेणीतप श्रेणी श्रेणयः प्रोक्ता एको द्वौ प्रथमे क्षणे । द्वितीयादिषु चैकाकक्रमवृद्धयाभिजायते ॥ १ ॥ श्रेणीना अंकवडे जे तप ते श्रेणीतप कहेवाय छे. आ श्रेणीतपमां छ श्रेणीओ कही छे तेमां प्रथम श्रेणीए प्रथम एक उपवास करी पारं कर. पछी ने उपवास करी पारणं करतुं बीजी श्रेणीमां प्रथम एक उपवास करी पारणं पछी चे उपवास उपर पारणु, पछी त्रण उपवास उपर पारणं त्राजी श्रेणीमां एक, बे, त्रण, चार, उपवास एज प्रमाणे पारणावाळा करवा चोथी पहेली श्रेणी १२१२२१२१ बीजी १२१२२१२१ त्रीजी २१२११२१२ 39 : सातमी श्रेणी २१२११२१२ आठमी २१२११२१२ श्रेणी तप. ॥ ७५ ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंच मेरु तपोरत्नमहोदधि ॥ ७६ श्रेणीमा एक, चे, त्रण, चार अने पांच, पांचमीमा एक, बे, त्रण, चार, पांच अने छ, तथा छहीमा एक, चे, त्रण, चार, पांच, छ अने सात निरंतर उपवास अनुक्रमे पारणाना आंतरवाळा करवा. ए रीते करवाथी उपवास ८३ अने पारणा २७ मळी कुल ११० दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापने मोटी स्नात्र विधिपूर्वक ११० पक्वान्न, फळ, पुष्प वगेरे ढोकवा संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपर्नु फळ क्षपक श्रेणीनी प्राप्त थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छ "नमो अरिहंताण " पदनी नोकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ५३ पंच मेरुतप. (मेरुमंदिर तप.) प्रत्येकं पञ्चमेरूणामुपोषणकपञ्चकम् । एकान्तरं मेरुतपस्तेन संजायते शुभम् ॥१॥ मेरु पर्वतनी संख्याए करीने जे तप करवो ते मेरु तप कहेवाय छे. तेमां पांच मेरुने उद्देशीने प्रत्येके प्रत्येके पांच पांच उपवास एकांतर पारणावाका करवा. तेथी पचीश उपवास अने पचीश पारणांवडे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिए पूजा करी पांच सुवर्णना मेरु करावी ढोकवा. तथा पचीश पचीश पक्वान्न, फळ विगरे ढोकवा. आ तपनुं फळ उत्तम पदनी प्राप्ति थाय ते छ, आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गर' विगेरे नीचे प्रमाणे. जे मेरुने उद्देशीने तप चालतो होय ते नामर्नु गर' विगरे जाणवू.. सा० ख० लो० नो. सा. ख. लो० नो. १ सुदर्शन मेरु जिनाय नमः ५ ५ ५ २० २ विजय मेरु जिनाय नमः ५ ५ ५ २० CASTRUCTUAGAURUSAL * ॥७६॥ JE For Private Personal use only wanaw.jainelorary.org Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्ममहोदधि ॥ ७७॥ तप. ३ अचळ मेरु जिनाय नमः ५ ५ ५ २० ५ विद्युन्मालि मेरु जिनाय नमः ५ ५ ५ २० बत्रीश ४ मंदर मेरु जिनाय नमः ५ ५ ५ २० कल्याणक बीजी रीत (टीप्पण) अथवा मात्र पांच उपवास एकांतर वेसणावाळा करवा एटले आ तप दश दिवसे पण करी शकाय छे. बीजो विधि उपर प्रमाणे समजबो. ५४ बत्रीश कल्याणक तप. उपवासत्रयं कृत्वा द्वात्रिंशदुपवासकाः । एकभक्तांतरास्तस्मादुपवासत्रयं वदेत् ॥१॥ बत्रीश उपवासवडे जणातां कल्याणकोने बत्रीश कल्याणक कहे छे. तेमा प्रथम अट्ठम करीने पारणुं करवू. पछी एकातरा एकासणाना पारणावाला बत्रीश उपवास करवा. तथा छेडे अहम करीने पारणुं कर, एम करवाथी आ तप आडत्रीश उपवास अने चोत्रीश पारणांवडे एटले बौतेर दिवसे पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्रविधि पूर्वक बत्रीश बत्रीश पक्वान्न, फळ विगरे ढोकवां संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आतपर्नु फळ तीर्थकरनामकर्मनी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ( आ तप वसुदेवहिंडीमां छे.) गर| तप नंबर ४० मां कईला " जंबूद्वीपना प्रथम महाविदेहे जिननाम" ए मथाळे लखेला बत्रीश नामर्नु गणवू. साथीया, खमासमणा विगेरे पण तेज प्रमाणे करवा. आ तप जंबुद्वीपमा रहेला महाविदेहमा उत्कृष्ट काळे थयेला ३२ प्रभुना 50 KHELCASTRBAREA For Private Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपारत्नमहोदधि ॥ ७८॥ च्यवन तप तथा जन्म तप तथा सूर्यायण वेप RECECREASEARCHERS केवळज्ञान प्राप्तिरूप कल्याणकना आराधन संबंधी जाणवो. ५५ च्यवन तप तथा जन्म तप. चतुर्विशतितीर्थेशानुद्दिश्य च्यवनात्मकम् । विना कल्याणकदिनैः कार्यानशनपद्धतिः ।। च्यवनने माटे जे तपते च्यवन तप कहेवाय छे तेमां चोवीश तीथकरोने उद्देशीने तेमना कल्याणकना दिवस विना एकांतर चोवीश उपवास करवा. उद्यापने मोटी स्नात्र विधि पूर्वक जिनेश्वर पासे चोवीश पक्वान्न, फळ विगेरे ढोकवा. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपनुं फळ सद्गतिनी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. जन्म तप पण एज प्रमाणे करवी.. जे दिवसे जे तीर्थकरनो तप चालतो होय ते दिवसे तेमना नामर्नु गर| गणवू. नवकारवाळी वीश गणवी. (साथीया विगरे बार बार करवा.) च्यवनना तपमां ऋषभस्वामिपरमेष्टिने नमः ए रीते परमेष्ठि पद २४ प्रभुना नाम साथे जोडीने गण, तथा जन्मना तपमां ऋषभस्वामि अहंते नम: ए रीते अहते पद २४ प्रभुना नाम साथे जोडीने गणवं. इत्यादि (जुओ नंबर ८ वाळो तप.) ५६ सूर्यायण तप. सूर्यनी जेम अयन एटले गति अर्थात हानि अने वृद्धिए करीने जे तप थाय ते सूर्यायण तप कहेवाय छे. आ तप वज्र. मध्य तथा यवमध्य चांद्रायणनी जेमज करवो, परंतु आ तप कृष्णपक्षनी प्रतिपदाए आरंभवो. उद्यापनमां चंद्रने ठकाणे सूर्य RSRISHAROSAREERUAREERS ॥ ७८॥ For Private Personal use only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C तपोरत्नमहोदधि ॥७९॥ लोकनालि तप. ARRERAKASKAR करवो. बाकी सर्व चांद्रायण तप प्रमाणे जाणवू. आ तपY फळ मोटा राज्यनी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा भावकने | करवानो आगाढ तप छे. (नंबर १२ बाळो तप जुओ.) ५७ लोकनालि तप. सप्त पृथच्यो मध्यलोकः कल्पा ग्रैवेयका अपि । अनुत्तरा मोक्षशिला लोकनालिरितीर्यते ॥१॥ एकभक्तान्युपवास एकभक्तानि नीरसाः। आचाग्लान्युपवासश्च क्रमासेषु तपः स्मृतम् ॥२॥ लोकनालना क्रमे करीने जे तप करवो ते लोकनालि तप कहेवाय छे. तेमां सात नारक पृथ्वी एक मध्य लोक, चार कल्प, नव प्रवैयेक, पांच अनुत्तर विमान तथा मोक्ष(सिद्ध )शिला ए लोकनाळ कहेवाय छे. तेमां सात नारक पृथ्वीने उद्देशीने सात एकासणां करवा. पछी मध्य लोव ने उद्देशीने एक उपवास करवो. पछी बार कल्प( देवलोक ) ने उद्देशीने वार एकासणां करवा. पछी नव ग्रैवेयकने आश्रीने नव नीवी करवी. पछी पांच अनुत्तर विमानने आश्रीने पांच आंबील करवा. पछी सिद्धशिलाने आश्रीने एक उपवास करवो. ए प्रमाणे पांत्रीश दिवसवडे आ तप पूर्ण थाय छे. तेमा एकासणां १९, नीवी ९, | आंबिल ५ अने उपवास २ थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधि पूर्वक जिनपूजा करवी. रुपानी सात पृथ्वीओ, सुवर्ण मय मध्य लोक, विविध मणिमय बार कल्पो, नव ग्रैवेयक अने पांच अनुत्तर विमान तथा स्फटिकमय सिद्धशिला (रुपाना चंद्र सहित) करवी अने तेना पर सुवर्ण तथा रत्नो स्थापवां, अने ते सर्व देव पासे पुरुष प्रमाण अक्षतनो ढगलो करी तेना पर १. रुपानो चंद्र करवानुं व विगेरे नंबरवाळी प्रतिओ कहे छे. HAHARASHREEG ॥७९॥ For Private & Personal use only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याणक सपोरत्नमहोदधि ॥८ ॥ ॐ अष्टाहिका तप. मूकवा. नाना प्रकारनां पक्वान्न, कळ ढोकवा. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपर्नु फळ उत्तम ज्ञाननी प्राप्ति थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "नमो अरिहंतागं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ५८ कल्याणक अष्टाह्निका तप. एकभक्ताष्टकं कार्यमईकल्याणपञ्चके । प्रत्येकं पूर्यते तच्च वृहदष्टाहनिकातपः॥१॥ च्यवन, जन्न, दीक्षा, केवळज्ञान अने निर्वाण ए पांच कल्याणकोबडे संयुक्त थयेला आठ आठ दिवसो होवाथी कल्याणक अष्टाहिका नामे तप कहेवाय छे. तेमां ऋषभादिक एक एक तीर्थकरना एक एक कल्याणकने आश्रीने आठ आठ एकासणां करवाथी चालीश एकासणांवडे एक तीर्थकरना कल्याणकानो तप पूर्ण थाय छे. ए रीते बीजा वीश तीर्थकरोना कल्याणकोने आश्रीने चाळीश चाळीश एकासणां करवाथी सर्व मळीने ९६० एकासणां करवा. कदाच एक तीर्थकरथी चीजा तीर्थकरना कल्याणकतपनी बच्चे आंतरो पडे तो तेमां अडचण नथी. पण चालीश एकासणांनी अंदर तो आंतरो पडको न ६ जोईए. उद्यापनमा एकसो ने वीश वीश ( अथवा मात्र चोवीश चोवीश ) पक्वान्न, फळ विगरे मोटी स्नात्रविधि पूर्वक | ढोकवा. साधुने वस्त्र, अन्न, पात्र विगरेनु दान देवू. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपनुं फळ तीर्थकरनामकर्मनी बंध थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. जे तीर्थकरना जे कल्याणकनो तप चालतो होय ते ते १ आवो पाठ अ, ब विगेरे प्रतिओमां छे. SHAREKADASHIRECRUC3% पक्यान्न, फ फळ तीथकराते ॥८ ॥ in duetan international For Private Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आंबिल बर्द्धमान तप. तपोरत्न-5 तीर्थकरना नामर्नु गरj गण. ( नंवर ८ वाळो तप जुश्री ). महोदधि ५९ आंबिल वर्द्धमान तप. 11८१॥ उपवासान्तरितानि च शत पर्यन्तं तथैकमारभ्य । वृद्ध्या निरन्तरतया भवति तदाचाम्लवर्धमानं च ॥ आंबिलवडे वृद्धि पामतो जे तप ते आंबिल वर्धमान तप कहेवाय छे. तेमां उपवासना आंतरावाळा आंबील एकथी आरंभीने सो सुधी चढतां चढतां करवां. एटले के प्रथम एक आंबील करी उपवास करवो. पछी बे आंबील उपर उपवारा करवो. पठी त्रण आंचील उपवास करवो ए प्रमाणे चढतां चढतां सो आँधील उपर उपवास करवो. आ रीते करतां चौद वर्ष, त्रण मास अने वीश दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्रविधि पूर्वक चोवीश जिननी पूजा करवी. मुनिने दान देQ. संघपूजा, संघवात्सल्य करवं. आतपर्नु फळ तीर्थकरनामकर्मनो बंध थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. “ नमो अरिहंताणं " पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. आ महान तप छे अने पुण्यशाळी जीवज तेने साद्यंत पूर्ण करी शके छे. आ तप श्रीचंद केवळीए पूर्व भवे को हतो. ६० माघमाळा तप. आरभ्य पोषदशी पर्यन्ते माघशुक्लपर्णायाः। स्नात्वान्तं संपूज्य चकभक्त । स्नात्वाईन्तं संपज्य चैकभक्तं विदध्याच ॥१॥ माघ मासमा माळारूपे करवानो जे तप ते माघमाळा तप कहेवाय छे. ते तप पोष बद दशमने दिवसे आरंभी माघ &ा शुदी पूर्णिमाए पूरो करवो. तेमां हमेशा स्नान करीने अरिहंतनी पूजा करी निरंतर एकासणां करवा. आ तप एकवीश दिवसे RABAR For Private Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीर तपोरत्न-5 महोदधि : ॥८२॥ तप. ॐॐॐॐMARODAE पूर्ण थाय छे. ए प्रमाणे चार वर्ष सुधी करवं. उद्यापने मोटी स्नात्र विधि पूर्वक जिनेश्वरनी पूजा करी सुवर्ण तथा मणिथी | गर्भित एवो घतनो मेरु बनावी देव पासे ढोकवा. पक्वान्न, फळ विगेरे यथाशक्ति ढोकवा. मुनिने दान देवं. संघपूजा. संघवात्सल्य कावु. आतपर्नु आ फळ उत्तम सुखनी प्राप्ति थाय ते छे. आ केवळ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "नमो अरिहंताण" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. ६. श्री महावीर तप. महावीरतपो ज्ञेयं वर्षाणि द्वादशेव च । त्रयोदशैव पक्षांश्च पञ्चकल्याणपारणे ॥ ॥१॥ श्री महाकीरस्वामीए छद्मस्थ अवस्थामा जे तप क ते महावीर तप कहेवाय छे. तेमां चार वर्ष अने तेर पक्ष एटले साडाछ मास सुधी दश दश उपवासे पारणुं करीने तप पूर्ण करवो. उद्यापनमां मोटी स्नात्र विधिपूर्वक श्री महावीरस्वामीनी प्रतिमा आगळ सुवर्णमय वटवृक्ष ढोकवो. तथा संघवात्सल्य विगेरे करवं. आतपर्नु फळ कर्मनो क्षय थाय ए छे. ए आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरणामां "श्री महावीरस्वामिने नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. ६१ लक्षप्रतिपद तप. (लाखी पडवो) शुक्लप्रतिपदः सूर्यसंख्या एकाशनादिभिः । समर्थनीयास्तपसि लक्षप्रतिपदाख्यके ॥१॥ शुक्लपक्षनी एकमने दिवसे एकाशनादिक (अथवा उपवासादिक) तप करवा, ए रीते बार एकमे एटले एक वर्षे आ तप + ७॥८ nin Education International Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वाग तपोरत्नमहोदधि ॥८३॥ AARAKHARAS पर्ण थाय छे. आतप श्रावक अने श्राविकाए करवानो छे, उद्यापनमा देवपूजापूर्वक देवनी पासे लक्ष (एक लाख ) धान्य ढोकवु. लक्ष धान्यनुं प्रमाण आ प्रमाणे-चोखा माणा ५, मग पाली २, मठ पाली १, अडद पाली १, चणा माणा २, चोळा माणा २, तुवेर पाली ८, वाल माणा २, तल पाली ७, जुवार माणा ५, गोधूम माणा ७, जव माणा २, काम माणा ३, कोद्रवा माणा ३. आ तपर्नु फळ अगण्य लक्ष्मीनी प्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ॥ इति गोतार्थोक्वानि तपांसि ॥ हवे आचार्योक्त फळ तपस्याओ कहे छे ६२ सांग सुंदर तप. शुक्लपक्षेऽष्टोपवासा आचाम्लान्तरिताः क्रमात् । विर्धायन्ते तेन तपो भवेत्सर्वांगसुन्दरम् ॥१॥ जे तप करवाथी सर्व अंगो सुन्दर थाय ते सर्वांग सुन्दर तप कहेवाय छे. तेमा प्रथम शुक्लपक्षनी एकमने दिवसे उपवास करीने पारणे आंबिल कर. फरी उपवास करी आंबिल करवू. ए प्रमाणे आठ उपवास अने सात* आंबिल करी पंदर दिवसे (पूर्णिमाए) आ तप पूर्ण करवो. शक्ति प्रमाणे संयमादिक दश प्रकारना धर्मनुं पालन कर. कषायनो त्याग करवो. पूर्णिमाने दिवसे उद्यापन करवू. तेमां मोटी स्नात्र विधि पूर्वक देवनी पासे रत्नजडित सुवर्णमय पुरुष करावी ढोकवो. यथाशक्ति फळ, पक्वान्न ठोकवा. मुनिदान, संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपनुं फळ सर्व अंगनी सुंदरतानी प्राप्ति थाय ते छे. आ * श्री प्रवचनसारोद्धारना बालावबोध विगेरेमा पारणे आठ आंबिल पण कह्यां छे. JainEducation International Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥८४॥ नीरुजशिस तप. PRIMARRICE श्रावकने करवा लायक आगाढ तप छ. गुणणामां " नमो अरिहंताणं " पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. ६३ नीरुजशिख तप (नीरुकू सिंह.) - तपो नीरुजशिखाख्यं विधेयं तद्वदेव हि। नवरं कृष्णपक्षे तु करणं तस्य शस्यते ॥ १॥ नीरुज एटले रोगरहित जेनी शिखा एटले चूडा छे, ते नीरुजशिख नामनो तप कहेवाय छे. आ तप सर्वांग सुंदरनी जेमज करवो एटले एकांतरा आठ उपवास तथा सात आंबिल मळी पंदर दिवसे पूर्ण करवो. विशेष एटलो के आ तप कृष्ण पक्षनी एकमने दिवसे आरंभ करी अमावास्याए पूर्ण कराय छे. उद्यापन विगरे सर्वांग सुंदरनी जेम जाणवू. (जुओ नंबर ६२ वाळो तप) आ तप करवाथी आरोग्यता पाप्त थाय छे. आ श्रावकने करवा लायक आगाढ तप छे. आ तपमा ग्लान साधु साध्वीनी | औषध्यादिवडे सुश्रूषा करवानी मुख्यता छे. (निजिगीष्ठमां अने आमां तफावत छे. जुओ तप नंबर १२४ ) गरगुं विगरे पूर्वनी जेम जाणवू. ६४ सौभाग्य कल्पवृक्ष तप, सौभाग्यकल्पवृक्षस्तु चैत्रेऽनशनसंचयैः । एकान्तः परकार्यस्तिथिचन्द्रादिके शुभे ॥१॥ सौभाग्य आपवामां कल्पवृक्षना जेवो आ तप होवाथी सौभाग्य कल्पवृक्ष नामनो आ तप छे. ते चैत्र मासनी शुद एकमथी तिथि अने चंद्रादिकना शुभ योगे एकांतर पारणावाळा १५ उपवास करवाथी त्रीश दिवसे पूर्ण थाय छे. उद्यापने मोटी RESCREERSTORIES ॥ ८४॥ For Private & Personal use only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपारत्न दमयंती तप. महोदधि ॥ ८५ ॥ स्नात्र विधि पूर्वक सुवर्णनों के रुपानो कल्पवृक्ष करावी देव पासे ढोकवो. ( सुवर्णनो वृक्ष करे तो विद्रम तथा मोतीना फळवाको अने शाखावाको करवो अथवा तंडूलनो करवो. ) संघवात्सल्य-संघपूजा करवी. आतपर्नु फळ सौभाग्यनी प्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. “ॐ नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. ६५ दमयंती तप. दमयन्त्या प्रतिजिनमाचाम्लान्यकविंशतिः। कृतानि संततान्येव दमयंतीतपो हि तत् ॥ १॥ दमयंतीए नळ राजानी वियोगावस्थामा आतप करेलो होवाथी ते दमयंती तप कहेवाय छे. तेमां दरेक जिनने उद्देशीने वीश वीश तथा शासनदेवताने उद्देशीने एक एक एम एकवीश एकवीश आंतरा रहित आंबिल करवा. तेथी पांचसोने चार दिवसे आ तप पूर्ण धाय छे. शक्ति न होय तो एक तीर्थकरना एकवीश आंबिल करीने पछी पारणुं करवू. ए रीते करवाथी चोवीश दिवस पारणाना वधे छे. उद्यापनमां चोवीश तीलक करावीने प्रभुने चडाववां तथा पांचसो ने चार संख्या प्रमाण रुपाना', पक्वान्न, फळ विगेरे ढोकवा. मोटी स्नात्र विधिपूर्वक जिनपूजा करवी. संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आ तप करवाथी आपतिनो नाश थाय छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. जे तीर्थ करनो तप चालतो होय, ते तीर्थकरना नाम साथे सर्वज्ञाय नमः ए पद जोडी गरगुं नवकारचाळी २० नुं गणवं. साथिया विगेरे बार बार करवा. शासनदेवताना तपने दिवसे ते ते शासनदेवीना नामर्नु गर| गणवं. For Private Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ८६ ॥ ६६ आयतिजनक तप. कार्य द्वात्रिंशदाचामलैः स्वसत्वेन निरंतरैः । एवं स्यादायतिशुभं तप उद्यापनान्वितम् ॥ १ ॥ आयति एटले उत्तरकाळ, तेने शुभपणे जे उत्पन्न करे ते आयति ( शुभ ) जनक तप कहेवाय छे. आ तप निरंतर बत्रीश आंबिल करवाथी पूर्ण थाय छे. शक्ति न होय तो एकांतरित पारणांवाळां आंबिल करवां. उद्यापने मोटी स्नात्र विधिपूर्वक बत्रीश बत्रीश पक्वान्न, फळ विगेरे ढोकवां. संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आ तप करवाथी उत्तरकाळमां शुभ थाय छे. आ भावक करवानो आगाढ तप के. गणुं " नमो अरिहंताणं " पदनुं गणवुं. साथीया विगेरे बार बार करवा. ६. अक्षयनिधि नप. घटं संस्थाप्य देवाग्रे गन्धपुष्पादिपूजितम् । तपो विधीयते पक्षं तदक्षयनिधि स्फुटम् ॥ १ ॥ आतप अक्षय निधि ( अखूट भंडार )नी जेवो होवाथी तेनुं नाम अक्षयनिधि तप छे. ते श्रावण वद चोथने दिवसे शरु करवो. ते दिवसे जिनेश्वरनी प्रतिमा आगळ गायना छाणथी भूमि लींपीने ते पर घउंली करी तेना पर कुंभ स्थापन करवो. ( ते कुंभ सुवर्णनो, रुपानो के अन्य उत्तम धातुना अथवा छेवट माटीनो लेवो.) ते कुंभ विचित्र प्रकारना गंध पुष्पोथी पूजवो तथा तेमां सुवर्ण, मणि, मुक्ताफळ, सोपारी विगेरे नाखीने स्थापन करवुं पछी पंदर दिवस सुधी तेनुं नित्य पूजन करवुं. जिनेश्वरने त्रण प्रदक्षिणा करीने घटमां अक्षतनी अंजळी दररोज नांखवी. (ते अंजळीमां सोनानाएं, रुपानाणुं, सोपारी विगेरे लेवुं ) कुंभ पासे नैवेद्य ढोक. दररोज शक्ति प्रमाण एकासशुं अथवा बेसणं करवुं. हमेशा कुंभ पासे नृत्य, गीतादिक उत्सव ) आयति जनक तप तथा अक्षय निधि तप. ॥ ८६ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ८७ ॥ Jain Education Internation करवो. ए रीते पर्युषणा पर्यंत आ तप करवो. ( संवत्सरीने दिवसे एटले डेल्ले दिवसे उपवास करवो.) आ रीते चार वर्ष पर्यंत आतप करवो. उद्यापनमां मोटी स्नात्र विधिपूर्वक नाना प्रकारना पकवान्न, फळ विगेरे ढोकवा. संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आ तप करवाथी सर्व प्रकारनी संपत्ति प्राप्त थाय छे. बीजी रीते अक्षतनी मुठी हमेशां कुंभमां नांखवी. जेटला दिवसे ते घट पूर्ण थाय तटला दिवस प्रतिदिन एकासणादिक तप करो. बीजो सर्व विधि तथा उद्यापन उपर प्रमाणे जाणवो. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरणुं " नमो नाणस्स" ए पदनुं नवकारarat बी प्रमाण गणवुं. साथीया विगेर ५१ एकावन करवा. ६ अक्षय निधि तप. ( बीजो ) आतप श्रावण वद ४ ने दिवसे शरु करी सोळ दिवसे पूरो करबो तेमां सुवर्णनो रत्नजडित कुंभ कराववो. अथवा शक्ति प्रमाणे बीजी कोई रुपा विगेरे धातुनो कराववो अथवा केवट शक्ति न होय तो माटीना कराववो. पछी ते कुंम घरमां, देरासरमां अथवा उपाश्रये पवित्र स्थाने जिनचिनी समीपे घडंली करी ते पर स्थापवो. तेनी समीपे स्वस्तिक करी ते पर कल्पसूत्र पधराव. तेनी पासे हमेशां बन्ने काळनुं प्रतिक्रमण कर हमेशां देवपूजा करवी. पुस्तक उपर चंदरखो बांधवो, ज्ञानने धूप दीप करी हमेशां रुपानाणे पूजवुं. अथवा शक्ति न होय तो पहेले तथा उल्ले दिवसे रुपानाणे पूजनुं, अने वचला दिवसोमां यथाशक्ति द्रव्यवडे पूजकुं. पछी अक्षतनी बे हाथे अंजळी भरीने उपर सोपारी तथा रुपानां मूकी ऊभा थई ज्ञाननी " बोधागाधं० " ए थुइ भणी स्तुति करवी अथवा आ दुहो बोलबो - " ज्ञान समो ) अक्षयनिधि तप, 112011 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F तपोरत्न- महोदधि तप. 1८८॥ ADSHAHRe-%ARE को धन नहि, समता समो न सुख । जीवित सम आशा नहि, लोभ समो नहि दुःख ॥ १॥"पछी ते अक्षतनी अंजलील अक्षयनिधि सोपारी सहित कुंभमां नाखवी. उपर एक श्रीफळ मूक. एम सोळ दिवस सुधी अक्षतनी अंजळी, सोपारी तथा रुपाना| कुंभमां नाखवू. छेल्ल दिवसे कुंभ चोखाथी पूर्ण करवो. पछी खमासमण दइ " इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! श्री श्रुतदेवता आराधनार्थ काउस्सग करूं ? इच्छं, श्री श्रुतदेवताआराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं" अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग | करी, एक जण पारी “नमोऽहत्" कही "सुअदेवया भगवइ, नाणावरणीअकम्मसंघायं । तेसिं खदेउ सययं, जेसि सुअसायरे भत्ती ॥ १॥"ए थोइ कहे. “नमो नाणस्स" ए पदनी नवकारवाळी २० दररोज गणवी. आ प्रमाणे दररोज करवू. छेल्ले दिवसे रात्रीजागरण, पूजा प्रभावना करवी. पारणाने दिवसे हाथी, घोडा विगेरेथी वरघोडो शणगारी वाजते गाजते कुंभने देरासर लई जयो. ते वखते कुंभ उपर श्रीफळ राखी ते उपर लीलं, पीळं रेशमी वस्त्र वींटी उपर फूलनी माळा पहेरावी सौभाग्यवती स्त्रीने माथे मकवो. तथा नैवेद्यमा सर्व जातना पक्वान्न मुखडी विगेरे यथाशक्ति करावी तेना थाल पण सौभाग्यवती स्त्रीओने माथे मकवा. ए रीते वरघोडा सहित देरासर आवg. कुंभवाळी स्त्री रोए ऋण प्रदक्षिणा करी प्रभु पास कुंभ मुभवो. पछी नैवेद्य पण प्रभु पासे मृक. ज्ञानना पुस्तकने गुरुने स्थानके पधरावी गुरुपूजा तथा पुस्तक पूजा रुपानाणाधी करवी. भादरवा शुदि ४ ने दिवसे तपनी समाप्ति करवी ते तपना दिवसोमां निरंतर एकासणुं अथवा बसणुं करवू. छेल्ल संवत्सरीने दिवसे उपवास करवो. शुदि ५ ने रोज पारणुं करवू. स्वामीवात्सल्य, प्रभावना विगेरे करवू. ए रीते चार वर्ष सुधी आ तप करवानो नियम छे. जेटला जण तप करता होय, ते दरेके जूदा जूदा कुंभ मुकवा. आ श्रावकने ८८॥ IRSARETTER For Private & Personal use only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SH तपोरस्नमहोदधि करवानो आगाढ तप छे. ६ अक्षयनिधि अक्षयनिधि तपनी विधि. तप. प्रथम ईविही प्रतिक्रमवा, पछी इच्छाकारेण• अक्षयनिधि तप आराधन निमित्ते चैत्यवंदन करूं? इच्छं कही नीचे । प्रमाणे चैत्यवंदन कर. शासननायक मुख करण, वर्धमान जिनभाण । अहनिश एहनी शिर वहं, आणा गुणमणिखाण ।। १॥ ते जिनवरथी पामीया, त्रिपदी श्री गणधार | आगम रचना बहुविध, अर्थ विचार अपार ॥२॥ ते श्री श्रुतमा भाषियार, तप बहुविध सुखकार । श्री जिन आगम पामीने, साधे मुनि शिव सार ॥ ३ ॥ सिद्धांतवाणी सुगवा रसिक, श्रावक समकित धार । इष्ट सिद्धि अर्थ करे, अक्षयनिधि तप सार ।। ४ ॥ नप तो सूत्रमा अति घमां, साधे मुनिवर जेह । अक्षय निधानने कारणे, श्रावकने गुणगेह ।। ५ ।। ते माटे भवि तप करोए, सर्व ऋद्धि मळे सार । विधिशं एह आराधता, पामीजे भवपार ।। ६ ।। श्री जिनवर पूजा करो, त्रिक शुद्धे त्रिकाळ । तेम वळी श्रतज्ञाननी, भक्ति थइ उजमाळ ।। ७ ।। पडिकमणांचे टंकना, ब्रह्मचर्यने धरीए । ज्ञानीनी सेवा करी, सेजे भवजळ तरीए ॥ ८॥ चैत्यवंदन शुभ भावथीए, स्तवन थोइ नवकार | श्रुतदेवी उपासना, धीरविजय हितकार ॥९॥ पली जंकिंचि कहीने नमुथ्थुणं कहे. पछी वे जाति कही नमोऽहंत कही, नीचे प्रमाणे स्तवन कहे. KASHASTRORIES A REKHA For Private & Personal use only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न RECE महोदधि अक्षयनिधि तप, SANSLAKES (लावो लावोने राज मोंघा मूला मोती-र देशी.) तपवर कीजे रे, अक्षय निधि अभिधाने । सुखभर लीजरे, दिन दिन चडते वाने (ए आंकणी) पर्व पजूसण पर्व शिरोमणि, जे श्री पर्व कहाय । मास पास छठ दसम दुवालस, तप पण ए दिन थाय ॥१॥ तपवर. पण अक्षय निधि पर्व पजूसण, केरो कहे जिनभाण । श्रावण वद चोथे प्रारंभी, संवच्छरी परिमाण ॥ २॥ तपवर. ए तप करतां सर्व रिद्धि वरे, पग पग प्रगटे निधान । अनुक्रमे पामे तेह परमपद, सान्वयी नाम प्रधान ॥ ३ ॥ तपवर. परमत्सरथी कर्म बंधाणु, तेणे पामी दुःख जाळ । ए तप करता ते पूरवनु, कर्म थयुं विसराळ ॥ ४ ॥ तपवर. ज्ञान पूजा श्रुत देवी काउसग्ग, स्वस्तिक अति सोहावे । सोवन जडित कुंभ निजशक्ति, संपूरण क्रमे थावे ।। ५ ।। तपवर. जघन्य मध्यम उत्कृष्टथी करीए, इग दोय तिन वरीस । वरस चोथे श्रुतदेवी निमित्ते, ए तप बीशवावीश ॥ ६ ॥ तपवर. एणे अनुसारे ज्ञानतणुं वर, गरगुं गणीए उदार । आवश्यकादि करणी संयुत, करता लहे भवपार ॥ ७॥ तपवर इह भव पर भव दोष आशंसा, रहित करो भवि प्राणी । जे पर पुद्गळ ग्रहण न करवू, ते तप कहे वरनाणी ।८। तपवर० रातिजगा पूजा परभावना, हय गय शणगारीजे । पारणा दिन पंच शन्दे वाजे, वाजंते पधरावीजे ॥ ९॥ तपवर. चैत्य विशाळ होय तिहां आवी, प्रदक्षिणा वळी दीजे । कुंम विविध नैवेद्य संघाते, प्रभु आगळ टोइजे ॥१०॥ तपवर. राधनपुरे ए तप सुणी बहु जण, थया उजमाळ तप काजे । एम मुख्य मंडाण ओछवमां, मसालीया देवराजे ॥११॥ तपवर संवत अढार तेंतालीस वरसे, ए तप बहु भवी कीघो । श्रीजिन उत्तम पाद पसाये, पद्मविजय फळ लीधो ॥ १२॥ तपवर० BिAHABAR ४ ॥९ ॥ Jain E aston International For Private & Personal use only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि अक्षयनिषि त्यार पछी जयवीयराय कही "मयदेवयाणं करेमि काउस्सगं" अन्नथ्य. कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी, नमो. त कही " सुयदेवया भगवइ , नाणावरणीयकम्मसंघायं । तेसिं खदेउ सययं, जेसि सुयसायरे भत्ति ॥१॥" ए थोई कहेवी. पछी पच्चख्खाण करवू. पछी पूजानी ढाळ कहेवी ते नीचे प्रमाणे COCCSGRACE सप्तम पद श्री ज्ञाननो, सिद्धचक्र पद मांही । आराधीजे शुभ मने, दिन दिन अधिक उछाहि ॥१॥ छंद गाथा. अनाण संमोह तमोहरस्स, नमो नमो नाण दिवायरस्स । पंचप्पयासु उवगारगस्स, सत्ताण तव्वत्थ पयासगस्स ॥१॥ हुवे जेहथी सर्व अज्ञान रोधा, जिनाधीश्वर प्रोक्त अर्थावबोधो । मति आदि पंचप्रकार प्रसिद्धो, जगद्भासते सर्व देवाविरुद्धो॥२॥ यीय प्रभावे सुमक्षं अभक्षं, सुपेयं अपेयं सुकृत्यं अकृत्यं । जेणे जाणीए लोकमध्ये सुनाणं, सदा मे विशुद्धं तदेव प्रमाणं ॥३॥ ॥ ढाल | भव्य नमो गुणज्ञानने, स्वपरप्रकाशक भावे जी । परजाय धर्म अनंतता, भेदाभेद स्वभावेजी ॥१॥ (चाल) जे मुख्य परिणति सकल ज्ञायक, बोध भाव विलच्छना । मति आदि पंच प्रकार निर्मळ, सिद्ध साधन लच्छना ।। स्याद्वादसंगी तत्वरंगी, प्रथम भेदाभेदता । सविकल्प ने अविकल्प वस्तु, सकल संशय छेदता ॥ २ ॥ ॥ ढाल॥ BACCU ॥९१॥ For Private Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षयनिधि तपोरत्नमहोदधि ॥९ ॥ भक्षाभक्ष न जे विण लहिये, पेय अपेय विचार । कृत्य अकृत्य न जे विण लहिये, ज्ञान ते सकल आधार मसि ॥२॥ प्रथम ज्ञान ने पछे अहिंसा, श्री सिद्वति भाख्यं । ज्ञानने वंदो ज्ञान म निदो, ज्ञानीए शिवसुख चाख्यु रे ॥ भ०॥२॥ सकल क्रियानुं मूल जे श्रद्धा, तेहर्नु मूल जे कहिये । तेह ज्ञान नित्य नित्य बंदीजे, ते विण कहो केम रहिये । भ.॥३॥ पंच ज्ञानमांहि जेह सदागम, स्वपरप्रकाशक जह । दीपक परे त्रिभुवन उपगारी, बळी जेम रवि शशी मेहरे ॥ भ०॥४॥ लोक ऊर्घ अधो तिर्यग् ज्योतिष, वैमानिक ने सिद्ध । लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, तेह ज्ञाने मुन शुद्धरे ॥ भ०॥५॥ ढाळ त्रीजी | ज्ञानावरणी जे कम छे, क्षय उपशम तम थाय रे । तो हए एहिज आत्मा, ज्ञान प्रबोधता जाय रे ।। वी । १॥ पछी "ॐदी परमात्मने नमः ज्ञानपदेभ्यः कलशं यजामहे स्वाहा"ए मंत्र बोलीने ज्ञाननी वासक्षेपवडे पूजा करवी. अने पछी द्रव्य पूजा करवी एटले सोनामहोर तथा रुपामहारथी ज्ञाननी यथाशक्ति पूजा करवी, पछी नीचे प्रमाणे दुहा बोली श्रुतज्ञानना २० भेदना २० खमासमण देवा. पीठीकाना दुहा सुखकर संखेमर नमी, थुगश्युं श्री श्रत नाण । चउ मुंगा श्रुत एक छे, स्वपर प्रकाशक भाण ॥१॥ अभिलाप्य अनंतमे, भागे रचियो जह । गणधर देवे प्रणमीणो, आगम रयण अछेह ॥ २॥ इम बहुली वक्तव्यता, छ. ठाण बडीया भाव । श्माश्रमण भीष्ये कया, गोपय सर्प जमाव ।। ३ ।। १ जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणे । २ विशेषावश्यक भाष्यमा । PRECIATEKKAKA ॥९ ॥ For Private Personal use only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षयनिधि तपोरत्नमहोदधि PH: मम तप. 5- MASSAURec लेशथकी श्रुत वरण, भेद भला तस वीश । अक्षयनिधि तपने दिने, क्षमाश्रमण ते वीश ॥४॥ सूत्र अनंत अर्थ मई, अक्षर अंश लहाय । श्रुतकेवळी केवळी परे, भाखे श्रुत परजाय ॥ ५ ॥ (प्रथम भेद )१ श्री श्रुतज्ञानने नित नमो, भाव मंगलने काज । पूजन अचन द्रव्यथी, पामो अविचल राज ॥ ६॥ (खमासमण देवं) (आ छठो दुहो दरेक खमासमणे कहेवो.) इग सय अडवीस स्वरतणा, तिहाँ अकार अढार । श्रुत पर्याय समासमें, अंश असंख्य विचार ॥ ७॥ श्री श्रु. ॥२॥ बत्रीश वर्ण समाय छे, एक सिलोक मझार । ते माह एक अक्षर आहे, ते अक्षर श्रुत सार ॥ ८॥ श्री श्रु.॥३॥ क्षयोपशम भावे करी, बहु अक्षरनो जेह । जाणे ठाणांग आगले, ते श्रुतनिधि गुणगेह ॥९॥ कोडी एकावन अडलखा, अडसय एकाशी हजार । चालीश अक्षर पद तणा, कहे अनुयोग दुवार । १०॥ श्री ॥श्रु०॥४॥ अर्थाते इहां पद का, जिहां अधिकार ठराय । ते पद श्रुतने प्रणमता, ज्ञानावरणी हठाय ॥ ११ ॥ श्री ध्रु.॥५॥ अढार हजार पदे करी, अंग प्रथम सुविलास ! दुगुणा श्रुत बहु पद ग्रहे, ते पद श्रुत समास |॥ १२॥ श्री श्रु.॥६॥ पिंड प्रकृतिमा एक पदे, जाणे बहु अवदात । क्षयोपशमनी विचित्रता, तेहज श्रुत संघात ।। १३ ।। श्री श्रु०॥७॥ पंचोतेर भेदे करी, स्थिति बंधादि विलास । कम्मपयडी पयडी आहे, श्रुत संघात समास ॥ १४ ॥ श्री श्रुः ॥८॥ गत्यादिक जे मार्गणा. जाणे नेहमां एक । विवरण गुणठाणादिके, तस प्रतिपत्ति विवेक । १५ ॥ श्री श्रृ. ॥ ९॥ . १ श्लोक SARSHASTRISANKALACESS ॥९३॥ For Private Personal use only Jain Education Internations Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षयनिधि तपोरलमहोदधि ॥१४॥ तप ISGRACTICE जे बासाहही मार्गणा पदे, लेश्या आदे निवास । संग्रह तरतम योगथी, ते प्रतिपत्ति समास ॥ १६ ॥ श्री श्रु.॥१०॥ संतपदादिक द्वारमा, जे जाणे शिव लोग । एक दोय द्वारे करी, श्रद्धा श्रुत अनुयोग ॥ १७ ॥ श्री श्रु०॥११॥ वली संतादिक नव पदे, तिहां मार्गणा भास । सिद्धतणी स्तवना करे, श्रुतअनुयोग समास ॥ १८॥ श्री श्रु०॥ १२ ॥ प्राभृत प्राभृत श्रृंत नमुं, पूरवना अधिकार । बुद्धि प्रबल प्रभावथी, जाणे एक अधिकार ।। १९ ॥ श्री श्रु० ॥ १३ ॥ प्रामृत प्राभृत श्रुत समा, साभिध लब्धि विशेष । बहु अधिकार इस्या ग्रहे, क्षीराश्रव उपदेश ॥ २० ॥ श्री श्रु०॥ १४॥ पूरवगत वस्तु जिके, प्राभृत श्रुत ते नाम । एक प्राभृत जाणे मुनि, तास करुं परिणाम ।। २१ ॥ श्री श्रु० ॥१५॥ पूरव लब्धि प्रभावथी, प्राभृत श्रुत समास । अधिकार बहुला ग्रहे, पद अनुसार विलास ॥ २२ ॥ श्री श्रु० १६ ॥ आचारादिक नामथी, वस्तु नाम श्रुत सार । अर्थ अनेक विधे आहे, ते पिण एक अधिकार ॥ २३ ॥ श्री श्रु० ॥१७॥ दग सय पण वीस वस्तु छे, चौद पूरवनो सार । जाणे तेहने बंदना, एकश्वासे सो रार ॥ २४ ।। श्री श्रु० ॥१८॥ उत्पादादि पूरव जे, सूत्र अथे एक सार । विद्या मंत्र तणो कयो, पूरव श्रुत भंडार ॥२५॥ श्री श्रु.॥१९॥ बिंदुसार लगे भणे, तेहिज पूरव समास । श्री शुभवीरने शासने, होजो ज्ञान प्रकाश ॥ २६ ॥ श्री श्रु० ॥२०॥ (प्रथमना ४ पीठीकाना दुहा, ६ ठो दरेक भेदे कहेबानो दुही अने ९ मो दुहा तेटला खमासमणमां न गणवा). ॥ इति अक्षय निधि तप खमासमणना दुहा समाप्त । ॥९४॥ Jain Education Internation For Private Personal use only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरन महोदधि REPORTER पली पसली (खोबो) भरी बोधागा सुपदपदवी• ए स्तुति चोलीने ते पस कुंभमा नांखवो. कुंभ पासे कल्पसूत्रनी|| मुकुट स्थापना करवी. माथे चंदरवा, पुंठीयां बांधवां. डांगरनी ढगली उपर कुंभ स्थापना. पंदरमे दिवसे ते कुंभ पूरो भरवो. पछी ४सप्तमी तपतेना पर श्रीफळ मकी तेने लीला अथवा पीळा रेशमी वस्त्रथी बांधवो. श्रावण वद चोथथी आरंभी भादरवा शुदी चोथने दिवसे तप पूरी करवो. दररोज एकासणां करवा. ब्रह्मचर्य पाळ. कुंभ पासे अखंड दीवो फानस विगेरेमा जतनापूर्वक राखवो. "ॐही श्री क्की नमो नाणस्स" ए गर| नवकारवाळी वीश प्रमाण गणवू.'दश लोगस्सनो काउसग्ग करवो. छल्ले तथा पहेले दिवसे रात्री जागरण करवू, तथा वरघोडो काढवा. ६८ मुकुट सप्तमी तप. अषाढादि च पोषान्तं सप्त मासान् शितीष्वपि । सप्तमीषूपवासाश्च विधेयाः सप्तसंख्यकाः॥१॥ मकटना उद्यापनवडे जणाती जे सप्तमी ते संबंधी तप ते मुकुट सप्तमी तप कहेवाय छे. आ तपमा आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन कार्तिक, मार्गशीर्ष अने पोष ए सात मासनी कृष्णपक्षनी सातमने दिवसे उपवास करवो. तेमां अनुक्रमे विमलनाथ १, अनंतनाथ २, चंद्रप्रभ अथवा शांतिनाथ ३, नेमिनाथ ४, ऋषभदेव ५, महावीर ६ अने पार्श्वनाथ ७, ए सात तीर्थकरोने आश्रीने एक एक सप्तमीए तप करवो. तथा ते दिवसे ते ते तीर्थकरोनी मोटीस्नात्र विधिए पूजा करवी. उद्यापनमा मोटी स्नात्र १ कोई रीते दीवामां जीवजंतु न पडे तेवो सगवड राखबो. २ आवा कठण अक्षरो गणवा भारे पडे तेणे " नमो नाणस्स" VI आटलोज जाप करवो. एक प्रतिमा होवाथी अहीं मंत्र अक्षरो पण लख्या छे. ॥ ९५॥ For Private Personal Use Only anwrwainetorary.org Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि RELAGECERESEARCRORE विधिपूर्वक जिनपूजा करवी. रूपानी लोकनालिका करावी तेना उपर सुवर्णमय रत्नजडित मुकुट करावी देव पासे ढोकवो. सात सात पक्वान्न, फळ विगरे ढोकवा. संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आतपर्नु फळ बांछितनी प्राप्ति थाय छे. ते आ श्राबकने करवानो आगाढ तप छे. जे जे तीर्थकरोनो तप चालतो होय ते ते तीर्थकरना नामर्नु गर' (जेमके पहेलं “विमलनाथाय नमः") नवकारवाळी वीशर्नु गणवं. साथीया विगरे बार बार करवा. ६९ अंबा तप. शुक्लास्तु पञ्चाब्वेव पञ्चमासेषु वै तपः । एकभक्तादिना कार्यमंबापूजनपूर्वकम् ॥ १॥ अंबा देवीनी आराधना माटे आ तप छ. तेमां पांच मासनी शुक्ल पांचमने दिवसे एकासणादिक तप करवो. अने ते दिवसे नेमिनाथ तथा अंबा देवीर्नु पूजन करवू. उद्यापने उत्तम घातुनी अंबा देवीनी मूर्ति करावी तेनी स्थापना करवी. शास्त्रोक्त विधिए तेनी हमेशां पूजा करवी. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तप करवाथी अंबा देवी पासेथी वरदाननी प्राप्ति थाय छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. (जैन प्रबोधमां कृष्ण पक्षनी पंचमीए करवानो कह्यो छे. तथा उजमणे साधुने नवां वस्त्र अन्न, विगरे आपी प्रतिलाभवा अने अंबानी मूर्ति चे पुत्र सहित तथा आम्रनी लुम्ब सहित करावी. पछी तेनुं पूजन करवू एम कयु है. गाणु" श्री अंबिकादेव्यै नमः" ए पदनुं नवकारवाळी वीश प्रमाण गणवू. ७० श्रृतदेवता तप. .. एकादशसु शुक्लषु पक्षेष्वेकादशीषु च । यथाशक्ति तपः कार्य वाग्देव्यर्चनपूर्वकम् ॥ १ ॥ BREASORRECT For Private Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥९॥ *CIRCASSSSCRIL श्रुतदेवीनी आराधना माटे आ तप छे. तेमां अगीयार शुक्ल एकादशीने दिवसे श्रुतदेवीनी पूजापूर्वक यथाशक्ति एकासणादिक तप करवो. उद्यापने श्रुतदेवीनी मूर्ति उत्तम धातुनी बनावी तेनी प्रतिष्ठा करवी, तथा विधि प्रमाणे पूजा करवी. आ तपर्नु फळ श्रुतज्ञाननी प्राप्ति थाय ते छे. उपर प्रमाणे अगियार शुक्ल एकादशीए उपवास करीने मौन धारण करवू, एम पंचाशकमां तथा प्रत्यतरमा कथं छे. "श्री श्रुतदेवताय नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. ७१ रोहिणी तप. रोहिण्यां च तपः कार्य वासुपूज्यार्चनायुतम् । सप्तवर्षी सप्तमासी उपवासादिभिः परम् ॥ १॥ आ तप रोहिणी नक्षत्रमा थाय छे, तेथी ते रोहिणी तप कहेवाय छे. ते तप अक्षय तृतीयाने दिवसे अथवा तेनी आगळ पाछळ ज्यारे रोहिणी नक्षत्र होय त्यारे शरु थाय छे. ते तप श्री वासुपूज्य स्वामिनी पूजा पूर्वक सात वर्षे अने सात मास मास सुधी करवो. एटले मासे मासे ज्यारे रोहिणी नक्षत्र होय ते ते दिवसे उपवासादिक ( उपवास, ऑविल, नीवि विगेरे) तप करवो, जो कदाच एक पण रोहिणी नक्षत्र भूली जवाय तो फरीथी प्रथमथी आरंभ करवो. उद्यापनमां श्री वासुपूज्य स्वामीनी प्रतिमानी मोटी स्नात्रविधिए पूजा करीने सुवर्णमय अशोक वृक्ष ढोकत्रो. (प्रत्यंतरना मते सुवर्णमय सोम राजा तथा अशोक युक्त रोहिणी राणी तथा वासुपूज्य स्वामिनी प्रतिमा करावी देव पासे ढोकत्री. एकसो ने एक संख्या प्रमाण मोदक, फळ, दीप विगेरे ढोकवा.) संघवात्सल्य संघ पूजा करवी. आतपर्नु फळ अविधवापणु तथा सौभाग्य सुखनी प्राप्ति थाय ते छे. AAAAACHAR ।। ९७॥ in Heston International For Private Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥९८॥ RECALCHAKRAKASH आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ( आ तप पौपध पूर्वक उपवास करीने करवानो प्रचार छे. अथवा पौषध न थइ शकेली तीर्थकर तो आरंभादिक कार्य न करे.) "श्री वासुपूज्यसर्वज्ञाय नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे चार मातृ तप. बार करवा. - ७२ तीर्थकर मातृ तप. भाद्रपदशुक्लपक्षे प्रारभ्य सप्तमी तिथिम् । त्रयोदश्यन्तमाधयं तपो माउरिसंज्ञकम् ॥१॥ तीर्थकरोनी मातानी आराधना माटे आ तप छे. तेनो भाद्रपद शुदी सातमने दिवसे आरंभ करी शुदी तेरस सुधी दूध, दही, घी, करंबो (दही भात), खीर, लापसी अने घेवरवडे श्री जिनमातानी पूजा करी (आगळ धरी) हमेशां एकासणादिक तप करवो. ते तप सात वर्ष सुधी करवो, परंतु बबे वरसे आ प्रमाणे उद्यापन करवू-भादरवा शुदी चौदशने दिवसे चोवीश पुडा, पुरी, पक्वान्न, फळ विगेरे जिनमाता पासे ढोकवा. तथा पुत्रवाळी चोवीश श्राविकाने वस्त्र, अंगराग, तांबूल विगेरे आपवू, पठी सातमा वर्षना उद्यापनमा श्री जिनमातानी आगळ सातमने दिवसे तेल ढोकवू, आठमे घी, नवमीए पक्वान्न, दशमीए गायनुं दूध, अगियारसे दही, बारसे गोळ अने तेरसे खीचडी, वडी, कणिक (लोट), हरडे, धाणा, मेथी, गुंदर, आंजण, शलाका, सात सात पान, सोपारी विगेरे ढोकवा. पुत्रवाळी श्राविकाने श्रीफळ आपवां. संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आ तपर्नु फळ पुत्रप्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "श्री जिनमात्रे नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. ROCEASEASEARCHEIR For Private Personal Use Only anaw.jainelibrary.org Ein E n Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥९९॥ GREACHERES सर्व सुख संपत्ति तप. STREAMINECRECISION ७३ सर्व सुख संपत्ति तप. एकादिवृद्ध्या तिथिषु तप एकाशनादिकम् । विधेयं सर्वसंपत्तिसुखे तपसि निश्चितम् ॥१॥ सर्व सुखसंपत्तिनुं कारण होवाथी आ तप सर्व सुखसंपत्ति नामनो कहेवाय छे. तेमां शुक्ल के कृष्ण पक्षनी एकमने दिवसे एक एकासणादिक तप करवो. बीजे पखवाडीये बीजथी वे एकासणादिक करवां. बीजे पखवाडीये त्रीजथी त्रण एकासणादिक करवा. चोथे पखवाडीये चोथथी चार एकासणादिक करवां. ए रीते वधतां वधतां पंदरमे पखवाडीये पूर्णिमाथी अथवा अमावास्याथी पंदर एकासणादिक करवा ( प्रवचनसारोद्धारमा एकासणाने बदले उपवास करवानुं कर्तुं छे. ) परंतु जो कदाच कोई तिथि भूली जवाय तो तपनो आरंभ फरीथी करवो. आ रीते करता आ तप एकसो ने बीश तपना दिवसोवडे पूर्ण थाय छे. उद्यापने स्नान पूजापूर्वक एक सो ने वीश मोदक ढोकवा. संघवात्सल्य संघपूजा करकी. आ तपर्नु फळ सुखनी प्राप्ति थायते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे, आनुं गर| तप नंबर ७६ थी जाणवू. साथीया विगेरे बार बार करवा. | बीजी रीते एक पखवाडीयानी एक एकमनो उपवास करवो. वे पखवाडीयानी ये बीजना उपवाय, त्रण पखवाडीयानी त्रण त्रीजना उपवास, ए प्रमाणे चडता चडता पंदर पखवाडीयानी पुनम तथा अमासना उपस करबाथी पण आ तप थाय | छे. आ तप मोटो पखदासो कहेवाय छे. आ तपमां कोई तिथि भूली जवाय तो आवती बीजी तिथि लई शकाय छे पण करेलो तप निष्फळ थतो नथी. E ARCAREERAL ॥९९॥ Jain Education For Private Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C तपोरत्नमहोदधि ॥१०० अष्टापद पावडी तप तथा मोक्षकरंडक तप SRUCHARIUCRECIBAR ७४ अष्टापद पावडी तप. (अष्टापद ओळी.) आश्विनेऽष्टाहनिकास्वेव यथाशक्ति तपाक्रमैः । विधेयमष्ट वर्षाणि तंप अष्टापदं परम् ॥ १॥ अष्टापद पर्वत उपर चडवानो जे तप, ते अष्टापद पावडी तप कहेवाय छे. तेमां आश्विन-शुदी आठमथी पूर्णिमा सुधीना आठ दिवस ते एक अष्टाहिका (ओळी) कहेवाय छे. ते दिवसोमा यथाशक्ति (उपवासादिक ) तप करवो. पहेली ओळीए तीर्थ करनी पासे सुवर्णमय एक सोपान ( पगथिपुं) करावीने मूकबुं. तथा तेनी अष्टप्रकारी पूजा करवी. ए प्रमाणे आठ वर्ष सुधी आठ सोपान स्थापी तप करवो. उद्यापने मोटी स्नात्रविधिपूर्वक चोवीश चोवीश पक्वान्न, फळ विगरे ढोकवा. आतपर्नु फळ | दुर्लभ वस्तुनी प्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "अष्टापदतीर्थाय नमः" ए पदमुं गरगुं वीश नवकारवाळी प्रमाण गणवू. साथिया विगेरे आठ आठ करवा. बीजी रीते आसो वद अमावास्याथी आरंभी एकांतरे आठ उपवास करवा. पारणे एकास' करवू. ए प्रमाणे आठ वर्ष कर. उद्यापने अष्टापद पूजा, घृतमय गिरिनी रचना, सुवर्णमय नीसरणीओ आठ आठ पगथियावाली आउ करावी. पक्वान्न तथा सर्व जातिनां फळो चोवीश चोवीश ढोकवा. बीजी सर्व वस्तु आठ आठ ढोकवी. (जैन प्रबोधमां आ तपने अष्टापद ओळी पण कहे छे.) ७५ मोक्षदंड तप. ( मोक्षकरंडक तप.) यावन्मुष्टिप्रमाणः स्याद्गुरुदंडश्च तावतः। विदधीतकान्तरांश्चोपवासान्सुसमाहितः॥१॥ HARACETABASNET Main Education International For Private & Personal use only HOMw.iainelibrary.org Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 अदुःखदर्शी तपोरत्नमहोदधि ॥१.१॥ तप. GRECARCINECTEE मोक्षदंड संबंधी जे तप ते मोक्षदंड तप कहेवाय छे. तेमां गुरुनो दंड (दांडो ) जेटली मुठीना प्रमाणनो होय तेटला उपवासो एकांतरा पारणावाळा करवा. छेल्ले उपवासे गुरुना दंडनी चंदनथी पूजा करवी. तथा गुरुने वस्त्रदान प्राप. श्रीफळ तथा अक्षत दांडा पासे ढोकवा. उपवासनी संख्या जेटला फळ, मुद्रा ( रुपानाj), पक्वान्न विगेरे दांडा पासे मूकवा. संघपूजा संघवात्सल्य करवू. आ तपर्नु फळ विपत्तिनो नाश थाय ते छे. आ श्रावकने करवा लायक आगाढ तप छे. "नमो लोए सम्बसाहूर्ण" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथिया विगरे सत्तावीश करवा. बीजी रीत एवी छ के-गुरुना दांडाने अंगुष्ठना पर्ववडे मापवो. जेटली संख्या थाय तेटला एकासणां करवा. तथा उद्यापने तेटली संख्यावाळा मोदक विगेरे दांडा पासे ढोकवा. बाकी सर्व उपर प्रमाणे (नं. ब.) करवं. त्रीजी रीत एवी छ के-उपवास एक, आंबिल एक, नीवी एक, एकास' एक, पुरिमट्ट एक-आ एक ओळी थइ. एवी | पांच ओळी करवाथी पचीस दिवसे आ तप पूरो थाय छे. उद्यापन उपर प्रमाणे (विधिप्रपा विगरे प्रतो ) करवू. गर| विगेरे तप नंबर १ प्रमाणे कर. ( आ तपने मोक्षकरंडक तथा पांच पच्चख्खाणनी ओळी पण कहे छे.) ७६ अदुःखदशी तप. शुक्लपक्षेषु कर्तव्याः क्रमात्पञ्चदशस्वपि । उपवासास्तिथि प्वेवं पूर्यते विधिनैव तत् ॥ दुःख जोवानो जेनो स्वभाव नथी ते अदुःखदर्शी ( अदुःख देखी) नामनो तप कहेवाय छे. तेमा प्रथम शुक्ल पक्षनी RECRUARNAGAR Jain Education For Private Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि अदुःखदर्शी तप. CRIBE%TOGRESS एकमने दिवसे उपवास करवो, पछी बीजे मासे शुद बीजनो उपवास करवो. पछी त्रीजे मासे शुदी त्रीजनो उपवास करवो. ए प्रमाणे चडता चडता पंदरमे मांसे पूर्णिमानो उपवास करवो. ए रीते करतां पंदर मासे कुल पंदर उपवासवडे आ तप पूर्ण थाय छे. आ तप करत जो कोई तिथि भूली जवाय तो तपनो आरंभ फरीथी करवो. उद्यापने श्रीऋषभदेवनी पूजा करवी. रुपार्नु वृक्ष कराव., तेनी शाखा साथे सुवर्णतुं रेशमी पाटीवाळु पार[ [ घोडीयुं ] टांगवं. तेमां रेशमी तळाई पाथरवी. ते उपर सुवर्णनी पुतळी सुवाडवी. पंदर पंदर पक्वान्न, फळ, रुपानाणुं विगरे ढोकवां. तथा पंदरे मासनी तपनी तिथिए नवा नवा नैवेद्य, पक्वान्न, फळ विगेरे ढोकवां. संघपूजा, संघवात्सल्य करवू. आ तपनुं फळ सर्व दुःखनो नाश थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. बीजी रीते दरेक पखवाडीयानी तिथिए उपर प्रमाणे चडता चडता उपवास करवा. तेम करवाथी पंदर पखवाडीये | आ तप पूरो थाय छे.' " श्रीऋषभस्वामी अर्हते नमः" आ पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथिया विगेरे बार बार करवा. ७७ अदुःखदर्शी तप (बीजो) त्रीजी रीत एवी छे के-एकांतरा पंदर उपवास तिथिना नियम विना ज करवा. बाकी उद्यापन विगरे उपर पमाणे कर. १. आ तपर्नु नाम नानो पखवासो पण कहेवाय छे. ( आ तपमा तिथि भूली जवाय तो बीनी आवती तिथि लई शकाय छे पण फरी शरू करवो पडतो नथी.) HARKAASHASKAROCAL For Private Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि ॥ १०३ ॥ Jain Education गरणुं विगेरे नीचे प्रमाणे १ श्री कुंथुनाथ पारंगताय नमः २ श्री शीतलनाथ पारंगताय नमः ३ श्री आदिनाथ परमेष्ठिने नमः ४ श्री श्रेयांसनाथ पारंगताय नमः ५ श्री धर्मनाथ पारंगताय नमः ६ श्री नेमिनाथ सर्वज्ञाय नमः ७ श्री चंद्रप्रभ सर्वज्ञाय नमः ८ श्री अभिनंदन पारंगताय नमः सा० ख० लो० नो० १७ १७१७२० १० १० १० २० १ १ १२० ११ ११ ११२० १५ १५ १५ २० २२२२२२२० ८ ८ ८ २० ४ ४ ४ २० ९ श्री मुनिसुव्रत पारंगताय नमः १० श्री अरनाथ पारंगताय नमः ११ श्री मल्लिनाथ पारंगताय नमः १२ श्री अरनाथ सर्वज्ञाय नमः १३ श्री ऋषभदेव पारंगताय नमः १४ श्री वासुपूज्य पारंगताय नमः १५ श्री संभवनाथ नाथाय नमः १६ श्री महावीर पारंगताय नमः ७८ गौतम पडो. सा० ख० लो० नो० २०२० २०२० १८ १८ १८ २० १९ १९ १९२० १८ १८ १८ २० १ १ १२० १२ १२ १२ २० ३ ३ ३ २० २४ २४ २४ २० राकासु पंचदशसु स्वशक्तेरनुसारतः । तपः कार्य गौतमस्य पूजाकरणपूर्वकम् ॥ १ ॥ श्री गौतमस्वामीना पात्राने उद्देशीने आ तप करवामां आवे छे, तेथी तेनुं नाम गौतम पतद्ग्रह ( पडघो ) कहेवाय छे. आतपम दरेक पूर्णिमाए यथाशक्ति उपवास, एकासणुं विगेरे तप करवो. तथा श्री गौतमस्वामीनी मूर्तिनी पूजा करवी. ए गौतम पडघो तप. ॥ १०३ ॥ w.jainelibrary.org Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्वाण सपोरत्नमहोदघि ॥१०४॥ दीपक तप. रीते पंदर पूर्णिमा सुधी तप करवो. उद्यापने श्री गौतमस्वामी तथा श्री महावीरस्वामीनी मोटी स्नात्रविधिए पूजा करवी, रुपानुं पात्र करावी तेमा खीर भरी झोळी सहित गौतम स्वामीनी तथा महावीरस्वामीनी मूर्ति पासे मूकबु. तथा काष्ठमय पायें खीर अने झोळी सहित गुरुने वहोराव. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आतप करवाथी विविध लब्धिनी प्राप्ति थाय छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. बीजी रीते कात्तिक शुदी एकमने दिवसे उपवासादिक तप करीने गौतमस्वामीनी पूजा विगेरे उपर प्रमाणे सर्व करवू. आ प्रमाणे एक वर्ष सुधी दरेक एकमने दिवसे करवू. उद्यापन विगेरे उपर प्रमाणे कर. " श्री गौतमस्वामीने नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे सतावीश करवा. ७९ निर्वाण दीपक तप (दीवाळीनो छट्ट.) वर्षत्रयं दीपमाला पूर्व मुख्य दिनद्वये। उपवासद्वयं कार्य दीपप्रस्तारपूर्वकम् ।। १ ।। निर्वाण( मोक्ष )ना मागने विष दीवा समान आ तप होवाथी निर्वाण दीपक नामे कहेवाय छे. तेमां दीवाळीनी चौदश तथा अमावास्या ए बन्ने दिवसनो छह करवो. ते वन्ने दिवस अने रात्रीए श्री महावीरस्वामीनी प्रतिमानी पासे अखंड चोखा तथा अखंड घीना दीवा मूकवा. उद्यापनमां श्री महावीरस्वामीनी प्रतिमानी मोटी स्नात्रविधिए पूजा करी एक हजार घीजा दीवा मूकवा.' संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ प्रमाणे त्रण वर्ष करवाथी आ तप पूर्ण थाय छे. आ तपन फळ मोक्षमार्गनी १ खीर भरीने पावें गुरुने वहोरावq एवो पण प्रचार छे. GARCANCE ROCTORIES AMA ForPrivate LPersonal use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमृताष्टमी तपोरत्नमहोदधि SHASTRUCREASE प्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. साथीया विगेरे बार बार करवा. गरगुं आ प्रमाणे श्री महावीरस्वामी सर्वज्ञाय नमः नवकारवाळी २०. चतुर्दशीए. श्री महावीरस्वामी पारंगताय नमः नवकारवाळी २०. अमावास्या प्रथम रात्रे. श्री गौतमस्वामि सर्वज्ञाय नमः नवकारवाळी २०. अमावास्था पाछली रात्रे, ८० अमृताष्टमी तप. शुक्लाष्टमीषु चाष्टासु आचाम्लादितपांसि च । विदधीत स्वशक्त्या च ततस्तत्पूरणं भवेत् ॥१॥ अमृतना अभिषेकवडे जणाती जे अष्टमी ते अमृताष्टमी कद्देवाय छे. आ तप शुक्ल पक्षनी आठ आठमने दिवसे अपिल (अथवा उपवास ) विगेरे पोतानी शक्ति प्रमाणे करवाथी पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधि पूर्वक घी तथा दूधना मेरेला कळश वे ( उपर नवं वस्त्र ढांकीने ) तथा एक मण मोदक देव पासे ढोकवा. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. आतपर्नु फळ आरोग्यतानी प्राप्ति थाय ते छे. (कळश उपर नवु लीलुं वन ढांकी ते उपर साकर, & लविंग तथा मोटो लाडु मृकवानुं पण नं. ब. विगेरे प्रत्यंतरमा कां छे.) चीजी रीते एकासणां तेर, नीवी चोवीश, आंबिल पंदर, ए प्रमाणे लगोलग करवाथी पण आ तप पूर्ण थाय छे, बीजो सर्व विधि उपर प्रमाणे समजवो. ____ "ॐ नमो सिद्धाणं " पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे आठ आठ करवा. UGUSARASGUAGRA ॥ १०५. in Education in For Private & Personal use only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥१०६॥ ८१ अखंड दशमी तप. अखंड दशशुक्लासु दशसंख्यासु निजशक्त्या तपोविधिम् । विदधीत ततः पूर्ति तस्य संपद्यते क्रमात ॥१॥ 13मी तप तथा अखंडित दशमीने दिवसे जे तप करवामां आवे तेनुं नाम अखंड दशमी तप कहेवाय छे. तेमां दश शुक्ला दशमीने दिवसे परत्र पाली पोतानी शक्ति प्रमाणे एकासणादिक तप करवो, तेथी ते तप पूर्ण थाय छे. (तपने दिवसे अखंड अन्ननु भोजन करवु. एटले तप. के मुशळवडे नहीं खांडेला एवा चोखार्नु भोजन करवू.) उद्यापने दश दश पक्वान्न, फळ, रुपाना' विगेरे देव पासे ढोकवं. अखंड अक्षतर्नु नैवेद्य मूक. अखंड (नवू ) वस्त्र गुरुने वहोरावq. चैत्यनी फरती घीनी त्रण धारा अखंड करवी. (प्रभुनी हैं प्रतिमा एक मोटा तासमा बिराजमान करी, सवापांचशेर घी लई तेनी अखंड धारावाडी जरा मात्र पण धार त्रुटे नहीं ते रीते। प्रतिमाजी फरती करवी.) संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आतपर्नु फळ अखंड सुखनी प्राप्ति थाय छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. ८२ परत्र पाली तप. : पञ्च वर्षाणि वीरस्य कल्याणकसमापितः । उपवासत्रयं कृत्वा द्वात्रिंशदरसांश्चरेत् ॥ १॥ परलोकने विष पालना जेवू जे तप ते परत्र पाली तप कहेवाय छे. तेमां श्री महावीरस्वामीना कल्याणकोनी समाप्तिथी १ नं.ब बिगेरे प्रतिओमां अखंड अन्न खावानुं लख्युं छे. PRECARCISHRA For Private W JainEducation Personal Use Only ww.jainelibrary.org Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपान तपोरत्नमहोदधि तप. | एटले दिवाळीना दिवसथी आरंभीने प्रथम त्रण उपवास ( अट्टम ) करवो. पछी आंतरा रहित वत्रीश नीवी करवी. कोईना मतमा दश उपवास एकांतरा करवानुं पण कहेलं छे. (जैन धर्मसिंधु तथा जैन प्रबोधमां छेल्लो पण अट्टम करवो एम कडं छे.) आ प्रमाणे पांच वर्ष सुधी तप करवो. उद्यापने दरेक वर्षे थाळमां एक शेर लापशीनी पाळ करी बच्चे घीथी पूर्ण करी देव पासे ढोकवी. पांच वर्षने अंते डेल्ला उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिपूर्वक जिनपूजा करी उपर प्रमाणे नैवेद्य तथा विविध प्रकारना पक्वान्न, फळ, रुपानाणु विगेरे देव पासे ढोकवा. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपनुं फळ परलोकमां सद्गतिनी प्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " श्री महावीरस्वामि पारंगताय नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ८३ सोपान (पावडी) तप. सप्ताष्टनवदशभिस्तद्गुणैस्तिथिसंक्रमैः । दत्तिभिः पर्यते चैव सोपानतप उत्तमम् ॥१॥ मोक्ष पर आरोहण करवा माटे सोपान ( पगथिया) जेवू होवाथी आ सोपान एटले पावडी तप कहेवाय छे. आ तपमा चार प्रतिमाओ करवानी कहेली छे. सात सप्तमिका, आठ अकृमिका, नव नवमिका अने दश दशमिका. आ चार प्रतिमा आ प्रकारे करवी.-अहीं सात सप्तमिका एटले सात दिवसनी एक ओळी, एवी सात ओळी करवी. अर्थात् आ सात ओळीना दिवस ४९ थाय. तेमां पहेली सात दिवसनी ओळीमां हमेशा एक एक दत्ति करवी. वीजा सात दिवसनी बीजी ओळीमां हमेशा बबे दत्ति करवी. त्रीजी ओळीना साते दिवसमां हमेशां त्रण त्रण दत्ति करवी. ए प्रमाणे वधता वधता सातमी ओळीना साते दिवस %ECIDCORES AARRRECORDS40 CRk For Private Personal Use Only Dainelibrary.org Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपान तपोरत्नमहोदधि BECADARSHASTRORECAKC हमेशां सात सात दत्ति करवी. ( कुल दत्ति १९६.) बीजी आठ अहमिका-अहीं आठ दिवसनी एक ओळी गणवी. एची आठ ओळी करवाथी ६४ दिवसे आ वीजी प्रतिमा ५ पूर्ण थाय छे. अहीं पण उपरनी जेम पहेली ओलीना आठे दिवस हमेशा एक एक दत्ति करवी. बीजी ओलीना आठे दिवस बवे करवी. ए रीते वधता आठमी ओळीना आठे दिवस हमेशा आठ आठ दत्ति करवी. (कुल दत्ति २८८) त्रीजी नव नवमिका-अहीं नव दिवसनी एक ओळी एवी नव ओळी करतां ८१ दिवसे आ प्रतिमा पूर्ण थाय छे. तेमां पण उपर प्रमाणे पहेली नव दिवसनी ओळीमां हमेशा एक एक दत्ति करवी. बीजी नव दिवसनी ओळीमां हमेशा बचे दत्ति, ए प्रमाणे चडता चडता छवटे नवमी ओळीए हमेशां नव नव दत्ति करवी. ए रीते करतां कुल दत्ति ४०५ थाय छे. चोथी दश दशमिका-अहीं पण दश दिवसनी एक ओळी एवी दश ओळी करतां सो दिवसे आ प्रतिमा पूर्ण थाय छे. अहीं पण पहेली दश दिवसनी ओळीमां हमेशा एक एक दत्ति करवी. बीजी ओळीमां हमेशा बबे दत्ति करवी. ए रीते वधतां वधतां छेवट दशमी ओळीमां हमेशां दश दश दत्ति करवी. ए रीते करतां कुल ५५० दत्तिो थाय छे. आ चारे प्रतिमा नव मास अने चउवीश दिवसे पूर्ण थाय छे. तथा दत्तिनी संख्या १४३९ थाय छे. आ विषे प्रवचनसारोद्धारमां आ प्रमाणे का छेचउवीस दिवस अहिया नव मासा सव्व इत्थ दिवसाणि। चउद सया गुणयाला दत्तीणं हवइइय संखा ॥१॥ "आ तपमा चोवीश दिवसे करीने अधिक एवा नव माम सर्व तपना दिवसो छे. तथा चौदसो अने ओमणचाळीश RECAREAvas ॥ १०८।। Jain Education For Private Personal Use Only lainelibrary.org Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मचतुर्थ तप. तपोरत्न- दत्तिओनी संख्या थाय छे." महोदधि उद्यापनमां मोटी स्नात्र विधिपूर्वक जिनश्वरनी पूजा भणावची. विविध प्रकारनां पक्वात्र, फळ, रुपानाणुं विगेरे देव ॥१०९॥ पासे ढोकवा. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आतपर्नु फळ मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय ते छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. "ॐ नमो अरिहंताणं " पदनी नवकारवाली वीश गणवी. साथीआ विगेरे बार बार करवा. ८४ कर्मचतुर्थ तप. उपवासत्रयं कुर्यादादावन्ते निरन्तरम् । मध्ये पष्टिमिताः कुर्यादुपवासांश्च सान्तरान् ।।१।। कर्मना खंडनने माटे जे चतुर्थ एटले उपवास करवो ते कर्मचतुर्थ तप कहेवाय छे. तेमा प्रथम त्रण उपवास (अट्ठम) करीने पारणुं करवू. पछी एकांतरा साठ उपवास करवा, पछी छेडे त्रण उपवास (अट्ठम ) आंतरा रहित करवा. ए प्रमाणे उपवास ६६ तथा पारणा दिन ६२ कुल १२८ दिवसे आ तप पूरो थाय छे. उद्यापनमा मोटी स्नात्र विधिपूर्वक रुपानुं वृक्ष तथा सुवणेनो कुहाडो करावी देव पासे ढोकवो. नाना प्रकारना पक्वान्न फळ विगरे ढोकवां संघवात्सल्य संघपूजा करवी. आ तपनुं फळ कर्मनो नाश थाय ते छे. "ॐ नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ८५ नवकार तप (नानो). कृवा नवैकभक्तानि तदुद्यापनमेव च । शक्तिहीनैविधेयं च पूर्ववत्तत्समापनम् ॥ १॥ नवकारना फळने आपनार होवाथी आ नवकार तप कहेवाय छे. तेमां शक्तिहीन मागसे नंबर ४१ वाळा तपमा रह्या प्रमाणे KARORSHASHAREKASIRECERc mentarir-rnwapcom Jain Hutan Intern For Private Personal Use Only M ainelibrary.org Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपारत्न महोदधि CAR les-ile अविधवा दशमी तप. C FIRSINHASE अडसठ एकासणां अथवा ६८ उपवास करी न शके तेणे नवकारना पद जेटला एटले नव एकासणां लगोलग करवा. उद्यापन विगरे सर्व विधि नंबर ४१ वाळा नवकार तपमा कह्या प्रमाणे करवो. तेनुं फळ तेना जेवू ज छे. आ मुनि तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. गरगुं विगेरे तप नंबर ४१ प्रमाणे समजवू...... ८६ अविधवा दशमी तप. भाद्रपदशुक्लदशमीदिन एकाशनमयो निशायां च । अंबापूजनजागरणकर्माणि सुविधिना कुर्यात् ॥१॥ वैधव्य रहित थवा माटे स्त्री जातिए करवानो आ तप छे. तेमां भादरवा शुदी दशमने दिवसे ब्रह्मचर्य पाळg अने एकासगुं ( अथवा मतांतरे उपवासादिक यथाशक्ति ) करवू. रात्रीए अंबिका देवी पासे संगीतादिपूर्वक जागरण करवू तथा अंबा देवार्नु पूजन करवू. श्रीफळ दश, पक्वान्न दश विंगरे सर्व फळादिक वस्तु दश दश ढोकवी. आ प्रमाणे दश वर्ष सुधी आ तप कर. दरेक भादरवा शुदि ११ ने दिवसे साधर्मिकने जमाडी, साधुने दान आपी पछी पारकरे. अंबादेवीने कंकुनी पीळ करवी, अंजन कर तम पोताने पण अंजन करवू, अने रेशमी चरणीयो, कांचळी, चंद्रवो तथा चक्षु देवीने चडावबां. पही दीपक दश करवा. आ प्रमाणे जे. प्र. मां छे. उद्यापने इंद्राणीनी पूजा करवी. संघवात्सल्य संघपूजा करवा. आ तपर्नु फळ अविधवापणुं प्राप्त थाय ते हे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ( दरेक वर्षे उद्यापनमां बमणुं बमणुं नैवेद्य मकवू. एटले के पहेले वर्षे श्रीफळादिक दश दश ढोकवा. बीजे वर्षे बीश वीश ढोकवा. ए प्रमाणे समजवु (नं. ब.) Rece%esI.CIRE For Private Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि बहनंद्यावर्त CateCRECAR तप. % A विधि प्रपामां बीजी रीत ए बतावी छे के-उपवास एक, एकास' एक, छ? एक, एकासणुं एक, अट्ठम एक, एकासणुं । एक. पारणे खीर भोजनबडे साधुने प्रतिलाभवा. ज्ञाननी पूजा भणायची. "अंबादेव्यै नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. ८७ बृहन्नंद्यावर्त तप. वृहनंद्यावर्तविधिसंख्ययैकाशनादिभिः । पूरणीयं तपश्चाद्यापने तत्पूजनं महत् ।। १ ।। नद्यावर्तनी आराधना माटे आतप छे. तेमा प्रथम नंद्यावर्तनी आराधना माटे एक उपवास करवो. पछी सुधर्मेन्द्र, अने ईशानद्र अने श्रतदेवतानी आराधना माटे त्रण आंबील करवा. त्यारपछी अरिहंतादिक आठनी आराधना माटे आठ आंबील करवा त्यारपछी चौबीस जिनमातानी आराधना माटे चोवीश एकासणां करवा: पछी सोळ विद्यादेवी आश्री सोळ एकासणां करवा. पछी चोवीश लोकांतिकादि देवो आश्री चावीश एकासणां करवा. पछी चौसठ इंद्रोने आश्री चोसठ एकासणां करवा. पछी चोसठ इंद्राणी आश्री चौसठ एकासणां करवा. पछी चोशि शासनयक्षोने आश्री चोवीश एकासणां करयां. पछी चोसठ शासनयक्षिणीने आश्री चोवीस एकासणां करवा. पछी दश दिक्पालने आश्री दश एकासणां करवा. फ्छी ना ग्रह तथा एक क्षेत्रपाळने आश्री दश एकासणां करवा. पठी चार निकायनां देवताने आश्री चार एकासणां करवा. त्यारपछी सर्वनी आराधना माटे एक उपवास करवो. आ रीते उपवास बे, आंबिल अगियार, एकासमां बने चोसठ ए सर्व मळी २७७ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. १ आ वे इंद्र चामरधार तरीके छे. २ पांच परमेष्ठो तथा रत्नत्रय, 4Cireak ties ECHANICADE त. ॥१११ ॥ JainEducation For Private & Personel Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। ११२ ।। उद्यापने देरासरमां मोटी स्नात्र विधिए पूजा भणाववी. धर्मागार ( उपाश्रय) ने दिषे नंद्यावर्तनी पूजा प्रतिष्ठानी विधि प्रमाणे करवी. संघपूजा संघवात्सल्य कर. आ तप करवाथी परभवने विषे तीर्थकर नामकर्म उपार्जन थाय छे। अने आ भत्रे सर्व ऋद्धि तथा सर्व देवनुं सांनिध्य प्राप्त थाय छे आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ८८ लघुनंद्यावर्त तप. घोच नंद्यावर्तस्य तपः कार्य विशेषतः । तदाराधन संख्याभिरुद्यापनमिहादिवत् || १ || द्यावर्तनी आराधना माटे जे तप ते नंद्यावर्त तप कहेवाय छे. तेमां प्रथम नंद्यावर्तनी आराधना माटे एक उपवास करवो. पछी धरणेंद्र, अंबिका, श्रुतदेवी अने गौतमस्वामीने आश्री चार आंबिल करवां, पछी पांच परमेष्ठी तथा रत्नत्रयनी आराधना माटे आठ आंबिल करवां, पछी सोळ विद्यादेवीने आश्रीने सोळ एकासणां, पछी चोवीश शासनयक्षिणीने आश्रीने चोवीश एकास, पछी दश दिक्पाळने आश्रीने दश एकासणां, पछी नव ग्रह तथा एक क्षेत्रपाळने आश्रीने दश एकासणां, पछी चार निकायना देवने आश्रीने चार एकासनां, त्यारपछी सर्वनी आराधना माटे एक उपवास करवो. ए रीते करवाथी वे उपवास, बार आंबिल, तथा चौसठ एकासणां मळी कुल ७८ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापने चैत्यमां मोदी स्नात्र विधिथी पूजा करवी. धर्मागार ( उपाश्रय ) ने विषे लघुनंद्यावर्तनी पूजा विगेरे पूर्वनी जेम कर. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ तपनु फळ तीर्थकर नामगोत्रो बंध तथा सर्व देवनुं सांनिध्य प्राप्त थाय ते छे. आ साधु तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. ॥ इति फलतपांसि सप्तविंशतिः ।। इति आचार दिनकर गत तपांसि पूर्णानि ॥ : लघुनंद्यावर्त तप. ॥ ११२ ॥ jainelibrary.org Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RA सपोरत्नमहोदधि श्री तपोरत्नमहोदधि. वीशिस्थानकतप. विभाग २ जो. ८९ वीशस्थानक तप. आ वीश स्थानकनो तप घणो प्रसिद्ध छ. तथा ते करवानो प्रचार पण सर्वत्र साधारण जोवामां आवे छे. आ तप घणो विस्तारथी करवामां आवे छे. तोपण ते संबंधी सामान्य विधिज मात्र अहीं आपीए छीए. विशेष विधिविस्तार माटे "वीशस्थानक पद पूजा संग्रह" के जे आ सभा तरफथी छपावी प्रसिद्ध करेल छे ते तथा विधिप्रपा विगेरे ग्रंथो जोवा. आ तप करवानो उत्तम मार्ग तो ए छे जे सुविहित गुरुनी समक्ष तेमनी आज्ञानुसार करवो. छतां दरेक स्थळे गुरुनो योग होतो नथी, तोपण तप आरंभ्या पहला नजीकना गामोमा ज्यां गुरुनो योग होय त्यां जई, सर्व विधिथी सुजाण थई, पछी तेनो आरंभ करवो योग्य छ, अथवा जे ओए आ तप को होय अने तेनी विधिविधान विगेरे सारी रीते जाणता होय तेवा सुश्रावकथी माहितगार थq. सामान्य विधि. प्रथम शुभ निर्दोष मुहूर्ते नंदी स्थापनपूर्वक सुविहित गुरुनी समीपे विशति स्थानक तप विधिपूर्वक उच्चरवो. एक ओळी COMISHREERASHTRORE ॥११३॥ Jain Education Internation For Private & Personal use only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि Site CORRESPEECREAUC0 बे मासथी छ मास सुधीमां पूर्ण करवी. कदाच छ मासनी अंदर एक ओळी पूर्ण न थाय तो करेली (चालती ओली )नो | वीशस्थाफरीथी आरंभ करवो पडे. एक ओळीनां वीश पद छे. तेमां वीशे दिवसमा वीश पद जूदां जूदां गणवां. अथवा एक नक तप. ओळीना वशि तपना दिवसोमा एकज पद गणवं, बीजा वीश दिनमां चीजें पद गणq. ए रीते वीश ओळीए (४०० दिवसे)। वीश पद पूर्ण करवा. दरेक पदनी आराधना करवाने सारी शक्तिवाळाए अहम कर ने प्रत्येक पदनी आराधना करवी. ए रीते | करवाथी वीश अट्ठम एक ओळी पूर्ण थाय. अने वीशे ओळी चारसो अहमे पूर्ण थाय. तेथी हीनशक्तिवाळाए छह करवा, तेथी हीन शक्तिवाळाए चोविहार उपवास, ते न बने तो तेवीहार उपवास, ते न बने तो आंबिल, ते न बने तो नीवी अने तेटली पण शक्ति न होय तो तिविहार एकसणाए करी आराधवां. एकासणाथी ओछो तप करी शकाय नहीं. बळी शक्तिवान माणसे वाशे पदनी आराधनाने दिक्से आठ पहोरनो पोसह करवो. तेथी हीनशक्तिवाळाए मात्र दिवसनो चार पहारनो पोसह करवो. ए रीते वीशे पद पौषध करीने आराधवां. जो पौषध करवानी शक्ति सर्व पदमा न होय तो आचार्य पदे १, उपाध्याय पदे २, स्थविर पदे ३, साधु पदे ४, चारित्र पदे ५, गौतम पदे ६, अने तीर्थ पदे ७, ए सात पदे तो अवश्य पौषध करवो जोइए', तेम उतां शक्ति न होय तो ते दिवसे देशावकाशीक करे अने सावध व्यापारनो त्याग करे. तेटली शक्ति पण न होय तो यथाशक्ति तप करी आराधे. तथा पोतानी लघुता भावे. मरण तथा जन्मना सूतकमां उपवासादिक तप करे, पण ते गणतरीमा न गणे. स्त्री पण ऋतुसमयमा उपवासादिक करे ते पण गणतरीमा न गणे. तपने दिवसे जो पौषध करे तो घणुंज श्रे यस्कर छे, पण पौषध न करे तो ते दिवसे बे वखत प्रतिक्रमण तथा त्रण वार देववंदन अने पंडिलेहण अवश्य करवू. तथा 16।।११४॥ For Private Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि वींशस्थानक तय. 7*** ब्रह्मचर्य पाळवं, भूमिशयन करवू, अति सावध व्यापारनो आरंभ न करवो, असत्य न बोलवू, आखो दिवस वपना पदन गुणवर्णन कर, तपने दिवसे पौषध करे तो पारणाने दिवसे जिनभक्ति करीने पारणु कर. जो तपने दिवसे पौषध न कों होय तो ते दिवमे जिनभक्ति पूजा करे, करावे, भावना भावे, तपने दिवसे आराध्य पदना जेटला गुण होय तेटला लोगस्सनो कायोत्सर्ग करे, ते गुणोनु स्मरण करवापूर्वक खमासमण दइ वंदना करे. ते पदनो महिमा अने गुणर्नु स्मरण करीने आखो दिवस हर्पित रहे. आ विधिए बीशे ओळी करवी. तथा दरेक ओळीए ते ते पदनो उत्सव, महोत्सव, प्रभावना, उद्यापन पूर्वक करे. जिनशासननी उन्नति करे. शक्ति न होय तो हेवट एकज ओळी उत्सवादिक सहित करे अर्थात् प्रांते आ महान् तपनुं यथाशक्ति उजमणुं करे.. वीश पदनुं गरगुं नीचे प्रमाणेसा० ख० लो० नो सा० ख० को नो. १ ॐ नमो अरिहंतागं. १२-१२-१२-२० ४ ॐ नमो आयरिआणं. ३६-३६-३६-२० २ ॐ नमो सिद्धाणं. ३१-३१-३१-२० ५ ॐ नमो थेराणं. १०-१०-१०-२० ३ ॐ नमो पवयणस्स. २७-२७-२७-३० ६ ॐ नमो उवज्झायाणं. २५-२५-२५-२० १ सात पदे पण पौषध न बने तो सत्तरमो ओळीमा अवश्य पौषध करवो, एवो प्रचार हे. २ देवचंदन पडिलेहण हमेशा न करी | शके तो तेरमी ओळीए अवश्य करवू. * Pattack ****** ॥ ११५॥ Jain Education internal For Private & Personal use only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरत्नमहोदधि वीशस्थानक तप. RamesORSCIRECARE ७ ॐ नमो लोए सवसाहणं. २७-२७-२७-२० १४ ॐ नमो तबस्स. १२-१२-१२-२० ८ ॐ नमो नाणस्स. ५१-५१-५१-२० १५ ॐ नमो गायमस्स. ११-११-११-२० ॐ नमो दंसणस्स. ६७-६७-६७-२० १६ ॐ नमो जिणाणं. २०-२०-२०-२० ॐ नमो विणयसंपन्नस्स. ५२-५२ ५२-२० १७ ॐ नमो संयमस्स. १७-१७-१७-२० ११ ॐ नमो चारीत्तस्स, ७०-७०-७०-२० १८ ॐ नमो अभिनवनाणस्स. ५१-५१-५१-२० ॐ नमो बंभव्ययधारिणं. १८-१८-१८-२० १९ ॐ नमो सुयस्स २०-२०-२०-२० १३ ॐ नमो किरियाणं. २५-२५-२५-२० २ ० ॐ नमो तित्थस्स. ३८-३८-३८-२० नीचना दुहा बोली खमासमण देवा. ( दरेक ओळीए एक एक दुहो बोलवो.) परम पंच परमेष्ठिमां, परमेश्वर भगवान् । चार निक्षेपे ध्याइए, नमो नमो जिणभाण ॥ १॥ गुण अनंत निर्मळ थया, सहज स्वरूप उजास । अष्ट कर्म मळ क्षय करी, भये सिद्ध नमो तास । २ ।। आवामय औषध समी, प्रवचन अमृत वृष्टि । त्रिभुवन जीवने सुखकरी, जय जय प्रवचन दृष्टि ।। ३ ।। छत्रीश छत्रीशी गुणे, युगप्रधान मुणींद । जिनमत परमत जाणता, नमो नमो ते सूरींद ।। ४ ॥ तजी परपरिणति रमणता, लहे निजभाव स्वरूप । स्थिर करता भरि लोकने, जय जय थिविर अनूप ॥५॥ बोध सूक्ष्म विणु जीवने, न होय तत्व प्रतीत । भणे भणावे सूत्रने, जय जय पाठक गीत ॥ ६ ॥ INGRESTHA%ERRORESTIGAON Jain Education inte For Private & Personal use only aine baryeong Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ ११७ ॥ स्याद्वाद गुण परिणम्यो, रमता समता संग । साधे शुद्धानंदता, नमो साधु शुभरंग ॥ ७ ॥ अध्यातम ज्ञाने करी, विघटे भवभ्रम भीति । सत्य धर्म ते ज्ञान छे, नमो नमो ज्ञाननी रीति ॥ ८ ॥ लोकालोकना भाव जे, केवलि भाषित जेह । सत्य करी अवधारतो, नमो नमो दर्शन तेह ॥ ९ ॥ शौच मूळथी महागुणी, सर्व धर्मनो सार । गुण अनंतनो कंद ए, नमो विनय आचार ॥ १ ॥ रत्नत्रयी विणु साधना, निष्फळ कही सदीव । भावश्यणनुं निधान छे, जय जय संयम जीव ॥ ११ ॥ जिनप्रतिमा जिनमंदिरों, कंचनना करे जेह । ब्रह्मव्रतथी बहु फळ लहे, नमो नमो शियल सुदेह ॥ १२ ॥ आत्मबोध विण जे क्रिया, ते तो बाळक चाल । तच्चारथथी धारीए, नमो क्रिया सुविशाल ।। १३ ।। कर्म खपावे चीकणां, भाव मंगळ तप जाण । पचास लब्धि उपजे, जय जय तप गुण खाण ॥ १४ ॥ तप करे पारं, चउनाणी गुणधाम । ए सम शुभ पात्र को नहीं, नमो नमो गोयमस्वाम ॥ १५ ॥ दोष अढारे क्षय गया, उपन्या गुण जम अंग । वैयावच्च करीए मुदा, नमो नमो जिन पद संग ॥ १६ ॥ शुद्धतम गुणमें रमे, तजी इंद्रिय आशंस । थिर समाधि संतोष में, जय जय संयम वंश ॥ १७ ॥ ज्ञानवृक्ष सेवो भविक, चारित्र समकित मूळ । अजर अमर पद फल लहो, जिनवर पदवी फूल ।। १८ ।। वक्ता श्रोता योगी, श्रुत अनुभव रस पीन । ध्याता ध्येयनी एकता, जय जय श्रुत सुख लीन ॥ १९ ॥ तीर्थयात्रा प्रभाव छे, शासन उन्नति काज | परमानंद विलासता, जय जय तीर्थ जहाज । २० ।। ) य वीशस्था नक तप. ।। ११७ ॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न९० अंगविशुद्धि तप. ६ अंगविशुद्धि महोदधि प्रथम आंबिल त्रण, पछी नीवी त्रण, पछी एकासणा त्रण, छेडे एक उपवास करवो. उद्यापने तेर मोदक ज्ञान पासे डोकवा. ५ तथा अट्टा॥११८॥ NI ॐ नमो नाणस्स ए पदनी नवकारवाळी वीस गणवी. साथिया विगरे बार बार करवा.. वीश लब्धि ९१ अठ्ठावीश लब्धि तप. (अं.प्र. विगेरे) एक एक लब्धिर्नु एक एक एकासणुं (अथवा एकांतर उपवास ) एम निरंतर अट्ठावीश एकासणा (अथवा उपवास) करवा. दुहो-" लब्धि अट्ठावीश धरी, गुरु गोयम गणेश | ध्यावो भावि शुभकरु, त्यागी राग ने रीस ॥ १॥ श्री आमोसहीलब्धये नमः" एम बोली दररोज पचास खमासमण, पचास लोगस्सनो कायोत्सर्ग, पचास साथीया तथा वीश नवकारवाळी ते ते दिवसनी लब्धिना नामनी गणवी, ते लब्धिना नाम नीचे प्रमाणे ( आ तपY फळ निमेळ बुद्धिनी प्राप्ति थाय ते छे.) १ श्री आमौषधिलब्धये नमः । ७ श्री अवधिलब्धये नमः। १३ श्री गणधरलब्धये नमः। २ श्री विप्रडौषधिलब्धये नमः। ८ श्री मनःपर्यवलब्धये नमः । १४ श्री पूर्वधरलब्धये नमः। ३ श्री खेलौषधिलब्धये नमः । ९ श्री विपुलमतिलब्धये नमः। १५ श्री अरिहंतलब्धये नमः । ४ श्री जल्लोषधिलब्धये नमः । १. श्री चारणलब्धये नमः। १६ श्री चक्रवतिलब्धये नमः। ५ श्री सर्वोषधिग्धये नमः। ११ श्री आशिविषलब्धये नमः । १७ श्री बलदेवलब्धये नमः । ६ श्री संभिन्न श्रोतोलब्धये नमः। १२ श्री केवललब्धये नमः । १८ श्री वासुदेवलब्धये नमः । १ लब्धि नाम दररोज बदलवू. दुहो तेम कहेवो. For Private JainEducatia wranwranelorery.org Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥११९ ॥ -96495- BUSI अशुभ. निवारण तप. १९ श्री अमृताश्रवलब्धये नमः। २२ श्री बीजबुद्धिलब्धये नमः । २५ श्री शीतलेश्यालब्धये नमः। २० श्री कोष्ठकबुद्धिलब्धये नमः। २३ श्री तेजोलेश्यालब्धये नमः। २६ श्री क्रियलब्धये नमः । २१ श्री पदानुसारिलब्धये नमः। २४ श्री आहारकलब्धये नमः । २७ श्री अक्षीणमहानसलब्धये नमः। २८ श्री पुलाकलब्धये नमः । ९२ अशुभनिवारण तप. प्रथम उपवास एक, पछी नीवी चे, पछी आंबील त्रण, पछी एकासणां छ, पछी लूखो चोपड्यो एक, एक सिक्थ पांच, एकलठाणा चार, एकलधरो एक, अलवाडो एक (ढोकळां विगरे अलेप पदार्थ), एक कवळ एक- प्रमाणे २५ दिवसे तप पूर्ण करवो. “ॐ नमो अरिहंताणं " ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी, साथीया विगेरे बार बार करवा. १लूखा चोपड्यानी एवी रीत छ के-एव नाटको घीनो तथा एक वाटको पाणीनो. ढांकी राखवा पछी कोई अजाण्य पासे एक वाटको उघडाववो. तेमां जो धीनो उघडे तो एकासगुं करवू अने पाणीनो उघडे तो आंबिल करई. २ एकलधरानी एवी रीत छ के-पाणीनो लोटो लइने कोइ संबंधीने घेर जवू. ते वखते जो ते घरमाथी ‘आवो पधारो' । एम कह तो त्यां एकासणुं करवू. अथवा कांइक बीजं कहे तो अर्थात् केम आव्या ? इत्यादि कहे तो त्यांज पाणी पीने A4%AESARG N E JainEducation For Private & Personal use only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टकर्मों तपोरत्न- ६ महोदधि ल CPN तप. ॥१२०॥ -15 % चोविहारनु पच्चख्खाण करीने आपबुं. त्तर प्रकृति ९३ अष्टकर्मोत्तर प्रकृति तप. ___ आठ कर्म मध्ये ज्ञानावरणनी उत्तरप्रकृति पांच, दर्शनावरणनी नव, वेदनीयनी बे, मोहनीनी अहावीश, आयु:कर्मनी चार, नामकर्मनी एक सो ने त्रण, गोत्रकर्मनी बे, अंतराय कर्मनी पांच, सर्व मळी १५८ प्रकृति होवाथी १५८|| उपवास एकांतर एकासणे करवा. एटले के एक उपवास पछी एक एकास' एम १५८ उपवास अने १५८ एकासणावडे एक ओळी थाय, तेवी आठ ओळी करवी. उद्यापनमा १५८-१५८ वस्तु तथा मोदक ढोकवा, ज्ञाननी पूजा करवी, गुरुने दान देवू, संघवात्सल्य करवु इत्यादि. गर| नीचे प्रमाणे नोकारवाळीनुं गण. जे दिवसे जे प्रकृतिनो तप चालतो होय ते दिवसे तेना नामर्नु गण. ज्ञानावरणीय कर्मप्रकृति ॥ १ मतितानावरणीयरहिताय श्री अनन्तज्ञानसंयुताय सिद्धाय नमः। ३ अवधिज्ञानावरणीयरहिताय श्री अन । २ श्रुतज्ञानावरणीयरहिताय श्री अन० ४ मनःपर्यवज्ञानावरणीयरहिताय श्री अन । ५ केवलज्ञानावरणीयरहिताय श्री अन । १. हालमा प्रवृत्तिमा मात्र १५८ उपवास छूटक करवानो प्रचार छे. १२०॥ % RECRUGARCARERAKC % % ect For Private Personal use only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि | ॥ १२१ ॥ Jain Education अथवा " श्री अनन्तज्ञानसंयुताय सिद्धाय नमः " एटलं जगणं. साथीया विगेरे पांच पांच करवा. दर्शनावरणीय कर्ममां प्रकृति ९ १ चक्षुर्दर्शनावरणीय रहिताय श्रीअनन्तदर्शनसंयुताय सिद्धाय नमः । २. अचक्षुर्दर्शनावरणीयरहिताय श्रीअ० ३ अवधिदर्शनावरणीयर • ५ निद्रारहिताय श्रीश्र० ६ निद्रानिद्रारहिताय श्री० ७ प्रचलारहिताय श्री० ४ केवलदर्शनावरणीय रहिताय श्रीअ ० अथवा " श्री अनन्तदर्शन संयुताय सिद्धाय नमः " ए पद गणवं. साथीया विगेरे नव नव करवा. वेदनीय कर्मनी प्रकृति २ " १ सातावेदनीयर हिताय श्रीअव्याबाधगुण संयुताय सिद्धाय नमः | २ असातावेदनीयरहिताय श्री अव्या० अथवा " श्री अव्यावाधगुणसंयुताय सिद्धाय नमः ए पद गणवं. साधीया बिगेरे वे वे करवा. मोहनीय कर्मनी प्रकृति २८ १ सम्यक्त्वमोहनीयरहिताय श्रीअनन्तचारित्रगुणसंयुताय सिद्धाय नमः । २ मिश्रमोहनीयरहिताय श्री अनन्त • ३ मिथ्यात्वमोहनीयर हिताय • : ८ प्रचलाप्रचलारहिताय श्री० ९ स्त्यानर्द्धिरहिताय श्री० ४ अनुवन्धक्रोधरदि • अष्टकर्मोतर प्रकृति तप. ॥ १२१ ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तारत्न महोदधि ॥ १२२ ॥ ५ अनन्तानुबन्धिमानरहि० ८ अप्रत्याख्यानिक्रोधरहि० ११ अप्रत्याख्यानिलोभरहि० १४ प्रत्याख्यानिमायारहि ० १७ संज्वलनमानरहि० २० हास्य मोहनीयरहिताय • २३ भयमोहनीयरहि २६ स्त्रीवेदरहिताय • ७ अनन्तानुबन्धिलोभरहि० १० अप्रत्याख्यानिमायारहि ० १३ प्रत्याख्यानिमान रहि० १६ संज्वलनक्रोधरहि० १९ संज्वलनलेाभरहि० २२ अरतिमोहनीयर हि ० २१ रतिमोहनीयरहिता • २४ शोकमोहनीय रहि ० २७ पुरुषवेदरहि २५ दुर्गच्छामोहनीय रहि ० २८ नपुंसक वेदरहि अथवा " अनन्तचारित्रगुणसंयुताय सिद्धाय नमः "" ए पद ज मात्र गणवुं. साथीया विगेरे २८- २८ करवा. आयुष्कर्मनी प्रकृति ४ ६ अनन्तानुबन्धिमायारहि ० ९ अप्रत्याख्यानिमानरहि० १२ प्रत्याख्यानिक्रोधरहि० १५ प्रत्याख्यानिलोभरहि० १८ संज्वलन मायारहि ० १ देवायुरहिताय श्री अक्षय स्थितिगुणसंयुताय सिद्धाय नमः । २ नरायूरहिताय श्री० ३ तिचा यूरहि० ४ नरकायूरहि० अथवा मात्र " श्री अक्षय स्थितिगुणसंयुताय सिद्धाय नमः " एटलुं ज गणवुं. साथीया विगेरे चार चार करवा. ) अष्टकम - तर प्रकृति तप. ॥ १२२ ॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ १२३ ॥ १ देवगतिरहिताय श्रीअरूपिनिरञ्जनगुणसंयुताय सिद्धाय नमः । २ नरकगतिरहिता • ३ तिर्यंचगतिरहिता • ६ द्वींद्रियजातिरहिता • ९ पंचेंद्रिय जातिरहि ५ एकेंद्रियजातिरहिता • ८ चतुरिंद्रियजातिरहि ० ११ वैक्रियशरीररहि १४ कार्मणशरीररहि० १७ आहार कांगोपांगरहि • २० औदारिककार्मणबंधनरहि० २३ वैक्रियकार्मणबंधनरहि ० नाम कर्मनी प्रकृति १०३ २६ आहारककार्मणबंधनरहि० २९ आहारकतैजसकार्मणबंधन रहि० ३२ तैजसकार्मणबंधनरहि ३५ आहारक संघातन रहि • १२ आहारकशरीर रहि ० १५ औदारिकांगोपांगरहि ० १८ औदारिकौदारिकबंधनरहि० २१ वैक्रियवैक्रियबंधनरहि० २४ आहारकाहारकबंधनरहि० २७ औदारिकतैजस कार्मणबंधनरहि • ३० तैजसतैजसबंधनरहि ० ३३ औदारिकसंघातनरहि० ३६ तैजससंघातनरहि० : ४ नरगतिरहिता ७ त्रींद्रियजातिरहिता • १० औदारिकशरीर रहि० १३ तैजसशरीर रहि० १६ वैक्रियांगोपांगरहि० १९ औदारिकतैजसबंधनरहि ० २२ वैक्रियतैजसबंधन रहि० २५ आहारकतैजसबंधनरहि० २८ वैक्रियतैजस कार्मणबंधनर हि० ३१ कार्मणकार्मणबंधन रहि ० ३४ वैक्रिय संघातनरहि● ३७ कार्मणसंघात रहि अष्टकर्मों | तर प्रकृति तप. ।। १२३ ।। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि ॥१२४॥ अष्टकर्मोतर प्रकृति तप. RESIRECIRCLECORRECE ३८ वज्रर्षभनाराचसंहननरहि. ४१ अर्धनाराचसंहननरहि ४४ समचतुरस्रसंस्थानरहि. ४७ वामनसंस्थानरहि. ५० कृष्णवर्णरहि० ५३ पीतवर्णरहि. ५६ दुराभिगंधराह . ५९ आम्लरसरहि. ६२ शीतस्पर्शरहि. ६५ लघुस्पर्शरहि ६८ रूक्षस्पर्शरहि. ७१ तियंचानुपू/रहि. ७४ शुभविहायोगतिरहि. ७७ उच्छ्वासनामकर्मरहि. ३१ ऋषभनाराचसंहननरहिक ४२ कीलिकासंहननरहि० ४५ न्यग्रोधसंस्थानरहि. ४८ कुब्जसंस्थानरहि. ५१ नीलवर्णरहि ५४ श्वेतवर्णरहि. ५७ तिक्तरसरहि. ६. कपायरसरहि० ६३ उष्णस्पर्शरहि. ६६ खरस्पर्शरहि. ६९ स्निग्धस्पर्शरहि. ७२ नरानुपूर्वीरहि. ७५ अशुभविहायोगतिरहि. ७८ आतपनामकर्मरहि. ४० नाराचसंहननरहि. ४३ सेवार्तसंहननरहि. ४६ सादिसंस्थानरहि. ४९ हुंडकसंस्थानरहि. ५२ लोहितवर्णरहि. ५५ सुरभिगंधरहि. ५८ कटुकरसरहि. ६१ मधुररसरहि ६४ गुरुस्पर्शरहि. ६७ स्निग्धस्पर्शरहि. ७. नरकानुपूर्वीरहि. ७३ देवानुपूर्वीरहि ७६ पराघातनामकमरहि० ७९ उद्योतनामकमरहि. KARENERASHRECISHRECIG Vilm १२४॥ For Private & Personal use only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECE पोरत्नमहोदधि ॥१२५॥ अष्टकर्मोत्तर प्रकृति तप. ८० अगुरुलघुनामकर्मरहि. ८१ तीर्थकरनामकर्मरहि. ८२ निर्माण नामकर्मरहि. ८३ उपघातनामकर्मरहि. ८४ त्रसनामकर्मरहि. ८५ बादरनामकर्मरहि. ८६ पर्याप्तिनामकर्मरहि. ८७ प्रत्येकनामकर्मरहि. ८८ स्थिरनामकर्मरहि. ८९ शुभनामकर्मरहि. ९. सौभाग्यनामकरहि. ९१ सुस्वरनामकर्मरहि. | ९२ आदेयनामकमरहि. ९३ यशोनामकर्मरहि ९४ स्थावरनामकर्मरहि. ९५ सूक्ष्मनामकर्मरहि० ९६ अपर्याप्तिनामकर्मरहि० ९७ साधारणनामकर्मरहि. ४.९८ अस्थिरनामकर्मरहि. ९९ अशुभनामकर्मरहि. १०० दौर्भाग्यनामकर्मरहि. दुःस्वरनामकर्मरहि १०२ अनादेयनामकमरहि. १०३ अयशेनामकर्मरहि० अथवा " श्रीअरूपिनिरंजनगुणसंधुताय सिद्धाय नमः" एटलुज गणवं. साथीया विगरे १०३-१०३ __ गोत्रकर्मनी प्रकृति २. १ उच्चैर्गोत्ररहिताय श्रीगुरुलघुगुणसंयुताय सिद्धाय नमः। २ नीच्चैगोत्ररहिताय श्रीगुरु० अथवा मात्र " श्रीगुरुलघुगुणसंयुताय सिद्धाय नमः" एटलं गणवू. साथीया विगरे चे बे करवा. अंतरायकर्मनी प्रकृति ५. १ दानान्तरायकर्मरहिताय श्रीअनन्तवीर्यगुणसंयुताय सिद्धाय नमः । २ लाभान्तरायकर्मरहि • RRIEREGNOCRECRECORRECE maraGUSTITUTERam e Jain Education interna For Private & Personal use only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। १२६ ।। ३ भोगान्तराय कर्मरहिताय ० ४ उपभोगान्तरायकर्मरहि• ५ वीर्यंत रायकर्मरहि० अथवा मात्र " श्री अनन्तवीर्यगुणसंयुताय सिद्धाय नमः " ए पदनुं गरणुं गणवुं. साथया विगेरे पांच पांच करवा. बीजी रीत ( प्रति नं. ब. ) अथवा अष्ट कर्मोत्तर प्रकृति तप करवानुं आ प्रमाणे पण लख्युं छे: - ज्ञानावरणीय कर्मने आश्री दशम ( लगोलग चार (उपवास) उपर पार करखूं. एवा पांच दशम करवा. दर्शनावरणीयने आश्री नव दशम करवा. वेदनीय कर्मने आश्री वे दशम करवा. मोहनीय कर्मने आश्रीने अठ्ठावीश अहम करवा. आयुकर्मने आश्री चार दशम करवा. नामकर्मना उपवास एक सो ने aण करवा. गोत्रकर्मना वे दशम करवा तथा अंतराय कर्मना पांच दुवालस ( लगोलग पांच उपवास ) करवा. अथवा ज्ञानावरणना दुवालस पांच, दर्शनावरणना दशम नव, वेदनीयना अहम बे, मोहनीयना अहम अहावीश, आयुना दशम चार, नामना छह अथवा उपवास एक सो त्रण, गोत्रना दशम वे, तथा अंतरायना दशम पांच आ प्रमाणे अनुक्रमे विधिपूर्वक करवा. अथवा छुटक छुटक करवा. बीजा सर्व विधि उद्यापन विगेरे उपर प्रमाणे जाणवुं. ९४ अष्ट प्रवचन मातृतप. ( प्र. नं. क. ) पहेले दिवसे एक कवळ, बीजे दिवसे एक कवळ, त्रीजे दिवसे एक कवळ ए प्रमाणे १-१-१ इर्यासमितिनी आराधना दिन त्रण करवी. पछी पहेले दिवसे वे कवळ, बीजे दिवसे एक, त्रीजे दिवसे वे ए प्रमाणे २-१-२ भाषासमितिनी आराधना दिन त्रण करवी. एषणा समितिनी आराधना माटे अनुक्रमे कवळ ३-१-३ ए प्रमाणे त्रण दिवस करवा. आदानभंड निक्षेपणा अष्ट प्रवचन मातृतष. ।।। १२६ ।। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि ॥ १२७ ॥ Jain Education Int समितिना अनुक्रमे कवळ ४-१-४ ए प्रमाणे त्रण दिवस करवा. उच्चारपासवण खेलपारिष्ठापनिका समितिना अनुक्रमे कवळ ५- १-५ करवा. मनोगुप्तिना ६-१-६ करवा. वचनगुप्तिना ७-१-७ कवळ करवा. तथा कायगुप्सिना ८-१-८ ए प्रमाणे करवा. सर्व कवळ संख्या ८० थाय छे. तप दिन २४ तथा पारणा दिन ८ थाय छे. ( एटले के एक मातृनो त्रण दिवसनो तप पूरो थाय त्यारे छेडे एक पारशुं करवाथी पारणाना दिवस आठ थाय छे.) गरणुं विगेरे नीचे प्रमाणे जे मातृनो तप चालतो होय तेनानामनुं गणवु. सा० ख० लो० नो० ३-३-३-२० ५-५-५-२० ३ एषणासमितिधराय नमः ७-७-७-२० ४ आदानभंड निक्षेपण समितिधराय नमः ९-९-९-२० १ इर्यासमितिधराय नमः २ भाषासमितिधराय नमः सा० ख० लो० नो० ५ उच्चार स्रवण खेल पारिष्ठा पनिका समितिधराय नमः ११-११-११-२० १३-१३-१३-२० १५-१५-१५-२० १७-१७-१७-२० ६ मनोगुप्तिधराय नम ७ वचनगुप्तिधराय नमः ८ काय गुप्तिधराय नमः ९५ अष्टमासी तप. (जै. प्र. जै. सिं. विगेरे.) आ तपमां एकांतर एकासणे २४० उपवास करवा. एटले के एक उपवास अने एक एकासणं ए प्रमाणे २४० उपवास अने २४० एकास करवां. उजमणे २४० मोदक ढोकवा. आतप मध्यम बावीश तीर्थंकरने आश्रीने करवानो छे, ) अष्टमासी तप. ॥ १२७ ॥ w.jainelibrary.org Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। १२८ ।। Jain Education तेथी जे जे तीर्थकरनो तप चालतो होय ते ते तीर्थकरना नामनी साथे नाथाय नमः ए पद जोडी वीश नवकारवाळी गणवी. आ प्रमाणे दरेक तीर्थकरने आश्री २४० उपवास तथा २४० एकासणां करवां. साथीया विगेरे बार बार करवा. ९६ कर्म चक्रवाल तप. (जै. प्र. नं. अ. दिगेरे. ) प्रथम एक अहम करी पारणं कखुं. पछी चोसठ उपवास एकांतर पारणावाळा करवा. ( कोई व्रतमां साठ तथा कोइमां एकसठ उपवास लख्या छे.) छेवट एक अट्टम करवो. तेमां कुल ७० उपवास अने छासठ पारणा थाय छे. उजमणे १६८ मोदक ज्ञान पासे ढोकवा. सुवर्ण चक्र देव पासे ढोकबुं. "नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीरा गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ९७ आगमोक्त केवल तप. (जै. प्र. विगेरे. ) आंबिल निरंतर दश करवा, उपर एक उपवास करवो. उजमणे मोदक अगीयार, नाळीयेर अगीयार तथा रुमाल एक पुस्तक आगळ ढोकवां, श्री जिननी अष्टप्रकारी पूजा करवी. गुरुभक्ति करवी. गरजुं " नमो नाणस्स " पदनुं गणवुं. साथीया विगेरे ५१ करवा. ९८ चत्तारि अह दस दोय तप. ( जै. प्र. विगेरे. ) आतप अष्टापदे रहेला चोवीश तीर्थंकरनी आराधना मांट छे. तेमां प्रथम चार उपवास, पछी आठ उपवास, पछी दश उपवास अने पछी बे उपवास एम चोवीश उपवास करवा. ( दश कर्या पछी तरत ज वे उपवास करवा. तेमां पारणाना : कर्मचक्र - वाल तप, आगमोक्त केवलि अने चत्तारि अष्ठ दस दोय तप. ।। १२८ ।। w.jainelibrary.org Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलंक तपोरत्नमहोदधि ॥ १२९॥ दिवसर्नु ज आंतरं आवQ जोईए एवी प्रवृत्ति छे.) " अष्टापदतीर्थाय नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथिया विगेरे चोवीश चोवीश करदा. ९९ कलंक निवारण तप अथवा सीता तप. ___ आ तपमा उपवास एक, बेस' एक, आंबिल एक, बेसणुं एक, आंबिल एक, उपवास एक, आ प्रमाणे सीता तप | करवाथी कलंक न आवे. उद्यापने ज्ञानपूजा करवी. प्रभु पासे मोदक नव ढोकवा. गुरुना नव अंगनी पूजा करवी. “नमो अरिहंताणं " पदंनी वीश नवकारवाळी गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. १०० ऋषभमाथजी का तुला (हार ) तप (प्र. नं. ड.) श्री ऋषभनाथजीना हार जेवो तप होत्राथी ऋषभका तुला तप कहेवाय छे. ते तपमा प्रथम चे उपवास, पछी एकासj, पछी सात उपवास एकासणाने आंतरे करवा. पछी एक अट्ठम (३ लागठ उपवास), पछी एकास', पछी एकांतरे सात उपवास एकासणावाळा करवा. पछी एक छह (बे उपवास ) करवो. पछी एकास' कर, आवी रीते कुल दिन ३८ थाय. आ तपना उद्यापनमा श्री ऋषभदेवजीने मोतीनो हार चढाववो. गरगुं "श्रीऋषभदेवनाथाय नमः" नवकारवाळी २०. साथीया, खमासमण विगरे १२ चार जाणवा. १ आ तपमा कोइ नव दिन पण कहे छे परंतु पं. श्री गंभीरविनयनोवाळी भाषानो प्रतिमा छ हता, कदाच ओळोओ पडी होय तो ज्ञानी जाणे. --------------------- निवारण अथवा सीता तप अने ऋषभनाथजी का तुला तप CARCISISRRECIRECIRCISH) 2॥ १२९ ॥ Jain Education For Private & Personal use only Lainelibrary.org Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ १३० ॥ १०१ मौन एकादशी तप (जै. प्र. ) आतप मागशर शुदी अगीयारशे शरु करवो. ते दिवसे उपवास करवो. ए रीते अगीयार वरसनी मागशर शुदी अगीयारश करवी. अथवा अगीयार मासनी अगीयार शुक्ल एकादशी करवी. अथवा अगीयार वरस सुधी दरेक मासनी शुद अगीयारश करवी. अथवा दर वरसनी मौन अगीयारश जावज्जीव करवी. ( कुल चार प्रकार छे ) " श्रीमल्लिनाथसर्वज्ञाय नमः 17 ए पदनी नवकारवाळी वश गणवी. तथा मौन एकादशीने दिवसे दोढसो कल्याणकनी एक एक नवकारवाळी गणवी. साथीया विगेरे अगीयार अगीयार करवा. १०२ कंठाभरण तप. ( सिद्धिवधू कंठाभरण ) (जै. प्र. ) आतपम प्रथम एक छड करवो. पछी पारणुं, पछी एक उपवास करी पारणं पछी अहम करी पारणं पछी उपवास करीने पारं. पछी छड करवो. ए रीते तपना नव दिवस थाय तथा पारणाना दिवस पांच थाय बने मळी १४ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. " सिद्धाणं " ए पदनुं गरणं वीश नवकारवाळी गणवुं. साथीया विगेरे आठ आठ करवा. उद्यापनमां नव मुक्ताफळ मूकी ज्ञानभक्ति करवी. Jain Education Intemational बीजी रीत. ( प्रत नं. ड. ) अथवा प्रथम एक छठ करवो. पछी पारणं करखुं. पछी एकांतर पारणावाळा सात उपवास करवा पछी एक अहम ) 222 मौन एकादशी तप अने कंठाभरण तप, ।। १३. ।। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षीरसमुद्र तपोरत्नमहोदधि ॥१३१॥ माण. अने कोटिशिला तप. ACCASIENTRISHURASTRORRORIOR * करवो. पछी पारणु करी सात उपवास एकांतर पारणावाळा करवा. पछी छेवट एक छठ करवो. ए रीते एकवीश उपवास अने सोळ पारणाए तप पूर्ण थाय छे. बीजं सर्व उपर प्रमाणे जाणवू. १०३ क्षीरसमुद्र तप. (ला.) आ तपमा सात उपवास निरंतर करी पारणे गुरुने क्षीर वहोरात्री मात्र क्षीरवडे एकास' करवू. ठाम चोविहार करवो. उद्यापने खीर, खांड अने घृतथी भरेलो थाळ देव पासे ढोकवो. गुरुने दान देवु. संघवात्सल्य, ज्ञानपूजा करवी. बीजी रीत. (जै. प्र. ज. सि. विगेरेमा) आ तप श्रावण मासमा करवो. पर्युषणा पहेलां तेनो आरंभ करवो. तेमा आठ एकासणा उपर एक उपवास करवो. उद्यापन उपर प्रमाणे. "क्षीरवरसमसम्यग्दर्शनधराय नमः" ए पदटुं गर| नवकारवाळी वीशनुं गणवं. साथीया विगेरे सात सात करवा. (आ बीजी रीत प्रचलित नथी.) १०४ कोटिशिला तप. (व्रत नं. ड.) कोटिशिला उपर छ तीर्थकरना गणधरो विगेरे साधुओ मोक्षे गया छे. तेमने उद्देशीने आ तप करवानो छे. तेमां श्री शांतिनाथजीना शासनमा चक्रायुध आदि संख्याता साधुओ मोक्षे गया माटे तेमने उद्देशीने प्रथम एक उपवास करवो. पछी आठ एकासणां करवां, पछी एक उपवास करी पारणे एकासणुं करवू. सर्व मळी दिन अग्यारे आ तप पूरो थाय छे. पछी Main Education FurPrivate &Personal use only. Naw.jainelibrary.org Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरस्नमहोदधि ॥ १३२॥ ५ 36- 3 कोटिशिला तप. GPREMORECA-Gk श्री कुंथुनाथस्वामीना शासनमा पण संख्याता मुनिओ सिद्ध थया छे, तेथी तेमने आश्रीने पण उपर प्रमाणे ज अग्यार दिव- सनो तप करवो. पछी श्री अरनाथस्वामीना बारामां बार करोड मुनिओ सिद्धिपदने पाम्या छे, तेथी तेमने आश्रीने प्रथम | एक उपवास करीने पछी दश एकासणां करवा. पछी एक छेल्लो उपवास करी पारणे एकासणुं करवं, तेथी पारणा सहित तेर दिवसे आ तप पूरो थाय छे. श्री मल्लिनाथना वारामा छ करोड मुनिओ मोक्षे गया छे तेथी तेमने आश्रीने पहेलो उपवास, पछी चार एकासणा, पछी एक उपवास करीने पारणे एकासणुं करवू. कुल सात दिवसे आ तप पूरो थाय छे. श्री मुनिसुव्रतस्वामीना बारामांत्रण करोड मुनिओ सिद्धिपद पाम्या छे, तेथी तेमने आश्रीने प्रथम उपवास, पछी एकासणुं अने पछी उपवास करी पारणे एकास' करवू. एम कुल चार दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. श्री नमिनाथना वारामा एक करोड मुनि सिद्ध थया तेथी तेमने आश्री एक उपवास करवो. पारणे एकासणुं करचु. उद्यापने देव पासे दश साथीया अक्षतना करवा. दश दीवा घीना मकवा. दश पुष्पमाळा प्रभुना कंठमां पहेराववी, अष्टप्रकारी पूजा भणाववी, तंडूल (चोखा) शेर सवा प्रभु पासे ढोकवा. "ॐ हो नमो सिद्धाणं" ए पदनुं गरj नवकारवाळी वीशनुं गणवू. दश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. प्रदक्षिणा दश, खमासमण दश देवा. जयवीयराय पर्यत चैत्यवंदन करवू. खमासमण आ प्रमाणे देवा. श्री शांतिनाथ जिनतणा, चक्रायुध गणधार । कोटिशिलाए शिव लह्या, प्रणमुं प्रात उदार ॥१॥ चोवीश जुगना सहु मली, साधु संख्याती कोड । एणी तीरथे मुक्त गया, वंदूं वे कर जोड ॥ २॥ KISIOSRECEMARCH ॥१३२॥ Jain Education in Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि CALCHAUHAR महातीरथ सिद्धांतमां, भाखे श्री जगभाण । तन मन वचने सेवतां, लहीए शिवपुर ठाम ॥ ३ ॥ पांच पच्चदशार्ण देशे केई कहे, केईक सिंधु मझार । कोटिशिला तीरथ तिहां. प्रणमुंवारंवार ॥४॥ खाण तप, एक जीव जिहां शिव लहे, तीरथ कहीए तेह । असंख्य मुनि जिहां शिव लहे, किम नवि कहीए एह ? ॥५॥ ६ गौतम क पुष्प दीप नेवेद्यथी, जे पूजे जिनराज । अक्षत फल आगल धरे, सीझे बंछित काज ॥६॥ मर तक, १०५ पांच पच्चख्खाण तप. ( ओळी ) (टी.) अने घडीयां आ तपमा पहेले दिवसे उपवास, बीजे दिवसे चेसणुं, त्रीजे दिवसे एकासगुं, चोथे दिवसे नीवी, पांचमे दिवसे ऑविल 15 घडीयां ए प्रमाणे पांच दिवसे एक ओळी थई. एवी पांच ओळी करवी. गण[ " नमो सिद्धाणं" ए पदनुं वीश नवकारवाळीनुं गणवू. साथीया विगेरे आठ आठ करवा. १०६ गौतम कमल तप. (नं. क.) आ तपमा एकांतर उपवास नव करवा. उद्यापने गौतमस्वामीनी पूजा पूर्वक सुवर्णतुं कमळ करावीने ढोकवू. बीजी 3 सर्व वस्तु पक्वान्न. फळ विगेरे शक्ति प्रमाणे ढोकवा. "श्रीगौतमस्वामिसर्वज्ञाय नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे सत्यावीश करवा. १०७ घडीयां बे घडीयां तप. (ला) आ तपमा प्रथम चार दिवस सुधी पा घडीयु करवं, एटले के पा घडीमां (छ मिनिटमां) भोजन करी लेवं, पछी तप. For Private Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न- महोदधि ॥