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अंगसुत्ताणि
आयारी सूयगडो. ठाणं . समवाओ
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वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी
संपादक मुनि नथमल
For Private & Personal use only
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निग्गंयं पावयणं
भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में
अंग सुत्ताणि
१
आयारो • सूयगडो • ठाणं • समवाओ
वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी
संपादक मुनि नथमल
प्रकाशक
जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान )
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प्रबंध सम्पादक :
श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक
आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती)
आर्थिक सहायक
श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल)
प्रकाशन तिथि:
विक्रम संवत् २०३१
कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस )
पृष्ठांक ११००
मूल्य : ८५ /
मुद्रक
एस. नारायण एण्ड संस ( प्रिंटिंग प्रेस ) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६
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ANGA SUTTĀNI
AYARO SŪYAGADO. THANAM • SAMAWÃO.
I
•
(Original text Critically edited)
Vaćana PRAMUKHA ACARYA TULASI
EDITOR MUNI NATHAMAL
Publisher
JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan)
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Managing Editor Shreecbaud Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN
Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal)
V.S. 2031 Kartic Kșishna 13 2500th Nirvaņa Day
Pages 1100
Rs. 85 -
Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj. Delhi-6
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समर्पण
पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स,
भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुग्वं ॥
जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था,
उसी भिक्षु को विमल भाव से ।
विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्झाग - रयस्स निच्चं,
जयस्स तस्स प्पणिहाणपुग्वं ॥
जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से।
पवाहिया जेण सुयस्स घारा, गणे समत्थे मम माणसे वि। जो हेउभूओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥
जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में। हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में,
कालुगणी को विमल भाव से ।
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अन्तस्तोष
अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी वनाना चाहता है, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में बह संविभाग इस प्रकार है
संपादक:
सहयोगी :
पाठ-संशोधन :
मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल
संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने ।
आचार्य तुलसी
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प्रकाशकीय
सन १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुँचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में 'गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है। 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये? दोनों संस्थान एक दसरे के पूरक होंगे। सुझाव पर विचार हुआ। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से श्री गोपीचन्दजी चोपड़ा और में तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादलालजी आच्छा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दुगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया। 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया। सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढे।
आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पर थामे और मुझ से बोले "जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कसा सुन्दर शान्त वातावरण है।"
'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे। प्रतिक्रमण के बाद का समय था। पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिखर पर कांच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे। मैं उनके सामने बैठा था। बचनबद्ध हआ कि यदि जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और
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मैं उसका संयोजक चूना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए । आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडन (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है।
आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाइन में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हुए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-“ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही
१. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का
प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम,
सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण ।
महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में-(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहभायणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए ।
दूसरी ग्रन्थमाला में--(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए । समवायांग का मुद्रण कार्य प्राय: समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया।
तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ।
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चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ।
पांचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)।
उक्त प्रकाशन-कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा। अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गूंज रहे हैं"धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा।
कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया।
आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसूताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है :
प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय-ये प्रथम चार अंग हैं। दुसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है।
तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं।
इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रंथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है।
ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा।
केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है; जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है।
दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन मूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है।
'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है।
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मुद्रण कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिंटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते । मुद्रण कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं । इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है ।
इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्त्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है । आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है ।
'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोड़िया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा ।
।
इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है । सन् १९७३ में मैं जैन विश्व भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चुना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे । दिल्ली में मुद्रण की व्यवस्था बैठाई गई । कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई । आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्य श्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है । उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं ।
ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्त्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है । मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत् वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है ।
४६८४, अंसारी रोड़
२१, दरियागंज
दिल्ली- ६
श्रीचन्द रामपुरिया
निदेशक
आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व-भार तो
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आयारो
सम्पादकीय
आचारांग का जो पाठ हमने स्वीकार किया है, उसका आधार कोई एक आदर्श नहीं है । हमने पाठ का स्वीकार प्रयुक्त आदर्शी, चूर्ण और वृत्ति के संदर्भ में समीक्षापूर्वक किया है। 'आयारों' के प्रथम अध्ययन के दूसरे उद्देशक के तीन सूत्र ( २७ - २६) शेष पांच उद्देशकों में भी प्राप्त होते हैं । पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों तथा आचारांग वृत्ति में यह प्राप्त नहीं है । आचारांग चूर्णि में 'लज्जमाणा पुढो पास' (आयारो, ११४०) सूत्र से लेकर 'अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए' (आयारी, ११५३) तक ध्रुवकण्डिका ( एक समान पाठ) मानी गई हैं' ।
चूर्ण में प्राप्त संकेत के आधार पर हमने द्वितीय उद्देशक में प्राप्त तीन सूत्र ( २७ - २६ ) शेष पांचों उद्देशकों में स्वीकृत किए हैं।
आठवें अध्ययन के दूसरे उद्देशक (सू० २१ ) की चूर्णि' में 'कुंभारायतणंसि वा' के स्थान पर अनेक शब्द उपलब्ध होते हैं, जैसे- 'उवट्टणगिहे वा, गामदेउलिए वा, कम्मगारसालाए वा, तंतुवायगसालाए वा, लोहगारसालाए वा ।' चूर्णिकार ने आगे लिखा है- 'जचियाओ साला सव्वाओ भाणियव्वाओ' ।'
यहां प्रतीत होता है कि 'कुंभारायतणंसि वा' शब्द अन्य अनेक शाला या गृहवाची शब्दों से युक्त था, किन्तु लिपि-दोष के कारण कालक्रम से शेष शब्द छूट गए। चूर्णि के आधार पर पाठ-पद्धति का निश्चय करना संभव नहीं था इसलिए उसे मूलपाठ में स्वीकृत नहीं किया गया ।
हमने संक्षिप्त पाठ की पूर्ति भी की है। पाठ-संक्षेप की परम्परा श्रुत को कंठाग्र करने की पद्धति और लिपि की सुविधा के कारण प्रचलित हुई। पं० वेचरदास दोशी ने ८-१२-६६ को आचार्यश्री तुलसी के पास एक लेख भेजा था । उसमें इस विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने
१. देखें-- आयारो, पृ० ७ पादटिप्पण ७ ० ६ पादटिप्पण ३०;
पृ० १० पादटिप्पण १ पृ० १२ पादटिप्पण १ .०१४ पादटिप्पण ८ २. प्राचारांग चूर्णि, पृ० २६० २६१ ।
पृ० ११ पादटिप्पण ६; पृ० १३ पादटिप्पण ५; ० ९५ पादटिप्पण १;
३. वही, पृ० २६१ ।
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१४
लिखा है -- 'प्राचीन जैन श्रमण लिखने लिखाने की प्रवृत्ति को आरंभ-रूप समझते थे, फिर भी शास्त्रों की रक्षा के लिए उन्होंने लिखने लिखाने के आरंभ-रूप मार्ग को भी अपवाद समझकर स्वीकार किया। पर जितना कम लिखना पड़े, उतना अच्छा, ऐसा समझकर उन्होंने शास्त्र की रक्षा के लिए ही हो सके वहां तक कम आरंभ करना पड़े, ऐसा रास्ता शोधने का जरूर प्रयास किया। इस रास्ते की शोध से 'वण्णओ' और 'जाव' दो नए शब्द उनको मिले। इन दो शब्दों की सहायता से हजारों श्लोक व सैकड़ों वाक्य कम लिखने से उनका आरंभ कम हो गया और शास्त्र के आशय में भी किसी प्रकार की न्यूनता नहीं हुई ।'
श्रुत को कंठस्थ करने की पद्धति, लिपि की सुविधा और कम लिखने की मनोवृत्ति-पाठ सक्षेप के ये तीनों कारण संभाव्य हैं। इनसे भले ही आशय की न्यूनता न हुई हो, किन्तु ग्रंथ सौन्दर्य अवश्य न्यून हुआ है। पाठक की कठिनाइयां भी बढ़ी हैं। जिन मुनियों के समग्र आगम साहित्य कण्ठस्थ था, वे 'जाव' या 'बष्णग' द्वारा संकेतित पाठ का अनुसंधान कर पूर्वापर की सम्बन्ध योजना कर सकते हैं । किन्तु प्रतिलिपियों के आधार पर पढ़ने वाला मुनि वर्ग ऐसा नहीं कर सकता। उसके लिए 'जाव' या 'बण्णग' द्वारा संकेतित पाठ बहुत लाभदायी सिद्ध नहीं हुआ है। इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। इसी कठिनाई तथा ग्रन्थ-सौंदर्य की दृष्टि से हमारे वाचना प्रमुख आचार्यश्री तुलसी ने चाहा कि संक्षेपीकृत पाठ की पुनः पूर्ति की जाए हमने अधिकांश स्थलों में संक्षिप्त पाठ की पूर्ति की है। उसकी सूचना के लिए बिन्दु-संकेत दिया गया है। आयारो तथा आयार-चूला के पूर्ति स्थलों के निर्देश की सूचना प्रथम परिशिष्ट में दी गई है।
पं० वेचरदास दोशी के अनुसार पाठ संक्षेपीकरण देवद्विगणि क्षमाश्रमण ने किया था। उन्होंने लिखा है— देवद्विगणि क्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रंथ-बद्ध करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखी। जहां-जहां शास्त्रों में समान पाठ आए वहां-वहां उनकी पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया। जैसे- 'जहा उबचाइए' 'जहा पण्णवणाए इत्यादि एक ही ग्रन्थ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः पुनः न लिखते हुए 'जाग' शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया । जैसे- 'नागकुमारा जाव विहरन्ति', 'तेण कालेणं जाव परिसा णिग्गया' इत्यादि ।
।
इस परम्परा का प्रारंभ भले ही देवद्धिगणि ने किया हो, किन्तु इसका विकास उनके उत्तरवर्ती काल में भी होता रहा है। वर्तमान में उपलब्ध आदर्शों में संक्षेपीकृत पाठ की एकरूपता नहीं है एक आदर्श में कोई सूत्र संक्षिप्त है तो दूसरे में वह समग्र रूप से लिखित है। टीकाकारों ने स्थान-स्थान पर इसका उल्लेख भी किया है। उदाहरण के लिए औपपातिक सूत्र में "अयपायाणि वा जाव अण्णयराई वा" तथा 'अयबंधणाणि वा जाव अण्णयराई वा 'ये दो पाठांश मिलते हैं । वृत्तिकार के सामने जो मुख्य आदर्श थे, उनमें ये दोनों संक्षिप्त रूप में थे, किन्तु दूसरे आदशों में ये
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ० ८१ ।
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१५
समग्र रूप में भी प्राप्त थे । वृत्तिकार ने इसका उल्लेख किया है। लिपिकर्ता अनेक स्थलों में अपनो सुविधानुसार पूर्वागत पाठ को दूसरी बार नहीं लिखते और उत्तरवर्ती आदर्शो में उनका अनुसरण होता चला जाता । उदाहरण स्वरूप --- रायप सेणइय सूत्र में 'सव्विड्डीय अकालपरिहीणा' ( स्वीकृत पाठ - होणं) ऐसा पाठ मिलता है'। इस पाठ में अपूर्णता सूचक संकेत भी नहीं है । 'सब्बिड्डी' और 'अकालपरिहीणं' के मध्यवर्ती पाठ की पूर्ति करने पर समग्र पाठ इस प्रकार बनता है— 'सव्विड्डीए सव्वजत्तीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूइए सब्वसंभमेणं सव्वपुष्प-वत्थ-गंध-मल्लालंकरेणं सव्वदिव्वतुडियस सन्निवाएणं महया इड्ढीए महया जुइए महया बलेणं महया समुदणं महया वरतुडियजमगसमयपदुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-भल्लरिखरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुभि-निग्धोस-नाइयरवेणं णियग परिवाल सद्धि संपरिवुडा साई- साई जाविमाणाई दुरूदा समाणा अकालपरिहीणं ।'
आयार-चूला ५।१४ में ‘महदुधणमोल्लाई' तथा १५/१६ में 'महत्वए' के आगे भी अपूर्णता सूचक संकेत नहीं हैं ।
प्रमादवश कहीं-कहीं अपूर्णता सूचक 'जाव' का विपर्यय भी हुआ है, यथा--- "लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा । (आयारचूला १।१०१ ) "लाभे संते जाव णो
1 (आयारचूला १।१३४ )
फासुयं
बहुकंट
समर्पण-सूत्र-
संक्षिप्त पद्धति के अनुसार आयारवूला में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं-
जाव -- अकिरियं जाव अभूतोवघाइयं ( ४|११ )
तहेव - अक्कोति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य
( ७११६-२० )
अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव ( ७१३४, ३५)
एवं – एवं णायव्वं जहा सद्दपडियाए सव्वा वाइतवज्जा स्त्रपडियाए वि ( १२१२-१७)
जहा -- पाणाई जहा पिंडेसणाए ( ५१५ )
संख्या -- थूर्णसि वा (४) (७।११)
असणं वा (४) (१।१२ ) से भिक्खु वा २ ।
१. औपपातिक वृत्ति पत्र १७७ :
पुस्तकान्तरे समग्रमिदं सूत्रद्वय मस्त्येवेति ।
२. देखे - पं० बेचरदास दोशी द्वारा संपादित 'रायपसेणइयं,'
पृष्ठ ७३
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तं चेव-तं चेव भाणियब्वं वरं च उत्याए जाणतं (१११४६-१५४)
सेसं तं चेव एवं ससरक्खे (१९६५) हेट्ठिमो--एवं हेट्ठिमो गमो पायादि भाणियन्वो (१३।४०-७५) आचारांग का वाचना-भेद
समवायांग में आचारांग की अनेक वाचनाओं का उल्लेख मिलता है। वाचना का अर्थ है-अध्यापन या सूत्र और अर्थ का प्रदान | संक्षिप्त वाचना-भेद अनेक मिलते हैं, किन्तु वर्तमान में मुख्य दो वाचनाएं प्राप्त हैं- एक प्रस्तुत-वाचना और दूसरी नागार्जुनीय-वाचना। चूणि और टीका में नागार्जुनीय वाचना-सम्मत्त पाठों का उल्लेख किया गया है। देखें--'आयारों' पृष्ठ २० पादटिप्पण संख्यांक १०, पृष्ठ २१ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३० पाद टिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३१ पादटिप्पण संख्यांक ७, पृष्ठ ३५ पादटिप्पण संख्यांक ५, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ४० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५२ पादटिप्पण संख्यांक ६ और ८, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक ६, पृष्ठ ५५ पादटिप्पण संख्यांक ८, पृष्ठ ६६ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ७३ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ७५ पादटिप्पण संख्यांक ४ । आचारांग के उद्धृत पाठ--
उत्तरवर्ती अनेक ग्रंथों में आचारांग के पाठ उद्धृत किए गए हैं। अपराजितसूरि ने मूलाराधना की टीका में आचारांग के कुछ पाठ उद्धृत किए हैं।
शोध करने पर ऐसा ज्ञात हआ है कि कई पाठ आचारांग में नहीं हैं, कई पाठ शब्द-भेद से और कई पाठ आंशिक रूप में मिलते हैं। तुलनात्मक अध्ययन की दष्टि से दोनों के पाठ नीचे दिए जा रहे हैं
आचारांग
मूलाराधना तथा चोक्तमाचाराङ्ग:सुदं मे आउस्सन्तो भगत्रदा एव मक्खादं । इह खलु संयमाभिमुखा दुविहा इत्थी पुरिसा जादा भवंति । तं जहा-सव्व समण्णा गदे णो सब्द समागदे चेव । तत्थ जे सव्व समपणागदे थिराग हत्थ पाणि पादे सव्विदिय समण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारि
१. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० १३६ । २. मूलाराधना ४।४२१, टीका पन ६१२।
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एवं परिहिउं एवं अण्णत्थ एगेण पडिलेहगेण ।
अह पुर्ण एवं जाणिज्जा — उपातिकते म गिम्हे सुपsaणे से अथ पडिजुण्णमुवधि पदिद्वावेज्ज !
- ४/४२१ टीका, पत्र ६११
पडिले हणं, पादपुंछणं उग्गहं कडासणं अण्णदरं उवधि परवेज्ज |
- ४४२१ टीका, पत्र ६११
तथावत्येसणाए - वृत्तं तत्थ एसे हरिमणे सेगं वत्थं वा धारेज्ज पडिलेहणगं विदियं तत्थ एसे जुग्गिदे देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणगं तदियं तत्थ एसे परिसाई अणधिहासस्स तओ वत्थाणि धारेज्ज पडिलेहणं चउत्थं । - ४१४२१ टीका, पत्र ६११
तथा पाएसणाए कथितं - हिरिमणे वा जुग्गिदे चाविअण्णगे वा तस्स ण कप्पदि वत्थादिकं पुनश्चोक्तं तत्रैव - पादचरित्तए ।
आलावु पत्तं वा दारुण पत्तं वा मट्टिगपत्तं वा, अप्पाणं अप्पबीजं अप्पसरिदं तथा अप्पकारं पत्तलाभे सति पडिग्ग हिस्सामि ।
४४२१ टीका, पत्र ६११
भावनायां चोक्तं-
चरिमं चीवरधारी तेण परम चेलके तु जिणे ।
४४२१ टीका, पत्र ६११
१७
अह पुण एवं जाणेज्जा--उवाइक्कत खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापरि-, जुन्नाई वत्थाइ परिवेज्जा ।
आयारी ५०, ६६, ७२ ।
वत्थं पडिग्गहं कंबल, पायपुंछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेव जाणेज्जा । आयारो २।११२ ।
जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयथे से एवं वत्थं धारेज्जा णो बितियं 1
से frag वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं एसित्तए ।
आयारचूला ५२ ।
तं जहा - अलाउपायं वा दारुपायं वा, मट्टिया पायं वा तहप्पगारं पाये ।-(आयारचूला ६।१) फासूवं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।
आयारचूला ६.२२
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प्रति परिचय (अ.) आचारांग (दानों श्रु तस्कंध) यह प्रति जैन-भवन, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ की श्री श्रीचन्द जी रामपुरिया द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र १८५ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १-२७ तक पंकियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४०-४५ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर वत्ति लिखी हुई है। प्रति सुन्दर व कलात्मक है। संवत् आदि नहीं है।
(क.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६७ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। पंक्तियां १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में ५०-५२ तक अक्षर हैं। प्रति के अंत में लिखा हैं----
संवत् १६७६ वर्षे आषाढ सुदि द्वितीय ४ भौम । श्री मालान्वये राक्याणगोत्रे सं० जटमल पुत्र सं० वेणीदास पुस्तक प्रदत्तं श्री मद्नागपुरीय तपागच्छ सं० श्रीमानकोतिसूरि शिष्य माधव ज्योतिविद् ।
अंत के अक्षर किसी अन्य व्यक्ति के मालूम होते हैं। प्रति के बीच में बावडी तथा तीन बड़े-बड़े लाल टीके हैं।
(ख.) आचारांग टब्बा (प्रथम श्रुतस्कन्ध) यह प्रात गधैया पुस्तकालय से गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके ४६ पत्र हैं। पंक्तियां पाठ की ७ तथा टब्बे की १४ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक पाठ के अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है--
संवत् १७३२ वर्षे श्रावणमासे कृष्णपक्षे पंचमी तिथौ गुरु वासरे। लिखितं पूज्य ऋषिश्री ५ अमराजी तशिष्येण लिपिकृतं मुनिविकी आत्मार्थो शुभं भवतु कल्याणमस्तु । सेहुरीया ग्रामे संपूर्ण मस्ति ।। (ग.) आचारांग (प्रथमश्र तस्कन्ध) पंच पाठी (बालावबोध) यह प्रति गधया पुस्तकालय से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके १० पत्र हैं। प्रथम ३ तथा छठा पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। मूलपाठ को पंक्तियां ५ से १० तक हैं। अक्षर ३० से ३३ तक हैं। अन्तिम प्रशस्ति नहीं है। (घ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध (जीर्ण)
यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है।
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इसके ३७ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १३॥ इंच लम्बा, ५ इंच चौड़ा है। पक्तियां १७ तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है--.. शुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥छ।। संवत् १५७३ वर्षे १० मंगलवार समत्तं ।।छ।। छ।। श्री 1 छ।। प्रति के दीमक लगने से अनेक स्थानों पर छिद्र होगए हैं।
(च.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध, यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई ज्ञान भंडार से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हई है। इसके ७५ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४७ तक अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। बीच में बावड़ी है।
(छ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध, वृत्ति सहित (त्रिपाठी) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से मोठीजी द्वारा प्राप्त है । इसके २६० पत्र हैं । प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है मूलपाठ की पंक्तियां १ से १७ तथा ४५ से ४७ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैं
संवत् १८६६ वर्षे श्रावणशुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथी श्रीविक्रमपुरमध्ये लिपिकृतं ।। श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । शुभं भूयादिति ॥ (ब.) आचारांग द्वितीय श्रु तस्कन्ध टब्बा (पंचपाठी)
यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ८४ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा १०३ इंच चौड़ा है। मूलपाठ की पंक्तियां ४ से १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में २५ से ३३ तक अक्षर हैं। बीच-बीच में बावड़ियां हैं। अन्तिम प्रशस्ति निम्तोक्त है-- संवत् १७५२ वर्षे भादपदमामे पंचम्यां तिथी ओरस गच्छे भट्टारक श्रीकक्चसूरि तत्पट्टे वर्तमान भट्टारकदेव गुप्तसूरिभिहीता नागोरी तपागच्छीय पं० श्री दयालदास पार्वान् पंचचत्वारिंशत् ४५ वर्षात्तरात महतोद्यमेन । (व), (वृपा) मुद्रित, प्रकाशिका~-श्रीसिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति विक्रम संवत् १६६१ । (च), (चूपा) मुद्रित-श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी, रतलाम, वि १६६८ ।
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सूयगडो
हमने सूत्रकृत का पाठ किसी एक आदर्श को मान्य कर स्वीकार नहीं किया है। उसका स्वीकार पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शो, चूणि तथा वृत्ति के पाठों के तुलनात्मक अध्ययन तथा समीक्षापूर्वक किया गया है।
. प्राचीनकाल में लिखने की पद्धति बहुत कम थी। प्रायः सभी ग्रन्थ कंठस्थ परम्परा में सुरक्षित रहते थे । इसीलिए घोषशुद्धि (उच्चारणशुद्धि) को बहुत महत्व दिया जाता था ! शिष्यों की घोषशुद्धि करना आचार्य का एक कर्तव्य था। दशाश्र तस्कन्ध सूत्र में लिखा है'--'घोषशुद्धि कारक होना आचार्य की एक संपदा है।' पाठ और अर्थ के मौलिक रूप की सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था थी। छेदसूत्रों से उसकी पूर्ण जानकारी मिलती है।
ज्ञानाचार के आठ प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें तीन आचारों का उक्त व्यवस्था से सम्बन्ध है । वे ये हैं
१. व्यंजन--सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु और शब्दों को यथावत् बनाए रखना। २. अर्थ---सूत्र के आशय को यथावत् बनाए रखना । ३. व्यंजन-अर्थ-~-सूत्र और अर्थ---दोनों को मौलिक रूप में सुरक्षित रखना।
चूर्णिकार ने उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है:--'धम्मो मंगलमूक्किटठं'---यह प्राकृत भाषा है। इसका 'धर्मो मंगलमुत्कृष्टम्' इस प्रकार संस्कृत में पाठ करना भाषागत व्यंजनातिचार हैं।
'सव्वं सावज जोगं पच्चक्खामि'-इसकी मात्रा बदलकर जैसे---सवे सावज्जे जोगे पच्चक्खामि', उच्चारण करना मात्रागत व्यंजनातिचार है। 'णमो अरहंतागं' का 'णमो अरहताण' इस प्रकार प्राप्त बिन्दु को छोड़कर उच्चारण करना, णमो अरहताणं' इस प्रकार 'र' के साथ अप्राप्त बिन्दु का उच्चारण करना---यह बिन्दुगत व्यंजनातिचार है।
१. दशाश्रुतस्कन्ध, दशा ४। २. निशीथभाष्य, गाथा ८, भाग-१, पु०६:
काले विणये बहुमाने, उवधाने सहा अणिण्हवणे ।
वंजण अत्थतदुभए, अट्ठविधो णाणमायारो॥ ३. वही, गाथा १७, भाग १, पृ. १२ ।
सक्कयमत्ताबिंदू, अण्णाभिधाणेण वा वितं प्रत्यं ।
बजेति जेण प्रत्यं, वंजणमिति भण्णते सुत्तं ॥ ४, निशीथभाष्य चूणि, भाग १, पृ० १२ ।
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'धम्मो मंगल मुक्किदळं, अहिंसा संजमो तवो।' इनके मौलिक शब्दों को हटाकर वहां उनके पर्यायवाची शब्दों की योजना करना, जैसे--पुण्णं कल्लाणमुक्कोस, दयासंवरणिज्जरा । यह अन्याभिधान नामक व्यंजनातिचार है।
सूत्र के अक्षर-पदों का हीन या अतिरिक्त उच्चारण करना अथवा उनका अन्यथा उच्चारण करना भी व्यंजनातिचार है।
इस सारे विवरण का निष्कर्ष यह है कि सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु, शब्द, शब्द. संख्या और पाठ्य-क्रम मौलिकता सुरक्षित रहनी चाहिए। इस व्यवस्था के अतिक्रमण के लिए प्रायश्चित्त की व्यवस्था की गई । भाषा, मात्रा, बिन्दु आदि का परिवर्तन करने पर लघूमासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है । सूत्रपाठ को अन्यथा करने पर लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
चूर्णिकार ने विषय के उपसंहार में लिखा है--सूत्रभेद पे अर्थ भेद, अर्थभेद से चरणभेद, चरणभेद से मोक्ष असंभव हो जाता है। वैसा होने पर दीक्षा आदि कर्म प्रयोजन-शून्य हो जाते है। इसलिए व्यंजन-भेद नहीं करना चाहिए।
इसी प्रकार अर्थभेद भी नहीं करना चाहिए। जो अर्थ अनुक्त और अघटित हो, वह नहीं करना चाहिए। अर्थ का परिवर्तन करने पर गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है।
सूत्र और अर्थ दोनों का एक साथ परिवर्तन करने पर पूर्वोक्त दोनों प्रायश्चित्त प्राप्त होते हैं।
सुत्र और अर्थ के मौलिक स्वरूप के सुरक्षित रखने की दिशा में आगमों के रचना-काल में चिन्तन प्रारंभ हो गया था। प्रस्तुत सूत्र में इसका स्पष्ट निर्देश है। ग्रन्थाध्ययन में मनि को सावधान किया गया है कि वह सूत्र और अर्थ की अन्यरूप में योजना न करे । अथवा
१. निशीथभाष्य, गायः १८, चूणि भाग १, १०१२। २. निशीथभाष्य, गाथा १८, चूणि भाग १, पृ० १२ :
सुत्तभेया अत्थभेओ । प्रत्यभेया चरणभेो । चरणभेया अमोक्खो मोक्खाभावा दिक्खादयो किरियाभेदा
अफला भवन्ति । तम्हा बंजणभेदो ण कायन्यो। ३. निशीथभाष्य चूर्णि, भाग १, पृ० १३ ॥ ४. वही;
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२२
उसका अन्यथा प्रतिपादन न करे। इसकी व्याख्या में चूर्णिकार ने लिखा है--सूत्र को सर्वथा ही अन्यथा न करे। अर्थ वही करे जो स्वसिद्धान्त से अविरुद्ध है। वृत्तिकार ने लिखा है'---सूत्र में स्वमति से न जोड़े अथवा सूत्र और अर्थ को अन्यथा न करे ।
उक्त विवरण से ज्ञात होता है कि सूत्र अर्थ के मौलिक स्वरूप की सुरक्षा का तीव्र प्रयत्न किया गया था । फलत: एक सीमा तक उसकी सुरक्षा भी हुई है। फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि उसमें परिवर्तन नहीं हुआ है । वह उसके कारण भी प्राप्त हैं। जैसे१. विस्मृति, २. लिपिपरिवर्तन, ३. व्याख्या का मूल में प्रवेश, ४. देश-काल का व्यवधान । ___ शीलांकसरि सूत्रकृतांग की वृत्ति लिख रहे थे तब उनके सामने उसके आदर्श और प्राचीन टीका--दोनों विद्यमान थे । दुसरे शु तस्कन्ध के दूसरे अध्ययन के एक स्थल में आदर्शों में एक जैसा पाठ नहीं था और टीका में जो पाठ व्याख्यात था उसका संवादी पाठ किसी भी आदर्श में नहीं था। इसलिए उन्होंने एक आदर्श को मान्य कर चचित अंश की व्याख्या की।
कुछ स्थानों पर हमने चणि के पाठ स्वीकृत किए हैं। आदशों और वृत्ति की अपेक्षा से वे अधिक संगत प्रतीत होते हैं।
२१६४५ में 'णिहो णिसं' पाठ है । वह वृत्ति में 'णिवो णिसं' इस प्रकार व्याख्यात है। वहां हमने चूणि का पाठ स्वीकृत किया है।
पादटिप्पणों में हमने पाठ-परिवर्तन व उनके कारणों की चर्चा की है। वैदिक परम्परा में भी वेदों के मौलिक पाठ की सुरक्षा के लिए तीव्र प्रयत्न किए थे। किन्तु उनके पाठों में भी कालजनित अतिक्रमण हुए हैं। डा० विश्वबन्धु ने लिखा है:--"यह सर्वमान्य तथ्य है
१. सूमयडो, ११४१२६ :
जो सुत्तमत्थं च करेज्ज अण्णं । २. सूवकृतांगचूणि, पृ० २९६ :
न सूत्रमन्यत् प्रद्वेषण करोत्यन्यथा वा, जहा रपणो भत्तसिणो उज्ज्वलप्रश्नो नामार्थः तमपि नाम्यथा कुर्यात, जहा 'आयंती के प्रावती-एके यावती तं लोगो विपरामसंति' सूत्रं सर्वथैवाभ्यथा न कर्त्तव्यं, अर्थविकल्पस्तु
स्वसिद्धान्ताविरुद्धो अविरुद्धः स्यात् । ३. सूवकृतांगवृत्ति, पत्न २५८ :
न च सूत्रमन्यत् स्वमतिविकल्पनतः स्वपरनायी कुर्वीतान्यथा
वा सूत्रं तदर्थ वा संसारात्वायीत्राणशीलो जन्तूनां न विदधीत । ४. वही, पन्न ७६।
इह च प्रायः सूत्रादर्श नानाभिधानि सूत्राणि दृश्यन्ते, न च टीकासंवायेकोप्यस्माभिरादर्शः समुपलब्धोऽत
एकमादर्शमंगीकृत्यास्माभिविवरण क्रियते । ५. देखें-२१४५ का पादटिप्पण। ६. अखिल भारतीय प्राच्य-विद्या-सम्मेलन, चौबीसवाँ अधिवेशन, वाराणसी १९६८, मुख्याध्यक्षीय भाषण, पृष्ठ ।
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कि लगभग ५ हजार वर्षों से इस देश में वैदिक ग्रन्थों के प्राचीन पाठों को उनके मौलिक शुद्धरूप में सुरक्षित रखने के लिए उन्हें परम सावधानी और उत्कृष्ट श्रद्धा के साथ कण्ठस्थ करने का इतना घोर प्रयत्न होता रहा है कि जिसका किसी भी दूसरे देश के साहित्यिक इतिहास में उदाहरण नहीं है । किन्तु ऐसा होने पर भी, जैसा कि इस वैदिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कार्य करने वाले हमारे पूर्ववर्ती विद्वानों को देखने में संयोगवश कुछ-कुछ और गत चालीस वर्षों के सतत शोध कार्य के मध्य में हमारे देखने में, विस्तृत रूप में आया है कि ये ग्रन्थ भी कालकृत विध्वंस और मानवकृत संक्रमण की अपूर्णता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । यदि ऐसा बहुधा होता तो सचमुच यह एक अविश्वसनीय चमत्कार ही होता ।"
कण्ठस्थ परंपरा से चलने वाले तथा प्रलंब अवधि में लिपि परिवर्तन के 'युग में संक्रमण करने वाले प्रत्येक ग्रन्थ के कुछ स्थल मौलिकता से इतस्ततः हुए हैं।
प्रतिपरिचय
(क) सूत्रकृतांग मूलपाठ
यह प्रति 'घेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसकी पत्र संख्या ६४ व पृष्ठ संख्या १८८ है । प्रत्येक पत्र मे ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३७ तक अक्षर है । प्रति की लम्बाई ११ ॥ इंच व चौड़ाई ४ इंच है । प्रति शुद्ध व बड़े अक्षरों में स्पष्ट लिखी हुई है। यह प्रति संवत् १५८१ में लिखी हुई है । इसके अन्त में निम्न प्रशस्ति है !--
संवत् १५८१ वर्षे पत्तन नगरे श्री खरतरगच्छे श्री जिनवर्द्धनसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि । श्री जिनसागरसूरि । श्री जिनसुन्दरसूरि पट्ट पूर्वाचल सहस्रकरावतार श्री जिनहर्ष सूरिपट्टे श्री जिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन ऊकेशवंशे साधुशाखायां । सो० जीवाभार्या श्रावारुपुत्ररत्न सो० महिवाल सो० गांगाख्यो सा० तंत्र सो गांगा भार्या श्रा० धीरुपुत्र सो० पदमसी सो० हरिचंद विद्यमानपुत्र सो० शिवचन्द सो० देवचंद्राभ्या श्री एकादशांगी सूत्राणि अलेखिषत तत्रेदं श्री सूत्रकृतांगसूत्रं । सम्पूर्णः ॥ श्री रस्तु ||
(ख) सूत्रकृतांग बालावबोध प्रथमश्रुतस्कन्ध ( त्रिपाठी)
यह प्रति 'गधेया पुस्तकालय' सरदाशहर की है। मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है । इसके पत्र ४३ व पृष्ठ ८६ हैं । प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ५-६ करीब हैं व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ६०-६२ करीब हैं। प्रति की लम्बाई १०३ इंच व चोड़ाई ४३ इंच है। अनुमानतः यह प्रति १७वीं शताब्दि की लगती है । प्रति के अन्त में प्रशस्ति नहीं है ।
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(ग) सूत्रकृतांग द्वितीय बालावबोध (त्रिपाठी)
यह प्रति 'धेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसके पत्र ६५ व पृष्ठ १३० है। मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ४ से १२ तक हैं व प्रत्येक में ४५ से ५० तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इच व चौड़ाई ४३ इंच करीब है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है---
मूलपाठ प्रशस्ति---सूयगडस्स बीयं खंधो सम्मत्ते । श्री सूगडांग द्वितीय श्रु तस्कन्धः सूत्र संपूर्ण समाप्तः ।। सुभं भवतु, कल्याणमस्तु । श्री रस्तुः ।। ब ।। ब ॥ पंड्या भवान सूत मेधज्जी लक्षतं ।। बालावरोध प्रशस्ति--सूत्रकृतं आदित: सर्वमध्ययनं २३। श्री साधुरत्तशिष्येण पाशचन्द्रेण वृत्तितः वालावबोधार्थ द्वितीयांगस्यवात्तिक सम्पूर्णः ॥ ब॥ सूभ भवतुः । कल्याणमस्तु: श्रीरस्तु ॥ संवत् ।। १६६३ वर्षे फागुणवदि ८ बुधे प्रति सूगडांगनी पूरी कोधी प्रति ठीक है। (क्व) सूत्रकृतांग बालावबोध पंचपाठी
यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से प्राप्त, पत्र संख्या ६८ व पष्ठ १३६ । पाठ की पंक्तियां एक से १३ तक व प्रत्येक पंक्ति में ३४ से ३७ करीव अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इंच व चौड़ाई ४३ इच करीब है । संवत् व प्रशस्ति नहीं है। आनुमानिक सं० १७वीं शदी। (क्व) सूत्रकृतांग (मूलपाठ) नियुक्ति सहित ___ यह प्रति 'गधया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ४२ व पृष्ठ संख्या ८४ है। प्रत्येक पत्र में १६ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ६३ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १३ इंच व चौड़ाई ४३ इंच है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति हैसयगडस्स निज्जुत्ती सम्मत्ता । पद्मोपमं पत्रपरं परान्वितं, वर्णोज्जलसूक्तमरदं सुन्दरं मुमुक्षभंगप्रकरस्यवल्लभं, जीयाच्चिरं सूत्रकृदंग पुस्तकं ॥ संवत १५१२ वर्षे आसोज
ऊएसगच्छे भट्टारक श्रीकक्कसूरीणां ।। विक्रमपुरे ।। (व) सूत्रकृतांग वृत्ति (हस्तलिखित)
यह प्रति 'गधया पुस्तकालय' सरदारशहर की है। इसके पत्र १० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६७ के करीब अक्षर है। इसकी लम्बाई १०३ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रति सुन्दर व सूक्ष्म अक्षरों में लिखी हई है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है--
शुभं भवतु संवत् १५२५ वर्षे श्री यवनपुर नगरे। श्रीखरतरगच्छे । श्रीजिनभद्रसूरिपट्रालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये! श्री कमल संयमे । महोपाध्यायः स्ववाचनार्थ ग्रंथोयं लेखितः
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॥श्रीः॥ ब ॥श्रीः॥ श्री पदुमकी[पाठकेभ्यः पं० महिमसारगणिना प्रतिरियं प्रदत्ता स्वपुण्यार्थं ॥ (व०) सूत्रकृतांग वृत्ति मुद्रित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन देरासर पेढी। (चू०) सूत्रकृतांग चूणि मुद्रित श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्वर संस्था रतलाम ।
ठाणं
प्राकृत में एक शब्द के अनेक रूप बनते हैं। आगमों में वे अनेक रूप प्रयुक्त भी हैं। आगम का संपादन करने वाले कुछ विद्वानों का यह आग्रह रहा है कि पाठ-संपादन में विभिन्न रूपों में एकरूपता लानी चाहिए। हमने पाठ-संपादन की इस पद्धति को मान्य नहीं किया है। यद्यपि प्रस्तुत सूत्र में 'नकार' और 'णकार' की एकता स्वीकार कर सर्वत्र ‘णकार' का ही प्रयोग किया है; पर रूप-भेदों में एकता लाने के सिद्धान्त का सर्वत्र उपयोग नहीं किया है। ३१३७३ में 'सुगती' और 'सुरगती'-ये दो रूप मिलते हैं। ३१३७५ में 'सोगता', 'सुगता' और 'सुग्गता-ये तीन रूप मिलते हैं। हमने उन्हें यथावत् रखा है। ग्रंथकार प्रयोग करने में स्वतन्त्र हैं। वे एकरूपता के नियम से बंधे हुए नहीं हैं, फिर संपादन कार्य में एकरूपता का प्रयत्न अपेक्षित नहीं लगता।
आगमों में अनेक भाषाओं और वर्णादेशों के विविध प्रयोग मिलते हैं। उनमें एकरूपता लाने पर विविधता की विस्मृति की संभावना हो सकती है। 'वाएणं', 'कायसा'-ये दोनों रूप प्रयुक्त होते हैं। 'अंडजा' के 'अंडया' और 'अंडगा' तथा 'कर्मभूमिजा' के 'कम्मभूमिया' और 'कम्मभूमिगा'ये दोनों रूप बनते हैं। जिस स्थल में जो रूप प्राप्त हो उस स्थल में उसे रखना संपादन की त्रुटि नहीं है।
प्रति परिचय (क) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित)
गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र ७४ तथा पृष्ठ १४८ हैं। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां, प्रत्येक पंक्ति में ६० के करीब अक्षर हैं। यह प्रति १०॥ इंच लम्बी ४॥ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध है । लिपि संवत् १५६५ । प्रशस्ति में लिखा है
शुभं भवतु ॥छ।। श्री खरतरगच्छे श्री सागरचन्द्राचार्यान्वये वा० दयासागरगणिभिः स्वशिष्य वा० ज्ञानमन्दिरगणिवाचनार्थं ग्रंथोऽयं लेखयांचक्र ।। संवत् १५६५ वर्षे जिनश्रीवर्धमानसंवत् २०३५ वर्षे चैत्रप्रयमाष्टम्यां श्री वोहिथिरागोत्रे मंत्रीश्वरवच्छराज नंदन प्रधान शिरोमणि मं० वरसिंहगेहिन्या मंत्रिणी वीऊलदेवी श्री विकया पुत्र मं० मेघराज मं० भोजराज मं० नगराज मं० हरिराज मं० अमरसिंह म० डूंगरसिंह पुत्रिका वीराई
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प्रभृति पौत्रादि परिवारपरिवृतया मृपुण्यार्थं श्री ज्ञानभक्तिनिमित्तं श्री स्थानांग सूत्रवृत्तिसहितं लेखयित्वा बिहारितं श्रीखरतरगच्छे वृहतिथीवीकानयरे श्रीजिनहससूरि विजयिराज्ये वा० महिम राजगणीद्राणां शिष्य वा० दयासागगणीवराणां शिष्य वा. ज्ञानमन्दिरगणिदेवतिलकादिपरिवृतानां वाच्यमानं चिरं नंदतु । शुभं वोभोतु श्री चतुर्विध श्री संघाय ॥छ।। श्री रस्तु । (ख) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित)
घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़ से प्राप्त । इसके पत्र १०८ और पृष्ठ २१६ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां । प्रत्येक पंक्ति में ४५ करीव अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध तथा स्पष्ट है । लिपि संवत् १६८५ है । गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त (वृत्ति की प्रति)। इसके पत्र २८३ और पृष्ठ ५६६ हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच है तथा चौड़ाई ४६ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५८ से ६० तक अक्षर हैं। (घ) ठाणांग (मूलपाठ)
यह प्रति लालभाई भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद) की है। इसके पत्र ६६ तथा पृष्ठ १३२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। पत्रों के दोनों ओर कलात्मक वापिका है। अन्त में लिखा है--- संवत् १५१७ वर्षे ठाणांग सूत्रं लेखयित्वा तेषामेव गुरुणामुपकारिता। साधुजनैर्वा चिरं नंदतात् ॥छ। 1100
समवाओ
प्रस्तुत सूत्र का पाठ-संशोधन तीन आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। कूल स्थलों में पाठ-संशोधन के लिए अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३४) में प्रयुक्त आदर्शों में 'अस्ससेणे' पाठ नहीं है। यह चतुर्थ चक्रवर्ती के पिता का नाम है। इसके बिना अगले नामों की व्यवस्था विसंगत हो जाती है। उल्लिखित सूत्र की संग्रह गाथाओं में पद्मोत्तर नाम अतिरिक्त है। इसे पाठान्तर रूप में स्वीकार किया गया है। आवश्यक नियुक्ति (३९६) में 'अस्ससेणे पाठ उपलब्ध है। उसके आधार पर 'अस्ससेणे' मूल-पाठ के रूप में स्वीकृत किया गया है।
प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३०) की संग्रह गाथा में बलदेव वासुदेव के पिता के नाम है। उक्त गाथा में स्थानांग (९।१६) तथा आवश्यक नियुक्ति (४११)के आधार पर संशोधन
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किया गया है। तीसरे बलदेव-वासूदेव के पिता का नाम रुह है, किन्तु समवायांग की हस्तलिखित वत्ति में 'रुट' के स्थान में 'सोम' है । वस्तुतः 'सोम' के बाद रुट्ट' होता चाहिए।
समवाय ३० (सूत्र १, गाथा २६) में सभी सभी आदर्शों में 'सज्झायवायं' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने भी उसकी स्वाध्यायवादं-- इस रूप में व्याख्या की है । अर्थ की दृष्टि से यह संगत नहीं है । दशाश्र तस्कन्ध (सूत्र २६) में उक्त गाथा उपलब्ध है। उसमें 'सज्झायवाय' के स्थान पर 'सब्भाववायं' पाठ है। दशा तस्कन्ध के वत्तिकार ने इसका संस्कृत रूप 'सद्भाववाद' किया है । अर्थ-मीमांसा करने पर यह पाठ संगत प्रतीत होता है।
प्राचीन लिपि में संयुक्त 'झकार' और संयुक्त 'भकार' एक जैसे लिखे जाते थे। इस प्रकार के लिपिहेतुक पाठ-परिवर्तन अनेक स्थानों में प्राप्त होते हैं।
प्रति परिचय (क) समवायांग मूलपाठ
यह प्रति जैसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मदनचन्दजी गोठी, सरदारशहर द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६४ तथा पृष्ठ १२८ हैं किन्तु २४ वां पत्र नहीं है। प्रत्येक पृष्ठ में ४ या ५ पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ११० अक्षर हैं। लिपि सं० १४०१ । (ख) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों ओर वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १०६ तथा पृष्ठ २१२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में पंक्तियां तथा प्रत्येक पक्ति में ३०,३२ अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। इसके अन्त में संवत् दिया हुआ नहीं है। किन्तु पत्रों की जीर्णता व लिपि के आधार पर यह पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी के लगभग की है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है-- ॥छ।। समवाउ चउत्थमंग 11छ। अंकतोपि ग्रंथान १६६७ ॥छ।। (ग) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी)
यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों तरफ वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र ८१ तथा पृष्ठ १६२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में ५ से १२ पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४७ तक अक्षर हैं । यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४ इंच चौड़ी है । लिपि संवत् १३४५ लिखा है; पर संवत् की लिखावट से कुछ संदिग्ध सा लगता है। फिर भी प्राचीन है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है
१. देखें, समवाप्रो, पइण्णगसमवामो सू० २३० का पाद-टिप्पण। २. देखें, समवायो, समवाय ३०, सू० १, गाथा २६ का दूसरा पाद-टिप्पण।
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२८
॥छ। समवाउ चउत्थमंग संमत्तं ॥छ।। ग्रंथान १६६७ ॥छ।। इस प्रति में पाठ बहुत संक्षिप्त है । अनेक स्थानों पर केवल प्रथम अक्षर ही लिखे गए हैं । श्रीमदभयदेवसूरिवृत्तिः (मुद्रित)प्रकाशक श्रेष्ठी माणिकलाल चुन्नीलाल, कान्तिलाल, चुन्नीलाल-अहमदाबाद ।
संपादक--मास्टर नगीनदास, नेमचन्द । सहयोगानुभूति
जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज ये १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई । उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थदृष्टि समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप-सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ।
हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवत्ति में अध्यापनकर्म के अनेक अंग हैं.-.-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्यश्री का सक्रिय योग, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है।
मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के पाठ संपादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है । मूनि शुभकरणजी इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रतिशोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल जी (आमेट) ने तैयार किया है।
कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता।
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आगम के प्रबंध-संपादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ये कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित बकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगमसेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है।
जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, जैन विश्व भारती के कार्यालय तथा आदर्श साहित्य संघ के कार्यालय के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है।
एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार-पूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है।
मुनि नथमल
अणुव्रत-विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस
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भूमिका १. आगमों का वर्गीकरण
जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम है । समवायांग में आगम के दो रूप प्राप्त होते हैंद्वादशांग गणिपिटक' और चतुर्दश पूर्व नन्दी में श्रुत-ज्ञान (आगम) के दो विभाग मिलते हैं-- अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य। आगम-साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पर्यों से संबंधित हैं। जैसे
१. सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने वाले----'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, प्रथम वर्ग) यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पंचम वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि की शिष्या पद्मावती के विषय में प्राप्त है ।
'सामाइयमाझ्याई एक्कारसअंगाई अहिजई' (अंतगड, अष्टम वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् महावीर की शिष्या काली के विषय में प्राप्त है ।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पष्ठ वर्ग १५वां अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान महावीर के शिष्य अतिमुक्तककुमार के विषय में प्राप्त है।
२. बारह अंगों को पढ़ने वाले--'दारसंगी' (अंतगड, चतुर्थ वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य जालीकुमार के विषय में प्राप्त है।
३. चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले--चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ (अंतगड, तृतीय वर्ग, नवम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य सुमुखकुमार के विषय में प्राप्त है।
'सामाइय माइयाई चोद्दसपुबाई अहिज्जइ' (अंतगड, तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयसकुमार के विषय में प्राप्त है।
१, समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०५८। २, वही, समवाय १४, सू०२। ३. नन्दी, सू०४३।
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भगवान् पार्श्व के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे। भगवान् महावीर के तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे ।
समवायांग और अनुयोगद्वार में अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य का विभाग नहीं है। सर्व प्रथम यह विभाग नन्दी में मिलता है। अंग-बाह्य की रचना अर्वाचीन स्थविरों ने की है। नंदी को रचना से पूर्व अनेक अंग-बाह्य ग्रन्थ रचे जा चुके थे और वे चतुर्दश-पूर्वी या दस-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचे गये थे। इस लिए उन्हें आगम की कोटि में रखा गया। उसके फलस्वरूप आगम के दो विभाग किए गए--अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । यह विभाग अनुयोगद्वार (वीर-निर्वाण छठी शताब्दी) तक नहीं हुआ था । यह सबसे पहले नंदी (वीर-निर्वाण दसवीं शताब्दी) में हुआ है।
नंदी की रचना तक आगम के तीन वर्गीकरण हो जाते हैं--पूर्व, अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । आज 'अंग-प्रविष्ट' और 'अंग-बाह्य' उपलब्ध होते हैं, किन्तु पूर्व उपलब्ध नहीं हैं । उनकी अनुपलब्धि ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्शनीय है।
२. पूर्व
जैन परम्परा के अनुसार श्रुत-ज्ञान (शब्द-ज्ञान) का अक्षयकोष 'पूर्व' है। इसके अर्थ और रचना के विषय में सब एक मत नहीं हैं। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार 'पूर्व' द्वादशांगी से पहले रचे गए थे, इसलिए इनका नाम 'पूर्व' रखा गया। आधुनिक विद्वानों का अभिमत यह है कि 'पूर्व' भगवान पावं की परम्परा की श्रुत-राशि है। यह भगवान महावीर से पूर्ववर्ती है, इसलिए इसे 'पूर्व' कहा गया है। दोनों अभिमतों में से किसी को भी मान्य किया जाए, किन्तु इस फलित में कोई अन्तर नहीं आता कि पूर्वो की रचना द्वादशांगी से पहले हुई थी या द्वादशांगी पूर्वो की उत्तरकालीन रचना है।
वर्तमान में जो द्वादशांगी का रूप प्राप्त है, उसमें 'पूर्व' समाए हुए हैं। बारहवां अंग दृष्टिवाद है । उसका एक विभाग है--पूर्वगत । चौदह पूर्व इसी 'पूर्वगत' के अन्तर्गत हैं। भगवान महावीर ने प्रारंभ में पूर्वगत-श्रुत की रचना की थी। इस अभिमत से यह फलित होता है कि चौदह पूर्व और वारहवां अंग--ये दोनों भिन्न नहीं हैं। पूर्वगत-श्रुत बहुत गहन था। सर्वसाधारण के लिए वह
१. समबाओ, पइयणगसमवाओ, सू०१४ । २. वही, सू० १२ ३. समवायांग वृत्ति, पत्र १०११
प्रथनं पूर्व तस्य सर्वप्रवचनात् पूर्व क्रियमाणत्वात् । ४. नन्दी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० :
अन्ये तु व्याचक्षते पूर्व पूर्वगतसूत्रार्थमहन् भाषते, गणघरा अपि पूर्व पूर्वगतसूत्रं विरचन्ति, पश्चादाचारादिकम्।
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जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने
।
फिर भी ग्यारह अंगों को
सुलभ नहीं था । अंगों की रचना अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए की गई। बताया है कि 'दृष्टिवाद में समस्त शब्द- ज्ञान का अवतार हो जाता है रचना अल्पमेधा पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए की गई'। ग्यारह अंगों को वे ही साधु पढ़ते थे, जिनकी प्रतिभा प्रखर नहीं होती थी । प्रतिभा सम्पन्न मुनि पूर्वों का अध्ययन करते थे । आगम-विच्छेद के क्रम से भी यही फलित होता है कि ग्यारह अंग दृष्टिवाद या पूर्वो से सरल या भिन्नक्रम में रहे हैं । दिगम्बर परम्परा के अनुसार वीर- निर्वाण वासठ वर्ष बाद केवली नहीं रहे। तक श्रुत- केवली (चतुर्दश-पूर्वी) रहे । उनके पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष तक पश्चात् दो सौ बीस वर्ष तक ग्यारह अंगधर रहें ।
उनके बाद सौ वर्ष दशपूर्वी रहे। उनके
उक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि जब तक आचार आदि अंगों की रचना नहीं हुई थी, तब तक महावीर की श्रुत राशि 'चौदह पूर्व' या 'दृष्टिवाद' के नाम से अभिहित होती थी और जव आचार आदि ग्यारह अंगों की रचना हो गई, तव दृष्टिवाद को बारहवें अंग के रूप में स्थापित किया गया ।
raft वारह अंगों को पढ़ने वाले और चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले --ये भिन्न-भिन्न उल्लेख मिलते हैं, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि चौदह पूर्वो के अध्येता बारह अंगों के अध्येता नहीं थे और बारह अंगों के अध्येता चतुर्दश-पूर्वी नहीं थे। गौतम स्वामी को 'द्वादशांग वित्' कहा गया है । वे चतुर्दश-पूर्वी और अंगधर दोनों थे। यह कहने का प्रकार-भेद रहा है कि श्रुतकेवली को कहीं 'द्वादशांगवित्' और कहीं 'चतुर्दश-पूर्वी' कहा गया है ।
ग्यारह अंग पूर्वो से उद्धृत या संकलित हैं। इसलिए जो चतुर्दश-पूर्वी होता है, वह स्वाभा विक रूप से द्वादशांगवित होता है। वारहवें अंग में चौदह पूर्व समाविष्ट हैं। इसलिए जो द्वादशांगविद होता है, वह स्वभावत: चतुर्दश-पूर्व होता है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आगम के प्राचीन वर्गीकरण दो ही हैं--चौदह पूर्व और ग्यारह अंग । द्वादशांगी का स्वतन्त्र स्थान नहीं है। यह पूर्वी और अंगों का संयुक्त नाम है ।
कुछ आधुनिक विद्वानों ने पूर्वो को भगवान् पार्श्वकालीन और अंगों को भगवान् महावीर कालीन माना है, पर यह अभिमत संगत नहीं है। पूर्वो और अंगों की परम्परा भगवान् अरिष्टनेमि और भगवान् पार्श्व के युग में भी रही है। अंग अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए रचे गए, यह पहले बताया जा चुका है। भगवान् पार्श्व के युग में सब मुनियों का प्रतिभा स्तर समान था, यह कैसे
१. विशेषावश्यक भाष्य गाथा ५५४ :
जइवि य भूतादाए, सव्वस्स वयोगयस्स श्रोयारो । निज्जूहणा तहावि हु, दुम्मे हे पप्प इत्थी य ॥
२. जयधवला, प्रस्तावना पृष्ठ ४६ ।
३. देखिए — भूमिका का प्रारम्भिक भाग । ४. उत्तराध्ययन, २३७
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माना जा सकता है ? प्रतिभा का तारतम्य अपने-अपने युग में सदा रहा है। मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि से विचार करने पर भी हम इसी बिन्दु पर पहुंचते हैं कि अंगो की अपेक्षा भगवान् पाश्व के शासन में भी रही है, इसलिए इस अभिमत की पुष्टि में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है कि भगवान पार्श्व के युग में केवल पूर्व ही थे, अंग नहीं । सामान्य ज्ञान से यही तथ्य निष्पन्न होता है कि भगवान महावीर के शासन में पूर्वो और अंगों का युग की भाव, भाषा, शैली और अपेक्षा के अनुसार नवीनीकरण हुआ। 'पूर्व पार्श्व की परम्परा से लिए गए और 'अंग' महावीर की परम्परा में रचे गए, इस अभिमत के समर्थन में सम्भवतः कल्पना ही प्रधान रही है।
३. अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य
भगवान महावीर के अस्तित्व-काल में गौतम आदि गणवरों ने पूर्वो और अंगों की रचना की, यह सर्व-विश्र त है । क्या अन्य मुनियों ने आगम ग्रन्थों की रचना नहीं की। यह प्रश्न सहज ही उठता है। भगवान महावीर के चौदह हजार शिष्य थे। उनमें सात सौ केवली थे, चार सौ वादी थे। उन्होंने ग्रन्थों की रचना नहीं की, ऐसा सम्भव नहीं लगता। नंदी में बताया गया है कि भगवान् महावीर के शिष्यों ने चौदह हजार प्रकीर्णक बनाए थे। ये पूर्वो और अंगो से अतिरिक्त थे। उस समय अम-प्रविष्ट और अंग-बाह्य ऐसा वर्गीकरण हुआ, यह प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् अर्वाचीन आचार्यों ने ग्रंथ रचे तब संभव है उन्हें आगम की कोटि में रखने या न रखने की चर्चा चली और उनके प्रामाण्य और अप्रामाण्य का प्रश्न भी उठा। चर्चा के बाद चतुर्दश-पूर्वी और दश-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचित ग्रन्थों को आगम की कोटि में रखने का निर्णय हुआ किन्तु उन्हें स्वत: प्रमाण नहीं माना गया। उनका प्रामाण्य परत: था। वे द्वादशांगी में अविरुद्ध है, इस कसौटी से कसकर उन्हें आगम की संज्ञा दी गई। उनका पतः प्रामाण्य था, इसीलिए उन्हें अंग-प्रविष्ट की कोटि से भिन्न रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई। इस स्थिति के सन्दर्भ में आगम की अंग-बाह्य कोटि का उद्भव हुआ।
जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य के भेद-निरूपण में तीन हेतु प्रस्तुत किए हैं---
१. जो गणधर कृत होता है, २. जो गणधर द्वारा प्रश्न किए जाने पर तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है.
१. समवाओ, समवाय १४, सू० ४। २. नन्दी, सू०४८:
चोदसपइन्नग सहस्साणि भगवप्रो वदमाणस।
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३. जो ध्रुव - शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित होता है, सुदीर्घकालीन होता है - वही श्रुत अंग-प्रविष्ट होता है'।
इसके विपरीत।
१. जो स्थविर-कृत होता है,
२. जो प्रश्न पूछे बिना तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है, ३. जो चल होता है, तात्कालिक या सामयिक होता है
उस श्रुत का नाम अंग बाह्य है ।
अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य में भेद करने का मुख्य हेतु वक्ता का भेद है । जिस आगम के वक्ता भगवान् महावीर है और जिसके संकलयिता गणधर है, वह श्रुत-पुरुष के मूल अंगों के रूप में स्वीकृत होता है इसलिए उसे अंग-प्रविष्ट कहा गया है। सर्वार्थसिद्धि के अनुसार वक्ता तीन प्रकार के होते हैं- १. तीर्थंकर २. श्रुत- केवली (चतुर्दश-पूर्वी) और ३. आरातीय' आरातीय आचायों के द्वारा रचित आगम ही अंग बाह्य माने गए हैं। आचार्य अकलंक के शब्दों में आरातीय आचार्य-कृत आगम अंग-प्रतिपादित अर्थ से प्रतिबिम्बित होते हैं इसीलिए वे अंग बाह्य कहलाते हैं । अंग बाह्य आगम -पुरुष के प्रत्यंग या उपांग- स्थानीय है।
।
४. अंग
द्वादशानी में संगर्भित बारह आगमों को अंग कहा गया है। अंग शब्द संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के साहित्य में प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य में वेदाध्ययन के सहायक ग्रन्थों को अंग कहा गया है। उनकी संख्या छह है—
१. शिक्षा-शब्दों के उच्चारण-विधान का प्रतिपादक ग्रन्थ
२. कहर - वेदविहित कर्मों का क्रमपूर्वक व्यवस्थित प्रतिपादन करने वाला पा
३. व्याकरण-पद-स्वरूप और पदार्थ निश्चय का निमित्त-शास्त्र ।
४. निरुक्त पदों की व्युत्पत्ति का निरूपण करने वाला शास्त्र ।
५. छन्द - मन्त्रोच्चारण के लिए स्वर-विज्ञान का प्रतिपादक-शास्त्र |
६. ज्योतिष-यज्ञ-याग आदि कार्यों के लिए समय-शुद्धि का प्रतिपादक शास्त्र
१. विशेषावश्यकभाष्य गाथा ५५२
३४
गणहर-थेरकथं वा, आएसा मुक्क- वागरणओ वा धुव चल विसेसमो वा अंगाणंगेसु नाणत्तं ॥
२. सत्यार्थभाव्य १:२०:
वक्तु - विशेषाद् द्वैविध्यम् ।
३. सर्वार्थसिद्धि १.२० :
यो वक्तारः सर्वशस्तीपंकरः इतरो वा केवल आरातीयश्वेति
3
-
४. तस्वार्थ राजवार्तिक, ११२० :
कारातीयाचार्यकृतांगावं प्रत्यासन्नरूपमंगवाह्मम् ।
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३५
वैदिक साहित्य में वेद-पुरुष की कल्पना की गयी है। उसके अनुसार शिक्षा वेद की नासिका है, कल्प हाथ, व्याकरण मुख, निरुक्त श्रोत्र, छन्द पैर और ज्योतिष नेत्र है । इसीलिए ये वेदशरीर के अंग कहलाते हैं।
7
पालि साहित्य में भी 'अंग' शब्द का उपयोग किया गया है। एक स्थान में बुद्धवचनों को नवांग और दूसरे स्थान में द्वादशांग कहा गया है।
नवांग-
१. सुत्त - भगवान् बुद्ध के गद्यमय उपदेश ।
२. गेय्य -- गद्य-पद्य मिश्रित अंश ।
३. वैय्याकरण - व्याख्यापरक ग्रन्थ ।
४. गाथा - पद्य में रचित ग्रन्थ ।
५. उदान बुद्ध के मुख से निकले हुए भावमय प्रीति उद्गार |
६. इतिवृत्तक छोटे-छोटे व्याख्यान, जिनका प्रारम्भ 'बुद्ध ने ऐसा कहा से होता है।
७. जातक - बुद्ध की पूर्व - जन्म-सम्बन्धी कथाएं ।
अभूतषम्म अद्भुत वस्तुओं या योगज विभूतियों का निरूपण करने वाले ग्रन्थ । ६. वेदल्ल - वे उपदेश जो प्रश्नोत्तर की शैली में लिखे गए हैं।
द्वादशांग---
१. सूत्र, २. गेय, ३. व्याकरण, ४. गाथा, ५. उदान, ६. अवदान ७. इतिवृत्तक, ८ निदान, १. वैपुल्य १०. जातक, ११. उपदेश धर्म और १२. अद्भुत-धर्म' ।
जैनागम बारह अंगो में विभक्त है- १. आचार, २. सूत्रकृत ३ स्थान, ४. समवाय, ५. भगवती, ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७ उपासकदशा, ८. अन्तकृतदशा, ६. अनुत्तरोपपातिकदशा, १०. प्रश्नव्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद ।
'अंग' शब्द का प्रयोग भारतीय दर्शन की तीनों प्रमुख धाराओं में हुआ है। वैदिक और बौद्ध साहित्य में मुख्य ग्रन्थ वेद और पिटक हैं। उनके साथ 'अंग' शब्द का कोई योग नहीं है । जैन साहित्य में मुख्य ग्रन्थों का वर्गीकरण गणिपिटक है। उसके साथ 'अंग' शब्द का योग हुआ है। गणिपिटक के वारह अंग हैं - 'दुवालसंगे गणिपिडगे" ।
१. पाणिनीशिक्षा ४१:१२ ।
२.
