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________________ निर्वाण सपोरत्नमहोदघि ॥१०४॥ दीपक तप. रीते पंदर पूर्णिमा सुधी तप करवो. उद्यापने श्री गौतमस्वामी तथा श्री महावीरस्वामीनी मोटी स्नात्रविधिए पूजा करवी, रुपानुं पात्र करावी तेमा खीर भरी झोळी सहित गौतम स्वामीनी तथा महावीरस्वामीनी मूर्ति पासे मूकबु. तथा काष्ठमय पायें खीर अने झोळी सहित गुरुने वहोराव. संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आतप करवाथी विविध लब्धिनी प्राप्ति थाय छे. आ श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. बीजी रीते कात्तिक शुदी एकमने दिवसे उपवासादिक तप करीने गौतमस्वामीनी पूजा विगेरे उपर प्रमाणे सर्व करवू. आ प्रमाणे एक वर्ष सुधी दरेक एकमने दिवसे करवू. उद्यापन विगेरे उपर प्रमाणे कर. " श्री गौतमस्वामीने नमः" ए पदनी नवकारवाळी वीश गणवी. साथीया विगेरे सतावीश करवा. ७९ निर्वाण दीपक तप (दीवाळीनो छट्ट.) वर्षत्रयं दीपमाला पूर्व मुख्य दिनद्वये। उपवासद्वयं कार्य दीपप्रस्तारपूर्वकम् ।। १ ।। निर्वाण( मोक्ष )ना मागने विष दीवा समान आ तप होवाथी निर्वाण दीपक नामे कहेवाय छे. तेमां दीवाळीनी चौदश तथा अमावास्या ए बन्ने दिवसनो छह करवो. ते वन्ने दिवस अने रात्रीए श्री महावीरस्वामीनी प्रतिमानी पासे अखंड चोखा तथा अखंड घीना दीवा मूकवा. उद्यापनमां श्री महावीरस्वामीनी प्रतिमानी मोटी स्नात्रविधिए पूजा करी एक हजार घीजा दीवा मूकवा.' संघवात्सल्य, संघपूजा करवी. आ प्रमाणे त्रण वर्ष करवाथी आ तप पूर्ण थाय छे. आ तपन फळ मोक्षमार्गनी १ खीर भरीने पावें गुरुने वहोरावq एवो पण प्रचार छे. GARCANCE ROCTORIES AMA Jain Education International ForPrivate LPersonal use Only www.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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