१३४॥ ARRECTRESS आठ दिवस सुधी अर्धा घीयां करवां एटले अर्धी घडीमां ( १२ मिनिटमा ) जमी ले. पछी सोळ दिवस सुधी एक घडीयुपीस्तालीश कर, एटले एक घडीमां ( २४ मिनिटमां ) जमी लेवु. पछी बत्रीश दिवस सुधी वे घडीयां करवां एटले १८ मिनिटमां आगन तप. जमी लेवं. आ प्रमाणे वे मासे आ तप पूर्ण थाय छे. हमेशा एकासणार्नु पच्चख्खाण कर. ठाम चोविहार करतो. " नमो | अरिहंताणं " पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. १०८ पीस्तालीश आगम तप. (पंन्यास क. जीनी तपावली) आ तपमा ४५ लगोलग एकासणां करवां. दररोज जुदु जुहुँ गुणणुं गण. साथीया करवा. खमासमण देवा. हमेशां ते ते आगमनी डाळ स्नात्र भणावीने बोलवी. तप पूर्ण थये उद्यापने वरघोडी नथा पूजा प्रभावनादिक करवु. नंदीसूत्र तथा भगवती सूत्रनी सोनामहोरे पूजा करवी. पहेले तथा छेल्ले दिवसे रुपानाणे तथा बीजा आगमोनी पैसाथी तथा वासक्षेपथी पूजा करवी. तप पूर्ण थये पीस्तालीश पीस्तालीश वस्तुओ ज्ञान पासे ढोकवी. गुरुपूजन कर. पीस्तालीश आगमनी मोटी पूजा भणाववी. शेष विधि गुरु पासेथी जाणवो. गरगुं विगेरे नीचे प्रमाणेसा० ख० लो० नो० सा० ख० लो० नो. १ श्री नंदीमत्राय नमः ५१-५१-५१-२० २ श्री अनुयोगद्वारसूत्राय नमः ६२-६२-६२-२० ३ श्री दशवकालिकसूत्राय नमः १४-१४-१४-२० ४ श्री उत्तराध्ययनसूत्राय नमः ३६-३६-३६-२० ५ श्री ओपनियुक्तिमूत्राय नमः १०-१०-१०-२० ६ श्री आवश्यकसूत्राय नमः ३२-३२-३२-२० ॥ १३४॥ Jain Education For Private Personel Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ १३५ ॥ पीस्तालींश आगम तप. ७ श्री निशीथच्छेदसूत्राय नमः १६-१६-१६-२० ८श्री व्यवहारकल्पसूत्राय नमः २०-२०-२०-२० ९ श्री दशाश्रुतस्वन्धमूत्राय नमः १९-१९-१९-२० १० श्री पंचकल्पच्छेदसूत्राय नमः १९-१९-१९-२० ११ श्री जीतकल्पच्छेदमूत्राय नमः ३५-३५-३५-२० १२ श्री महानिशीथच्छेद सूत्राय नमः ४२-४२-४२-२० १३ श्रीचतुःशरणप्रकीर्णकसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० १४ श्री आतुरप्रत्याख्यानसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० १५ श्री भक्तपरिज्ञासूत्राय नमः १०-१०-१०-२० १६ श्री संस्तारकप्रकीर्णकमूत्राय नमः १०-१०-१०-२० १७ श्री तंदलवैतालिकसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० १८ श्री चंद्रवेध्यकप्रकीर्णकमत्राय नमः १०-१०-१०-२० १९ श्री देवेंद्रस्तवप्रकीर्णकस्त्राय नमः १०-१५-१०-२० २० श्री मरणसमाधिसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० २१ श्री महाप्रत्याख्यानसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० २२ श्री गणिविद्याप्रकीर्णकसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० २३ श्री आचारांगसूत्राय नमः २५-२५-२५-२० २४ श्री सूत्रकृतांगसूत्राय नमः २३-२३-२३-२० २५ श्री स्थानांगसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० २६ श्री समवायांगसूत्राय नमः १०४-१०४-१०४-२० २७ श्री भगवतीसूत्राय नमः ४२-४२-४२-२० २८ श्री ज्ञातांगसूत्राय नमः १९-१९-१९-२० २९ श्री उपासकदशांगसूत्राय नमः १५-१०-१०-२० ३० श्री अंतकृदशांगमूत्राय नमः १९-१९-१९-२० | ३१ श्री अनुत्तरोपपातिकमूत्राय नमः २३-२३-२३-२० ३२ श्री प्रश्नव्याकरणसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० | ३३ श्री त्रिपाकांगमूत्राय नमः २०-२०-२०-२० ३४ श्री उपपातिकसूत्राय नमः २३-२३-२३-२० EARCRECIRECEIk Jain Fiston International For Private & Personal use only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरत्न महोदधि ॥ १३६ ॥ Jain Education ३५ श्री राजप्रश्नीयसूत्राय नमः ३७ श्री प्रज्ञापनोपांगमूत्राय नमः ३९ श्री जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिमूत्राय नमः ४१ श्री कल्पावतंसकमूत्राय नमः ४३ श्री पुष्पचूलिकामूत्राय नमः ४५ श्री पुष्पकोपांगसूत्राय नमः ४२-४२-४२-२० ३६ श्री जीवाभिगममूत्राय नमः ३६- ३६-३६ - २० ३८ श्री सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्राय नमः ५०-५० -५०-२० ४० श्री चंद्रप्रज्ञप्तिपुत्राय नमः १०-१० -१०-२० ४२ श्री निरयावलीमूत्राय नमः १०-१०-१०-२० ४४ श्री वह्निदशोपांगसूत्राय नमः १०-१०-१०-२० १०-१०-१०-२० चतुर्गति निवारण ५७-५७-५७-२० तप. ५०-५०-५०-२० १०-१०-१०-२० १०-१०-१०-२० १०९ चतुर्गति निवारण तप (न. क. ) आ तपमा चार ओळी करवानी छे. तेमां पहेली ओळीमां पहले दिवसे एकासथुं, बीजे दिवसे एक कवळ, श्रीजे दिवसे एकासणुं, चोथे दिवसे वे कवळ, पांचमे दिवसे एकासणुं, छठे दिवसे ऋण कवळ, ए रीते वधता वधता पंदरमे दिवसे एकास अने सोळमे दिवसे आठ कवळं ए प्रमाणे ८ एकासणां अने आठ पारणाना दिवस मळीने १६ दिवस अने कवळ ३६ कुल थाय छे. आ पहेली ओळी थई, बीजी ओळीमां पहेले दिवसे नीवी, बीजे दिवसे (पारणाने दिवसे) नव कवळ, त्रीजे दिवसे नीवी, चोथे दिवसे दश काळ, ए प्रमाणे चडता चडता पंदरमे दिवसे नीवी तथा सोळमे दिवसे सोळ कवळ-आ रीते बीजी ओळी थई. त्रीजी ओळीमा पहेले दिवसे आंबिल, बीजे दिवसे सत्तर कवळ, श्रीजे दिवसे आंबिल, चोथे दिवसे अढार कवळ ए रीते चडता चडता पंदरमे दिवसे आंबिल अने सोळमे दिवसे चोवीस कवळ-आ त्रीजी ओळी थई, ए ज रीते चोथी ।। १३६ ।। w.jainelibrary.org Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जपोरत्नमहोदधि चउसही तप अने चंदनवाळा ।। १३७॥ तप. ओळीमा पहेले दिवसे उपवास, चीजे दिवसे पचीश कवळ, बीजे दिवसे उपवास, चोथे दिवसे छवीश कवळ, ए रीते चडता चडता पंदरमे दिवसे उपवास अने सोळमे दिवसे वत्रीश कवळ आवे. आ रीते ६४ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे, तेमा ३२ तपना दिवस अने ३२ कवळना दिवस. कुल कवळ ५२८ थाय छे. " नमो अरिहंताणं " पदनी नवकारवाळी चीश ग. णबी. साधीया वगेरे बार बार करवा. ११० चउसठ्ठी तप (नं. क. विगेरे) आ तपमा एकांतर आंबिल ३२ करवा, पारणे एकासणां करवां, एकासणे त्रिविध आहारनु पञ्चक्खाप करवू. “नमो ॐा अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी, साथ या विगेरे बार बार करवा. १११ चंदनवाळा तप. (ला.) आ तप कार्तिक वद १० थी वैशाक शुदी १० सुधीमां अथवा पर्युषणमां अथवा कोइ पण दिवसे करवामां आवे छे. | तेमा मात्र एक अहम करी चोथे दिवसे पारणे मुनिने अडदना बाकळानुं दान दई पोते पण तेनु ज पारणुं कर. पच्चक्खाण आंबिलनु कर तथा ठाम चउविहार करवो. " श्री महावीरस्वामिनाथाय नमः" ए पदनुं गरगुं वीश नवकारवाळीन गणवू. साथीया विगेरे बार बार करवा. विशेष विधि-श्री चंदनवालाना तपने पारणे रूपानी सुपडीने खूणे अडदना वाकळा भरीने बहोरावे, ते साथे रुपाना| णाथी गुरुपूजन करे, पगमां तथा हाथमा स्तरनी अथवा रेशमनी फालकीनी आंटी नांखी मुनिने दान दे. ।१३७॥ For Private Personal use only w.jainelibrary.org Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥ १३८॥ तप. । ११२ छन्नु जिननी ओळी तप. छन्नु जिनआ तपमा अतीत, अनागत अने वर्तमान जिन आश्री त्रण चोवीशी तथा सीमंधरादिक वीश जिन विचरता अनेनी ओळी श्री ऋषभानन, चन्द्रानन, वारिषेण अने वर्धमान ए चार शाश्वता जिन-कुल उन्नु जिन आश्री एक एक उपवास करवो. वखतनी अनुकूळताए छुटा छूटा करतां छन्नु उपवासे आ तप पूर्ण थाय छे. गरगुं नीचे प्रमाणे. जे तीर्थकरनो तप चालतो होय तेना नामर्नु गणवं. नवकारखाळी वीश गणवी. साथीया, खमासमण विगेरे बार बार करवा. उद्यापने चोवीश जिनने तीलक वगेरे चडावबां. अतीत चोवीशी जिन नाम. १ श्री केवलज्ञानिने नमः । २ श्री निर्वाणिने नमः। ३ श्री सागराय नमः। ४ श्री महायशसे नमः। ५ श्री विमलाय नमः। ६ श्री सर्वानुभृतये नमः। ७ श्री श्रीधरनाथाय नमः । ८ श्री दत्तनाथाय नमः। ९ श्री दामोदरनाथाय नमः। १. श्री सुतेजोनाथाय नमः ११ श्री स्वामिनाथाय नमः। १२ श्री मुनिसुव्रतनाथाय नमः । १३ श्री सुमतिनाथाय नमः। १४ श्री शिवगतिनाथाय नमः। १५ श्री अस्तागनाथाय नमः । १६ श्री नमीश्वराय नमः। १७ श्री अनिलनाथाय नमः। १८ श्री यशोधरनाथाय नमः। १९ श्री कृतार्थनाथाय नमः। २. श्री स्वामिनाथाय नमः। २१ श्री शुद्धमतिनाथाय नमः।। ॥ १३८॥ For Private Personal Use Only Jain Education Intematon Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ श्री शिवंकरनाथाय नमः। सपोरत्नमहोदधि ॥१३९॥ छन्नु जिन&नी ओळी तप. CAMERRRRRECRememews १ श्री ऋषभदेवाय नमः। ४ श्री अभिनंदननाथाय नमः। ७ श्री सुपार्श्वनाथाय नमः। १. श्री शीतलनाथाय नमः। १३ श्री विमलनाथाय नमः। १६ श्री शांतिनाथाय नमः। १९ श्री मल्लिनाथाय नमः। | २२ श्री नेमिनाथाय नमः। २३ श्री स्यन्दननाथाय नमः। २४ श्री संप्रतिनाथाय नमः। वर्तमान चोवीशी जिन नाम. २ श्री अजितनाथाय नमः। ३ श्री संभवनाथाय नमः । ५ श्री सुमतिनाथाय नमः । ६ श्री पद्मप्रभवे नमः । ८ श्री चंद्रप्रभवे नमः। ९ श्री सुविधिनाथाय नमः। ११ श्री श्रेयांसनाथाय नमः। १२ श्री वासुपूज्यनाथाय नमः। १४ श्री अनंतनाथाय नमः। १५ श्री धर्मनाथाय नमः। १७ श्री कुंथुनाथाय नमः। १८ श्री अरनाथाय नमः । २० श्री मुनिसुव्रतनाथाय नमः। २१ श्री नमिनाथाय नमः । २३ श्री पार्श्वनाथाय नमः। २४ श्री महावीरस्वामिने नमः । अनागत चोवीशी जिन नाम. २ श्री सुरदेवाय नमः। ३ श्री सुपार्श्वनाथाय नमः। ५ श्री सर्वानुभूतये नमः। ६ श्री देवश्रुतनाथाय नमः। ८ श्री पेढालनाथाय नमः। ९ श्री पोट्टिलनाथाय नमः । -CAE%ACRORE १ श्री पद्मनाभाय नमः। ४ श्री स्वयंप्रभवे नमः। ७ श्री उदयनाथाय नमः। CER For Private in Education inte Panjainelibrary.org Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। ९४० ।। Jain Education Internat १० श्री शतकीर्तये नमः । १३ श्री निष्कषायनाथाय नमः | १६ श्री चित्रगुप्ताय नमः । १९ श्री यशोधरनाथाय नमः । २२ श्री देवनाथाय नमः | १ श्री सीमंधरस्वामिने नमः । ४ श्री सुबाहुजिनाय नमः । ७ श्री ऋषभाननाय नमः । १० श्री विशालनाथाय नमः | १३ श्री चन्द्रवाहवे नमः । । १६ श्री नेमिप्रभवे नमः । १९ श्री देवजसाजिनाय नमः । ११ श्री सुव्रतनाथाय नमः । १४ श्री निष्पुलाकनाथाय नमः | १७ श्री समाधिनाथाय नमः | २० श्री विजयनाथाय नमः | २३ श्री अनन्तवीर्यनाथाय नमः । . विहरमान वीश जिन नाम. · २ श्री युगन्धरस्वामिने नमः । ५ श्री सुजातजिनाय नमः । ८ श्री अनन्तवीर्याय नमः । ११ श्री वज्रधराय नमः । १४ श्री भुजंगनाथाय नमः | १७ श्री वीरसेननाथाय नमः । २० श्री अजितवीर्याय नमः । १२ श्री अममनाथाय नमः । १५ श्री निर्ममनाथाय नमः | १८ श्री संवरनाथाय नमः | २१ श्री मल्लनाथाय नमः | २४ श्री भद्रनाथाय नमः । ३ श्री बाहुजिनाय नमः । ६ श्री स्वयंप्रभवे नमः | ९ श्री सुरप्रभाय नमः । १२ श्री चंद्राननजिनाय नमः | १५ श्री ईश्वरनाथाय नमः १८ श्री महाभद्राय नमः । PUREAG छन्नु जिननी ओळी तप ॥ १४० ॥ ww.jainelibrary.org Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नश्री शाश्वत चार जिन नाम. ५ श्री शाश्वत *चारजीनमहादावला १ श्री ऋषभाननजिनाय नमः । २ श्री चन्द्राननजिनाय नमः । ३ श्री वर्धमानजिनाय नमः । ४ श्री वारिषेणजिनाय नमः। ॥ १४१॥ ११३ जिनगुणसंपत्ति तप. ( नं. ब.) जिनगुणसं___ आ तपमा नेवु उपवास छूटक छूटक करवाना छे. ते आ प्रमाणे-तीर्थकर नामकर्मना बीश, तीर्थकरना सहज अ 12 पत्ति तप, जिन जनक तिशय चार, कर्मक्षयथी थयेला अतिशय अगियार, देवकृत अतिशय ओगणीश, च्यवनादिक कल्याणक पांच, तथा सिद्धना तप, अने गुण एकत्रीश. आटला गुण आश्री एक एक उपवास करता ने उपवासे आ तप पूर्ण थाय छे. " नमो अरिहंताणं " पदनी तेर काठीनवकारवाळी वीश गणवी, साथीया विगेरे पार पार करवा. यानो तप. ११४ जिन जनक तप. (जै.प्र.) आ तपमां निरंतर वत्रीश आंबिल करवा. उजमणे जिनपूजा, गुरुभक्ति, संघभक्ति विगैरे करवं. " नमो अरिहंताणं" ९ पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. ११५ तेर काठीयानो तप (पं.) प्रथम एक अट्ठम करी पारणे लापसीनु एकास' करवं, ठाम चोविहार करचो. बीजा अहमने पारणे घउंना रोटलानुं CARRIERRECORECARBONSAR RECRACareer त ॥१४ ॥ in Education International For Private Personal use only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेर काठी. यानो तप. तपोरत्नमहोदधि ॥१४२॥५ RECORCHECCRECRACTEcon एकासगुं, त्रीजा अठ्ठमने पारणे दूध चोखानी खीरनु एकासगुं, चोथे मान मूकी परघर जई एकास' कर. पांचमे पारके घेर जई ते कहे के-पारणुं करो तो पारणुं करवु. छठे वे वाटका एकमां घी तथा एकमां पाणी भरी ढांकवा. पछी अजाण्या मा. णस पासे उघडाववा. घीनो उघडे तो एकासणुं अने पाणीनो उघडे तो आंबिल कर. सातमा अहमने पारणे छ घर बजाना अने एक घर पोता- एम सात घरमांथी कोई पण ठेकाणे पारणुं करवू. आठमे पारणे चंदनबाळानी जेम अडदना बाकळानुं मुनिने दान करी पोते पारणुं तेनुंज करवू. नवमे पारणे रोटली अथवा पूरीनुं भुंगळु वाळी खावू. दशमे सुखडी मळे ते खावी. ( पण उनी रसोई खावी नहीं), अगियारमे द्राक्ष, खारेक विगरे मेवो खावो ( अभक्ष्य मेवो खावो नहीं.) बारमे धोयेली खांड विगेरेनु पाणी पीवं. तेरमे पारणे दहीं खांड खावु. (बधां पारणां एकासणांना ज जाणवां.) आ तपY नाम 'छूटा अठ्ठम' पण कहेवाय छे. कुल १३ अट्ठम ने १३ पारणा मळी ५२ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. साथीया विगरे आठ आठ करवा. गणणुं नीचे प्रमाणे वीश नवकारवाळीन गणवू. १ आलसकाठीयो निवारकाय सिद्धाय नमः। २ मोहकाठीओ निवारकाय सिद्धाय नमः। ३ अवज्ञाकाठीयो निवारकाय ४ मानकाठीयो निवा० ५क्रोधकाठीयो निवा० - सिद्धाय नमः। ६ प्रमादकाठीयो निवा० ७ कृपणकाठीयो निवा० ८ भयकाठीयो निवा० ९ शोककाठीयो निवा. १० अज्ञानकाठीयो निवा० ११ व्याक्षेपकाठीयो निवा० १ परघर एटले पोताना संबंधोनु ज जाणवू पण जेने तेने त्यां न समजवु.२ फाल्गुन मास पछी द्राक्षादि मेवो अभक्ष्य छे माटे तेवा वखतमां अठ्ठमने पारणे आंमिल करे तो पण चाले, गणपु. X म॥१४२॥ CCIR For Private Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नि देवल इंडा तप अने द्वादशांगी तप. सपोरत्न१२ कुतूहलकाठीयो निवा. १३ विषयकाठीयो निवा० अथवा नीचे प्रमाणे करवं. महोदधि १ ॐ ही धम्मोन्जमियाणं नमः २ ॐ ह्री विजयरागाणं नमः ३ ॐ ही विनयधारी नमः ॥१४३॥ ५ ४ मद्दवगुणसंपन्नाणं नमः ५, खंतिगुणसंपन्नाणं नमः ६ , अप्पमत्तचारिणं नमः हैं। ७, दानलद्धीसंपन्नाणं नमः ८, वगयभयाणं नमः ९, बीयसोयाणं नमः १०, सुमइनाणधराणं नमः ११ , लद्धीजुत्ताणं नमः १२ , अप्पकम्मसंवरधारीणं नमः " अठ्ठपक्यणजणणीधारीणं नमः आ प्रमाणे गणी न शके तो “नमः सिद्धाणं" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. बीजी रीते तेर काठीयाना तेर अहम आंबिलना पारणावाळा पण कराय छे. ११६ देवल इंडा तप. (विधि प्रपा.) आ तपमा बेसणा पांच, एकासणा सात, नीवी नव, आंबिल पांच, उपवास एक ए प्रमाणे सतावीश दिवसे तप पूर्ण थाय छे. " नमो अरिहंताणं" पदनी २० नबकारवाळी गणवी. साथिया विगेरे बार बार करवा. ११७ द्वादशांगी तप. (जै. प्र. नं. ब.) आ तपमा शुक्लपक्षनी बारस बार मास सुधी करवी. एकासणादिक तप करवो. उद्यापन ज्ञानपंचमीनी जेम करवू. "दुवालसंगीणं नमः"ह पदनुं गणणुं वीश नवकारवाळीनुं गणवू, साथीया विगेरे बार बार करवा. SACARBONGAR १४३॥ ww.jainelibrary.org For Private Personal use only Jain Education Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोग्नमहादधि ।।१४४॥ HOMEHOSPEREGERMIRECRC-RECTE ११८ नव निधान तप. (ला. वि.प्र.) तनव निषान आ तप शुक्लपक्षनी नव नवमीने दिवसे उपवास करवाथी पूर्ण थाय छे. गणणुं नीचे प्रमाणे. श्री नैसर्गनिधानाय नमः श्री सर्वरक्तकनिधानाय नमः श्री महाकालनिधानाय नमः श्री पांडुकनिधानाय नमः श्री महापद्मनिधानाय नमः श्री माणवनिधानाय नमः श्री पिंगलनिधानाय नमः श्री कालनिधानाय नमः श्री शंखकनिधानाय नमः आ तपथी निधाननी प्राप्ति थाय छे. साथीया विगैरे नव नव करवा. उद्यापने प्रभुने नव अंगे तिलक चडाववा. ११९ मोटा दश पच्चख्खाण. (पं. त. विगेरे.) पहेले दिवसे तीविहारो उपवास करवो. बीजे दिवसे एकासगुं. श्रीजे दिवसे एक चोखार्नु आंबिल एटले एक चो-16 | खानो दाणो गळवो अने ठाम चोविहार. चोथे दिवसे नीवी. पांचमे दिवसे एक कवळ, ठाम चोविहार. छठे दिवसे एक अं. गीयु एकास' एटले एक हाथ अने मोढा सिवाय बीजु अंग हलाववं नहीं. ठाम चोविहार करवो. सातमे दिवसे दचिर्नु आं. | बिल, ठाम चोविहार. आठमे दिवसे आंबिल तीविहार. नवमे दिवसे परघरीयुं एकासj. ठाम चोविहार. तथा दशमे दिवसे खाखरीयु आंबिल एटले मात्र खाखरा ज खावा, ठाम चोविहार करवो. गणणु साथिया विगेरे नीचे प्रमाणे.सा० ख. लो० नो० सा० ख० लो• नो. १ श्री समकितपारंगताय नमः ६७-६७-६७-२० २ श्री अक्षयसमाकिताय नमः १७-१७-१७-२. है॥१४॥ RECASECRECIPES Jain Fiston International For Private & Personal use only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि नाना दश पञ्चक्खाण तथा नवपदनी ओळी. SARASHPERRRRRRIERRER ३ श्री समकितनिधिनाथाय नमः ८-८-८-२० ४ श्री केवलज्ञानिनाथाय नमः २१-२१-२१-२० ५ श्री एकत्वगताय नमः ३१-३१-३१-२. ६ श्री स्वर्गनिधिनाथाय नमः ४५-४५-४५-२० ७ श्री गौतमलब्धिनाथाय नमः २८-२८-२८-२० ८ श्री अक्षयनिधिनाथाय नमः ९-९-९-२० ९ श्री परव्रताय नमः १३-१३-१३-२० १. श्री मुनिसुव्रताय नमः १२-१२-१२-२० उद्यापने मोदक १. प्रभु पासे ढोकवा. ज्ञानपूजा करवी अने अष्टप्रकारी पूजा भणावची. १२० नाना दश पञ्चरकाण (पं. त विगेरे.) आ तपमा प्रथम एक उपवास, बीजे दिवसे एकासगुं, त्रीजे दिवसे आंबिल, चोथे दिवसे एकास', पांचमे दिवसे ॐ नीवी, छठे दिवसे एक कवळ, सातमे दिवसे खीरनुं एकासगुं, आठमे दिवसे टेठवा अथवा टोपरानुं एकास', नवमे दिवसे &ा भरेभाणे एकासगुं, तथा दशमे दिवसे उपवास, ए प्रमाणे दश दिवस करवू. गरणु, उद्यापन विगेरे मोटा दश पच्चख्खाण प्रमाणे कर. (जुओ नंबर ११९) . १२१ नवपदनी ओळी (श्री सिद्धचक्राराधन तप) (जै. प्र. विगेरे ) आ तप प्रथम आशो शुदी सातमना दिवसथी आरंभीने आशो शुदी पूर्णिमा पर्यत नव दिवस सुधी तथा चैत्र शुदी सातमथी आरंभी चैत्र शुदी पूर्णिमा सुधी नव दिवस आंबिल करवाथी थाय छे. तेमां प्रथम दिवसे एकला चोखा. |नी ज वस्तु, चीजे दिवसे केवळ घउंनी, बीजे केवळ चणानी, चोथे मगनी, पांचमे अडदनी अने छठे, सातमे, आठमे तथा AR PUR ॥