सूत, पू० ३४
३. बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ 'अभिसमयालंकार' की टीका' पृ० ३५ :
सुखं येदं व्याकरणं, गाघोदानावदानकम् ।
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इतिवृत्तकं निदानं वैपुल्यं च सजातकम् । उपदेशाद्भूत धर्मों द्वादशनि वचः ॥
४. रामबाओ पण समाज सूत
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३६
जैन - परम्परा में श्रुत-पुरुष की कल्पना भी प्राप्त होती है । आचार आदि बारह आगम श्रुत-पुरुष के अंगस्थानीय हैं। संभवतः इसीलिए उन्हें बारह अंग कहा गया। इस प्रकार द्वादशांग 'पिटक' और 'श्रुत पुरुष दोनों का विशेषण बनता है।
आयारो
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पहला अंग है । इसमें आचार का वर्णन है, इसलिए इसका नाम 'आमा' (आधार) है। इसके दो तस्कन्ध हैं-आपरो और आधारचुला ।
विषय-वस्तु
समवायांग और नन्दी में आचारांग का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके अनुसार प्रस्तुत सूत्र आचार, गोचर, विनय, वैनयिक (विनय-फल), स्थान ( उत्थितासन, निषण्णासन, और शयितासन), गमन, चंक्रमण, भोजन आदि की मात्रा, स्वाध्याय आदि में योग-नियंजन, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या उपधि, भक्त-पान, उद्गम-उत्थान, एषणा आदि की विशुद्धि, शुद्धाशुद्ध-ग्रहण का विवेक, व्रत, नियम, तप, उपधान आदि का प्रतिपादक है ।
आचार्य उमास्वाति ने आवासंध के प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया है । वह क्रमश: इस प्रकार है ---
१. षड्जीवकाय यतना ।
२. लौकिक संतान का गौरव त्याग ।
३. शीत-उष्ण आदि परीषहों पर विजय
४. अप्रकम्पनीय सम्यक्त्व
५. संसार से उद्वेग
६. कर्मों को क्षीण करने का उपाय ।
७. वैयावृत्य का उद्योग
८. तपस्या की विधि ।
८. स्त्री - संग-त्याग |
१. मूलाराधना, ४ ५६९ विजयोदया :
श्रतं पुरुषः मुखचरणाद्यंग स्थानीयत्वादंगशब्देनोच्यते ।
२. (क) समवाओ, पइण्णग समवायो, सू० प
(ख) नदी, सु० ८०
३. प्रशमरति प्रकरण, ११४- ११७
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१०. विधि-पूर्वक भिक्षा का ग्रहण । ११. स्त्री, पशु, क्लीव आदि से रहित शय्या ! १२. गति-शुद्धि । १३. भाषा-शुद्धि । १४. वस्त्र की एषणा-पद्धति । १५. पात्र की एषणा-पद्धति । १६. अवग्रह-शुद्धि । १७. स्थान-शुद्धि । १८. निषद्या-शुद्धि । १६. व्युत्सर्ग-शुद्धि । २०. शब्दासक्ति परित्याग । २१. रूपासक्ति-परित्याग । २२. परक्रिया-वर्जन । २३. अन्योन्यक्रिया-वर्जन । २४. पंच महाव्रतों की दृढ़ता। २५. सर्वसंगों से विमुक्तता।
नियुक्तिकार ने नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों के विषय इस प्रकार बतलाए हैं--- १. सत्थपरिणा-जीव संयम । २. लोगविजय-बंध और मुक्ति का प्रबोध । ३. सीओसणिज्ज-सुख-दुःख-तितिक्षा। ४. सम्मत्त---सम्यक-दृष्टिकोण ! ५. लोग सार–असार का परित्याग और लोक में सारभूत रत्नत्रयी को आराधना । ६. धुय---अनासक्ति। ७. महापरिणामोह से उत्पन्न परीषहों और उपसर्गों का सम्यक सहन । ८. विमोक्ख-निर्याण (अंतक्रिया) की सम्यक -आराधना । ६. उ वहाणसुय--- भगवान् महावीर द्वारा आचरित आचार का प्रतिपादन।
१. आचारांग नियुक्ति, गाथा ३३, ३४ :
जिअसंजमी अ लोगो जह बज्झइ जह य तं पजहियव्वं । सुहदुक्खतितिक्खाबिय, सम्मत्तं लोगसारो य॥ निस्संगया य छठे मोहसमुत्या परीसहुक्सम्मा। निजाणं अठ्ठमए नवमे य जिणेण एवंति ।
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आचार्य अकलंक के अनुसार आचारांग का समग्र विषय चर्या-विधान तथा अपराजित सुरि के अनुसार रत्नत्रयी के आचरण का प्रतिपादन है।
जैन-परम्परा में 'आचार' शब्द व्यापक अर्थ में व्यवहृत होता है । आचारांग की व्याख्या के प्रसंग में आवार के पांच प्रकार बतलाए गए हैं-१. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चरित्राचार, ४. तपाचार और ५. वीर्याचार' । प्रस्तुत सूत्र में इन पांचों आचारों का निरूपण है
सूयगडो
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का दूसरा अंग है। इसका नाम 'सूयगडो' है। समवाय, नंदी और अनुयोगद्वार-जीनों आगमों में यही नाम उपलब्ध होता है। नियुक्तिकार भद्रबाहस्वामी ने प्रस्तुत आगम के गुण-निष्पन्न नाम तीन बतलाए हैं
१. सूतगड-सूतकृत २. सूत्तकड-सूत्रकृत ३. सूयगड-सूचाकृत
प्रस्तुत आगम मौलिक दृष्टि से भगवान महावीर से सूत (उत्पन्न) है तथा यह ग्रन्थरूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूतकृत' है ।
इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सुत्रकृत' है। इसमें स्व और पर समय को सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' है।
वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय-ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। आकार भेद होने के कारण तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई है।
१. तत्वार्थ राजवार्तिक, १२० : ___ आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टकपंचसमितिनिगुप्तिविकल्पं कथ्यते । २. भूलाराधना, आश्वास २, ग्लोक १३०, विजयोदया:
रत्नत्रयाचरणनिरूपणपरतया प्रथममंगमाचारशब्देनोच्यते । ३. समवाओ, पइण्णग समवाओ, सू० ८९:
से समासमो पंचविहे पं० २–णाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वोरियायारे । ४. (क) समवाओ, पदण्णगसमवायो, सू० ८८
(ख) नंदी, सू०८०।
(ग) अणुप्रोगदाराई, सू० ५० । ५. सूत्रकृतॉगनियुक्ति, गाथा २:
सूतगडं मुत्तकडं सूयगडं चेव गोण्णाई।
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सभी अंग मौलिक रूप में भगवान् महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थरूप में प्रणीत हैं । फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही सूत्रकृत नाम क्यों ? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है। प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है। क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्वसमय और परसमय की तुलनात्मक सूत्रता के सन्दर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका संबंध सूचना से है। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है --'सूयगडे णं ससमयासूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमय-परसमया सूइज्जति ।
जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है।
सूत्रकृत के नाम के सम्बन्ध में एक अनुमान और किया जा सकता है। वह वास्तविकता के निकट प्रतीत होता है । दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयो।, पूर्वगत और चूलिका।
___ आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है। प्रस्तुत आगम की रचना उसी के आधार पर की गई इसलिए इसका सूत्रकृत नाम रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। सूतगड' और बौद्धों के 'सुत्तनिपात' में नामसाम्य प्रतीत होता है। अंग और अनुयोग
द्वादशांगी में प्रस्तुत आगम का स्थान दूसरा है । अनुयोग चार हैं१. चरणकरणानुयोग, २. धर्मकथानुयोग, ३. गणितानुयोग। ४. द्रव्यानुयोग।
चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार शास्त्र) है । शीलांकसूरि ने इसे द्रव्यानुयोग (द्रव्य शास्त्र) की कोटि में रखा है। उनके अनुसार आचारांग प्रधानतया चरणकरणानुयोग तथा सुत्रकृतांग प्रधानतया द्रव्यानुयोग है।
१. (क) समवाओ, पइग्णगसमवायो, सू० ६० ।
(ख) नंदी, सू० ८२। २. कसायपाहुह, भाग १, पृ.० १३४ । ३. सूत्रकृतांगचूणि पृ०५।
इह चरणाणुगोगे ण अधिकारो। ४. सूत्रकृतॉग वुत्ति, पत्न १ तनाचाराङ्ग चरण करणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्यसूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्ग व्याख्यातुमारभ्यते ।
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समवाय तथा नन्दी में द्वादशांगी का विवरण दिया हआ है। वहां सभी अंगों के विवरण के अंत में एवं चरणकरणपरूवणता' पाठ मिलता है। अभयदेवसूरी ने 'चरण' का अर्थ श्रमण धर्म और 'करण' का अर्थ पिण्डविशुद्धि, समिति आदि किया है।
चुणिकार ने कालिकश्रुत को चरणकरणानुयोग तथा दृष्टिवादको द्रव्यानुयोग माना है।'
द्वादशांगी में मुख्यतः द्रव्यशास्त्र दष्टिवाद है। शेष अंगों में द्रव्य का प्रतिपादन गौण है। द्रव्यशास्त्र में भी गौणरूप में आचार का प्रतिपादन हुआ है । चूर्णिकार ने मुख्यता की दृष्टि से प्रस्तुत आगम को आचार शास्त्र माना है और वह उचित भी है। वृत्तिकार ने इसमें प्राप्त द्रव्य विषयक प्रतिपादन को मुख्य मानकर इसे द्रव्यशास्त्र कहा है। इन दोनों वर्गीकरणों में सापेक्ष दृष्टिभेद है।
ठाणं
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का तीसरा अंग है। इसमें संख्या-क्रम से जीव, पुद्गल आदि की स्थापना की गई है इसलिए इसका नाम ठाणं है।
विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में 'स्वसमय' (अर्हत् का दर्शन), 'परसमय' तथा स्वसमय और परसमयदोनों की स्थापना की गई है। जीव और अजीव, लोक और अलोक की स्थापना की गई है। इसमें संग्रह नय की दृष्टि से जीव की एकता और व्यवहार नय की दृष्टि से उसकी भिन्नता प्रतिपादित है । संग्रह नय के अनुसार चैतन्य की दृष्टि से जीव एक है । व्यवहार नय के दृष्टिकोण से प्रत्येक जीव विभक्त होता है, जैसे-ज्ञान और दर्शन की दष्टि से वह दो भागों में विभक्त है । कर्मचेतना, कर्मफल चेतना और ज्ञान चेतना की दृष्टि से अथवा ध्रौव्य, उत्पाद और
१. समवायांग वृत्ति, पन १०२:
चरणम्--ब्रतश्रमणधर्मसंयमाद्यनेकविधम् ।
करणम्--पिण्डविशुद्धिसमित्याधनेकविधम् । २. सूत्रकृतांगणि, पु०५।
कालियसुर्य चरणकरणाणुयोगो, इसिभासिओत्तरायणाणि धम्माणुयोगो, सूरपण्णत्तादि गणितानुयोगो, दिठ्ठ वातो दवाणुजोगोत्ति । ३. समवायो, पइयणगसमवाओ, सू० ६१॥
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विनाश की दृष्टि से वह तीन भागों में विभक्त है। गति-चतुष्टय में परिभ्रमण करने के कारण वह चार भागों में विभक्त है। पारिणामिकआदि पांच भावों की दष्टि से वह पांच भागों में विभक्त है। भवान्तर में संकमण के समय पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उध्वं और अध:----इन छह दिशाओं में गमन करने के कारण वह छह भागों में विभक्त है। स्यादस्ति, स्यादनास्ति की सप्तभंगी की दष्टि से वह सात भागों में विभक्त है। आठ कर्मों की दृष्टि से वह आठ भार्गो में विभक्त है। नौ पदार्थों में परिण मन करने के कारण वह नौ भागों में विभक्त है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रिय जाति की दृष्टि से वह दस भागों में विभक्त है।' इसी प्रकार प्रस्तुत आगम पुद्गल आदि के एकत्व तथा दो से दस तक के पर्यायों का वर्णन करता है। पर्यायों की दष्टि से एक तत्व अनन्त भागों में विभक्त हो जाता है और द्रव्य की दृष्टि से वे अनन्त भाग एक तत्त्व में परिणत हो जाते हैं। प्रस्तुत आगम में इस अभेद और भेद की व्याख्या उपलब्ध है।
समवाओ नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का चौथा अंग है। इसका नाम समवाओ है। इसमें जीव-अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समवतार है, इसलिए इसका नाम समवाओ है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का सादृश्य-सामान्य के द्वारा निर्णय किया गया है; इसलिए इसका नाम समवाओ है।
समवाओ में द्वादशांगी का वर्णन है । यह द्वादशांगी का चौथा अंग है; इसलिए इसमें इसका विवरण भी प्राप्त है।
द्वादशांगी का क्रम-प्राप्त विवेचन नन्दी सूत्र में है। उसके अनुसार समवाओ की विषयसूची इस प्रकार है
१. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास ।
१. कसायपाहुड भाग पृ० १२३ २. समवायांग वृत्ति, पत्न १:
समिति-सम्यक् अवेत्याधिक्येन अयनमयः-परिच्छेदो जीवाजीवादिविविधपदार्थसाधस्य यस्मिन्नसो समवायः, समवयन्ति वा-समवसरन्ति संमिलन्ति नाना विद्या आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसो समवाय इति । गोमटसार, जीवकाण्ड, जीवप्रबोधिनी टीका, गाथा ३५६ : "सं-संग्रहेण सादृश्यसामाग्येन प्रवेयंते ज्ञायन्ते जीवा दिपदार्था द्रव्य कालभावनाश्रित्य अस्मिम्मिति समवायाङ्गम् ।"
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३. द्वादशांग गणिपिटक का वर्णन । समवायांग के अनुसार समवाओ की विषय सूची इस प्रकार है१. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास । ३. द्वादशांग-गणिपिटक का वर्णन। ४. आहार
१४. योग ५. उच्छ वास
१५. इन्द्रिय ६. लेश्या
१६. कषाय ७. आवास
१७. योनि ८. उपपात
१८. कुलकर है. च्यवन
१६. तीर्थंकर १०. अवगाह
२०. गणधर ११. वेदना
२१. चक्रवर्ती १२. विधान
२२. बलदेव-वासुदेव । १३. उपयोग
दोनों विषय-सूचियों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि समवायांग की नदि- त.विषय-सूची संक्षिप्त है जौर समवाओ-गत विषय-सूची विस्तृत । विषय-सूची के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का आकार भी छोटा और बड़ा हो जाता है।
दोनों विवरणों में 'सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है' इसका उल्लेख है । अने कोतरिका वृद्धि का दोनों में उल्लेख नहीं है। नन्दीचूर्णी, हारिभद्रीयावृत्ति तथा मलयगिरीयावृत्ति-इन तीनों में अनेकोतरिका वृद्धि का कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने अनेकोतरिका वृद्धि की चर्चा की है। उनके अनुसार सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है और उसके पश्चात् अनेकोतरिका वृद्धि होती है।
वृत्तिकार का यह उल्लेख समवायांग के विवरण के आधार पर नहीं, किन्तु उपलब्ध पाठ के आधार पर है-ऐसा प्रतीत होता है।
१. नन्दी, सू० ८३:
से कि तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिज्जति, अजीवा समासिजति जीवाजीवा समासिज्जति । ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय-गरसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ, अलोए समासिरजइ, लोयालोए समासिज्जइ । समवाएणं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयं-निवढ़ियाणं भावाणं परूवणा आधविज्जइ, दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लयम्ये समासिज्जइ ! २. समवानो, पइण्णगसमवाओ, सू०६२। ३. समवायांग, वृत्ति, पन्न १०५ :
'च शब्दस्य चान्यत्र सम्बन्धादेकोतरिका अनेकोतरिका च, तत्र शतं यावदेकोतरिका परतोऽनेकोत्तरिकेति।'
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दोनों विवरणों की समीक्षा करने पर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं
१. नन्दी में समवायांग का जो विवरण है, उससे उपलब्ध समवायांग क्या भिन्न नहीं है ? २. क्या उपलब्ध समवायांग देवघराणी की वाचना का है ? यदि है तो समवायांग के दोनों विवरणों में इतना अन्तर क्यों ?
प्रथम प्रश्न के समाधान में यह कहा जा सकता है कि नन्दीगत समवायांग विवरण के अनुसार समवायांग सूत्र का अन्तिमविषय द्वादशांगी के आगे अनेक विषय प्रतिपादित हैं। इससे ज्ञात होता है कि समवायांग का वर्तमान आकार नन्दीगत समवायांग विवरण से भिन्न है।
दूसरे प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर देना कठिन है, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि आगमों की अनेक वाचनाएं रही हैं। इसीलिए प्रत्येक अंग के विवरण में अनेक वाचनाओं (परित्ता वाणा) का उल्लेख किया गया है । अभयदेवसूरि ने समवायांग की वृहद वाचना का उल्लेख किया है'। इससे अनुमान किया जा सकता है कि नन्दी में लघु वाचना वाले समवायांग का विवरण है !
अभयदेवसूरि को प्रस्तुत सूत्र के वाचनान्तर प्राप्त थे, ऐसा उनकी वृत्ति से ज्ञात होता है। समवायांग परिवर्धित आकार के विषय में दो अनुमान किये जा सकते हैं
१. प्रस्तुत सूत्र देवधिगणी की वाचना से भिन्न वाचना का है ।
२. अथवा द्वादशांगी के उत्तरवर्ती अंश देवगिणी के पश्चात् इसमें जोड़े गए हैं।
यदि प्रस्तुत सूत्र भिन्न याचना का होता तो इस विषय में कोई अनुभूति मिल जाती। ज्योतिकरण्ड माधुरी वाचना का है - यह अनुश्रुति वराबर चलती आ रही है । उपलब्ध समवायांग भी यदि माधुरी वाचना का होता तो उस विषय को कोई अनुश्रुति मिल जाती।
प्रथम अनुमान की पुष्टि की संभावना कम होने पर दूसरे अनुमान की संभावना बढ़ जाती है किन्तु भगवती तथा स्थानांग से दूसरे अनुमान का भी निरसन हो जाता है। भगवती में कुलकर, तोकर आदि के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है'। इसी प्रकार स्थानांग में भी बलदेव- वासुदेव के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है। इससे ज्ञात होता है कि परिशिष्ट भाग देवधिगणी के जोड़ा गया था ।
समय में ही
१ (क) माग वृत्ति पत्र ५८ वाचनायामन्यं नाधीयते। (ब) वही पत्र ५२ बृहद्वचनायामिदमादतिपक्षी २.वृति पत्र १४४ वाचनान्तरे तु पाकोक्तमेत्यमिलिम ३. भगवई शतक ५, उद्देशक ५
४. ठाणं ६।१६, २०
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एक आगम के लिए एक संकलनकार के द्वारा दो प्रकार के विवरण (समवायांग तथा नंदी में) दिए गए - यह विचित्र बात है ।
माधुरी और वल्लभी ये दो मुख्य वाचनाएं थीं। गौण वाचनाएं अनेक थीं। इसीलिए अनेक वाचनान्तर मिलते हैं। ये वाचनान्तर संभवतः व्याख्यांश या परिशिष्ट जोड़ने से हो जाते । समवायांग में द्वादशांगी का उत्तरवर्ती भाग उसका परिशिष्ट भाग है - ऐसी कल्पना की जा सकती है। परिशिष्ट का विवरण समवायांग के विवरण में परिवर्धित किया गया, इसलिए उसकी विषय[सूची] नन्दीगत समवायांग की विषय-सूची से लम्बी हो गई। परिशिष्ट भाग में प्रज्ञापना के ग्यारह पदों का संक्षेप है, ये किस हेतु से यहां जोड़े गए, यह अन्वेषण का विषय है ।
कार्य संपूति
प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको में आशीर्वाद देता है कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो।
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इसके सम्पादन का बहुत कुछ अय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुस्तर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है । विनय - शीलता, धम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है । यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमश: वर्धमानता ही पाई है। इनकी कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है।
मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बलबूते पर ही आगम के इस गुस्तर कार्य को उठाया है । अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधु-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस वृहद कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूंगा।
भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है।
अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस
आचार्य तुलसी
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Editorial
Ayaro
The text of the Āćāränga, adopted by us, does not depend on one specimen only. We have adopted it on the review with reference to the specimens in use, the Ćūrņi and the Vșitti. The three sūtras (27-29) in the second 'Uddeśaka' of the first Adhyayana of the 'Āyāro' are found in all the other five Uddeśakas also. In the specimens used in the redemption of the text as well as in the Acaranga Vșitti they are not found. In the Aćārānga Curņi, commenciog from the Sütrā "lajjamāņā pudhopasa' (Āyāro, Sü. 16, page 4) to the Sūtra 'Appege Sampamärae, Appege Uddawae' (Āyāro, Sū. 29, page 6), it is considered as Dhruvakandikā' (the one and the same text).
On the basis of the indications found in the Čurņi, we have adopted the three Sütras in the second Uddeśaka in the rest five Uddeśakas.
In place of Kumbhārāyatanamsi wā, in the Ćūrņia of the second Udde. saka (Sū. 21) of the cighth Adhyayana, many a word is found, e.g. 'uwattanagihe wā, gāmdeulie wā, kammagārasālāe wa, tantuwāyagasālāe wā, lohagarasālāe wā'. The Cūrnikāra further writes-Jaciyāo Sālā Sawwāo māniyawwão",
Here it appears that the word 'Kumbhārāyatanamsi wā' was added with many other words meaning 'Sālā' or house but, in the course of time due to the faulty scribing, all the other words were left out. It is not possible to decide the text-system on the basis of the Curņi only. This is why it has not been included in the text.
1. See - Ayaro, page 8, footnote no 2, page 11 ; footnote no. 2, page 14; footnotc
no 1, page 16; footnote no. 3, page 19; footnote no. 4. 2. Acaranga Curni, page 260 261 3. Acaranga Curni, page 261.
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We have completed the abridged text, too. The tradition to abridge the text was in vouge due to learning of the śruta by heart and making the scribing easy. Pandit Bećar Das Joshi had written to Acarya Tuisi, throwing light on this topic in an article, on 8th December 1966. He observes, "The traditional Jain Sramaņas considered the tendency to write and get written as sinful activities. They, nevertheless, adopted this path as an acception to safe-guard the scriptures. The less writing, the better, Taking this they, surely, tried to search out the way to reduce the sinful activity to the least for the safeguard of the scriptures. In the scarch of this path they found two novel words as 'Wannao' and 'Jāwa'. With the help of these two words, they could abridge thousands of Slokas and hundreds of sentences and their beginning was shortened as well as to deficiency occured in understanding the meaning of the scripture."
Threc reasons--the system to learn the śruta by heart, convenience by the script and the intention to write briefly, are probable to cause the abridgement of the text. It has undoubtly, caused no deficiency in the meaning, but it has marred the charm of the text. The difficulties of the reader have also increased. The Munis, having the whole Āgama literature learnt by heart, can make out the antecedents and precedents referred to by the words Jāwa' and 'Wannaga' but the class of Munis learning with the help of the manuscripts cannot do so. The text, having the references of Jāwa' and 'Wannaga', has not proved to be much beneficial to them. We, too have been experiencing this difficulty apparently. To solve this difficulty and bring back the beauty of the text Ācārya Tulsi, our Vāćană-head, desired that the abridged text be recompleted. We have accordingly, completed the abridged text in most places. To indicate that 'dot-marks' have been given. In the first and the second appendices, the tables to point out the places of completion in the 'Ā yaro' and the 'Ayara.cala' have been added.
According to Bećara Das Joshi, the text-abridgement was done by Devardhigani Kśamāśramaņa. He writes---"Devardhigaņi Kśamāśramana, while reducing the Agamas in writing, kept some important points in mind. Where ever he found similar readings he avoided the later one by using the words c.g. 'Jaha Uwawāie', Jaha Pannawanae' etc. to denote the omitted text. When some statement occured again and again in a work, he used the word “Jāwa' and wrote the last word of it refraining from the repetition, e. g. Näga Kumārā Jāwa wiharanti', 'Tena Kalena Jäwa Parisā Niggaya' etc."
1. Jain Sahitya ka Vrihat Itihas, page 81.
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The process of abridgement might have been started by Devar dhigani, but it developed in later period. In the specimens, available at present, the abridged text is not uniformal. A Satra has been abridged in one spécimen but written in its full version in the other. The commentators have also mentioned it in many places. In the Aupapatik Satra, for example, these two passages, "Ayapāyaṇi wa Jawa Anpayarain wa" and "Ayabandhanani wa'Jawa Annayaräin wa' are found. They were in the abridged form in the main. specimens the Vrittikära had, but their ful version too, was found in other specimens. The commentator himself has noted it'. Many a time, the scribes, according to their own convenience did not write the preceding text again others followed them in the later specimens.
SUYAGADO
We have adopted the text of the Sutra Krita depending not on one specimen only. It has been redeemed after the comparative study, based on the specimens used in the text-redemption, the Carni and the readings of the Vritti, and their critical review as well.
The system to write was little popular in ancient times. Almost all the scriptures were maintained traditionally learnt by heart. This is why the 'Ghola-Suddhi' (correctness of pronounciation) was much stressed upon. This was a pious duty of the Acarya to correct the seat of utterence of the disciples. The Daśäśrutaskandha Sûtra says-to become 'Ghosa-Sudhi-Karka" is one of the virtues of an Acarya. Special arrangement was there to maintain the text and the meaning in the original form. The Chedasütras throws full light on it,
Eight kinds of the Jänäćära have been enumerated. Of them, the three Acaras are concerned with the said arrangement. They are
1. (a) Aupapatika Vritti, patra 177.
(b) Pustakantare Samagramidam Sutradwayamastyeveti.
2. Dasasrutaskandha, Dasa 4.
3. Nisithabhasya, Gatha 8, part 1, page 6:
Kale vinaye bahumane, uwadhane taha aninhawane, wanjana-atthatadubhac, atthawidho nanamayaro.
4. Ibid, gatha 17, part 1, page 12:
Sakkayamattabindu Annabhidhanena wa witam Attham, Wanjeti Jena Attham, wanjanamiti bhannate suttam.
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1. Vyanjana-To maintain the language, vowel-marks, nasal points and words of the text of Satra, as it is.
2. Artha-To maintain the purport (meaning) of the sutra as it is.
3. Vyanjana as well as artha-To maintain the Sütra and its meaning both in the original form.
The Carpikira makes it clear with examples', 'Dhammoma ngalam mukkittham' is expressed in Prakrit language. To render this reading in Sanskrit 'Dharmo Mangalamutkṛistam' as such is a dialectical sin of Vyanjana.
In the same way, to utter 'Sawwam sawwajjam Jogam paććakkhaami' as 'Sawwesäwajje joge paććakkhami' by changing its vowels is a diacritical sin of Vyanjana.
likewise, to utter 'Namo arahantānani' as 'Namo arahantana' omitting the therepotent point of nasal sound and also to pronounce 'Namo aramhantapam adding the point of nasal sound with 'ra' when it is not there, is a nasal-point-change sin of Vyanjana.
To bring in the synonyms, in place of the original words of 'Dhammo mangalam mukkittham', such as Punam Kallans mukk osam is also a different-word-sin of Vyanjana.
The conclusion of all this account is to stress upon that the originality of language, vowel mark, point of nasal sound, word, word-number, and textorder must be maintained in all respects. Rules were laid down to expiate the sin against this arrangement. On changing the language, the vowelmark or the point of nasal sound one has to undergo the specified atonement. On doing the Sütra-Patha otherwise an expiation of four months followed.
In the conclusion of the topic, the Cürnikära writes"-A change of Satra causes a change of meaning, a change of meaning causes a change of
1. Nisithabhasya curni, Part I, page 12.
2. Ibid.
3. Nisithbhasya, Gatha 18, Curnibhasya 1, page 12. Suttabbeya atthabbeo, atthabheya caranabheyo, caranabheya amokkho. Mokkhabhawat dikkhadayo Kiriyabheda aphala bhawanti. Taha vanjanabhedo na kayawwo.
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conduct and the change of conduct makes the salvation impossible. In that case all the rites, such as Dikśă etc. become futile. A change of Vyanjana, therefore, be not done.
Likewise, a change of meaning also be not made. The meaning that is uncouth and not applicable be not carried out. On changing the meaning, an expiation for four months follows'.
Similarly, on changing the Sūtra and its meaning together, both the aforesaid expiations fall on.
A deep thinking had taken place to maintain the originality of the Sūtras and their meaning even in the period of composition of the Agamas. In the present Sūtra, it is clearly stated. A muni studying the work has been alerted that he in no way is set up a Sutra and its meaning differently or expound it otherwise. The Cūrņikāra annotates it thus". In no way a Sutra be dono otherwise. The meaning and that meaning only be carried out which is consistant with its own principle. The Vrittikara writess-A Sūtra be not added to intentionally or a Sútra or its meaning be not done otherwise.
From the aforesaid account it is learnt that it was keenly endeavoured to maintain the Sutra and its meaning in its original form. As a result, it has been maintained also to some extent. We can, nevertheless, not say that it has not been changed. It has been done and the reasons for it are also there, e.g.
1. Forgetfulness
1. Nisithbhasya Curni, part 1, page 13. 2. Ibid. 3. Sutrakrita 1/14/26.
No Suttamattha cakarcjja annam. 4. Sutrakrita Curni, page 296.
Na Sutramanyat praddhesena karotyanyathawa. Jaha ranno bhattansino ujjawalaprasno namarthas tamapi nanyatha kuryat; Jaba "Awantike Awantieke Yawanti tamtogo wipparmsapti'. Sutram sarwathaiwanyatha na Kartawyam,
arthavikalxastu swasiddhantavinuddho aviruddah syat. 5, Suttrarkitavitel, page 258.
Na ca Sutramanyat Swamativikalpa natah swarparatrayi Kuritanyatha wa suttram todartha wa sansarattrayitrana sito jantunam na vidadhita.
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2. Change of script 3. Assimilation of the coinmentary with the text.
4. Intervention of time and place.
When Silānkarsūri wrote his Vșitti on the "Sūtrakrita', he had its specimens and ancient commentary (Tika) both. In one place of the second Addhyayna of the second Srutāskandha, the reading was not similar to that of the specimens, and the reading, that was commented on, was not found consistant with that of any specimen. He, therefore, commented on the said passage honouring only one specimen.
We have adopted the readings of the Cūrni in some places. In comparision to that of the specimens and the VỊitti they appear more relevant.
In 2/6/45 the reading is ‘niho nisam'. It has been commented on in the Vțitti as 'ņiwo nisam'. We have adopted the reading of the Cūrni there?
. We have discussed the changes in the text and their causes under the footnotes. It was keenly endeavourcd in the Vedic tradition also to maintain the originality of the text of the Vedas. But in their texts, too, there have been timely violations. Dr. Vißwabandhu writes__-"It is a fact accepted by all that great pains, which kuow no parallel in the world history of literature, were taken in this country to maintain the texts of the Vedic literature in their original and correct form by learning them by heart with great care and utmost reverence during the past five thousand ycars. Nevertheless, as the scholars, preceding to us, inicidently found here and there as we have largely seen during our incessant research work for the past forty years, these works, too, could not be saved from the effects of time bound damages and insufficient human hurlings. Had it becn mostly the other way, truly, it would be an incredible miracle."
Continuing with the tradition of cramming and passing from one to the other age of script-change in the prolonged period. Some places of every work have deviated from their originality
1. Suttrakritavritti, page 79:
That ca pravah sutradarsesu nanabbidhani Suttrabi drisyante, na ca tika sambadhckapyasmabhiradarsah samuphabdhot e kamadarsamangikrityasmabhi
viwaranam kriyate. 2. See, Footnote on 2/6/45. 3. Akhilabharatiya praciya vidya Sammelan, Twentifourth gathering, Varanasi
1968, Mukhyadyaksiya speech, page, 8-9.
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THĀNAM
A word has different forms in Prākrit, and these different forms are used, too, in the Agamas. Some scholars, engaged in the editing work of the Āgamas, have stressed upon that the uniformity in the form of words should be brought up. We have not adopted this method of cditing. Although accepting the sameness of the sound 'na' and 'ra', only 'na' has been used in all the places, the principle to bring up uniformity in different forms everywhere has not been observed. In 3/373 two forms 'Sugati' and Suggati' are found; in 3/375 'Sogata', 'Sugata' and 'Suggata', three forms are found. We have adopted them as they are. The authors are frec in their usages. As they are not the bondsmen of the rule of uniformity, to try to bring uniformity in the editing-work does not seem desirable.
The Agamas contain the usages of different languages and syllable changes. In bringing up uniformity in them, the probability to forget the multiformity may arise. 'Wayenam' as well as 'Kamasā' both the forms are used. Andaya' as well as 'Andagā for 'Andajah' and 'Kammabhumiya' as well as "Kammabhūmigā' for "Karmabhumijah' both the forms are formed. To keep up the form as found in a particular place is not a fault of editing.
SAMAWÃO
The text redemption of this Sutra is based on three specimens and the Vritti as well. In some places other works, too, have been used to redeem the text. In the specimens of the 'Prakirna Samawāya' (Sutra 234) the reading "Assasene' is not found. This is the name of the father of fourth Cakrawarti. In the absence of it, the arrangement of further names becomes inconsistent. In the Sangraha Gathas of the said Sūtra, the name 'Padmottara' is in excess. It has been taken as a recension. The reading 'Assascne' is found in the Awaśvaka Niryukti (399). Basing on it *Assasenc' has been adopted as the text-reading.
In the Sangraha Gatha of the Prakirna Samawäya (Sūtra 230) BaldevaVasudeva's father's name are given. Basing on the Sthānānga (9/19) and the Awaśvaka Niryukti the amendment has been carried out. The name of the third Baladeva-Vasudeva's father is 'Rudda', but the manuscript of the Vritti of Samawävänga mentions it as 'Soma' instead of 'Rudda'. In fact, 'Rudda' should follow Soma'.
1. Sce, Samawao, painnaga samawao, Sutra. 230, the first footnote.
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In all the specimens of the Samawāya 30 (Sütra 1, gatha 26) it reads Sajjhayawāyam'. The vrittikära, too, explains it as 'Swadhyāyawādam'. But it is not relevent as far as the meaning is concerned. The said 'gātha' is found in the Daśāşrutaskandha (Sūtra 26) where the reading is 'Sabbhāwawäyam' instead of 'Sajjhayawayam'. The Vțittikära of 'Daśāsrutaskandha' has given its Sanskrit form as 'Sadbhāwa wādam'. On reviewing the meaning critically, this reading appears to be relevent.
1, See, Samawao, Samawaya 30, Sutra, 1, the second footnote of Sutra 230,
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Forward
The Classification of the Agamas
The most ancient part of the Jain literature is the Āgama. The Samawāyānga mentions two forms of the Āgama, such as, 1. Dwadasanga ganipitaka’ and 2. Caturadaśapūrwa?, In the Nandi, two divisions of the Śruta-Jyana (Agama) have been given. 1. Anga Pravişta and Angavāhya lhe accounts, found regarding the Adhyayanas of the Sadhus and Sadhwis (monks and nuns), pertain to the Angas and purwas, as
1. The readers of the eleven Angas beginning from the Sāmayika
Sāmáiyamāiyāin ekkarasa-angāin ahijajai (Antagaça, Prathama Varga). This statement is found regarding Gautama, the disciple of lord Ariştanemi.
Sāmāiyamáiyain ekkarasa angāin Ahijajai (Antāgada, Panćam Varga, Prathama Adhyayana). This statement relates to Padmavati, the disciple of lord Aristānemi.
Sāmāiyamãiyāin ckkarasa-angăin (Antagada, Astama Varga, Prathama Adhyayana). This statement pertains to Kāli, the disciple of lord Mahavira.
Sāmāiyamāiyain ekkarasa-angāin Ahijajai (Antagada Sasta Varga, 15th Adhyayana). This statement has been given regarding Atimuktakumara, the disciple of lord Mahavira,
2. The readers of the twelve Aogas
The statement regarding Jālīkumāra, the disciple of lord Ariştanemi, is given as such Bārasangi (Antagada, Caturtha Varga, Prathama Adhyayana).
1. Samawayanga, Prakirnaka, Samawaya, Sutra. 88. 2. Ibid, Samawaya 14, Sutra. 2. 3. The Nandi, Sutra. 43.
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3. The readers of the fourteen Purwas
Čauddasapuwwain ahijjai (Antagada, tritiya Varga, Navama Adhyayana). This is the statement found regarding Sumukhakumara the disciple of lord Aristanemi.
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Samaiyamaiyain Čauddasapuwwain ahijjai (Antagada, triya Varga, Prathama Adhyayana). This statement is found regarding Aniyasakumāra, the disciple of lord Ariştanemi.
There were three hundred and fifty Caturdaśa-pürw! munis of lord
Pārśwa.
There were three hundred éaturdașa- pürwi munis of lord Mahavira.
The division, Anga-Pravista and Anga-Vahya, have not been given in the Samawayanga and Anuyogadwara. This division first have been made. in the Nandi. The later sthaviras composed the Anga-Vähya. Many angavahyas had been composed before the composition of the Nandi and they were done by the catûrdasa-pürwi or daša-pürwi sthaviras. They were, therefore, taken as solemn as the Agama and two divisions were made of it such as, 1. Anga-pravişta and 2. Anga-Vahya. This division is not found in the Anuyogdwära (sixth century of the Vira-Nirwana). This was first done in the Naudi (tenth century of the Vira-Nirwana)
When the Nandi was composed, the Agama was classified threefold, 1. Parwa, 2. Anga-Pravista and 3. Anga-Vahya. What we have today is only Anga-Pravista and 'Anga-vahya'. The 'purwas' are extinct. Their extinction is a subject of delibration from the historical point of view.
PURWA
According to the Jaina tradition, the Purwa is the Aksaya-Kosa (in exhaustible lexicon) of the Śruta-Jyaña (word knowledge). All do not hold one and the same view about the meaning of the title and their composi tion. The ancient Adaryas hold that as they were composed before the 'Dwadasang they were given the title Purwa" But the modern, scholars
1. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 14.
2. Ibid, Sutra. 12.
3. Samawayanga vritti, Patra 101:
Prathamam Purwam tasya Sarwa pravacnat purwam Kriyamanatwat.
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view that the ‘Pūrwa' was the Śruta- Rasi of the tradition of lord Pārswa and preceding to Lord Mahavira, it was, therefore called 'Purwa'. Whatever view of the two is accepted, the conclusion is the same that the Purwas' were composed before the 'Dwadaśāngi' or the 'Dwādaśangi' is a later composition than the 'Purwas".
In the form the 'Dwādaśāngi' is now found, the 'Pūrwas' are assimilated. The twelfth Anga is 'Driştiwada'. One of its divisions is "Pūrwagata'. The fourteen 'Purwas' are included in it. The opinion that lord Mahāvira first composed the 'Purwagata Sruta', leads us to the conclusion that the forteen 'Purwas' and the twelfth Anga are one and the same. The 'Purwaśruta was very difficult to understand. The common people could not follow it. The Angas were composed for the benefit of less intelligent persons. Jinabhadra-gani Kšamāśramana says "The Dșiștiwāda contains all the word-knowledge (sabda-Jyaña). The eleven Angas, nevertheless, have been composed for the good of less intelligent people. The eleven Angas were studied only by those monks (Sadhus) who were not very intelligent. The intelligent munis studied the 'Pūrwas'. From the order of classification of the Agama, it is concluded that the eleven Angas are easier than Dţiştiwada or Purwas or have been in a different order from theirs.
According to tbe Digambara tradition the Kewalis became extinct after 62 years of Vira-nirwāņa'. After that, for a hundred years only SrūtaKewalis (Caturdaśa-Pärwis) were found. Beyond that for one hundred and eightythree years only Daśapūrvīs were found. And, later to them for a period of two hundred and twenty years only the eleven-Angadharas were found.3
The discussion, given above, makes it quite clear that so long as the Ācāra etc. Angas were not composed, the Sruta-Rasî of lord Mahavira was called 'Caudaha Purwaś or 'Dțiştiwada'. When the eleven Acara
1. Nandi, Malayagiri vritti, Patra 240.
Adye tu wyacaksate purwam purwagatasutrarthamarhan bhaste, Ganadhara api purwam purwagata Sutram Vira cayanti, Pascadaearadikam. Visesawasyaka Bhasya, Gatha 554. Ja-i-wi ya Bhutawa-e sawwassa waogayassa Nijjuhana Tahawi hu, dummehe
pappa itthi oyaro ya. 3. Jayadhawala, Prastawapa, Page 49.
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etc. Angas were composed, the Dristiwāda was given in the form of the twelfth Anga.
Though the two different accounts, such as, 'readers of the twelve Angas' and 'readers of the fourteen Purwas' are found, it cannot be said that the scholars in the fourteen Purwas were not scholars in the twelve Angas and vice-versa. Gautama Swami was called 'Dwādaśängavit. He was a *ćaturdaśa-purvī' as well as "Angadhara'. A 'śruta-kcwali' was somewhere called 'Dwadaśāngavit' and sometimes 'caturdaśa-pūrvi' as well.
As the eleven Angas are taken from or a collection of the Purwas, a 'caturdasa-pūrvi' is, of course, a 'Dwādaśangi' also. As the fourteen Purwas are incorporated in the twelfth Anga, a 'Dwādaśāngavit' too. We, therefore, reach this conclusion that the Āgama had only two ancient classifications 1. the Fourteen Purwas and 2. the eleven Angas. The 'Dwādasangi' had no independent standing. This is the title given to the Purwas and the Angas jointly.
Some modern scholars hold the Pūrwas, to be of the period of lord PärŚwa and the Angas of lord Mahāvira. But this view is not correct. The tradition of the Purwas and the Angas was prevelent at the time of lord Aristanemi and lord Pārswa too. That the Angas were composed for the use of less intelligent people has been told before. That the intelligence quotient of all the Munis at the time of lord Pārswa was equal is incredible. The intelligence quotients have always differed in each and every age. Considering from the psychological and practical view, we reach the conclusion that the necessity of the Angas prevailed in the order of lord PárŚwa too. To support this view that at the time of lord PärŚwa only the Purwas and not the Angas existed, no evidence is, thercfore, found. By common sense this fact is estabilished that the Purwas and the Angas were renovated according to the purport, language, style and necessity of the age in the order of lord Mahavíra. Fancy has, perhaps, played a main role to support the view that the Purwas were received traditionally from lord Pärswa and the Angas were composed in the tradition of Lord Mahāvīra. 3. Anga-Pravişta and Anga-Váhya
It is heard by all that the gañadharas Gautama etc., composed the Pūrwas and the Angas at the time of lord Mahāvira. A simple question
1. See the beginning of the preface. 7 Ittaradhyavana 2317
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arises if other Munis did not compose thc Agama works. There had been fourteen thousand desciples of lord Mahāvīra'. Of them seven hundred were 'Kewalīs' and four hundred 'Wādīs'. That they did not take part in the composition of the Āgamas does not seem credible. The Nandi says that the disciples of Lord Mahāvīra composed fourtcen thousand Prakirnakas'? besides the aforesaid 'Purwas' and 'Angas'. Nothing proves that the classification, such as 'Anga-Pravişta' and 'Aoga-Vābya' was done at that time. When the later Aćāryas compiled the works after the 'Nirwana' of lord Mabāvīra, the discussion was, perhaps, held to classify them under the Angamas or not and the question of their authenticity too, arose. After the discussion it was decided to classify the works, composed by the 'caturdasa-pūrvi' and the 'Dasa-pürvi' sthaviras, under the Agama but they were not considered authentic by themselves. Their authenticity depended on others. That they are consistent with the Dwādaśāngi was the touch-stone to give them the title of the Āgama. As their authenticity was dependent, the necessity was felt to keep them out of the class of the 'Anga Praviştà' and, in this content only, the 'AngaVabya' class of the Āgama took place.
Jinabhadragani Kşmașramana ascertains the kinds of 'Anga-Pravista and 'Anga-Vahya' on three grounds, such as
1. That which is composed by a gañadhara.
2. That which is expounded by a Tirthankara on the query of a ganadhara.
3. That which is pertaining to the firm-eternal truths, and is perpetual and permanent; and that Sruta only is entitled as "Anga-Pravista'.
Contrary to this 1. that Sruta which is composed by a Sthavira. temporary or suited to the times only is entitled as 'Anga-Vahya".
The main ground to differenciate the Anga-Pravişta from the Anga
1. Samawayanga, Samawaya 14, Sutra 4. 2. Nandi, Sutra. 78.
Coddaspa-i-onagasasahassani Bhagwa. Baddhamanassa, 3. Viscsavasyakabhasya, Gatha 552.
Gapahara-therakatham wa, Aesa. Mukka-wagarana-O wa. Dhuva-cala visesawa, Anganamgesu Nanattam.
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vähya is based on the difference of the person who has spoken it! The Agama delivered by Lord Mahavira and compiled by the ganadharas, is accepted as the basic Angas of the Śruta-Purușa. It is, therefore called the "Anga-Pravista,' According to Sarvárthsiddhi the speakers are of three kinds, 1. the Tirthankara, 2. the Sruta-Kewaii and 3. the Ārātiya?. The Āgamas Composed by the Ārātiya Aćāryas are regarded as 'Anga-Vähya'. According to Ācārya Akalanka, the Āgamas composed by the ArātiyaĀćārya reflect the meaning supported by the Angas'. They are, therefore, called the 'Anga-Vähyas.' The Anga-Vähya Agamas are as good as the Pratyanga or Upānga of the Śruta-purusa.
ANGA The twelve Agamas incorporated in the Dwādaśãngi are called Angas. The word 'Anga' is found in the literature of Sanskrit and Prakrit both. In the Vedic literature the works assisting the study of Vedas are given the title of Abga' 'They are six
1. Siksa--The work that expounds the rules of utterence of the words. 2. Kalpa-The scripture that expounds the vedic rites and rituals in an
order and agreement. 3. Vyakarana--The scripture that expounds the theories of morphology
and meaning of the words. 4. Nirukta-The scripture that expounds etamology of the words. 5. Chandas - The scripture that expounds the theories of morpheme to
recite the Mantras. 6. Jyotis--The scripture that expounds the theories to find correct
time for the rites of Yajna-Yäga etc. The Vedas have been personified in the Vedic-literature. Accordingly the Sikşā' has been regarded as nose, the kalpa' as hands, the "Vyakarana' as mouth. the "Nirukta' as ears, the Chandas as feet and the Jyotis as eyes of the Veda-person. They are therefore, called the parts of the body of Vedas in the Pali-literature, too, the word 'Anga' has beenu sed. At one place the Buddha-Vaćanas' have been called 'Nawānga' and 'Dwadasānga' at the other.
1. Tatwartha-bhasya, 120.
Waktri-viscsad dwaividhyam. 2. Sarvarthasiddhi. 1/20
Trayo waktaran - Sarvajna Tirthankarah, itaro wa Srutakewali Aratis asceti. 3. Tattwartha - Rajavaritika, 1/20.
Aratiayacarya Kritangarthapratyasannarupamangavahyam. 4. Papipiyasiksa, 41, 12.
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Nawanga
1. Sutta-The sermons of lord Buddha in prose. 2. Geyya - The mixed portion of prose and verse. 3. Vaiyyakaraga - The works containing explanation. 4. Gatha – The works composed in verse. 5. Udana-The gistful and affectionate expressions deliverud from the
mouth of lord Buddha. 6. Itibuttaka-Small lectures begianing with the words, 'Lord Buddha
said thus'. 7. Jataka-The stories of the former births of lord Buddha. 8. Abbbutadhamma- The work that explains the mysterious things of
the superhuman powers born of the "Yoga'. 9. Vedalla-Those sermons which have written in the form of
dialogues. Dwadasanga
1. The Sutra, 2. the Geyya, 3. the Vyakarane, 4. the Gatha, 5. the Udana, 6. the Awadana, 7. The Itivșittáka, 8. The Nidura, 9. the Vaipālya 10. The Jataka, 11. the Upadeśa-dharma and, 12. the Adbhuta-dharma.?
The Jaināgama has been divided into twelve Angas
1. The Aćara 2. The Sūtrakṣita 3. The Sthāpa 4. The Samawāya 5. The Bhagawati 6. The Jynātā Dharmekatha 7. the Upasakadaśa 8. the Antaksita 9. the Anuttaro papātika 10. the Prasaa-Vyākarana 11. the Vipāka and 12. the Dţiştiwada.
The word 'Anga' has been used in the three chief Indian philosophical schools. The main works of the Vedic and Buddhist literature are the Vedas and the Pitakas respectively. Nowhere the word "Anga' has been added to them. The main works in the Jain literature have been classified as the Ganipitaka. The Ganipitaka has the twelve Angas-Duwälasange ganipitage
1. Saddharma Pundakrika Sutra, page 34. 2. Buddha Sanskrit Grantha 'Achisamayalankar' Kitika, Page, 35.
Sutrama Geyam Vyakaranam, Gathoanavadacakam. Itibrittakam Nidanam, Vaipulayam ca Sajatakam.
Upadesadbhutau dharman, Dwadasangamidam vacah. 3. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra 88.
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The personification of "Sruta-Purusa' too, is found in the Jain-tradition. The twelve Agamas, Ācara etc., are like the parts of the 'Gruta Puruşa'. They are, therefore, called the twelve Angas. So the Dwādaśānga becomes the adjective of the Gaņipitaka and the Śruta-Purușa' both.
AYĀRO
The title
This Agama is the first Anga of the 'Dwādaśāngi. As it contains the account of the conduct (Alära), the title 'AYĀRO' It has two Srutaskandhas-1. AYĀRO, 2. ĀYĀRAČULA
The Contents
The Samawâyānga and the Nandi give an account of the Āćārānga. According to that the present Sutra explains the Acara, Gocar. Vinava Vainavika (fruit of vinaya), (Utthitãsana, Nişaņāsana and Sayitäsana), Gamana, eamkramana, Dose of food etc.application of Yoga in self study ste language, Samiti, Gupti, Sayya, Upadhi, Bhakta-Päna (edibles and
Udgama-Utthana, the purity of 'cşņā (motives) etc. the discernment of taking Suddhāśuddha, Vpita, Niyama, Tapas, Updhan etc.
Akarya Umāswāti has expounded the topics of every Adhyayana in the Ācārāpga in brief That is given in the order as under :3
1. Sahajivakāya Y@tnã. 2. Renunciating the glory of the wordly off-springs. 3. Winning over of the Parişahas, such as cold-hot etc. 4. Vodaunted Samyaktwa. 5. Udvegas of the world, 6. The means of nullifying the 'Karmas' (deeds). 7. The endeavour to `Vaiyavritya'. 8. The way to penance.
1. Mularadhta 4/599, Vijayodaya :
Srutam Purusah Mukhcaranadyangasthaniyatwadangasabdenocyate. 2. (a) Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 89.
(b) Nandi, Sutra. 80, 3. Prasamarati Prakarana,114-117,
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9. Renunciation of passion for woman. 10. Rules to receive the aims. 11. Bed without woman, Creature, eunuch et. 12. Purity in movement. 13. Purity of language. 14. Method of begging cloth. 15. Method of begging bowls. 16. Purity of habit (Avagraha). 17. Purity of Place (Sthāna). 18. Purity of 'Visadya'. 19. Purity of "Vyutsarga'. 20 Renunciation of attachment to sound 21. Renunciation of attachment to form. 22. Giving up ‘Parakriya'. 23. Giving up Anyonya-kriya'. 24. Steadfastness to the Five Mahāvsitas. 25. Libration from 'Sarvasangas' (all associations).
The Niryuktikāra has enumerated the topics of the nine Adhyayanas ol Brahmacarya as under :
1. Satya Parinna-Jiva Samyama. 2. Loga Vijaya-Knowledge of bondage and libration. 3. Siosanijja--Equanimity of pleasure and pain. 4. Sammatta–Right vision. 5. Loga-Sara-Renunciation of worthless and adoration of the Ratna
trayi, worthy in the world.
Acaranga Niryukti, Gatha 33-34 : Jiyasamjamo a logo jaha bajjhai jaba ya am pajabiyay vam, Suhadukkhatitikkhaviya samimattam logasaro ya. Nissangaya ya chatthe mohasamuttha parisahuwasagga,
Nijjatam atthamac nawame ya jinena evamti. 2, Tatwartha Rajavarttika, 1/20.
Acare carya-vidhanam sudhyastaka paniasamiti-triguptivikalpam kathyate,
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6. Dhuya-non-attachment.
7. Mahaparinna-Enduring properly the Parisahas and Upsargas born of 'Moha'.
8. Vimokkha-Proper observanes of 'Niravana' (the final state). 9. Uvahanasuya-Explanation of the conduct observed by lord Maha
vira1.
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Acarya Akalanka bolds that the tota! matter of the Adaränga is concerning the 'Carya-Vidhana' (mode of behaviour and conduct). While Aparajit Suri opines that it is the ascertainment of the conduct of the 'Ratna-tray?".
SÜYAGADO
The Title
This Agama, the second part of the Dwadasangi, is given the title as 'Suyagado. The Samawaya, the Nandi and the Anuyogadwär, all the three Agāmas have this title only for it. Bhadrawāhu-Swami, the Niryuktikära has given three titles of this Agama according to its tributes."
1. Sütagada-Sütakrita
2. Suttakada-Sütrakrita
3. Sayagada-Soćakrita
Originally this Agama is 'Süta' (hails from) by lord Mahavira and was given the form of a work by ganadhara. This is, therefore, entitle as 'Sutakrita'.
As the truth in it has been ascertained according to the 'Satra", it is 'Sutrakrita'.
As the 'Sacana' of 'Swa' and 'Para' Samaya has been given in it, it is called 'Suda-krita."
1, Mularadhna, Aswasa 2, Sloka 130, vijayodaya:
Ratnatrayacarana nirupanaparataya prathamabhangamacare sabdenocyate.
2. (a) Samawao, Paissagamawao, Sutra. 88.
(b) Nandi, Sutra. 80.
(c) Anuogadwarain, Sutra. 50.
3. Sutrakritanga-alryukti, Gatha 2:
Sutagadam, suttakadam, suyagadam cewa gonna-in.
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'Süta', 'Sutta' and 'Saya' are as a matter of fact, the Prakrit forms of 'Sutra' only. These different formations led to the imagination of the three attributive titles.
Originally, all the Angas were delivered by lord Mahavira and brought into a composed form by Ganadhara. Then, how can this Agama only be called 'Sütrakrita"? Similarly, the second title, too, is common to all the Angas. The third is the significant basis of the title of this 'Agama'. As the conduct has been ascertained in the context of a comparative preception (Sūtrna) in this Āgama, it is concerned with 'Suéana'. The Samawiya and the Nandi clearly state this
Sayagade nam sasamayasuhajjanti, Parasamaya Sühajjanti sasamayaparasamaya suhajjanti. What is preceptive is called a 'Sutra'. The background of this Agama mainly consists of preceptive element. Its title is, therefore, 'Sutrakrita".
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Another thought, which seems to touch the "reality more closely, can be put forth regarding the title 'Sutrakrita'. The Dristiwada is five fold-
Parikarma
1.
2. Sutra
3.
4.
Parwägata 5. Calika
Parwanuyoga
According to Acarya Virasena the Sutra has an account of other philosophers. As this Agama was composed on that basis only, it was given the title 'Sütrakrita. This meaning seems to be more logical than the other etomological meanings of the word "Sütrakrita'. The 'Suttagada and the 'Suttanipata of the Budhists seem to be identical in their titles.
Anga and Anuyoga
This Agama has the second place in the Dwadasangi. There are four kinds of Anuyoga-
1. Caranakaranänuooga.
2.
Dharmakathānuyoga.
3. Ganitänuyoga.
4.
Drawyanuyoga.
1. (a) Samawao, paissagasamawao, Sutra 90.
(b) Nandi, Sutra. 82.
2. Kasayapahuda, Part 1, page 134.
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The Curņikāra holds that this Āgama is 'ćaranakaraṇānuyoga (treatise on conduct). Silänkasűri has classified it under Drawyānuyoga' (treatise on substances). According to him the Ācārānga is primarily a čaraņakaranayoga while 'Sūtrakritānga' is primarily a 'Drawyānuyoga",
The Samawāya and the Nandi give an account of the 'Dwādaśängi." At the end of the account of the Angas, the lines read 'ewam carņakaranaparuwanayā'. Abhayadeva Súri connotes the meaning of 'carana' as Sramaņa-dharma' and of Karana' as 'Pinda-vićuddbi, Samiti etc.'
The currikara has regarded the Kalikasrata as a 'caraṇakaranayoga' and the 'Driştiwäda' as a 'drawyanuyoga'.'
The Dwadasangi primarily expounds the Driştiwāda, treatise on substances and secondarily the code of conduct. The Currikara legimately regards this Āgama primarily as a treatise on the code of conduct while the Vrittikāra lying stress upon its ascertainment of Dravya (substance), calls it Dravyašastra (a treatise on substance). Both of these classifications have a dialectical variation.
THANAM The title
This Agama is the third part of the Dwādaśāngi. It sets up the Jiva, Pudgala etc., in number-order. Hence the title , Thanam'. The Contents
Swa-samaya (Achat-philosophy), Para-Samaya as well as swa-samaya and Para-samaya both have been set up in this Agama. The Jiya and the Ajīva, the Loka and the Aloka have been founded here. 5
One-ness of the Jiva and its sevarality, according to the views of the 'Sangraha Naya' and the "Vyavahāra Naya,' have been expounded
1. Sutrakritainga Curni, page 5.
iha carananu-o-gena adhikaro. 2. Srirakritangaritti, page, 1.
Tatracaranga carnakaranam pradhanyena Vyakhyatam, adhuna awasara yatam
drawya pradhanyena sutrakritakhyam dwitiyamangam Vyakbyatumarabhyate. 3. Samawayangayritti, Patra 102.
Caranam - Vratasramanadharma Samyamadyanekavidhan. Karanam-Pindavisuddhi Samityadyaneka vidham. Sutrakritanga CursiKaiyasuyam caranakarananuyogo isibhslottar ajjhayanani dhammanuyogo,
Surpannattadi ganitanuyogo; ditthiwado dawwanujogotti. 5. Samawao, painnagasamawao, Sutra. 92
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in it. According to the Sangraha Naya, the Jiva is one and the same far as the soul is concerned. From the view point of the 'vyavahāra-naya' each and every Jiva is parted with, i.e. it is divided into two parts according to the knowledge and appaerance, into three parts according to the 'Karma-letna' or 'Phrowge-utpāda' and 'Vināśa', into four parts because of its wandering in the four-fold motion; into five parts from the view point of Pariņāmikādi' five states; into six parts due to the accession to the six directions, such as the East, West, North, South, up-ward and down-ward at the time of transgression to other birth; into seven parts according to the seven kinds of 'Syādasti-Syádnāsti'; into eight parts according to the eight *Karmas'; into nine parts as it changes into the aine substances; and into ten parts from the view point of the *Prithivi-Kāyika', 'Jala Kāyika', 'Agni-Käyika', 'Wāyu-Kāyika', 'Pratyeka Vanaspati-Kāyika', 'Sadhārana Vanaspati-Káyika' species having two organs, species having three organs, species having four organs, and species having five organs. Likewise, this Agama gives an account of one-ness of "Pudgala' etc. and their various Paryāyas' (modifications) counting from two to ten. From the view of 'Paryāyas', one and the same element parts with into innumerable and unlimited parts, and, from the view point of the matter (Dravya), these innumerable parts conform into one and the same element. This exposition of conformity and deformity is well found in this Agama.
Samawão The title
The Agama is the fourth part of the 'Dwädaśāngi' having the title "Samawao'. The substances, Jiva-Ajiva etc., have been put into divisions or brought down properly in this Agama, therefore, the title “Samawão'. According to the Digamber literature, this Agama speaks of similarity of the Jivadi substances therfore, called the 'Samawão'. The 'Samawao'
1. Kasayapahuda, part 1, page 123. 2. Samawao-Vrithi, patra 1,
Samit-Samyaka avetyadhikyena ayanamayah Paticchedo Jivajivadi-vividhapadartha Sarthasya yasaminnasan Samawayah Samawayanti wa, Samawasaranti Samuilanti nanawidha Atmadayo Bhawa
Bhawa abhidheya.aya Yasminnasan Samawaya iti. 3. Gommatasara Jivakanda Jiyaprabodhni Tika, gatha 356.
**Sam-Sangrahena Sadrisya-Samanyena Avayante joayante jivadipadartha dravya kalabhavan a sritya asmitnniti 'Samawayangam. Nandi, Sutra. 83
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gives an account of the 'Dwadasangi". And, as it is the fourth part of the 'Dwadasangi', it narrates the 'Samawão, too.
The Nandi-Satra discusses the 'Dwadasangi in order. The table of contents of the 'Samawão' has been given in it as under:
1. The description of the Jiva-Ajiva, Loka-Aloka and Swa-Samaya as the well as Para-samaya.
2. The evolution of the number beginning from one to hundred.
3. The account of the Dwadasanga ganipitaka.
According to the 'Samawayanga' the table of contents of the 'Samawa-o' is as follows:
1. The description of Jiva-Ajiva, Loka-Aloka and swa-samaya as well as Para-samaya,
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2. The evolution of the number beginning from one to hundred
3. The account of the 'Dwadasanga-gani- pitaka".
4. Áhära
5. Uéchwäsa
6. Lesya
7. Awasa
8. Upapāta
9. Čyawana
10. Awagaha
11. Vedanä
12. Vidhana
13. Upayoga
14. Yoga
15. Indriya (organs)
16. Kaşaya
17. Yoni
18.
Kulakara
1. Se kim tam samawae nam jiva samasijjanti, ajiva samaanjsa jti jivajiva samasijjanti.
Sasamae samasijjai, para-samaye samasijjai, sasamaya para sama-e samasijja-i. Loc sa masijiai, aloc samasijjai, lo-a-loe samasijjai, samawaenam ega-i-yanam eguttariyanam thanasaya-niwaddhiyanam bhawanam paruwana adhhawijja-i duwalasa vihassa ya ganipidagssa pallawagge samasijja-i.
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19. Tirathankara 20. Ganadhara 21. Cakrawarti 22. Baladeva-Vasudeva!.
