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________________ तपोरत्नमहोदधि तपमहिमा से तप विधान REC RECECREE यस्तपोविधिराम्नातो जिनर्गीतार्थसाधुभिः । तं तथा कुर्वतां सन्तु मनोवांछितसिद्धयः ॥५॥ अर्थ-तीर्थकरोए तथा गीतार्थ मुनिश्रोए जे तपनो विधि कह्यो छे, ते तपने ते विधिए करनार माणसोनी मनवांछित | सिद्धिओ थाय छे.५. असत्यां दानशक्तौ च देहशक्तिमवेक्ष्य च । अनुष्ठेयं पुण्यवद्भिस्तपःकर्म सुदुष्करम् ॥ ६॥ अर्थ-जो दान देवानी शक्ति न होय, तो पुण्यवंत माणसोए पोताना शरीरनी शक्ति प्रमाणे अत्यंत दुष्कर एवं | तपकर्म करवू. ६ तद्वै द्वादशरूप स्वाद्वाह्याभ्यत्तर भेदतः। संयोज्यं षड्विध बाह्यमुपवासादि कर्ममि ॥ ७॥ तपोनिधिः श्रेणियुक्त्या प्रोक्तोऽहद्भिश्च साधुभिः कश्चित्केवलिसंदिष्टः कश्चिद्गीतार्थभाषितः ॥ ८॥ कश्चित्फलार्थिभिश्वीर्णस्त्रिविधः स तपोविधिः । योगोपधानमुख्यो यः स विधिः केवलीरितः ॥९॥ _ अर्थ-तीर्थकरोए तथा मुनिवरोए श्रेणिनी युक्तिवडे तपनो विधि कहलो छे, तेमां कोइक तप केवळीए कह्यो छे, कोइक गीतार्थ मुनिओए कहेलो छ, तथा कोइक तप फळना अर्थीओए आचरेलो छ, ए रीते ते तप विधि त्रण प्रकारनो छे, तेमां योगोपधान जेमां मुख्य छ एवो जे विधि छे ते केवळीए कहेलो छ.८-९. कल्याणादिपुंडरीकतपोमुख्यो मुनीरितः । रोहिणीकल्पवृक्षादि विधिः फलतपोमयः ॥१०॥ अर्थ--जेमां कल्याणादिक पुंडरीक तप मुख्य छे, ते तप गीतार्थ मुनिओए कहेलो छ, तथा रोहिणी अने कल्पवृक्षा| दिकनो जे विधि छे ते फळतपोमय एटले फळनी अपेक्षावाळो तप छे. १० REASON ॥११ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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