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________________ तपोरत्नमहोदधि ।। १२६ ।। ३ भोगान्तराय कर्मरहिताय ० ४ उपभोगान्तरायकर्मरहि• ५ वीर्यंत रायकर्मरहि० अथवा मात्र " श्री अनन्तवीर्यगुणसंयुताय सिद्धाय नमः " ए पदनुं गरणुं गणवुं. साथया विगेरे पांच पांच करवा. बीजी रीत ( प्रति नं. ब. ) अथवा अष्ट कर्मोत्तर प्रकृति तप करवानुं आ प्रमाणे पण लख्युं छे: - ज्ञानावरणीय कर्मने आश्री दशम ( लगोलग चार (उपवास) उपर पार करखूं. एवा पांच दशम करवा. दर्शनावरणीयने आश्री नव दशम करवा. वेदनीय कर्मने आश्री वे दशम करवा. मोहनीय कर्मने आश्रीने अठ्ठावीश अहम करवा. आयुकर्मने आश्री चार दशम करवा. नामकर्मना उपवास एक सो ने aण करवा. गोत्रकर्मना वे दशम करवा तथा अंतराय कर्मना पांच दुवालस ( लगोलग पांच उपवास ) करवा. अथवा ज्ञानावरणना दुवालस पांच, दर्शनावरणना दशम नव, वेदनीयना अहम बे, मोहनीयना अहम अहावीश, आयुना दशम चार, नामना छह अथवा उपवास एक सो त्रण, गोत्रना दशम वे, तथा अंतरायना दशम पांच आ प्रमाणे अनुक्रमे विधिपूर्वक करवा. अथवा छुटक छुटक करवा. बीजा सर्व विधि उद्यापन विगेरे उपर प्रमाणे जाणवुं. ९४ अष्ट प्रवचन मातृतप. ( प्र. नं. क. ) पहेले दिवसे एक कवळ, बीजे दिवसे एक कवळ, त्रीजे दिवसे एक कवळ ए प्रमाणे १-१-१ इर्यासमितिनी आराधना दिन त्रण करवी. पछी पहेले दिवसे वे कवळ, बीजे दिवसे एक, त्रीजे दिवसे वे ए प्रमाणे २-१-२ भाषासमितिनी आराधना दिन त्रण करवी. एषणा समितिनी आराधना माटे अनुक्रमे कवळ ३-१-३ ए प्रमाणे त्रण दिवस करवा. आदानभंड निक्षेपणा Jain Education International For Private & Personal Use Only अष्ट प्रवचन मातृतष. ।।। १२६ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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