A comparative study of both the tables of contents makes it clear that the table of contents given in the Nandi is a brief one, and that of the 'Samawa-o' large. The volume of the Sūtra, too, becomes short and long according to the tables of contents.
That the 'ekoitarika Vriddhi' (Increasing one by one) takes place upto hundred is mentioned in both the accounts. In either of them, there is no mention of the 'Anekottarika Vriddhi'. The Anekottarika Vriddhi has not at all been mentioned in the Nandi Čūrni, Haribhadriya Vritti and the Malaya Giriyavritti, all the three Abhayadeva Sūri has discuss the Anekottarika Vriddhi in his Vșitti of Samawāyānga. According to him, the Ekottarika Vșiddhi takes place upto huodred and beyond that the Anekottarikā Vriddhi.2
It appears that the Vșittikāra has discussed it not on the account given in the 'Samawāyānga' but on the text then available to him.
On reviewing both the accounts, two questions arise
1. Is not the present Samawāyānga different from the account of the Samawāyānga given in the Nandi ?
2. Is the present Samawāyānga is of the Vaćna by Devardhigani ? If so, why then such a variation in both the accounts of the 'Sama wäyānga'?
In reply to the first question, it can be said that 'Dwādasānngi' is the final content of the Samawāyānga-Sutra according to the account, relating to the Samawāyānga, given in the Nandi. Many a content has been expounded beyond the 'Dwadaśangi in the present Samawāyānga. It is therefore, established that the present volume of the 'Samawāyānga' is different from that of the account of the Samawāyanga given in the Nandi.
1. Samawa-o, pa-i-nnagasawawo, Sutra. 92. 2. Samawa-o Vritts, patra 105.
*ca sabdasya canyatra samband hatdkottarika anekottarika ca, tatra satam yawa tekottarika parata gnekottariketi,
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Difficult it is to give an assertive answer to the second question. So much, nevertheless, can be said that there had been various Vāćanās of the Āgamas. This is why a mention of various Väćanäs (Paritcā Vāyaṇā) has been made while giving the account of each and every 'Anga'. Abhayadeva Sūri gives a mention of the large (Brihat) Vāćanā of the Samawäyānga! From it, this may be inferred that the Nandi gives an account of the Samawāyānga relating to the short "Väćanä.'
It is established from the Vțitti written by him, that Abhayadeva Súri had with him various Vāćanās of this Sutra,
There can be two likelihoods regarding the enlarged edition of the 'Samawāyāaga.'
1. That this Sutra is based upon the Vāćanā different from that of the Vāćanā of Dewardhigari,' or 2. That the portions beyond the Dwadasāngi' have been added to it after 'Devardhigani'. Had this Sūtra depended on some different 'Väćanā,' there would have been some tradition mentioned. This agelong traditional mention has been coming down that the Jyotis- Kanda is based upon the 'Mathuri Vačana'. Had the present Samawāyānga, too, been based on the Mathuri Vaćanā, there would have been some traditional mention of it.
The first likelihood lacking the probablity of its support, the second likelihood gains the ground. But it too, is refuted by the Bhagwati, and the Sthânănga, The Bhagwati refers to the final part of the Samawāyānga for the full account of Kulakar, Tirathankar ctc. Likewise, the final part of the Samawāyānga has been referred to for the full account of the BaldevaVasudeva by the Sthānănga also“. It is, therefore, obvious that the appendix
1. (a) Samawao Vritti, Patra 58 : Brihadvacanayamanantaroktamatisayadwayam
cradhi yate. (6) Ibid, Patra 69:
Brihadvacanayamidamanyadatisayadwayamadhiyate. 2. Samawao Vritti, Patra 144 : Vacanantaretu paryasana Kalpo tasramentyabhi
hitan. 3. Bhagwati Satara 5; Uddesaka 5. 4. Sthananga, 9/19-20.
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was added in the time of Devardhigani only.
It is strange that one and the same editor gave two different accounts in the Samawäyänga and the Nandi) of one and the same Āgama.
There were two main Vācanās, the Māthuri and the Vallabhi. There were many other secondary Vācapās also. This is why there are many different readings. These different readings, probabily occured on adding the explanation or appendix portions. This can well be inferred that the later part of the Dwādasāngi in the Samawayānga is its appendix. The account of the appendix was added to the account of the Samawāyānga with the result that its table of contents swelled more than the table of the Samawāyānga found in the Nandi. There is a summary of eleven stenzas of the "Prajñāpna' in the appendix. It is a matter of investigation why they were added here?
Accomplishment of the work
In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed.
For the editing of this Agama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Āgamic literature bis intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualitics of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction.
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I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples.
On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord.
Anuvrata Vihar
Acharya Tulasi
Delhi
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समवानो पढमो समवाओ
सू० १-४६
पृ० ८२७-८२६ उक्खेव-पदं १, आय-आदि-पदं ४, जम्बुद्दीव-पदं २२, नरय-पदं २३, जाणविमाण-पदं २४, सव्वदसिद्धमहाविमाण-पदं २५, नक्खत्त-पदं २६, ठिइ-पदं ३०, आणपाण-पदं ४४, आहारटू-पदं ४५, सिद्धि-पदं ४६ ।
बीओ समवाओ
सू०१-२३
पृ०८२६-८३० दंड-पदं १, रासि-पदं २, बंध-पदं ३, नवखत्त-पदं ४, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं २१, आहारट्ट-पदं २२, सिद्धि-पदं २३ ।
तइओ समवाओ
सू० १-२४
पृ० ८३०-८३१ दंड-पदं १, गुत्ति-पदं २, सल्ल-पदं ३, गारव-पदं ४, विराहणा-पदं ५, नक्खत्त-पदं ६, ठिइ-पदं १३, आणपाण-पदं २२, आहारटु-पदं २३, सिद्धि-पदं २४ ।
चउत्थो समवाओ
सू०१-१८
पृ०८३२ कसाय-पदं १, झाण-पदं २, बिगहा-पदं ३, सण्णा-पदं ४, बंध-पदं ५, जोयण-पदं ६, नक्खत्त-पदं ७, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं १६, आहारटु-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ .
पंचमो समवाओ
सू०१-२२
पृ०८३३-८३४ किरिया-पदं १, महन्वय-पदं २, काम गुण-पदं ३, आसबदार-पदं ४, संवरदार-पदं ५, निज्जरठाण-पदं ६, समिइ-पदं ७, अत्थिकाय-पदं ८, नक्खत्त-पदं ६, ठिद-पदं १४. आणपाण-पदं २०, आहारट्र-पदं २१, सिद्धि-पदं २२ ।
छ8ो समवाओ
सू० १-१७
पृ० ८३४-८३५ लेसा-पदं १, जीवनिकाय-पदं २, तवोकम्म-पदं ३, समुग्घाय-पदं ५, अत्युग्गह-पदं ६, नक्खत्त-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १५, आहारटु-पदं १६, सिद्धि-पदं १७ ॥
सत्तमो समवाओ
सू०१-२३
पृ० ८३५-८३६ भयट्ठाण-पदं १, समुग्धाय-पदं २. महावीर-पदं ३, वासहरपव्वय-पदं ४, बास-पद ५,
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आहार द्व-पदं
२२,
कम्म-पदं ६, नक्खत्त-पदं ७, ठिइ-पदं १२, आणपाण-पदं २१, सिद्धि-पदं २३ 1
अट्ठमो समवाओ
सू० १-१८
पृ०८३७-८३८ मयट्टाण-पदं १, पक्यणमाया-पदं २, चेइयरुक्ख-पदं ३, जंबू-पदं ४, कूडसामलि-पदं ५, जंबुद्दीव-पदं ६, समुरधाय-पदं ७, गण-गणहर-पदं ८, नक्खत्त-पदं । टिइ-पदं.१०, आणपाणपदं १६, आहारट्ट-पदं १७, सिद्धि-पटं १८ ।
नवमो समवाओ
सू० १-२०
पृ० ८३८-८४० बंभचेर-गुत्ति-पदं १, बभचेर-अगुत्ति-पद २, वंभचेर-पद ३, पास-पद ४, नवखत्त-पद ५, तारा-पदं ७. मच्छ-दं ८, भोम-पदं, सुधम्मसभा-पदं १०, कम्म-पदं ११, ठिइ-पदं १२, आणपाण-पदं १८, आहार-दं १६, सिद्धि-पदं २० ।
दसमो समवाओ
सू०१-२५
पृ० ८४०-८४२ समण-धम्म-पदं १, चित्तसमाहि-ट्ठाण-पदं २, मंदरपव्वय-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, वासुदेवबलदेव-पदं ५, नक्खत्त-पदं ७, रुख-पदं ८, ठिइ-पदं है, आणपाण-पदं २३, आहारटू-पदं २४, सिद्धि-पदं २५
एक्कारसमो समवाओ
पृ० ८४२-८४३ उवासगपडिमा-पदं १, जोइसंत-पदं २, जोइस-पदं ३, गणहर-पदं ४, नक्खत्त-पदं ५, विमाण-पदं ६, मंदर-वय-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १४, आहारट्र-पदं १५, सिद्धि-पदं १६ ।
बारसमो समवाओ
पृ०८४३-८४५ भिक्खूपडिमा-पदं १, संभोग-पदं २,कितिकम्म-पदं ३, विजयरायहाणी-पदं ४, बलदेव-पदं ५, मंदरपब्वय-पदं ६, जंबूदीव वेश्या-पदं ७, राइ-पदं ८, दिवस-पदं , ईसिपब्भार-पदं १०, ठिइ-पदं १२, आणपाण-पदं १८, आहारट्र-पदं १६, सिद्धि-पदं २० ।
तेरसमो समवाओ
सू०१-१७
पृ०८४५-८४६ किरियाठाण-पदं १, विमाणपत्थड-पदं २, विमाण-पदं ३, जाइकूलकोडी-पदं ५, पुव्व-पदं ६, पओग-पदं ७, सूरमंडल-पदं ८, ठिइ-पदं ६. आणपाण-पदं १५, आहारटु-पदं १६, सिद्धिपद १७॥
चउद्दसमो समवाओ
सू० १-१८
पृ० ८४६-८४८ भूअग्गाम-पदं १, पुव्व पदं २, महावीर-पदं ४, जीवट्राण-पदं ५, भरहेरवय-पदं ६, रयण-पदं ७, महानई-पदं ८, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १६, आहारट्र-पदं १७, सिद्धि-पदं १८॥
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८६
पण्णरसमो समवाओ
पृ०८४८-८४६ परमाहम्मिय-पदं १, णमि-पदं २, धुवराहु-पदं ३, नवखत्त-पदं ५, दिवस-पदं ६, राइ-पद्रं ७, पूव्व-पदं ५, पोग-पदं ६, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं १६, आहारटू-पदं १७, सिद्धिपदं१८॥
सोलसमो समवाओ
प० ८५०-८५१ गाहा सोलसग-पदं १, कसाय-पदं २, मंदर-पवय-पदं ३, पास-पदं ४, पृथ्व पदं ५, चन्म-लिपदं ६, उस्सेहपरिवुढि-पदं ७, ठिइ-पद ८, आणपाण-पदं १४, आहारद्व-पदं १५, सिद्धिपदं १६ ।
सत्तरसमो समवाओ
सू० १-२१
पृ० ८५१-८५३ असंजम-पदं १, संजम-पदं २, माणुसुत्तर-पव्वय-पदं ३, आवास पव्यय-पदं ४, लवणसमुद्दपदं ५, चारण-पदं ६, उप्पाय-पव्वय-पदं ७, मरण-पदं ६, कम्म-पदं १०, ठिइ-पदं ११, आणपाण-पदं १६, आहारटु-पदं २०, सिद्धि-पदं २१ ।
अट्ठारसमो समवाओ
सू० १-१८
पृ० ८५३-८५४ वंभ-पदं १, तित्थयर-पदं २, अट्ठारस-ठाण-पदं ३, आयार-पदं ४, लिवि-पदं ५, पुव-पदं ६, धूमप्पभा-पदं ७, दिवस-राइ-पदं ८, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १६, आहारटु-पदं १७, सिद्धि-पदं १८।
एगणवीसइमो समवाओ
सू०१-१५
पृ० ८५५-८५६ णायज्झयण-पदं १, सूरिय-पदं २, सुक्क-पदं ३, जंबुद्दीव-कला-पदं ४, तित्थयर-पदं ५, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १३, आहारट्र-पदं १४, सिद्धि-पदं १५।
वीसइमो समवाओ
सू० १-१७
पृ० ८५६-८५७ असमाहिट्राण-पदं १, तित्थयर-पदं २, घणोदहि-पदं ३, देव-पदं ४, कम्म-बंध-ठिइ-पदं ५, पूब्द-पदं ६, ओस प्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १५, आहारट्र-पदं १६, सिद्धि-पदं १७ ।
एक्कवीसइमो समवाओ
सू० १-१४
पृ० ८५७-८५८ सबल-पदं १, कम्म-पदं २, ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं ३, ठिइ-पद ५, आणपाण-पदं १२,
आहारटु-पदं १३, सिद्धि-पदं १४॥ बावीसइमो समवाओ
सू०१-१४
पृ० ८५६-८६० पीसह-पदं १, दिदिवाय-पदं २, पोरगलपरिणाम-पदं ३, ठिइ-पदं ४, आणपाण-पदं १२, आहारटू-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ ।
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१०
तेवीइसमो समवाओ
सू० १.१३
पृ०८६०.८६१ सूयगडझयण-पदं १, जिण-पदं २, तित्थकर-पुत्वभव पदं ३, ठिइ-पदं ५, आणपाण-पदं ११, आहारटू-पदं १२, सिद्धि-पदं १३ !
चउव्वीसइमो समवाओ
पृ० ८६१-८६२ देवाहिदेव-पदं १, चूल्लहिमवंत-पदं २, सइंद-देवाण-पदं ३, सरिय-पदं ४, महाणदी-पदं ५. ठिइ-पदं ७, आगपाण-पदं १३, आहारटु-पदं १४, सिद्धि-पदं १५ ॥
पणवीसहमो समवाओ
पृ०८६२-८६४ भावणा-प१, तित्थयर-पदं २, दीहवेयड्ढ-पदं ३, आवास-पदं ४, आयार-पदं ५, कम्मवंधपदं ६, महाणदी-पदं ७, पुव्व-पदं ६, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं १६, आहारटु-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ 1
छव्वीसइमो समवाओ
सू०१-१६
पृ०८६४-८६५ आगम-पदं १, कम्म-पदं २, ठिइ-पदं ३, आणपाण-पदं ६, आहारट्ट-पदं १०, सिद्धि-पदं ११ ॥ सत्तावीसइमो समवाओ
सू०१-१५
पृ० ८६५-८६६ अणगारगण-पद १, नक्खत्त-पदं २, नक्खत्तमास-पदं ३, देवलोयपदं ४, कम्म-पदं ५, सरिय
पदं ६, ठिइ-पदं ७, आणपाण-पदं १३, आहारट्ट-पदं १४, सिद्धि-पदं १५1 अट्ठावीसइमो समवाओ
सू० १-१५
पृ० ८६७-८६६ आयारपकप्प-पदं १, कम्म-पदं २, णाण-पदं ३, आवास-पदं ४, कम्म-पदं ५, ठिइ-पद ७. आणपाण-पदं १३, आहारट्ठ-पदं १४, सिद्धि-पदं १५॥
एगणतीसइमो समवाओ
पृ०८६६-६७० पावसयपसंग-पदं १, मास-पदं २, चंददिण-पदं ८, कम्म-पदं ६, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं
१६, आहारटु-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ । तीसइमो समवाओ
पृ० ८७०-८७४ मोहणीयठाण-पदं १, गणहर-पदं २, अहोरत्त-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, इद-पदं ५, पास-पदं महावीर-पदं ७, आवास-पदं ८, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १४, आहारट्र-पदं १५, सिद्धिपदं १६।
एकतीसइमो समवाओ
सू०१-१४
पृ० ८७४-८७५ सिद्धाइगुण-पदं १, मंदर-पव्वय-पदं २, सूरिय-पदं ३, अभिवडिढय-मास-पदं ४, आइच्चमास-पदं ५, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १२, आहारष्ट्र-पदं १३, सिद्धि-पदं १४।
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बत्तीसइमो समवाओ सू० १-१४
पृ० ८७५-८७६ जोगसंगह-पदं १, देविंद-पदं २, तिस्थयर-पदं ३, आवास-पदं ४, नक्खत्त-पदं ५, नट्ट-पदं ६, ठिइ-पदं ७, आणपाण-पदं १२, आहारट्र-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ ।
तेत्तीसइमो समवाओ
सू० १-१४
पृ० ८७७-८७६ आसायणा-पदं १, भोम-पदं २, महाविदेह-पदं ३, सूरिय-पदं ४, ठिइ-पदं ५, आणपाण-पद
१२, आहारटु-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ । चोत्तीसइमो समवाओ
पृ० ८७६-८८१ बुद्धाइसेस-पदं १, चक्कवट्रिविजय-पदं २, दीहवेयड्ढ-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, आवास-पदं ५।
पणतीसइमो समवाओ सू० १-६
पृ० ८८१-८८२ सच्चवयणाइसेस-पदं १, तित्थयर-पदं २, वासुदेव-बलदेव-पदं ३, जिण-सकहा-पदं ५, आवास-पदं ६.
छत्तीसइमो सणवाओ
सू०१-४
पृ० ८८२ उत्तरज्झयण-पदं १, सुहम्मसभा-पदं २, महावीर-पदं ३, सूरिय-पद ४। सत्ततीसइमो समवाओ
पृ० ८८२-८८३ गणहर-पद १, जीवा-पद २, देवलोय-पदं ३, आगम-पद ४, सूरिय-पद ५। अठत्तीसइमो समवाओ
पृ० ८८३ पास-पद १, जीवा-धणुपट्ठ-पद २, अत्थपन्वय-पद ३, प्रागम-पद ४। एगणचत्तालोसइमो समवाओ सू० १-८
पृ० ८८३-८८४ तित्थयर-पद १, कुलपव्वय-पद २, आवास-पद ३, कम्म-पद ४॥ चत्तालीसइमो समवाओ
सू० १-८
पृ० ८८३-८८४ तित्थयर-पद १, मंदरचूलिया-पद २, तित्थयर-पद ३, आवास-पद ४, आगम-पद ५, सुरिय-पद६, आवास-पद ८ ।
एक्कचत्तालीसइमो समवाओ सू० १-३
पृ० ८८४ तित्थयर-पद १, आवास-पद २, आगम-पद ३ । बायालीसइमो समवाओ
सू०१-१०
पृ० ८८४-८८५ महावीर-पदं १, अंतर-पदं २, चंद-सूरिय-पदं ४, ठिइ-पदं ५, कम्म-पदं ६, लवणसमूह-पदं ७, आगम-पदं ८, ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं ।
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पृ० ८८५
तेयालीसइमो समवाओ
सू० १-५ कम्मविवागझयण-पदं १, आवास-पदं २, अंतर-पदं ३, आगम-पदं ।।
चोयालीसइमो समवाओ
इसिभासिय-पदं १, तित्थयर-पदं २, आवास-पदं ३, आगम-पदं ४ ।
पृ० ८८५
पणयालीसइमो समवाओ
सू०१-८
पृ० ८८५-८८६ समयखेत्त-पदं १, सीमंत-नरय-पदं २, उदुविमाण-पदं ३, ईसिपब्भारपुढवी-पदं ४, तित्थयरपदं ५, अंतर-पदं ६, नवखत्त-पदं , आगम-पदं ।
पृ० ८८६
छायालीसइमो समवाओ
दिढिवाय-पदं १, बंभी लिवि-पदं २, आवास-पदं ३ । सत्तचालीसइयो समवाओ
सू० १,२ सूरिय-पदं १, गणहर-पदं २ ।
पृ० ८८६
अडयालीसडमो समवाओ
पृ० ८५६
चक्कवट्टि-पदं १, गण-गणहर-पदं २, सूरमंडल-पदं ३ ।
एगणपण्णासइमो समवाओ
पृ० ८८७ भिक्खुपडिमा-पदं १, देवकुरु- उत्तरकुरु-पदं २, ठिइ-पदं ३ । पण्णास इमो समवाओ
पृ० ८८७ तित्थयर-पदं १, वासुदेव-पदं ३, दीहवेयड ढ-पदं ४, आवास-पदं ५, गुहा-पदं ६, कंचणगपन्वय-पदं ।
पृ० ८८७
एगपण्णासइमो समवाओ
आगम-पदं १, सुहम्मसभा-पदं २, बलदेव-पदं ४, कम्म-पदं ५ । बावण्णइमो समवाओ
सू०१-५ कम्म-पदं १, अंतर-पदं २, कम्म-पदं ४, आवास-पदं ५। तेवण्णइमो समबाओ
सू०१-४ जीवा-पदं १, महावीर-पदं ३, ठिइ-पदं ४ ।
पृ० ८८८
पृ. ८८८
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चवण्णइमो समवाओ
सू० १-४
उनपुरिस-पदं १, तित्थयर-पदं २, महावीर-पदं ३, गण गणहर-पदं ४ |
पणपणइमो समवाओ
सू० १-६
तित्थयर-पदं १ अंतर- पदं २, महावीर-पदं ४, आवास- पदं ५, कम्म-पद ६
सू० १-२
छप्पण समवाओ
नक्खत्त- प १, गण गणहर-पद २ |
सत्तावण्णइमो सम्मवाओ
सू० १-५
गणिपिडग-पद १, अंतर- पद २, तित्थगर- पद ४, जीवाधणुपट्ट- पदं ५ ।
अट्ठावण्णइमो सवाओ
६३
आवास पद १, कम्म पद २, अंतर-पदं ३ |
गुणसइमो समयाओ
चंद संच्छर-पद १, तित्थगर-पद २ ।
पणसमोसमवाओ
सू० १-४
सू० १-३
सू० १-३
सूरमंडल- पदं १, गणहर-पदं २, भोम-पदं ३ ।
पृ० ८५६
पृ० ८८६
समोसमवाओ
सू० १-६
सूरिय-पद १, लवणसमुद्द-पद २, तित्थयर-पद ३, इद-पद ४, आवास-पद ६ । समोसमवाओ सू० १-४
मिस पद १, मंदर-पव्वय-पद २, चंदमंडल-पद ३, सूरमंडल पदं ४ । बामो समवाओ
सू० १-५ पृ० ८६१ पंचवच्छ रिय-पद १, गण गणहर-पद २, चंद-पद ३, विमाण-पद ४, विमाणपत्थड पद ५ । तेवम समवाओ सू० १-४ पृ० ८६१,८६२ तित्थर पद १, ह्रिवास - रम्मयवास - पद २, निसह-पव्वय-पद ३, नीलवंत-पव्वय-पद ४1. चउसट्ठिमो समयाओ सू० १-६ पृ० ८६२ भिखुपडिमा पद १ आवास पदं २, चमर-पदं ३, दधिमुह-पव्वय-पदं ४, विमाणावासपदं ५, चक्कवट्टि पदं ६ ।
प०८५६
पृ० ८६०
पृ० ८६०
पृ० ८६०
पृ० ८६१
•
पृ० ८६१
पृ० ८६२
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छामि समवाओ
सू० १-४
चंद-सूरिय-पदं १, गण गणहर-पदं ३, ठिइ-पदं ४ ।
समोसमवाओ
सू० १-४
नक्खत्तमास-पदं १, हेमवत - हेरण्णवल-पदं २, अंतर- पद ३, नक्खत्त-पदं ४
असम समवाओ
सू० १-७ धायइपंड-पदं १, पुक्खरवर दीवड- पदं ४, तित्थयर-पदं ७ ।
erreafrat समवाओ
सू० १-३
वासधर-पव्वय-पदं १, अंतर- पदं २, कम्म- पदं ३ |
सतरिम समवाओ
सू० १-५
महावीर - पदं १, पास पदं २, तित्थयर-पदं ३, कम्मपदं ४, इंद-पदं ५
एक्कसत्तरिमो समवाओ
६४
सू० १-४ सूरिय-पदं १, पुव - पदं २, तित्थयर-पदं ३, चक्कवट्टि पदं ४ ।
तेवत्तरिमो समवाओ
हरिवास-रम्मयवास- पदं १, बलदेव पदं २
चोवत्तरिमो समवाओ
पण्णत्तरिमो समवाओ
तित्थयर - पदं १ ।
छावत्तरिमो समवाओ
देव-पदं १ ।
बावत्तरिमो समवाओ
सू० १-८
पृ० ८६५,८६६ देव-पदं १, लवण मुद्द-पदं २, गहावीर-पदं ३, मणहर-पदं ४, चंद-सूरिय-पदं ५, चक्कवट्टि - पदं ६, कला-पदं ७, ठिइ-पदं ८ ।
गणहर-पदं १, महाणई-पदं २, आवास-पदं ४
सत्तत्तरिमो समवाओ
सू० १-२
सू० १-४
सू० १-३
सू० १-२
सू० १-४
arra - पदं १, अंगवसराय-पदं २, देव-पदं ३, काल-पदं ४ |
पृ० ८६२,८६३
पृ०८६३
पृ० ८६३
पृ० ८६४
पृ० ८९४
प० ८६४
•
पृ० ८६६
पृ० ८६६
पृ० ८६६
पृ० ८६७
पृ० ८६७
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अट्ठसत्तरिमो समवाओ
इंद-पदं १, गणहर-पदं २, सूरिय-पदं ३ |
सीइमो समवाओ
अंतर- पदं १ ।
असीम समवाओ
एक्कासीइमो समवाओ
सू० १-७
तित्थयर-पदं १, वासुदेव -बलदेव पदं २, कंड- पदं ५, इद-पदं ६, सूरिय-पदं ७ ।
बासीतिइमो समवाओ
सू० १-३
भिक्खुपडिमा पदं १, तिथयर- पदं २, आगम-पदं ३ |
६५
पंचासीइइमो समवाओ
सूरिय-पदं १, महावीर-पदं २, अंतर-पदं ३,
छलसीइइमो समवाओ
सू० १-४
सू० १-४
सत्तासिइइमो समवाओं
सू० १-४
आगम-पदं १, धायइसंडपदं २, मंडलिय-पव्वय-पदं ३, अंतर- पदं ४ |
अंतरपदं १, कम्म-पदं ५, अंतर- पदं ६ |
अट्ठासीइइमो समवाओ
सू० १-४
सू० १-३
गण गणहर - पदं १, तित्थयर-पदं २, अंतर-पदं ३ |
तेयासीइमो समवाओ
सू० १-५
महावीर - पदं १, तित्थयर-पदं २, गणहर-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, चक्कबट्टि पदं ५ | चउरासीइमो समवाओ
सू० १-१८ पृ० ८६६ - ६०० आवास-पदं १, तित्प्रयर-पद २ भरह-आदि-पद ३, तित्थयर पद ४, वासुदेव-पद ५, इद-पद' ६, मंदर पद ७, अंजणग-पव्वय-पदं, हरिवास-पद ६, अंतर- पद' १०, आगमपद' ११, देव-पद ं १२, इण्णग-पद १३, जोणिप्पमुह-पद १४, गुणकार-पद १५, तित्थयरपद १६, आवास-पद १८ ।
सू० १-७
सू० १-८
चंदसूरिय-पदं १, दिट्ठिवाय-पदं २, अंतर- पद ३, सूरिय-पदं ७ ।
८९७
पृ० ८६५
पृ० ८८
पृ० ८६८
प० ८६८
पृ० ८६६
•
•
पृ० ६००
पृ० १००
पृ० ६००-६०१
पृ० १०१-१०२
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________________
पृ० १०२
पृ० ६०२-६०३
एगणणउइइमो समवाओ
सू०१-४ तित्थयर-पदं १, महावीर-पदं २, चावट्टि पदं ३, तित्थयर-पदं ४ । उइइमो समवाओ
सू० १-५ तित्थियर पद १, गण-गणहर-पद २, वासूदेव-पद ४, अंतर-पद ५। एक्क णउइइमो समवाओ
पडिमा-पद १, कालोय-समुद्द-पदं २, तित्थयर-पद ३, कम्म-पद ४ । बाणउइइमो समवाओ
पडिमा-पद १, गणहर-पद २, अंतर-पद३।
पृ०६०३
सू० १-४
पृ०६०३
पृ०६०३
.
तेणउइमो समवाओ
सू० १-३ गण-गणहर पदं १, तिस्थयर-पदं २, सूरिय-पदं ३ । चउणइइमो समवाओ
सू०१-२ जीवा-पदं १, तित्थयर-पद २ ।
सू० १-२
पृ०६०३
पंचाणउइइमो समवाओ
सू०१-५
पृ० ६०४ गण-गणहर-पदं १, महापायाल-पद २, लवणसमुद्द-पदं ३, तित्थयर-पर ४, गणहर-पद ५१
छणउइइमो समवाओ
सू० १.६
पृ०६०४ चारुवट्टि-पदं १, आवास-पद २, ववहारिय-दौंड-आदि-पद ३, आतिमहत्त-पद । . सत्ताणउइइमो समवाओ
सू०१-४
पृ० ६०४,६०५ अंतर-पद १, कम्म-पद ३, चक्कवट्टि-पट ४ । अट्ठाणउइइमो समवाओ
स०१७
पृ०६०५ अंतर-पद १, धणुपट्ट-पद ४, सूरिय-पद ५, नक्खत्त-पद ७१ णवणउइइमो समवाओ
सू०१-७
पृ० १०५-९०६ मंदर-पव्वय-गद १, अंतर-पद २, सुरियमंडल-पद ४, अंतर-पद ।
सततमो समवाओ
भिवखपडिमा-पद १, नक्खत्त-पद २, तित्थयर-पद ३, पास-पदं ४, गणहर-पद ५, दीहवेयडढ-पद६, चुल्ल हिमवंत-पद ७, कंचणग-पञ्चय-पद ।
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९७
पइण्णगसमवाओ
सू० १-२६१
पृ० ६०४-६५४ तित्थयर-पद १, देवलोय-पद २, तित्थयर-पवं ४, बासहर-पव्वय-पद' ५, कंचण-पव्ययपद६, तित्थयार-पद ७, देव-पद ८, तित्थयर-पद ६, देव-पद' ११, महावीर-पद' १२, जीवप्प-देसोगाहणा-पद १३, पास-पद १४, तित्थयर-पद १५, वासहर-पब्वय-पद १७, वक्खार-पव्वय-पद १८, देवलोय-पद १६, महाबीर-पद २०, तित्थयर-पद २१, चक्कवट्टिपद २२, वक्खार-पव्वय-पद २३, वासहरकूड-पद २४, तित्थयर-पद २५, चक्कवट्टिपद २६, वखार-पव्वय-पद २७, वक्खार-पब्वयकूड-पद २८, नंदणकूड-पद २६, विमाण-मदं ३०, अंतर-पदं ३२, पास पदं ३४, कुलगर-पदं ३५, तित्थयर पदं ३६, विमाण पदं ३७, महावीर-पद ३८, तित्थयर-पदं ४०, अंतर-पदं ४१, विमाण-पदं ४३, भोमेज्जविहार-पदं ४४, महावीर-पदं ४५, सूरिय-पदं ४६, तित्थयर-पदं ४७, विमाण-पदं ४८, अंतर-पदं ४६, कुलगर-पदं ५१, तारारूव-पदं ५२, अंतर-पदं ५३, विमाण-पदं ५५, जमगपन्वय-पदं ५६, चित्त-विचत्तकूड-पदं ५७, वट्टवेय-पव्वय-पदं ५८, हरि-हरिस्सहकूड-पदं ५६, बलकूड-पदं ६०, तित्थयर-पदं ६१, पास-पदं ६२, दह-पदं ६४, विमाण-पदं ६५, पास-पदं ६६, दह-पदं ६७, अंतर-पदं ६८, दह-पदं ६६, मंदर-पव्वय-पदं ७०, आवास-पदं ७१, अंतर-पद-७२, हरिवास-रम्मयवास-पई ७३, जीवा-पदं ७४, मंदर पव्वय-पदं ७५, जंबूढावपदं ७६, लवणसमुद्द-पदं ७७, पास-पदं ७८, धायइसंड-पदं ७६, अंतर-पदं ८०, चक्कव ट्रि-पदं ८१, अंतर-पदं ८२, आवास-पदं ८३, तित्थयर-पदं ४, वासुदेव-पदं ८५, महावीर-पदं ८६, उसभ-महावीर-पदं ८७, दुवालसंग-पदं ८८, रासि-पद १३५, पज्जत्तापज्जत्त-पद १४०, आवास-पद १४१, ठिइ-पद १५३, सरीर-पद १५८, ओहि-पद १७२, वेयणा-पद १७३. लेसा-पद १७४, आहार-पद १७५, आउगबंध-पद १७६, उववाय-उवट्टणा-विरह-पद १७६, आगरिस-पद १८४, संघयण-पद १८६, संठाण-पद १६६, वेय-पद २०६. समवसरण-पद २१५, कुलगर-पद २१६, तित्थयर-पद' २२०, चक्कवट्टि-पद २३४, बलदेववासूदेव-पद' २३८, एरवय-तित्थगर पद २४८, भावि-कुलगर-पद २४६, भावि. तित्थगर-पद २५१, भावि-चक्कवट्टि-पद २५४, भावि-बलदेव-वासुदेव-पद २५६, एरवयभावि-तित्थगर-पद २५८, एरवय-भावि-चक्कवट्टि-बलदेव-वासुदेव-पद २५६, निक्खेव. पद २६१।
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Xo
संकेत-निर्देशिका •० ये दोनों बिन्दु पूर्त-पाठ के द्योतक हैं। पूर्त-पाठ के प्रारंभ में भरा बिन्दु [.] और उसके
समापन में रिक्त विन्दु [° ] रखा गया है । देखें-पृष्ठ १४ सू० १४० । कोष्ठकवर्ती पाठ के आगे प्रश्न [?] आदशों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सुचक है । देखें-पृ० ४०४ सू०२। यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखेंपृ०६ सू०२६। क्रासx] पाठ न होने का सूचक है । देखें-~-पृ० ४ सू० ४। पाठ के पूर्व या अन्त में खाली बिन्दु [0] अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें-पृ० ४ टिप्पणी १२, २१ 'वण्णओं' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूर्तिस्थल का निर्देश है। देखें--पृ० ४६६ टिप्पण ३ तथा पृ० ४६५ टिप्पण ४ । “एव', 'जहा' 'तहेव' आदि के टिप्पण में उनकी पूर्तिस्थल का निर्देश है । देखें--पृ० ४६६, सू० १६०, १८४ तथा
अ.क. ख, ग, घ, च, छ बा देखें-संपादकीय में 'प्रतिपरिचय' शीर्षक स्थल । क्व क्वचित् प्रयुक्तादर्श संपा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है । देखें-पृ० ४ टिप्पण ३। वृ वृत्ति का सूचक है । देखें--पृ० ४ टिप्पण ५। वृपा वृत्ति सम्मत पाठान्तर ! देखें--प० ४ टिप्पण १० । दी० दीपिका सम्मत पाठान्तर । देखें--पृ० २५६ टिप्पण ६ । व्या०वि० व्याकरण विमर्श । देखें--प० २६० टिप्पण ३ । पू० पूर्ण पाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें--प० ५५४ टिप्पण ६ । चू० चूणि का सूचक है ! देखें---पृ० ४० टिप्पण ५ । चू०पी० चूर्णि सम्मत पाठान्तर । देखें--पृ. ४ टिप्पण १० !
पद, विशेष गाथा तथा विशेष सूक्तियों को गहरे टाइप में दिया गया है । देखें---आयारो। अ० अणओगदाराणि ओ० ओववाइयं चंद चंदपण्णत्ती
जंबुद्वीपण्णत्ती ठा० ठाणं दसा०
दसासुयक्खंधो नि० निसीहझयणं प० पइण्णगसमवाओ पण्ण. पण्णवणा भ० भगवई रायः रायपसेण इयं स० सू० सूयगडो
समवाओ
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समवायो
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पढमो समवाओ १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं२. 'इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धणं
पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडियवरणाणदसणधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावएण' तिणेण तारएणं बुद्धणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणराबत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपावि उकामेणं इमे दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णत्ते, तं जहा-आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विवा[आ ? ] हपन्नत्ती नायधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुए दिट्ठिवाए । तत्थ णं जे से चउत्थे अंगे समवाएत्ति आहिते, तस्स णं अयमद्वे, तं जहा'२
एगे आया । ५. एगे अणाया ॥ ६. एगे दंडे ॥ ७. एगे अदंडे ॥ ८. एगा किरिआ॥ ९. एगा अकिरिआ ।। १०. एगे लोए ।
१. जाणएणं (क)। २. कस्याञ्चिद् वाचनायामपरमपि सम्बन्धसूत्र-
मुपलभ्यते 'इह खलु समणेणं भगवया... अयमढे, तंजहा' (वृ)।
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५२८
समवाओ
११. एगे अलोए । १२. एगे धम्मे ।। १३. एगे अधम्मे॥ १४. एगे पुग्णे ।। १५. एगे पावे ॥ १६. एगे बंधे। १७. एगे मोक्खे ।। १८. एगे आसवे ॥ १६. एगे संवरे।। २०. एगा वेयणा ॥ २१. एगा णिज्जरा ॥ २२. जंबुद्दीवे दीवे एग जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २३. अप्पइट्ठाणे नरए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २४. पालए जाणविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २५. सव्वदसिद्धे महाविमाणे एग जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णसे ।। २६. अद्दानक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २७. चित्तानक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २८. सातिनक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २६. 'इमोसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रयाणं एग पलिओवमं ठिई
पण्णत्ता ।। ३०. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई
पाणत्ता ।। ३१. दोच्चाए णं पुढवोए नेरइयाणं जहन्नेणं एग सागरोवमं ठिई पण्णत्ता ।। ३२. असुरकुमाराणं 'देवाणं अत्थेगइयाणं' एग पलिओवमं ठिई पण्णत्ता ।। ३३. असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता ।। ३४. असुरकुमारिदवज्जियाणं भामिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं
ठिई पण्णत्ता ।। ३५. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणियाण अत्थेगइयाणं एग
पलिओवमं ठिई पग्णत्ता ।।
الله
الله
الله
१. अपुण्णे (क)। २. चक्कवालविक्खंभेणं (क, ग, वृपा)। ३. इमीसे (क, ग); हस्तलिखितवृत्तौ इमीसेणं'
पाटोस्ति मुद्रितवृत्तौ 'इमीसे' इति विद्यते । ४. अत्थेगइयाणं देवाणं (क, ख, ग)।
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बीओ समवाओ
८२६
३६. असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कैतियसण्णि मणयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवर्म
ठिई पण्णता॥ ३७. वाणमंतराणं देवाण उक्कोसेणं एग पलिओवम ठिई पण्णत्ता ।। ३८. जोइसियाणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भयिं ठिई
पण्णत्ता ॥ ३६. सोहम्मे कप्पे देवाणं जहन्नेणं एग पलिओवमं ठिई पण्णत्ता ।। ४०. सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एग सागरोवमं ठिई पत्ता ।। ४१. ईसाणे कप्पे 'देवाणं जहणेणं" साइरेगं एग पलिओवम ठिई पण्णत्ता ।। ४२. ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एग सागरोवमं ठिई पण्णत्ता ।। ४३. जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंतं भवं' मणुं माणसोत्तरं लोगहियं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णता ।। ४४. ते णं देवा एगस्स अद्धमासस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीसति वा ।। ४५. तेसि ण देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारटे समुपज्जइ ।। ४६. संतेगइया भवसिद्धिया 'जोवा, जे एगेण भवग्गहणेणं सिज्झिस्सति बुझिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
बीओ समवाओ १. दो दंडा पण्णत्ता, तं जहा अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव ।। २. दुवे रासी पण्णत्ता, तं जहा—जीवरासी चेव, अजीवरासी चेव ।। ३. दुविहे बंधणे पण्णत्ते, तं जहा - रागबंधणे चेव, दोसबंधणे चेव ।। ४. पुव्वाफग्गुणीनक्खत्ते' दुतारे' पण्णत्ते ।। ५. उत्तराफरगुणीनक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते ॥ ६. पुव्वाभद्दवयानक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ७. उत्तराभद्दवयानक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ८. इमीसे गं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥ ६. दुच्चाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।
१. जहणणं देवाणं (क, ख, ग)। २. भुवं (ग)। ३. ते जीवा जे एगेणं (क)। ४. रोसबंधणे (क)।
५. पुब्ब ° (क)। ६. दुत्तारे (ख, ग)। ७. उत्तर (ग)। ८. पुढवीए ण (क)
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८३०
१०. असुरकुमाराणं देवानं अत्येगइयाणं दो पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ ११. असुरिंदवज्जियाणं भोमिज्जाणं देवागं उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥
१२. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचें दियतिरिक्खजोणिआणं अत्येगइयाणं दो पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१३. असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कतियसण्णिमणुस्साणं अत्थेगइयाणं दो पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥
१४. सोहम्मे कप्पे अत्येगइयाणं देवाणं दो पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ।। १५. ईसाणे कप्पे अत्येगइयाणं देवाणं दो पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता || १६. सोहम्मे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता || १७. ईसाणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साहियाई दो साग रोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १८. सणकुमारे कप्पे देवाणं जहणेणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता || १६. माहिदे कप्पे देवाणं जहणेणं साहियाई दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता || २०. जे देवा सुभं सुभकतं सुभवण्णं सुभगंधं सुभलेसं सुभकासं सोहम्म वडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ||
समवाओ
२१. ते णं देवा दोन्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा ॥
२२. तेसि णं देवानं दोहि वाससहस्येहि आहारट्ठे समुपज्जइ ॥
२३. अत्येगइया भवसिद्धिया जीवा, जे दोहिं भवग्गणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिसंति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।
तइओ समवाओ
१. तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे वइदंडे कायदंडे ||
२. तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती |
३. तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा - मायासल्ले णं नियाणसल्ले णं मिच्छादंसणसल्ले णं ॥
४. तओ गारवा पण्णत्ता, तं जहा - इड्डीगारवे रसगारवे सायागारवे ||
५. तओ विराहणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -नाणवि राहणा दंसणविराणा चरित
विराहणा ||
मिसिरनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥
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तइओ समवाओ
८३१
७. पुस्सनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ ८. जेट्टानक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। ६. अभीइनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ १०. सवणनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। ११. असिणिनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। १२. भरणीनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। १३. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं तिणि पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ १४. दोच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं तिणि सागरोबमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. तच्चाए णं पुढवीए ने रइयाणं जहणणं तिणि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइयाण तिण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।। १७. असंखेज्जवासाउयसणिपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओव
माइं ठिई पण्णत्ता ।। १८. असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियसगिणमणुस्साणं' उक्कोसेणं तिण्णि पलिओव
माई ठिई पण्णता॥ १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। २०. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्येगइयाणं देवाणं तिणि सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ।। २१. जे देवा आभंकरं पभंकरं आभंकरपभंकरं चंदं चंदावत्तं चंदप्पभं चंदकंतं चंद
वणं चंदलेसं चंदज्झयं चंदसिंग चंदसिटुं चंदकूडं चंदुत्तरवडसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता। २२. ते णं देवा तिण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीस
संति वा ।। २३. तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ । २४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तिहिं भवरगहणेहि सिज्झिस्संति 'बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।।
१. पुस्से (क); पुक्ख ° (ग)।
मूत्रानुसारेण, 'गन्भवतिय' पाठात् परतो २. समण ° (क, ग); सवणे ° (ख)।
युज्यते । तेनात्र तथा स्वीकृत: । ३. अत्र सर्वासु प्रतिषु 'सण्णि' शब्द: 'गब्भवक्क- ४. सं० पा०-सिन्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । तिय' पाठात् पूर्वं लभ्यते, किन्तु (१।३६)
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८३२
समवाओ
चड़त्थो समवाओ १. चत्तारि कसाया पण्णत्ता, नं जहा–कोहकसाए माणकसाए मायाकसाए
लोभकसाए । २. चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा अट्टे भाणे रोद्दे झाणे धम्मे झाणे सुक्के झाणे ।। ३. चत्तारि विगहाओ पण्णत्ताओ, त जहा-इत्थिकहा भत्तकहा रायकहा देसकहा ।। ४. चत्तारि सण्णा पण्णत्ता, तं जहा -आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गह
सण्णा ॥ ५. चउविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा- पगडिबंधे ठिइबंधे 'अणुभावबंधे' पएसबंधे"॥ ६. चउगाउए जोयणे पण्णत्ते ॥ ७. अणुराहानक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ।। ८. पुवासाढनक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥
उत्तरासाढनक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥ १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता॥ ११. तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।। १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता। १५. जे देवा किट्टि सुकिद्धि किट्ठियावत्तं किढिप्पभं किट्टिकंत किट्ठिवण्णं किट्ठिलेसं
किट्ठिज्झयं किट्ठिसिंगं किट्ठिसिटुं किटिकूडं किठुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए
उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १६. ते णं देवा चउण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा ।। १७. तेसि देवाणं चउहि वाससहस्से हिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। १८. अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे चउहि भवरगणेहि सिज्झिस्संति 'बुझिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
१. अणुभाग० (क, ख)।
वन्तीति (वृत्ति पत्र 8) वृत्तिगतोल्लेखेन 'कतं' २. पएसबंधे अणुभागबंधे (ग)।
इति पाठः स्वीकृतः । ३. जुत्तं (क, ख, ग); कृष्टिसुकृष्ट्यादीनि ४. सं० पा०~-सिज्झिस्संति जाव सन्वदक्खाण°1
द्वादशविमानानि पूर्वोक्तविमाननामानुसार
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पंचमो समवाओ
पंचमो समवाओ
१. पंच किरिया पण्णता, तं जहा.--काइया अहिगरणिया पाउसिआ पारियावणिआ
पाणाइवायकिरिया ।। २. पंच महत्वया पण्णत्ता, तं जहा:-सव्वाओ पाणाइवायाओ बेरमणं, सव्वाओ
मुसावायाओ' 'वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ
वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ।। ३. पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा -सद्दा रूवा रसा गंधा फासा ।। ४. पंच आसवदारा पण्णत्ता, त जहा - मिच्छत्तं अविरई 'पमाया कसाया जोगा ।। ५. पंच संवरदारा पणत्ता, तं जहा -- सम्मत्तं विरई अप्पमाया' अकसाया'
अजोगा। ६. पंच निज्जरवाणा' पण्णत्ता, तं जहा --पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ
वेरमणं, अदिन्न दाणाओ वेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गहाओ वेरमणं ।। ७. पंच समिईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इरियासमिई भासासमिई एसणासमिई
आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिई उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिद्रा
वणियासमिई ।। ८. पंच अस्थिकाया पण्णता, तं जहा -- धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थि
काए जीवत्थिकाए पोग्गलस्थिकाए ।। ६. रोहिणीनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ॥ १० पुणव्वसुनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते॥ ११. हत्थनक्खत्ते पंचतारे १पणत्ते ।। १२. विसाहानक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ।। १३. धणिवानक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ।। १४. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं पंच पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता । १५. तच्चाए णं पुढवीए अत्येगइया नेरइयाणं पंच सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं पंच पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
१, सं० पा०-मुसावायाओ जाव सव्याओ। २. पडि० (ग)। ३. पमाए कसाए (क, ग)। ४. अप्पमाए (क); अप्पमादो (ग)। ५. अकसाए (क), अकसायया (ख, ग)।
६. अजोगया (ग)। ७. निज्जराद्वाणा (ग)। ८. हत्थे° (ग)। ६. X (क, ख, ग)।
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८३४
समवाओ
१७. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पंच पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १८. सणकुमार माहिदेसु कप्पेस अत्थेगइयाणं देवाणं पंच सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १६. जे देवा वायं सुवायं वातावत्तं वातप्पभं वातकंतं वातवण्णं वातलेसं वातज्भयं
वातसिंगं वातसिद्धं वातकूडं वाउत्तरवडेंसगं सूरं सुसूरं सूरावत्तं सूरप्पभं सूरकंतं सूरवण्णं सूरलेसं सूरज्भयं सूरसिंगं सुरसिहं सूरकूडं सूरुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं पंच सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ २०. ते णं देवा पंचण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ||
२१.
तेसि णं देवाणं पंचहि वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ ||
२२. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पंचहि भवग्गणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ॥
छट्टो समवानो
१. छल्लेसा पण्णत्ता, तं जहा - कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा ||
२. छज्जीवनिकाया पण्णत्ता, तं जहा -- पुढवीकाए' आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए ।
३. छव्विहे बाहिरे तवोकम्मे पण्णत्ते, तं जहा -- अणसणे ओमोदरिया' वित्तिसंखेवो रसपरिच्चाओ कायकिलेसो संलीणया ||
४. छविहे अभिंतरे तवोकम्मे पण्णत्ते, तं जहा -- पायच्छित्तं विणओ वेयावच्च सज्झाओ भाणं उस्सग्गो ||
५. छ छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतिय समुग्धाए वे उव्वियसमुग्धाए तेयसमुग्धाए" आहारसमुग्धाए ॥ ६. छवि अत्थुग्गहे पण्णत्ते, तं जहा- सोइंदियअत्थुग्गहे चक्खिदियअत्युग्गहे घाणिदित्थुग्गहे जिभिदियअत्युग्ग फासिदिय अत्युग्गहे नोइंदिय
थु | ७. कत्तियानक्खत्ते छतारे पण्णत्ते ॥ ८. असिलेसानक्खत्ते छतारे पण्णत्ते ॥
१. सं० पा० - सिभिस्संति जाव अंतं ।
२. ० काइया ( ग ) ।
३. उनोदरिया (ग)।
४. वित्ती० ( ख, ग ) 1
५. कायकिलेस ( क ) ।
६. व्यंतरए ( क ) ।
७. तेया (क, ख ) ।
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सत्तमो सम वाओ
८३५
६. इमी से णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं छ पलिओ माई ठिई
पण्णत्ता ॥
१०. तच्चाए णं पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं छ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं छ पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्येगइयाणं देवाणं छ पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १३. सणकुमार- माहिदेसु कप्पेसु अत्थेमइयाणं देवाणं छ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १४. जे देवा सयंभु सयभुरमणं घोसं सुघोसं महाघोसं किट्टिघोसं वीरं सुवीरं वीर
गतं वीरसेणियं वीरावत्तं वीरप्पभं वीरकंतं वीरवण्णं वीरलेसं वीरज्भयं वीरसिंगं वीरसि वीरकूडं वीरुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं छ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१५. ते णं देवा छण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमति वा ऊससंति वा नीससंति
वा ॥
१६. तेसि णं देवाणं छहि वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जई ॥
१७. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे छहिं भवग्ग्रहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति मुच्चिसंति परिनिब्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥
०
सत्तमो समवाओ
१. सत्त भट्टाणा पण्णत्ता, जहा - इहलोगभए परलोगभए आदाणभए अकम्हाभए आजीवभए मरणभए असिलोगभए ||
२. सत्त समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियमुग्धा वेव्विसमुग्धाए तेयसमुग्धाए' आहारसमुग्धाए केवलिसमुग्धाए ॥ ३. समणे भगवं महावीरे सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥
४. सत्त' वासह पव्वया पण्णत्ता, तं जहा - चुल्ल हिमवंते महाहिमवंते निसढे नीलवंते रुप्पी सिहरो मंदरे ॥
५. सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा -भरहे हेमवते हरिवासे महाविदेहे रम्मए हेरण्णवते" एरखए' ॥
६. खीणमोहे णं भगवं मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ वेएई || ७. महानक्खते सत्ततारे पण्णत्ते ॥
१. सं० पा० - सिज्भिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । २. तेया (क, ख )
३,४. इहेव जम्बुद्दीवे दीवे सत्त (क्व ) ।
५. एरण्णवए (क्व) ।
६. एरावते (क, ग) :
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८३६
समवाओ
८. 'कत्तिआइया सत्त नक्खत्ता पुव्वदारिआ पण्णत्ता"। ६. महाइया सत्त नक्खत्ता दाहिणदारिआ पण्णत्ता ।। १०. अणराहाइया सत्त नक्खत्ता अवरदारिआ पण्णत्ता ।। ११. धणिट्ठाइया सत्त नक्खत्ता उत्तरदारिआ पण्णत्ता॥ १२. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्त पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता। १३. तच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. चउत्थीए णं पुढवीए ने रइयाणं जहष्णेणं सत सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १५. असुरकुमाराणं देवाण अत्थेगइयाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णता ।। १६. सोहम्मोसाणेसु कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णता ॥ १७. सणंकुमारे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता।। १८. माहिंदे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साइरेगाई सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६. बंभलोए कप्पे देवाणं जहण्णेण सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णता॥ २०. जे देवा समं समप्पभं महापभं पभासं भासुरं' विमलं कंचणकडं सणंकुमारवडेंसगं
विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि ण देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता !! २१. ते णं देवा सत्तण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। २२. तेसि णं देवाणं सत्तहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। २३. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति
'झिरति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण ° मंत करिस्संति ।।
१. ख, ग प्रत्योः पाठानरेग 'अभियाइया अभि- प्रज्ञप्तौ तु बहुतराणि मतानि दर्शितानीहार्य ईया सत्त नक्वत्ता पुन्वदारिया पण्णत्ता' इति (1) 1 मूलपाठेप्यसौ पाठभेदो लभ्यते । अभिजिदा- २. जहन्नेणं साहियं (ग); प्रज्ञापनायाञ्चतुर्थपदे दीनि सप्त नक्षत्राणि पूर्वद्वारिकाणि-पूर्व- सप्तसागरोपमाणामेव स्थितिः प्रतिपादितास्ति दिशि येषु गच्छतः शुभं भवति, एवमश्विन्या- तेन 'साहियं' अशुद्ध प्रतिभाति । दीनि दक्षिणद्वारिकाणि पुष्यादीन्यपरद्वारि- ३. भासर (क, ग)। काणि स्वात्यादीन्युत्तरद्वारिकाणीति सिद्धान्त- ४. जे णं (क, ख, ग)। मतमिह तु मतान्तरमाथित्य कृतिकादीनि ५. सं० पा०-सिन्झिस्सति जाव अंत सप्त सप्त पूर्वद्वारिकादीनि भणितानि, चन्द्र
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अट्टमो समवाओ
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
ε.
अमो समा
अट्ट मट्टाणा पण्णत्ता, तं जहा -- जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए ॥
अट्ठ पवयणमायाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - इरियासमिई भासासमिई एसणास मिई आयाण-भंड-मत्त - निक्खेवणासमिई उच्चार- पासवण खेल-सिंघाणजल्ल पारिट्ठावणियासमिई मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती ॥ वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाई उड्ढ उच्चतेणं पण्णत्ते ॥ 'जंबुद्दीवस्स णं'' जगई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चतेणं पण्णत्ता ॥ अटूसामइए केवलिस मुग्धाए पण्णत्ते, तं जहा - पढमे समए दंड करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथ करेइ, चउत्थे समए मंथंतराई पूरेइ, पंचमे समए मंथंतराई पडिसाहरइ, छठ्ठे समए मंथ पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवार्ड पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, तत्तो पच्छा सरीरत्थे भवइ ॥
अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धि पमदं जोगं जोएंति, तं जहा – कत्तिया रोहिणी good महा चित्ताविसाहा अणुराहा जेट्ठा ||
१०. इमीसे णं रणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ पलिओ माई ठिई
८३७
पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्या, तं जहासुंभेय सुंभघोसे य, वसिट्टे भयारि य ।
सोमे सिरिधरे चेव, वीरभद्दे जसे इय ||१||
पण्णत्ता ॥
११. च उत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठ पलिओदमाई ठिई पण्णत्ता || १३. सोहम्मीसाणे कप्पे अत्येगइयाणं देवाणं अट्ठ पलिओदमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १४. बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवानं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१५. जे देवा अच्चि अच्चिमालि वइरोयणं पभंकरं चंदाभं सूराभं सुपइट्टाभं अग्गिच्चाभं रिद्वाभं अरुणाभं अरुणुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं अट्ठ सागरोबभाई ठिई पण्णत्ता ॥
३. अ सुरवरे ( क ); सिरिवरे ( ख ) ; सिरिदरे ( ग ) ।
१.