१४५॥ For Private Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -9 तपोरत्नमहोदधि ॥१४६॥ नवमे दिवसे केवळ चोखानी वस्तुओ खाईने आंचल करवां जोईए. एम न बनी शके तो सामान्य रीते आंबेल करवा. ए रीते नवपदनी साडा चार वर्ष पर्यंत करवाथी एकाशी आंबिल थाय छे अने आ तप पूर्ण थाय छे. तपना नव दिवसोए ब्रह्मचर्य पाठवू, ओळी. हमेशां सांज सवार प्रतिक्रमण करवू, त्रण टंक देव वांदवा, पडिलेहण करवी. एक एक दिवसे एक एक पदनी क्रिया करवी. जे पदना जेटला गुण होय तेटला साथीया करवा, खमासमण देवां, काउसग्ग करवो, ते ते पदना गुणनी भावना भाववी, कीर्तन करवं. हमेशां स्नात्रपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करवी. गरगुं विगरे नीचे प्रमाणे. सा० ख• लो० नो. सा० ख० ओ० नो० १ उँ ही नमो अरिहंताणं १२-१२-१२-२० २ उँ ही नमो सिद्धाणं ८-८-८-२० ३ , नमो आयरियाणं ३६-३६-३६-२. ४ , नमो उवज्झायाणं २५-२५-२५-२० । ५ , नमो लोए सव्यसाहूर्ण . २७-२७-२७-२० - ६, नमो नाणस्स , नमो दंसणस्स .. ६७-६७-६८-२० ८, नमो चारित्तस्स १७-१७-२७-२० ९ , नमो तबस्स १२-१२-१२-२० नव पदना खमासमण नीचे प्रमाणे आपा. १ इच्छामि खमासमणो बंदिउं जाणिज्जाए निसी हिआए मत्थएण बंदामि । उँ ही नमो अरिहंताणं । आ प्रमाणे प्रथम पदे बार गुणे शोभित, मध्यभागे विराजमान, उज्वळ वर्ण सहित एवा श्री अरिहंत भगवानने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. 12॥ १४६ ॥ P ४ arwwjainelibrary.org For Private Personal Use Only Jain an internation Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ओळी. २ इच्छामि खमा० ।उँ ही नमो सिद्धाणं । ए बीजे पदे आठ गुणे शोभित, पूर्व दिशाए विराजमान, रक्त वर्ण सहित नवपदनी एवा श्री सिद्ध भगवंतने मारी त्रिकाल वंदना होजो. ३ इच्छामि । उही नमो आयरियाणं । ए बीजे पदे छत्रीश गुणे शोभित, दक्षिण दिशाए विराजमान, पीत वर्ण सहित एवा श्री आचार्य भगवानने मारी त्रिकाळ वेदना होजो. ४ इच्छामि । उँही नमो उवज्झायाणं । ए चोथे पदे पचीश गुणे शोभित, पश्चिम दिशाए विराजमान, नील वर्ण सहित एवा श्री उपाध्यायजीने मारी त्रिकाळ बंदना होजो. ५ इच्छामि० । उँही नमो लोए सव्वसाहूणं । ए पांचमे पदे सत्तावीश गुणे शोभित, उत्तर दिशाए विराजमान, कृष्णवर्ण सहित एवा सर्व साधुने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. ६ इच्छामि । उँ ही नमो नाणस्स । ए छठे पदे एकावन भेदे शोभित, अग्नि खूणे विराजमान, श्वेत वर्ण सहित एवा | श्री ज्ञानपदने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. ७ इच्छामि । उँ ही नमो दसणस्स । ए सातमे पदे सडसठ बोले शोभित, नैऋत खूणे विराजमान, श्वेतवर्ण सहित | एवा श्री दर्शनपदने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. -८ इच्छामि । उँही नमो चारित्तस्स | ए आठमे पदे सत्तर भेदे शोभित, वायव्य खूणे विराजमान, श्वेत वर्ण सहित एवा श्री चारित्रपदने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. *॥१४७॥ KARNReci For Private Personal Use Only Hilbrainelarary.org Jain Educationing Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवपदनी V सपोरत्न ९ इच्छामि । उँही नमो तवस्स । ए नवमे पदे बार भेदे शोभित, ईशान खूणे विराजमान, श्वेत वर्ण सहित एवा श्री महोदधि ४ तप पदने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. ओळी. ॥ १४८ आ रीते नव दिवस पर्यंत विधि करवो. आ संक्षेपधी विधि को छे, सविस्तर विधि सुविहित गुरुद्वारा जाणवो तथा नव पदनी ओळीनी बुकथी जाणवो. (खमासमण देता बोलवाना दुहा.) परम पंच परमेष्ठीमां, परमेश्वर भगवान । चार निक्षेपे ध्याइए, नमो नमो जिन भाण ॥१॥ अष्ट कमें मल क्षय करी, भये सिद्ध नमो तास । भावामय औषध समी, अमृत दृष्टि जास ॥२॥ छत्रीश छत्रीशी गुणे, युगप्रधान मुनींद्र । जिनमत परमत जाणता, नमो नमो ते सुरीन्द्र ॥३॥ बोध सूक्ष्म विणु जीवने, न होय तत्व प्रतीत । भणे भणावे सूत्रने, जय जय पाठक गीत ॥४॥ स्याद्वाद गुण परिणम्यो, रमता समता संग । साधे शुद्धानंदता, नमो साधु शुभ रंग ॥५॥ लोकालोकना भाव जे, केवली भाषित जेह । सत्य करी अवधारतो, नमो नमो दर्शन तेह ॥६॥ अध्यातम ज्ञाने करी, विघटे भव भ्रम भीति । सत्य धर्म ते ज्ञान छे, नमो नमो ज्ञाननी रीति ॥७॥ रत्नत्रयी विणु साधना, निष्फळ कही सदीव । भावरयणर्नु निधान छ, जय जय संयम जीव ॥८॥ कर्म खपाचे चीकणां, भाव मंगल तप जाण । पचास लन्धि उपजे, जय जय तप गुणखाण ॥९॥ D१४८॥ IRGAOREX For Private Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नव ब्रह्मचर्य तपोरत्नमहोदधि ॥१४९॥ गुप्ति तप. निगोदआयुक्षय तफ. १२२ नव ब्रह्मचर्य गुप्ति तप. (न. क.) आ तपमा एक एक गुप्तिने आश्रीने एक एक एकामणुं नव नव कवळर्नु करवं. एटले नव दिवसे आ तप पूरो थाय अने तेमां कवळ संख्या एकाशी थाय. साथीया विगेरे नत्र नव करवा. गरगुं-" नमो नवयंभचेरगुत्तिधराणं " ए पदनुं वीश नवकारवाळी प्रमाण गणवू. उद्यापने साधु साध्वीने तथा ब्रह्मचारी श्रावक श्राविकाने वस्त्रदान देवू. १२३ निगोदआयुक्षय तर. (जै. सिं.) प्रथम एक उपवास उपर एकास[, पछी चे उपवास उपर एकासगुं, पछी त्रण उपवास उपर एकामणु, पछी वे उपवास उपर एकासगुं, पछी एक उपवास उपर एकास[-एम चौद दिवसे तप पूर्ण करवो. उद्यापने चौद मोदक ढोका. आ तपर्नु फळ निगोदना आयुष्यनो क्षय थाय ते छे. " नमो अरिहंताणं" ए पदनी चीश नोकारवाळी गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. बीजो विधि.(. वि.) प्रथम एक उपवास पछी एकासगुं, पछी चे उपवास एक एकासगुं, पछी ३ उपवास एक एकासगुं, पछी ४ उपवास एक एकास', पछी ५ उपवास ने एक एकासगुं, पछी ४ उपवास ने एकासगुं, पछी ३ उपवास ने एकासगुं, पछी २ उपवास UPSCOREOGRA ५॥ १४९॥ % Jain Eventon International FurPrivate &Personal use only. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकासणु- पोरत्नमहोदधि उद्यापन निजिगीष्ठ तप तथा पदकडी तप गीष्ठ तपः ने एकासगुं, पछी एक उपवास ने एकास[-ए प्रमाणे कुल ३४ दिवस ( २५ उपवास ने ९ एकासणा ) करवाथी पण ए & तप थाय छ. बाकीनो विधि उपर प्रमाणे जाणवो. उद्यापने ३४ मोदक विगेरे प्रभु पासे ढोकवा. .१२४ निजिगीष्ठ तप. (नं. अ. विगरे. वि. प्र.) आ तपमा एक उपवास उपर एक आंबिल-ए प्रमाणे आठ उपवास अने आठ आंबिलवडे एटले सोळ दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा सोळ मोदक, फळ विगेरे देव पासे ढोकवा. (नीरुज शिख अथवा नीरज सिंह तप कृष्ण पक्षे ज थाय छे. तेमा मुख्यत्वे ग्लान साधु साध्वीनी वैयावच करवानी छे. तेम ज ते तप पंदर दिवसे पूर्ण थाय छे. जुओ तप नंबर । ६३)" नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. १२५ पदकडी तप (जै. प्र. ज. सिं.) प्रथम एक उपवास करीने पारगुं, पछी बे उपवास करीने पारj, पछी एक उपवास करीने पारगुं, ए प्रथम ओळी थइ. पछी एक उपवास उपर पारगुं, वे उपवास उपर पारगुं, एक उपवास उपर पारणं, ए बीजी ओळी. पछी एक उपवास उपर पार[, बे उपवास उपर पारj, त्रण उपवास उपर पार[, बे उपवास उपर पारगुं, एक उपवास उपर पार| ए त्रीजी ओळी थई. पछी एक उपवास ने धारणुं, बे उपवास ने पारj, त्रण उपवास ने पार[, चार उपवास ने.पारणु, त्रण उपवास ने पारगुं, वे उपवास ने पारणुं, एक उपवास ने पारगुं, ए चोथी ओळी थई. कुल ३३ उपवास ने १८ पारणा मळी ५१ दिवस FREEKRECORAKES १५०॥ Jain Education For Private & Personal use only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दारिद्यहरण Screect% तप. पंचामृत तप, तथा पांच छ तप. तपारत्न-5 थाय, उद्यापनमां तपनी संख्या जेटला (३३) मोती तथा प्रवाल देवने चढाववा. पूजा विगरे यथाशक्ति करवं. "नमो महोदधि सिद्धाणं" ए पदनी नोकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे आठ आठ करवा. १२६ दारिद्यहरण तप. (वि. प्र.) |. आतष पूर्णिमाथी शरु करवानो छे. प्रथम दिवसे उपवास, बीजे दिवसे एकासगुं, बीजे दिवसे नीवी, चौथे दिवसे आंबिल, पांचमे दिवसे बेसणु, ए प्रमाणे एक ओळी थई. बीजी ओळी पण एज प्रमाणे करवी. कुल दश दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. पारणे साधुने दान आप. उद्यापने ज्ञानपूजा करवी. " नमो नाणस्स" पदनी नोकारवाळी वीश गणवी. सार्थाया विगेरे ५१ करवा. १२७ पंचामृत तप. (वि.प्र.) आ तपमा पांच अहम छ मासमां करवाना छे. तेमा पहेला अहमने पारणे साधुने वहोराचीन श्रीखंड खायो. वीजा अहमने पारणे सीरो खाचो. त्रीजा अहमने पारणे लापसी, चोथा अहमने पारणे लाडु तथा पांचमा अहमने पारणे खीर खावी. दरेक पारणे साधुने वहोरावीने पछी पारणुं करवू. " नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी २० गणवी. साथिया विगेरे बार बार करवा. १२८ पांच छ? तप. (पं. त.) प्रथम छह करीने पारणे घृत, साकर अने घउंनो आटो (चुरमुं अथवा शीरो), बीजा छठने पारणे दुध चोखा ने CARitectures ॥ १५ ॥ in Education Paw.jainelibrary.org Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HAMA सपोरत्नमहोदधि १५२॥ पंचमहाव्रत तप, पार्थजिन गणधर तप. R AGACASEX साकर, त्रीजा छठने पारणे झोळी पात्रां साधु साध्वीने वहोराचीने भये भाणे एकासगुं, चोथा छट्टन पारणे मृा राहत स्वाद कर्या विना एकास', पांचमा छहने पारणे पाणीनो लोटो भरीने बीजावे त्रण घेर ज. जो कोई जमवानुं न कहे तो ते दिवसे उपवास करवो. आ तप पांच छह तथा पांच पारणावडे एटले पंदर दिवसे पूरो थाय छे. उद्यापने स्वामी भाइओने जमाडीने श्रीफळ आपयां. " नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारखाळी वीश गणवी. साधीया विगेरे बार बार करवा. . १२९ पंचमहावत तप (रा. वि.) आ तपमा प्रत्येक महाव्रतने आश्रीने एक एक उपवास तथा एक एक चेमणुं करवु, एम पांच उपवास एकांतर सणाना पारणावाळा करवाथी दश दिवसे तप पूर्ण थाय छे. “नमा लोए सव्वमाहूर्ण" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे सतावीश करवा. १३० श्री पार्श्वजिन गणधर तप. (प्रचलित). आ तपमा लगोलग दश हट्ट करवा. छट्ठने पारणे चेमणुं करवू. साधीया विगरे दश दश करवा. गरणु नीचे प्रमाणे१ श्री शुभगणधराय नमः । २ श्री आर्यघोषगणधराय नमः। ३ श्री विशिष्टगणधराय नमः। ४ श्री ब्रह्मचारिंगणधराय नमः। ५ श्री सोमगणधराय नमः । ६ श्री धरगणधराय नमः। ७ श्री वीरभद्रगणधराय नमः। ८ श्री यशोभद्रगणधराय नमः । ९ श्री अमायि(जय)गणधराय नमः। १. श्री महागुणि(विजय)गणधराय नमः। ॥ १५२।। Jain d an tamation Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥१५३॥ पोष दक्षत्री तप. CARCISESSISAMAKALAM उद्यापनमा श्रीगणधर देवनी पूजा करवी ने तेने अंगीयां विगरे १० चडाववां. गणधरनी प्रतिमाने अभावे कोई पण प्रभुनी प्रतिमाने चडायवां. १३१ पोष दशमी तप. (पं. त. विगैरे) आ तप पोष दशमी एटले गुजराती मागशर बद दशमना दिवसने अनुसरीने थाय छे. तेमा प्रथम नवमीने दिवसे साकरना पाणी, एकासणुं करवू ने ठाम चोविहार करवो, दशमीने दिवसे एकास' करी ठाम चोविहार करवा, तथा अगीयारशने दिवसे तेविहारं एकासगुं करवु. एकासणु करीने त्रिविध आहारनु पच्चख्खाण कर. त्रणे दिवस ब्रह्मचर्य पाळ, बन्ने वखत प्रतिक्रमण करवु. जिनमंदिरमा जई अष्टप्रकारी अथवा सत्तरप्रकारी पूजा भणाववी. स्नात्र महोत्सव करवो. नव | अंगे आडंबरपूर्वक भगवाननी पूजा करवी. गुरु पासे आवी सिद्धांतनुं श्रवण करवू. आ प्रमाणे दश वर्ष सुधी कर. बळी | तपने दिवसे ( मागशर वदि १० मे) पौषध करवो. आ प्रमाणे जे तप करे छे तेनी मनकामना सिद्ध थाय छे. आ लोकमां धनधान्यादिक पामे, परलोकमां इंद्रादिक पद पामे, अने छेवट मोक्षपद पामे. " श्री पार्श्वनाथाहते नमः" ए पदनु गरणुं वीश नोकारवाली प्रमाण गणवं. साथीया विगरे बार बार करवा. उद्यापने दश पुंठा, दश रूमाल ( पुस्तक बांधवाना ), दश नवकारवाली, दश नीलमणि, दश चंद्रया, सोनु, रु', कांस, पीतल ए चार धातुओनी दया दश प्रतिमा अने ज्ञान, दर्शन ने चारित्रना उपकरणो दश दश करवा. बाकी विधि गुरुगमथी जाणवो. RECRECIRCRECE For Private & Personal use only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ X तपोरत्न महोदधि ॥१५४॥ १३२ बीजनो तप (पं. त.) बीजना तय | अने मोटो आ तप कार्तिक शुदी बीजथी शरु करवानो छे. तेमां दरेक मासनी शुदी बीजे चोविहार उपवास करवो. ए रीते रत्नोत्तर बावीश मास सुधी अथवा उत्कृष्ट बावीश वरस सुधी आ तप करवो. सवार सांज बन्ने बखत प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना, त्रि. तप. काल देववंदन विगरे कर. उद्यापन शक्ति प्रमाणे करवू. बावीश बावीश वस्तुओ ज्ञान पासे ढोकवी. गरगुं विगेरे नांचे प्रमाणे समजवु. सा. ख. लो• नो० अथवा सा० ख. लो० नो०४ १ नंदिसत्राय नमः। ५१ ५१ ५१ २. १ ओघनियुक्तिसूत्राय नमः। १४ १४ १४ २० २ अनुयोगद्वारसूत्राय नमः। ६२ ६२ ६२ २. २ अनुयोगद्वारमत्राय नमः। ६२ ६२ ६२ २० . तपने दिवसे उपर प्रमाणे बने गरणां वीश वीश नोकारवाळीनां गणवां. साथीया विगेरे पण बब्बे सूत्रना करवा. १३३ मोटो रत्नोत्तर तप. ( रा. वि.) प्रथम एक अहम करीने पारj, पछी चीजो अहम करीने पारj, पछी त्रीजो अहम करीने पारणुं करवू.पारणे बेसणुं करवू. ए रीते त्रण अट्ठम अने त्रण पारणावडे आतप थाय छे. "नमो अरिहंताणं " पदनी नोकारवाळी बीश गणवी. ४ साथीया विगेरे बार बार करवा. TERNETREKAREKARNERARIES Main Education For Private & Personal use only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CIRC तपोरत्न महोदधि ॥१५५॥ U १३४ रत्नरोहण तप. (जै. प्र. विगेरे ) रत्नरोहण आ तप आशो शुदि पांचमने दिवसे शरु करवो. तेमां चार चार दिवसनी पांच ओळी छे. तेमां प्रथम दिवसे एका. तप, बृहसणुं, बीजे दिवसे नीवी, त्रीजे दिवसे आंबिल, चोथे दिवसे उपवास. ए पहली ओळी थइ. बीजी ओळीए नीवी, आंबिल, संसारउपवास, एकासणु अनुक्रमे करवा. त्रीजी ओळीए अनुक्रमे आंबिल, उपवास, एकासj, नीवी करवा. चोथी ओळीए तारण तप. उपवास, एकास', नीवी, आंबिल करवा. पांचमी ओळीए उपवास, एकास', नीवी, आंबील करवा. आ रीते आ तप वीश दिवसे पूरो थाय. उद्यापने नवकारदाळी ५, स्थापनाचार्य ५, रत्नमय विच ५ कराववा. मोदक २० ज्ञान पासे ढोकवा. तपना दिवसोमां ब्रह्मचर्य सहित ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनी आराधना करवी. पारणाने दिवसे गुरुनी अंगपूजा यथाशक्ति व्यवडे करवी. देवनी अष्टप्रकारी पूजा करवी. आ तप त्रण वर्ष पर्यन्त करवो. "नमो अरिहंताणं" पदनी नोकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगरे बार बार करवा. . १३५ बृहत्संसारतारण तप. (जै. प्र. विगेरे ) आ तपमा प्रथम एक अष्ठम करी पारणे आंबिल करवू. पछी बीजो अहम करी आंबिल कर. पछी त्रीजो अहम 13 करी आंपिल करवू. ए रीते नव उपवास अने त्रण आंबिल एम चार दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापने दूध भर्या तरभाणा उपर रुपानी बेडी ( वहाण ) तरावी. वहाणमा रुपानाj, मोती, विद्म भरवां. यथाशक्ति पूजा भणाववी. ज्ञानपूजा करवी. देव वांदवा. प्रतिक्रमण, पडिलेहण विगेरे सर्व कर. गरणुं विगेरे नाचे प्रमाणे वीश नोकारवाळीन गणवं. 476 RRER Jain Education For Private & Personal use only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि लघु संसारतारण तप, ऋषभदेव संवत्सर १ केशिगणधराय नमः। ११ ११ ११ २० २ सूरिसिंहगणधराय नमः। ११ ११ ११ २० ३ दर्शन आराधनाय नमः। ६७ ६७ ६७ २० ४ ज्ञान आराधनाय नमः। ५१५१ ५१ २० ५ चारित्र आराधनाय नमः। १७१७ १७ ६ तप आराधनाय नमः। १२ १२ १२ २० ७ देवश्रुत आराधनाय नमः। ८ ८ ८ ८ क्षायिक समकिताय नमः। ९ ९ ९ ९ सागरसेनाय नमः। ८ ८ ८२० १० विमलवोधाय नमः । ११ महायशाय नमः। ८ २०१२ सर्वानुभृताय नमः ८ ८ ८२. १३६ श्री लघु संसारतारण तप. (जै. प्र. विगेरे) आ तपमा प्रथम त्रण आंबिल उपर एक उपवास, फरी त्रण आंबिल उपर एक उपवास, पछी त्रीजी वार प्रण आ. बिल उपर एक उपवास, ए रीते नव आंविल अने त्रण उपवास एम चार दिवसवडे आ तप पूर्ण थाय छे, बीजुं सर्व पूर्ववत् (जुओ नंबर १३५), ' १३७ श्री ऋषभदेव संवत्सर तप. (वर्षी तप) (प्रत नं. ब.) आ तप फागण (गुजराती ) वद ८ ने रोज शरु करी यथाशक्ति एकांतर उपवास करवा. तेमां कुल उपवास ४०० करवा. ते त्रीजे वर्षे अक्षय तृतीयाने दिवसे पूर्ण थाय. ( तप करतां वचमा जे अक्षय तृतीया आवे ते दिवसे खाधावार आवतो PERCASHRECORRERAK Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छमासी सपोरत्नमहोदधि तप. RECARECRUARCH होय तो उपवास करवो.) छेल्ले दिवसे देवगुरुनी पूजापूर्वक संघवात्सल्य करी पार' कर. * श्री ऋषभदेवनाथाय नमः" पदनी नवकारवाली वीश गणची. साथिया विगेरे बार बार करवा. बीजी रीत-श्री ऋषभदेवस्वामीना शासनमा उत्कृष्ट तप ३६० उपवासनो छे, तेथी तेने आश्रीने ३६० उपवास एकांतर पारणाचाळा करवा. वीजुं सर्व उपर प्रमाणे. हालमां आ तप करवानो प्रचार आ प्रमाणे छ.-फागण वद ८ ने दिवसे उपवासंथी शरु करी एकांतरे पारणे बेसणुं करी तेर महिना ने ११ दिवसे एटले अखात्रीमन दिवसे पारणुं करे छे. पारणे १०८ घडा शेरडीना रसना अथवा साकरना पाणीना पीए छे. ( घडो रुपानो अतिशय नानो बनावे हे.). आ-तपमां ये दिवस भेगा खावाना न आक्या जोईए, तथा चउदशनो खाधावार न आववो जोईए, तेम त्रण चोमासीना (१४-१५ ना) छट करवा जोईए, अने छेवटे छहथी ओछे तपे पारणुं न करवू जोइए, पारणे शेरडी रस पीवानो छे ते पण ताजो ज होय तो पीवाय, कारण के चे पहोर पछी शेरडीनो रस लघुप्रवचनसारोद्धारमा अमक्ष को छे. तेवा रसना अभावे साकरना पाणीथी पण चाले छे.. १३८ छमासी तपं. (जै. प्र. विगेरे.) श्री महावीरस्वामीना शासनमा उत्कृष्ट छ मासी (उपवास १८.) नो तप छे. तेथी तेने आश्रीने एक सो एंशी उप १ आ १८० उपवास पारणावाळा शक्तिने अभावे कह्या ले. नहीं तो आशरे ३०० वर्ष अगाउ दिल्लीपतीना दिवानना फइदा (चंपाबा)प लागठ १८० उपवास पादशाह समक्ष करेज छे एवो लेख छे, PECIRECENERISPECIALIST १५७१ For Private & Personal use only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । तपोरत्नमहोदधि शत्रुजय मोदक तप, शत्रुजय छठ अठम तप, SHARMA0003 वास एकांतर पारणावाळा करवा. उद्यापने १८० लाइ, फळ विगेरे प्रभु पासे दोकवा. "श्री महावीरस्वामिनाथाय नमः" ए पदनुं गरj नवकारवाळी वीशनुं गणवू. साथीया विगेरे बार बार करवा. ___एकांतरा उपवास छ मास सुधी करवा. तेमां चउदशे खवाय नहीं. चौमासीनो छष्ट करवो. शरु करतां छठ तेम ज पारj पण छठे थाय छे. (आ छमासी तपमा उपवास ९० थाय छे.) १३९ शत्रुजय मोदक तप. (जै. प्र. दिगेरे) आ तपमा पहेले दिवसे पुरिम, बीजे दिवस एकासगुं, त्रीजे दिवसे नीवी, चोथे दिवसे आंबिल, पांच में दिवसे उपवास, करवो. उद्यापने पांच माणाना मोदक तथा पांच रूपया देव आगळ ढोकवा. ज्ञाननी पूजा रूपानामाथी करवी, "श्री शत्रुजयतीर्थाय नमः" ए पदनी नवकारवी वीश गणवी. साथीया विगेरे एकवीश करवा. १४० शत्रुजय छ? अठ्ठम तप. (पं. त. विगेरे.) आ तपमा पहेलो तथा छेल्लो अठम करवो. अने बच्चे सात छह करवा. ए रीते वीश उपवास तथा नव पारणा मळी २९ दिवसे तप पूर्ण थाय छे. साथीया विगरे २१-२१ करवा. नवकारवाळी वीश नीचे प्रमाणे गणवी. अहमे १ श्री पुंडरीकगणधराय नमः । २ श्री ऋषभदेवसर्वज्ञाय नमः। छठे ३ श्री विमलगणधराय नमः। , ४ श्री सिद्धक्षेत्राय नमः। HOCKGROGRESit १५८॥ For Private Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि रश@जय छ ★ अन तप. RECTORADHA ५ श्री हरिगणधराय नमः । , ६ श्री बाहुबलिनाथाय नमः । , ७ श्री सहस्रादिगणधराय नमः । , ८ श्री सहस्रकमलाय नमः। अट्टमे ९ श्री कोडिगणधराय नमः। अथवा नीचे प्रमाणे. बने अहने १ श्री सिद्धाद्विशत्रुजयसिद्धगिरिवराय नमः । छठे २ श्री आदीश्वरपरमेष्टिने नमः ।। __ छह ३ श्री आदीश्वरअर्हते नमः । , ४ श्री आदीश्वरनाथाय नमः , ५ श्री आदीश्वरसर्वज्ञाय नमः। ., ६ श्री आदीश्वरपारंगताय नमः । , ७ श्री शत्रुजयसिद्धक्षेत्रपुंडरीकाय नमः ,, ८ श्री सिद्धक्षेत्रपुंडरीकविमलगिरये नमः। अथवा " श्री शत्रुजयपर्वताय नमः" ए गर| हमेशां गणQ. एकवीश खमासमण नीचे प्रमाणे आपवा१ श्री शत्रुजयपर्वताय नमः। २ श्री पुंडरीकपर्वताय नमः । ३ श्री सिद्धक्षेत्रपर्वताय नमः। ४ श्री विमलाचलाय नमः। ५ श्री सुरगिरये नमः। ६ श्री महागिरये नमः। ७ श्री पुण्यराशये नमः। ८ श्री पर्वताय ममः। ९ श्री पर्वतेंद्राय नमः। १. श्री महातीर्थाय नमः। ११ श्री सारस्वताय नमः। १२ भी दृढशक्तिपर्वताय नमः। १५९।। Jain Education For Private Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - खोरत्न महोदधि ॥ १६॥ मेरु त्रयो दशी तप, १ शिवकुमार नो चेलो [ ] PRECISHRA १३ श्री मुक्तिनिलयाय ममः । १४ श्री पुष्पदंताय नमः। १५ श्री महापद्माय नमः। १६ श्री पृथ्वीपीटाय नमः। १७ श्री सुभद्रगिरि पर्वताय नमः। १८ श्री कैलाशगिरिपर्वताय नमः। १९ श्री पातालमूलाय नमः। २० श्री अकर्मकाय नमः। २१ श्री सर्वकामपूरणाय नमः । उद्यापनमां नवाणु प्रकारी पूजा भणायवी. यथाशक्ति ज्ञानपूजा तथा प्रभावनादि करवू. १४१ मेरु त्रयोदशी तप. [पं. त. विगेरे ] आ तपनो गुजराती मास प्रमाणे पोष वद तेरसने दिवसे आरंभ कराय छे. ते दिवसे श्री ऋषभदेवस्वामी, निर्वाण कल्याणक थयुं छे. तेथी ए दिवसर्नु माहात्म्य घणुं मोटुं छे. ते दिवसे चउविहार उपवास करवो (शक्ति न होय तो तिवि. हार करवो ). रत्नना पांच मेरु करवा. तेमां चार दिशाए चार नाना मेरु करवा. रत्नना न बने तो घीना करवा. तेनी पासे चार दिशाए चार नंदावर्त करवा. दीप, प प्रमुख घणा प्रकारनी पूजा करवी. ए रीते तेर महिनानी अथवा तो तेर बरसनी त्रयोदशी करवी. " श्री ऋषभदेवपारंगताय नमः" ए पदनुं गर| नवकारचाळी वीसवें गणवू. आ रीते महिने महिने करवाथी सर्व कमेनो क्षय थाय छे. आ भव तथा परभवने विषे सुखसंपदा पामे छे. ते तपने दिवसे पौषध करवो. पारणाने दिवसे गुरुने प्रनिलाभी-अतिथिसंविभाग करी पारणुं करवू. साधीया विमेरे चार बार करवा. १४२ शिवकुमारनो बेलो [छह ] तप [जै. प्र. ज. सिं, ] आ तपमां बार छह लगोलग आंबिलना पारणावाला करवा. लागठ न थई शके तो छूटक करवा. उद्यापनमां बार बार तप. ॥१६॥ Main Education International For Private & Personal use only Lainelibrary.org Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न- महोदधि तप. मोदक, फळ, रुपानाणु विगेरे देव पासे ढोकवा. ज्ञाननी पूजा तणा गुरुनी भक्ति करवी. “ नमो अरिहताणं " पदनी नवका- षट्काय तप, खाळी वीश गणवी, साथीया विगेरे बार बार करवा. सात सौख्य १४३ षट्काय तप. [र. वि.] , आठमोक्ष आ तपमा लागठ छ उपवास करवा. उद्यापनमां शक्ति प्रमाणे जीवदयामां द्रव्य चापरवं.गरणुं “नमो अरिहंता]" तप. सिद्धि पदनुं नवकारवाळी बीश प्रमाण गणवू. साधिया विगरे बार बार करवा. १४४ सात सौख्य आठ मोक्ष तप. [जै. प्र.] ___ आ तपमा सात एकामणा करी उपर एक उपवास करयो. उद्यापनमा सात मोदक तथा आठमो चारगणो मोटो मोदक । देव पासे ढोकचो. सोळ जातिनां पक्वान्न तथा फळ विगेरे ढोकवा. ज्ञानपूजा करवी. "नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साधीया विगेरे बार बार करवा. १४५ सिद्धि तप. [पं. त. जा.] आ तपमा प्रथम एक उपवास करी पारणु, पछी चे उपवास उपर पारj, पछी त्रण उपवास उपर पारj, पछी चार उपवास उपर पार[, एम चरतां चडतां आठ उपवास उपर पार' करवं. पारणे पेसणुं करवू, उद्यापने यथाशक्ति पूजा | प्रभावना करची. गर] नीचे प्रमाणे वीश नवकारवाळीनुं गण. माथीया विगरे आठ आठ करवा.. ACCOREIGA % Main Education interes For Private Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ॥१६॥ %AC%ECORC १ श्री अनन्तज्ञानसंयुताय सिद्धाय नमः । २ श्री अनन्तदर्शनसंयुताय सि.। ३ श्री अव्यावावगुणसयु०। सिंहासन ४ श्री अनन्तचारित्रगुणसंयु.। ५ श्री अक्षयस्थितिगुणसं०। ६ श्री अरूपिनिरंजनगुणसं०। । तप, सौभा७ श्री अगुरुलघुगुणसं । ८ श्री अनन्तवीर्यगुणसं० । ग्यसुंदर १४६ सिंहासन तप. [पं. त. ला.] ४ ता. स्वर्गआ तपमा पांच उपवास उपर पारणुं करवू, ए रीते चार वार पांच पांच उपवास करवा. तेमां वीश उपवास कुल थाय | करंडक तप. छ. उद्यापन यथाशक्ति करवू. गर| " नमो सिद्धाणं" पदनुं वीश नवकारवाळीनुं गणवू. सार्थाया विगरे पांच यांच करवा. ( आ तप समवसरण तप पूरो थये करवानी प्रवृत्ति छ.) १४७ सौभाग्यसुंदर तप. [ जै. प्र. विगेरे] आ तप एकांतरा सोल उपवास करवाथी अने पारणे आंबिल करवायी त्रीश दिवसे पूर्ण थाय छे. “ नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. सार्थाया विगरे बार बार करवा. उद्यापने ज्ञाननी पूजा भक्ति करवी. १४८ स्वर्गकरंडक [ स्वर्गदंड ] तप. [ जै. प्र. विगेरे ] आ तपमा प्रथम बार देवलोकने आधीने बार एकासणां करवां, पछी नव ग्रेवयक आश्री नवनीवी, पछी पांच अनुत्तर विमान आश्री पांच आंबिल, छेवट एक उपवास-ए रीते सतावीश दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. " नमो अरिहंतागं" पदनी ॥ १६२ ॥ GEORSCORRECAR Jain Education For Private & Personal use only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। १६३ ॥ 966 ata नवकारवाळी गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. १४९ स्वर्गस्वतिक तप (जै. प्र. विगेरे ) पथम चार एकासां उपर एक उपवास करवो. उद्यापने पांच धान्यनो स्वस्तिक पूरवो. पांच धान्य मण मण ज्ञाननी पासे ढोकवा. " नमो नाणस्स " पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे एकावन करवा. १५० बावन जिनालय तप ( पं. त. ला. जां.) आ तप नंदीश्वर द्वीपना बावन जिनालयनी आराधना निमित्तनो छे. तेने बावन अजवाळा तप कहे छे ते स्त्री जातिए करेल अपभ्रंश छे. आ तपमां अजवाळी तथा अंधारी आठम अने चौदशने दिवसे उपवास करवा. ए रीते तेर महिने - ५२ उपवासे तप पूर्ण करवो. आतप करतां जो कोई तिथि भूली जवाय तो करेलो तप फरीथी शरु करवो पडे छे. उद्यापने ज्ञाननी, पूजा भक्ति तथा दर्शन भक्ति करवी. अथवा नंदीश्वर द्वेीपनी पूजा भणाववी. गरजुं विगेरे नीचे प्रमाणे:अजवाळी आठमे -- श्री चंद्राननस्वामिसर्वज्ञाय नमः अंधारी आठमे -- श्री वर्धमानस्वामिसर्वज्ञाय नमः साथीया विगेरे बार बार करवा. अजवाळी चौदशे -- श्री ऋषभानन सर्वज्ञाय नमः अंधारी चौदशे -- श्री वारिषेणस्वामिसर्वज्ञाय नमः स्वर्गस्वस्तिक तप, बावन जिनालय तप. ॥ १६३ ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि ॥१६४ ॥ अष्टमहाट्रसिद्धि तप, रत्नमाळा तप. १५१ अष्टमहासिद्धि तप. (ला.) आ तपमा आठ लगोलग एकासणां करवां. अथवा एकांतरा आठ उपयास करवा. उद्यापने ज्ञानपूजा विगेरे यथाशक्ति करवं. गरj नीचे प्रमाणे:-- १ अणिमासिद्धये नमः। २ महिमासिद्धये नमः। ३ लघिमासिद्धये नमः। ४ गरिमासिद्धये नमः अथवा कामारमाथिसिद्धये नमः । ५ वशितासिद्धये नमः। ६ प्राकाम्यसिद्धये नमः । ७ प्राप्तिसिद्धये नमः। ८ ईशितासिद्धये नमः। साथीया गिरे आठ आठ करवा. १५२ रत्नमाळा तप. (ला.) आ तप पावन दिवस करवानो छे. तेमां अनुक्रमे नीचे प्रमाणे तप करवो-१ उपचास, २ एकासणं, ३ एक धान्यनु आंबील, ४ एकलठाणु ( एकासणं ), ५ परघरीयु एकासगुं-ठाम चोविहार, ६ उपवास, ७ उजळा धान्यनुं एकासणु, ८ आंबिल, ९ एकलठाणु, १० एकास', ११ उपचास, १२ एकासणं, (जे खावानी चीज होय ते सर्वे जिनेश्वर पासे मूकी पछी खावी), १३ उपवास, १४ एकासणु (ते दिवसे जिनेश्वरनी अष्टप्रकारी पूजा करी प्रभु पासे खीरनो थाळ धरवो), १५ उपवास, १६ एकासणं, १७ उपवास, १८ वेसणं, १९ उपवास, २० एकासणं, २१ नीवी, BREARRIERREGISTRICKRECIPE ॥१६४। For Private Personal use only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चपोरत्नमहोदधि |चिंतामणि तप,परदेशी राजाना २२ आंबिल, २३ एकलठाणुं, २४ उपवास, २५ एकामगुं, २६ उपवास, २७ एकलठाणु, २८ उपवास, २९ एका. सणु, ३० उपवास, ३१ एकासगुं, ३२ एकलटाणुं, ३३ वेसणु, ३४ उपवास, ३५ एकास' ३६ एकासगुं, ३७ उपवास, ३८ एकासगुं, ( अष्टप्रकारी पूजा, खीरनो थाक होकवो), ३९ उपवास, ४० एकासगुं, (खावानी वधी चीज प्रभु पासे ढोकवी), ४१ उपवास, ४२ एकासगुं, ४३ एकलटाणुं, ४४ आंबील, ४५ उजळा धान्यनुं एकासगुं, ४६ उपवास, ४७ परधरीयु एकासगुं, ४८ एकलटाणुं, ४९ एक धान्यर्नु आंबिल, ५० एकासगुं, ५१ चोविहार उपवास, ५२ एकासणुं (अतिथिसंविभाग करचो.) आ प्रमाणे तप पावन दिवस करवो. दररोज देरे चौद साथीया तथा दीवो करवो. | उपवासने दिवसे जिनमक्ति विशेषे करवी. तप पूरो थये उद्यापने अष्टप्रकारी पूजा भणावची. प्रभुना कंठमा सुवर्णनो, रुपानो अथवा पुष्पनो हार शक्ति प्रमाणे पहेरावचो. संघवात्सल्य करवू. “ नमो अरिहंताणं" पदनी नवकारवाळी बीश गणवी. १५३ चिंतामणि तप. (वि.प्र.) आ तपमा प्रथम एक उपवास, पछी एकासणु, त्रीजे दिवसे नीवी, चोथे दिवसे उपवास, पांचमे दिवसे एकासगुं, उठे दिवसे उपवास करवो. उद्यापने ज्ञानपूजा, रात्री जागरण करवं. पांच स्त्रीओने तंबोल आप. “नमो अरिहंताण" पदनी नवकारवाळी चीश गणवी. साथीया विगेरे बार बार करवा. १५४ परदेशी राजाना छ? (छु. प.) आ तपमा नेर छह करवा, पारणे सणां करवां. कुल ३९ दिवसे आ नप पूर्ण थाय छे. गरगुं नीचे प्रमाणे ASREKEKARSHREGISTRUCIRE For Private Personal use only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपोरत्नमहोदधि ६ महिमानो AIIMa नमो कारकदसणधराणं नमो रुचकदसणधराणं नमो दीपकदंसणधराण ४. सुखदुःखना नमो निसग्गरुइधराणं नमो उवएसरुइधराणं नमो सुत्तरुइधराणं नमो आणारुइधराणं नमो बीयरुइधराणं नमो अभिगमरुइधराण * तप, रत्नपानमो विध्याररुइधराण । नमो किरियारुहधराणं नमो संखेवरुधराणं बडी तप, नमो दम्मरुइधराणं १५५ सुखदुःखना महिमानो तप. (ला.) प्रथम मासे उपवास उपर आंबील-ए प्रमाणे पंदर उपवास अने पंदर आंपिल करवा. बीजे मासे पदर आंबिल अने पंदर नीवी एकांतर करवा. त्रीज महिने पंदर नीवी अने पंदर एकासणां एकांतर करवा. चोथे महिने पंदर एकासणां अने पंदर बसणां एकांतर करवा. उजमणे झाननी पूजा भक्ति करवी. " नमो अरिहंताणं" पदनी वीश नवकारवाळी गणवी. साथिया | विगेरे बार बार करवा. १५६ रत्नपावडी तप. (आसो चैत्रना छ?) (ला.) | आ तपमा आठ छठ ने १ अट्ठम (३ उपवास ) करवामां आवे छे. ते कोई पण वरसना आसो शुदि १४-१५. नो छह | करवो. ने डेल्लो नवमे वर्षे आसो शुदि १३-१४-१५ नो अहम करवो. गरगुं तथा साथिया विगेरे नीचे प्रमाणे: पहेली ओळीए नमो अरिहंताणं १२ १२ १२ बीजी ओळीए नमो सिद्धाणं ८ ८ . CROSSACROREGAON For Private Personal Use Only www.jainelorary.org Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि ॥ १६७॥ F श्रीजी ओळीए नमो आयरियाणं. ३६ ३६ ३६ चौथी ओळीए नमो उवज्झायाणं २५ २५ १२५ सुंदरी तप. पांचमी ओळीए नमो लोए सबसाहणं २७ २७ २७ ही ओळीए नमो दसणस्स ६७ ६७ ६७ मेरु कल्यासातमी ओळीए नमो नाणस्स ५१ ५१ ५१ आठमी ओळीए नमो चरित्तस्स ७० ७० ७० तणक तप. नवमी ओळीए नमो तवस्स १२ १२ १२ - उद्यापनमा नवपदजीनी पूजा भणावत्री.. १५७ सुंदरी तप. (ला.) __आ तपमां साठ आंबिल लागठ करवा. उद्यापन ज्ञाननी पूजा-भक्ति करवी. " नमो सिद्धाणं " पदनु गरj गणवू. साथिया खमासमण विगेरे आठ आठ करवा. उद्यापने सिद्धनी पूजा-भक्ति करवी. . १५८ मेरु कल्याणक तप. (जै. प्र. विगेरे) आ तप श्री आदीश्वर भगवंतनी भक्तिनो छे. तेमां प्रथम त्रण अट्टम करवा. पारणे बेसणुं कर. पछी एकांतर छ उपवास करवा. पारणे बेसणुं करवं. प्रथम त्रण अट्ठम न करी शके तो वे अट्ठम करवा अने पछी एकांतर छ उपवास करीने छेवट एक अदुम करवो. आ तप एक ज वर्षमा करवो. मेरु त्रयोदशीने दिवसे हेल्लो उपवास आवे ए प्रमाणे तप करवो. उद्यापने यथाशक्ति पूजा भणाववी. " श्री ऋषभदेवपारंगताय नमः" पदनी नवकारवाळी वीश गणली. साथीयां विगेरे बार बार करवा. ORSEECTS For Private Personal use only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्नमहोदधि ।। १६८ ।। १५९ तीर्थतप ( श्रा.) तीर्थे जवाना मुहूर्त्तने दिवसे के तीर्थे प्रथम दर्शन करवाना दिवसे दर वर्षे ते यात्रानी यादीने माटे उपवास करबो तेने aayat . ( गुजराती श्राद्ध विधि ४६३ मे पाने छे.) दर वर्षं गरं " श्री तीर्थाधिराजाय नमः " समजनुं, साथीया बिगेरे वीश बीश करवा. १६० प्रातिहार्य तप. (रं. वि . ) प्रथम उपवास १ पछी एकासणुं १, पछी बेसणुं १-एवी रीते आठ वार करवाथी २४ दिवसोए आ तप पूर्ण थाय छे. पछी ज्ञानपूजा, प्रभुपूजा, प्रभावना, रात्रिजागरण कर. गरणं " नमो अरिहंताणं " पदनुं वीश नवकारवाळी प्रमाण गण. साथीया खमासमण काउस्सग्गना लोगस्स बार बार समजवा. १६१ पंचरंगी तप. (प्र. ) आ तपमा २५ माणसो होवां जोईए, तमांथी एक पंचके ( पांच माणसे ) प्रथम पांच उपवासनां पच्चरकाण करवां. बीजे दिवसे बीजा पांच माणसे ४ उपवासनां पञ्चरकाण करवां. त्रीजे दिवसे श्रीजा पांच माणसे ३ उपवासनां पच्चरकाण करवां. चोथे दिवसे चोथा पांच माणसे वे उपवासनां पञ्चरकाण करवां. पांचमे दिवसे बाकींना पांच माणसे १ उपवासनां पञ्चक्खाण करवा. आ पचीसे माणसनां पारणां एक दिवसे आववा जोईए. आ तपमां ज्ञाननी स्थापना करवी. प्रदक्षिणा, साथिया, खमासमण विगेरे ५१-५१ समजवा. पूर्ण तपे वरघोडो चडाववो. “ नमो नाणस्स " पदनी २० नवकारवाळी गणवी. तीर्थ तप, प्रातिहार्य तप, पंच | रंगी तप. ।। १६८ ॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ak तपोरस्नमहोदधि ॥ १६९ ॥ युगप्रधान तप FOROSSIP १६२ युगप्रधान तप. प्रथम ज्ञाननी पूजा भणाववी. पहेला उदयना दिवस २०, तथा बीजा उदयना दिवस २३. तेमा पहेला उदयना २० दिवस मध्ये पहेले अने छल्ले दिवसे आंबेल अथवा उपवास करवो. बाकीना अढार दिवस एकासणां करवा. हमेशां वीश खमा समण देवां, बीश प्रदक्षिणा देवी, वीश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, बन्ने वखत प्रतिक्रमण, त्रणे काळ देववंदन तथा ज्ञाननी पूजा करवी. पहेले तथा छल्ले दिवसे रुपानाणे ज्ञानपूजा करवी, अने बच्चेना अढार दिवसे शक्ति प्रमाणे ज्ञानपूजा करवी. साथीया २०, बदाम २०, तथा फळ नैवेद्य विगेरे (वीश वीश) वस्तुओ ज्ञान पासे ढोकवी. प्रथम तपना आरंभमां पूजा भणाववी, पछी ज्ञान पूज, पछी प्रदक्षिणा, पछी खमासमण, पछी चैत्यवंदन अने पछी पञ्चख्खाण कर. चीजा उदयनो विधि पण एज रीते जाणवो. विशेष ए के-पहले ने छल्ले दिवसे आंबिल अथवा उपवास करवो, बच्चे २१ एकासणा करवा. २३ दिवसे तप पूर्ण करवो. युगप्रधाननी छबी ठवणी उपर नकवी ने नेनी वासक्षेपथी पूजा करवी. गरणु नीचे प्रमाणे वीश नवकारवाळी प्रमाण दररोज गणवं. पहेला उदयमां. १ श्री सुधर्मस्वामिने नमः। २ श्रीजंबुस्वामिने नमः । ३ श्रीप्रभवस्वामिने नमः। ४ श्री शय्यं भवस्वामिने नगः । ५ श्रीयशोभद्रसूरये नमः। ६ श्रीसंभृतिविजयसूरये नमः । ७ श्रीभद्रबाहुसरये नमः। ८ वीस्थूलभद्र सूरये नमः। ९ श्रीआयमहागिरये नमः। GEE*** * * For Private & Personal use only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपोरत्न महोदधि युगप्रधान तप % %9-%E6 १. श्रीआर्यसुहस्तिसूरये नमः । ११ श्रीगुणसुन्दग्सूरये नमः। १२ श्रीकालिकाचार्यसूरये नमः । १३ श्रीस्कन्दिलाचार्यसरये नमः । १४ श्रीरेवतिमित्रसूरये नमः। १५ आर्यधर्मसूरये नमः। १६ श्रीभद्रगुप्तसूरये नमः। १७ श्री गुप्तसूरये नमः। १८ श्रीवज्रस्वामिसूरये नमः | १९ श्रीआर्यरक्षितसूरये नमः। २० श्रीदुर्बलिका पुष्पमित्रसूरये नमः। बीजा उदयमां. १ श्रीवज्रसेनसरये नमः। २ श्रीनागहस्तिमूरये नमः । ३ श्रीरेवंतमित्रमूरये नमः। ४ श्रीसिंहसूरये नमः। ५ श्रीनागार्जुनमरये नमः। ६ श्रीभूतदीन्नमरये नमः। ७ श्रीकालिकाचार्यसरये नमः। ८ श्रीसत्यमित्रमूरये नमः । ९ श्रीहारिल्लसरये नमः। १० श्रीजिनभद्रक्षमाश्रमणमरये नमः। ११ श्रीउमास्वातिवाचकसूरये नमः । १२ श्रीपुष्पमित्रमूरये नमः। १३ श्रीसंभृतिसरये नमः । १४ श्रीसंभृति गुप्तमृरये नमः। १५ श्रीधर्मरक्षितसूरये नमः । १६ श्रीज्येष्ठांगगणिसरये नमः। १७ श्रीफल्गुमित्रसूरये नमः। १८ श्रीधर्मघोषमूरये नमः १९ श्रीविनयमित्रमरये नमः। २. श्रीशीलमित्रमूरये नमः। २१ श्रीरेवंतसूरये नमः । २२ श्रीसुमिणमित्रसूरये नमः। २३ श्रीअरीहदिन्नसरये नमः । __ अज्ञानतिमिरभास्कर ग्रंथमां आपेला यंत्रानुसार नामो लख्या छे. %95-% Jan Education Interations For Private Personal Use Only www.jainelorary.org Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ QOOKWANPRANAYANNE श्री तपोरत्न-महोदधि. [ तपावली ग्रंथ ] संपूर्ण. NAVANATHANE For Private Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personal use only