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________________ नवपदनी V सपोरत्न ९ इच्छामि । उँही नमो तवस्स । ए नवमे पदे बार भेदे शोभित, ईशान खूणे विराजमान, श्वेत वर्ण सहित एवा श्री महोदधि ४ तप पदने मारी त्रिकाळ वंदना होजो. ओळी. ॥ १४८ आ रीते नव दिवस पर्यंत विधि करवो. आ संक्षेपधी विधि को छे, सविस्तर विधि सुविहित गुरुद्वारा जाणवो तथा नव पदनी ओळीनी बुकथी जाणवो. (खमासमण देता बोलवाना दुहा.) परम पंच परमेष्ठीमां, परमेश्वर भगवान । चार निक्षेपे ध्याइए, नमो नमो जिन भाण ॥१॥ अष्ट कमें मल क्षय करी, भये सिद्ध नमो तास । भावामय औषध समी, अमृत दृष्टि जास ॥२॥ छत्रीश छत्रीशी गुणे, युगप्रधान मुनींद्र । जिनमत परमत जाणता, नमो नमो ते सुरीन्द्र ॥३॥ बोध सूक्ष्म विणु जीवने, न होय तत्व प्रतीत । भणे भणावे सूत्रने, जय जय पाठक गीत ॥४॥ स्याद्वाद गुण परिणम्यो, रमता समता संग । साधे शुद्धानंदता, नमो साधु शुभ रंग ॥५॥ लोकालोकना भाव जे, केवली भाषित जेह । सत्य करी अवधारतो, नमो नमो दर्शन तेह ॥६॥ अध्यातम ज्ञाने करी, विघटे भव भ्रम भीति । सत्य धर्म ते ज्ञान छे, नमो नमो ज्ञाननी रीति ॥७॥ रत्नत्रयी विणु साधना, निष्फळ कही सदीव । भावरयणर्नु निधान छ, जय जय संयम जीव ॥८॥ कर्म खपाचे चीकणां, भाव मंगल तप जाण । पचास लन्धि उपजे, जय जय तप गुणखाण ॥९॥ D१४८॥ IRGAOREX For Private Personal Use Only
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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