बुद्दीविया(क) 1
२. ० समतिए (क, ख ) ।
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८३८
समवाओ
नो इत्थ
१६. ते णं देवा अटुण्हं अद्ध मासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा॥ १७. तेसि णं देवाणं अहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे अट्ठहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ॥
नवमो समवाओ नव बंभचेरगुत्तीओ, तं जहा
-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भव। नो इत्थीणं कहं कहिता भवइ । नो इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवइ । नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निझाइत्ता भवइ । नो पणीयरसभोई भवइ । नो पाणभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ । नो इत्थीणं पुवरयाई पुव्वकीलियाइं सुमरइत्ता भवइ । नो सहाणुवाई नो रूवाणुवाई नो गंधाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई। नो सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ ।। नव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहाइत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता' भवइ । इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ । इत्थीण ठाणाइं से वित्ता भवइ । इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निझाइत्ता भवइ । पणीयरसभोई भवइ। पाणभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ । इत्थीणं पुबरयाई पुन्वकीलियाई सुमरइत्ता भवइ । सद्दाणुवाई रूवाणुवाई गंधाणुवाई रसाणुवाई फासाणुबाई सिलोगाणुवाई ।
सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ । ३. नव बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहा
१. सं० पा०--सिज्झिस्सति जाव अंतं । २. गणान् (वृ)। ३. x(क, ख, ग)। ४. अतिमायं आहारं (क)।
५. ४ (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-सेवणया [से वित्ता] जाव साया
सोक्ख ।
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नवमो समवाओ
संगहणी-गाहा
सत्थपरिण्णा लोगविजओ, सीओसणिज्ज' सम्मत्तं ।
आवंती धुतं विमोहायणं, उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥१॥ ४. पासे णं अरहा' नव रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ५. अभीजिनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चंदेणं सद्धि जोगं जोएइ ।
अभीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा-अभीजि सवणो' 'ट्ठिा सयभिसया पुवाभवया उत्तरापोट्टवया रेवई अस्सिणी
भरणी॥ ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नव
जोयणसए उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ ।।
जंबुद्दीवे णं दीवे नवजोयणिया मच्छा पविसिसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा ।। ६. विजयस्सणं दारस्स एगमेगाए बाहाए नव-नव भोमा पुण्णत्ता।। १०. वाणमंतराणं देवाणं सभाओ सुधम्माओ नव जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं
पण्णत्ताओ॥ ११. सणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स नव उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--
निद्दा पयला निद्दानिदा पयलापयला थीणगिद्धी चक्खुदंसणावरणे अचक्खुदंस
णावरणे ओहिदसणावरणे केवलदसणावरणे ॥ १२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्गइयाणं नेरइयाणं नव पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ।। १३. चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं नव सागरोवमाइं ठिई पण्णता ॥ १४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं नव पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं नव पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६. बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं नव सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १७. जे देवा पम्हें सुपम्हं पम्हावत्तं पम्हप्पहं पम्हकंतं पम्हवण्णं पम्हलेसं"
'पम्हज्झयं पम्हसिगं पम्हसिट्ठ पम्हकूडं° पम्हुत्तरवडेंसगं सुज्जं सुसुज्जं सुज्जावत्तं सुज्जपमं सुज्जकंतं 'सुज्जवणं सुज्जलेसं सुज्जज्झयं सुज्जसिंगं
१. सीओसिणिज्ज (क) 1
५. थीणद्धी (क्व)। २. अरहा पुरिसादाणीए (क्व)।
६. 'क' प्रती अस्मिन् सूत्रान्तर्गत 'पम्ह' शब्दस्य ३. सं. पा.--सवणो जाव भरणी।
स्थाने सर्वत्र वम्ह शब्दस्तथा 'रुइल्ल' शब्दस्य ४. चन्द्रप्रज्ञप्तौ (१०१११) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती
स्थाने सर्वत्र 'रुयल' इति पाठो विद्यते । (वक्ष ७) च चन्द्रस्योत्तरेणं योगं युञ्जानानां द्वादशनक्षत्राणामुल्लेखोस्ति । अत्र तु नवम- ७. सं० पा०-पम्हलेसं जाव पम्हुत्तरवडेंसगं । समवायानुरोधेन नवैव गृहीतानि । ८. सं० पा०-सुज्जकंत जाव सुज्जुत्तरवडेंसगं।
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सुमवाओ
सुज्जसिहं सुज्जकूडं सुज्जुत्तरवडेंसगं रुइल्लं रुइल्लावत्तं रुइल्लप्पभ रुइल्लकतं रुइल्लवणं रुइल्ललेसं रुइल्लज्भयं रुइल्लसिंगं रुइल्लसिट्ठ रुइल्ल'कू'डं • रुइल्लुत्तरवडेसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाण [ उक्कोसेणं' ? ] नव सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता |
१८. ते णं देवा नवहं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ||
१६. तेसि णं देवानं नवहिं वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ ||
२०. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे नवहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' बुज्झिस्संति मुच्चिसंति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमतं करिस्सति ॥
६४०
दसमो समयाओ
१. दसविहे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे ||
२. दस चित्तसमाहिद्वाणा पण्णत्ता, तं जहा -
धम्मचिता वा से असमुप्पण्णपुव्वा समुप्पज्जिज्जा, सव्वं धम्मं जाणित्तए । सुमिदंसणे वा से असमुप्पण्णपुत्रे समुप्पज्जिज्जा, अहातच्च सुमिणं' पासित्तए । नावा से असमुप्पण्णपुत्र्वे समुप्पज्जिज्जा, पुग्वभवे सुमरित्तए । देवदसणे वा से असमुप्पण्णपुब्वे समुप्पज्जिज्जा, दिव्वं देविडि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पात्तिए ।
ओहिनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, ओहिणा लोगं जाणित्तए । हसणे वा से असमुप्पण्णपुब्वे समुप्पज्जिज्जा, ओहिणा लोगं पासित्तए । मणपज्जवनाणे वा से असमुप्पण्णपुत्रे समुप्पज्जिज्जा, मणोगए भावे जात्तिए ।
केवलनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुपज्जिज्जा, केवलं लोगं जाणित्तए । केवलदंसणे वा से असमुप्पण्णपुब्वे समुप्पज्जिज्जा, केवल लोयं पासित्तए । केवलिमरणं वा मरिज्जा, सव्वदुक्खप्पहीणाए ||
१. सं० पा०-हइल्लप्पभं जाव रुइल्लुत्तरवडेंसगं । २. एतत् तुल्येषु सूत्रेषु सर्वत्रापि 'उक्कोसेणं' पाठो विद्यते । नायं पाठोत्र प्रतिषु लभ्यते, किन्तु तथाविधान्यसूत्र पद्धत्यनुसारेण युज्यते । ३. सं० पा० - सिज्भिस्संति जाव सब्वदुक्खाण 1
४. सुजाणं (वृपा) । ५. जाणेज्जा (क) 1
६. जाव मणोगए ( क, ख, ग ); वृत्तौ 'जाव' शब्दो नास्ति व्याख्यातः । नावश्यकोपि प्रतिभाति तेन न स्वीकृत:
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दसमो समवाओ
८४३
३. मंदरे णं पब्बए मूले दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४. अरहा णं अरिट्ठनेमी दस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ५. कण्हे णं वासूदेवे दस धणई उडढं उच्चत्तेणं होत्था । ६. रामे णं बलदेवे दस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।।
७. दस नक्खत्ता नाणविद्धिकरा पण्णता, तं जहा-- संगहणी-गाहा
मिगसिरमद्दा पुस्सो, तिम्णि अ पुव्वा य मूल मस्सेसा।
हत्थो चित्ता य तहा, दस वुद्धिकराइं नाणस्स ।।१।। ८. अकम्मभूमियाणं मणुआणं दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए उवत्थिया पण्णत्ता, तं जहा
मत्तंगया य. भिंगा, तुडिअंगा दीव जोइ चित्तंगा।
चित्तरसा मणिअंगा, गेहागारा अणिगणा' य ॥१।। ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाण' जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई
पण्णत्ता।। १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाण नेरइयाणं दस पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता ।। ११. च उत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्सा' पण्णत्ता।। १२. चउत्थीए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णता ।। १३. पंचमाए पूढवीए ने रइयाणं जहण्णणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १४. असुरकुमाराणं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. असूरिदवज्जाणं भोमेज्जाण देवाण जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता॥ १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १७. बायरवणप्फतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ॥ १८. वाणमंतराणं देवाणं जहणणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ॥ १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। २०. बंभलोए कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। २१. लंतए कप्पे देवाणं जहण्णेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
१. अणियणा (ग); अणिगिणा (क्व)। २. अत्थेगइयाणं नेरइयाण (क, ख, ग)।
३. ° सहस्साइं (क्व)।
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सेमवाओ
१८४२ २२. जे देवा घोसं सुघोसं महाघोसं नंदिघोसं सुसरं मणोरमं रम्मं रम्मगं रमणिज्ज
मंगलाबत्तं बंभलोगवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्को
सेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। २३. ते णं देवा दसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा॥ २४. तेसि णं देवाणं दसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ।। २५. संतेगइया' भवसिद्धिया जीवा, जे दसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ॥
एक्कारसमो समवाओ १. एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–१. दसणसावए २. कयव्वय
कम्मे ३. सामाइअकडे ४. पोसहोववास-निरए ५. दिया बंभयारी रत्ति परिमाणकडे ६. दिआवि राओवि बंभयारी असिणाई' वियडभोई मोलिकडे ७. सचित्तपरिण्णाए ८. आरंभपरिण्णाए ६. पेसपरिणाए १०. उद्दिट्ठभत्त
परिणाए ११. सभणभूए" यावि भवइ समणाउसो! २. 'लोगताओ णं 'एक्कारस एक्कारे जोयणसए'' अबाहाए जोइसते पण्णत्ते ।। ३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स 'एक्कारस एक्कवीसे जोयणसए" अबाहाए
जोइसे चारं चरइ"। १. अत्थेगइया (क, ख, ग)।
(क, ख, ग); २, ३ सूत्रयोरादर्शेषु २. सं० पा०-सिज्झिस्सति जाव अंतं ।
सप्तम्यन्तः पाठो लभ्यते, किन्तु ३. राति (क)।
वृत्तावसौ पाठः द्वितीयान्तत्वेन व्याख्यातो४. अनिसाई (वृपा)।
स्ति--जम्बूद्वीपे द्वीपे मदरस्य पर्वतस्य एका५. पुस्तकान्तरेत्वेवं वाचना-१. सणसावए दश 'एगवीस' ति एकविंशतियोजनाधिकानि
२. कयवयकम्मे ३. कपसामाइए ४. पोसहोव- एकादशयोजनशतानि 'अबाहाए'त्ति अबाधया वासनिरए ५. राइभत्तपरिण्णाए ६. सचित्त- व्यवधानेन कृत्वेति शेषः ज्योतिष-जोतिपरिणाए ७. दियाबंभयारी राओ परिमाणकडे श्चक्रं चार-परिभ्रमण चरति-आचरति, ८. दियावि राओवि बंभयारी असिणाणए तथा लोकान्तात् णभित्यलङ्कारे एकादश यावि भवति वीसढ केसरोमनहे ६. आरंभ
'एकारे' ति एकादशयोजनाधिकानि अबाधया परिणाए पेसणपरिणाए १०. उद्दिट्टभत्त
--व्यवहिततया कृत्वेति शेषः ज्योतिसंते' ति
ज्योतिश्चक्रपर्यन्तः प्रज्ञप्तः (व)। बज्जए ११. समणभूए । क्वचित्त आरंभपरिज्ञात इति नवमी, प्रेष्यारम्भपरिज्ञात इति ८. असो शब्दः आदर्शषु नोपलभ्यते, केवलं दशमी, उद्दिष्टभक्तवर्जकः श्रमणभूतश्चका- वृत्तावेव सुरक्षितोस्ति 'चंदपण्णत्ति' सत्रे दशीति (वृ)।
(पाहुड १८) ऽप्येष शब्दो लभ्यते-'एक्कारस ६. एक्कारसहिं एक्कारेहि जोयणसएहि (क, एक्कवीसे जोयणसए अबाहाए जोइसे चार ख, ग)।
चरई'। ७. एक्कारसहि एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं ६. जंबुद्दीवे चरइ । लोगंताओपण्णत्ते । इदं
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बारसमो समवाओ
४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एक्कारस गणहरा होत्था, तं जहा-इंदभुती
अग्गिभूती वायुभूती विअत्ते सुहम्मे मंडिए मोरियपुत्ते अकंपिए अयलभाया
मेतज्जे पभासे ।। ५. मूले नक्खत्ते एक्का रसतारे पण्णत्ते ॥ ६. हेटिमगेविज्जयाणं देवाणं एक्कारसुत्तरं गेविज्जविमाणसतं भवइत्ति मक्खायं ॥ ७. मंदरे णं पव्वए धरणितलाओ सिहरतले एक्कारसभागपरिहीणे उच्चत्तेणं
पण्णत्ते ॥ ८. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं एक्कारस पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ।। ६. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइयाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। १२. लंतए कप्पे अत्यंगइयाणं देवाणं एक्का रस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. जे देवा 'बंभं सुबंभं बंभावत्तं बंभप्पभं बंभकतं बंभवण्ण बंभलेस' बंभज्झयं'
बंभसिंग वंभसिट्ट बंभकूडं बंभुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं
देवाणं [उक्कोसणं' ? ] एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. ते णं देवा एक्कारसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १५. तेसि णं देवाणं एक्कारसग्रहं वाससहस्साणं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ।।। १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एक्कारसहि भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
बारसमो समवाओ १. बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—मासिआ भिक्खुपडिमा,
दोमासिआ भिक्खपडिमा, तेमासिआ भिक्खपडिमा, चाउमासिआ भिक्खपडिमा. पंचमासिआ भिक्खुपडिमा, छम्मासिआ भिक्खुपडिमा, सत्तमासिआ भिक्खु
च वाचनान्तर व्याख्यातम्, अधिकृतवाचनायो २. पम्हज्जुयं (ग)। पुनरिदमनन्तरं व्याख्यातमालापकद्वयं व्यत्यये- ३. द्रष्टव्यं ।।१७ टिप्पणम् । नापि दृश्यते (व)।
४. अत्थे ° (क, ख, ग)। १. पम्हं"पम्हलेस (ग)
५. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण.!
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समवाओ
पडिमा, पढमा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा, दोच्चा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा, तच्चा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा, अहोराइया भिक्खुपडिमा, एगराइया भिक्खुपडिमा । २. दुवालसविहे संभोगे पण्णत्ते, तं जहा -- संगहणी-गाहा
उवही सुअ भत्तपाणे, अंजलीपग्गहेत्ति य। दायणे' य निकाए अ, अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे ॥१॥ कितिकम्मस्स य करणे, वेयावच्चकरणे इ अ ।
समोसरणं संनिसेज्जा य, कहाए अ पबंधणे ॥२१॥ ३. दुवालसावत्ते' कितिकम्मे पण्णत्ते, [तं जहा -
दुओणयं जहाजायं, कितिकम्म बारसावयं ।
चउसिरं तिगुत्तं च, दुपवेसं एगनिक्खमणं' ।।१।।] ४. विजया णं रायहाणी दुवालस जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं पण्णता ।। ५. रामे णं बलदेवे दुवालस वाससयाई सव्वाउयं पालित्ता देवत्तं गए । ६. मंद रस्स णं पव्वयस्स चूलिआ मूले दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ७. जंबूदीवस्स णं दीवस्स वेइया मूले दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता।। ८. सव्वजण्णिआ राई दुवालसमुहुत्तिआ पण्णत्ता ।। ६. सव्वजण्णिओ दिवसो दुवालसमुहुत्तिओ पण्णत्तो० ॥ १०. सव्वट्ठसिद्धस्स णं महाविमाणस्स उवरिल्लाओ थूभिअग्गाओ दुवालस जोयणाई
उड्ढं उप्पतिता ईसिपब्भारा नाम पुढवी पण्णत्ता ।। ११. ईसपब्भाराए णं पुढवीए वालस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-ईसित्ति वा
ईसिपब्भारत्ति वा तणूइ वा तणुयतरित्ति' वा सिद्धित्ति वा सिद्धालएत्ति वा मत्तीति वा मुत्तालएत्ति वा बभेत्ति वा बंभवडेंसएत्ति वा लोकपरिपूरणेत्ति वा
लोगग्गचूलिआइ वा ।। १२. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाण बारस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥
१. दायणा (क, ख)।
सम्भाव्यते, तेन नास्माभिमले स्वीकृता। २. °साइए (क)।
४. देवत्ति (क); देवत्ति (ख); देवत्तिए (ग)। ३. एषा आवश्यकनियुक्ति (१२१६) मता गाथा ५. सं० पा०--एवं दिवसोवि नायव्वो।
कृतिकर्मव्याख्यानपरा वर्तते, न तु द्वादशावर्त- ६. तणूयतरिति (क); तणुयरुत्ति (ग)। व्याख्यानपरा। इयं प्रासङ्गिकरूपेण लिखिता
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तेरसमो समवाओ
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१३. पंचमाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता !! १४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं बारस पलिओवभाइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं वारस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १६. लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं बारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १७. जे देवा महिंदं महिंदज्झयं कंबु कंबुग्गोवं पुंख सुपखं महापुखं पुंडं सुपडं महा
पुंडं नरिदं नरिंदकंत नरिंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववष्णा, तेसिणं
देवाणं उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १८. ते णं देवा बारसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १६. तेसि णं देवाणं बारसहिं वाससहस्सेहि आहारटे समुप्पज्जइ ।। २०. संतेगइआ' भवसिद्धिया जीवा, जे बारसहिं भवगणेहि सिज्झिस्संति' बुझि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
तेरसमो समवाओ १. तेरस किरियाठाणा पणता, तं जहा -अट्ठादडे अगट्ठादंडे हिंसादंड अकम्हादंडे
दिदिविप्परिआसिआदडे मुसावायवत्तिए अदिण्णादाणवत्तिए अज्झथिए माण
वत्तिए मित्तदोसवत्तिए मायावत्तिए लोभवत्तिए ईरियावहिए नाम तेरसमे ।। २. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु तरस विमाणपत्थडा पणत्ता ।। ३. सोहम्मव.सगे णं विमाणे णं अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं
पण्णते॥ ४. एवं ईसाणवडेंसगे वि ।। ५. जलयरपंचिदिअतिरिक्खजोणिआणं अद्धतरस जाइकुलकोडोजोणीपमुह
सयसहस्सा' पण्णत्ता ।। ६. पाणाउस्स णं पुव्वस्स तेरस वत्थू पण्णता । ७. गभवक्कंतिअपंचेंदिअतिरिक्ख जोणिआग तेरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-.
सच्चमणपओगे मोसमणपओगे सच्चामोसमणपओगे असच्चामोसमणपओगे सच्चवइपओगे मोसवइपओगे सच्चामोसवइपओगे असच्चामोसवइपओगे ओरालिअसरीरकायपओगे ओरालिअमीससरीरकायपओगे वेउब्धिअसरीरकायपओगे वेउवि अमोससरोरकायपओगे कम्मसरीरकायपओगे ।।
- - - १. अत्यंगइया (क, ख, ग) । २. सं० पा०-सिज्झिरसंति जाव सव्वदुक्खाण ।
३. सहस्साई (क्व)।
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८४६
समवाओ
८. सूरमंडले जोयणेणं तेरसहिं एगसट्ठिभागेहि जोयणस्स ऊणे पण्णत्ते ।। ६. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं तेरस पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता ।। १०. पंचमाए णं पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेरस सागरोवमाई ठिई पण्णता ॥ ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेरस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. सोहम्भोसाणेसु कप्पेसु अत्येगइयाणं देवाण तेरस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १३. लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं तेरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. जे देवा वज्ज सुवज्ज वज्जावत्तं वज्जप्पभं वज्जकंतं वज्जवणं वज्जलेसं
वज्जज्झयं वज्जसिंगं वज्जसिटुं वज्जकूडं वज्जुत्तरवडेंसगं वइरं वइरावत' *वहरप्पभं वाइरकंतं वइरवणं वइरलेस वइरज्झयं वइरसिंगं वइरसिद्रं वइरकडं वइरुत्तरवडंसगं लोग लोगावत्तं लोगप्पभं' 'लोगतं लोगवण्णं लोगलेसं लोगज्झयं लागसिंगं लोगसिटुं लोगकूडं लोगुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए
उववण्णा, तेसि णं देवाण उक्कोसेणं तेरस सागरोवमाइं ठिई पण्णता ॥ १५. ते ण देवा तेरसहिं अद्धमासे हिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नोससंति वा ॥ १६. तेसि णं देवाणं ते रसहिं वाससहस्से हिं आहारटे समुप्पज्जइ ॥ १७. संतेगइया' भवसिद्धिया जीवा, जे तेरसहिं भवाहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुझि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ।।
चउद्दसमो समवाओ १. चउद्दस भूअग्गामा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमा अपज्जत्तया, सुहुमा पज्जत्तया,
बादरा अपज्जत्तया, बादरा पज्जत्तया, वेइंदिया अपज्जत्तया, बेइदिया पज्जत्तया, तेइंदिया अपज्जत्तया, तेइंदिया पज्जत्तया, चरिदिया अपज्जतया, चरिदिया पज्जत्तया. पचिदिया असण्णिअपज्जत्तया, पचिदिया असणिपज्जत्तया. पचिदिया
सण्णिअपज्जतया, पचिंदिया सण्णिपज्जत्तया ॥ २. चउदस पुवा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
उप्पायपुव्वमग्गेणियं च तइयं च वीरियं पुव्वं । अत्थीनत्थिपवायं, तत्तो नाणप्पवायं च ॥१॥
१. सं० पा०-वइरावत्तं जाव वइरुत्तरवडेंसग। ३. अत्थेगइया (क, ख)। २. सं० पा०-लोगप्पभं जाव लोगुत्तरवडेंसगं। ४. सं० पा०—-सिज्झस्संति जाव अंतं ।
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च उद्दसमो समवाओ
CYG
सच्चप्पवायपुत्वं, तत्तो आयप्पवायपुव्वं च । कम्मप्पवायपुव्वं, पच्चक्खाणं भवे नवमं ॥२॥ विज्जाअणुप्पवायं, अबंझपाणाउ बारसं पुव्वं ।
तत्तो किरियविसाल, पुव्वं तह बिंदुसारं च ॥३॥ ३. अग्गेणीअस्स णं पुव्वस्स च उद्दस वत्थू पण्णत्ता । ४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चउद्दस समणसाहस्सोओ उक्कोसिआ समण
संपया होत्था । कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च च उद्दस जीवट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा--मिच्छदिट्ठी, सासायणसम्मदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी, अविरयसम्मदिट्ठी, विरयाविरए', पमत्तसंजए, अप्पमत्तसंजए, नियट्टिवायरे, अनियट्टिबायरे, सुहुमसंपराए --उवसमए
वा खवर वा, उवसंतमोहे, खोणमोहे, सजोगी केवली, अजोगी केवली ।।। ६. भरहेरवयाओ णं जीवाओ चउद्दस-च उद्दस जोयणसहस्साई चत्तारि य एगुत्तरे
जोयणसए छच्च एकूणवीसे भागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ॥ ७. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउद्दस रयणा पण्णत्ता, तं जहा
इत्थीरयणे सेणावइरयणे गाहावइरयणे पुरोहियरयणे वड्ढइरयणे आसरयणे हत्थिरयणे असिरयणे दंडरयणे चक्करयणे छत्तरयणे चम्मरयणे मणिरयणे
कागिणिरयणे । ८. जंबुद्दीवे णं दीवे चउद्दस महानईओ पुव्वावरेणं लवणसमुदं समप्पेंति', तं जहा-- ___ गंगा सिंधू रोहिआ रोहिअंसा हरी हरिकता सीआ सीओदा नरकंता नारिकता
सवण्णकला रुप्पकला रत्ता रत्तवई 11 ६. इमोसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस पलिओवभाई
ठिई पण्णत्ता !! १०. पंचमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं च उद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं च उद्दस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चउद्दस पलिओवमाइं ठिई पण्णता ।। १३. लंतए कप्पे देवाणं उक्कोसेणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पग्णत्ता ।। १४. महासक्के कप्पे देवाणं जहण्णेणं चउद्दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।।
जे देवा सिरिकंतं सिरिमहियं सिरिसोमनसंलंतयं काविट महिंदं महिंदोकतं" महिंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चउद्दस
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १. विरयाविरयसम्मदिट्टी (क, ख, ग)। ४. समुप्पेंति (ग)। २. उवसामए (क)।
५. महिंदकतं (क्व)। ३. खमए (ग)।
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समवाओ
१६. ते णं देवा चउद्दसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १७. तेसि णं देवाणं चउद्दसहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ। १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे च उद्दसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्झि
स्संति मुच्चिस्सति परिनिव्वाइस्सति ° सम्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
पण्णरसमो समवाओ १. पण्णरस परमाहम्मिआ पण्णत्ता, तं जहा---- संगहणी-गाहा
अंबे अबरिसी चेव, सामे सवलेत्ति यावरे। रुद्दोवरुद्दकाले य, महाकालेत्ति यावरे ।।१।। असिपत्ते धणु कुम्भे, वालुए वेयरणीति य ।
खरस्सरे महाघोसे, एमेते' पण्णरसाहिआ ।।२।। णमीण अरहा पण्णरस धणई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ३. धुवराहणं बहुल पक्खस्स पाडिवय पण्णरसइ' भागं पण्ण रसइ भागेणं चंदस्स
लेसं आवरेत्ताणं चिट्ठति, तं जहा - पढमाए पढमं भागं' 'बीआए बीयं भागं तइआए तइयं भागं च उत्थीए चउत्थं भाग पंचमोए पंचमं भागं छट्टीए छटुं भाग सत्तमीए सत्तमं भागं अट्ठमीए अट्ठमं भागं नवमीए नवम भागं दसमीए दसमं भागं एक्कारसोए एक्कारसमं भागं बारसीए बारसमं भागं तेरसीए तेरसमं भाग च उद्दसोए चउद्दसमं भागं° पण्णरसेसु पुण्णरसमं भाग । तं चेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा--पढमाए पढमं भागं जाव पण्ण रसेसु
पण्णरसम भाग । ४. छ णक्खता पण्णरसमुहुत्तसंजुत्ता पण्णत्ता, तं जहा--- संगहणी-गाहा
सतभिसय भरणि अद्दा, असलेसा साइ 'तह य" जेट्ठा य । एते छण्णक्खत्ता, पण्ण रसमुहुत्तसंजुत्ता ॥१॥
१. सं० पro-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण- ५. पडिवाते (ग)। ___ मंतं।
६. पन्नरस (क्व)। २. वावरे (क)।
७. सं. पा.--भागं जाव पण्णरसेसु । ३. एते (क, ग)।
८. तधव (क)। ४. निचराहू (ग)।
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पण्णरसमो समवाओ
८४६ ५. चेत्तासोएसु मासेसु सई पण्ण रसमुहुत्तो दिवसो भवति, सइ' पण्णरस मुहत्ता
राई भवति ॥ ६. विज्जाअणुप्पवायस्स' णं पुवस्स पण्ण रस वत्थू पण्णत्ता ।। ७. मणूसाणं पण्णरसविहे पओगे पण्णते, तं जहा-सच्चमणपओगे मोसमणपओगे
सच्चामोसमणपओगे असच्चामोसमणपओगे सच्चवइपओगे मोसवइपओगे सच्चामोसवइपओगे असच्चामोसवइपओगे ओरालिअसरीरकायपओगे ओरालिअमीससरीरकायपओगे वेउव्विअसरीरकायपओगे वेउव्विअमीससरीरकायपओगे आहारयतरीरकायपओगे आहारयमीससरीरकायपओगे कम्मय
सरीरकायपओगे।। ८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ।। ६. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस सागरोवमाई ठिई पण्णता ।। १०. असुरकुमारार्ण देवाणं अत्थेगइयाणं पण्णरस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।। ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पण्णरस पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। १२. महासुक्के कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं पण्णरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १३. जे देवा णंदं सुणंदं गंदावत्तं णंदप्पभं' •णंदकंतं णंदवणं णंदलेसं णंदज्झयं
णंदसिंगं गंदसिटुं णंदकूडं णंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि ण
देवाणं उक्कोसेण पण्णरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. ते णं देवा पण्णरसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा। १५. तेसि णं देवाणं पण्णरसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ॥ १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पण्णरसहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्सति सव्वदुक्खाण° मंतं करिस्संति ॥
१. ४ (क, ग)।
३. अणुप्प (क, ख, ग); नंदी (सू० ११३) २. सईय (ग); एवं चेत्तमामेसु (चेत सोएसु "विज्जाणप्पवाय' इति विद्यते ।
मासेस) (व); अष्टादशे समवाए (८) ४. सं० पा०-कंतं वणं लेसं जाव णंदत्त रवडेंवतिकृता 'सई' शब्दो व्याख्यातः । अत्र तु सगं । नास्ति व्याख्यातः । नासौ पाठः उपलब्ध ५. सं० पा-सिज्झिरसंति जाव अंतं । इति प्रतीयते।
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समवाओ
सोलसमो समवाओ
१. सोलस य गाहा-सोलसगा पण्णत्ता, तं जहा-समए वेयालिए उवसन्गपरिणा
इत्थिपरिणा निरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए वोरिए धम्मे
समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए' गंथे जमईए गाहा ॥ २. सोलस कसाया पण्णता, तं जहा-अणंताणुबंधो कोहे, "अणंताणुबंधी माणे,
अणंताणुबंधी माया, अणंताणुबंधी लोभे°, अपच्चक्वाणकसाए कोहे, "अपच्चक्खाणकसाए माणे, अपच्चक्खाणकसाए माया, अपच्चक्खाणकसाए लोभे', पच्चक्खाणावरणे कोहे, “पच्चक्खाणावरणे माणे, पच्चक्खाणावरणा माया, पच्चक्खाणावरणे लोभे°, संजलणे कोहे "संजलणे माणे, संजलणे माया
संजलणे लोभे ॥ ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस नामधेया पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
'मंदर-मेरु-मणोरम'", सूदंसण सयंपभे य गिरिराया। रयणच्च पियदसण, मज्झे लोगस्स नाभी य ।।१।। अत्थे अ सूरियावत्ते, सूरियावरणेत्ति य।
उत्तरे य दिसाई य, वडेंसे इअ सोलसे ॥२॥ ४. पासस्स णं अरहतो पुरिसादाणीयस्स सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ
समण-संपदा होत्था ॥ ५. आयप्पवायरस णं पुवस्स सोलस वत्थू पण्णत्ता ।। ६. चमरबलीणं ओवारियालेणे सोलस जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं
पण्णत्ते॥ ७. लवणे णं समुद्दे सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेहपरिवुड्ढीए" पण्णत्ते ।। ८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।।
१. अहातहिए (ग, बू)।
७. मंदरे मेरु मनोरमे (क)। २. गाहा सोलसमे (ख); गाहा सोलसए (ग); ८. सोलस (ख) । ___ गाहा सोलसमे सोलसगे (क्व)।
६. उवातिया लेणा (क); उवारिया लेणे (ग,व)। ३,४,५,६. सं० पा०–एवं माणे माया लोभे। १०. उच्छेह (ग)।
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सत्तरसमो समवाओ
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६. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस पलिओवमाइंठिई पण्णत्ता ।। ११. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पण्णता ।। १२. महासुक्के कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १३. जे देवा आवत्तं वियावत्तं नंदियावत्तं महार्णदियावत्तं अंकुसं अंकुसपलंबं भई
सुभदं महाभई सव्वओभई भद्दुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि
णं देवाणं उक्कोसेणं सोलस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. ते णं देवा सोलसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नोस
संति वा ॥ १५. तेसि णं देवाणं सोलसवाससहस्सेहि आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १६. संतेगइआ भवसिद्धिआ जोवा, जे सोलसहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुझि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण ° मंतं करिस्संति ॥
सत्तरसमो समवाओ सत्तरसविहे असंजमे पणते, तं जहा--पूढवीकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे, वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चरिदियअसंजमे पंचिंदियअसंजमे अजोवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उपेहाअसंजमे अवहटट असंजमे अप्पमज्जणाअसंजमे मणअसंजमे वहअसंजमे कायअसंजमे ।। सत्तरसविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा–पुढवोकायसंजमे' 'आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चरिदियसंजमे पंचिदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उपहासंजमे अवहटुसंजमे पमज्जणासंजमे मणसंजमे वइसंजमे ° कायसंजमे । ३. माणुसुत्तरे' णं पव्वए सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।। ४. सव्वेसिपि णं वेलंधर-अणुवेलंधर-णागराईणं आवासपव्वया सत्तरस-एक्क
वीसाई जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेण पण्णत्ता।
लवणे ण समहे सत्तरस जोयणसहस्साई सम्वग्गेण पण्णत्ते।। ६. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सातिरेगाई
सत्तरस जोयणसहस्साई उड्ढे उप्पतित्ता ततो पच्छा चारणाणं तिरिय गति पवत्तति ।।
१. सं० पा० --सिन्झिस्संति जाव अंतं ।
संजमे। २. सं० पा० ----पुढवीकायसंजमे एवं जाव काप- ३. माणसुत्तरे (क); माणुसत्तरे (ग)।
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समवाओ
७. चमरस्स णं असुरिदस्स असुर [ कुमार ? ] रण्णो तिमिछिकूडे उप्पायपव्वए सत्तर एक्कवीसाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ॥
८. बलिस्स णं' वतिरोयणिदस्स वतिरोयणरण्णो रुयगिंदे उपायपव्वए सत्तरस एकवीसाई जोयणसयाई' उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ॥
६. सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा - आवीईमरणे ओहिमरणे आयंतियमरणे' वलायमरणे वसट्टमरणें अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे बालमरणे पंडितमरणे बालपंडित मरणे छउमत्थमरणे केवलिमरणे वेहासमरणे गिद्धपट्टमरणे' भत्तपच्चक्खाणमरणे इंगिणीमरणे पाओवगमणमरणे ॥
१०. सुहुमसंपराएं णं भगवं सुहुमसंपरायभावे वट्टमाणे सत्तरस कम्मपगडीओ णिबंधति तं जहा - आभिणबोहियणाणावरणे सुयणाणावरणे ओहिणाणावरणे मणपज्जवणाणावर केवलणाणावरणे चक्खुदंसणावरणे अचक्खुदंसणावरणे ओही सणावर केवलदंसणावरणे सायावेयणिज्जं जसोकित्तिनामं उच्चागोयं दाणंतरायं लाभंतरायं भोगंतरायं उवभोगंतरायं वीरिअअंतरायं ॥ ११. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तरस पलिओ माई
ठिई पण्णत्ता ॥
१२. पंचमाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवभाई ठिई पण्णत्ता ॥ १३. छट्टीए पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेण सत्तरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ! १४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तरस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तरस पलिओ माई ठिई
पण्णत्ता |
१६. महासुक्के कप्पे देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १७. सहस्सारे कप्पे देवाणं जहणणेणं सत्तरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१८. जे देवा सामाणं सुसामाणं महासामाणं परमं महापउम कुमुदं महाकुमुदं नलिणं महानलिणं पोंडरीअं महापोंडरीअं सुक्कं महासुक्कं सीह सोहोकतं सीहबीअं भावि विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१६. ते णं देवा सत्तरसहि अद्धमासेहि आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१. सं० पा०- बलिस्स णं
२. ० सयाई साइरेगेणं ( क ); •सयाई साइरेगाई
( ख, ग )
३. अंतित ( क ) ।
४. वलय ( भ० २१४६ ) ; बलात (स्थानांग
२३६९) ।
५. वसह • ( क ); वसदृ ० ग ) |
o
६. गद्धपट्ट (क); गिद्धिपट्ट ( ग ); गिद्धपिट्ठ
(क्व ) । ७. सीहत (क्व ) ।
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अट्ठारसमो समवाओ २०. तेसि णं देवाणं सत्तरसहि वाससहस्सेहिं आहारट्रे समुप्पज्जइ ॥ २१. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तरसहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
अट्ठारसमो समवाओ १. अट्ठारसविहे बंभे पण्णत्ते, तं जहा -ओरालिए कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ',
नोवि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं 'सेवंतं पि' अण्णं न समणुजाणाइ। ओरालिए कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंत पि अण्णं न समणुजाणाइ। ओरालिए कामभोगे णेव सयं कायेणं सेवइ, नोवि अण्णं कारणं सेवावेइ, काएणं सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाइ। दिव्वे कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं पि अण्ण न समणुजाणाइ। दिव्वे कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाई। दिव्वे कामभोगे णेव सयं कारणं सेवइ, नोवि अण्णं कारणं सेवावेइ, कारणं
सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाइ॥ २. अरहतो णं अरिट्टनेमिस्स अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया
होत्था ॥ ३. समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं सखड्डयविअत्ताणं अट्ठारस ठाणा
पण्णत्ता,तं जहा---- संगहणी-गाहा
वयछक्क कायछक्कं, अकप्पो गिहिभायणं ।
पलियंक निसिज्जा य, सिणाणं सोभवज्जणं ।।१।। ४. आयारस्स णं भगवतो सचूलिआगस्स अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताई।। ५. बंभीए लिवीए५ अटारसविहे लेखविहाणे पण्णत्ते, तं जहा-१. बंभी
२. जवणालिया' ३. दोसऊरिया ४. खरोट्ठिया ५. खरसाहिया ६. पहाराइया
१. सं० पा०-सिभिस्संति जाव सव्वदुक्खाण। ५. भाएणं विबीए (क); बंभए णं लिविए (ग)। २. सेवेइ (क, ख)।
६. जवणाभिलिया (ख)। ३. सेवते पि (ख); सेवंते वि (ग) । ७. दासऊरिया (क); दसाऊरिया (ग) 1 ४. जाणइ (ख, ग)।
८. पुक्करसाविया (क)।
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समवाओ
७. उच्चत्तरिया' ८. अक्खरपुट्ठिया ६. भोगवइया" १०. वेणइया ११. निण्हइया १२. अंकलिवी १३. 'गणियलिवी १४. गंधवलिवी" १५. आयंसलिवी'
१६. माहेसरी' १७. दामिली १८. पोलिदी। ६. अत्थिनत्थिप्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू पण्णत्ता ॥ ७. धूमप्पभा णं पुढवी अट्ठारसुत्तरं जोयणसयहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ता ।। ८. पोसासाढेसु णं मासेसु सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइ उक्कोसेणं
अद्वारसमुहुत्ता राती भवइ ।। ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं अट्ठारस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।। १०. छट्टीए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णता ।। ११. असुरकुमाराण देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १३. सहस्सारे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १४. आणए कप्पे देवाणं जहणेणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिटुं सालं समाणं दुमं महादुमं विसालं
सुसालं पउमं पउमगुम्म कुमुदं कुमुदगुम्म नलिणं नलिणगुम्म पुंडरीअं पुंडरीयगुम्मं सहस्सारवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं [उक्कोसेणं?]
अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १६. ते णं देवाणं अट्ठारसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १७. तेसि णं देवाणं अट्ठारसहि वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे अट्ठारसहिं भवगह सिज्झिस्संति
'बुझिरसंति मुच्चिस्संति परिनिन्वाइस्सति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
१. चुच्चत्तरिया (क)।
६. माहेसरलिवी (क, ख, ग)। २. भोगवयता (क, ख, ग)।
७. दामिलिवी (क, ख, ग)। ३. देणणिया (ग)।
८. वोलिदिलिवी (क, ख, ग)। ४. गणियलिवी गंधवलिबी भुयलिवी (ख); ६. द्रष्टव्य (९।१७) टिप्पणम् ।
गंधवलिवी गणियलिवी भूयलिवी (ग)। १०. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ! ५. आदंसलिवी (ग)।
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एगणवीसमो समवाओ
एगूणवीसमो समवाओ १. एगूणवीसं णायज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी गाहा
उक्खित्तणाए संघाडे, अंडे कुम्मे य सेलए। तुंबे य रोहिणी मल्ली', मागंदी चंदिमाति य ॥१॥ दावद्दवे उदगणाए, मंडुक्के तेतलीइ य । नंदीफले अवरकंका, आइण्णे 'सुसुमाइ य ॥२॥
अवरे य पोंडरीए, णाए एगूणवीसइमे ।। २. जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिआ उक्कोसेणं एकूणवीसं जोयणसयाई उड्ढमहो तवंति। ३. सुक्केणं महग्गहे अवरेणं उदिए समाणे एकूणवीसं णक्खत्ताइं समं चारं चरित्ता
अवरेणं अत्थमणं उवागच्छइ ।। ४. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स कलाओ एकूणवीसं छेयणाओ पण्णत्ताओ। ५. एगणवीसं तित्थयरा अगारमज्झा' वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ
अणगारिअंपव्वइआ ।। ६. इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगणवीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ।। ७. छट्ठीए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ८. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। ६. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एगूणवीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ १०. आणयकप्पे देवाणं उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ११. पाणए कप्पे देवाणं जहण्णेणं एगणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १२. जे देवा आणतं पाणतं गतं विणतं घणं सुसिरं इंदं इंदोकतं इंदुत्तरवडेंसगं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता । १३. ते णं देवा एगूणवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १४. तेसि णं देवाणं एगूणवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ।
१. मल्ले (क)। २. सुंसुसमातिय (ग)। ३. एकूणविंसतेमे (ग)।
४. तवयम्मि (ग)। ५. मज्झे (क्व)।
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समवाओ
१५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एगणवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'वुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
वीसइमो समवाओ १. वीसं असमाहिठाणा पण्णत्ता, तं जहा-१. दवदवचारि यावि भवइ २. अपम
ज्जियचारि यावि भवइ ३. दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ ४. अतिरित्तसेज्जासणिए ५. रातिणियपरिभासी ६. थेरोवघातिए ७. भूओवधातिए ८. संजलणे है. कोहणे १०. पिट्टिमंसिए ११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ १२. णवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विओसवियाण' पुणोदोरेत्ता भवइ १४. ससरक्खपाणिपाए १५. अकालसज्झायकारए यावि भवइ १६. कलहकरे १७. सद्दकरे १८. झंझकरे
१६. सूरप्पमाणभोई २०. एसणाऽसमिते आवि भवइ ।।। २. मुणिसुव्वए णं अरहा वीसं धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था । ३. सब्वेवि णं घणोदही वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ता॥ ४. पाणयस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वीसं सामाणिअसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।। ५. णपुंसयवेयणिज्जस्स ण कम्मस्स बोसं सागरोवमकोडाकोडीओ बंधओ बंधठिई
पण्णत्ता ॥ ६. पच्चक्खाणस्स णं पुवस्स वीसं वत्थू पण्णत्ता ।। ७. 'ओसप्पिणि-उस्सप्पिणि-मंडले वोस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो पण्णत्तो।। ८. इमोसे ण रयणप्पभाए पुढवाए अत्थेगइयाण नेरइयाणं वीसं पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता॥ ६. छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं वीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं वीस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १२. पाणते कप्पे देवाणं उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।। १३. आरणे कप्पे देवाणं जहणणं वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १४. जे देवा सात विसातं सुविसातं सिद्धत्थं उप्पलं 'रुइलं तिगिच्छं दिसासोत्थिय___ वद्धमाणयं पलंब" पुप्फ सुपुप्फ पुप्फावत्तं पुप्फपभं पुप्फकंतं पुप्फवण्णं पुप्फलेसं
१. सपा-सिज्झिस्संति जाव सम्वदुक्खाण 1 ५. विउसमियाण (ग)। २. पारिभासी (क)।
६. उस ओस ° (क); उस° उस ° (ग)। ३. कोवणे (क)।
७. भित्तिलं तिगिच्छ दिसासोवत्थियं पलंब रूइल ४. पिद्विमसए (ग)।
(क्व)।
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एक्कवीस इमो समवाओ
६५७
पुप्फज्झयं पुष्फसिगं पुप्फसिटुं पुप्फकूड' पुप्फुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए
उववण्णा, तेसि गण देवाणं उक्कोसेणं वीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १५. ते णं देवा वीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १६. तेसि णं देवाणं वीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १७. सतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुज्झिस्सति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंत करिस्सति ।।
एक्कवीसइमो समवाओ एक्कवीसं सबला पण्णत्ता, तं जहा--१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले। २. मेहुणं' पडिसेवमाणे सबले । ३. राइभोयणं भुंजमाणे सबले । ४. आहाकम्म भुजमाणे सबले । ५. सागारियपिडं भुजमाणे सबले । ६. उद्देसियं, कोयं, आह१ 'दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले । ७. अभिक्खण पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाण सबले । ८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गण संकममाणे सबले । ६. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले । १०. अतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले । ११. रायपिंड भुंजमाणे सबले । १२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले । १३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले । १४. आउट्टिआए अदिण्णादाणं गिव्हमाणे सबले। १५. आउट्टिआए अणंतरहिआए पुढवीए ठाण वा निसोहियं वा चेतेमाणे सबले। १६. आउट्टियाए ससणिद्धाए पुढवीए सस रक्खाए पुढवीए ठाणं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १७. आउट्टिआए चित्तमंताए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंसि वा दारुए [अण्णयरे वा तहप्पगारे ?] जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउत्तिगे पणग-दगमट्टी-मक्कडासंताणए ठाणं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले। १८. आउट्टिआए मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा खंधभोयणं वा तयाभोयणं वा पवालभोयणं वा पत्तभोयणं वा पुष्फभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरियभोयणं वा भुजमाणे सबले। १६. अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले । २०. अंतो संवच्छ रस्स दस माइठाणाई सेवमाणे
१. X (क्व)। २. सं० पा०-सिज्झिस्सति जाव सव्वदुक्खाण°1 ३. मेहुणे (क)। ४. अत्र पाठपूर्तिदशाश्रु तस्कन्धतः कृता किन्तु
क्रमो वृत्त्यनुसारी स्वीकृतः। सं० पा०
कीयं आहट्ट जाव अभिक्खणं । ५. वृत्त्यनुसारेणासौ पाठो युज्यते ।
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८५६
समवेओ
सबले । २१. 'अभिक्खणं-अभिक्खणं सीतोदय-वियड-वग्घारिय-पाणिणा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहिता भुजमाणे सबले"। णिअट्टिबादरस्स णं खवितसत्तयस्स मोहणिज्जस्स कम्मस्स एक्कवीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता, तं जहा-अपच्चक्खाणकसाए कोहे "अपच्चक्खाणकसाए भाणे अपच्चक्खाणकसाए माया अपच्चक्खाणकसाए लोभे० पच्चक्खाणावरणे' कोहे "पच्चक्खाणावरणे माणे पच्चक्खाणावरणा माया पच्चक्खाणावरणे लोभे संजलणे कोहे "संजलणे माणे संजलणे माया संजलणे लोभे इत्थिवेदे
पुंवेदे नपुंसयवेदे हासे अरति रति भय सोग दुगुंछा ।। ३. एकमेक्काए णं ओसप्पिणीए पंचमछट्ठाओ समाओ एक्कवीसं-एक्कवीसं __ वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ, तं जहा-दूसमा दूसमदूसमा य ।। ४. एगमेगाए णं उस्सप्पिणीए पढमबितियाओ समाओ एक्कवीसं-एक्कवीसं
वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ, तं जहा --- दुसमसमा दुसमा य ।। ५. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एकवीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता। ६. छटीए पूढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं एकवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ७. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ८. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कवीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ है. आरणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १०. अच्चुते कप्पे देवाणं जहणणं एकवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. जे देवा सिरिवच्छं सिरिदामगंडं मल्लं किट्टि चावोण्णतं आरण्णवडेंसगं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोदभाई ठिई
पण्णत्ता। १२. ते णं देवा एक्कवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा उससंति वा
नीससंति वा ॥ १३. तेसि णं देवाणं एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुपज्जइ ॥ १४. संतेगइआ भवसिद्धिया जीवा, जे एक्कवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति"
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
१. असौ पाठांशो वृत्त्यनुसारी स्वीकृतः दशाश्रु त- ३. पचक्खाणकसाए (ग)।
स्कन्धेसौ किञ्चिद्भेदेन लभ्यते, यथा-- ४,५. सं० पा०-एवं माणे माया लोभे। 'आउट्टियाए सीतोदगवग्घारिएण हत्थेण वा ६. किट्ठ (ग)।
मत्तेण वा दविए भायणेण वा असणं वा"। ७. सं० प्रा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण 1 २. सं० पा०- एवं माणे माया लोभे ।
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बावीस इमो समवाओ
८५४
बावीसइमो समवाओ १. बावीसं परीसहा पण्णता, तं जहा-दिगिछापरीसहे पिवासापरीसहे सीतपरी
सहे उसिणपरीसहे दंसमसगपरीसहे' अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थिपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जापरीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे जल्लपरीसहे
सक्कारपरक्कारपरीसहे 'नाणपरीसहे दसणपरीसहे पण्णापरीसहे" ।। २. दिट्टिवायस्स णं वावीसं सुत्ताई छिण्णछेयणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए ।
वावीसं सुत्ताई अछिण्णछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडोए । बावीसं सुत्ताई तिकणइयाइं तेरासिअसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए" ।। ३. बावीसइविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णपरिणामे नीलवण
परिणामे लोहियवण्णपरिणामे हालिवण्णपरिणामे सुविकल्लवण्णपरिणामे सुब्भिगंधपरिणामे दुब्भिगधपरिणामे तित्तरसपरिणामे "कडुयरसपरिणामे कसायरसपरिणामे अबिलरसपरिणामे महररसपरिणामे° कक्खडफासपरिणामे मउयफासपरिणामे गरुफासपरिणामे लहुफासपरिणामे सीतफासपरिणामे उसिणफासपरिणामे गिद्धकासपरिणामे लुक्खफासपरिणामे 'गरुलहुफासपरिणामे
अगरुलहुफासपरिणामे" । ४. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बावीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ५. छट्ठीए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं बावोसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ६. अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । ७. अस रकमाराण देवाणं अत्थेगडया णं बावीसं पलिओवमाईठिई पण्णत्ता।
अत्थेगइयाणं देवाणं बावीसं पलिओमाइंठिई पण्णता ।। ६. अच्चुते कप्पे देवाणं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेवेज्जगाणं देवाणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता॥
१. दंसमसगफासप (क)। २. तणपरीसहे (क, ग)। ३. अण्णाण दंसण° पण्णा' (क, ख, दृपा);
अन्नाणादसण° पण्णा ° (ग); पन्ना
अन्नाण ° दंसण ° (उत्तरा ° २ सू० ३)। ४. समय (ग)।
५. कालय ° (क, ग)। ६. सं० पा०-एवं पंचवि रसा । ७. गरुयलय ० अगरुलहुय° (क); गरुलहु ०
अगस्यलय (ख), गरुलहय अगरुलह
(ग)। ८. गेवेज्जाणं (क, ग)।
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८६०
समवाओ
११. जे देवा महितं विसुतं' विमलं पभासं वणमालं अच्चुतवडेंसगं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाण उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता । १२. ते णं देवा बावीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १३. तेसि णं देवाणं बावीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे बावीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
तेवोसइमो समवाओ १. तेवीसं सूयगडज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - समए वेतालिए उवसग्गपरिण्णा
थोपरिण्णा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए विरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए' गंथे जमईए गाहा पुंडरीए किरियठाणा
आहारपरिण्णा अपच्चक्खाणकिरिया अणगारसूयं अद्दइज्जं णालंदइज्ज ! २. जंबुद्दोवे णं दोवे भारहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए तेवीसाए' जिणाणं
सूरुग्गमणमुहुत्तंसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ।। ३. जंबुद्दीवे णं दोवे इमोसे ओसप्पिणाए तेवीसं तित्थकरा पुव्वभवे एक्कारसंगिणो
होत्था, तं जहा-अजिए संभवे अभिणदणे 'सुमतो पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले अणंते धम्मे संती कुथ अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिडणेमी° पासे वद्धमाणे य । उसभे णं अरहा कोसलिए
चोद्दसपुव्वी होत्था॥ ४. जंबूद्दीवे णं दीवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थगरा पुत्वभवे मंडलिय
रायाणो होत्या, तं जहा-अजिए संभवे अभिणंदणे 'सुमती पउमप्यभे सुपासे चदप्पहे सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले अणंते धम्मे संती कुंथु अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिट्ठणेमी० पासे" वद्धमाणे य" । उसभे गं अरहा
कोसलिए चक्कवट्टी" होत्था ॥ १. विस्सुतं (क, ख); विसूहियं (क्व)। ८. पासो (क, ख, ग)। २. पभातं (क)।
६. त्ति (ख)। ३. सं० पा०-सिज्झिस्सति जाव सव्वदुक्खाण। १०. सं० पा०-अभिणंदण जाव पास। ४. समोसरिणे (क); समोसरिए (म) ! ११. पासो (क, ख, ग)। ५. अधत्तधेए (क)।
१२. त्ति (ख)। ६. तेवीस (क, ग)।
१३. पुन्वभवे चक्कवट्टी (क्व)। ७. सं० पा०–अभिणंदण जाव पास।
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चउध्वीसइमो समवाओ
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्यगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ॥ ६. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ! ७. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेवीसं पलिओबमाइं ठिई पण्णता ।। ८. सोहम्मीसाणाणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ९. हेटिम-मज्झिम-गेविज्जाणं' देवाणं जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. जे देवा हेट्रिम-हेट्ठिम-गेवेज्जयविभाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेण तेवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. ते णं देवा तेवीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १२. तेसि णं देवाणं तेवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १३. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तेवोसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति'
बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
चउव्वीसइमो समवाओ १. चउब्बीसं देवाहिदेवा पण्णत्ता, तं जहा-उसभे अजिते' 'संभवे अभिणंदणे
सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले अणते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिटणेमी पासे
वद्धमाणे ॥ २. चुल्ल हिमवंतसिहरीणं वासहरपन्वयाणं जीवाओ चउव्वीसं-चउव्वीसं
जोयणसहस्साई णवबत्तीसे जोयणसए एगं च अट्टत्तीसई भाग जोयणस्स
किंचिविसेसाहिआओ आयामेणं पण्णत्ताओ॥ ३. चउवीसं देवदाणा सइंदया पण्णत्ता, सेसा अहमिदा अनिंदा अपुरोहिआ । ४. उत्तरायणगते णं सूरिए चउवीसंगुलियं पोरिसियछायं णिव्वत्तइत्ता णं
णिअट्टति ॥ ५. गंगासिंधूओ णं महाणईओ पवहे सातिरेगे चउवीसं कोसे वित्थारेणं
पण्णत्ताओ!
१. गेवेज्जगाणं (ख)।
३. सं० पा०-अजित जाव बद्धमाणे । २. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण °। ४. अद्रुतीस (क, ग)।
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८६२
समवाओ
६. रत्तारतवतीओ णं महाणदीओ पवहे सातिरेगे चउवीसं कोसे वित्थारेणं पण्णत्ताओ ||
७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउवीसं पलिओदमाई ठिई पण्णत्ता ॥
८. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं चउवीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ||
६. असुरकुमाराणं देवानं अत्येगइयाणं चउवीसं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवानं चउवीसं पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता ||
११. हेट्ठिम उवरिम- गे वेज्जाणं देवाणं जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. जे देवा हेदिम-मज्झिम- गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाण उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१३.
ते णं देवा चवीसाए अद्धमासाणं अणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१४. तेसि णं देवाणं चउवीसाए वाससहस्सेहि' आहारट्ठे समुप्पज्जइ || १५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे चवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' "बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्सति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥
पणवीसइमो समवाओ
१. पुरिमपच्छिमताणं' तित्थगराणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. इरियासमिई २ मणगुत्ती ३. वयगुत्ती ४. आलोय - भायण-भोयणं ५. आदाण- भंड-मत्त-निक्खेवणासमिई ।
१. अणुवीति भासणया २ कोहविवेगे ३. लोभविवेगे ४. भयविवेगे ५. हासविवेगे ।
१. उग्गह' - अणुण्णवणता २. उग्गह सीमजाणणता ३ सयमेव उग्गहअणुगेण्हता ४. साहम्मियउग्गहं अणुष्णविय परिभुंजणता ५. साधारणभत्तपाणं अणुविय परिभुंजणता" ।
१. वाससहस्साणं ( क, ख, ग ) ।
२. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ३. पच्छिमताणं (ग); ० पच्छिमंगाणं (क्व ) । ४. पणुवी ( क, ख ) प्रायः सर्वत्रापि ।
५. आलोयण ( क, ख ) ।
६. उग्गहाणं (वृ) ।
७. पड़ि ० ( क, ख, ग ) ।
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पणवीसइमो समवाओ
१. इत्थी-पसु-पंडग-संसत्तसयणासणवज्जणया २. इत्थी-कहविवज्जणया ३. इत्थीए इंदियाण आलोयण-वज्जणया ४. पुन्वरय-पुन्वकोलिआणं अणणुसरणया ५. पणीताहारविवज्जणया। १. सोइंदिय रागोवरई २. "चक्खिदियरागोवरई ३. घाणिदिय रागोवरई ४.
जिभिदियरागोवरई ५. फासिंदियरागोवरई ॥ २. मल्ली गं अरहा पणवीसं धण्इ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ३. सव्वेवि णं दीहवेयड्ढपव्वया पणवोसं-पणवीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं,
पणवीसं-पणवीसं गाउयाणि उव्वेहेणं पण्णत्ता ।। ४. दोच्चाए ण पुढवीए पणवीस णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ ५. आयारस्स णं भगवओ सचूलियायस्स पणवीस अज्झयणा पण्णत्ता' ।। ६. मिच्छादिदिविलिदिए णं अपज्जत्तए' संकिलिटूपरिणामे नामस्स कम्मस्स
पणवीसं उत्तरपयडीओ णिबंधति, त जहा –तिरियगतिनाम विगलिदियजातिनाम ओरालियसरीरनामं तेअगसरीरनाम कम्मगसरीरनामं हुंडसंठाणनाम
१. सं० पा०एवं पंचवि इंदिया ।
जे सद्दरूवरसगंधमागए, २. वाचनान्तरे आवश्यकानुसारेण दृश्यन्ते (वृ)।
फासे य सपप्प मणपणपावए। आवश्यकनियुक्तेरवचूर्णौ पंचविशंति भावनानां गिहीपदोसं न करेज्ज पंडिए, विवरणमित्थं लभ्यते--
___स होइ दंते विरए अकिंचणे ॥५॥ इरियासमिए सया जए,
-~-आवश्यकनिर्युक्तेरवचूर्णि : १० १३४ ___उवेह भुजेज्ज व पाणभोयणं । ३. सत्थपरिण्णा लोगआवाणनिक्षेवदुगुंछ संजए,
विजओ सीओसणीअ सम्मत्तं । समाहिए संजमए मणोवई ॥१॥
आवतिधुयविमोह,
उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥१॥ अहस्ससच्चे अणुवीइ भासए,
२. पिंडेसण सिज्जिरिआ, जे कोहलोहभयमेव वज्जए ।
भासज्झयणा य वत्थ पाएसा । स दोहरायं समुपेहिया सिया,
उग्गहपडिमा सत्तिक्क, मुणी हु मोसं परिवज्जए सया ॥२॥
सत्तया भावण विमुत्ती ॥२॥ सय मेव उ उग्गहजायणे घडे,
निसीहज्झयण पणवीसइम । मतिमं निसम्म सह भिक्खु उपाहं । प्रयुक्तप्रतिषु गाथे इसे नोपलभ्येते । वृत्ताबपि अणुण्णविय भुंजिज्ज पाणभोयणं,
न स्त इमे व्याख्याते । मुद्रितप्रतिषु च जाइत्ता साहमियाण उग्गहं ॥३॥ लभ्येते । तथाऽनयोः पुरतः 'निसीहज्झयणं आहारगुत्ते अविभूसियप्पा,
पणवीस इम' इत्यपि पाठो विद्यते । अयमनाइत्थिं निझाइ न संथवेज्जा। वश्यकोस्ति । पंचविशतिरध्ययनानि द्वयोबुद्धो मुणी खुड्डकहं न कुज्जा,
राचाराङ्गयोरेव सन्ति । धम्माणुपेही संधए बंभचेरं ।।४॥ ४. अपज्जत्तए णं (ख)।
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८६४
समवाओ
ओरालियसरीरंगोवंगनाम सेवट्टसंघयणनाम वण्णनामं गंधनाम रसनामं फासनामं तिरियाणपुम्विनामं अगरुयलहुयनाम उवघायनामं तसनामं बादरनाम अपज्जत्तयनाम पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं असुभनामं दुभगनामं अणादेज्जनामं
अजसोकित्तिनामं निम्माणनामं ।। ७. गंगासिंधुओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेण' दुहओ घडमुह
पवित्तिएणं मृत्तावलिहार-संठिएणं पवातेणं पवडंति ॥ ८. रत्तारत्तवतीओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं' दुहओ मकरमुह
पवित्तिएणं मुत्तावलिहार-संठिएणं पवातेणं पवडंति ॥ ६. लोविंदुसारस्स णं पुव्वयस्स पणवीसं वत्थू पण्णत्ता ॥ १०. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पणवीस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥ ११. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रक्ष्याणं पणवीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। १२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं पणवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णता ।। १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं पणवीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ! १४. मज्झिम-हेट्ठिम-गेवेज्जाणं देवाणं जहण्णेणं पणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १५. जे देवा हेट्ठिम-उवरिम-गेवेज्जगविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसिणं देवाणं
उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १६. ते ण देवा पणवीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १७. तेसि णं देवाणं पणवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पणवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
छव्वीसइमो समवाओ
१. छव्वीसं दस-कप्प-ववहाराणं उद्देसणकाला पण्णत्ता, तं जहा--दस दसाणं,
छ कप्पस्स, दस ववहारस्स ।। २. अभवसिद्धियाणं जीवाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स छव्वीसं कम्मंसा संतकम्मा
१. छेवटु° (क्व)। २. अगस्यलहु ° (ख, ग); अगुरुलहु (क्व)।
३,४. पुहत्तेणं (क, ख, म) ! ५. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ।
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सत्तावीसइमो समवाओ
८६५
पण्णत्ता, तं जहा - मिच्छत्त मोहणिज्जं सोलस कसाया इत्थीवेदे पुरिसवेदे नपुंसक वेदे हासं अरति रति भयं सोगो' दुगंछा' |
३. इमी से गं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छब्वीसं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥
४. असत्तमाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं छवीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
५. असुरकुमाराणं देवानं अत्येगइयाणं छव्वीसं पलिओमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओदमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
७. मज्झिम- मज्झिम- गेवेज्जयाणं देवाणं जहणेणं छब्बीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
८. जे देवा मज्झिम हेट्ठिम- गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं छब्बीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
६. ते णं देवा छब्वीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१०. तेसि णं देवाणं छव्वीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुपज्जइ ॥
११. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे छब्वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति* * बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥
सत्तावीसइमो समवाओ
१. सत्तावीस अणगारगुणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवायवेरमणे" "मुसावायवेरमणे अदिण्णादाणवे रमणे मेहुणवेरमणे परिग्गहवेरमणे सोइंदियनिगहे' चक्खिदयनिग्गहे घाणिदियनिगहे जिभिदियनिग्गहे फासिंदियनिग्गहे head' 'माणविवेगे मायाविवेगे लोभविवेगे भावसच्चे करणसच्चे जोगसच्चे खमा विरागता मणसमाहरणता वतिसमाहरणता कायसमाहरणता णाणसंपण्या दंसण संपण्णया चरित्तसंपण्णया वेयणअहियासणया " मारणंतियअहियासणया ||
१. मिच्छामो ० ( क ) ।
२. सोगं (क)
३. दुर्गुछं (क) ।
४. सं० पा०-सिज्भिस्संति जाव सव्वदुक्खाण |
४. वेरमणा ( क ) ।
o
O
o
६. सं० पा० – एवं पंचवि ।
७. सं० पा० - सोइंदियनिग्गहे जाव फासिदिय । ८. स० पा०—कोहेविवेगे जाव लोभ ● 1
६.
१०.
