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________________ तारत्न महोदधि ॥ १२२ ॥ Jain Education International ५ अनन्तानुबन्धिमानरहि० ८ अप्रत्याख्यानिक्रोधरहि० ११ अप्रत्याख्यानिलोभरहि० १४ प्रत्याख्यानिमायारहि ० १७ संज्वलनमानरहि० २० हास्य मोहनीयरहिताय • २३ भयमोहनीयरहि २६ स्त्रीवेदरहिताय • ७ अनन्तानुबन्धिलोभरहि० १० अप्रत्याख्यानिमायारहि ० १३ प्रत्याख्यानिमान रहि० १६ संज्वलनक्रोधरहि० १९ संज्वलनलेाभरहि० २२ अरतिमोहनीयर हि ० २१ रतिमोहनीयरहिता • २४ शोकमोहनीय रहि ० २७ पुरुषवेदरहि २५ दुर्गच्छामोहनीय रहि ० २८ नपुंसक वेदरहि अथवा " अनन्तचारित्रगुणसंयुताय सिद्धाय नमः "" ए पद ज मात्र गणवुं. साथीया विगेरे २८- २८ करवा. आयुष्कर्मनी प्रकृति ४ ६ अनन्तानुबन्धिमायारहि ० ९ अप्रत्याख्यानिमानरहि० १२ प्रत्याख्यानिक्रोधरहि० १५ प्रत्याख्यानिलोभरहि० १८ संज्वलन मायारहि ० १ देवायुरहिताय श्री अक्षय स्थितिगुणसंयुताय सिद्धाय नमः । २ नरायूरहिताय श्री० ३ तिचा यूरहि० ४ नरकायूरहि० अथवा मात्र " श्री अक्षय स्थितिगुणसंयुताय सिद्धाय नमः " एटलुं ज गणवुं. साथीया विगेरे चार चार करवा. For Private & Personal Use Only) अष्टकम - तर प्रकृति तप. ॥ १२२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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