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________________ भद्रतप. तपोरत्नमहोदधि ॥३८॥ PEOPLE यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. नंबर २१ थी २५ सुधीना तपो चार परिपाटीए करवाना श्री प्रवचनसारोद्धारमां कहेला छे. गरणुं विगैरे पूर्ववत् " नमो अरिहंताणं " २६ भद्र तप. एकद्वित्रिनतुःपञ्चत्रिचतुःपञ्चभूद्वयैः । पञ्चैकद्वित्रिवेदैश्च द्वित्रिवेदेषुभूमिभिः ॥१॥ चतुःपञ्चकद्वित्रिभिश्चोपवासैः श्रेणिपञ्चकम् । भद्रे तपसि मध्यस्थपारणश्रेणिसंयुतम् ॥ २॥ आ तप भद्र एटले कल्याणकारक होवाथी भद्र नामे कहेवाय छे. तेमा प्रथम श्रेणिमा पहेलो एक उपवास करी पार| करवू. पछी वे उपवास उपर पारj, पछी त्रण उपर पार[, पछी चार अने पछी पांच उपवास उपर पारणुं करवू. बीजी श्रेणीए प्रथम त्रण उपवास, पछी चार, पछी पांच, पछी एक अने पछी बे उपवास करी पारणुं कर. त्रीजी श्रेणीए प्रथम पांच उपवास, पछी एक, पछी बे, पछी त्रण अने पछी चार उपवास करी पारणुं करवू, चोथी श्रेणिए प्रथम वे उपवास, पछी त्रण, पछी चार, पछी पांच अने पछी एक उपवास करी पारणुं करवू, पांचमी श्रेणिए प्रथम चार, पछी पांच, पछी एक. पछी बे अने पछी त्रण उपवास करी पारणुं करवू. सर्वने छेडे एक ज पारणानो दिवस आवे. आ रीते करतां कुल उपवास दिन ७५ तथा पारणा दिन २५ मळी त्रण मास अने दश दिवसे आ तप पूर्ण थाय छे. उद्यापनमा जिनेश्वरने स्नान करावq. फळ, नैवेद्य, मोदक विगेरे शक्ति प्रमाणे ढोकत्रां. आतपर्नु फळ कल्याणनी प्राप्ति REBCARTOGA%ECRECOLOG RESS ॥३८॥ For Private Personal Use Only
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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