समन्नाहरणया (वृपा) ।
० अधेया ० ( क ) |
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समवाओ
२. जंबद्दीवे दीवे अभिइवज्जेहि सत्तावीसाए णक्खत्तेहिं संववहारे वदति ॥ ३. एगमेगे णं णक्खत्तमासे 'सत्तावीसं राइंदियाई" राईदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ४. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी सत्तावीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं पगणत्ता। ५. वेयगसम्मत्तबंधोवरयस्स णं' मोहणिज्जस्स कम्मस्स सत्तावीसं 'कम्मंसा संत
कम्मा" पण्णत्ता। ६. सावण-सुद्ध-सत्तमीए णं सुरिए सत्तावीसंगुलियं पोरिसिच्छायं णिवत्तइत्ता ण
दिवसखेत्तं निवड्ढेमाणे रयणिखेत्तं अभिणिवड्ढेमाणे चारं चरइ ।। ७. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।। ८. अहेसत्तमाए पुढबीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तावीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ।। ६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता॥ १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्गइयाणं देवाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णता ।। ११. मज्झिम-उवरिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहणणं सत्तावीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥ १२. जे देवा मज्झिम-मज्झिम-गेवेज्जयमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. ते णं देवा सत्तावीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १४. तेसि णं देवाणं सत्तावीसाए वाससहस्से हिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तावीसाए भवगहणेहि सिज्झिस्संति'
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिब्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
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१. सत्तवीस रातिदिपाई (ख); सत्तावीसं राइंदियं शब्दार्थः सत्तावस्थं कर्म कृतोस्ति । अत्र (ग)।
'उत्तरप्रकृतिः' शब्दो मूलपाठे समागतस्तथा २. X (क, ग)।
'संतकम्म' शब्दस्य स्थाने 'सतकम्मसा' इति ३. उत्तरपगडीओ संतकम्मंसा (क, ख, ग, तृ); पाठो जातः । एतत् परिवर्तनं किमर्थजात
एकविंशतितमे समवाये 'कम्मंसा संतकम्मा' मितिकारणं न ज्ञायते । प्रतीयते व्याख्यांश एवं पाठो विद्यते । षड्विंशतितमे अष्टा- एव मूले स्थान प्राप्तोस्ति । तेनास्माभिर्मूलविशतितमे समवाये चापि एवमेव । एक- पाठः पूर्वपाठानसारी स्वीकत: । विंशतितमे समवाये वृत्तिकृता 'कम्स' ४. णिव्वड्ढे (ग)। शब्दस्यार्थ उत्तरप्रकृतिस्तथा 'संतकम्म' ५. सं० पा०-सिज्झिरसंति जाव सव्वदुक्खाण 1
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अट्ठावीसइमो समवाओ
८६७
अट्ठावीसइमो समवाओ १. अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे' पण्णत्ते, तं जहा -
मासिया आरोवणा, सपंचरायमासिया आरोवणा, सदसरायमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायमासिया आरोवणा, सवीसइरायमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायमासिया आरोवणा। "दोमासिया आरोवणा, सपंचरायदोमासिया आरोवणा, सदसरायदोमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायदोमासिया आरोवणा, सवीसइरायदोमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायदोमासिया आरोवणा। तेमासिया आरोवणा, सपंचरायतेमासिया आरोवणा, सदसरायतेमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायतेमासिया आरोवणा, सवीसइरायतेमासिया आरोवणा, सपंचवीस रायतेमासिया आरोवणा। चउमासिया आरोवणा, सपंचरायचउमासिया आरोवणा, सदसरायचउमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायचउमासिया आरोवणा, सवीसइरायचउमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायचउमासिया आरोवणा । उग्घातिया आरोवणा, अणुग्घातिया आरोवणा, कसिणा आरोवणा, अकसिणा आरोवणा।
एत्ताव ताव आयारपकप्पे एत्तावताव आयरियव्वे ॥ २. भवसिद्धियाणं जीवाणं अत्थेगइयाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स अट्ठावीसं कम्मसा
संतकम्मा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मत्तवेअणिज्ज मिच्छत्तवेयणिज्जं सम्ममिच्छत्त
वेयणिज्ज" सोलस कसाया णव णोकसाया ।। ३. आभिणिबोहियणाणे अठ्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तं जहा
सोइंदियत्थोग्गहे' चक्खिदियत्थोग्गहे धाणिदियत्थोग्गहे जिभिदियत्थोग्गहे फासिदियत्थोग्गहे णोइंदियत्थोग्गहे। सोइंदियवंजणोग्गहे धाणिदियवंजणोग्गहे जिभिदियवंजणोग्गहे फासिदियवंजणोरगहे।
१. अट्ठावीसइविहे (ख, ग)।
७. आयारकप्पे (क)। २. आयारकप्पे (क)।
८. इत्ताव (क, ग)। ३. सं० पा०–एवं चेव दोमासिया आरोवणा १. आया ° (क, ख) ।
संपंचरायदोमासिया आरोवणा एवं तेमा- १०. सतकम् (क); संतकम्मं (ग)। सिया आरोवणा एवं चउमासिया आरोवणा। ११. सम्मा० (ख); सम्मत्त (ग)। ४. उवघातिया (ग)।
१२. सोतिदियत्थोवग्गहे (ग) ! ५. अणुवधातिया (ग)।
१३. चक्खंदियत्थोग्गहे (ख); चक्खंदिय स्थावग्गहे ६. इत्ताव (क, ग)।
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८६८
समवाओ सोतिदियईहा' चक्खिदियईहा पाणिदियईहा जिभिदियईहा° फासिदियईहा गोइंदियईहा। सोतिदियावाते' चक्खिदियावाते घाणिदियावाते जिभिदियावाते फासिंदियावाते ° णोइंदियावाते । सोइंदियधारणा' 'चक्खिदियधारणा घाणिदियधारणा जिभिदियधारणा
फासिदियधारणा णोइंदियधारणा ॥ ४. ईसाणे णं कप्पे अट्ठावोसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।। ५. जीवे णं देवगति णिबधमाणे नामस्स कम्मस्स अट्ठावोसं उत्तरपगडोओ णिबंधति,
तं जहा-देवगतिनाम पंचिदियजातिनाम वेउब्वियसरीरनामं तेययसरीरनाम कम्मगसरीरनाम समचउरंससंठाणनामं वेउव्वियसरीरंगोवंगनामं वण्णनामं गंधनामं रसनामं फासनामं देवाणुपुग्विनामं अगरुयलहुयनाम उवघायनामं पराधायनाम ऊसासनामं पसत्थविहायगइनाम तसनामं बायरनाम पज्जत्तनाम पत्तेयसरीरनाम थिराथिराणं' दोण्हमण्णयरं एगं नामं णिबंधइ, सुभासुभाण दोण्हमण्णयरं एग नाम णिबंधइ, सुभगनामं सुस्सरनाम, आएज्ज-अणाएज्जाणं
दोण्ह अण्णयर एग नाम णिबंधइ, जसोकित्तिनामं निम्माणनाम ॥ ६. एवं चेव नेरइयेवि, नाणत्तं अप्पसत्थविहायगइनाम हुडसंठाणनामं अथिरनाम
दुब्भगनामं असुभनामं दुस्सरनाम अणादेज्जनाम अजसोकित्तीनाम । ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठावीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।। ८. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्गइयाणं नेरइयाणं अट्ठावीसं सागरोदमाई ठिई
पण्णत्ता ।। ६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठावीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठावोस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। ११. उवरिम-हेट्ठिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णता॥ १२. जे देवा मज्झिम उवरिम-गेवेज्जएसु विमाणेसु देवताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
१. सं० पा०-पोतिदिथईहा जाव फासिदिय ईहा। ६. अजसोकित्तीनाम निम्माणनाम (क, ख, ग); २. सं०पा०-मोतिदियावाते जाव णोइंदियावाते। एष पाठोऽनावश्यको भाति । वृत्तावपि एतत् ३, सं० पा०-सोइदियधारणा जाव णोइंदि- संवादी उल्लेखः प्राप्यते-नारकसूत्रे विंशतिधारणा।
स्ता एवं प्रकृतयोऽष्टानां तु स्थाने अष्टावन्या ४. थिरमथिराण (क)।
बध्नाति' (वृत्ति, पत्र ४७)। ५. जेरइयादि (ख, ग)।
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एगूणतीसइमो समवाओ १३. ते णं देवा अट्ठावीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। . १४. तेसि णं देवाणं अट्ठावीसाए वाससहस्से हिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे अट्ठावीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
एगूणतीसइमो समवायो १. एगूणतीसइविहे पावसुयपसंगे णं पण्णत्ते, तं जहा–भोमे उप्पाए सुमिणे अंत
लिक्खे अंगे सरे वंजणे लक्खणे । भोमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्ते वित्ती वत्तिए, एवं एक्कक्क तिविहं। विकहाणुजोगे विज्जाणुजोगे मंताणुजोगे जोगाणुजोगे अण्णतित्थियपवत्ताणुजोगे। २. आसाढे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ३. 'भद्दवए णं मासे एकूणतीसराइंदिआई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ४. कत्तिए णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ५. पोसे' णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ६. फग्गुणे णं मासे एकूणतीसराइंदिआई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ७. वइसाहे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ८. चंददिणे णं एगणतीसं मुहुत्ते सातिरेगे मुहत्तग्गेणं' पण्णत्ते ।। 8. जीवे णं पसत्थज्झवसाण जुत्ते भविए सम्मदिट्ठी 'तित्थकरनामसहियाओ नामस्स
कम्मस्स" णियमा एगणतीसं उत्तरपगडीओ निबंधित्ता वेमाणिएसु देवेसू देवत्ताए उववज्जइ॥ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।। ११. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥ १२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगुणतीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।।
१. सं० पा०-सिझिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । २. भोमे उप्फए (क) । ३. पवत्तणाणुयोगे (क)! ४. सं० पा०-भद्दवए णं मासे कित्तिए णं पोसे
गं फग्गुणे णं वइसाहे गं मासे ।
५. पोसिए (ग)। ६. मुहत्तेण (ग)। ७. तिस्थकरसहिताओ नामस्स (क); तित्थकर
नामस्स य (ग)।
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८७०
समवाओ
१३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं एगुणतीसं पलिओ माई ठिई
पण्णत्ता ॥
१४. उवरिम-मज्झिम- गेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ||
१५. जे देवा उवरिम हेट्ठिम - गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१६. ते णं देवा एगुणतीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१७. तेसि णं देवाणं एगुणतीसाए वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुपज्जइ || १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एगूणतीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुझिसति चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥
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तोसइमो समवाओ
१. तीसं मोहणीयठाणा पण्णत्ता, तं जहा ---
संग्रहणी-गाहा
जे यावि तसे पाणे, वारिमज्भे उदएण क्कम्म मारेइ, महामोहं सीसावेढेण जे केई, आवेढेइ तिव्वासुभसमायारे', महामोहं पाणिणा
पकुब्वइ ॥२॥
अंतोनदंतं
संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं । मारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥३॥ जायतेयं समारब्भ, बहुं ओरंभिया जणं । अंतोधूमेण मारेई, महामोहं सिरसम्म जे पहणइ, उत्तमंगम्मि विभज्ज मत्थयं फाले, महामोहं
पकुब्वइ ||४|| चेयसा ।
पकुव्वइ ॥५॥
१. सं० पा०-सिज्झित्संति जाव सव्व
दुक्खाण
२. सीसो ० ( ग ) ।
३. तिब्बे असुभ (क, ग) 1
विगाहिया ।
पकुब्वइ ॥१॥
अभिक्खणं ।
४. यावत्करणात् केषुचित्सूत्र पुस्तकेषु शेषमोहनीयस्थानाभिधानपराः श्लोकाः सूचिताः, केचित् दृश्यन्त एवेति ते व्याख्यायन्ते ( वृ) ।
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तीसइमो समवाओ
८७१
पुणो पुणो पणिहिए, हणित्ता उवहसे जणं'। फलेणं अदुव दंडेणं, महामोहं पकुव्वइ ॥६॥ गूढायारी निगृहेज्जा, मायं मायाए छायए । असच्चवाई णिण्हाई', महामोहं पकुवइ ॥७॥ धसेइ जो अभूएणं, 'अकम्म अत्तकम्मुणा। अदुवा' तुम का सित्ति, महामोहं पकुव्व इ ८॥ जाणमाणो' परिसओ, सच्चामोसाणि भासइ । अज्झीणझझे पुरिसे, महामोहं पकुव्वइ ॥९ अणायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया। विउल विक्खोभइत्ताणं, किच्चा ण पडिबाहिरं ॥१०॥ उवगसंतंपि झपित्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं । भोगभोगे वियारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥११॥ (युग्मम् ) अकुमारभूए जे केई, कुमारभूएत्तहं वए। इत्थीहिं गिद्धे वसए, महामोहं पकुव्वइ ॥१२॥ अभयारी जे केई, बंभयारीत्तह वए। गद्दभेव्व गवां मज्झे, विस्सरं नयई नदं ।।१३।। अप्पणो 'अहिए बाले'", मायामोसं बहुं भसे। इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुवइ ॥१४॥ (युग्मम् ) जं निस्सिए उव्वहइ, जससाअहिगमेण वा। तस्स लुब्भइ वित्तम्मि, महामोहं पकुव्वइ ।।१५।। ईसरेण अदुवा गामेणं, अणिस्सरे ईसरीकए" । तस्स संपग्गहीयस्स, सिरी अतुलमागया ॥१६।। ईसादोसेण आइटे, कलुसाविलचेयसे । जे 'अंतरायं चेएइ'", महामोह पकुव्वइ ॥१७॥ (युग्मम् ) 'सप्पी जहा अंडउड़", भत्तारं जो विहिंसइ । सेणावई पसत्थारं, महामोहं पकुब्वइ ॥१८॥
१. जणा (क)। २. णिगिण्हाई (ग)। ३. कम्म असत्त (ग)। ४, अहवा (क)। ५. माणओ (क)। ६. दारं (क, ख, ग)। ७. भोग (क):
८, त्तिहं (क, ग)। ६. बंभयारिहं (क)। १०. अहियाले (क); अहियं बाले (ग)। ११. इस्सरे (क)। १२. ° उलचेवसा (ग)। १३. अंतराइं चेति (ग)। १४. सप्पेजहाअंडपुर्ड (ग)।
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८७२
समवाओ
जे नायगं व रटुस्स, नयारं निगमस्स वा। सेट्टि बहुरवं हंता,' महामोहं पकुव्वइ ॥१६॥ बहुजणस्स यार, दीवं ताणं च पाणिणं । एयारिसं नरं हता, महामोहं पकुव्वइ ।।२०॥ उवट्टियं पडिविरयं, 'संजयं सुतवस्सियं । वोकम्म धम्माओ भंसे', महामोहं पकुव्वइ ॥२१॥ तहेवाणतणाणीणं, जिणाणं वरदंसिणं । तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वइ । नेयाउअस्स मग्गस्स, दुढे अवयरई बहुं ॥२२॥ तं तिप्पयतो' भावेइ, महामोह पकव्वइ ॥२३॥ आयरियउवज्झाएहि, सुयं विणयं च गाहिए। ते चेव खिसई बाले, महामोहं पकुव्वइ ॥२४॥ आयरिय उवज्झायाणं, सम्मं नो पडितप्पइ । अप्पडिपूयए थद्धे, महामोहं पकुव्वइ ।।२५।। अबहुस्सुए य जे केई, सुएण पविकत्थइ । सज्झायवायं [सब्भाववायं?] वयइ,महामोहं पकुव्वइ ॥२६॥ अत वस्सीए य. जे केई, तवेण पविकत्थई । सव्वलोयपरे तेणे, महामोहं पकुवइ ।।२७॥ साहारणट्ठा जे केई, गिलाणम्मि उवट्ठिए । पभू ण कुणई किच्चं, मझपि से न कुब्वइ ॥२८॥ सढे नियडीपण्णाणे, कलुसाउलचेयसे । अप्पणो य अबोहीए, महामोहं पकुवइ ।।२६।। (युग्मम्)
१. हत्ता (क)।
दशाश्रुतस्कन्धस्य (सू० २६) वृत्तौ 'सद्भाव२. सजयं सुतवस्सिणं (क); जे भिक्खं जगजीवन
वादं' इति व्याख्यातमस्ति । तेन प्रतीयते (ग, वृपा)।
'सब्भाववाय' इति पाठः आसीत् । प्राचीन३. भंस (क); भंसेइ (ख)।
लिप्यां संयुक्त 'भकारस्य' तथा संयुक्त 'झका४. अवणिम (क); अवण्ण (ग)।
रस्य' प्रायः सादृश्यमेव । तेन 'सब्भाव' इत्यस्य ५. अवग्गरई (क); अवहरई (वृपा)। ६. पिप्प (ग)।
स्थाने 'सज्झाय' इति परिवर्तनं जातम् । ७. परिकथई (ग)।
अर्थसमीक्षया 'सब्भाववाय' इति पाठः समी८. समवायाङ्गेसु आदर्शषु 'सज्झायवाय' इति चीनः प्रतिभाति ।
पाठो लभ्यते । वृत्तावपि अभयदेवसूरिणा ६. उ (ग)। 'स्वाध्यायवाद' इति व्याख्यातम् । किन्तु अर्थ- १०. परिकथई (ग)। मीमांसया मीमांसनीयोसौपाठः प्रतिभाति । ११. ० चेयसा (ग)।
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तीसइमो समवाओ
८७३
जे कहाहिगरणाइं, संपउंजे पुणो पुणो । सव्वतित्थाण भेयाय', महामोहं पकुव्वइ ॥३०॥ जे य आहम्मिए जोए, संपउंजे पुणो पुणो । सहाहेउं सहीहेडं, महामोहं पकुवइ ॥३१।। जे य. माणुस्सए भोए, अदुवा पारलोइए । तेऽतिप्पयंतो' आसयइ, महामोहं पकुव्वाइ ॥३२॥ इड्री जुई जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं ।। तेसिं अवण्णव बाले, महामोहं पकुव्वइ ॥३३॥ अपस्समाणो पस्साभि, देवे जक्खे य गुज्झगे।
अण्णाणि जिणपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वइ ॥३४।। २. थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामग्णपरियायं पाउणित्ता सिद्ध बुद्धे 'मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे॥ ३. एगमेगे णं अहोरत्ते 'तीसं मुहुत्ता" मुहत्तग्गेणं पण्णत्ता 'एएसि णं'' तीसाए
महत्तागं तीसं नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-रोद्दे सेते मित्ते वाऊ सुपीए अभियंदे माहिदे पलं वे' बंभे सच्चे आणंदे विजए वीससेणे वायावच्चे उवसमे ईसाणे तिढे भावियप्पा वेसमणे वरुणे सतरिसभे गंधब्वे अग्गिवेसायणे आतवं
आवधं तद्ववे" भूमहे रिसभे" सब्वट्ठसिद्धे रक्खसे ।। ४. अरे णं अरहा तीसं धणुई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ॥ ५. सहस्सारस्स णं देविंदस्स देव रण्णो तीसं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।। ६. पासे णं अरहा तीसं वासाइं अगारमझे वसित्ता [मुंडे भवित्ता ? ] अगाराओ
अणगारियं पव्वइए ।।। ७. समणे भगवं महावीरे तीसं वासाई अगारमझे वसित्ता [मुंडे भवित्ता ? |
अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।।
१. संपउंजिय (ग)। २. भेयाणं (ग)। ३. ° त प्पि ° (ग)। ४. अवणियं (ग)। ५. स० पा०-बुद्धे जाव सव्वदुक्ख । ६. तीसमुहुत्ते (क्व)। ७. तेसिणं (ख)! ८. तीस (ख)। ६. सुविए (ग)।
१०. अभिइंदे (ग); अभिचंदे (क्व) । ११. पलंब (ख, ग)। १२. तट्टे (क्व)। १३. आवत्ते (क्व)। १४. तटुवं (ख, ग)। १५. रिसवे (ग)। १६. मज्झा (क, ख); आगारमझा (ग);
अगारवासमझे (क्व)। १७. अगारमझा (क, ख, ग)।
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८७४
समवाओ
८. रयणप्पभाष पुढवीए तीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता।। ६. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवोए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं तीसं पलिओवमाई
ठिई पणत्ता।। १०. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । ११. असुरकुमाराण देवाणं अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
[सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाई ठिई
पण्णता? १२. उरिम-उवरिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहाणेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. जे देवा उवरिम-मज्झिम-गवेज्जएसु विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि ण
देवाणं उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. ते णं देवा तीसाए अद्धमासेहि आणमंति वा पाणमंति वा उससंति वा नीससंति
वा ॥ १५. तेसि णं देवाणं तीसाए वाससहस्से हिं आहारटे समुप्पज्जइ ॥ १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तीसाए भवग्गणेहि सिज्झिस्संति' "बुज्झिरसंति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
एक्कतीसइमो समवाओ १. एक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता, तं जहा–खीणे आभिणिबोहियणाणावरणे',
खीणे सुयणाणावरणे, खोणे ओहिणाणावरणे, खीणे मणपज्जवणाणावरणे, खीणे केवलणाणावरणे, खोणे चक्खुदंसणावरणे, खीणे अचक्खुदंसणावरणे, खीणे ओहिदसणावरणे, खीणे केवलदसणावरणे, 'खीणा निद्दा, खीणा णिहाणिद्दा, खीणा पयला, खोणा पयलापयला, खोणा थोणगिद्धो", खीणे सायावेयणिज्जे, खीणे असायावेयणिज्जे, खीणे सणमोहणिज्जे, खोणे चरित्तमोहणिज्जे, खीणे नेरइयाउए, खीणे तिरियाउए, खीणे मणुस्साउए, खीणे देवाउए, खीणे उच्चागोए, खीणे नियागोए, खीणे सुभणामे, खीणे असुभणामे, खीणे दाणंतराए, खीणे लाभंतराए, खीणे भोगंतराए, खोणे उवभोगंतराए, खीणे
बीरियंतराए। २. मंदरे णं पवए धरणितले एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च' तेवीसे जोयणसए
किंचिदेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। १. पूर्वक्रमानुसारेणष पाठोत्रयुज्यते ।
थीणगद्धी (ग); • थीणद्धी (क्व) । २. सं० पा०-सिजिझस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ५. छच्चेव (क्व)। ३. ०णाणावरणिज्जे (ख)।
६. देसूणं (क)। ४. निद्दा पयला निद्दा २ पयला २ खीणे
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बत्तीसइमो समवाओ
८७५
३. जया णं सूरिए सव्वबाहिरियं मंडलं उवसंकमित्ता णं चारं चरइ तया ण
इहगयस्स मणुस्सस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहिं अट्ठहि य एक्कतीसेहिं जोयण
सएहि तीसाए सट्ठिभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फास हव्वमागच्छइ ।। ४. अभिवड्डिए णं मासे एक्कतीसं सातिरेगाणि राइंदियाणि राइंदियग्गेण
पण्णत्ताइ॥ ५. आइच्चे णं मासे एक्कतीसं राइंदियाणि किंचि विसेसूणाणि राइंदियग्गेणं
पण्णत्ताई॥ ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कतीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ।। ७. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कतीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता॥ ८. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। है. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कतीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १०. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं देवाणं जहणेणं एक्कतीसं सागरोवमाई
ठिई पण्णत्ता॥ ११. जे देवा उवरिम-उवरिम-गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १२. ते णं देवा एक्कतीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ।। १३. तेसि णं देवाणं एक्कतीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १४. संतेगइया भवसिद्धिया जोवा, जे एक्कतीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
बत्तीसइमो समवाओ १. बत्तीसं जोगसंगहा पण्णत्ता, तं जहा
आलोयणा निरवलावे, आवईसु दढधम्मया । अणिस्सिओवहाणे य, सिक्खा निप्पडिकम्मया ॥१॥ अण्णातता अलोभे य, तितिक्खा अज्जवे सूती। सम्मदिट्ठी समाही य, आयारे विणओवए ।।२।।
१. x (क, ग)।
२. सं० पा०-सिज्झिस्सति जाव सव्वदुक्खाण°1
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८७६
समवा
धिईमई य संवेगे, पणिही सुविहि संवरे । अत्तदोसोवसंहारे. सव्वकामविरत्तया ॥३॥ पच्चक्खाणे विउस्सग्गे, अप्पमादे लवालवे । झाणसंवरजोगे य, उदए मारणंतिए |॥४॥ संगाणं च परिणा', पायच्छित्तकरणेत्ति य ।
आराहणा य मरणते, बत्तीसं जोगसंगहा ।।५।। २. बत्तीस देविदा पण्णत्ता, तं जहा-चमरे बली धरणे भूयाणंदे' 'वेणुदेवे वेणुदाली
हरि' हरिस्सहे अग्गिसहे अग्गिमाणवे पुन्ने विसिट्टे जलकते जलप्पभे अमियगती अमितवाहणे वेलबे पभंजणे • घोसे महाघोसे चंद सूरे सक्के ईसाणे सणंकुमारे
'माहिदे बंभे लंतए महासुक्के सहस्सारे° पाणए अच्चुए ।। ३. क्थुस्स णं अरहओ बत्तीसहिया बत्तीसं जिणसया होत्था ॥ ४, सोहम्मे कप्पे बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता॥ ५. रेवइणक्खत्ते बत्तीसइतारे पण्णत्ते ।। ६. बत्तीसतिविहे गट्टे पण्णत्ते ।।। ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता। ८. अहेसत्तमाए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ है. असरकूमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं बतीसं पलिओवमाई ठिई पण्णता ।। १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।
जे देवा विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियविमाणेसु देवत्ताए उबवण्णा, तेसि णं
देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीस सागरोवमाइंठिई पण्णत्ता ।। १२. ते ण देवा वत्तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १३. तेसि णं देवाणं बत्तीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ । १४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे बत्तीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति, परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
१. परिणाया (ख); परिणाए (ग)। २. सं० पा.- भूयाणदे जाव घोसे ! ३. समवायाङ्गवृत्ती 'हरि' स्थाने 'हरिकते' पाठोस्ति । स्थानाङ्ग पि लाकपाल-प्रकरणे (४११२२) 'हरिकंतस्स' पाठो विद्यते। 'हरि' अस्यैव संक्षेप: प्रतीयते।
४. समवायाङ्गवृत्ती 'वसिडे' पाठोस्ति । ५. सं० पा०--सर्णकुमारे जाव पाणए । ६. समवायाङ्गवृत्तो 'सुक्के' पाठोस्ति । ७. बत्तीस जिणा (क, ख); X (ग)। ८. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ।
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तेत्तीसइमो समवाओ
८७७
तेत्तीसइमो समवाओ १. तेत्तीसं आसायणाओ पण्णताओ, तं जहा
१. सेहे राइणियस्स आसन्नं गंता भवइ—'आसायणा सेहस्स"। २. सेते राइणियस्स परओ गंता भवइ--आसायणा सेडस्स। ३. सेहे राइणियस्स सपक्खं गंता भवइ--आसायणा सेहस्स। ४. सेहे राइणियस्स आसन्न ठिच्चा भवइ-आसायणा सेहस्स। ५. 'सेहे राइणियस्स पुरओ ठिच्चा भवइ-आसायणा सेहस्स। ६. सेहे राइणियस्स सपक्खं ठिच्चा भवइ-आसायणा सेहस्स । ७. सेहे राइणियस्स आसन्न निसीइत्ता भवइ-आसायणा सेहस्स । ८. सेहे राइणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ--आसायणा सेहस्स । ६. सेहे राइणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवइ---आसायणा सेहस्स। १०. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया वियारभूमि निक्खंते समाणे पुवामेव
सेहतराए आयामेइ पच्छा राइणिए—आसायणा सेहस्स । ११. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खते
समाणे तत्थ पुवामेव सेहतराए आलोएति पच्छा राइणिए-आसायणा
सेहस्स। १२. सेहे राइणियस्स रातो वा वियाले वा वाहरमाणस्स अज्जो के सुत्ते ? के
जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे राइणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति --
आसायणा सेहस्स। १३. केइ राइणियस्स पुव्वं संलवित्तए सिया, तं सेहे पुव्वतराग आलवेति पच्छा
राइणिए-आसायणा सेहस्स। १४. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुब्वमेव
सेहतरागस्स आलोएइ, पच्छा राइणियस्स-आसायणा सेहस्स । १५. सेहे असण वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुत्वमेव
सेहतरागस्स उवदसेति, पच्छा राइणियस्स-आसायणा सेहस्स।
१. x (क, ख, ग)। २. सं० पा०--सेहस्स जाव सेहे राइणियस्स ।
अस्मिन् सूत्रे पच आशातना: प्रत्यक्ष मुल्लि. खिताः सन्ति, शेषाश्च जाव शब्देन सुचिताः । वत्तिकृता समर्पणस्य पूर्तिकृते दशाश्रतस्कन्धस्य निर्देशः कृतः, यथा--"यावत्करणाद्दशाश्रुत न्यानुसारेणान्या इही द्रष्टव्याः" ।
तथा अर्थरूपेण सर्वासामप्याशातनानामुल्लेखो वृत्तिकृता कृतः । वृत्तिकृतः क्रमो दशाश्रु तस्कन्धप्राप्तक्रमाद् भिन्नोस्ति । संभाव्यते वृत्तिकर्तुः समक्षे दशाश्रु तस्कन्धस्य काचिदन्या वाचनासीत् । अस्माभिः पाठपूर्तिर्दशा तस्कन्धमनुसृत्य कृता, क्रमश्च वृत्यानुसारी स्वीकृतः ।
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८७८
समवाओ
१६. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुव्वमेव
सेहतरागं उवणिमंतेइ, पच्छा राइणियं-आसायणा सेहस्स। १७. सेहे राइणिएण सद्धि असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पडिगाहेत्ता
तं राइणियं अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छइ तस्स-तस्स खद्धं-खद्धं
दलयइ—आसायणा सेहस्स। १८. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता राइणिएण सद्धि
आहरेमाणे तत्थ सेहे खद्धं-खद्धं डाय-डायं ऊसढं-ऊसद रसितं-रसितं मणुण्णं-मणुण्णं मणाम-मणाम निद्धं-निद्धं लुक्खं-लुक्खं आहरेत्ता भवइ----
आसायणा सेहस्स। १६. सेहे राइणियस्स वाहरमाणस्स अपडिसुणेता भवइ-आसायणा सेहस्स । २०. सेहे राइणियस्स खद्धं-खद्धं वत्ता भवति—आसायणा सेहस्स। २१. सेहे राइणियस्स 'कि' ति वइत्ता भवति · आसायणा सेहस्स । २२. सेहे राइणियं 'तुम'ति वत्ता भवति -- आसायणा सेहस्स । २३. सेहे राइणियं तज्जाएण-तज्जाएण पडिभणित्ता भवइ-आसायणा सेहस्स। २४. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स 'इति एवं' ति वत्ता न भवति
आसायणा सेहस्स ।। २५. सेहे राइणियस्स कहं कमाणस्स 'नो सुमरसो'ति वना भवति -
आसायणा सेहस्स । २६. सेहे राहाणयस्स कहं कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता भवति-आसायणा
सेहस्स। २७. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेता भवति–आसायणा
सेहस्स । २८. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स तोसे परिसाए अणुट्ठिताए अभिन्नाए
अवच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्च पि तमेव कहं कहित्ता भवति –आसायणा
सेहस्स। २६. सेहे राइणियस्स सेज्जा-संथारगं पाएणं संघट्टित्ता, हत्थेणं अणणुण्णवेत्ता
गच्छति-आसायणा सेहस्स। ३०. सेहे राइणियस्स सेज्जा-संथारए चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा
भवइ-आसायणा सेहस्स । ३१. सेहे राइणियस्स उच्चासणे चिद्वित्ता वा निसीहत्ता वा तुयट्टित्ता वा
भवति-आसायणा सेहस्स। ३२. सेहे राइणियस्स समासणे चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा
भवति–आसायणा सेहस्स° ।
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चोतीसइमा समवाओ
८७६
३३. सेहे राइणियस्स आलवमाणस्स तत्थगते चिय पडिसुणित्ता भवइ
आसायणा सेहस्स। २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो चमरचचाए रायहाणीए एक्कमेक्के वारे
तेत्तीस-तेत्तीसं भोमा पण्णत्ता ॥ ३. महाविदेहे णं वासे तेत्तीसं जोयणसहस्साइं साइरेगाइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ४. जया णं सुरिए 'बाहिराणं अंतरं" तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता णं चारं चरइ, तया
णं इहगयस्स पुरिसस्स तेत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं किंचिविसेसूर्णेहिं चक्खुप्फासं
हव्वमागच्छइ।। ५. इमीसे णं रयप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेत्तीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता। ६. अहेसत्तमाए पुढवीए काल-महाकाल-रोरुय-महारोरुएसु नेरइयाणं उक्कोसेणं
तेत्तीसं सागरोवमाइंठिई पण्णत्ता॥ ७. अप्पइदाणनए नेरइयाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई
पुण्णत्ता । ८. असुरकुमाराणं अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ ६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १०. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसु विमाणेसु उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥ ११. जे देवा सव्वट्ठसिद्धं महाविमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
अजहण्णमणक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १२. ते णं देवा तेत्तीसाए अद्ध मासेहिं आणमंति वा पाणमति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १३. तेसि णं देवाणं तेत्तीसाए वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ॥ १४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तेत्तीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
चोत्तीसइमो समवाओ १. चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पण्णत्ता, त जहा--१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे ।
२. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठो। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए ।
१. इति खलू एनातो तेत्तीसं
(क, ख, ग)। २, मेक्क (ग)।
आसायणाओ ३. बाहिराण (क); वाहिराणंतर (क्व) ।
४. सं० पा०-सिभिस्संति जाव सव्वदुक्खाण
मंतं० 1
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८८०
समवाओ
४. पउगप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे । ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अहिस्से मंसचखणा। ६. 'आगासगयं चक्कं"। ७. आगासगयं छत्तं । ८. आगा. सियाओ सेयवरचामराओ। ६. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं । १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरिमंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ । ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवतो चिट्ठति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुष्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ । १२. ईसि पिट्टओ मउड ठाणमि तेयमंडलं 'अभिसंजायइ', अंधकारेवि य णं दस दिसाओ पभासेइ । १३. बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे। १४. अहोसिरा कंटया भवति । १५. उडुविवरीया सुहफासा' भवंति । १६. सीयलेणं सुहफासेणं सुरभिणा मारुएणं जोयणपरिमंडलं सव्वओ समंता संपमज्जिज्जति । १७. 'जुत्तफुसिएण य मेहेण निय-रय-रेणुयं कज्जइ । १८, जल-थलय-भासुर-पभूतेणं बिटट्ठाइणा दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं जाणुस्सेहप्पमाणमित्ते पुप्फोक्यारे कज्जई। १६. अमणुण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं अवकरिसो भवइ । २०. मणण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं पाउन्भावो भवइ । २१. पच्चाहरओवि य ण हिययगमणोओ 'जोयणनोहारी सरो" २२. भगवं च णं अद्धमागहोए भासाए धम्ममाइक्खइ । २३. सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणो तेसि सब्वेस आरियमणारियाणं दुप्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सिरोसिवाणं अप्पणो 'हिय-सिवसुहदाभासत्ताए" परिणमइ । २४. पुव्वबद्धवेरावि य णं देवासुर-नाग-सुवण्णजक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्य-महोरगा अरहओ पायमूले
१. आगासत चक्खं (क); आगासत्यं चक्कं (ग); ६. 'कालागुरुपवरकुंदुरुक्कधूवमधमतगधुळ्या___आगासगं चक्क (वृपा)।
भिरामे भवई' 'उभयो पासिं च णं अरहताणं २. आगासग (क, वृ)।
भगवंताण दुवे जक्खा कडयतुडियर्थभियभुया ३. आगासगयाओ (ग)।
चामरुक्खेवणं करति बृहद्वाचनायामनन्तरोक्त४. तखणे ° (क)।
मतिशयद्वयं नाधीयते (वृ)। ५. समजायति (ग)।
१०. हियणतय° (क)। ६. 'अभि..."रभासेइ' एनावान् पाठो वृत्ती ११. ०णीहारो भरो (क)। नास्ति व्याख्यात:।
१२. अद्धमागधाए (क, ख, ग)। ७. सुहु° (क)।
१३. अद्धमागहा (ख); अद्धमागधा (ग) । ८. जुतफासएण य मेहेण (क); जुत्तिफुसिएण य १४. सुहदाय (ग)।
मेहेण य (ग)।
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पणतीसइमो समवाओ
८८१
पसंतचित्तमाणसा धम्मं निसामंति । २५ 'अण्णउत्थिय-पावयणियावि' य ण मागया बंदति । २६. आगया समाणा अरहओ पायमूले निप्पडिवयणा हवंति । २७. जओ जओवि य णं अरहंतो भगवंतो विहरति तओ तओविय गं जोयणपणवीसाएणं ईती न भवइ । २८. मारो न भवइ । २६. सचक्कं न भवइ । ३०. परचक्कं न भवइ । ३१ अइवुट्टी न भवइ । ३२. अणावुट्टी न भवइ ३३. दुभिक्खं न भवइ । ३४. पुव्वुप्पण्णावि य णं' उप्पाइया वाही खिप्पमिव उवसमति ॥
२.
जंबुद्दीवे णं दीवे चउत्तीसं चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा - बत्तीसं महाविदेहे, दो' भरहेरखए ||
३. जंबुद्दीवे णं दीवे चोत्तीसं दीवेयड्डा पण्णत्ता ॥
४. जंबुद्दीवे णं दोवे उक्कोसपए चोत्तोस तित्थंकरा समुपज्जति ॥
५. चमरस्स णं असुरिदस्स असुररण्णो चोत्तीसं भवणावास सय सहस्सा पण्णत्ता ॥ ६. पढमपंच मछट्टोसत्तमासु - चउसु पुढवोसु चोत्तोसं निरयावाससय सहस्सा
पण्णत्ता ॥
पणतीसइमो समवाओ
१. पणतीसं सच्चवयणाइसेसा' पण्णत्ता ||
२. कुंथू णं अरहा पणतीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥
३. दत्ते णं वासुदेवे पणतीसं घणूई उड्ढ उच्चत्तेणं होत्था ॥ ४. नंदणे णं बलदेवे पणतीसं धणूई उड्ढ उच्चत्तेणं होत्था ||
१. पावयणीव ( ख, ग ) ।
२. X (बु) वृहद्वाचनायामिदमन्यदतिशयद्वयमधीयते, यदुत अण्ण वंदंति । आगया ...हवंति । ( वृ) ।
३. णं न भवइ ( ग ) ! ४. X ( ख, ग ) ।
५. सत्यवचनातिशया आगमे न छटाः, एते तु ग्रन्थान्तरदृष्टाः सम्भाविताः, वचनं हि गुणवक्तव्यं तद्यथा - संस्कारवत् १. उदात्तं २. उपचारोपेतं ३. गम्भीरशब्दं ४. अनुनादि ५. दक्षिणं ६. उपनीतरागं ७ महार्थ 5. अव्याहतपौर्वापर्य ६. शिष्टं १०. असंदिग्ध
११. अपहृतान्योत्तरं १२.
हृदयग्राहि १३. देशकालाव्यतीतं १४. तत्त्वानुरूपं १५. अप्रकीर्णप्रसृतं १६. अन्योन्यप्रगृहीतं १७. अभिजातं १८. अतिस्निग्धमधुरं १६. अपरमविद्धं २०. अर्थधर्माभ्यासानपेतं २१. उदारं २२. परनिन्दात्मोत्कर्षविप्रयुक्तं २३. उपगतरलाषं २४. अनपनीतं २५. उत्पादिताच्छिन्नकौतूहलं २६. अद्भुतं २७. अनतिविलम्बितं २८. विभ्रमविक्षेपकिलिकिञ्चितादिविमुक्तं २६. अनेकजातिसंश्रयाद्विचित्रं ३०. आहितविशेषं ३१. साकारं ३२. सत्त्वपरिग्रहं ३३. अपरिखेदितं ३४. अव्युच्छेदं ३५. चेति वचनं महानुभावैर्वक्तव्यमिति (वृ) ।
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८५२
समवाओ
५. सोहम्मे कप्पे सुहम्माए सभाए माणवए चेइयक्खंभे हेट्टा उरि च अद्धतेरस
अद्धतेरस जोयणाणि वज्जेत्ता मज्झे पणतीस' जोयणेसु वइरामएमु गोलवट्ट
समुग्गएसु जिण-सकहाओ पण्णत्ताओ। ६. बितियचउत्थीसु-दोसु पुढवीसु पणतीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।।
छत्तीसइमो समवाओ १. छत्तीसं उत्तरज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा–विणयसुयं परीसहो' चाउरंगिज्जं
असंखयं अकाममरणिज्जं पुरिसविज्जा उरभिज्ज काविलिज्ज' नमिपव्वज्जा दुमपत्तयं बहुसुयपूया' हरिएसिज्जं चित्तसंभूयं उसुकारिज सभिक्खुगं समाहिठाणाई पावसमणिज्ज संजइज्जं मिगचारिया अणाहपज्जा समुद्दपालिज्जं रहनेमिज्ज गोयमकेसिज्ज समितीओ जण्णइज्ज सामायारी खलुकिज्ज मोक्खमम्गगई अप्पमाओ तवोमग्गो चरणविही पमायठाणाई कम्मपगडी लेसज्झयणं
अणगारमग्गे जीवाजीवविभत्ती य॥ २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा छत्तोसं जोयणाई उड्ढं
उच्चत्तेणं होत्था॥ ३. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छत्तीसं अज्जाणं साहस्सीओ होत्था ।। ४. चेत्तासोएसु णं मासेसु सइ छत्तीसंगुलियं सूरिए पोरिसीछायं निव्वत्तइ ।।
सत्ततीसइमो समवाओ १. कुंथुस्स णं अरहओ 'सत्ततीसं गणा', सत्ततीसं गणहरा होत्था ।। २. हेमवयहेरण्णवइयाओ णं जीवाओ सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणसहस्साइं छच्च
चोवत्तरे' जोयणसए सोलसयएगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणाओ
आयामेणं पण्णत्ताओ। ३. सव्वासु णं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियासु रायहाणीसु पागारा सत्ततीसं
सत्ततीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ ४. खड्डियाए णं विमाणप्पविभत्तीए पढमे वग्गे सत्ततीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता॥
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१. पणतीसाए (क)। २. परीसहा (क, ख); परीसह (ग)। ३. काविलियं (क्व)। ४. "पुज्जा (क, ख, ग)।
५. पण्णत्ता (क, ग)। ६. X (क)। ७. बोहत्तरे (ख); बावत्तरे (ग); चउसत्तरे (क्व)।
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चत्तालीस इमो समवाओ
८८३
५. कत्तियबहुलसत्तमीए णं सूरिए सत्ततीसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वत्तइत्ता णं चार चरइ।।
अट्टतीसइमो समवाओ १. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणोयस्स अट्ठतीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया
अज्जियासंपया होत्था।। २. हेमवतेरण्णवतियाणं जीवाणं धणुपट्टे अद्भुतीसं' जोयणसहस्साई सत्त य चत्ताले
जोयणसए दस एगूणवीस इभागे जोयणस्स किंचिविसेसूणा परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। ३. अत्थस्स णं पव्वयरण्णो बितिए कंडे अद्रुतीसं जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ते॥ ४. खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तोए बितिए वग्गे अट्ठतीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता ।।
एगूणचत्तालीसइमो समवाओ १. नमिस्स णं अरहओ एगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था ॥ २. समयखेत्ते गं एगूणचत्तालीसं कुलपव्वया पण्णत्ता, तं जहा–तीसं वासहरा,
पंचमंदरा, चत्तारि उसुकारा ।। दोच्चचउत्थपंचमछट्ठसत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूणचत्तालीसं निरयावास
सयसहस्सा पण्णत्ता। ४. नाणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स आउस्स-एयासि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एगूणचत्तालीसं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
चत्तालीसइमो समवाओ १. अरहओ णं अरिने मिस्स चत्तालीसं अज्जियासाहस्सोओ होत्था ।। २. मंदरचलिया' णं चत्तालीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ३. संती अरहा चत्तालीसं धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ४. भूयाणंदस्स णं नागरण्णो' चत्तालीसं भवणावाससयसहस्स पण्णत्ता ।। ५. खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तोए तइए' वग्गे चत्तालोसं उद्देसणकाला पण्णत्ता॥ ६. फग्गुणपुण्णिमासिणीए' णं सूरिए चत्तालोसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वद्रइत्ता
णं चारं चरइ ।। १. अद्वतीसं अट्ठतीस (क)।
५. ततिय (ग)। २. मंदरस्स° (ख)।
६. °पुण्णमासिणीए (ख); ° पुन्निमासीए (ग); ३. नागकुमारस्स नागरन्नो (क्व)।
'बासाहपुण्णिमासिणीए' ति यत्केषुचित पुस्त४. विमाणविभत्तीए (क)।
केषु दृश्यते सोऽपपाठः (द)।
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८८४
समवाओ
७. एवं कत्तियाएवि पुण्णिमाए । ८. महासुक्के कप्पे चत्तालीसं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता॥
एक्कचत्तालीसइमो समवाओ १. नमिस्स णं अरहओ एक्कचत्तालीसं अज्जियासाहस्सोओ होत्था ।। २. चउसु पुढवीसु एक्कचत्तालोस निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, तं जहा
रयणप्पभाए पंकप्पभाए तमाए तमतमाए।। ३. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए पढमे वग्गे एक्कचत्तालीसं उद्देसणकाला पपणत्ता ॥
बायालीसइमो समवाओ १. समणे भगवं महावीरे बायालीस वासाई साहियाई सामण्णपरियागं पाउणित्त
सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे॥ २. जवुद्दोवस्स णं दोवस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ मोथूभस्स णं आवासपव्व
यस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं बायालीसं जोयणसहस्साई अबाहाते
अंतरे' पण्णते॥ ३. एवं चउद्दिसि पि दोभासे संखे दयसीमे य ।। ४. कालोए ण समुद्दे बायालोसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा, बाया
लीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासिति वा पभासिस्संति वा ।। ५. संमच्छिमयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ।। ६. नामे णं कम्मे बायालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा—गइनामे जातिनामे सरीरनामे
सरीरंगोवंगनामे सरीरबंधणनामे सरीरसंघायणनामे संघयणनामे संठाणनामे वण्णनामे गंधनामे रसत्तामे फासनामे अगरुयलहुयनामे उवधायनामे पराघायनामे आणपुचीनामे उस्सासनामे आतवनामे उज्जोयनामे विहगगइनामे तसनामे थावरनामे सुहमनामे बायरनामे पज्जत्तनामे अपज्जत्तनामे साधारणसरीरनामे पत्तेयसरीरनामे थिरनामे अथिरनामे सुभनामे असुभनामे सुभगनामे दूभगनामे सस्सरनामे दुस्सरनाम आएज्जनाम अणाएज्जनामे जसोकोत्तनामे अजसोकित्ति
नामे निम्माणनामे तित्थकरनामे ।। ७. लवणे णं समुद्दे बायालीसं नागसाहस्सीओ अभितरियं वेलं धारेति ॥
१. सं० पा०-सिद्धे जाव सव्वदुक्ख ° । २. आबाहते (ख); आबाहाते (ग), आवाधाते
आबाहाए-अग्रे पि प्राय एवमेव लभ्यते ।
३. अंतकरे (क)। ४. ४(क) ।
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पणयालीस इमो समवाओ
८. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए' बितिए वग्गे बायालीसं उद्देसणकाला
पण्णत्ता ॥
६. एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचमछडोओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ ||
१०. एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढमबीयाओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ ||
तेयालीसइमो समवाओ
१. तेयालीस कम्मविवागज्भयणा पण्णत्ता ॥
२. पढमच उत्थपंचमासु -तीसु पुढवीसु तेयालीसं निरयावासस्यसहस्सा पण्णत्ता ॥ ३. जंबुद्दीवस्स गं दोवस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिले चरिमंते, एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ||
४. एवं चउद्दिसिपि दओभासे संखे दयसी मे [य ? ] ॥
५. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए' ततिये वग्गे तेयालीसं उद्देश्णकाला
पण्णत्ता ॥
चोयालीसइमो समवाश्रो
१. ' चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया पण्णत्ता" ||
२. विमलस्स णं अरहतो चोयालीसं पुरिसजुगाई अणुपट्टि सिद्धाई" "बुद्धाई मुक्ताई अंतगडाई परिणिव्वयाई सव्वदुक्ख •प्पहीणाई ||
३. धरणस्स णं नागिंदस्स नांगरण्णो चोयालीसं भवणावासस्यसहस्सा पण्णत्ता ॥ ४. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए' चउत्थे वग्गे चोयालीसं उद्देसणकाला
पण्णत्ता ॥
पणयालीसइमो समवाओ
२. समयखेत्ते णं पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविवखंभेणं पण्णत्ते ! २. सीमंतए णं नरए * पणयालीसं जोयणसय सहस्साई आयामविवखंभेणं पण्णत्ते ॥
१. विमाणवि ० ( क ) :
२. विमाणवि ० ( क ) ।
३. देवलोयचुयाणं इसीणं चोयालीस इसिभा
सिणा प० (वृपा ) 1
४. अणुपुट्ठि (ग); अणुपिट्टि (क्व ) ; अणुबंधेण
८८५
(वृपा) ।
५. सं० पा० - सिद्धाई जाव प्पहीणाई |
६. विमाणवि ० ( क ) 1
७. नरएण ( ख ) 1
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८८६
समवाओ
३. एवं उडुविमाणे पण्णत्ते ॥ ४. ईसिपब्भारा णं पुढवी पण्णत्ता एवं चेव ।। ५. धम्मे णं अरहा पणयालीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ६. मंदरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिपि पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई
अबाहाते अंतरे पण्णत्ते ।। ७. सव्वेवि णं दिवड्डखेत्तिया नक्खत्ता पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोइंसु
वा जोइंति वा जोइस्संति वासंगहणी-गाहा
तिन्नेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य ।
एए छ नक्खत्ता, पणयालमुहत्तसंजोगा ॥१॥ ८. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए पंचमे वग्गे पणयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता॥
छायालीसइमो समवाओ १. दिद्विवायस्स णं छायालीसं माउयापया पण्णत्ता ।। २. बंभीए णं लिवीए छायालीसं माउयक्खरा पण्णत्ता ।। ३. पमंजणस्स णं वातकुमारिदस्स छायालीसं भवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।।
सत्तचालीसइमो समवाओ १. जया णं सूरिए सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता णं चारं चरइ तया णं इहगयस्स
मणसस्स सत्तचत्तालीसं जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवहिं जोयणसएहि एक्क
वीसाए य सद्विभागेहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुफास हव्वमागच्छइ ।। २. थेरे णं अग्गिभूई सत्तालीसं' वासाइं अगारमज्झा' वसित्ता मुंडे भवित्ता' अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।।
अडयालीसइमो समवाओ १. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अडयालीसं पट्टणसहस्सा पण्णत्ता। २. धम्मस्स णं अरहओ अडयालीसं गणा अडयालीसं गणहरा होत्था । ३. सूरमंडले णं अडयालीसं एकसट्ठिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं पण्णत्ते ।।
१. वातस्स ° (ग); वाउ० (क्य) । २. सत्तयालीसं (क, ख)।
३. मज्झे (क्व)। ४. भवित्ता णं (क, ख)।
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एगपण्णासइमो समवाओ
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एगणपण्णासइमो समवाओ १. सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एगूणपण्णाए राइंदिएहिं छन्नउएण' भिक्खा
सएणं अहासुतं' अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म कारण फासिया पालिया
सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए ° आराहिया यावि भवइ ।। २. देवकुरुउत्तरकुरासु णं मणुया एगूणपण्णाए राइंदिएहिं संपत्तजोवणा भवंति ।। ३. तेइंदियाणं उक्कोसेणं एगणपण्णं राइंदिया ठिई पण्णत्ता ॥
पण्णासइमो समवायो १. मुणिसुब्वयस्स णं अरहओ पंचासं अज्जियासाहस्सीओ होत्था । २. अणते' णं अरहा पण्णासं धणूइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।। ३. पुरिसोत्तमे णं वासुदेवे पण्णास धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था !! ४. सव्वेवि णं दीहवेयड्ढा भूले पण्णासं-पण्णासं जोयणाणि विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ५. लतए कप्पे पण्णासं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता ।। ६. सव्वाओ' णं तिमिस्सगुहाखंडगप्पवायगुहाओं' पण्णासं-पण्णासं जोयणाई
आयामेणं पण्णत्ता॥ सव्वेविणं कंचणगपन्वया ले पण्णासं-पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
एगपण्णासइमो समवाओ १. नवण्हं बंभचेराणं एकावण्णं उद्देसणकाला पण्णता ।। २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुधम्मा एकावण्णखंभसयसंनिविट्ठा'
पण्णत्ता ।। ३. एवं चेव बलिस्सवि 11, ४. सुप्पभे" णं बलदेवे एकावण्णं वाससयसहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे"
'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ।। ५. दसणावरणनामाणं-दोण्हं कम्माणं एकावणं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।। १. ° पडिमाए (ग)।
६. सव्वातो वि (ग)। २. छन्न उइतेण य (ख, ग); छन्नउइ (क्व); ७. तिमिस्सगुहं खंडप्पवाया (क); तिमिस्स
स्थानाङ्ग (७१') 'एगेण य छण्णउएणं' गुहं ° (ख) । पाठोस्ति ।
८. असुरा (क); असुर (ख, ग)। ३. सं० पाo.-अहासुतं जाव आराहिया। ६. ° सयणिविट्ठा (ग)। ४. एकूणपण्णत्ताए (क)।
१०. सुप्पहे (वृ)। ५. अणंतस्स (ग)।
११. सं० पा०-बुद्ध जाव सव्वदुक्ख ।
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बावण्णइमो समवाओ
१. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा – कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणें विवाए ।
माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे' गव्वे परपरिवाए उक्कोसे' अवक्को से उन्नए उन्नामे |
माया उवही नियडी वलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे कूडे जिन्हे किब्बिसिए अणायरणया गृहणया वंचणया पलिकुंचणया सातिजोगे ।
लोभे इच्छा मुच्छा कखा गेही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा भरणासा नंदी रागे ॥
२. गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायास्स पच्चत्थिमिले चरिमंते, एस णं बावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ||
३. एवं दओभासस्स णं केउकस्स [ ? ], संखस्स जूयकस्स [य ? ], दयसीमस्स' सरस्स [य ? ] ॥
४. नाणावर णिज्जस्स नामस्स अंतरातियस्स - एतासि णं तिन्हं कम्मपगडीणं बावन्नं उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ ||
समवाओ
५. सोहम्म-सणंकुमार- माहिदेसु तिसु कप्पेसु बावन्तं ! बिमाणावाससय सहस्सा
पण्णत्ता ॥
daण्णइमो समवाओ
१. देवकुरुउत्तरकुरियातो णं जीवाओ तेवन्नं तेवन्नं जोयणसहस्साइं साइरेगाई आयामेणं पण्णत्ताओ !!
२. महाहिमवंतरुप्पीणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ तेवन्नं तेवन्नं जोयणसहस्साई नव य एगती से जोयणसए छच्च एक्कूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ || ३. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेवन्नं अणगारा संवच्छरपरियाया पंचसु अणुत्तरेसु महइमहालएसु महाविमाणेसु देवत्ताए उववन्ना ||
४. संमुच्छिमउरपरिसप्पाणं उक्कोसेणं तेवन्नं वाससहस्सा ठिई पण्णत्ता ॥
१. भडि ( ख ) ।
२. अत्तुक्का ( क, ख, ग ) ।
३. उकासे (क, ग) 1
४. अवकासे ( क ) ; अववकासे ( ख ); अचक्का से
(ग)।
५. बंभणया ( क ) ;
६.
सीमयस्स ( क ) 1
७. अंतरावियस्स ( ग ) ।
८.
• उत्तरयातो (ग); ° उत्तरकुरुयाओ ( क्व० ) ।
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छप्पण्णइमो समवाओ
५८६
चउवण्णइमो समवाओ १. भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीए एगमेगाए उस्सप्पिणीए चउप्पण्णं
चप्उप्पण्णं उत्तमपुरिसा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा,
तं जहा-चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्क वट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा ॥ २. अरहाणं अरिट्ठनेमी च उप्पण्णं राइंदियाई छउमत्थपरियागं पाउणित्ता जिणे
जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी। ३. समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेज्जाए' च उप्पण्णाइं वागरणाई
वागरित्था ॥ ४. अणंतस्स णं अरहओ 'चउप्पण्णं गणा” चउप्पण्णं गणहरा होत्था ।।
पणपण्णइमो समवाओ १. 'मल्ली णं अरहा" पणपण्णं वाससहस्साई परमाउं पाल इत्ता' सिद्ध बुद्धे मित्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख प्पहीणे ॥ २. मंदरस्स गं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ विजयदारस्स पच्चत्थि
मिल्ले चरिमंते, एस णं पणपण्णं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ३. एवं चउद्दिसिपि वेजयंत-जयंत-अपराजियंति ।।
समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसिपणपण्णं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाई. पणपण्णं अज्झयणाणि पावफलविवागाणि वागरित्ता सिद्धे बुद्धे 'मुत्ते अंतगडे
परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीणे ॥ ५. पढमबिइयासु--दोसु पुढवीसु पणपण्णं निरयावाससयसहस्सा पण्णता ।। ६. दसणावरणिज्जनामाउयाणं -तिण्हं कम्मपगडीणं पणपन्नं उत्तरपगडीओ
पण्णत्ताओ॥
छप्पण्णइमो समवाओ १. जंबुद्दीवे णं दीवे छप्पण्णं नक्खत्ता चंदेण सद्धि जोगं जोएंसु वा, जोएंति वा, ___ जोइस्संति वा ।। २. विमलस्स णं अरहओ छप्पण्णं गणा छप्पण्णं गणहरा होत्था ।।
१. • निसाते (ग)। २. वागरित्ता (ग)। ३. ४(क, ग)।
४. मल्लिस्स णं अरहओ (ग)। ५. पालित्ता (ग)। ६,७. सं० पा.--बुद्ध आव प्पहीणे ।
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८६०
समवाओ
सत्तावण्णइमो समवाओ १. तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावज्जाणं सत्तावणं अज्झयणा' पण्णत्ता,
तं जहा—आयारे सूयगडे ठाणे ।। २. गोथूभस्स णं आवासपध्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महा
पायालरस बहुमझदेसभाए, एस णं सत्तावणं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते।। ३. एवं दओभासस्स {णं ? ] के उयस्स य, संखस्स जूयकस्स य दयसीमस्स'
ईसरस्स य॥ ४. मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावण्णं मणपज्जवनाणिसया होत्था ।। ५. महाहिमवंतरूप्पीणं वासघरपव्वयाणं जीवाणं धणुपट्ठा सत्तावण्णं-सत्तावण्णं
जोयणसहस्साई दोष्णि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ता॥
अट्ठावण्णइमो समवाओ १.. पढमदोच्चपंचमासु-तिसु पुढवीसु अट्ठावण्णं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।। २. नाणावरणिज्जस्स वेयणिज्जस्स आउयनामअंतराइयस्स" य-एयासि णं पंचण्हं ___कम्मपगडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। ३. गोथभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स
महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साई अबाहाए
अंतरे पण्णत्ते ।। ४. एवं 'दओभासस्स णं केउकस्स [य ? ], संखस्स जूयकस्स [य ?], दयसीमस्स ईसरस्स [य ?]
एगूणसट्ठिमो समवाओ १. चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे उदू एगूणसट्टि राइंदियाणि राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। २. संभवे णं अरहा एगूणसट्टि पुव्वसयसहस्साई अगारमझावप्सित्ता मुंडे भवित्ता __णं अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए"।
३. मल्लिस्स णं अरहओ एगूणसट्टि ओहिनाणिसया होत्था ॥ १. अज्झीणे (क)।
६. चरमंताओ (क)। २. संखस्स य (ख, ग)।
७. सं० पा०–एवं च उदिसिपि नेयम् । ३. दयसीमयस्स (क)।
८. आगारमझे ° (क, ग); ° मज्झे ° (ख)। ४. वेयणिय (क, ख)।
६. सं० पा०--मुंडे जाव पव्वइए। ५. आउनाम (ख)।
१०. पव्वतित्ति (क)।
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मोसमवाओ
समोसमवाओ
१. एगमेगे णं मंडले सूरिए सट्ठिए-सट्ठिए मुहुत्तेहि संघाएइ ||
२. लवणस्स णं समुद्दस्स सट्ठि नागसाहस्सीओ' अग्गोदयं धारेति । ३. विमले णं अरहा सट्ठि धणूई उड्ढ उच्चत्तेणं होत्था ||
४. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स सट्ठि सामाणियसाहस्सीओ' पण्णत्ताओ || ५ बंभस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सट्ठि सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ || ६. सोहम्मीसाणेसु - दोसु कप्पेसु सट्ठि विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥
एम समवाओ
१. पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स रिदुमासेणं मिज्जमाणस्स एगसट्ठि उदुमासा
पण्णत्ता ||
२. मंदरस्स णं पव्वयस्स पढमे कंडे एगसट्ठिजोयणसहस्साइं उड्नुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ||
३. चंदमंडले णं एगसद्विविभागविभाइए' समंसे पण्णत्ते ॥
४. एवं सूरस्सवि ।
बामो समवाओ
१. पंचसवच्छरिए णं जुगे बावट्ठ पुण्णिमाओ बावट्ठि अमावसाओ पण्णत्ताओ || २. वासुपुज्जस्स गं अरहओ बावट्ठि गणा बावट्ठ गणहरा होत्था ||
३. सुक्क पक्खस्स णं चंदे बावट्ठ भागे दिवसे दिवसे परिषड्डूइ, ते चेव बहुलपक्खे दिवसे दिवसे परिहायइ ॥
४. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु पढमे पत्थडे पढमावलियाए एगमेगाए दिसाए बावट्ठबाट्ठि विमाणा पण्णत्ता ॥
५. सब्वे वेमाणियाणं बावट्ठ विमाणपत्थडा पत्थमेणं पण्णत्ता ॥
८६१
मोसमवाओ
१. उसमे णं अरहा कोसलिए तेराट्ठि पुव्यसयसहस्साइं महारायवास मज्भावसित्ता' मुंडे भत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ||
१. सहस्साई (क); ° सहस्साओ ( ख ) । २. ० सहरसीओ ( क ) ; ° सहसाओ ( ग ) । ३. विभागहाइए विभइए ( क ) ।
४.
सवत्सर (क)
५. पदमावलिया (वृपा ) 1
६. ० मज्झे ० ( ख ) ; महाराय मज्झा ( ग );
महाराय म ० ( क्व ) ।
0
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समवाओ
२. हरिवास रम्मयवासेसु' मनुस्सा तेवट्ठिए राइदिएहिं संपत्तजोब्वणा भवंति ॥ ३. निसेहे णं पव्वए तेर्वाट्ठ सूरोदया पण्णत्ता ॥
४. एवं नीलवंतेवि ॥
८६२
चमि समवाओ
१. अट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्टीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहि भिक्खाएहिं अहा अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए आराहिया यावि भवइ ||
२. चउस असुरकुमारावाससय सहस्सा पण्णत्ता ॥
३. चमरस्स णं रण्णो चउसट्ठि सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ !!
४. सव्वेवि णं दधिमुहा पव्वया पल्ला संठाण - संठिया सव्वत्थ समा 'दस जोयणसहस्साई” "विक्खंभेणं, उस्सेहेणं" चउसट्ठि - चउसट्ठि जोयणसहस्साइं पण्णत्ता ॥ ५. सोहम्मीसाणेसु बंभलोए य-तिसु कप्पेसु चउसट्टिं विमाणावाससयसहस्सा
पण्णत्ता ॥
६. सव्वस्सवि य णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउसद्विलट्ठीए महग्घे मुत्तामणिमए हारे पण्णत्ते ||
पणसमोसमवाओ
१. जंबुद्दीवे णं दीवे पणसट्ठि सूरमंडला पण्णत्ता ॥
२. थेरे णं मोरियपुत्ते पणसद्विवासाई अगारमज्भावसित्ता' मुंहे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए ॥
३. सोहम्मवडेंसयस्स णं विमाणस्स एगमेगाए बाहाए पणसट्ठि- पणर्साट्ठ भोमा
पण्णत्ता ||
छामि समवाओ
१. दाहिणड्डूमणुस्सखेत्ताणं छावट्ठि चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, छावट्ठि सूरिया तविसु वा तवेंति वा तविस्संति वा ॥
१. हरिवरस्स ० ( क, ख ); हरिवरस ( ग ) ।
२. सं० पा०-- अहासुत्तं जाव आराहिया । ३. X' (क, ख, ग ) ।
४. विक्रमेणं (क, ख, ग ); क्वचित्तु 'विवखं
भुस्सेहेणं' ति पाठस्तत्र तृतीयैकवचनलोपदर्शनाद्विष्कम्भेनेति (वृ) ।
५. ० मज्झे ० ( क, ख, ग ) ।
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अट्ठसट्टिमो समवाओ
८६३ २. उत्तरड्डमणुस्सखेत्ताणं छावट्टि चंदा पभासेसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, ____ छावट्टि सूरिया तविसु वा तवेति वा तविस्संति वा ।। ३. सेज्जसस्स णं अरहओ छावद्धि गणा छावद्धिं गणहरा होत्था । ४. आभिणिबोहियनाणस्स णं उक्कोसेणं छावट्टि सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
सत्तसट्ठिमो समवाओ १. पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स नक्खत्तमासेणं मिज्जमाणस्स सत्तसट्टि नक्खत्त
मासा पण्णत्ता ।। २. हेमवतेरण्णवतियाओ णं बाहाओ सत्तसट्ठि-सत्तसढि जोयणसयाइं पणपण्णाई
तिण्णि य भागा जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ ।। ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ 'गोयमस्स णं" दीवस्स
पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तसट्टि जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ।। ४. सव्वेसिपि णं नक्खत्ताणं सीमाविक्खंभेणं सत्तसटुिं 'भाग भइए' समंसे
पण्णत्ते ।।
अट्ठसट्ठिमो समवाओ १. धायइसंडे णं दीवे अट्ठसढि चक्कट्टिविजया अट्टसद्धिं रायहाणीओ पण्णताओ ।। २. धायइसंडे णं दीवे उक्कोसपए अटु४ि अरहंता समुप्पज्जिसु वा समुप्पजेति
वा समुप्पज्जिस्संति वा । ३. एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा ।। ४. पुक्खरवरदीवड्ढे णं अट्ठसट्ठि "चक्कवट्टिविजया अट्ठसट्ठि रायहाणीओ
पण्णत्ताओ॥ ५. पुक्खरवरदीवड्ढे णं उक्कोसपए अट्ठसट्टि अरहंता समुप्पज्जिसु वा समुप्पज्जति
वा समुप्पज्जिस्संति वा ॥ ६. एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा ।। ७. विमलस्स णं अरहओ अट्ठसद्धि समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया
होत्था ॥
१. गोयम (क, ख); यद्यपि सूत्रपुस्तकेषु द्वीपान् विना द्वीपान्तरस्याश्रयमाणत्वादिति ।
गौतमशब्दो न दृश्यते तथाप्यसौ दृश्यः, २. भाग भयते (ग)। जीवाभिगमादिषु लवणसमुद्रे गौतमचन्द्ररवि- ३. सं० पा०-विजया एव चेव जाव वासुदेवा।
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६६४
समवाओ एगूणसत्तरिमो समवाओ १. समयखेत्ते णं मंदरवज्जा एगूणसत्तरि वासा वासधरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा
पणतीसं वासा, तीसं वासहरा, चत्तारि उसुयारा ।। २. मंदरस्स पव्वयस्स पच्चस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोयमदीवस्स पच्चथिमिल्ले
चरिमते, एस गं एगूणसत्तरि जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ३. मोहणिज्जवज्जाण सत्तण्हं कम्मागं' एगूणसत्तरि उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
सत्तरिमो समवाओ १. समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वोतिक्कते सत्तरिए राइदिएहिं
सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ' ।। २. पासे णं अरहा पुरिसादाणोए सतरि वासाइं बहुपडिपुण्णाई सामण्णपरियागं
पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे' "मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ॥ ३. वासुपुज्जे णं अरहा सतरि धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।।। ४. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्म
ठिई कम्मणिसेगे पण्णत्ते ।। ५. माहिदस्स णं देविदस्स देवरण्णो सतरं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।।
एक्कसत्तरिमो समवाओ १. चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स हेमंताणं एक्कसत्तरीए राइदिएहि वीइक्कतेहिं
सम्बबाहिराओ मंडलाओ सूरिए आउट्टि करेइ ।। २. 'वीरियप्पवायस्स णं" एक्कसरि पाहुडा पण्णत्ता ।। ३. अजिते णं अरहा एक्कसरि पुव्वसयसहस्साई अगारमझावसित्ता मुंडे
भवित्ता •णं अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए ।। ४. सगरे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एक्कसत्तरि पुच सयसहस्साई अगारमझा
वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए ।।
१. कम्मपगडीणं (ख, ग)। २. कम्मप्पगडीतो (क)। ३. पज्जोसविए (क, ख, ग) 1 ४. स. पा०-बुद्धे जाव प्पहीणे। ५. एक्कसत्तरी (क); एक्कसत्तरीतेहिं (ग)। ६. वोरियपुवस्स णं पुव्वस्स (क,ख); वीरियप्प
वायस्स णं पुवस्स (क्व)। ७. मज्झे° (क, ख, ग)। ८. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइए। ६. सं० पा०–एवं समरेवि राया चाउरंतचक्क
वट्टी एकसत्तरि पुब्व जाव पव्वइए।
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बाबत्तरिमो समवाओ
बावत्तरिमो समवाओ
१. बावर्त्तारं सुवण्णकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता !!
