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________________ तपारत्न महोदधि ॥४७॥ नव KOREAKE SHIKARI हरिद्रा रागे करीने पण पूजा करवी. त्यारपछी दरेक पूर्णिमाए ते प्रमाणे तप तथा पूजा करवी. ए प्रमाणे सात वर्ष अथवा एक वर्ष सुधी कर. अथवा बार वर्षनी बार चैत्री पूर्णिमाज करवी. (पंदर वरस करवानुं पण बार मासिक पर्व कथामां कचं हे.) उद्यापनमा स्त्रीए नणंदनी दीकरीने तथा पुरुषे बेननी दीकरीने घणां मांडानुं भोजन करावी हरिद्रा राग, कसंबी वखनो जोटो, तांबूल, कंकण, नूपूर विगेरे आप. साधु साध्वीओने रजोहरण, मुखवत्रिका, वस्त्र, पात्र विगेरेनु दान देवं. तथा धणां मांडा वहोराववा. तेमज श्रावकना सात घरे घणा मांडा देवा. आ तप करवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. आ यति तथा | श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. " श्रीपुंडरीकगणधराय नमः" नोकारवाळी वीश, साथीया विगरे १५० दोढसो करवा. ___ चैत्री पुनम तपनो विधि. पोताने स्थाने रहीने जेने तप करवो होय तेने माटे विधि कहे छे-मुख्यताथी तो श्री पुंडरीक भगवानना ज प्रतिमाजी होवा जोइए. तेना अभावे श्री गौतमस्वामीना, तेना अभावे श्री ऋषभदेवजीना प्रतिमाजी, तेना अभावे जे प्रभुजीनं चिंच होय तेनी पासे विधि करवो. छेवट स्थापनाचार्य पासे पण करवो. १५० प्रदक्षिणा देवी. १५० खमासमणा देवा. १५० साथीआ करवा. १५० फूलनी माळाओ चडाववी ने १५० लोगस्सनो काउसम्ग करवो. जो एक साथे न थई शके तो १०२०३०॥ ४०॥ अने ५० लोगस्सनो जुदो जुदो करीने १५० नो पूरो करवो. ३५ माणिक्य प्रस्तारिका तप. (माणिक्य पावडी) PORGISHRSHASTREETIRECIRRER Vin४७॥ JainEducation For Private & Personal use only [w.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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