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________________ एकावळी तपोरत्नमहोदधि RSSICALFASHIKRECIA समाप्तिमेति साधुनामेवमेकावली तपः ॥ २ ॥ एक आवळीनी जेम उपवास करवाथी एकावळी तप थाय छे, तेमां प्रथम एक उपवास पछी पार', पछी बे उपवास उपर पारj, पछी त्रण उपवास उपर पारj, एम करवाथी प्रथम काहलिका थाय, छे. पछी एकांतर पारणावाळा आठ उपवास करवा, तेणे करीने काहलिकानी नीचे दाडिम पुष्प उत्पन्न थाय छे. त्यारपछी एक उपवास उपर एक पारj, पछी बे उपवास उपर एक पारगुं, पछी त्रण उपवास उपर एक पारणु, ए रीते चडतां चडतां सोळ उपवास उपर एक पारणुं करवाथी हारनी एक सेर पूरी थाय छे । त्यारपछी चोत्रीश उपवास एकांतर पारणांवडे करवाथी ते हारनुं पदक थाय छे । त्यारपछी विलोमना क्रमथी एटले सोळ उपवास उपर एक पारj, पंदर उपवास उपर एक पारj, चौद उपवास उपर एक पारj, एम उतरता उतरता छेवट एक उपवास उपर एक पारणुं करवाथी बीजी सेर पूरी थाय छ। पछी पारणाना आंतरावाळा आठ उपवास करवाथी बीजा दाडिमना पुष्प उत्पन्न थाय छे । त्यारपछी व्रण उपवास उपर एक पारj, पछी बे उपवास | उपर एक पारणुं अने छेवट एक उपवास उपर पार[ ए रीते करवाथी बीजी काहलिका पूर्ण थाय छे. आम करवाथी कुल ३३४ उपवास अने ८८ पारणां थाय छे. उद्यापनमा बृहतस्नात्रपूर्वक विधिथी पूजा करीने प्रतिमान मोटो मुक्ताफळनो एक सेस्नो हार पहेराववो.* संघवात्सल्य, *तथा सुवर्ण अक्षरमय पुस्तक लखावी मुविहित मुनिने आपq तेवो जोग न होय तो श्री संघना भंडारमा मूक्वं, पण पोतानी निश्राए न राखg. RECEIAS JainEducation ine For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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