२. लवणस्स समुदस्स बावर्त्तारं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति ॥ ३. समणे भगवं महावीरे बाबत्तरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सव्वदुक्ख पाहीजे ॥
४. थेरे णं अयलभाया बावर्त्तारि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिग्वडे सव्वदुक्ख ही ||
५. अब्भंतरपुक्खरद्धे णं बावतरि चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा बावत सूरिया विसु वा तवेंति वा तविस्संति वा ॥
६. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावर्त्तारि पुरवरसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ७. बावर्त्तरि कलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नट्टं
१. सं० पा०- - बुद्धे जाव प्पहीणे ।
२. सं० पा० - सिद्धे जाव प्पहीणे ।
३. जाणवयं ( क ) ; जाणवायं ( ख, ग ) 1 ४. अन्नविधं पाणविधं ( क ) 1
५. लोणविह (क); लोहविहिं ( ग ); वत्थविहिं ११. छपवायं ( क्व ) ।
८६५
५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पोरेकव्वं १३. अट्ठावयं १४. दगमट्टियं १५. 'अण्णविहिं १६. पाणविहि" १७. लेणविहि १८. सयणविहि १६. अजं' २०. पहेलियं २१. मागहियं २२. गाहं २३. सिलोगं २४. गंधजुत्ति २५. मधुसित्यं २६. आभरणविहि २७. तरुणीपडिकम्मं २८. इत्थीलक्खणं २६. पुरिसलक्खणं ३०. हयलक्खणं ३१. गयलक्खणं ३२. गोणलक्खणं ३३. कुक्कुडलक्खणं ३४. मिढयलक्खणं ३५. चक्कलक्खणं ३६. छत्तलक्खणं ३७. दंडलक्खणं ३८. असिलक्खणं ३६. मणिलक्खणं ४०. काकणिलक्खणं ४१ चम्मलक्खणं ४२. चंदचरियं' ४३. सूरचरियं ४४. राहुचरियं ४५. गहचरियं ४६. 'सोभाकरं ४७. दोभाकर" ४८. विज्जागयं ४६. मंतगयं ५०. रहस्सायं ५१. ' सभासं ५२. चारं” ५३. परिचारं ५४. वूहं ५५. पडिवूहं ५६. बंधावारमाण ५७. नगरमाणं ५८. वत्थुमाणं ५६. खंधावारनिवेस ६० निगरनिवेस ६१. वत्थुनिवेस ६२. ईसत्थं ६३. छरुप्पमयं" ६४. आससिक्खं ६५. हत्थिसिक्खं ६६. धणुव्वेयं ६७. 'हिरण्णपागं सुवण्णपागं मणिपागं धातुपागं ६८. बाहुजुद्धं दंडजुद्धं मुट्ठिजुद्धं अट्ठिजुद्धं
(क्व) !
६. पज्जं ( ग ) ।
७. चंदलक्खणं ( ख, ग ) 1
८. सोभाग ० ४७. दोभाग ० ( क्व ) ।
६. सभाव ५२. चरं ( क ); सभाव ५२. चार (ख); सभास्ना ५२. चारं (ग) 1 १०. ० मामणं (ग) 1
१२. हिरण्णवयं सुवण्णवयं ( क ) ; हिरण्णवाय सुवणवा ( ख, ग ) ।
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समवाओ
जुद्धं निजुद्धं जुद्धातिजुद्धं ६६. सुतखेडं 'नालियाखेड्डं वट्टखेड्ड" ७०. पत्तच्छेज्ज
कडगच्छेज्ज पत्तगछेज्जं ७१. सजीवं निज्जीव ७२. सउणरुयं । ८. सम्मुच्छिमखयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं वावतरि वाससहस्साई
ठिई पण्णत्ता।।
तेवत्तरिमो समवाओ १. हरिवासरम्मयवासियाओ णं जीवाओ तेवत्तरि-तेवतरि जोयणसहस्साइं नव
य एक्कुत्तरे जोयणसए सत्तरस य एकूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च
आयामेणं पण्णत्ताओ। २. विजए णं बलदेवे तेवतरि वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे "बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ॥
चोवत्तरिमो समवाओ १. थेरे णं अग्गिभूई गणहरे चोवत्तरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे
मत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदक्ख पहीणे ।। २. निसहाओ णं वासहरपव्वयाओ तिगिछिदहाओ' सीतोतामहानदी चोवत्तरि
जोयणसयाई साहियाइं उत्तराहुत्ति पवहित्ता यतिरामतियाए जिब्भियाए चउजोयणायामाए पपणासजोयणविक्खभाए' वइरतले कुंडे महया
घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठाणसंठिएणं पवाएणं महया सद्देणं पवडइ। ३. एवं सीतावि दक्खिणहुत्ति भाणियव्वा ।। ४. चउत्थवज्जासु छसु पुढवीसु चोवत्तरि निरयावाससयसहस्सा" पण्णत्ता ॥
पण्णतरिमो समवाओ १. सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ" पण्णरि जिणसया होत्था ।। २. सीतले णं अरहा पण्णत्तरि पुब्बसहस्साइं अगारमज्झावसित्ता" मुंडे भवित्ता"
*णं अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए।
१. नालियाखेडु वडखेड्डु धम्मखेड्डु चम्मखेड्डु ७. पण्णासं जोयण ° (ख);पण्णास जोयण (ग)।
(ख); वट्टखेड्डु नालियाखेडु धम्मखेड्डु (ग)। ८. 'दुहओ' त्ति क्वचित् दृश्यते तदपपाठः (वृ)। २. कणंगच्छेज्ज (ग)।
६. दक्खिणाहिमुही (क्व)। ३. अज्जीवं (ख); अजीवं (ग)। सजीवं (क्व)। १०. नरया ° (ग)। ४. सं० पा०—सिद्धे जाव प्पहीणे।
११. अरहतो पण्णरि जिणा (ख, ग)। ५. सं० पा०-सिद्धे जाव पहीणे । १२. ° मज्झे ° (क, ख, ग)। ६. दहाओ ण दहाओ (ख, ग)।
१३. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइए।
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८६७
अट्ठसत्तरिमो समवाओ ३. संती णं अरहा पण्णत्तरि वाससहस्साई अगारवासमझावसित्ता' मुंडे भवित्ता
अगाराओ अणगारियं पव्वाइए।
छावतरिमो समवाओ १. छावरि विज्जुकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥
२. एवंसंगहणी-गाहा
दीवदिसाउदहीणं, विज्जुकुमारिदथणियमग्गीणं । छण्हपि जुगलयाणं, छावत्तरिमो' सयसहस्सा ॥१॥
सतत्तरिमो समवाओ १. भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टा सत्तत्तरि पुवसयसहस्साई कुमारवासमझा
वसित्ता 'महारायाभिसेयं संपत्ते" ।। २. अंगवसाओ णं सत्तत्तरि रायाणो मुंडे' 'भवित्ता णं अगाराओ अणगारिअं°
पव्वइया॥ ३. गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्तरि देवसहस्सा परिवारा पण्णत्ता ।। ४. एगमेगे णं मुहुत्ते स तत्तरि लवे' लवग्गेणं पण्णत्ते ॥
अट्ठसत्तरिमो समवाओ १. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणे महाराया अट्ठसत्तरीए सुवण्णकुमार
दीवकुमारावाससयसहस्साण आहेवच्चं पोरेवच्चं भट्टित्तं सामित्तं महारायत्तं
आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ॥ २. थेरे णं अंकपिए अद्वसत्तर वासाई सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे 'बुद्धे मुत्ते ___अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ।। ३. उत्तरायणनियट्टे णं सुरिए पढमाओ मंडलाओ एगूणचत्तालीसइमे मंडले
अट्टहत्तरि एगसद्विभाए दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता
णं चार चरइ॥ ४. एवं दविखणायण नियट्टेवि ।।
१. अगारमझे ° (क); अगारमज्झा (म)। २. छावतरि (क्व)। ३. भिसियपत्ते (क)।
४. स० पा०-मुंडे जाव पव्वइया । ५. लवा (ग)। ६. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे ।
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८६८
समवाओ
३
एगणासीइमो समवाओ १. वलयामुहस्स णं पायालस्स हेछिल्लाओ चरिमंताओ इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए
हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं एगणासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। एवं के उस्सवि जयस्सवि ईसरस्सवि ॥
छट्ठीए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ छट्ठस्स घणोदहिस्स हेटिल्ले चरिमंते, एस ___णं एगणासोतिं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ४. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बारस्स य बारस य, एस णं एगूणासीई जोयणसहस्साई साइरेगाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।।
असीइइमो समवाओ १. सेज्जसे णं अरहा असोइं धणई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।। २. तिविठ्ठ णं वासूदेवे असीइं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ३. अयले णं बलदेवे असीइं धणई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ४. तिविठू णं वासुदेवे असीइं वाससयसहस्साई महाराया होत्था ॥ ५. आउबहुले णं कंडे असीइं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। ६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो असोई सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ७. जंबुद्दीवे णं दीवे असो उत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्ठोवगए पढम उदयं करेई ।।
एक्कासीइइमो समवाओ १. नवनवमिया' णं भिक्खुपडिमा एक्कासोइ राइदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहि
भिक्खासएहिं अहासुत्तं 'अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्म काएण फासिया
पालिया सोहिया तीरिया किटिया आणाए आराहिया यावि भवति ।। २. कुंथुस्स णं अरहओ एक्कासीति मणपज्जवनाणिसया होत्था । ३. विआहपण्णत्तीए' एकासीति महाजुम्मसया पण्णत्ता ॥
बासीतिइमो समवाओ १. जंबुद्दीवे दीवे बासोतं मंडलसयं जं सूरिए दुक्खत्तो संकमित्ता णं चारं चरइ,
तं जहा - निक्खममाणे 'य पविसमाणे" य ।। २. समणे भगवं महावीरे बासीए राइदिएहिं वीइक्कतेहिं गब्भाओ गन्भं साहरिए ।
१. णवणम्मया (क)। २. सं० पा०-अहासुतं जाव आराहिया।
३. विवाह ° (ग)। ४. पविसतिमाणे (क)।
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चउरासीइइमो समवाओ
८६६
३. महाहिमवंतस्स णं वास हरपव्वयस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स ___कडस्स हेछिल्ले चरिमंते, एस णं बासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥ ४. एवं रुप्पिस्सवि ॥
तेयासोइइमो समवाओ १. समणे भगवं महावीरे बासीइराइदिएहिं वोइक्कतेहिं तेयासोइमे राइदिए
वट्टमाणे गब्भाओ गब्भं साहरिए ।। २. सीयलस्स णं अरहओ तेसीति गणा तेसीति गणहरा होत्था । ३. थेरे णं मंडियपुत्ते तेसीइं वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे
परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख पहीणे॥ ४. उसभे गं अरहा कोसलिए तेसीइं पुव्वस यसहस्साई अगारवासमझावसित्ता'
मुंडे भवित्ता णं' अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए । ५. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी तेसोई पुवसयसहस्साई अगाारमज्झावसित्ता जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी ।।
चउरासीइइमो समवाओ १. चउरासीइं निरयावाससयसहस्साइं पण्णत्ता ॥ २. उसभे णं अरहा कोसलिए चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे
बुद्धे 'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख प्पहीणे ।। ३. एवं भरहो बाहुबली 'बंभी सुंदरी ।।। ४. सेज्जसे णं अरहा चउरासीई वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे 'बुद्धे
मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख पहीणे ।। ५. तिविठू णं वासुदेवे चउरासीइं वाससयसहस्साई सव्वा उयं पालइत्ता अप्पइ
ट्ठाणे नरए ने रइयत्ताए उववण्णे ।। ६. सक्कस्स पं देविंदस्स देवरण्णो चउरासीई सामाणियसाहिस्सीओ पग्णत्ताओ॥ ७. सव्वेवि णं बाहिरया" मंदरा चउरासीई-चउरासीई जोयणसहस्साई उड्ढे
उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ८. सब्वेवि णं अंजणगपव्वया चउरासीइं-चउरासीइं जोयणसहस्साई उड्ढे
उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ १. सं० पाo--सिद्धे जाव पहीणे।
५. बंभिसुंदरि (क, ख, ग)। २. ° माझे° (क)।
६. सं० पा०—सिद्धे जाव प्पहीणे । ३. सं० पा०-भवित्ता ण जाव पव्वइए। ७. परमाउं (क, ग)। ४. सं० पा. -बुद्धे जाव प्पहीगे।
६. बाहिरिया (ग)।
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समवाओ
६. हरिवासरम्मयवासियाणं जीवाणं घणुपट्टा' चउरासीइं चउरासीइं जोयणसहस्साई सोलस जोयणाई चत्तारि य भागा जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्तः ॥ १०. पंकबहुलस्स णं कंडस्स उवरिल्लाओं चरिमंताओ हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं चोरासीइं जोयणसय सहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
११. वियाहपण्णत्तीए णं भगवतीए चउरासीइं पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता ॥
६००
१२. चोरासीइं नागकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥
१३. चोरासीइं पइण्णगसहस्सा पण्णत्ता ॥
१४. चोरासीइं जोणिप्पमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ॥
१५. पुव्वाइयाणं सीस पहेलियापज्जवसाणाणं सट्टामट्टाणंतराणं चोरासीए गुणकारे पण्णत्ते ||
१६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीइं गणा चउरासीइं गणहरा होत्या || १७. उसभस्स णं कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चउरासीइं समण साहसीओ होत्था ||
१८. उरासीइं विमाणावासस्यसहस्सा सत्ताणउड़ं च सहस्सा तेवीस च विमाणा भवतीति मवखायं ॥
पंचासीइइमो समवाओ
१. आयारस्य णं भगवओ सचूलियागस्स पंचासीइं उद्देसणकाला पण्णत्ता ।। २. धायइसंडस्स गं मंदरा पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता || ३. रुपए णं मंडलियपव्वए पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥
४. नंदणवणस्स णं हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस गं पंचासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
छलसोइइमो समवाओ
१. सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ छलसीइं गणा छलसीइं गणहरा होत्था ॥
२. सुपासस्स णं अरहओ छलसीइं वाइसया होत्था ॥
३. दोच्चाए णं पुढवीए बहुमज्भदेस भागाओ दोच्चस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं छलसीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
सत्तासीइइमो समवाओ
१. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स
२. विवाह ( ग ) ।
१. धणुपिट्ठा (क्व ) ।
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अट्ठासीइइमो समवाओं
पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ॥ २. मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स आवासपव्वयस्स
उत्तरिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चस्थिभिल्लाओ चरिमंताओ संखस्स आवासपव्वयस्स
पुरथिमिल्ले चरिमते, "एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते । ४. मंदरस्स' •णं पव्वयस्स ° उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दगसीमस्स आवासपव्वयस्स
दाहिणिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ५. छण्हं कम्मपगडीओ आतिम-उवरिल्ल-वज्जाणं सत्तासीई उत्तरपगडीओ
पणत्ताओ 11 ६. महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेटिल्ले
चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ७. एवं रुप्पिकूडस्सवि ।।
अट्ठासीइइमो समवाओ १. एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स अट्ठासीइं-अट्ठासीई महग्गहा परिवारो पण्णत्तो।। २. दिट्टिवायस्स णं अट्ठासोई सुत्ताइ पण्णत्ताई, तं जहा-१. उज्जुसुयं २. परिणया
परिणयं ३. "बहुभंगियं ४. विजयचरियं ५. अणंतरं ६. परंपरं ७. सामाण ८. संजहं ६. संभिण्णं १०. आहच्चायं ११. सोवत्थियं घंटे १२. नंदावतं १३. बहुलं १४. पुट्ठापुढे १५. वियावत्तं १६. एवंभूयं १७. दुयावत्तं १८. वत्तमाणप्पयं १६. समभिरूढ २०. सव्वआभद्द २१. पण्णासं २२. दुप्पडिग्गहं। इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताइं छिण्णच्छेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताई अच्छिण्णच्छेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए । इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताई तिगनइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडाए। इच्चेइयाइं बावीसं सुत्ताई चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडोए।
एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीइ सुत्ताइं भवति त्ति मक्खायं ।। ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स
पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥
पा०–एवं मंदरस्स पच्चस्थिमिल्लाओ ३. सं० पा०–एवं अट्रासीइ सत्ताणि भाणिचरिमंताओ संखस्त पुरथिमिल्ले च ।
यदाणि जहा नंदीए। २. सं० पा०-एवं चेव मंदरस्स।
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१०२
समवाओ
४. "मंदरस्सणं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स आवासपव्व
यस्स दाहिणिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते॥ ५. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ संखस्स आवासपब्वयस्स
पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ।। ६. मंदरस्स णं पव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दगसीमस्स आवासपब्वयस्स
उत्तरिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ° ।। ७. 'बाहिराओ णं उत्तराओ कदाओ सरिए पढम छम्मासं अयमीणे चोयालीसइमे मंडलगते अट्ठासीति इगस ट्ठिभागे मुहुत्तस्स दिवस खेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणि
खेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता सूरिए चारं चरइ ।। ८. दक्षिणकट्ठाओ णं सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमीणे चोयालीसतिमे मंडलगते
अट्ठासीई इगसट्ठिभागे मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता णं सूरिए चारं चरइ ।।
एगूणणउइइमो समवाओ १. उसभे णं अरहा कोसलिए इमीसे ओसप्पिणीए ततियाए समाए पच्छिमे भागे
एगूणण उइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कते 'समुज्जाए छिष्णजाइ
जरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ।। २. समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउत्थीए समाए पच्छिमे भागे
एगणणउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं काल गए' 'बीइक्कते समुज्जाए छिण्णजाइ
जरामरणबंधणे सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ३. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एगूणणउई वाससयाइं महाराया होत्था ।। ४. संतिस्स णं अरहओ एगूणणउई अज्जासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जासंपया
होत्था ।।
णउइइमो समवाओ १. सीयले णं अरहा नउई धणूइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था । १. सं० पा० - एवं चउगवि दिसासु नेयध्वं । षणेभ्योतिरिक्तमस्ति, तेनास्य पूर्तिर्जम्बूद्वीप२. X (क, ग)
प्रज्ञप्ति (वक्षस्कार २) मनुसृत्य कृता सम३. अयमाणे (क्व)।
वायांगसूत्रम्य वृत्ति कृतास्य सूत्रस्य पूतिरेवं ४. अयमाणे (क्व)।
कृतास्ति–'जाव' तिकरणात् 'अंतगडे सिद्धे ५. सं० पा०-वीइक्कते जाव सवदुक्खप्पहीणे। बुद्धे मुत्ते' त्ति दृश्यम् ।
अत्र 'वीइक्कते' इति विशेषणं पूर्वागतविशे- ६. सं० पा०-कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
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चमो समवाओ
२. अजियस्स णं अरहओ नउई गणा नउई गणहरा होत्था || ३. संतिस्स गं अरहओ नउई गणा नउई गणहरा होत्था ||
.
४. सयंभुस्स णं वासुदेवस्स णउइवासाई विजए होत्था ।।
५. सव्वेसि णं वट्टवेयड्डूपव्ययाणं उवरिल्लाओं सिहरतलाओ सोगंधिय कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंत, एस णं नउई जोयणसयाई अवाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
एक्काणउइइमो समवाओ
१. एक्काणउई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ पण्णत्ताओ ||
२. कालोए णं समुद्दे एक्काण उई जोयणसहस्साई साहियाई परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥
३. कुंथुस्स णं अरहओ एक्काणउई आहोहियसया होत्था ||
४. आउय-गोय- वज्जाणं छण्हं कम्मपगडीणं एक्काणउई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ ॥
बाणउइइमो समवाओ
१. बाणउई पडिमाओ पण्णत्ताओ ॥
२. थेरे णं इंदभूती बाणउई वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते अंतगडे परिणिग्वडे सव्वदुक्खप्पही ॥
८०३
३. मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्भदेस भागाओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पच्चत्थि - मिल्ले चरिमंते, एस णं बाणउई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ४. एवं चउण्हपि आवासपव्वयाणं ।।
ते उइइमो समवाओ.
१. चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउइं गणा तेणउई गणहरा होत्या ॥
२. संतिस्स णं अरहओ तेणउई चउद्दसपुव्विसया होत्था ॥
३. तेणउई मंडलगते णं सूरिए अतिवट्टमाणे निवट्टमाणे वा समं अहोरत्तं विसमं
करेइ ॥
१. सं० पा० एवं संतिस्सवि । २. साहिते ( क ) ।
arresइमो समवाओ
१. निसनीलवंतियाओ णं जीवाओ चउणउइं- चउणउई जोयणसहस्साइं एक्कं छप्पण्णं जोयणसयं दोण्णि य एगुणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ ॥ २. अजियस्स णं अरहओ चउणउई ओहिनाणिसया होत्था ||
३. सं० पा०--बुद्धे ।
४. अनियट्टमाणे ( क ) ।
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६०४
पंचाणउइइमा समवाओ
१. सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउई गणा पंचाणउई गणहरा होत्था ॥ २. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चरिमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुद्दे पंचाणउई-पंचाणउई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, तं जहा -- वलयामुहे उए' जूते ईसरे ||
३. लवणसमुद्दस्स उभओपासंपि पंचाणउई-पंचाणउई पदेसाओ उब्वेहुस्सेहपरिहाणीए पण्णत्ताओ ॥
४. कुंथू णं अरहा पंचाणउई वाससहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख •प्पहीणे ॥
५. थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइवासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख ध्वहीणे ॥
छण्णउइइमो समवाओ
समवाओ
१. एगमेगस्स गं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स छण्ण उई छण्णउई गामकोडीओ होत्या ||
२. वाउकुमाराणं छण्णउई भवणावास सय सहस्सा पण्णत्ता ॥ ३. ववहारिए* णं दंडे छष्ण उई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ॥ ४. ववहारिए णं धणू छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ॥ ५. ववहारिया णं नालिया छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ॥ ६. ववहारिए णं जुगे छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ॥ ७. ववहारिए णं अक्खे छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ॥ ८. ववहारिए णं मुसले छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणं • ॥ ६. अब्भंतराओ आतिमुहुत्ते छण्णउइ' - अंगुलछाए पण्णत्ते ॥
०
सत्ताणउइइमो समवाओ
१. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स णं आवास
१. महापायालकलसा (क्व ) ।
२. केऊते (ग) ।
३. जूए (क्व ) ।
४. ववुस्सह° ( क ) ; वहुस्सेह° ( ग ) । ५. सं० पा० - बुद्धे जाव पहीणे ।
६. सं० पा० -- सिद्धे जाव प्पहीणे ।
७. वावहारिए (क, ख ) 1
८. सं० पा० - एवं धणू नालिया जुगे अक्ख मुसलें वि ।
९. छण्णउ (क, ख, ग ) ।
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णवणउइइमो समवाओ
१०५ पव्वयस्स पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्ताणउई जोयणसहस्साई अवाहाए
अंतरे पण्णत्ते ॥ २. एवं चउदिसिपि ॥ ३. अट्ठण्हं कम्मपगडीणं सत्ताणउई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ॥ ४. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी देसूणाई सत्ताणउई वाससयाई अगारमझाबसित्ता' मुंडे भवित्ता णं अगाराओ' 'अणगारिअं° पव्वइए ।।
अठाणउइइमो समवाओ १. नंदणवणस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंडयवणस्स हेटिल्ले चरिमंते, एस णं
अट्ठाणउइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। २. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथभस्स आवासपव्वयस्स
पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ॥ ३. एवं चउदिसिपि ।। ४. दाहिणभरहद्धस्स' णं धणुपट्टे अट्ठाणउई जोयणसयाई किचूणाई आयामेणं
पण्णत्ते ।। ५. उत्तराओ णं कठ्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमीणे एगणपंचासतिमे" मंडलगते
अट्ठाणउइ एकसट्ठिभागे मूहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स
अभिनिवुड्ढेत्ता णं सूरिए चारं चरइ ।। ६. दक्खिणाओ ण कट्ठाओ सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमीणे एगूणपण्णासइमे मंडल
गते अट्ठाणउइ एकसट्ठिभाए महत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स
अभिनिवुड्ढेत्ता णं सूरिए चारं चरइ॥ ७. रेवईपढमजेट्ठपज्जवसाणाणं' एगूणवीसाए नक्खत्ताणं अट्ठाणउइं ताराओ तारग्गेणं पण्णत्ताओ।
णवणउइइमो समवाओ १. मंदरे णं पव्वए णवणउई जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ॥ २. नंदणवणस्स णं पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चथिमिल्ले चरिमते, एस णं __णवणउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ १. अगारवासमझा ° (क, ग)।
४. धणुपिट्टे (क्व)। २. सं० पा०-- अगाराओ जाव पव्वइए। ५. एगणपन्नासतिमे (ग); 'एकतालीसइमे' इति ३. ° भरहस्स (ख, ग); 'वेयड्ढस्स ण' केषुचित्पुस्तकेषु दृश्यते सोऽपपाठः (वृ)। मित्यादि य केषुचित्पुस्तकेषु दृश्यते सोऽप- ६. जेट्ठा ० (क्व)। पाठः (वृ)।
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समवाओ
है०६
३. "नंदणवणस्स गं दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्ले • चरिमंते, एस णं णवणउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।।
४. पढमे' सूरियमंडले णवणउई जोयणसहस्साई साइरेगाई आयाम विक्खभेणं पण्णत्ते ||
५. दोच्चे सूरियमंडले णवणउई जोयणसहस्साई साहियाई आयामविवखंभेणं पण्णत्ते ||
६. तइए सूरियमंडले णवणउई जोयणसहस्साई साहियाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥
७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अंजणस्स कंडस्स हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ वाणमंतर भोमेज्ज-विहाराणं उवरिल्ले चरिमंते, एस णं णवणउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
सततमो समवाओ
१. दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राइदियस्तेणं अद्धछट्ठेहि भिक्खासते हि अहासुत्तं" "अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए आरोहिया यावि भवइ ॥
०
२. सर्याभिसयानक्खत्ते एक्कसयतारे पण्णत्ते ||
३. सुविही पुप्फदंते णं अरहा एवं धणुसयं उड्ढ उच्चत्तेणं होत्था ॥
४. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए एक्कं वासस्यं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख •प्पही ||
५. थेरे णं अज्जसुहम्मे, एक्कं वासस्यं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वडे सव्वदुक्खप्पही
॥
६. सव्वेवि णं दीहवेयड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
७. सव्वेवि णं चुल्ल हिमवंत - सिहरी वासह रपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढं उच्चतेणें, एगमेग गाउयसयं उव्वेहेणं पण्णत्ता ॥
८. सव्वेवि णं कंचणगपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड़ढं उच्चत्तेणं, एगमेगं गाउयसयं उब्वेहेणं, एगमेगं जोयणसयं मूले विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
१. सं० पा० एवं दविखणिल्लाओ उत्तरे । २. पढम (वृ) ।
३. सातिरेगाई ( क ) |
४. सं० पा० - अहासुतं जाव आराहिया । ५. सं० पा० - सिद्धे जाव प्पहीने ।
६. सं० पा०—एवं येरे वि अज्जहमे ।
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पइण्णगसमवाओ
१. चंदप्पभे णं अरहा दिवढं धणुसयं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। २. आरणें कप्पे दिवड्ढं विमाणावाससयं पण्णत्तं ॥ ३. एवं अच्चुएवि ॥ ४. सुपासे णं अरहा दो घणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।।। ५. सव्वेवि णं महाहिमवत-रुप्पी-वासहरपव्वया दो-दो जोयणसयाई उड्ढे
उच्चत्तेणं, दो-दो गाउयसयाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता ।। ६. जंबुद्दीवे णं दीवे दो कंचणपव्वयसया पण्णत्ता ।। ७. पउमप्पभे णं अरहा अड्डाइज्जाई धणुसयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।। ८. असुरकुमाराणं देवाणं पासायवडेंसगा अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता॥ ६. सुमई णं अरहा तिण्णि धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। १०. अरिट्ठनेमी णं अरहा तिण्णि वाससयाई कुमार[वास ? ] मज्झावसित्ता मुंडे
भवित्ता [अगाराओ अणगारिअं?] पव्वइए । वेमाणियाणं देवाणं विमाणपागारा तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाई उडढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता ॥ १२. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तिण्णि सयाणि चोदसपुवीणं होत्था ।। १३. पंचधणुसइयस्स णं अंतिमसारीरियस्स सिद्धिगयस्स सातिरेगाणि तिणि धण
सयाणि जीवप्पदेसोगाहणा पण्णत्ता ॥ १४. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्भुट्ठसयाई चोद्दसपुवीणं संपया होत्था ॥ १५. अभिनंदणे णं अरहा अट्ठाई धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। १६. संभवे णं अरहा चत्तारि धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।।
११.
१०७
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६०५
समवाओ
१७. सब्वेवि णं णिसढ-नीलवंता वासहरपब्वया चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं
उच्चत्तेणं, चत्तारि-चत्तारि गाउयसयाइं उन्हेणं पण्णत्ता ।। सब्वेवि' णं वक्खारपव्वया णिसढ-नीलवंतवासहरपव्वयतेणं चत्तारि-चत्तारि
जोयणसयाइं उड़द उच्चत्तेणं, चत्तारि-चत्तारि गाउयसयाइं उन्हेणं पण्णत्ता ॥ १६. आणय-पाणएसु-दोसु कप्पेसु चत्तारि विमाणसया पण्णत्ता ।। २०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणयासूरम्मि
लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ।। २१. अजिते गं अरहा अद्धपंचमाइं धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । २२. सगरे ण राया चाउरंतचक्कवट्टी अद्धपंचमाइंधणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।। २३. सव्वेवि णं वक्खारपव्वया सोया-सीतोयाओ महानईओ मंदरं वा पव्वयं पंच
पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच-पंच गाउयसयाइं उन्वेहेणं पण्णत्ता।। २४. सव्वेवि णं वासहरकूडा पंच-पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच
जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। २५. उसभे णं अरहा कोसलिए पंच धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। २६. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। २७. सोमणस-गंधमादण-विज्जुप्पभ-मालवंता णं वक्खारपव्वया णं मंदरपव्वयंतेणं
पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच-पंच गाउयसयाई उव्वेहेणं
पण्णत्ता।। २८. सव्वेवि णं वक्खारपव्वयकूडा हरि-हरिस्सहकडवज्जा पंच-पंच जोयणसयाई
उडुढं उच्चत्तेण, मूले पंच-पंच जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता ! २६. सव्वेवि णं नंदणकूडा बलकूडवज्जा पच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं,
मूले पंच-पंच जोयणसयाई आयामविक्खं भेणं पण्णत्ता ।। ३०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणा पंच-पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ३१. सणकुमार-माहिदेसु कप्पेसु विमाणा 'छ-छ'' जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं
पण्णत्ता।। ३२. चुल्लहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ चुल्लहिमवंतस्स वासहर
पव्वयस्स समे धरणितले, एस ण छ जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ३३. एवं सिहरीकूडस्सवि ॥ ३४. पासस्स णं अरहओ छ सया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिआणं
उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ।।
१. सब्वेवि य (क, ग)। २. मंदिरेणं (क)।
३. छ (क, ग)। ४. उक्कोसं (क); उक्कोसा (ग)।
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पइण्णगसमवाओ
१०६
३५. अभिचंदे णं कुलगरे 'छ धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।। ३६. वासुपुज्जे णं अरहा हि पुरिससएहिं सद्धि' मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं
पव्वइए । ३७. बंभ-लतएसु कप्पेसु विमाणा सत्त-सत्त जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ३८. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त जिणसया होत्था । ३६. समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त वेउव्वियसया होत्था । ४०. अरिट्टनेमी णं अरहा सत्त वाससयाई देसूणाई केवलपरियागं पाउणित्ता सिद्धे
बद्धमत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदक्खप्पहीणे ॥ ४१. महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ महाहिमवंतस्स वासहर
पव्वयस्स समे धरणितले, एस णं सत्त जोयणसयाइं अबाहाए अतरे पण्णत्ते ।। ४२. एवं रुप्पिकूडस्सवि ।। ४३. महासुक्क-सहस्सारेसु–दोसु कप्पेसु विमाणा अट्ठ-[ अट्ठ ?] जोयणसयाई
उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। ४४. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमे कंडे अट्ठसु जोयणसएसु वाणमंतर-भोमेज्ज
विहारा पण्णत्ता। ४५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं गइ
कल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिआ अणुत्तरोबवाइयसंपया
होत्था। ४६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अहिं
जोयणसएहिं सूरिए चारं चरति । ४७. अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठ सयाई वाईणं सदेवमणुयासुरम्मि लोगम्मि वाए
अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ।। ४८. आणय-पाणय-आरणच्चुएसु कप्पेसु विमाणा नव-नव जोयणसयाइं उड्ढं
उच्चत्तेण पण्णत्ता ।। ४६. निसहकूडस्स णं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ णिसढस्स बासहरपव्वयस्स समे
धरणितले, एस णं नव जोयशसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।. ५०. एवं नीलवंतकडस्सवि ।। ५१. विमलवाहणे णं कुलगरे णं नव धणुसयाइं उडढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ५२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नवहिं
जोयणसएहिं सब्वुपरिमे तारारूवे चारं चरइ ।।
१. षट् धनुः शतानि पंचाशदधिकानि (वृ)। २. ४ (क, ग)। ३. सं० पा०-बुद्धे जाव प्पहीणे ।
४. अणुत्तरोववाइयाणं संपया (ग)। ५. निसभ ° (क, ख, ग)।
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६१०
समवाओ
५३. निसढस्स णं वासधरपत्रयस्स उवरिल्लाओ सिहरतलाओ इमीसे णं रयणप्प
भाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं नव जोयणसयाई
अबाहाए अंतरे पण्णते । ५४. एवं नीलवंतस्सवि।। ५५. सव्वेवि णं गेवेज्जविमाणा दस-दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ५६. सव्वेवि णं जमगपव्वया दस-दस जोयणसयाइं उडढं उच्चत्तेणं, दस-दस गाउय
सयाइं उब्वेहेणं, मुले दस-दस जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ५७. एवं चित्त-विचित्तकूड़ा वि भाणियब्वा ।। ५८. सब्वेवि णं' वट्टवेयपव्वया दस-दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस-दस
गाउयसयाई उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया, मूले दस-दस
जोयणसयाई विखंभेणं पण्णत्ता ॥ ५६. सव्वेवि णं हरि-हरिस्सहकूडा वक्खारकूडवज्जा' दस-दस जोयणसयाई उड्ढे
उच्चत्तेणं, मूले दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ६०. एवं बलकूडावि नंदणकूडवज्जा ।। ६१. अरहा वि अरिटुनेमो दस वाससयाई सवाउयं पाल इत्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ६२. पासस्स णं अरहओ दस सयाइं जिणाणं होत्था ।। ६३. पासस्स णं अरहओ दस अंतेवासिसयाई कालगयाई वीइक्कंताई समुज्जयाई
छिण्णजाइजरामरणबंधणाई सिद्धाइं बुद्धाई मुत्ताई अंतगडाई परिणिव्वुयाई
सव्वदुक्खप्पहीणाई॥ ६४. पउमद्दह-पंडरीयद्दहा य दस-दस जोयणसयाई आयामेणं पण्णत्ता ।। ६५. अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एक्कारस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता ॥ ६६. पासस्स णं अरहओ इक्कारससयाई वेउव्वियाणं होत्था । ६७. महापउम-महापुंडरीयदहाणं दो-दो जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता ।। ६८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरकंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ
लोहियक्खस्स कडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं तिण्णि जोयणसहस्साई
अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ६६. 'तिगिच्छ-केसरिदहा णं" चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता ।।
१. य णं (ग)। २. वक्खारपध्वयकूड (क)। ३. सं० पा० - बुद्धे जाब सव्वदुक्ख ° ।
४. सं० पा०--कालगयाइं जाव सव्वदुक्ख° । ५. ° दहा णं दहा (क,ग); दहा णं दहा (ख)।
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पइण्णगसमवाओ
७०. धरणितले मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमझदेसभाए' स्यगनाभीओ' चउदिसिं'
पंच-पंच जोयणसहस्साई अबाहाए मंदरपव्वए पण्णत्ते ।। ७१. सहस्सारे णं कप्पे छ विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता ॥ ७२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ
पुलगस्स कंडस्स हेटिल्ले चरिमंते, एस णं सत्त जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे
पण्णत्त ।। 6 ३. हरिवास-रम्भया णं वासा अट्ठ-[ अट्ट ? ] जोयणसहस्साइं साइरेगाइं वित्थरेण
पण्णत्ता ।। ७४. दाहिणड्वभरहस्स ण जीवा पाईणपडीणायया दुहओ समुदं पुट्ठा नव
जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता ।। ७५. मंदरे णं पत्रए धरणितले दस जोयाणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ७६. जंबूदो वेणं दीवे एग जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ७७. लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ७८. पासस्स णं अरहओ तिणि सयसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्साई उक्कोसिया
साविया-संपया होत्था ।।। ७९. धायइसंडे णं दीवे चत्तारि जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ५०. लवणस्स णं समुद्दस्म पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चथिमिल्ले चरिमंते,
एस णं पंच जोयणसयसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ८१. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी छ पुव्वसयसहस्साई रायमज्भावसित्ता मुंडे
भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए॥ ८२. जंबूदीवस्स णं दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ धायसंडचक्कवालस्स पच्चत्थि
मिल्ले चरिमंते, [एस णं? ] सत्त जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ८३. माहिंदे णं कप्पे अट्ट विमाणावाससयसहस्साइं पण्णत्ताई। ८४ अजियस्स णं अरहओ साइरेगाइं नव ओहिनाणिसहस्साई होत्था । ८५. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए
पुढवीए नरएसु ने रइयत्ताए उववण्णे ॥ ८६. समणे भगवं महावोरे तित्थगरभवम्गहणाओ छठे पोट्टिलभवग्गहणे एगं
१. भागाओ उ (क)। २. रुवमणाभीतो (क) 1 ३. हिसं (क); द्दिसि (ग)। ४. सतसहस्साई (ग); अमितस्याहंतः साति
रेकाणि नवावधिज्ञानिसहस्राणि, अतिरेकश्च
त्वारि शतानि, इंद च सहस्रस्थानकमपि लक्षस्थानकाधिकारे यदधीतं तत् सहस्रशब्द. साधाद्विचित्रत्वाद्वा सूत्रगतेलेखकदोषाद्वेति (७)।
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समवाओ
वासकोडि सामग्णपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वठे विमाणे देवत्ताए
उववणे ॥ ८७. उसभसिरिस्त भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोवम
कोडाकोडी अवाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। दुवालसंग-पदं ५८. दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णते, तं जहा --आयारे सूयगडे ठाणे समवाए
विआहपण्णतो णाया-धम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववा___ इयदसाओ पण्हावागरणाई विवागसुए दिट्ठिवाए । से कि तं आयारे? आयारे ण समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइय-द्वाण-गमण'चंकमण-पमाण - जोगजुजण-भासा-समिति-गुत्ती-सेज्जोवहि- भत्तपाण - उग्गमउप्पायणएसणाविसोहि - सुद्धासुद्धग्गहण - वय - णियम-तवोवहाण-सुप्पसत्थमाहिज्जइ ! से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-णाणायारे सणायारे चरित्तायारे तवायारे बीरियायारे ।। आयारस्स ण परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ। से णं अंगट्टयाए पढमे अंगे दो सुयक्खंधा पणवीसं अज्झयणा पंचासीई उद्देसणकाला पंचासोइं समुद्देसणकाला अट्ठारस पयसहस्साई पदग्गेणं', संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिवद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति पण्णविनंति परूविज्जति दंसिज्जति निदसिज्जंति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पणविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदसिज्जति । सेत्तं आयारे।। से कि तं सूयगडे ? सूयगडे ण ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइज्जति जीवाजोवा सूइज्जंति 'लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति । सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्णा-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्या सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपब्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय सहज बुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं
१. पयग्गेणं प० (ग) प्रायः सर्वत्र । २. आवा (क); आए (ग); इदं च सूत्रं पुस्त-
केषु न दृष्ट, नन्द्यां तु दृश्यते इतीह व्याख्यात
मिति (वृ)। ३. लोगो० अलोगो० लोगालोगो० (ग)।
इदं च सूत्रं पुस्त- ३. लागि
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पइण्णगसमवाओ
'आसीतस्स किरियावादिसतस्स" चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तट्टीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईण-तिण्हं तेसट्ठाण' अण्णदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति । णाणादिटुंतवयण-णिस्सारं सुट्ठ दरिसयंता विविहवित्थराणुगम-परमसब्भाव-गुण-विसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूता सोवाणा चेव सिद्धिसुगइघरुत्तमस्स णिक्खोभ-निप्पकंपा सुत्तत्था । सूयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोमा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ। सेणं अंगदयाए दोच्चे अंगे दो सयक्खंधा तेवीसं अज्भयणा तेत्तीसं उद्देसणकाला तेत्तीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पदसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा 'अणंता गमा अणंता पज्जवा० परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति *पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जंति° उवदंसिज्जंति । 'से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया" एवं चरण-करण-परूवणया आपविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति
उवदंसि ज्जति ° । सेत्तं सूयगडे ॥ ६१. से कितं ठाणे? '
ठाणे णं ससमया ठाविजंति परसमया ठाविज्जति ससमयपरसमया ठाविति जीवा ठाविज्जति अजीवा ठाविज्जति जीवाजीवा ठाविज्जति लोगे ठाविज्जति अलोगे ठाविज्जति लोगालोगे ठाविज्जति । ठाणे णं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव पयत्थाणं
संगहणी-गाहा
सेला सलिला य समुद्द-सूरभवणविमाण आगर' णदीओ। णिहओ" पुरिसज्जाया", सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥१॥
१. असीति सयस किरियावादिणं (ग)। ६. से एवं णाते एवं विष्णाते (क, ग)। २. अकिरियादीणं (ग):
७. सं० पा०-आधविज्जति । ३. तेअट्ठाणं (ग)।
८. सूरा भवन विमाणा (क) । ४. सं० पा०~~अक्खरा तं चेव जाव परित्ता। ६. आगर। (ख) । ५. सं. पा० ---प्राधविज्जति जाव उवदं- १०. णिवहो (क); णिधओ (ग)। सिज्जति 1
११. पुस्सजोय (वृपा)।
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११४
समवाओ
एक्कविह्वत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण 'य लोगट्ठाइणं च" परूवणया आघविज्जति । ठाणस्स णं परित्ता वायणा' 'संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तोओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एक्कवोसं उद्देसणकाला एक्कवीसं समुद्देसणकाला बावतरि पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा' 'अणता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पिण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति।
सेत्तं ठाणे॥ ६२. से कि तं समवाए ?
समवाए णं ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजोवा सूइज्जति जीवाजीवा सूइज्जति लोगे सूइज्जति अलोगे सइज्जति लोगालोगे सूइज्जति। समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्डीय', दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य णाणाविहप्पगारा जीवाजीवा य वणिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग - तिरिय-मणुय - सुरगणाणं अहारुस्सास - लेस-आवास-संख-आययप्पमाण उववाय-चयण-आगाहणाह-वेयण-विहाण-उवओग-जोग-इंदिय-कसाय, विविहा य जीवजोणी विक्खंभुस्सेह-परिरय-प्पमाणं विधिविसेसा य मंदरादीणं महीधराणं कुलगर-तित्थगर-गणहराणं समत्तभरहाहिवाण चक्कीणं चेव चक्कहरहलहराण य वासाण य निग्गमा य समाए।
१. लोगट्ठाई च णं (क, ख, ग); प्रतिषु ५. समाते (ख, वृ)। 'लोगट्ठाई च ण' पाठो लभ्यते । किन्तु वृत्त्य- ६. परिवुढिय (ख, वृ)। नुसारेण 'लोगट्ठाइणं च' एवं पाठो युज्यते। ७. समणुवाइज्जइ' (क)। लिपिदोषेण वर्णविपर्ययो जात इति प्रतीयते। ८. कषायाः क्रोधादयः आहारश्चोच्छवासश्चेत्या२. सं० पा०-वायणा जाव संखेज्जा।
दिर्द्वन्द्वस्ततः कषायशब्दात्प्रथमाबहवचनलोफो ३. सं० पा०-अक्खरा जाव चरण-करण । द्रष्टव्यः (वृ)। ४. सं० पा०-आघविज्जति ।
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पइण्णगसमवाओ
एए अण्णेय एवमादित्य वित्थरेणं अत्था समासिज्जति' । समवायस्स णं परित्ता वायणा' "संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तोओ संखेज्जाओ संग्रहणीओ |
O
सेणं अंगट्टयाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे एगे उद्देसणकाले एगे समुद्देसणकाले एगे चोयाले पत्रस्यसहस्से' पदग्गेणं, 'संखेज्जाणि अक्खराणि " "अगंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परुविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
०
से एवं आया एवं पाया एवं विष्णाया एवं चरण- करण- परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं समवाए । ९३. से किं तं वियाहे ?
वियाहेणं ससमया वियाहिज्जति परसमया वियाहिज्जति ससमयपरसमया वियाहिज्जेति जोवा वियाहिज्जेति अजीवा वियाहिज्जति जीवाजीवा विहिज्जेति लोगे वियाहिज्जइ अलोगे वियाहिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ । वियाहे णं नाणाविह सुर-नरिद रायरिसि विविहसंसइय-पुच्छियाणं जिणेणं' वित्थरेण' भासियाणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पदेस - परिणाम जत्त्थिभावअणुगम-निक्खेव य-प्पमाण सुनिउणोवक्कम - विविहप्पगार - पागड- पयंसियाणं' लोगालोग-पगासियाणं संसारसमुद्द - रुंद - उत्तरण - समत्थाणं सुरपति संपूजियागं भविय-जणपय-हिययाभिनंदियाणं तमरय - 'विद्वंसणाणं सुदिट्ट 'दीवभूय-ईहामतिबुद्धि-वद्धणाणं" छत्तीस सहस्समणूणयाणं वागरणाणं दंसणारे सुयत्थविपगारासीसहियत्थाय गुणहत्था ।
विवाहस्स परिता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगणीओ |
१. समाहिज्जति (क, ग ) ।
२. सं० १९० वायणा जाव से णं ।
३. पदसहस्से ( ग ) ।
४. पूर्ववतित्रिषु सूत्रेषु 'संखेज्जा अक्खरा' इति विद्यते । सं० पा० - अक्खराणि जाव सेत्तं ।
५. जिणाण ( क ) ।
६. वित्थार ( क ) ; वित्थर ( ख ) |
७. सुविक्कम ( क ) 1
६१५
८.
गारा ( क ) । ६. वयंसिया ( क ) 1
०
१०. विद्धसणाणसुट्टि (वृ); विद्धसणाणं
सुदिट्ठ (वृपा ) !
११. दीवभूयाणं (वृपा ) |
१२. दंसणाओ (ग) 1
१३. सं० पा०-- वायणा जाव अंगठय ए ।
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समवाओ
से गं अंगदुयाए पंचमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अज्झयणसते दस उद्देगसहस्साई दस समुद्देसगसहस्साई छत्तीसं वागरणसहस्साई चउरासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाई अक्खराइं अनंता गमा' 'अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति' पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
0
से एवं आया एवं गाया एवं विष्णाया एवं चरण- करण- परूवणया आघविज्जति' पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं विया ॥
६४. से किं तं 'नाया - धम्मकहाओ" ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराई उज्जाणाई चेइआई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणारं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया डिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परुविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति ।
१६
नाया - धम्महासु णं पव्वइयाणं विणयकरण - जिणसामि सासणवरे " संजमपइण्ण"- पालण' - धिइ-मइ ववसाय - दुल्लभाणं, तव नियम-तवोवहाण - रणदुद्धरभर" - "भग्गा" - णिसहा ""- णिसद्वाणं", घोरपरीसह पराजिया " सह-पारद्धरुद्ध - सिद्धालय मग्ग - निम्गयागं, 'विसयसुह तुच्छ" - आसावस- दोस-मुच्छियाणं विराहिय चरित नाण- दंसण- जइगुण- विविह-पगार- निस्सार-सुण्णयाणं संसारअपार- दुक्ख- दुग्गइ-भव विविहपरंपरा-पवंचा" ।
१. सं० पा०-- अनंता गमा जाव सासया ।
२. सं० पा० - आघविज्जति जाव एवं । ३. सं० पा० - आघविज्जति ।
०
४. नया (क); प्रायः सर्वत्र 1 नाथ ( ग ) । ५. सं० पा० आघविज्जति जाव नाया ।
६. समणाणं विनयकरणजिणसासणंमि पवरे
(वृपा) ।
७. ० पतिष्णा (ग) 1
८. पायाल (वृ); पालण (वृपा) ।
६. दुबला (क, ख, वृपा ) ।
१०. चरण ( ग ) |
११. दुद्धारभर (ख, म) 1 १२. भग्गाणं ( क ) |
१३. इह च प्राकृतत्वेन ककारलोपसन्धिकरणाभ्यां भग्ना इत्यादी दीर्घत्वमवसेयम् (वृ) |
१४. निविद्वाणं (वृपा ) ।
१५. पराजियाणं (वृपा)
१६. विसयहमहेच्छतुच्छ (वृपा) । १७. पबंधा (क) ।
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पइण्णगसमवाऔ
धीराण य जिय-परिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणिय-संजम-उच्छाह-निच्छियाणं आराहिय - नाण - दसण-चरित्त - जोग-निस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धालयमग्ग-मभिमुहाणं सुरभवण-विमाण-सुक्खाई अणोवमाइं भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि ततो य काल-क्कम-च्चुयाणं जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेव-माणुस्स-धीरकरण-करणाणि बोधण-अणुसासणाणि गुणदोस-दरिसणाणि। दिद्रुते पच्चए य सोऊण लोगमुणिणो 'जह य ठिया" सासणम्मि जर-मरणनासणकरे। आराहिय-संजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं । एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेण य । नाया-धम्मकहासू गं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्टयाए छटे अंगे दो सुअक्खंधा एगूणतीसं अज्झयणा, 'ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–चरिता य कप्पिया य"। दस धम्मकहाणं वग्गा । तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच-पंच अक्खाइयासयाई। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच-पंच उवक्खाइयासयाई। एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच-पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई-एवामेव सपुवावरेणं अद्धट्ठाओ अक्खाइयकोडीओ भवंतीति मक्खायाओ। एगणतीसं उद्देसणकाला एगणतीसं समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा' 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ताभावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघ
१. जह ठिय (क); जह य ठिय (ग)। 'ग' प्रतिगतवृत्तौ 'एक्कूणतीसमज्झयण' त्ति २. सं० पा०-अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ। पाठांशो लभ्यते । अध्ययनानां सामान्य३. एकूणवीसं (क); एक्कूणवीस (ग); यत्र निरूपणे असो सम्यक् प्रतिभाति । 'नातज्झयणा' तत्र 'एगणवीसं' इति पाठः ४. असौ पाठो वृत्ती नास्ति व्याख्यातः। सम्यक् स्यात्। किन्तु यत्र केवलं 'अज्झयणा' ५. पयसहस्साई (ख)। इति तत्र 'एगूणतीसं' पाठो युज्यते । प्रयुक्त ६. सं० पा०--अक्खरा जाव चरण ।
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६१८
समवाओ
६५.
विज्जति पिण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं णाया-धम्मकहाओ। से कि तं उवासगदसाओ ? उवासगदसासु णं उवासयाणं नगराइं उज्जाणाई चेइआई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्डिविसेसा, उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासपडिवज्जणयाओ सुयपरिगहा तवोवहाणाई पडिमाओ उक्सग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खागाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आधविज्जति । उवासगदसासू ण उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थर-धम्मसवणाणि बोहिलाभ-अभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुणउत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमाभिग्गहग्गहण-पालणा उवसग्गाहियासणा णिरुवसग्गा य, तवा य विचित्ता, सीलव्वय-'वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासा, अपच्छिममारणंतियाायसंलेहणा-झोसणाहिं अप्पाणं जह य भावइत्ता, बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेयइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसु जह अणुभवंति सुरवरविमाणवरपोंडरीएसु सोक्खाई अणोवमाई कमेण भोत्तूण उत्तमाइं, तओ आउक्खएणं चया समाणा जह जिणमयम्मि बोहि लळूण य संजमुत्तमं तमरयोघविप्पमुक्का उवेति जह अक्खयं सव्वदुक्ख मोक्खं । एते अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण य । उवासगदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए सत्तमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जाइं अक्ख राई अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया° एवं चरण-करण-परूवणया आघ
१. सं० पा०-आषविज्जति । २. भत्तपाण° (वृ)। ३. अभिगमणं (ग)। ४. चित्ता (क, ख, ग)।
५. गुण वेरमण (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ। ७. पयसहस्साइं (क, ख)। ८. सं० पा०-अक्खराइं जाव एवं चरण ।
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१६
विज्जति' "पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं उवासगदसाओ ।।
६. से किं तं अंतगडदसाओ ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया डिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणारं पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअं च सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो उत्तमं च बंभ, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तह' अप्पमायजोगो, सज्झायज्भाणाण य उत्तमाणं दोन्हंपि लक्खणाई ।
पंइण्णगसमवाओ
पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ' मुणिहिं पायोवगओ य जो जहि जत्तियाणि भत्ताणि छेत्ता अंतगडो मुणिवरो तमरयोघविप्पमुक्कों, मोक्खसुहमणुत्तरं
च पत्ता ।
एए अण्णेय एवमाइअत्था वित्थारेण परूवेई ।
● अंतगडदसासू गं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगणओ ।
0
सेणं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्भयणा सत्त वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्दे सणकाला संखेज्जाई पयसय सहस्साई' पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा' "अनंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ताभावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
से एवं आया एवं गाया एवं विष्णाया एवं चरण-करण- परूवणया आघ
o
१. सं० पा० आघविज्जति । २. चियातो किरियाओ (क); किरियाओ ( ख ); चाओ किरियाओ ( ग ) ।
इति पाठ आसीत् तेन वृत्तिकारेण अनेकवचनं व्याख्यातम्, 'पत्ता' अत्र च बहुवचनम् । १२८ सूत्रे 'अंतगडा मुणिवरूत्तमा तम-रओघ - विप्पमुक्का' इति पाठो लभ्यते, ततः पूर्वोक्तानुमानस्य पुष्टिर्जायते । ६. पत्तो ( ग ) ।
३. तह य ( ग ) ।
४. परिपालिओ (ग) 1
५. ० मुक्का ( ख, ग ); अत्र प्रस्तुतपाठस्य क्रमेण 'अंतगडा मुणिवरा तम-रयोघ - विप्पमुक्का' इति पाठो युज्यते, किन्तु वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'अंतगडो मुणिवरो तम रयोध - विप्पमुक्कों' ६. सं० पा० – अक्खरा जाव एवं चरण 1
७. सं० पा० परूवेई जाव से णं । सहस्साइं ( ख ) ।
८.
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६२०
समवाओ विज्जति', 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं अंतगडदसाओ॥ से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई अणुत्तरोववत्ति सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।। 'अणुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाई परममंगल्लजगहियाणि जिणातिसेसा य बहुविसेसा जिणसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं 'तव-दित्त"-चरित्त-णाण-सम्मत्तसार-विविहप्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ, उत्तमवरतव-विसिट्ठणाण-जोगजुत्ताणं जह य जगहियं भगवओ जारिसा य रिद्धिविसेसा देवासुरमाणुसाणं परिसाणं पाउन्भावा य जिणसमीवं, जह य उवासंति जिणवरं, जह य परिकहेंति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणं', सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्म-विसयविरत्ता नरा जह अब्भुवेति धम्ममुरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं, जह बहुणि वासाणि अणुचरित्ता आराहिय-नाण-दसण-चरित्त-जोगा 'जिणवयणमणुगय-महियभासिया जिणवराण हियएणमणुणेत्ता, जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता लद्धण य समाहिमुत्तमं झाणजोगजुत्ता उववण्णा मुणिवरोत्तमा जह अणुत्तरेसु पावंति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं, तत्तो य चुया कमेणं काहिति संजया जह य अंतकिरियं । एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण । अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा" *संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ° संखेज्जाओ संगहणीओ।
१. सं० पा-आपविज्जति । २. पडिमाओ (क, ख, ग)। ३. भत्तपाण ° (क्व)। ४. अणुत्तरोववाओ (क्व)। ५. अणुत्तरोववाइयदसाणं (क)। ६. थेर° (क); विर ° (ग)। ७. दवदित्त (वृ); तवदित्त (वृपा)।
८. ज्झयाणं (ग, वृपा)। ६. °नरासुरा° (क)। १०. कम्मा (क, ख, ग)। ११. जिणवयणानुगइसुभासिया (वृपा)। १२. मुणिपवरुत्तमा (क)। १३. सं० पा०-अणओगदारा संखेज्जाओ।
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पइण्णगसमवाओ
६२१
से णं अंगट्ठयाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा तिपिण वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
सेत्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ।। १८. से कि तं पण्हावागरणाणि ?
पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसयं अठुत्तरं अपसिणसयं अठ्ठत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय-पण्णवय-पत्तेयबुद्ध-विविहत्थ-भासाभासियाणं अतिसय-गुण-उवसम-णाणप्पगार-आयरिय-भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहि विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ट-बाहु-असि-मणिखोम-आतिच्चमातियाणं विविहमहापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा-देवयपओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव'-नरगणमइ-विम्हयकारीण अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगमदुरवगाहस्स' सव्वसव्वण्णुसम्मयस्स बुहजणविबोहकरस्स" पच्चक्खय-पच्चयकराणं पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविज्जति।। पण्डावागरणेस णं परित्ता दायणा संखेज्जा अणओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ° संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्टयाए दसमे अंगे 'एगे सुयक्खंधे [पणयालीसं अज्झयणा'? ] पणयालीसं उद्देसणकाला पणयालीसं समुद्देसणकाला संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि"
१. पयसहस्साई (ख, ग)। २. सं० पा०-अक्खराणि जाव एवं चरण। ३. सं० पा०-आधविज्जति । ४. विवित्या (क)। ५. थिर° (वृ); वीर (वृपा)। ६. विविहगुण ° (वृपा); °दुगुण° (क्व)। ७. करीणं (स)। ८. थिति° (क); थिर ° (ग)।
६. दुरोवगाहस्स (क)। १०. विबोधन (य)। ११. सं० पा०--अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ। १२. यद्यपि समवायांगादर्शषु नैष पाठो लभ्यते,
किन्तु उद्देशनकालात्पूर्व अध्ययनानां संख्या निर्दिश्यते, नन्दी सूत्रेऽपि प्रश्नव्याकरण
विवरणे पाठोऽसौ लभ्यते, तेनाशासौ युज्यते । १३. पयसहस्साणि (ख)।
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१२२
समवाओ
पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा' 'अणता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति ॥ से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं° चरण-करण-परूवणया आविज्जति "पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदसिज्जति उवदंसिज्जति° । सेत्तं पण्हावागरणाई ।। से किं तं विवागसुए? विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति । से समासओ दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव । तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि । से कि तं दुहविवागाणि? दहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं 'उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाई संसारपबंधे दहपरंपराओ य आघविज्जति । सेत्तं दुहविवागाणि। से कि तं सुहविवागाणि? सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराई 'उज्जाणाई चेइयाइं वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इद्रिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाइं सकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति । दहविवागेस् णं पाणाइवाय-अलियवयण-चोरिक्क-करण-परदार-मेहण-संसग्गया महतिव्वकसाय-इंदियप्पमाय"-पावप्पओय-असुहझवसाण-संचियाणं२ कम्माणं पावगाणं पाव-अणुभाग-फलविवागा णिरयगति"-तिरिक्खजोणिबहविह-वसण-सय-परंपरा-पबद्धाणं, मणुयत्तेवि आगया जहा पावकम्मसेसेण पावगाहोंति फलविवागा। वहवसणविणास -नासकण्णोटुंगुट्ठकरचरणनहच्छेयण -जिब्भछेयण"- अंजण-कड
१. सं० पा०-गमा जाव चरण । २. सं० पा०-आपविज्जति । ३. ° सुयं (क)। ४. ४ (क, ख)। ५. चेइयाइं उज्जाणाइं (क, ख, ग)। ६. गरगगमणाई (क, ख)1 ७. पवंच (क, ख)।
८. सं० पा०-नगराई जाव धम्मकहाओ। ६. पडिमाओ (ग)। १०. °गताओ (क)। ११. प्पवाद (क)। १२. संट्ठियाणं (ग)। १३. णरय (क, ग)। १४. जति (ग)।
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पइण्णगसमवाओ
ग्गिदाहण-गयचलण-मलणफालणउल्लंबण'- सूललयाल उडलट्टिभंजण-तउसीसगतत्ततेल्लकलकलअभिसिंचण - कुंभिपाग कंपण थिरबंधण वेह वज्झ कत्तणपतिभयकर- करपलीवणादिदारुणाणि दुक्खाणि अणोवमाणि बहुविविपरंपरा
बद्धा ण मुच्चति पावकम्मवल्लीए । अवेयइत्ता हु णत्थि मोक्खो तवेण धिइधणिय बद्ध-कच्छ्रेण सोहणं तस्स वावि होज्जा ।
एत्तोय सुहविवागेसु सोल- संजम नियम-गुण- तवोवहाणेसु साहुसु सुविहिएसु अणुकंपासप ओग तिकाल - मइविसुद्ध भत्तपाणाइं पयतमणसा हिय-सुहनीसेस तिव्वपरिणाम- निच्छियमई पर्याच्छिऊणं पओगसुद्धाई जह य निव्वतेंति उ बोहिला, जह य परित्तीकरेंति नर निरय- तिरिय- सुरगतिगमण' - विपुलपरियट्ट-अरति-भय-विसाय- सोक - मिच्छत्त- सेल-संकडं अण्णाणतमंधकार - चिक्खिल्लसुदुत्तारं जर मरण- जोणि-संखुभियचक्कवालं सोलसकसाय - सावय-पयंड-चंड अणाइयं अणवदग्गं संसारसागरमिणं, जह य निबंधंति आउगं सुरगणेसु, जह य अणुभवंति सुरगणविमाणसोक्खाणि अणोवमाणि ततो य कालंतरच्चुआणं इहेव नरलोग मागयाणं आउ-वउ-वण्ण-रूव-जाति-कुल- जम्म आरोग्ग-बुद्धि-मेहाविसेसा मित्तजण-सयण धण धण्ण- विभव-समिद्धिसार समुदयविसेसा बहुविहकामभोगुब्भवाण सोक्खाण सुहविवागोत्तमेसु ।
१. ० चलपरिमलण ० ( ग ) ।
२. सुगति ( क ग ) ।
३. सू० ९२. एए अण्णे य एवमादित्थ वित्यरेणं अत्था समासिज्जति ।
सू० ६४. एए अण्णेय एवमादित्थ वित्थरेण या सू० ६५. एते अण्णे य एवमाइअत्था वित्यरेण य ।
-
अणुवरयपरंपराणुबद्धा असुभाष सुभाण चेव कम्माण भासिआ बहुविहा विवागा विवागसुम्मि भगवया जिणवरेण संवेगकारणत्था ।
I
सू० १६. एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण । सू० ६७. एए अण्णे य एवमाइअस्था वित्थारेणं । सू० ६६. अष्णेवि एवमाइया, वहुविहा विरथरेणं अत्थपरूवणया आघविज्जति । एतेषु पाठेषु किञ्चित् परिवर्तनं दृश्यते ।
'अवि य एवमाइया, बहुविहा वित्थरेणं अत्थपरूवणया आघविज्जति" । विवागसुअस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संग्रहणीओ ।
२३
-
०
अर्थसापेक्षत्वेनेदं कृतमस्ति अथवा लिपिदोषेण जातमिति वक्तुं न शक्यम् । सर्वत्रापि आख्यायन्ते इति क्रियाशेषो ज्ञातव्यः । वृत्तिकृता 'अण्णे वि एवमाझ्या' इति पाठ: बहुवचनत्वेन व्याख्यातः । शेषपाठ एकवचनत्वेन व्याख्यातः । तथा च वृत्तिः --- अन्येपि चैवमादिका: आख्यायन्त इति पूर्वोक्तक्रियया वचनपरिणामाद्वोत्तरक्रियया योगः एवं च बहुविधा विस्तरेणार्थप्ररूपणता आख्यायत इति (वृ) ।
४. सं०पा०-- अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ ।
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६२४
१००.
समवाओ
सेणं अंगट्टयाए एक्कारसमे अंगे वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्दे सणकाला संखेज्जाई पयस्यसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्ख राणि' "अगंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
से किं तं दिट्टिवाए ?
दिट्टिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविज्जति । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - परिकम्मं सुत्ताइं पुव्वगयं अणुओगे चूलिया ॥ १०१. से किं तं परिकम्मे ?
परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मणुस्ससेणियापरिकम्मे ३. पुटुसेणियापरिकम्मे ४. ओगाहणसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ॥ १०२. से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ?
से एवं आया एवं गाया एवं विष्णाया एवं चरण- करण- परूवणया आघ विज्जति पण्ण विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं विवागसु ॥
सिद्धसेणियापरिकम्मे चोइसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. माउयापयाणि २. एगद्वियपयाणि ३. 'अट्ठपयाणि ४. पाढो" ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासि - बद्धं ८. एगगुणं 8. दुगुणं १०. तिगुणं ११. केउभूयपडिग्गहो १२. संसार पडिहो १३. नदावत्तं १४. सिद्धावत्तं । सेत्तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ॥ १०३. से कि तं मणुस्स सेणियापरिकम्मे ?
मणुस्स सेणियापरिकम्मे चोइस्सविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. माउयापयाणि २. एगट्टियपयाणि ३. अट्ठपयाणि ४. पाढो ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासिबद्ध ८. एगगुणं . दुगुणं १०. तिगुणं ११. केउभूयपडिग्गहो १२. संसारपङिग्गहो • १३. नदावत्तं १४. मणुस्सावत्तं । सेत्तं मणुस्ससेणिया परिकम्मे ॥
१. पयसहस्साइं (क, ख, ग ) ।
२. सं० पा०-- अक्खराणि जाव एवं ।
३. सं० पा० - आघविज्जति ।
४. बुद्धा ० ( क ) ।
५. पादो अद्धपाणि ( क ) ; पढो अट्ठापयाणि (ख); पाढो अट्ठपयाणि (ग) 1
६. केउव्वयं (ग) 1
७. सिद्धावद्धं ( क ) ।
८. सं० पा० - ताई चेव माउयापयाणि जाव नंदावत्तं ।
६. मगुस्सावट ( क ) ; मणुस्सबद्धं ( ग ) ।
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पइण्णगसमवाओ
६२५ १०४. “से कि तं पुटुसेणियापरिकम्मे ?
पुटुसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा -१. पाढो २. आगासपयाणि ३. के उभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो
९. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. पुट्ठावत्तं । सेत्तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे ।। १०५. से किं तं ओगाहणसेणियापरिकम्मे ?
ओगाहणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्ध ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. ओगाहणावत्तं । सेत्तं ओगाहण
सेणियापरिकम्मे ॥ १०६. से कि तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ?
उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा–१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभयपडिग्गहो ह. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. उवसंपज्जणावत्तं ।
सेत्तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ॥ १०७. से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ?
विप्पजहणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाणि ३. के उभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. के उभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. विप्पजहणावत्तं । सेत्तं विप्प
जहणसेणियापरिकम्मे ॥ १०८. से कि तं चयाचुयसेणियापरिकम्मे ?
चुयाचुयसेणियापरिकम्मे एक्कारसंविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. चुयाच्यावत्तं । सेत्तं चुयाचुय
सेणियापरिकम्मे ॥ १०६. इच्चेयाइं सत्त परिकम्माई छ ससमइयाणि सत्त 'आजीवियाणि, छ चउक्क
पइयाणि सत्त तेरासियाणि । एवामेव सपुव्वावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति भवंतीति मक्खायाई । सेत्तं परिकम्मे ।।
१. सं० पा०-अवसेसाई परिकम्माइं पाढाइ- ३. ४ (क, ग)। ___ याइं एक्कारसविहाई पण्णत्ताई। ४. परियम्माणि (क); परिकम्माणि (ग)। २.४ (क)।
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९२६
समवाओ
११०. से किं तं सुत्ताइं?
सुत्ताइं अहासोतिभवंतीति मक्खायाई, तं जहा-१. उज्जुगं' २. परिणयापरिणयं ३. बहुभंगियं ४. विजयचरिय' ५. अणंतर ६. परंपरं ७. सामाणं' ८. संजूहं ६. भिण्णं' १०. आहच्चायं ११. सोवत्थियं घंटे १२. नंदावत्तं १३. बहुलं १४. पुट्ठापुट्ठ १५. वियावत्तं १६. एवंभूयं १७. दुआवत्तं १८. वत्तमाणुप्पयं'
१६. समभिरूढं २०. सव्वओभई २१. पण्णासं २२. दुपडिग्गह ॥ १११. इच्चेयाई वावीसं सुत्ताइं छिण्णछेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए ।
इच्चेयाई बावीसं सुत्ताइ अछिण्णछेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए। इच्चेयाइं बावीस सुत्ताइं तिकनयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए । इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए।
एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीति सुत्ताई भवंतीति मक्खायाणि । सेतं सुत्ताई।। ११२. से कि तं पुन्वगए ?
पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा–१. उप्पायपुव्वं २. अग्गेणीयं ३. वीरियं ४. अत्थिणत्थिप्पवायं ५. नाणप्पवायं ६. सच्चप्पवायं ७ आयप्पवायं ८. कम्मप्पवायं ६. पच्चक्खाणं १०. विज्जाणुप्पवायं" ११. अवंझ
१२. पाणाउं १३. किरियाविसालं १४. लोगबिंदुसारं ॥ ११३. उप्पायपुवस्स गं दस वत्थू , चत्तारि चुलियावत्थू पण्णत्ता ।।
अग्गेणियस्स णं पुग्धस्स चोद्दस वत्थु , वारस चलियावत्थ पण्णत्ता ।। ११५. वीरियस्स णं पुव्वस्स अट्ठ वत्थू, अट्ट चूलियावत्थू पण्णत्ता ।। ११६. अत्थिणत्थिप्पवायरस णं पुवस्स अट्ठारस वत्थू, दस चूलिया वत्थू पण्णत्ता ।। ११७. नाणप्पवायस्स णं पुवस्स बारस वत्थू पण्णत्ता ।। ११८. सच्चप्पवायस्स णं पुवस्स दो वत्थू पण्णत्ता ।। ११६. आयप्पवायस्स णं पुन्वस्स सोलस वत्थू पण्णत्ता ॥ १२०. कम्मप्पवायस्स णं पुवस्स तीसं वत्थू पण्णत्ता ।। १२१. पच्चक्खाणस्स ण पुव्वस्स वीस वत्थू पण्णत्ता ॥ १२२. विज्जाणुप्पवायरसणं पुवस्स पनरस वत्थू पण्णत्ता ।। १२३. अवझस्स णं पुवस्स बारस वत्थू पण्णत्ता ॥ १२४. पाणाउस्स णं पुवस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता ।। १. उज्जगं (क, ग)।
७. वत्तमाणुपयं (ख)। २. विपञ्चवियं (क, ग)।
८. पसणं (क); पणसं (ग)। ३. समाणं (ख)।
६. मक्खाइयाई (ग)। ४. संभिष्ण (क्व)।
१०. पच्चक्खाणप्पवायं (ग)। ५. अहच्चायं (ख)।
११. अणुप्पवायं (क, ग)। ६. पुढपुटुं (क)।
१२. अणु° (क, ख, ग)।
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पइण्णगसमवाओ
१२७
१२५. किरियाविसालस्स णं पुवस्स तीसं वत्थू पण्णत्ता ॥ १२६. लोयबिंदुसारस्स णं पुवस्स पणुवोसं वत्थू पण्णत्ता ।।
दस चोद्दस अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा, पण्णरस अणुप्पवायंमि ।।१।। बारस एक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे, चोदसमे पण्णवीसाओ ॥२॥ चत्तारि दुवालस अट्ठ, चेव दस चेव चूलवत्थूणि ।
आतिल्लाण चउण्हं, सेसाणं चूलिया णत्थि ।।३।। --सेत्तं पुव्वगए' ।। १२७. से किं तं अणुओगे ?
अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य॥ ६२८. से किं तं मूलपढमाणुओगे ?
मूलपढमाणुओगे-एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुन्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चवणाणि', जम्मणाणि य अभिसेया, पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलणाणुप्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संधयणं. संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो', सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ-संघस्स चउम्विहस्स जं वावि परिमाणं, 'जिण-मणपज्जव-ओहिनाणी', सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य 'जत्तिया, जत्तिया सिद्धा. 'पातोवगता य" जे"जहिं जत्तियाई भत्ताइं छेय इत्ता अंतगडा" मुणिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं च पत्ता। एए अण्णे य एवमादी भावा मूलपढमाणुओगे कहिया आघविज्जति पण्णविज्जति
परूविज्जति दंसिजति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं मूलपढमाणओगे ।। १२६. से कि त गंडियाणुओगे?
गंडियाणुओगे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा--कुलगरगंडियाओ, तित्थगरगंडियाओ,
१. पुणवीस (म)! २. पुव्वगय (क, ग)। ३. X (क)। ४. सा (ग)। ५. चयणाणि (क, ख)। ६. °णुपातपा (ग)। ७. आउं (क)। क. अण्ण ° (क)।
६. पज्जयतोहिणाणि (क); ° पन्चज्जातोहि___णाणि (ग)। १०. जित्तिया जितिया (ग)। ११. गतो (क); ० गतो य (ख)। १२. जो (क, ख, ग)। १३. अंतकडो (क, ख); अंतगडो (ग)। १४. °त्तमो (क, ख, ग)! १५. सिद्ध (ग)।
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१२८
समवाओ गणधरगंडियाओ चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, चित्तंतरगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, ओसप्पिणगंडियाओ, अमर-नरतिरिय-निरय-गइनामण-विविह-परियट्टणाणुओगे, एवमाइयाओ गंडियाओ आधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जंति दसिज्जति निदंसिज्जति
उवदंसिज्जंति । सेत्तं गंडियाणुओगे ॥ १३०. से कि तं 'चलियाओ?
चूलियाओ"-आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुव्वाइं
अचलियाई । सेत्तं चूलियाओं॥ १३१. दिद्विवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ
पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्टयाए बारसमे अंगे एगे सुयखंधे चोद्दस पुव्वाई संखेज्जा वत्यू संखेज्जा चूलवत्थू संखेज्जा पाहुडा संखेज्जा पाहुडपाहुडा संखेज्जाओ पाहुडियाओ संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं गाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आधविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति
उवदंसिज्जति ° । सेत्तं दिद्विवाए । सेत्तं दुवालसंगे गणिपिडगे ॥ १३२. इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अणंता जीवा आणाए विराहेत्ता
चाउरतं संसारकतारं अणुपरियट्टिसु । इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं अणुपरियÉति । इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति । इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अणंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं विइवइंसु ।
१. चूलियाणुओगे जाम (ग)। २. चूलियाओ एवं विण्णाते (ग)। ३. सं० पा०-अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ।
४. चुल्ल ° (ग)। ५. सं०पा.---आपविज्जति ।
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पइण्णगसमवाओ
२२६
"इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं विइवयंति। इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जोवा आणाए आराहेत्ता
चाउरतं संसारकतारं विइव इस्संति ॥ १३३. दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण कयाइ णासी, ण कयाइ पत्थि, ण कयाइ ण
भविस्सइ । भुवि च, भवति य, भविस्सति य । धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे ! से जहाणामए पंच अत्थिकाया ण कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्संति । भुवि च, भवंति य, भविस्संति य । धुवा णितिया 'सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया° णिच्चा। एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ । भुवि च, भवति य, भविस्सइ य' । 'धुवे णितिए सासए अक्खए
अब्बए ° अवट्ठिए णिच्चे ।। १३४. एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अगंता भावा अणंता अभावा अणंता हेऊ अणता
अहेऊ अणंता कारणा अणंता अकारणा अणंता जीवा अणंता अजीवा अणंता भवसिद्धिया अणंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा अणंता असिद्धा आधविज्जति पणविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।।
रासि-पदं १३५. दुवे रासी पण्णत्ता, तं जहा--जीवरासी अजीवरासी य ।। १३६. अजीवरासी दुविहे पण्णते, तं जहा-'रूविअजीवरासी अरूविअजीवरासो' य॥ १३७. से कितं अरूविअजीवरासी?
अरूविअजीवरासी दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-धम्मत्थिकाए', 'वम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मस्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थि
कायस्स पदेसा°, अद्धासमए । १३८. जाव'
१. सं० पा०-एवं पडुप्पण्णेवि अणागएवि। २. सं० पा०-णितिया जाव णिच्चा। ३. सं० पा०-भविस्सइ य जाव अट्टिए । ४. ० रासी य (क)। ५. रूबी० अरूवी० (ग)। ६. सं० पा०---धम्मस्थिकाए जाव अद्धासमए। ७. इह च प्रज्ञापनाया: प्रथमपदं प्रज्ञापनाख्यं सर्व
तदक्षरमध्येतव्यं, किमवसानमित्याह--'जाव से किं त' मित्यादि, केवलमस्य प्रज्ञापनासूत्रस्य चायं विशेषः, इह 'दुवे रासी पण्णत्ता' इत्यभिलापसूत्र तत्र तु 'दुविहा पण्णवणा पण्णत्ता-जीवपण्णवणा अजीवपण्णवणा य' त्ति (वृ)।
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६३०
समवाओ
१३६. से किं तं अणुत्तरोववाइआ?
अणुत्तरोववाइओ पंचविहा, पण्णत्ता, तं जहा-विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजितसव्वट्ठसिद्धिया। सेत्तं अणुत्तरोववाइआ। सेत्तं पंचिदियसंसारसमावण्ण
जीवरासी॥ पज्जत्तापज्जत्त-पदं १४०. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य ! एवं दंडओ'
भाणियन्वो जाव वेमाणियत्ति ।।
आवास-पदं १४१. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए केवइयं ओगाहेत्ता केवइया णिरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एग जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अदुहत्तरें जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं तीसं गिरयावाससयसहस्सा' भवंतीति मक्खायं । तेणं णरया अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा 'अहे खुरप्प-संठाण-संठिया णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूरणक्खत्त-जोइसपहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुभिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा°
असुभा णिरया असुभातो णरएसु वेयणाओ ॥ १४२. एवं सत्तवि भाणियव्वाओ जं जासु जुज्जइसंगहणी-गाहा
आसीयं बत्तीसं, अट्ठावीसं तहेव वीसं च ! अट्ठारस सोलसगं, अठ्ठत्तरमेव बाहल्लं ॥१॥ तीसा य पण्णवीसा, पण्णरस दसेव सयसहस्साई।
तिण्णेगं पंचूणं, पंचेव अणुत्तरा नरगा ॥२॥ [दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए, पंचमीए पुढवीए, छट्ठीए पुढवीए, सत्तमीए पुढवीए-गाहाहि भाणियव्वा] ॥
---
१. सिद्धया (क, ग)। २. 'दंडओ' त्ति नेरइया १ असुराई १० पुढवाइ
५ वेइंदियादओ ४ मणया । वंतर १ जोइस
१ वेमाणिया य १ अह दंडओ एवं ॥१॥ ३. ठा० १११४०-१६३ । ४. अट्ठट्ठहत्तरे (क)।
५. निरयवास (ख); नरयावास (ग)। ६. सं० पा०-चउरंसा जाव असूभा। ७. कोष्ठकान्तर्गतः पाठः पनरावत्तिरूपो विद्यते ।
'एवं सत्तवि भाणियब्वाओ' इत्यनेन गाथाभ्याञ्च गतार्थत्वात् । 'सत्तमाए णं पुढवीए' इति सूत्रस्य पृथक्करणं सप्रयोजन
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पइण्णगसमवाओ
१४३. सत्तमाए ण पुढवीए' 'केवइयं ओगाहेत्ता केवइया णिरया पण्णत्ता ?
गोयमा! सत्तमाए पुढवीए अछुत्तरजोयणसयसहस्साई बाहल्लाए उवरिं अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई वज्जेत्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया महानिरया पण्णत्ता, तं जहा--काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमए । ते णं न रया' वट्टे' य तंसा य अहे खुरप्पसंठाण
नंयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-णक्खत्त-जोइसपहा मेदवसा-पय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताण लेवणतला असुई बीसा परमभिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा° असुभा नरगा असुभाओ नरएस
वेयणाओ। १४४. केवइया णं भंते ! असुरकुमारावासा पण्णत्ता?
गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसद्धिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णिया-संठाण-संठिया उक्किण्णंतर-विपुल-गंभीर-खात-फलिया अट्टालयचरिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुंढि-सतग्घिपरिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दर-दिग्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकंदुरुक्कतुरुक्क-उज्झत-धूव-मघमत-गंधुद्धयाभिरामा 'सुगंधि-वरगंध-गंधिया'• गंधवट्टियाभूया अच्छा सोहा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसद्धा
सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ १४५. एवं 'जस्स जं"कमती तं तस्स, जं-जं गाहाहि भणियं तह चेव वण्णओ
मस्ति । अत्र पूर्ववणितात् किञ्चिविशेषो वृत्तः शेषास्त्र्यस्त्रा इति (वृ)। विद्यते । प्रतिषु संग्रहगाथा एकत्रैव ४. अ) (क, ग)। विद्यन्ते । किन्तु तेन क्रमेण पाठस्य ५. उवरि (क, ग)। जटिलता जायते । तेनास्माभिर्गाथानां यथा- ६. चउरय (ग, वृपा)। वश्यकमायोजना कृता । भगवती (११२१२) ७. मुसंढि (ग)। सूत्रेष्वेवं विभाति ।
८. अवोज्झा (क); अजोहाणि (ग)। १. सं० पा०–सत्तमाए णं पुढवीए पुच्छा । १. गंधुद्धराभि (ख, वृ)। २. णिरया (क)।
१०. सुगंधवरगंधिया (क)। ३. बद्रा (क); 'वटे य तंसा य' ति मध्यमो ११. जं जस्स (3)।
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६३२
समवाओ
संगहणी-गाहा
चउसट्ठी असुराणं, चउरासोइ च होइ नागाणं । बावत्तरि सुवन्नाण, वायुकुमाराण छण्णउति ॥१॥ दीवदिसाउदहीणं, विज्जुकुमारिंदथणियमग्गीणं।
छण्हपि जुवलयाणं, छावत्तरिमो सयसहस्सा ॥२॥ १४६. केवइया णं भंते ! पुढवीकाइयावासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! असंखेज्जा पुढवीकाइयावासा पण्णत्ता ।। १४७. एवं जाव' मणुस्सत्ति ।। १४८. केवइया णं भंते ! वाणमंतरावासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उरि एगं जोयणसयं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसयं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा, एवं जहा भवणवासीणं तहेव नेयव्वा, नवरं-पडागमालाउला' सुरम्मा पासाईया
दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा !) १४६. केवइया णं भंते ! 'जोइसियाणं विमाणावासा" पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउयाई जोयणसयाइ उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दसत्तरजोयणसयवाहल्ले तिरियं जोइसविसए जोइसियाणं देवाणं असंखेज्जा जोइसियविमाणावासा पण्णत्ता। ते णं जोइसियविमाणावासा अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया विविहमणिरयण-भत्तिचित्ता वाउद्धय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्तातिछत्तकलिया तंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा जालंतररयण'-पंजरुम्मिलितव्ध मणि-कणग-थूभियागा
विगसित-सयपत्त-पुंडरीय-तिलय-रयणड्ढचंद-चित्ता अंतो बहिं च सण्हा तवणिज्ज१. ठा० १११५३-१६० ।
प्रस्तुतसूत्रवर्तीपाठः पठ्यते तदा १४४ २. प्रज्ञापनायां द्वितीये स्थानपदे वाणमंतर- सूत्रवर्तिनः 'गंधवट्टिभूया' पाठस्यानन्तरं
देवानां वर्णने 'गंधवट्टिभूता' इति पाठस्या- 'पडागमालाउला' प्रभृति विशेषणानि नन्तरं निम्नप्रकार: पाठो विद्यते
युज्यन्ते । 'अच्छा' प्रभृति विशेषणानि प्रज्ञा'अच्छरमणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडितसहसंप- पनायां विद्यन्ते, किन्तु अत्र सूत्रकृता नापेणादिता पडागमालाउलाभिरामा सव्वरयणा- क्षितानीति प्रतीयते। मया अच्छा सहा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया ३. जोतिसिया वासा (क, ख)! निम्मला निप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा ४. भित्ति ° (ग)। समरीइया सउज्जोता पासातीता दरसणिज्जा ५. इह प्रथमाबहुवचनलोपो द्रष्टव्यः (द)। अभिरूवा पडिरूवा।' एतस्य पाठस्य संदर्भ ६. सण्ह (वृपा)।
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पइण्णगसमवाओ
बालुगा-पत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। केवइया णं भंते ! वेमाणियावासा पण्णता? गोयमा! इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं वीइव इत्ता बहूणि जोयणाणि बहुणि जोयणसयाणि बहूणि जोयणसहस्साणि बहूणि जोयणसयसहस्साणि बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दुरं वीइवइत्ता, एत्थ णं वेमाणियाणं देवाणं सोहम्मीसाण-सणंकुमारमाहिंद-बंभ-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरणच्चुएस गेवेज्जमणुत्तरेस य चउरासीई विमाणावाससयसहस्सा सत्ताणउई सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खाया। ते ण विमाणा अच्चिमालिप्पभा भासरासिवण्णाभा अरया नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा' घटा मद्रा णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया' सउज्जोया पासाईया दरिस
णिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। १५१. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावासा पण्णता?
गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ १५२. एवं ईसाणाइसु--अट्ठावीसं बारस अट्ट चत्तारि-एयाई सयसहस्साइं, पण्णासं
चत्तालीसं छ--एयाई सहस्साइं, आणए पाणए चत्तारि, आरणच्चुए तिण्णि
एयाणि सयाणि । एवं गाहाहि भाणियव्वसंगहणी-गाहा
बत्तीसट्ठावीसा, बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥१॥ आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिन्नि । सत्त विमाणसयाई, चउसुवि एएसु कप्पेसु ॥२॥ एक्कारसुत्तरं' हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए ।
सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ।।३।। ठिइ-पदं १५३. नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
१. वेमाणियाणं (क)। २. सत्ताणउई च (ग)। ३. °वष्णप्पभा (क)। ४. X(क)।
५. समिरिया (क, ख)! ६. पडिरूवा सूरूवा (क)। ७. ° सुत्तरसय (ग)।
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समवाओ
१५४.
गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। अपज्जत्तगाणं भंते ! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ।। पज्जत्तगाण' भंते ! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ° ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहत्तूणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं
सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई ।। १५६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए, एवं जाव' विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं
भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहणणं 'बत्तीसं सागरोवमाइं" उक्कोसणं तेत्तीसं सागरोवमाई। १५७. सव्वढे अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ सरीर-पदं १५८. कति f भंते ! सरीरा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए वेउन्विए आहारए तेयए
कम्मए॥ १५६. ओरालियसरीरे गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियओरालियसरीरे जाव' गब्भ
वक्कंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरे य ।। १६०. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता ?
गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं साइरेग जोयणसहस्स।। १६१. एवं जहा ओगाहणासंठाणे' ओरालियपमाणं तहा निरवसेसं । एवं जाव
मणस्सेत्ति उक्कोसेणं तिणि गाउयाइं॥ १६२. कइविहे णं भंते ! वेउब्वियसरीरे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते - एगिदियवे उब्वियसरीरे य पंचिदियवेउब्वियसरीरे य ।। १६३. एवं जाव ईसाणकप्पपज्जतं सणकुमारे आढत्तं जाव' अणुत्तरा भवधारणिज्जा
तेसि रयणी-रयणी परिहायइ ।।
१. सं० पा०--पज्जत्तगाणं ।
५. एवं सर्वार्थसिद्धिस्थितिरपि विभिर्गमैर्वाच्यति २. पण ° ४।
(व); पण्ण° ४। ३. इह च विजयादिषु जघन्यतो द्वात्रिंशत्सागरो- ६. पण ° २१ ।
पमाण्युक्तानि गन्धहस्त्यादिष्वपि तथैव ७. ओगाहणं संठाणे (ग); अवगाहनासंस्थानादृश्यते, प्रज्ञापनायां त्वेकत्रिशक्तेति मतान्त- भिधानं प्रज्ञापनाया एकविंशतितमं पदम् । रमिदम् (व)।
८. पण ० २१ ४. पर्याप्तकापर्याप्तकगमद्वयमिह समूह्यम् (वृ)। ६. पुस्तकान्तरेत्विदं वाक्यमन्यथा दृश्यते (वृ) ।
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६३५
पइण्णगसमवाओ १६४. आहारयसरीरेणं भंते ! कइविहे पणते ?
गोयमा ! एगाकारे पण्णत्ते। जइ एगाकारे पण्णत्ते, कि मणुस्सआहारयसरीरे ? अमणुस्सआहार यसरीरे ? गोयमा ! मणुस्सआहारगसरीरे, णो अमणुस्सआहारगसरीरे । "जइ मणस्स आहारगसरीरे, किं गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारगसरीरे ? समुच्छिममणुस्सआहारगसरीरे ? गोयमा! गब्भवक्कतियमणुस्सआहारयसरीरे नो समुच्छिममणुस्सआहारयसरीरे । जइ गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं कम्मभूमग-गब्भवक्क तियमणुस्सआहारयसरीरे? अकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे। जइ कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, कि संखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगम्भवतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे । जइ संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कतिमणुस्सआहारयसरीरे, नो अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवतियमणुस्सआहारयसरीरे। जइ पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणस्सआहारयसरीरे ? मिच्छदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? सम्मामिच्छदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! सम्मद्दिष्टि - पज्जत्तय - संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणस्सआहारयसरीरे, नो मिच्छदिद्वि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो सम्मामिच्छदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे ।
१. सं० पा०–एवं जइ मणुस्स किं.."वयणावि भतियव्वा ।
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समवाओ
जइ समद्दिट्ठि-पज्जत्तय- संखेज्जवासाउय - कम्मभूमग - गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, कि संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? असंजय-सम्मदिदि-प्रज्जत्तय-संखेज्जवासाउयकम्मभूमग - गम्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? संजयासंजय - सम्मद्दिविपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! संजय-सम्मदिदि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो असंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो संजयासंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तयसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहार यसरीरे। जइ संजय - सम्मदिदि - पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, कि पमत्तसंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउयकम्मभमग - गब्भवक्कंतियमणस्सआहारयसरीरे ? अपमत्तसंजय - सम्मट्टिट्रिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! पमत्तसंजय - सम्मद्दिट्ठि - पज्जत्तय - संखेज्जवासाउय - कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो अपमत्तसंजय - सम्मद्दिट्टि - पज्जत्तयसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे। जइ पमत्तसंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं इड्डिपत्त-पमत्तसंजय-सम्मद्दिहि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? अणिड्विपत्त-पमत्तसंजय-सम्मद्दिट्टि - पज्जत्तय - संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ? इडिपत्त-पमत्तसंजय-सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो अणिड्डिपत्त - पमत्तसंजय - सम्मद्दिदि
पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ॥ १६५. "आहारयसरीरे णं भंते ! कि संठिए पण्णते ?
गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते ।। १६६. "आहारयसरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?
गोयमा ! जहण्णेणं देसूणा रयणी उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी ॥ १६७. तेयासरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ?
१. सं० पा०-आहारयसरीरे
संठाणसंठिते।
समचउरंस- २. सं० पा०-आहारय जह देखणा रयणि उ
पडिपुण्णा रयणी।
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पइण्णगसमवाओ
गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते-एगिदियतेयासरीरे य' 'बंदियतेयासरीरे य तें दिय
तेयासरीरे य चरिदियतेयासरीरे य पंचेंदियतेयासरीरे य° ॥ १६८. एवं जाव'१६६. गेवेज्जस्स णं भंते ! देवस्स मारणंतियसमुग्घातेणं समोहयस्स तेयासरीरस्स'
केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ती विक्खंभबाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णेणं अहे जाव विज्जाहरसेढीओ', उक्कोसेणं अहे जाव अहोलोइया गामा, तिरियं जाव मणुस्स
खेत्तं, उड्ढं जाव सयाई विमाणाई ।। १७०. एवं अणुत्तरोववाइया वि ।। २७१. एवं कम्मयसरीरं पि भाणियव्वं ।। ओहि-पदं संगहणी-गाहा
भेदे विसय संठाणे, अभंतर बाहिरे य देसोही ।
ओहिस्स वड्डि-हाणी, पडिवाती चेव अपडिवाती ।।१।। १७२. कइविहे णं भंते ! ओही पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते-भवपच्चइए य खओवसमिए य । एवं सव्वं ओहिपदं भाणियव्वं ।।
वेयणा-पदं संगहणी-गाहा
सीता य दव्व सारीर, साय तह वेयणा भवे दुक्खा । अब्भुवगमवक्कमिया, णिदाए' चेव' अणिदाए ॥१॥
१. सं० पाo-बे ते चउ पंच । २. पण्ण० २१ । ३. प्रयुक्तादर्शषु 'समाणस्स' पाठः प्राप्यते, किन्तु
अर्थमीमांसया नासो समीचीनः प्रतिभाति । तेनात्र प्रज्ञापनाया एकविंशतितमपदस्थः
'तेयासरीरस्स' इति पाठः स्वीकृतः । ४. ° मेत्ता (क्व)। ५. ° सेढी (क, ख)। ६. प्रतिषु पूर्व 'उड्ढे जाव सयाई विमाणाई'
पश्चाच्च 'तिरियं जाव मणुस्सखेत्त' इति
पाठो विद्यते । ७. एवं जाव (क, ख, ग) । अत्र 'जाव' शब्दोऽनावश्यकः प्रतिभाति । प्रज्ञापनायामपि (पद २१) 'अणत्तरोववाइयस्स वि एवं चेव' इति पाठो लभ्यते । ८. पण्ण ३३ ६. णीताई (क, ग); णिताए तहा (ख)।
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९३८
समवाओ १७३. नेरइया णं भंते ! किं सीतवेयणं' वेदंति ? उसिणवेयणं वेदंति ? सीतोसिण
वेयणं वेदंति ? गोयमा ! नेरइया 'सीतं वि वेदणं वेदेति, उसिणं पि वेदणं वेदेति, णो सीतो
सिणं वेदणं वेदेति । एवं चेव वेयणापदं' भाणियन्वं ।। लेसा-पदं १७४. कइ णं भंते ! लेसाओ पण्णताओ?
गोयमा! छ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-किण्ह लेस्सा नीललेसा काउलेसा
तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा । एवं लेसापयं भाणियव्वं ।। आहार-पदं संगहणी-गाहा
'अणंतरा य आहारे" आहाराभोगणाऽवि य ।
पोग्गला नेव' जाणंति, अज्झवसाणा य सम्मत्ते ॥१॥ १७५. नेरइया ण भंते ! अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया तओ परियाइयणया तओ
परिणामणया तओ परियारणया तओ पच्छा विकूव्वणया ? हंता गोयमा! 'नेरइया णं अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततो परियाइयणया तओ परिणामणया तओ परियारणया तओ पच्छा विकुव्वणया ° । एवं आहार
पदं भाणियव्वं ।। आउगबंध-पदं १७६. काविहे णं भंते ! आउगबंधे पण्णते ?
गोयमा ! छविहे आउगबंधे पण्णत्ते, तं जहा---जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइनामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके
ओगाहणानामनिधत्ताउके ° ॥ १७७. नेरइयाणं भंते ! कइविहे आउगबंधे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे पणत्ते,तं जहा-जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके १. सीत वेयणं (ख)।
६. ति (क)। २. सं० पानेरइया ।
७. मेव (क, ख, ग)। ३. पण्ण° ३५ ।
5. साणे (ग)। ४. पण १७ ।
६. सं० पा०-हता गोयमा! ५. (क) 'अणतरा य आहारे' त्ति अनन्तराश्च- १०. पण्ण०३४ ।
अव्यवधानाश्चाहारविषये अनन्तराहारा ११. सं० पा०-~-एवं गतिनाम"""'ओगाहणा
जीवा वाच्या इत्यार्थः (वृ० पत्र १३५)। (ख) 'अणंतरागयाहारे' इत्यादि. प्रथमम- नाम । नन्तरागताहारको नैरयिकादिर्वक्तव्यः १२. सं० पा०-जातिनाम जाव ओगाहणा
पन्नवणा पद ३४ वृत्ति] । नाम ।
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पइण्णगसमवाओ
९३९
ठिइनामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणा
नामनिधत्ताउके ।। १७८. एवं जाव' वेमाणियत्ति । उववाय-उध्वट्टणा-विरह-पदं १७६. निरयगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते ।। १८०. एवं तिरियगई मणुस्सगई देवगई ।। १५१. सिद्धिगई ण भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिझणयाए पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासे ।। १८२. एवं सिद्धिवज्जा उव्वद्रणा।। १८३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केवइयं कालं विरहिया
उववाएण' 'पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं महत्ता । एवं उववायदंडओ भाणियब्वो, उव्वट्टणादंडओ वि।।
आगरिस-पदं १८४. नेरइया णं भंते ! जातिनामनिहत्ताउगं कतिहिं आगरिसेहिं पगरेंति ?
गोयमा ! 'सिय एक्केण सिय दोहिं सिय तोहि सिय चउहि सिय पंचहिं सिय
छहि सिय सत्तहि" सिय अहिं, नो चेव णं नवहिं ।। १८५. 'सेसाणि वि'' आउगाणि जाव वेमाणियत्ति ॥ संघयण-पदं १८६. कइविहे णं भंते ! संघयणे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे संघयणे पण्णत्ते, तं जहा-वइरोसभनारायसंघयणे रिसभनारायसंघयणे' नारायसंघयणे अद्धनारायसंघयणे खालियासंघयणे" छेवट
संघयणे । १८७. नेरइया णं भंते ! किसंघयणी?
१. ठा० ११४२-१६३ । २. सं० पा०-उववाएणं एवं । ३. य (क, ग)। ४. सिय १ सिय २,३,४,५,६,७ (क, ख, ग)। ५. सेसाणवि (क, ख, म) अशुद्धम् ।
६. ठा० ११४२-१६३। ७. उसभ० (क)1 ८. कीलिया (क्व) ६. सेवट्ट° (क्व)।
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६४०
समवाओ
गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी - शेवट्ठी' णेव छिरा 'णेव ण्हारू", जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुष्णा अमणामा' ते तेसि असंघयणत्ताए परिणमति ॥
१८८. असुरकुमाराणं भंते ? किंसंघयणी पण्णत्ता ?
गोमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी - शेवट्ठी गेव छिरा णेव व्हारू, जे पोग्गला इट्टा कंता पिया सुभा' मणुण्णा मणामा' ते तेसि असंघयणत्ताए परिणमति ॥ १८६. एवं जाव" थणियकुमारति ।
१६०. पुढवीकाइया णं भंते ? किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छेवट्टसंघयणी' पण्णत्ता ||
१६१. एवं जाव संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणियत्ति ॥ १६२. गब्भवक्कंतिया छव्विहसंघयणी ॥
१९३. संमुच्छिममणुस्सा णं छेवट्टसंघयणी ॥
१६४. गब्भवक्कंतियमणुस्सा छव्विहसंघयणी पण्णत्ता ॥
१६५. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया य ॥
संठाण-पदं
१९६. कइविहे णं भंते ! संठाणे पण्णत्ते ?
गोमा ! छवि संठाणे पण्णत्ते, तं जहा – समचउरंसे णग्गोहपरिमंडले सातो खुजे वाम हुंडे ||
१९७ णेरइया णं भंते ! किंसंठाणा" पण्णत्ता ?
गोयमा ! हुंडठाणा" पण्णत्ता ॥
१९८. असुरकुमारा किसंठाणसंठिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! समचउरंस संठाणसंठिया पण्णत्ता जाव " थणियत्ति ॥
१६६. पुढवी मसूरयसंठाणा पण्णत्ता ॥ २०० आऊ थिवयसंठाणा" पण्णत्ता ||
१. तट्ठि ( क ) 1
२. णवि हारु ( क ग ) ।
३. X ( क ) ; अणाज्जा असुभा ( क ) !
४. अमणा वा (क); अमणामा अमणाभिरामा
(ग)
७. ठा० १।१४३-१५० ।
८. से वट्ट ० ( क, ख ) |
६. ठा० १५३-१५६ । १०. किंसंठाणी (क्व ) |
११. ० संठाणे ( क ); ° संठाणी (क्व ) 1 १२. किंसंठाणी (क, ख ) ।
५. x (क, ग ) 1
६. मणामा भिरामा ( क ) ; मणामा मणाभि- १३. ठा० १।१४३ - १५० ।
रामा ( ग ) |
१४. ० संठाणे ( क ) 1
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पइण्णगसमवाओ
६४१
२०१. तेऊ सूइकलावसंठाणा पण्णत्ता ।। २०२. वाऊ पडागसंठाणा पण्णत्ता ॥ २०३. वणफई नाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता । २०४. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिय-सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खा हुंडसंठाणा पण्णत्ता ॥ २०५. गब्भवक्कंतिया छव्विहसंठाणा पण्णत्ता ॥ २०६. सम्मुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाणसंठिया पण्णत्ता ।। २०७. गब्भवक्कंतियाणं मणुस्साणं छव्विहा संठाणा पण्णता ।। २०८. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया ।। वेय-पदं २०६. कइविहे णं भंते ! वेए पण्णते ?
गोयमा ! तिविहे वेए पण्णत्ते, तं जहा - इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए । २१०. नेरइया णं भंते ! 'किं इत्थीवेया पुरिसवेया णपुंसगवेया पण्णत्ता' ?
गोयमा ! णो इत्थिवेया णो वेया, गपुंसगवेया पण्णत्ता ।। २११. असूरकमाराणं भंते ! कि इत्थिवेया परिसवेया नपुंसगवेया?
गोयमा ! इत्थिवेया पुरिसवेया, णो णपुंसगवेया जाव थणियत्ति ॥ २१२. पुढवि - आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि-ति-चरिदिय - समुच्छिमपंचिदियतिरिक्ख
संमुच्छिममणुस्सा पसगवेया॥ २१३. गब्भवक्कंतियमणुस्सा 'पंचेंदियतिरिया य"" तिवेया ।। २१४. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणियावि।। समवसरण-पदं २१५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कप्पस्स' समोसरणं णेयव्वं जाव गणहरा सावच्चा
निरवच्चा वोच्छिण्णा ॥ कुलगर-पदं २१६. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था,
तं जहा
१. पठातिया० (क); पडातिया० (ग)। २. तिरिय (क, ख)। ३. किं वेए पण्णते (ग)। ४. ठा० ११४३-१५० । ५. तिरिक्खिजोणिया (ग)।
६. °याय (ख)। ७. पज्जुसणाकप्पस्स (वृपा); द्रष्टव्यं परिशिष्टम्,
संख्याङ्क २। ८. णातव्वं (ग)। ९. निरवच्चा य (ग)।
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૯૪૨
समवाओ
संगहणी-गाहा
मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे ।
विमलघोसे सुघोसे य, महाधोसे य सत्तमे ॥१॥ २१७. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए उस्सप्पिणोए दस कुलगरा होत्था,
त जहा
सयंजले सयाऊ य, अजियसेणे अणंतसेणे य । कक्कसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ॥१॥
दढरहे दसरहे सतरहे । २१८. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए' सत्त कुलगरा होत्था,
तं जहा
पढमेत्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे ।
तत्तो य पसेणइए, मरुदेवे चेव नाभी य ।।१।। ११६. एतेसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारिआ होत्था, तं जहा
चंदजस चंदकंता, सुरूव-पडिरूव चक्ख कंता य।
सिरिकता मरुदेवी, कुलगरपत्तीण णामाई ।।१।। तित्थगर-पदं २२०. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणोए चउवीसं तित्थगराणं पियरो
होत्था, तं जहा__ 'णाभी य जियसत्तू य", जियारी संवरे इय ।
मेहे धरे पइढे य, महोणे य खत्तिए ॥१॥
१. सतज्जले (ग)।
नाम 'तक्कसेणे' विद्यते । 'क' 'ग' प्रत्योरपि २. सताहू (ग)।
एष एव पाठो लभ्यते । समवायाङ्गस्य ३. स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ (आगमोदयसमिति मुद्रितप्रती 'कज्जसेणे' तथा हस्तलिखितादर्श
पत्र ५१८ सूत्राङ्क ७६७) चतुर्थकुलकरस्य 'करकसेणे' पाठोस्ति । प्रतीयते स्थानाङ्ग नाम 'अमितसेणे' विद्यते । किन्न पाठशोधन- समवायाङ्ग च 'अजियसेणे' 'कक्कसेणे' पाठ प्रयुक्तयोः 'क' 'ग' प्रत्योः 'ख' प्रतौ च आसीन किन्तु लिपिदोषेण पाठ-विपर्ययो क्रमशः 'अतितसेणे' 'अजितसेणे' पाठो विद्यते। जात:। समवायाङ्ग (श्रेष्ठि माणेकलाल चुन्नीलाल ४. महासेणे (ख)। श्रेष्ठि कान्तिलाल चुन्नीलाल द्वारा प्रकाशित ५. ओसप्पिणीए समाए (ग)। पत्र १३६ सूत्राङ्क १५७) तृतीयकुलकरस्य ६. पसेणइ (ख)। नाम 'अजितसेणे' विद्यते । पाठशोधन-प्रयु- ७. णाभी जियसत्तू राया (ग-हस्तलिखित क्तयो: 'क' 'ख' प्रत्योरपि एष एव पाठोस्ति । वृत्ति)। स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ पञ्चमकूलकरस्य
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पइण्णगसमवाऔ
६४३ सुग्गीवे दढरहे विण्हू, वसुपुज्जे य खत्तिए। कयवम्मा सीहसेणे य, भाणू विस्ससेणे इ य ॥२॥ सूरे सुदंसणे कुंभे, सुमित्तविजए समुद्दविजये य। राया य आससेणे, सिद्धत्थेच्चिय खत्तिए ।।३।। उदितोदितकुलवंसा', विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया ।
तित्थप्पवत्तयाणं', एए पियरो जिणवराणं ॥४॥ २२१. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था, तं जहा---
मरुदेवा विजया सेणा, सिद्धत्था मंगला सुसीमा य । पुहवी लक्खण रामा, नंदा विण्हू जया सामा ॥१॥ 'सुजसा सुव्वय अइरा, सिरिया देवी पभावई ।
पउमा वप्पा सिवा य, वामा तिसला देवी य जिणमाया ॥२॥ २२२. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था,
तं जहा--उसमे अजिते 'संभवे अभिणंदणे सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अणते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली
मुणिसुव्वए णमी अरि?णेमी पासे ° वद्धमाणे य ।। २२३. एएसि चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पुत्र भविया णामधेज्जा होत्था,
तं जहासंगहणी-गाहा
पढमेत्थ वइरणाभे, विमले तह विमलवाहणे चेव । तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्त तह धम्ममित्ते य ॥१॥ सुंदरबाहू तह दीहबाहू, जुगबाहू लट्ठबाहू य। दिण्णे य इंददत्ते, संदर माहिंदरे चेव ॥२॥ सीहरहे मेहरहे, रुप्पी य सुदंसणे य बोद्धव्वे । तत्तो य नंदणे खलु, सीहगिरी चेव वीसइमे ॥३॥ अदीणसत्त संखे, सुदंसणे नंदणे य बोद्धव्वे । ओसप्पिणीए एए, तित्थकराणं तु पुव्वभवा ॥४॥
१. ° कुलवंस (क); ° कुलदसा (ग)। (ग-हस्तलिखित वृत्ति)। २. पवत्तणायाणं (ख); ०८पवत्तणयाण (ग); ४. सं० पा.--अणित जाव वद्धमाणे । (ख' प्रती अग्रेपि एवम्)।
५. महिमंदरे (क)। ३. सुजसा सुव्वय अइरा, सिरि देवी य पभाव।। ६. ओसप्पिणीय (क)।
पउमावती य वप्पा, सिव वंमा तिसलाइय ७. x (ग)।
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२२५.
६४४
२२४. एएसि णं चवीसाए तित्थकराणं चडवीसं सीया होत्या, तं जहा - सीया सुदंसणा सुप्पभा य, सिद्धत्थ सुपसिद्धा य । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया चेव' ||१|| अरुणप्पभ चंदप्पभ', 'सूरप्पह अग्गिसप्पभा" चेव । विमला य पंचवण्णा, सागरदत्ता तह गागदत्ता य ॥२॥ अभयकर णिव्वुतिकरी, मणोरमा तह मणोहरा चेव । देवकुरु उत्तरकुरा विसाल चंदप्पभा सीया ॥३॥ एयात सीयाओ, सव्वेसि चेव जिणवरिंदाणं । सव्वोयसुभाए छायाए ||४||
सव्वजगवच्छलाणं,
चलचवलकुंडलधरा,
पुव्वि उक्खित्ता, माणुसेहि साहद्वरोमकूवेहिं । पच्छा वहति सीयं, असुरिंदसुरिदनागिदा 11211 सच्छंदवि उव्वियाभरणधारी । सुरसुरवंदियाण, वहंति सीयं जिणिदाणं' ||६|| पुरओ वहंति देवा, नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि | पच्चत्थिमेण
जम्मभूमी ||१||
सव्वेवि
असुरा, गरुला पुण उत्तरे पासे ||७|| विणीयाए, बारवईए अरिवरणेमी 1 तित्थयरा, निक्खता एग सेण, ण य णाम अण्णलिंगे, एक्को भगवं वीरो, भयवंपि वासुपुज्जो, उगाणं भोगाणं, चहिं सहस्सेहिं उसभो, सुमइत्थ णिच्चभत्तेण,
णिग्गया जिणवरा चउवीसं । ण य गिहिलिंगे कुलिंगे व ॥१॥ पासो मल्ली य तिहि-तिहिं सएहिं । छहि पुरिससएहिं निक्खतो ॥१॥ राइण्णाणं च खत्तियाणं च । सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥२॥ णिग्गओ वासुपुज्जो जिणो चउत्थेणं । पासो मल्ली वि य, अट्टमेण सेसा उछट्टणं ॥१॥
२२६. एएसि णं चवीसाए तित्थगराणं चउवीस पढमभिक्खादया" होत्या, तं जहा
२२६.
२२७.
२२८.
