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________________ संवत्सर तपोरत्नमहोदधि ॥४४॥ MAKRECRPORRORS शुक्ल एकादशीथी आरंभीने अग्यार मासनी एकादशीए यथाशक्ति तप करवाथी अंग तप पूर्ण थाय छे. आचारांग विगेरे अगियार अंगनो आ तप होवाथी अंग तप कहेवाय छे, तेमां शुक्ल एकादशीने दिवसे यथाशक्ति एकास', नीबी, आंबिल के उपवास करवो. ए प्रमाणे दरेक शुक्ल एकादशीए अथवा बन्ने पक्षनी एकादशीए करवू. ते अगीयार मासे पूर्ण थाय छे. [बन्ने पक्षनी एकादशी लेवाथी अगियार पखवाडीये तप पूरो धाय छे, एम पण कोई आचार्यनो मत छे.) उद्यापन लघु पंचमीनी पेठे करवु. विशेष एटलो के आ तपमा अग्यार अंग लखावया तथा अगियार अगियार वस्तु ढोकवी. आ तप करवाथी आगमना बोधनी प्राप्ति थाय छे. आ यति तथा श्रावकने करवानो आगाढ तप छे. १ श्री आचारांग सूत्राय नमः २ श्री मुयगडांग पत्राय नमः ३ श्री ठाणांग ४ श्री समचायांग , ५ श्री भगवती ६ श्री ज्ञानाधमकथांग ,, , ७ श्री उपासकदशांग ,,, ८ श्री अंतकृतदशांग , , ९ श्री अनुत्तरोक्वाइ ,, १. श्री प्रश्नव्याकरण , , ११ श्री विपाक - ३२ संवत्सर तप. सांवत्सरं तपः सांवत्सरिके पाक्षिकेऽपि च । चातुर्मासे कृते लोचे क्रियते तदुदीर्यते ॥१॥ ।।४४ JainEducation international For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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