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________________ तपोरत्नमहोदधि लघुपंचमी तप. SAHARASH ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं २७ २७ २७ २० ४६ लघुपंचमी तप. लघुपंचम्यां दूयशनादि पञ्चमासोत्तरं तपः कृत्वा । तत्पश्चविधं समाप्ती समाप्यते मासपंचविंशत्या ॥१॥ पंचमीने दिवसे करवानो तप ते पंचमी तप कहेवाय छे. ते तप श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, पोष अने चैत्र, एटला मास वर्जीने वीजा मासमां शुद पांचमे शरु करवो. पुरुषे अथवा स्त्रीए जिनचैत्यने विषे जात्यादिक पुरुषोवडे देवपूजा करवी. पछी ज्ञान- स्थापन करी तेनी पण पुष्पादिवडे पूजा करवी. पछी तेनी आगळ शुभ (अक्षत) तंदुलवडे सुंदर स्वस्तिक करवो. तेना पर घृतपूर्ण दीपक पांच वाटवाळो देदीप्यमान मूकवो. पासे फळ, मोदक आदि नैवेद्य मूकबु. पोते मस्तक पर गंध, अक्षत अने चंदनने धारण करी, गुरु पासे जई शुक्ल पंचमीतपनो आरंभ करवो. पांच मासनी शुकल पांचमने दिवसे बेसणुं करवु. पछी पांच मासनी पांच शुक्ल पंचाए एकासणुं करवू, पछी पांच मासनी पांच शुक्ल पंचमीए नीवी करवी. पछी पांच मासनी शुक्ल पंचमीए आंबिल करवा, पछी पांच मासनी शुक्ल पंचमीए उपवास करवा. ए प्रमाणे पाश मासे ते तप पूर्ण थाय छे. कोई गच्छमां पचीशे मासनी दरेक पंचमीए जेवी रीते आरंभ कर्यो होय एटले के बेस' के एकास' के नीवी विगेरे जे तपवडे आरंभ कयों होय तेज तप करवानी पद्धति छे. अथवा आ तप उपर प्रमाणे शुक्ल पंचमीए आरंभ करी शुक्ल तथा कृष्ण एम बने पंचमी लई पचीश पंचमीए एटवे एक वर्षे पूर्ण करवामां आवे छे. (नं. अ.) IRCASSAGE For Private lain Education www.jainelibrary.org Personal Use Only
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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