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________________ RA सपोरत्नमहोदधि श्री तपोरत्नमहोदधि. वीशिस्थानकतप. विभाग २ जो. ८९ वीशस्थानक तप. आ वीश स्थानकनो तप घणो प्रसिद्ध छ. तथा ते करवानो प्रचार पण सर्वत्र साधारण जोवामां आवे छे. आ तप घणो विस्तारथी करवामां आवे छे. तोपण ते संबंधी सामान्य विधिज मात्र अहीं आपीए छीए. विशेष विधिविस्तार माटे "वीशस्थानक पद पूजा संग्रह" के जे आ सभा तरफथी छपावी प्रसिद्ध करेल छे ते तथा विधिप्रपा विगेरे ग्रंथो जोवा. आ तप करवानो उत्तम मार्ग तो ए छे जे सुविहित गुरुनी समक्ष तेमनी आज्ञानुसार करवो. छतां दरेक स्थळे गुरुनो योग होतो नथी, तोपण तप आरंभ्या पहला नजीकना गामोमा ज्यां गुरुनो योग होय त्यां जई, सर्व विधिथी सुजाण थई, पछी तेनो आरंभ करवो योग्य छ, अथवा जे ओए आ तप को होय अने तेनी विधिविधान विगेरे सारी रीते जाणता होय तेवा सुश्रावकथी माहितगार थq. सामान्य विधि. प्रथम शुभ निर्दोष मुहूर्ते नंदी स्थापनपूर्वक सुविहित गुरुनी समीपे विशति स्थानक तप विधिपूर्वक उच्चरवो. एक ओळी COMISHREERASHTRORE ॥११३॥ Jain Education Internation For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600158
Book TitleTaporatna Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktivijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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