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________________ स प्रस्तावना सपोरत्नमहोदधि ॥५॥ जे तप करवाथी तन, मन अने आत्मानी शुद्धि थाय, अशुभ कर्मो नाश पामे ते ज खरेखरो तप कहेवाय छे. - तप बार प्रकार छे. छ बाह्य अने छ आभ्यंतर. तपने शास्त्रकार महाराजे रसायनरूप जणावेल छे, अने आत्माने अनादि काळथी लागेल कर्ममेलरूपी रोगोने भस्मीभूत करवा माटे अपूर्व औषधि समान कहेल छे. . जैन धर्मना चार शाखा-प्रकारो छे, जेमां दान, शील, तप अने भाव-तेमा तपने त्रीजो वर्णवेल छे. दशवकालिक सूत्रनी प्रथम गाथामा धम्मो मंगलमुक्किटं, अहिंसा संजमो तवो-त्रण अनुष्ठानो धर्मना उत्कृष्ट मंगळ तरीके कहेल छे. जेमां तप छे. पांच प्रकारना आचारमा चोथो प्रकार तपाचार गणावेल छे. दश प्रकारना यतिधर्ममा आठमो यतिधर्म तप बताव्यो छे. श्री नवपद आराधनमां नवमा पदमां तपने योग वर्णव्यो छे. . तीर्थकर गोत्र त्रीजे भवे बांधवामा कारणभूत वीश स्थानक तप छे, जेनी ओळी पण करवामां आवे छे तेममं १४मा स्थानकमां तपन आराधन करवानुं कहेवामां आवेल छ के जेनाथी तीर्थकरगोत्र पण बंधाय छे. ...तपर्नु उपरोक्त महात्म्य होवाथी ते विधिविधान अने श्रद्धापूर्वक करवाथी आत्मा परमात्मा स्वरूप थाय छे, तेम | तीर्थकर भगवान कहे छे. आ ग्रन्थमा अनेक प्रकारना तपो आपेला छे अने आत्माने जे जे प्रकारनी सिद्धि प्राप्त करवी होय ते ते सिद्धि तेमां बतावेल विधिविधान प्रमाणे करवाथी प्राणीने अवश्य ते प्राप्त थाय छे. शास्त्रोमां अनेक प्रकारना तपो होवा छतां अहिं मात्र प्रचलित संशोधन थयेला, अने उपयोगी जणाया तेटला तपो तेना विधि विधान सहित ये भागमा आप्या छे. तेमा प्रथम भागमा ८८ प्रकारना तपो आचार दिनकरमा कहेला अने बीजा RRRRRRRRRECECa For Private Jain Education www.jainelibrary.org Personal Use Only
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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