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________________ तपोरत्नमहोदधि ॥६ ॥ लघुपंचमी तप. FREERICARROCARRIES अथवा उपर प्रमाणे शुक्ल पंचाए आरंभी शुक्ल तथा कृष्ण एम बने पंचमी लई पांच पंचमीए आ तप पूरो करवामां आवे छे. तेमां उद्यापने पक्वान्न फळ विगरे तथा ज्ञानना उपकरण पांच पांच ढोकवा. (नं. ग.) अथवा शुक्ला पंचाए शरु करी दरेक पंचमीए उपवास करवो. ए रीते पचीश पंचमीए एटले एक वर्षे तप पूर्ण करवो. (पं. बु.) उद्यापनमां जिनप्रतिमानी मोटी स्नात्र विधि पूर्वक पूजा करवी. पांच पांच विविध प्रकारना पक्वान्न, फळ, रुपाना' विगरे ढोकवां तथा अंग, उपांग अथवा नानी पोथी पांच लखावी साधुने बहोराववी. तेना अभावे संघना भंडारमा मूकवी. पुस्तक (ज्ञान)नी आगळ सापडा, पाटी, रुमाल, दोरी, पीछी, नोकारवाळी, वासक्षेपनो वावटो अथवा दाबडो, लेखण, खडीओ, मुखवस्त्रिका, दांडो, रजोहरण, ठवणी, ओघानो पाटो, छाबडी, अंगलूहणां, सुखड, वासक्षेप विगैरे ज्ञान, दर्शन तथा चारित्रना उपगरणो सर्वे पांच पांच ढोकवा. पांच प्रकारना धान्य ढोकवा. संघपूजा, संघवात्सल्य, गुरुभक्ति विगरे करवु, आ तपनुं फळ ज्ञाननो लाभ थवारूप छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. आ तप मुख्यताए करी ज्ञानने उद्देशीने छे, तेमां ज्ञान लखाक्यूँ तथा तेनां उपगरणो करावयां एनी आवश्यकता छे. ज्ञान लखाववानो महिमा आचारोपदेशमां आ प्रमाणे वर्णव्यो छेलिखाप्यागमशास्त्राणि यो गुणिभ्यः प्रयच्छति । तन्मात्राक्षरसंख्यानि वर्षाणि त्रिदशो भवेत् ॥१॥ अर्थ-जे माणस आगमशास्त्रो लखावीने गुणी मुनिओने आपे छे, ते पुस्तकना अक्षर जेटला वर्ष देवलोकमां SECROSSES-5 ॥६७॥ Main E ton International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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