उसभो अवसेसा
य
१. x ( ख ) ।
२ X ( ख ) ; ओदप्पह ( ग ) 1
३. सूरप्पभ संकप्पभ अग्गिसप्पभा (ख); सूरप्पह सुंदर पह अग्गिप्पा (ग)।
समवाओ
४. X ( ख ) 1
५. X ( ख, ग ) ।
६. जिणंदाणं (ग) 1
७. ० दायरो (ख); ° देया ( ग ); ° दायारो (क्व ) 1
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पइण्णगसमवाओ
९४५
सेजसे बंभदत्ते, सुरिंददत्ते य इंददत्ते य । 'तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्त तह धम्ममित्ते य" ॥१॥ पुस्से पुणव्वसू पुण्णणंद', सुणंदे जये य विजये य। 'पउमे य सोमदेवे, महिंददत्ते य सोमदत्ते य" ॥२॥ अपरातिय वीससेणे, वीसतिमे होइ उसभसेणे य। दिण्णे वरदत्ते, धन्ने बहुले य आणुपुव्वीए ॥३॥ एते विसुद्धलेसा, जिणवरभत्तीए पंजलिउडा य ।
तं कालं तं समयं, पडिलाभेई जिणवरिंदे ॥४॥ २३०. संवच्छरेण भिक्खा, लद्धा उसभेण लोगणाहेण ।
सेसेहिं बीयदिवसे, लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥१॥ उसभस्स पढमभिक्खा, खोयरसो आसि लोगणाहस्स । सेसाणं परमण्णं. अमयरसरसोवमं आसि ॥२॥ सव्वेसिपि जिणाणं, जहियं लद्धाओ पढमभिक्खातो।
तहियं वसुधाराओ, सरीरमेत्तीओ वुढाओ ॥३॥ २३१. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं चेइयरुक्खा होत्था, तं जहा
णग्गोह-सत्तिवण्णे, साले पियए' पियंगु छत्ताहे। सिरिसे य णागरुक्खे, माली' य पिलखुरुक्खे य ॥१॥ तेंदुग पाडल जंबू, आसोत्थे खलु तहेव दधिवण्णे । णंदोरुक्खे तिलए य. अंबयरुक्खे असोगे य ॥२॥ चंपय वउले य तहा, वेडसिरुक्खे" धायईरुक्खे । साले य वड्डमाणस्स, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥३॥ बत्तीसइं ध णूइं, चेइयरुक्खो य बद्धमाणस्स । णिच्चोउगो असोगो, ओच्छण्णो सालरुक्खेणं ॥४॥ तिण्णे व गाउयाई, चेइयरुक्खो जिणस्स उसभस्स । सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥५॥
१. सेज्जंस (क)।
६. भत्तीय (के, ग)1 २. पउमे य सोमदेवे, माहिदे तह सोमदत्ते य ७. अमिय (क्व)। (क्व)।
८. पियाले (क)। ३. ०णंदे (ग)।
६. साली (ख)। ४. तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्त तह वग्गसीहे अ १०. ४ (क)। (क्व)।
११. वडेस ° (क्व)। ५. धम्मे (क)।
१२. बत्तीसं (ग)।
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९४६
समवाओ
सच्छत्ता सपडागा, सवेइया तोरणेहि उववेया।
सुरअसुरगरुलमहिया, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥६॥ २३२. एतेसि गं च उवीसाए तित्थगराणं चउवोसं पढमसीसा होत्था, तं जहा
पढमेत्थ उसभसेणे, बीए पुण होइ सीहसेणे उ। चारू य वज्जणाभे, चमरे तह सुव्वते' विदब्भे ॥१॥ दिपणे वाराहे पुण, आणंदे' गोथुभे सुहम्मे य । मंदर जसे अरिटे, चक्काउह सयंभु कुंभे य ॥२॥ 'भिसए य इंद कुभे", वरदत्ते दिण्ण इंदभूती य । उदितोदितकुल वंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया।
तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सा जिणवराणं ॥३॥ २३३. एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीओ होत्था, तं जहा
बंभी फग्ग सम्मा', अतिराणी कासवी रईसोमा। सुमणा वारुणि सुलसा, धारिणि धरणी य धरणिधरा ॥१॥ पउमा सिवा सुई अंजू, भावियप्पा य रक्खिया । बंध'-पूप्फवती चेव, अज्जा धणिला' य आहिया ॥२॥ जक्खिणी पुप्फचूला य, चंदणऽज्जा य आहिया । उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया ।
तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सी जिणवराणं ॥३॥ चक्कवट्टि-पदं २३४. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कट्टिपियरो होत्था तं जहा
उसमे सुमित्तविजए, समुद्दविजए य 'अस्ससेणे य" । विस्ससेणे य सूरे, सुदंसणे कत्तवीरिए य ॥१॥
१. सुज्जय (ग)। २. आणंदे पुण (ख)। ३. इंदे कुंभे य सुभे (क्व)। ४. फग्गुण (ख) ५. सामा (क्व)। ६. अजिया (क्व)। ७. बंधूवती (क, ख)। ८. वणिला (ग); अमिला (क्व)।
९. ४(क, ख, ग); सर्वेषु प्रयुक्तादशेषु 'अस्ससेणे' पाठो नास्ति 'ख' प्रतौ पाठान्तररूपेणासौ लिखितोऽस्ति। किन्तु 'विस्ससेण' पंचमचक्रति श्रीशान्तिनाथस्य पितुर्नामास्ति । यदि 'अस्ससेणे' पाठो न स्वीक्रियते तदा 'विस्ससेणे' चतुर्थचक्रवर्तिनः पितुर्नाम भवेत् । आवश्यकनिर्युक्तावपि 'अस्ससेणे' पाठो लभ्यते तेनासी पाठः स्वीकृतः । आवश्यकनियुक्ती
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पइण्णगसमवाओ
९४७
पउमुत्तरे महाहरी, विजए राया तहेव य ।
बम्हे बारसमे वुत्ते, पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥२॥ २३५. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टिमायरो होत्था,
तं जहा___सुमंगला जसवती, भद्दा सहदेवी अइर सिरि देवी ।
_ 'तारा जाला'' मेरा, वप्पा चुलणी अपच्छिमा ॥१॥ २३६. जंबुद्दोवे ण दोवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणोए बारस चक्कवट्टो होत्था, तं जहा
भरहो सगरो मघवं, सणंकुमारो य रायसद्लो । संती कुंथ य अरो, हवइ सुभूमो य कोरवो ॥१॥ नवमो य महापउमो, हरिसेणो चेव रायसद्लो ।
जयनामो य नरवई, बारसमो बंभदत्तो य ॥२॥ २३७. एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टोणं बारस इत्थिरयणा होत्था, तं जहा
पढमा होइ सुभद्दा', भद्दा' सुणंदा जया य विजया य । कण्हसिरी सूरसिरी, पउमसिरी वसुंधरा देवी ॥१॥
लच्छिमई कुरुमई, इत्थिरयणाण नामाइं॥ बलदेव-वासुदेव-पदं २३८. जंबुद्दोवे णं दोवे भरहे वासे इमांसे ओसप्पिणोए नव बलदेव-वासुदेवपितरो
होत्था, तं जहा
गाथाद्वयमित्थमस्ति--
उमभे सुमित्तविजए, समुद्दविजए अ अस्ससेणे य। तह वीससेण सूरे, सुदंसणे कत्तविरिए अ॥३६६॥ पउमुत्तरे महाहरि, विजए राया तहेव बंभे य ।
ओसप्पिणी इमीसे, पिउनामा चक्कवठ्ठीणं ॥३४०।। आदर्शगतं गाथाद्वयं चेत्थम् --
उसभे सुमित्तविजए, समुद्दविजए य विस्ससेणे य। सूरिए सुदंसणे पउमुत्तर कत्तवीरिए चेव ।। महाहरी य विजए य, पउमे राया तहेव य ।
बम्हे बारसमे वुत्ते, पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥ १. जाला तारा (क, ख, ग)। आदर्शषु नाम- २. सुहद्दा (क) । विपर्ययो विद्यते ।
३. भट्ट (ग)।
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६४५
पयावती य बंभे, रोद्दे सोमे सिवेति य । महसि अग्गिसिहे, दसरहे नवमे य २३६. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए णव तं जहा
मियावई उमा चेव, पुहवी सीया य लच्छिमती सेसवती, केकई देवई २४०. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए णव तं जहा
भद्दा तह सुभद्दा य, सुप्पभा य विजया य वेजयंती, जयंती णवमिया' रोहिणी, बलदेवाण
१. एषा गाथा स्थानाङ्गस्य नवमस्थानात् स्वीकृतास्ति । समवायाङ्गहस्तलिखितवृत्ती निम्नप्रकारासी वर्तते - पयावई य बंभो सोमो,
रुद्द सिवो महसिरो य अग्गिसिहो य दसरहो,
नवमो भणिओ य वसुदेवो ॥ अस्यां गाथायां "रोद्दे सोमे' नाम्नोर्विपर्ययोस्ति । आवश्यक निर्युक्तावपि स्थानाङ्गस्य समर्थनं लभ्यते--- हवइ पयावइ बंभो,
रुदो सोमो सिवो महासिवो य ॥
वसुदेवे ॥१॥ वासुदेवमायरो होत्या,
अम्मया ।
२४१. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला' होत्या, तं जहा - उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चसी जसंसी छायंस कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा' सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण - णयण-कंता ओहबला अतिबला महाबला अणिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्स-माण - महणा साणुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल - पलाव- हसिया गंभीर - मधुर -पडिपुण्ण- सच्चवयणा अन्भुवगय- वच्छला सरण्णा लक्खण- वंजण- गुणोववेया माणुम्माण- पमाण- पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंगसुंदरंगा ससि - सोमागार कंत पिय- दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीरदरिसणिज्जा तालद्धओव्विद्ध गरुल- केऊ महाधणु - विकड्डगा' महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्ध - कित्तिपुरिसा विउलकुल- समुब्भवा महारयण'
इय ॥१॥
बलदेवमायरो होत्था,
सुदंसणा ।
अपराइया ॥१॥ मायरो ||
अग्गिसीहे अ दसरहे,
समवाओ
नवमे भणिए अ वसुदेवे ॥ ४१ ॥
२. नवनिया य ( ग ) | ३. दसारमंडणा (वृपा ) 1
४. जोयसी ( ग ) ।
५. सुदंसणा ( ग ) । ६. सुत्तवा (क)
७. अमरिसणा (क्व ) । ८. विगरसगा ( ग ) |
९. महारण (कृपा) ।
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पइण्णगसमवाओ
१४६ विहाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुल-वंस-तिलया अजिया अजियरहा हलमुसल-कणग-पाणी संख-चक्क-गय-सत्ति-नंदगधरा पवरुज्जल-सुक्कंत'-विमलगोथुभ-तिरीडधारी कुंडल-उज्जोइयाणणा पुंडरीय-णयणा एकावलि-कंठलइयवच्छा सिरिवच्छ-सुलंछणा वरजसा सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-सुरइत-पलंबसोभंतकंत-विकसंत-चित्त-वरमाल-रइयवच्छा अट्ठसय-विभत्त-लक्खण-पसत्थ-सुंदरविरइयंगमंगा मत्तगयरिंद-ललिय-विक्कम-विलसियगई सारय-नवथणियमधुरगंभीर-कोचनिग्घोस-दुंदुभिसरा कडिसुत्तगनील-पीय-कोसेयवाससा पवरदित्ततेया' नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसभा मरुयवसभकप्पा अब्भहियं राय-तेयलच्छीए दिप्पमाणा नीलग-पीतग-वसणा दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो होत्था,
तं जहासंगहणी-गाहा
तिविठू य' 'दुविठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे । पुरिससीहे तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे ° कण्हे ॥१॥ अयले विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ।
आणंदे णंदणे पउमे, रामे यावि' अपच्छिमे ॥२॥ २४२. एतेसि णं णवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वभविया नव-नव नामधेज्जा होत्था, तं जहा--
विस्सभूई पव्वयए, धणदत्त समुद्ददत्त सेवाले। पियमित्त ललियमित्ते, पुणव्वसू गंगदत्ते य ॥१॥ एयाई नामाइं, पुव्वभवे आसि वासुदेवाणं । एत्तो बलदेवाणं, जहक्कम कित्तइस्सामि ।।२।। विसनंदी सुबंध य, सागरदत्ते असोगललिए य ।
वाराह धम्मसेणे, अपराइय रायललिए य ॥३॥ २४३. एतेसि णं नवण्हं वासुदेवाणं पुत्वभविया नव धम्मायरिया होत्था, तं जहा
संभूत सुभद्दे सुदंसणे, य सेयंसे कण्ह गंगदत्ते य । सागरसमुद्दनामे, दुमसेणे य णवमए ॥१॥
१. सुकय (वृपा)। २. विचित्त (ग)। ३. कोसेयज्ज° (ग)। ४. सं.to_तिविटठ य जाव कण्हे। ५. सं० पा०-अयले जाव रामे।
७. पियमेत्त (क); पियमित्ते (ग)। ८. पुम्ववियाए (क); पुव्वभवे (ग)। ६. संभूते (ख, ग)। १०. सुभद्द (ग)।
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समवाओ
एते धम्मायरिया, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं ।
पुव्वभवे आसिण्ह', जत्थ निदाणाई कासी य ॥२॥ २४४. एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं पुब्वभवे नव निदाणभूमिओ होत्था, तं जहा
महुरा य' 'कणगवत्थू, सावत्थी पोयणं च रायगिह ।
कायंदी कोसंबी, मिहिलपुरी हथिणपुरं च ॥१॥ २४५. एतेसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव नियाणकारणा होत्था, तं जहा
गावी जुवे' 'य संगामे इत्थी पराइयो रंगे ।
भज्जाणुराग गोट्टी, परइड्डी° माउया इय ॥१॥ २४६. एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव पडिसत्तू होत्था, तं जहा
अस्सग्गीवे 'तारए, मेरए महुके ढवे निसुभे य । बलिपहराए (रणे? )तह रावणे य नवमे° जरासंधे ॥१॥ एए खल पडिसत्त: कित्तीपरिसाण वासदेवाणं।
सब्वे वि चक्कजोही, सव्वे विहया सचक्केहि ॥२॥ २४७. एक्को य सत्तमाए, पंच य छट्ठीए पंचमा एक्को ।
एक्को य च उत्थीए, कण्हो पुण तच्चपुढवीए ॥१॥ अणिदाणकडा रामा, सम्वेवि य केसवा नियाणकडा।। उड्ढंगामी रामा, केसव सव्वे अहोगामी ॥२॥ अटुंतकडा रामा, एगो पुण बंभलोय कप्पमि ।
एक्का से गब्भवसही, सिज्झिस्सइ आगमेस्साणं ॥३॥ एरवय-तित्थगर-पदं २४८. जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था, तं जहा
चंदाणणं सुचंदं च, अग्गिसेणं च नंदिसेण च । इसिदिण्णं वयहारि', वंदिमो सामचंदं च ॥१॥ वंदामि जुत्तिसेणं', अजियसेणं" तहेव सिवसेणं"।
बुद्धं च देवसम्म, सययं निक्खित्तसत्थं" च ॥२॥ १. आसिनवण्हं (ख)।
८. वयहारिं च (वृपा)। २. सं० पा०—महरा य जाव हस्थिणपुरं । ६. क्वचिदयं दीहवाई, दीहसेणं बोच्यते (वृ)। ३. सं० पा०-जुवे जाव माउया ।
१०. सयाउं (वृपा)। ४. सं० पा०-अस्सगीवे जाव जरासंधे । ११. सच्चसेणं, सच्चइ (वृपा) । ५. सं० पा०-पडिसत्त जाव सचक्केहि। १२. देवसे णं (वृपा)। ६. आगमिस्सेणं (वृ); आगमेस्साणं (वृपा)। १३. सिद्धं (ग)। ७. अत्तसेणं (वृपा)।
१४. निक्खित्तसत्तं (ग); सेज्जंसं (वृपा)।
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पइण्णगसमवाओ
९५१
असंजल' जिणवसहं, वंदे य अणंतयं अमियणाणि । उवसंतं च धुयरयं, वंदे खलु गुत्तिसेणं च ॥३॥ अतिपासं च सपासं, देवेसरवंदियं च मरुदेवं। णिव्वाणगयं च धर', खीणदुहं सामकोट्ठ' च ॥४॥ जियरायमम्गिसेणं, वंदे खीणरयमग्गिउत्त च।
वोक्कसियपेज्जदोस, च वारिसेणं गयं सिद्धि ॥५॥ भावि-कुलगर-पदं २४६. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति,
ते जहा
मित्तवाहणे सुभूमे य, सुप्पभे य सयंपभे।
दत्ते सुहमे सुबंधू य, आगमेस्साण होक्खति' ॥१२॥ २५०. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए ओसप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति,
तं जहा
विमलवाहणे सीमंकरे, सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे।
दढधणू दसधणू, सयधणू पडिसूई संमुइत्ति ॥१॥ भावि-तिस्थगर-पदं २५१. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा भविस्संति, तं जहा
महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे । सवाणुभूई अरहा, देवउत्ते" य होक्खति ॥१॥ उदए पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सतएति" य । मुणिसुव्वए य अरहा, सव्वभावविदू जिणे ॥२॥ अममे णिक्कसाए य, निप्पुलाए य निम्ममे। चित्तउत्ते समाही य, आगमिस्साए होक्खइ ।।३।। संवरे अणियट्टी य, विजए विमलेति य। देवोववाए अरहा, अणंतविजए ति य ॥४॥
१. सयंजलं (वृपा)। २. सीहसेणं (वृपा)। ३. वर (ग)। ४. सामकोहं (ग)। ५. सित्तवाहणे (ग)1 ६. होक्खंति (ग)।
७. उस्सप्पिणीए एरवए वासे (क्व) । 5. अट्टधणु (ग)। ६. सुमइत्ति (क्व)। १०. देवस्सुए (क्व)। ११. सत्तकित्ति (क्व)।
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६५२
समवाओ एए वुत्ता चउवीसं, भरहे वासम्मि केवली।
आगमेस्साण होक्खंति, धम्मतित्थस्स देसगा ॥५॥ २५२. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुव्वविया चउवीसं नामधेज्जा भविस्संति', तं जहा
सेणिय सुपास उदए, पोट्टिल अणगारे तह दढाऊ य । कत्तिय संखे य तहा, नंद सुनंदे सतए य बोद्धव्वा ॥१॥ देवई च्चेव सच्चइ, तह वासुदेव बलदेवे। रोहिणि सुलसा चेव, तत्तो खलु रेवई चेव ।।२।। तत्तो हवइ मिगाली', बोद्धव्वे खलु तहा भयाली य। दीवायणे य कण्हे, तत्तो खलु नारए चेव ॥३॥ 'अंबडे दारुमडे य, साई बुद्धे य होइ बोद्धव्वे ।
'उस्सप्पिणो आगमेस्साए, तित्थगराणं तु पुन्वभवा" ॥४!! २५३. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पियरो भविस्संति, चउवीसं मायरो
भविस्संति, चउवीसं पढमसोसा भविस्संति, चउवीसं पढमसिस्सिणीओ
भविस्संति, चउवीसं पढमभिक्खादा भविस्संति, चउवीसं चेइयरुक्खा भविस्संति ॥ भावि-चक्कवट्टि-पदं २५४. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए बारस चक्कवट्टी
भविस्संति, तं जहा~संगहणी-गाहा
भरहे य दीहदंते, गूढदंते य सुद्धदंते य। सिरिउत्ते सिरिभूई, सिरिसोमे य सत्तमे ॥१॥ पउमे य महापउमे, विमलवाहणे विपुलवाहणे चेव ।
रिट्रे बारसमे वुत्ते, आगमेसा . भरहाहिवा ॥२॥ २५५. एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टोणं बारस पियरो भविस्संति, बारस मायरो
भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति ।। भावि-बलदेव-वासुदेव-पदं २५६. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेव
पियरो भविस्संति, नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति
१. होत्था (ख)। २. मिमाली (क); सयाली (क्व) । ३. तत्तो दारुपडिया (क); अंबडे दारूपडे
या (ख)। ४. भावीतित्थगराणं णामाइं पुष्वभवियाई
(क्व)।
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पइण्णगसमवाओ
९५३
नव दसारमंडला भविस्संति, तं जहा-उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयसो एवं सो चेव वण्णओ भाणियन्वो जाव' नीलग-पीतग
वसणा दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, तं जहासंगहणी-गाहा
नंदे य नंदमित्ते, दीहबाहू तहा महाबाहू । अइबले महाबले, बलभद्दे य सत्तमे ॥१॥ दुविठ्ठ य तिविठ्ठ य, आगमेसाण वण्हिणो। जयंते" विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ।
आणंदे नंदणे पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे ॥२॥ २५७. एएसि णं नवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वविया णव नामधेज्जा भविस्संति, नव
धम्मायरिया भविस्संति, नव नियाणभूमीओ भविस्संति, नव नियाणकारणा भविस्संति, नव पडिसत्तू भविस्संति, तं जहा
तिलए य लोहजंघे, वइरजंघे य केसरी पहराए । अपराइए य भीमे, 'महाभीमे य सुग्गीवे ॥१॥ एए खलु पडिसत्तू, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं ।
सव्वेवि' चक्कजोही, हम्मिहिंति सचक्केहि ॥२॥ एरवय-भावि-तित्थगर-पदं २५८. जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थकरा भविस्संति, तं जहा
सुमंगले ‘य सिद्धत्थे, णिव्वाणे य महाजसे। धम्मज्झए य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥१॥ सिरिचंदे पुप्फकेऊ, महाचंदे य केवली । सुयसागरे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥२॥ सिद्धत्थे पुण्णघोसे य, महाघोसे य केवली।
अरहा, 'आगमिस्साण होक्खइ ॥३॥
अरहा, महासेणे" य केवली । सवाणंदे य अरहा, देवउत्ते य होक्खइ ॥४॥
१. प० सू० २४१ । २. महाभीमसेणे य सुग्गीवे य अपच्छिमे (ग)। ३. सम्वेय (ग)। ४. सच्चकेणं (ग)।
५. अस्थ सिद्धेय (ग)। ६. अणंत विजए इय इय सूरसेणे महासेणे
देवसेणे (ग)। ७. देवदत्ते (ग)।
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६५४
सुपासे
अरहा
विमले उत्तरे अरहा, अरहा य 'देवाणंदे य" अरहा, आगमिस्साण एए वृत्ता चउव्वीसं, एरवयम्मि आगमिस्साण होक्खंति, धम्मतित्थस्स
सुव्वए अरहा, 'अरहे य अतविजए, आगमिस्साण
एरवय- भावि चक्कवट्टि -बलदेव- वासुदेव-पदं
२५६. बारस चक्कवट्टी भविस्संति, वारस चक्कवट्टिपियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, वारस इत्थीरयणा भविस्संति ।
नव बलदेव वासुदेवपियरो भविस्संति, णव वासुदेवमायरो भविस्संति, णव बलदेवमायरो भविस्संति, णत्र दसारमंडला भविस्संति, उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव' दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, नव पुव्वभवणामधेज्जा, णव धम्मायरिया, णव गियाणभूमीओ, वणियाणकारणा, आयाए, एरवए आगमिस्साए भाणियव्वा ॥ २६०. एवं दोसुवि आगमिस्साए भाणियव्वा ||
freda-पदं
२. देवोववाए (ग) 1
३. एरवतवासंमि ( ग ) ।
२६१. इच्चेयं एवमाहिज्जति', तं जहा --- कुलगरवंसेति य एवं वित्थगरवसेति य चक्कवट्टिवसेति व दसारवंसेति य गणधरवंसेति य इसिवंसेति य जतिवंसेति य मुणिवंसेति य सुतेति वा सुतंगेति वा सुयसमासेति वा सुयखंधेति वा समाएति' वा संखेति वा । समत्तमंगमक्खायं अज्झयणं ।
-त्ति बेमि ॥
१. ए महासुक्के य सुकोसले । देवागंदे अरहा
अनंत विजए इ ( ग ) 1
ग्रन्थ-परिमाण
कुल अक्षर ७१७२० । अनुष्टुप् श्लोक २२४१, अक्षर ८ ।
समवाओ
कोसले |
होक्खई" ॥५॥
महाबले । होक्खइ ||६|| केवली |
देसगा ॥७॥
४. प० सू० २४१
५. ० हिज्जेति (क, ख, ग ) ।
६. सामाएति ( ग ) ; समवाएइ (क्व ) ।
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परिशिष्टः
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Page #215
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परिशिष्ट- १
संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार स्थल
आयारो
संक्षिप्त-पाठ,
अहमसी जाव अण्णयरीओ
आगममाणे जाव समत्तमेव
एवं जं परिघेतव्वं ति, मन्नसि जं एवं हिययाए पित्ताए बसाए पिच्छाए
पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दंताए बाढाए नहाए हारुणीए अट्टीए अट्ठमिजाए अट्ठाए अट्ठाए गामं वा जाव रायहाणि
जाएजा जाव एवं
धारेज्जा जाव गिम्हे
परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था समारम्भ जाव चेएइ
अंतक्खिजाए जाव णो अरियं जाव अभूतोवघाइयं अक्कोति वा जाव उवंति अक्कोति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि itsarfarara णिगिणाइ य जहा
सिज्जाए आलावगा णवरं ओग्गहवत्तव्वया अक्को सेज्ज वा जाव उवेज्ज अणुवयंति तं चैव जाव णो सातिज्जति बहुवणेणं भाणियव्व
पूर्त-स्थल
१३
८६५,१६,१२३,१२४
५/१०१
१।१४०
८।१२६
८६४-६७
८-१२
पा२३
८२४
आयारचूला
५३३७, ३८
४।११
३।६१
७११६-२०
शह
५।४७
पूर्ति प्राधार स्थल
११
८७८८०
५।१०१
१।१४०
८१०६
८।४४-४८
८।४६-५०
८२१
८२३
५/३६
४/१०
२२२
२५१-५५
२२
५।४६
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________________
३११२ १:४ १४ ११४
११४
२।२२
१११५५ ७२७,२८
१६१७ १।१७:११४
श१७ १।१७
२८ १।१२
२२
अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए ३.१३ अणेसणिज्ज जाव णो
१।१७,६३,१०६,१३६ असणिज्जं जाव लाभे
१।१०८,१२१ अणेसणिज्ज.."णो
श२१ अणेसणिज्ज"लाभे
११८५,९७,८।१६।१ अणेसणिज्ज"लाभे संते जाव' णो
१४१३५ अण्णमण्णमक्कोसंति वा जाव उद्दवेंति २०५१ अण्णयरं जहा पिंडेसणाए
७१५६ अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव ७४३४,३५ अपरिसंतरकडं जाव अणासेवितं
११२१,११२ अपुरिसंतरकडं जाव णो
१।२४ अपरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं वा... अन्नयरंसि
१०६ अपूरिसंतरकडे जाव अणासेविए (ते) २।१०,१२ अपुरिसंतरकडे जाव णो
२११४,१६ अपूरिसंतरकडे वा जाव अणासे विते
२१३ अप्पंडए जाव संताणए
१।१३५ अप्पंडं जाव पडिगाहेज्जा अतिरिच्छच्छिन्नं तिरिच्छच्छिन्न नहेव
७१३७,३८ अप्पडं जाव मक्कडा
६२ अप्पंडं जाव संताणगं (य) रा५८-६१,६६,५।२६,३०,७४२७,२८,३०,३१,३४ अप्पंडा जाव संताणगा
११४३,३१५ अप्पडे जाव चेतेज्जा
२१३२ अप्पापाणं जाव संताणगं
२०२ अप्पपाणंसि जाव मक्कडा
१०।२८ अप्पवीयं जाव मक्कडा
१०१३ अप्पुस्सुए जाव सयाहीए
३1२६,५९,६१ अफासुयं जाव णो
१११२,६४,८२,८३,८७,६२,६६, १०७,११०,१११,१२८,१३३; २१४८,५।२२,२३,२५,२८,२६;
६।२६,४६,७।२६,२७,२६,३० अफासुय जाव लाभे
१११०६ अफासुयं 'लाभे
११८४,१०२,१०४,१२३ अफासुयाई जायणो
६।१३,१४ १. अत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते।
७।३०,३१
१२
श२
१२ १२२ ३१२२
१४४
११४
११४
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________________
३
५।२३-२५
१२३
१५६४४
६१२२-२५ ५।२४ १५१४७,४८ २११६,४६ ३३११ ६।१४ ११६२ ११९० ११३६,४१,८८,६१ १।११३,११५-११६ ४/२२
श५८ ३९,१०
६४१३ १२९७
११४
१४ १९२११४
४।११
अब्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणाइ सहेव सीओदगादि कंदादि तहेब अभिकख सि सेसं तहेव जाव गो अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज अयं तेण तं चेव जाव गमणाए अयवंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि असणं वा ४ अफासुयं असणं वा ४ जाव लाभे असणं वा ४ लाभे असत्थपरिणयंजाव णो असावज्जं जाव भासेज्जा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियसमुहिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समूहिस्स अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणोओ समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे समणमाहण पगणियपगणिय समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव उद्देसिय चेतेति, तहप्पगार थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अयुरिसंतरकडं वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा आश्मणाणि वा जाव भवणगिहाणि आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु आगंतारेसु वा जावोग्गहियंसि आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज आयरिए वा जाय गणावच्छेइए इक्कडे वा जाव पलाले ईसरे जाव एवोग्गहियसि उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेइएण एवं अतिरिच्छच्छिन्ने वि तिरिच्छच्छिन्ने जाव पडिगाहेज्जा एवं आउतेउवाउवणस्सइ
१०१४-८
३.४७ २॥३४,३५ ७:४६,४७ ३१३६६।४८ १११३१ २१६५,७१५४ ७३२,३३ २१७२
१।१२-१६
३३५४ २०३६
रा३३ ७।२३,२४
११५१ १११३०
२०६३ ७।२५,२६
१११३०
७.४४,४५ २१४१
७१३०,३१
२।४१
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं गायब्वं जहा सह-पडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रूव-पडियाए वि एवं तसकाए वि
एवं पादणक्ककण्णउछिन्नेति वा एवं बहवे साहम्मियया एवं साहम्मिणि बहवे साहमणीओ
एवं बहवे साहम्मिया एवं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ बहवे समणमाहणस्स तहेव, पुरिसंतरं जहा पिंडेसणाए एवं बहवे साहम्मिया एवं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावगा भाणियव्वा
एवं बहिया विचारभूमि वा विहारभूमि वा गामाशुगामं दुइज्जेज्जा अहपुणेवं जाणेज्जा तिव्बदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सव्वं चीवरमायाए
एवं वहिया बियारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । तिव्वदेसियादि जहा बिइयाए वत्थेसणाए णवरं एत्थ पडिग्
एवं सेज्जागमेणं णेयब्वं जाव उदगपसूयाई ति
एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगप्पसूयाइंति
एवं हिट्ठियो गमो पायादि भाणियव्वो
एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा
एसणिज्जं जाव लाभे
एसणिज्जं लाभे
एस पइन्ना जं
ओवयं हि य जाव उप्पिजलगभूए कंदाणि वा जाव बीयाणि
कंदाणि वा जाव हरियाणि कसि जाव समुप
१२।२-१७
१८
४|१६
२१४, ५, ६
५।६-११
१।१३-१ः
५१४३-४५
६१५१-५८
८२-१५
१३-१५
१३१४०-७५
१।१८,२३,२/६४
१७, १४३
२/६३, हार
६।२८, ४५
१५/४०
. १०/१५
५।२५
१५.४०
१११५-२०
१६२
४१६
२३
१।१३-१८
१।१२
१३८-४०
५१४३-५०
२/२-१५
२१३-१५
१३।३-३८
११५
१५.
१५
११५६
१५/६
२१४
२।१४
१५/३८
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
४।१६ ७.१२
आयारो ६८
५।३७
७.१३ ७२५ १३१३०-३३ ५१४८ ५.४६
२३८ ७।२३ १३१२८
३३५६ ३१५६
कुट्ठीति वा जाव महुमेहणी कुलियसि वा जाव णो खंधसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे जाव णो खलु जाब विहरिस्सामो गंडं वा जाव भगंदलं गच्छेज्जा जाव अप्पुस्सुए"तओ गच्छेज्जा जाव गामाणुगाम गच्छेज्जा तं चेव अदिण्णादाणवत्तव्चया भाणियन्दा जाव वोसिरामि गाम वा जाव गाम वा जाव रायहाणि गामंसि वा जाव रायहाणिसि गामे वा जाव रायहाणी गाहावई वा जाव कम्मकार गाहावइ-कुलं जाव पविढे गाहावइ-कुलं जाव पविसितुकामे गाहावइ-कुलं'पविसितुकामे गाहावई वा जाव कम्मकरीओ
१५१५७
१५॥६४ ७२ ११३४,१२२,२११,३१२८।१ ११३४,१२२:३१२
श२८ श२८ श२८ श२५ ११ १३१६ १११६
१५६३,५।१८,६१७ १।१६,१७ ११८,४४ ११३७ १११२१, १२२, १४३; २१२२,३६,५१,७।१६ ४।१४ ७.२४ ३।२४
गोलेति वा इत्थी गमेणं तव्वं छत्तए वा जाव चम्मछेदणए छत्तगं बा जाव चम्मछेयणग जवसाणि वा जाव सेणं जहा पिंडेसणाए जाव संथारग जाएजा जाव पडिगाहेज्जा जाएज्जा जाव विहरिस्सामो जावज्जीवाए जाव वोसिरामि जीवपइट्टि यंसि जाव मक्कडा झामथंडिलंसि वा जाव अण्णय रंसि झामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय ठाणं'चेतेज्जा ठाणं वा जाव चेतेज्जा गरं वा जाव रायहाणि
११४६ ४।१२ २०४६ २०४६ ३१४३ श२६ १२१४१
७१२३ १५॥४३ ११५१
२।१२ १:१४५,५।१६६।१६,१७ ७१४६ १५५७ १०।१४ १५१:३६ १।१३५ २।२८,२६ २।२७,५१-५५ ८१
११३
२१
२११
१०२८
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
३१५८ ७११४
१३२८ १६४२
१३१४८-१५४ ११११४ ११३१२-१४,१६ १११७-११,१५ ७।३६-४२
श१४१-१४७ ११४,९२
१११५
१०५ ७.२५-२८
७।३
णगरस्स वा जाव रायहाणीए णिक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु ओग तं चेव भाणिय व्वं गवरं चउत्थाए णाणत से भिक्खू वा जाव समाणे सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा तंजहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदग वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियर्ड वा अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तहेव पडिगाहेज्जा तहप्पगार जाव को तहप्पगाराइं णो तहप्पगाराई."सहाई.''गो तहेव तिन्निवि आलाधगा वर ल्हसुण दंडगं वा जाव चम्मछेदणगं | दस्सुगायतणाणि जाव बिहारवत्तियाए दुब्बद्धे जाव णो देज्जा जाव पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासुयं 'पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासुयं"लाभे दोहिं जाव सण्णिहिसपिणचयाओ निक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु ० निक्खिवाहि जहा इरियाए णाणत्तं वत्थपडियाए पइण्णा जाब जं पगिझिय जाव णिज्झाएज्जा पडिक्कमामि जाव वोसिरामि पडिम जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जाव पगहियतरागं पडिवज्जमाणे तं चेव जाव अण्णोष्णसमाहीए
३९ ७११ १११४४ ११४७ ५१८ १६२४ ३१२
१११४१ १११४१ १३१४१
११२१
१।४२
५१५० २११६,२२,६।२८,४५ ३।४८,४६ १५२५० ६२२० ५२१ ८।२१-३०
३१६१ ११५६ ३४७ १५२४३ १११५५
१४१५५ २०६७-७६
२०६७
१११५५
-
-
१,२. अन्न 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते ।
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
पण्णस्स जाव चिताए २१५०-५६,७।१५,२१
११४२ पमज्जेता जाव एगं ३२३४
३।१५ परक्कमे जाव णो
३७ पागाराणि वा जाव दरीओ ३१४७
३१४१ पाडिपहिया जाव आउरांतो ३१५७
३१५४ पाणाइं जहा पिंडेसणाए पाणाई जहा पिडेसणाए चत्तारि आलावगा 1 पंचमे बहवे समणमाहणा पगणिय-पगणिय तहेव से भिक्खू वा २ अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमहणा वत्थेसणालावओ
६॥४-१२
१।१२-१८:५१५-१३ पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज २१७१
११८८ पायं वा जाव इंदिय २०४६
११८८ पायं वा जाव लूसेज्ज २०७१
११८८ पिहयं वा जाव चाउलपलबं
१७.१४४ पुढविकाए जाव तसकाए १५॥४२
२१४१ पूढवीए जाव संताणए १।१०२,५१३५,७४१०
११५१ पूरिसंतरकड जाव आसे वियं १२२
१२१८ पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहेज्जा परिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं अण्णयरंसि १०।१० पुरिसंतरकड़े जाव आसे विए २।६,११,१३
१११८ परिसंतरकडे जाव चेतेज्जा २०१५,१७
राह पूवोवदिवा जाव चेतेज्जा २१३०
२।२७ पुवोवदिट्ठा जाव ज १६१:२।२३,२४,२५,२७,२८,२६,३।६,१३,४६,५१२७ ११५६ पुवोवदिट्ठा जाव णो १९५
११६१ पहाए जाव चिताचिल्लड
३१५६ फलिहाणि वा जाव सराणि
१११५
नि० १७११४१ फासिए जाव आणाए
१२४९ फासिए जाव आराहिए १०७०
१५१४६ फासूयं जाव पडिगाहेज्जा १२२,२५,८१,१००,१४६,५२०,३०,७१२८,३१
११५ फासुयं"पडिगाहेज्जा १११४१
११५ फास्य "लाभे संते जाव' पडिगाहेज्जा १११०१,१२८,५११८ बहुकंटगं"लाभे संते जाव' णो १११३४
११४
५१११
१११८
१२५२
११५
१.२. अन 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते।
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
३॥४
१२२ १२२
बहुपाणा जाव संताणगा बहुवीया जाव संताणगा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब भगवंतो जाव उवरया भिक्खुगी वा जाव पबिट्रे
१२६
३३१ ११८२ २।२५ ११५,६,७,११,१२,४२,६२,६२,६६,६६, १०१,१०४,१०५,१०७-१०६,१११
१।१२१
११
१२९३,६४
शहर
भिक्खूणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्रियं तह चेव । एवं अगणिकायपइद्रियं लाभे भिक्खू वा जाव पग्गहिय. भिक्खू वा जाव पविढे भिवत्र वा २ जाव सद्दाई भिक्खू वा जाव समाणे
१११४५
११२३,४६,५०,५२
११०२
१३५३,५५,५८,६१,८३,८४,८७,८६, ६०,६७,१०२,१०६,११०,११२-११६, १२४,१२५,१२६,१३५,१३६, १४५,१४७,१५१ ११.१४,१५ ११८२,१२८,१३३,१३४,१४४ ५२७
११
११
रा२४
४।२५
१२१४२
भिक्खू वा २ जाव सुणेति भिक्खू वासेज्ज मणी वा जाव रयणावली मणुस्सं जाव जलयर मत्ते तहेव दोच्चा पिंडेसणा महद्धणमोल्लाई.."लाभे महन्वए" मासेण वा जहा वत्थेसणाए मूलाणि वा जाव हरियाणि रज्जमाणे जाव विणिग्घाय रज्जेज्जा जाव गो लाढे जाव णो वएज्जा जाव परोक्खवयणं वत्थाणि..'लाभे वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि वायण जाव चिताए वित्ती जाव रायहाणि सअंडं जाव णो
१५१५६,६३,८४,९१ ६१२१ १०११२ १५७३,७४ १५०७३,७४ ३१२ ४४ ५१५ ४।२१ २०४६
१११४१
१६४ १५१४६
श२२ २।१४ १५१७२ १५१७२
३
४१३
११४ ३१४७
३।३
७.३३
१४३,३१२
७।२६
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
सअंडं जाव णो
सअंडं जाव मक्कडा
अंडं जाव संतान (गं)
सादि सम्वे आलावगा जहा वत्येषणाए
जाणतं तेस्लेण वा घरण वा णवणीएण
वा बसाए वा सिणाणादि जाव अण्णयरंसि वा ६।२६-४२
२३१
अंडे जाव संताणए
संतिभेया [दा] जाव भंसेज्जा
संतिविभंगा जाव धम्माओ
संतिविभंगा जाब मंसेज्जा
संचारलाभे
संधार जाव लाभे
सकिरिया जब भूओवाइया
सज्जमाणे जाव विणिग्वाय
सज्जेज्जा जाव णो
सत्ताई जाव चेएइ तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासे विए
सपागं जाव मक्कडा
सपाणे जाव संताणए
समण जाव उवागया
समणमा जान उद्यागमिस्संति सगणुजाणिजा जाय वोसिरामि
समारंभेणं जाव अगणिकाए
सम्म जाव आणाए
सयं वा जान पडिगाहेज्जा
?
सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा ससिणिद्वेण सेसं तं चैव एवं ससरक्खे मट्टिया को हरियाले हिगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे गेरुय वण्णिय सेडिय, पिट्ठ कुक्कस उक्कुट्ट संसद्वेण सामग्गिय
सामग्गियं
सामग्गियं जाव जएज्जासि
है
७३६,४३
८१६१
२।१,५७,६८,५२८, ७ २६, २६
१५६७,६८,६६,७५
१५/६६
१५०७३,७४
२५७,५८,५६,६०
२६१
१५.४६
१५।७५, ७६
१५।७५
२१७.८
१०१२
१।५१
૧૪
१।४३
१५।७१
२।४२
१५.६३
६।१६
६।१९
१२६५-८०
११४८,६०,८६,१०३, १२०, १२६, १३७
२२६,४३
३:४६: ५१४०, ५१; ७/२२,५८
८३१, १०१२१:११।२०
૨૨
१:२
१२
५।२८-३६
१/२
१५।६५
१५।६५
१५।६५
११४
१५.
१५/४५
१५।७२
१५/७२
१०१६,१७
१२
११२
३२
११४२
१५।४३
२४१
१५४६
१।१४१
१।१४१
૬૪
११२०
२७७
२।७७
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०
४॥२१ ५२२३ ५॥३१
४।१० २।२० २।२१
सावज्जं जाव णो सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता सिणाणेण वा जाव पधसेज्ज सिणाणेण वा तहेव सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा आलावओ सिया जाव समाहीए सिलाए जाव मक्कडासंताणए सिलाए जाव संताणए सीओदग-वियडेण वा जाव पधोएज्ज सीलमंता जाव उवरया से आगंतारेसु वा जाव सेसं तं चेव, एयं खलु० जइज्जासि हत्थं जाव अणासायमाणे हत्थं वा जाव सीसं हत्थिजुद्धाणि वा जाव कविजल हत्थिट्राणकरणाणि वा जाव कविजल
३१४४ १८२ १।८३ ५.३२ ॥३८ ७.६,८ १४१३-८० ३१५०,५२ २।१६
५॥३१,३२
३।२६ ११५१ १५१ २१२१ १११२१
७४ १३१३-८०
रा७४ ११८८ १०।१८ १०१८
११।११
२१३२ २१५८
७२०
३२
अकेवले जाव असव्वदुक्ख० अकोहे जाव अलोभे अखेत्तण्णा जाव परक्कमण्णू अगाराओ जाव पब्वइत्तए अज्भारोहसंभवा जाव कम्माणियाणेण अणारिए जाव असव्वदुक्ख० अणारिया वेगे जाव दुरूवा अणिटुं जाव णो सुह अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ अगिटे जाव णो सुहे अणिढे जाव दुक्खे अणपुवट्ठिए जाब पडिरूवे अणुपुवट्रियं जाव पडिरूवं अणुपुव्वेणं जाव सुपण्णत्ते अणेगभवणसयस णिविट्ठा जाव पडिरूवा अपच्छिमं जाव विहरित्तए
सूयगडो
२१५७,६२ ४।२४ २१९,१० ७२१ ३१७,८,९ રાષ્ટ્ર ०४६ ११५१ २५१ ११५१ ११५१ श५ १७,८,९ १२२३-२५ ७२ ७१२६
१११३ १९५० ११५० १९५० ११५०
११३
१११३-१५
७.५ ७१२१
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
११६
२०५८ २।७२ २।२४
२१५८
अपत्ते जाव अंतरा
१११० अपत्ते जाव सेयंसि
१६ अप्पडिविरया जाव जे यावण्णे
२२७१ अभिगयजीवजीवे जाव विहरइ
७.४ अवहरइ जाव समणुजाणइ
२।२५,२६,३० अहम्मिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वाओ परिगहाओ
७२२ अहावर पुरक्खायं इहेगइया सत्ता तेहिं चेव (१) पुढविजोणिएहिं रुक्खेहि (२) रुक्खजोणिएहि रुक्खेहि (३) रुक्खजोणिएहिं मूलेहि जाव बीएहि (४) रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहि (५) अज्झोरुहजोणिएहिं अज्झोरहेहि (६) अज्झोरुहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं (७) पुढविजोणिएहि तणेहिं (८) तण जोणिएहिं तणेहिं (६) तणजोणिएहि मूर्ताह जाव बीएहिं (१०-१२) एवं ओसहीहिं वि तिण्णि आलावगा' (१३-१५) एवं हरिएहि वि तिण्णि आलावगा (१६) पुढविजोणिएहि वि आएहिं जाव कूरेहिं । (१) उदगजोणिएहिं रुक्षेहि (२) रुक्खजोणिएहिं स्वखेहि (३) रुक्ख जोणिएहि मूलेहिं जाव बीएहि (४-६) एवं अज्झोरहेहिं वि तिणि (७-६) तणेहिं वि तिषिण आलावगा (१०-१२)
ओसहीहि वि तिषिण (१३-१५) हरिएहि वि तिषिण (१६) उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहि तसपाणत्ताए बिउटति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं, उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं
१. येषां चत्वार इचत्वार पालापकास्तेषां तुतीय पालापको न ग्राह्यः ।
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३१२-४३
११५६
हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झोरुहाणं तणाणं ओसहीण हरियाणं मूलाणं जाव बीयाण आयाणं कायाण जाव कूरवाणं उदगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेतिले जीवा आहारति पुढविसरीरं जाव संतं । अवरे वि यणं तेसि रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाण तणजोणियाण ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाण कायजोणियाण जाव बूरवजोणियाण उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खल च्छिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खाय । ३।४४-७ अहीणं जाव मोहरगाणं
३७६ आतोडिज्जमाणस्स वा जाव उबद्दविज्ज. ४।२१ आयहेङ वा जाव परिवारहे
२६ आयाण जाव कूराणं
३१२२ आयारो जाव दिदिवाओ आरिए जाव सव्वदुक्ख
२०७०,७५ अट्टसालाओ वा जाव गद्दभ.
२०२८ उदगजोणिया जाव कम्म०
३२८७,८८ उदगसंभवा जाव कम्म०
३१२३,४३,८६ उदाहु..."संतेगइया
७२० उस्साणं जाव सुद्धोदगाणं
३१८५ ऊसियं जाव पडिरूवं एगखुराणं जाव सणप्फयाणं
३१७८ एवं उदगबुब्बुए भणियब्वे
२३४ एवं ओसहीण वि चत्तारि आलावगा
३.१४-१७ एवं जहा मणुस्साणं जाव इत्थि
३१७८ एवं जाव तसकाए ति भाणियन्व
४।११-१५ एवं तणजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउटैति तणजोणियंतप्पसरीरं च आहारति जाव मक्खाय
३३१२
नंदी सू०८०
२१३२ रा२३ ३८६
३२२ ७।१७ ३८५
३१७८ ११३४ ३३२-५ ३७६ ४.१०,३
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
३१५ ३१८२, चूणि, वृत्ति
११५१ ११२१,२२
३।२-५ २१४१ १२१७
११४६-७०
२१४ २०१४
एवं तणजोणिएसु तणेसु मूलत्ताए जाव बीयत्ताए विउति ते जीवा जाव मक्खायं ३१३ एवं दुरूव संभवत्ताए एवं खुरदगताए ३२८३,८४ एवं पुढविजोगिएसु तणेसु तणत्ताए विउट्ट ति जाव मक्खायं
३३११ एवं विष्णू वेदणा
११५१ एवं सद्दहमाणा जाद इति
११३७,३८ एवं हरियाण वि चत्तारि आलावगा ३११८-२१ एवमाइक्खंति जाव परूवेति
२२७८,७६;७१११ एवमेव जाव सरीरे
१११७ एसो आलोगो तहा यवो जहा पोंडरीए जाव सब्दोवसंता सब्दत्ताए परिणिबुड त्तिबेमि
२।३३-५४ कच्छसि वा जाव प०वयविदुग्गंसि
२०६ कण्हुईरहस्सिया जाव तओ
२०५६ कम्म जाव मेहुणवत्तिए
३१७८ कम्म तहेव जाव तओ
३१७७ किंचिदि जाव आसंदीपेढियाओ
१२१ किब्बिसियाई जाव उववत्तारो
७२५ किरिया इ वा जाव अणिरऐ
श२६,३६ किरिया इ वा जाव णिरए इवा जाव चउत्थे
११४५-४७ कुसले जाव पउमवरपोंडरीयं
१७ केइ जाव सरीरे
१।१७ केवले जाव सव्वदुक्ख०
२१५५ कोहाओ जाव मिच्छा०
२।५८ कोहे जाव मिच्छा.
४१३ खेत्तण्णे जाव परक्कमण्णू
१।६,१० गाहावइपुत्ताण वा जाव मोतियं
।२६ गाहावइस्स जाव तस्स
४६ गोहाण जाव मक्खायं
३८० चम्मपक्खीणं जाव मक्खायं
३१८१ चाउद्दसट्ठमुद्दिट्टपुण्णमासिणीसु जाव अणुपालेमाणा
७२१
३१७६ ७.२० २।१४ १।२०
१०२६-३१
१२६
१७ २१३२
वृत्ति
२१५८
२६
२।२४
४।५ ३१८०,२ ३८१,२
७१२०
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४
३१८६-६२
३२७६
३३७६
३१३-२१
२११२
२१५५ ओ० सू० १६३
४।१६ २१२१
२।२३
રૂર
२७७ २१७७
जहा अगणीणं तहा भाणियव्वा चत्तारिगमा ३६३-६६ जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियव्वं जाव सारूविकडं
३१८० जहा उरपरिसप्पाणं नाणतं
३१८१ जहा पुढविजोणियाणं रुक्खाणं चत्तारिगमा अज्झारोहणवि तहेव, तणाणं ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियब्वा एक्केक्के
३१२४-४२ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिते
२।५८ जावज्जीवाए जाव जे यावण्णे
२०६३ जावज्जीवाए जाव सव्वाओ
२१५८ जीवणिकाहि जाव कारवेइ
४।१६ झामेइ जाव झामतं
२।२६ झामेइ जाव समणुजाभइ
२०२८ जाणागंधा जाब णाणाविह.
३५ जाणापण्णा जाव गाणाझवसाण०
रा७७ जाणापण्णे जाव णाणाझवसाण.
२।७७ जाणावण्णा जात ते जीवा
३४ णाणावण्णा णाव भवंति
३७६ णाणादण्णा जाव मक्खायं
३॥६-६,२२,२३,४३,७७-७६,
८२,८५-८६,६७ णाणाविहजोणिया जाव कम्म०
३.८५,८६,९३,९७ जो पाराए जाव सेयंसि
११८ तं चेव जाव अगारं वएज्जा
७.१६ तं चेव जाव उवट्ठावेत्तए
७१६ तालिजमाणा वा जाव उद्दविज्जमाणा ४.२१ ते तसा'ने चिर जाव अपि भेदे से...
७.२६ दंडगं वा जाव चम्मछेयणगं
२०३० दंडणाणं जाव नो बहूर्ण
રાહ दंडेण वा जाव कवालेण
११५६;४।२१ दुक्खइ वा जाव परितत्पइ दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु दुक्खामि वा जाव परितप्पामि
१२४३ धम्माणं जाव णाणाझवसाण.
ર૭૭
३.२
श२
३८२
७१८ ७.१८ १९५६ ७२० રા २१७८
११४२ ११४२ १४२ २७७
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१७१ ओ० सू० १६१
२०६३ ओ० सू० १६१
७.२० श२१,२२
७.१६
११२३-२५
११५६ ओ० सू० १७१
११४७
११४७
धम्माणुया जाव एग्गच्चाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया
२४ धम्माणुया जाव धम्मेणं
२०७१ धम्माणुया जाव सव्वाओ
७२३ धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं
१६३ पउमवरपोंडरीयं जाव सव्वं परिग्गहं १११० पच्चक्खाइस्सामो जाव सव्वं परिग्गहं
७१२१ पत्तियमाणा जाव इति
२३०,३१ परियाए जाव णो धोयाउए
७३० पवालाणं जाव बीयाण
३१५ पाईण वा जाव सुयक्खाते
२३२-३४,३६-४१ पाणाइवाए जाव परिग्गहे
४।३ पाणाइवायाओ जाव विरए
१५५६ पाणा जाव सत्ता
११५६,५७,२।७८ पाणा जाव सत्वे
४.२१ पाणाणं जाव सत्ताण
४।१७ पाणाणं जाव सम्वेसि
४।५,६,१७ पाणावि जाव अयं.......
७।२६ पाणावि जाव अयं पिभे.....
७।२६ पाणा वि जाव अय पिभेदे ...
७.२६ पासादिए जाव पडिरूवे
११३ पासादीया जाव पडिरूवा पुढविकाइया जाव तसकाइया
४१३,२१ पूढविकाइया जाव वणस्सइकाइया
४।१७ पुढविकाए जाव तसकाए
११५६ पुढविकाए जाव पुढविमेव
१३३४ पुढविसंभवा जाव कम्म
३।२२ पुढविसंभवा जाव गाणाविह
३।१० पुढविसरीरं जाव संतं
३।२२.२३,४३,७७-७६
८१,८२,८५-८६, १७ पुढविसरीरं जाव सारूविकड
३६,७,८,७६ पुढवीणं जाव सूरकताणं
३१६७ पुरिसत्ताए जाव विउट्ट ति
३७८ परिसस्स जाव एत्थ णं मेहणे एवं तं चेव नाणत्तं ३७६
११४७
७१२० ७२० કાર
११
७५
१।१
११५६
ठाणं ७।७३
११३४
३०२
३३२
३।६७ ३१७६
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
६
११३४ ११३४ १॥३४ ७२२७ ७१३४ ७।२६ २०१६ ३१७७
श३४ ११३४ ११३४ ७१६ ७।३४ ७.२०
२११६ पष्ण०१
२०७३,७४ २१६६ ७४२० २१२५,३० ७१२८ २१२२,२३,२४,२६ ३.६ ३९
२।६९,७०
२०६६ ७१६ २०१६ ७१६
१११६
३३५
पुरिसादिया जाव अभिभूय पुरिसादिया जाव चिट्ठति पुरिसादिया जाब पुरिसमेव बहुयरगा जाव णो णेयाउए बोहिए जाव उवधारियाणं भवित्ता जाव पव्वइत्तए भेत्ता जाव इति मच्छाणं जाव सुंमुमाराणं महज्जुइएसु जाव महासोक्खेस सेसं तहेव जाव एस ढाणे आयरिए जाव एगंतसम्मे महज्जुझ्या जाव महासोक्खा महया""जं णं तुम्भे वयह त चेव जाव अयं महया जाव उवक्खाइत्ता महया जाव णो णेयाउए मह्या जाव भवति मूलत्ताए जाव बीयत्ताए मूलाणं जाव बीयाणं रुइला जाव पडिरूवा वुच्चंति जाव अयं दूच्चंति जाव णो णेयाउए वुच्चंति ते तसा ए महा ते चिर ते बहुतरगा आयाणसो इती से महता जेणं तुम्भे णो णेयाउए समणुजाणइ"""1 समणोवासगस्स जाव णोणेयाउए सरीरं जाव सारूविकडं सव्वपाणेहि जाव सत्तेहिं सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहिं सिज्झिस्संति जाव सन्ध० सिणेहमाहारेंति जाव अवरे सिणेहमाहारति जाव ते जीवा सिया जाव उदगमेव सिया जाव पुढविमेव सेए जाव विसपणे
७२१ ७।२३,२४,२५
७।२० ७/२०
७.२० २।१६
७.२२ २१२७ ७।२६ ३१५ ७११८, ७.१८,२६ २१७६
२२ ११४७ १२४७
२१८० ३२ ३२२
३।१० ११३४ १३४
११३४ १।३४
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
१
३१८६-८८
४।१७ ११५२
सेए जाव सेयंसि सेसा तिणि आलावणा जहा उदगाणं सोयण जाव परितप्पण सोयाओ जाव फासाओ सोयामि वा जाव परितप्पामि हंतव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा हंतव्वा जाव कालमासे हंता जाव आहार हंता जाव उवक्खाइत्ता
३१९०-१२,९८-१०० ४.१७ ११५२ ११५६ ४।२१ ७१२५ २०१६ २।१६,२०
२२४२ ११५६ २।१४ २०१६ २०१६
ठाणं
७।२६ ४|४५०
अइवाइत्ता भवति जाव जधावाती अगारातो जाव पव्वतिते अट्ठ एवं चेव अड्डाई जाव बहुजणस्स अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे अणत्तरे जाव केवलवर० अणुत्तरे जाव समुप्पणे अणुत्तरे जाव समुप्पणे अणुसोतचारी जाव सब्वचारी अत्थि जाव समुप्पणे अपढमसमयणेरतिता एवं जाव अपढम० अपढमसमयणेरतिता जाव अपढमसमयदेवा अब्भोवगमिओ जाव सम्म अमणुण्णा सदा जाव फासा अमणण्णे जाव साइमे अमुच्छिए [ते] जाव अणज्झोववणे अयगोलस माणे जाव सीसगोल. अरहतेहि तं चेव अरहा जाव अयं अवट्टिते जाव दव्वओ अवलेहणित जाव देवेसु अविसेस जाव पुव्वविदेहे
८।१० ४.४५१ ५२९७ ६।१०५ १०।१०३ ५।१६६ ७२ ८।१०५ ६१०:१०११५३ ४।४५१ १०११४० ८.४२ ३१३६२४१४३४ ४१५४६
७.२८ ३२५२३ ८.६५
वृत्ति ४।४५० ५१८४
५१८४ १०।१०३
१६६
७२ ५१७५ ५११७५ ४.४५१
८४२
४१५४६
१०११०६ ५२१७४ ४।२८२ २।२७०
५११९५:१०।१०६
५।१७० ४।२८२ २।२६८
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८
२१२७२ ७.१३१ ४।५४८ २११०२
अविसेस मणाणत्ता जाव सहावाती
२।२७४ असावज्जे जाव अभूताभिसंकणे
७।१३३ असिपत्त समाणे जाव कलंबचीरिया
४/५४८ असूयणिस्सिते वि एमेव
२२१०३ असुरकुमाराणं वग्गणा चउवीसं दंडओ जाव
१४१४३-१६३ असोगवणं जाव चूयवणं
४॥३४० अहासुत्तं जाव अणुपालिता
८.१०४ अहासुत्तं जाव आराहिया
७.१३;६।४१:१०:१५१ अहीणस्सरे जाव मणामस्सरे
८५१० आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइकाइओगाहणा १११ आउखएणं जाव चइत्ता
पा१० आग मे जाव जीते
५१२४ आममेणं जाव जीतेणं
५१२४ आघवइत्ता जाव ठावतिता
३१८७ आढाति जाव बहुं
८.१० आधाकम्मितं वा जाव हरितभोयणं हा६२ अभिणिबोहियणाणावरणिज्जे जाव केवल० ५२१६ आभिणिवोयि |त] णाणी जाव केवल आमलग महुरफलसमाणे जाव खंडमहर०
४।४११ आयार जाव दिट्टिवायं
१०।१०३ आरंभिता जाव मिच्छादसणवत्तिता ५११७ आलोएज्जा जाव अस्थि
८.१० आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा
३१३४२,३४३,८।१० आलोयणारिहे जाव अणवट्टप्पारिहे
१०१७३ आलोयणारिहे जाव मूलारिहे
६।४२ आवत्ते जाव पुक्खलावती
८।६६ आसपुरा जाव वीतसोगा
८७५
२१३५४-३६२,४१३६६
४॥३३६ ७।१३ वृत्ति ८.१० ७।१३ ८.१० ५।१२४ ५५१२४ ३।८७ ८।१० ६.६२ ५२२१८ ५२२१८
४।४११ समवाओ ११२
५३११२
८१० ३१३३८ ६४२
८.२० २।३४० २।३४१
१. वृत्तो किम्वद् भेदने लभ्यते-१३-प्रहामुत्तं यावत्करणात अहाअत्यं महातच्च अहामगो महाकल्प सम्म
कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया पाराहिया ति (पन्न ३६८) 1८1१०४--'अहासुता ग्रहाकप्पा अहामरगा प्रहातना सम्म कारण फासिया पालिया सोहिया तोरिया किट्ठिया आराहिया' इति यावत्करणात् दृश्य अणुपालिय' ति (पत्र ४१७) । ६।१४१ --यथासूत्रं यथाकल्प यथामार्ग' यथातत्त्वं सम्यक् कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीत्तिता पाराधिता चापि भवतीति । (पत्र ४३०) १०.१५१ --ग्रहासुतं ....."यावस्करणात् अहा अत्थं प्रहातच्चं महामन्मं महाकप्पं सम्यक्कायेन, फासिया पालिया शोधिता शोभिता वा तीरिया कीत्तिता अराधिता भवति (पन्न ४६२) ।
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६
४।४५०
४।४५०
४।४५० ४।४५० ४१४५० १०७२ १०११०५ १०.२६ १४ ५२२० ५।१०५,१०६ ४१४३४ १०.१४ १०११४६ हा६२ ४६५६ ४४
४।४५०
पा१८ ४।५७८ ५॥२२३
है।३ ५।१६ ५।१०४ ४१४३४
१०११३ २।३८०-३८४
वृत्ति
४१६५४
४१४
आसाएइ [ति जाव अभिलस ति आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे आसाएमाणे जाव मणं आहारवं जाव अवातदंसी आहारसण्णा जाव परिग हसण्णा इदा जाव महाभोगा इ दियाई जाव णिज्झा इत्ता इदेथावरकाताधिपती जाव पातावच्चे इच्चेतेहिं जाव णो धरेज्जा इच्चेतेहि जाव संचातेति इरिताऽसमिती जाव उच्चार० ईसाणे जाव अच्चुते उज्जलं जाव दुरहियासं उत्तरासाढा एवं चेव उण्णए णाम उण्णत्तावत्तसमाणं माणं एवं चेव गूढावत्तसमाणं मातमेवं चेव उप्पण्णाण जाव जाणति उप्पायणविसोहि जाव सारक्खणविसोहि उम्मीवीची जाव पडिबुद्धे उरगजाति पुच्छा उवचिण जाव णिज्जरा उरि जाव पडिबुद्ध उवहिअसंकिले से जाव चरित्त० एगिदितेहिंतो वा जाव पंचिदिय० एगिदियत्ताते वा जाव पंचिदियत्ताते एगिदियअसंजमे जाव पंचिदिय० एगिदियणिवित्तिते जाव पंचिदिय० एगिदियसंजमे जाव पंचिदिय० एगिदिया जाव पंचिंदिया एते चेव एते तिण्णि आलावगा भाणितव्वा
४१६५३
७७८
१०८५ १०११०३ ४।५१४ ८।१२६६७२ १०।१०३ १०॥८७ ५।२०५ ५।२०५ ५११४५ ५२२३८ ५११४४ श१८०,२०४।६।११ ५॥१७६ १०।१५६ २।१६८ २२५६
५११६५ १०८४ १०११०३ ४।५१४
३१५४० १०।१०३
१०१८६ भ० २११३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६
५१७८ १०।१५६ २।१६७ २।२५५
एवं
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०
२१४६२ ३१३२२ ३१४७५
२।४६१ ३१३२१ ३१४७४
एवं
६३८
६।३५ २।१० ३।४२२
४११६६-२१०
२।८४
एवं अग्गिच्चावि एवं रिट्ठावि
६.३६,३७ एवं अजोगिभवत्थकेवलणाणे वि
२।६१ एवं अणुण्णवेत्तए उवाइणित्तए
३१४२३,४२४ एवं अजरूवे अज्जमणे अज्जसंकप्पे अज्जपण्णे अज्जदिट्ठी अज्जसीलाचारे अज्जववहारे अज्जपरक्कमे अज्ज वित्ती अज्जजाती अज्जभासी अज्जओभासी अज्जसंवी अज्जपरियाए अज्जपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेण भणिया तहा अजेण वि भाणियब्वा ।
४।२१३-२२७ एवं अणभिग्गहितमिच्छादसणे वि
रा८५ एवं असंकिलेसे वि एवमतिक्कमे वि वइक्कमे वि अइयारे वि अणायारे वि ३।४३६-४४३ एवं असंयमो वि भाणितव्यो
१०१२३ एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३ एमीतेगे सु३ एस्सामीति एगे सुमणे भवति ३।१९५-१९७ एव उवसंपया एवं विजहणा
३।३५३,३५४ एवं एएणं अभिलावेणं-- संगहणी-गाहा गंता य अगता य, आगंता खलु तहा अणागंता । चिद्वित्तमचिद्वित्ता', णिसितिता' चेव णो चेव ॥१॥ हता य अहंता य, छिदित्ता खलु तहा अछिदित्ता। बुतित्ता अबुत्तिता, भासित्ता चेव णो चेव ।।२।। 'दच्चा य अदच्चा" य, जित्ता खलु तहा अभुंजित्ता। लभित्ता अलभित्ता, पिबइत्ता' चेव णो चेव ॥३॥
३१४३८ १०१२२
३।१८६-१६१
३२३५१
१. चिट्टित्त न चिट्ठित्ता (क) । २. णिसिंतत्ता (क, ख)। ३. दत्ता प्रदत्ता (क) ! ४. पिवइत्ता (क, ग); पिइता (क्व) ।
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१
सुतित्ता असुतित्ता, जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झिता । जतित्ता अजयिता य, पराजिणित्ता चेव णो चेव ||४|| सद्दा रूवा 'गंधा, रसा य" फासा तहेव ठाणा य । णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पुण सीलवंतस्स || ५ || एवमिahar तिथिण उ तिष्णि उ आलावगा भाणियब्वा ।
एवं एसा गाहा फासेतव्वा, जावससरीरी चेव असरीरी चैव
सिद्धसइंदियकाए, जोगे वेए कसाय लेसा य । णाणुवओगाहारे, भासग चरिमे य ससरीरी ॥ १ ॥ एवं ओप्पणीए नवरं पण्णत्ते आगमिस्सा उस्सप्पिणीए भविस्सति
एवं कंता पिया मणुण्णा मणामा
एवं कुलसंपणेण य बलसंपणेण य कुलसंपणेण य रूवसंपणेण य कुलसंपण्णेण य जयसंपण्णेण य
एवं कुलेण य रूवेण य कुलेण य सुतेण य कुलेण त सीलेण य कुलेण य चरितेण य एवं गंधाई रसाई फासाई जाव सव्वेण वि एवं गंधा रसा फासा एवमिक्किवके छ-छ आलावगा भाणियव्वा
एवं
भंगो
एवं चक्कवट्टिवसा दसारवंसा
एवं चक्वट्टी एवं बलदेवा एवं वासुदेवा जाव उपज्जिस्संति
एवं चिति एस दंडओ एवं चिणिस्संति एस दंडओ एवमेतेणं तिष्णि दंडगा
एवं चेव
एवं चैव
एवं चेव
एवं चेव
एवं चैव
१. रसगंधा (ग) 1
३।१६८- ९८४
२४१०
३१११०,१११
२/२३३
४१४७४-४७६
४१३६७-४००
१०१३
२१२३०-२३८
४:२५०
२।३१०,३११
२।३१३-३१५
४१६३, ६४
३१४८४
४४२७
४६१७
४१६१६
५:१६१
संग्रहणी-गाहा; ३।१८६-१९४
संग्रहणी - गाहा
३|१०६
२२३२
४/४७१-४७३
३।३६६
१०।३२।२०३,२०४
२।२३४
४२५०
२।३०६
२३१२
४६२
३२४८३
४४२६
४२६१७
४:६१८
५११५६
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
६।२५ ८१४८ का१२३
४१४८३ ६२८१
५1८४ ६।२५
एवं चेव
५।१६२ एवं चेव
६२६ एव चेव
८.४६,५० एवं चेव
का१२४ एवं चेव
१०१६४ एवं चेव एवं तिरियलोए वि
४१४८४,४८५ एवं चेव एवं फासामातो वि
६८१ एवं चेव एवमेतेणं आभिलावेणं इमातो गाहातो अणुगंतव्वातो-- पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पुवाइं आसाढा, सीयलस्सुसर विमलस्स भद्दवता ॥१॥ रेवतित अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवतीतो य ॥२॥ मुणिसुब्वयस्स सवणो, आसिणी णमिणो य णेमिणो चित्ता। पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्यूत्तरे वीरो ॥३॥ १८६-६६ एवं चेव जाव छच्च
६१२७ एवं चेव णवर खेत्तओ लोगालोग्गपमाणमिते मुणतो अवगाहणागुणे सेसं तं चेव
५११७२ एवं चेव णवर गुणतो ठाणगुणे
५।१७१ एवं चेद णवर दवओणं जीवस्थिगाते अणंताई दवाइं अरूवि जीवे गुणतो उवओगगुणे सेसं तं चेव
५।१७३ एवं चेव मणस्सावि
४।६१५ एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ जाव दूसमदूसमा
३.६० एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ जाव सुसमसुसमा
३१६२ एवं जधा अटुट्ठाणे जाव खते
१०७१ एवं जधा छुट्टाणे जाव जीवा
८।१४ एवं जधा पंचट्ठाणे जाव आयरिय एवं जघा पंचट्ठाणे जाव बाहिं
७८१ एवं जहण्णोगाहणगाणं उक्कोसोगाहणगाणं अजहणुक्कोसोगाहणगाणं जहण्णठितियाणं उक्कस्सटुितियाणं अजहण्णुक्कोसठितियाणं
५।१७०
५।१७० ४१६१४
१।१२८-१३३
१११३५-१४०
८.१६
५४८ ५।१६६
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३
१२३८-२४६
११२३५.२३७
४।१२-२१
४॥२.११
३।२७
३।२६
४१३७६-३७८
४।३७२-३७४
४।४४२-४४६
३७६-८६
५१५७ ३१७०
३७१
जहण्णगुणकालगाणं उक्कस्सगुणकालगाणं अजहष्णुक्कस्सगुणकालगाणं एवं जहा उण्णत पणतेहिं गमो तहा उज्जु वकेहि वि भाणियव्यो जाव परक्कमे एवं जहा गरहा तहा पच्चक्खाणे वि दो आलावगा एवं जहा जाणेण चत्तारि आलावगा तहा जग्गेणवि पडिवेक्खो तहेव पूरिसजाया जाब सोभेति एवं जहा तिट्राणे जाव लोगतिता देवा माणुस्सं लोग हव्वमागच्छेज्जा तं जहा अर इंतेहिं जायमाणेहिं जाव अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु एवं जहा पंचट्ठाणे जाव किण्णरे एवं जहा विज्जुतारं तहेव थणियसपि एवं जहा हयाणं तहा गयाणं वि भाणियव्वं पडिवेक्खो तहेब पुरिसजाया एवं जाइस्सामीतगे सुमण भवति एवं जातीते य रूवेण य चत्तारि आलावगा एवं जातीते य सुएण य एव जातीते य सीलेण य एवं जातीते य चरित्तेण य एवं जाव अपढमसमयपंचिदिता एवं जाव एगा एवं जाव कम्मगसरीरे एवं जाव काउलेसाणं एवं जाव केवलणाणं एवं जाव घोसमहाघोसाणं णेयव्वं एवं जाव जहा से एवं जाव तिणिस० एवं जाव दुविहा एवं जाव पच्चुप्पणाणं एवं जाव फासाई एवं जाव फासामतेणं एवं जाव फासामातो एवं जाव फासामातो
४।३८५-३८७ ३११६१
४।३८१-३८३
३॥१८६
४१३६२-३६५ १०।१५२ १२१६-२२६ ५।२७-३० २।१६८ २१५३-६२,३।१६३-१७२ ७।११७,११८ ५६१२४ ४।२८३ २११२४-१२६ ७१७ १०१४ १०१२२ ८.३३
५।१४५ पण्ण०१ ५।२५,२६
१।१६२ २१४२.५१ ५२६२,६३
५।१२४ ४२८२,२८३
७७३
७१६ १०१३
८।३३
६।८१ ६१८२
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
४७५,७६ ४१७५,८० ४७५,८४ ४७५,८८
२११२४-१२७
१०३
५११७५ समवाओ ६१
४१३५४
४३७२-३७४
४१५८
एवं जाव मणपज्जवणाणं
२१४०४ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४७७-७६ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४१८१-८३ एवं जाव लोभे देमाणियाण
४१८५-८७ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४८६-६१ एवं जाव वणस्सइकाइया
२११२६-१३२,१३४-१३७
१३०-१४३ एवं जाव सव्वेण वि
१०१५ एवं जाब सिद्धिगती
१०६६ एवं जाव सुक्कलेसाणं
१११६३-१६५ एवं जाव सेलोदग
४१३५५ एवं जुत्तपरिणते जुत्तरूवे जुत्तसोभे सन्वेसि पडिवेक्खो पुरिसजाता
४३८१-३८३ एवं णिरयाउअंसि कम्मंसि अक्खीणंसि जाव जो चैव
४/५८ एवं गैरइयाणं जाव वेमाणियाणं एवं जाव मिच्छादसणसल्लाणं
२०४०७ एवं सत्थियावि
२।२८ एवं णो केवलं बभचेरवासमावसेज्जा णो केवलं संजमेणं संजमेज्जा णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा एवं सुयणाणं ओहिणाणं मणपज्जवणाणं केवलाणं
२०४४-५१ एवं तिरियलोग उड्वलोगं केवल कप्पं लोगं २।१९४-१९६ एवं तिरियलोग उनलोगं केवलकप्पं लोग
२।१९८-२०० एवं तेइ दियाणं वि चरिंदियाणं वि
११८१-१८४ एवं थावरकाए वि
२११६६ एवं दसणाराहणा वि चरिताराहाणा वि ३१४३६,४३७ एवं दीणजाती दीणभासी दीणोभासी ४२०५-२०७ एवं दीण मणे दीणसंकप्पे दीणपण्णे दीणदिट्री दीणसीलाचारे दीणववहारे ४.१६७-२०२ एवं दीणे णाम मेगे दीणपरियाए एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाले सम्वत्थ चउभंगो ४।२०६,२१०
१।६७-१०७:२।४०६
२१२७
२१४३ २।१६३
२११६७ १।१७६,१८०
।१६५ ३१४३५
४११६५
४१६५
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५
४१४३५,४३६
२११५३ ३७६
३१५१५,५१६
१२२३ ४।३-११
२०१५ ३१५३२
२०२१ २१४४३
२।३६८
एवं देवंधगारे देवुज्जोते देवसणिवाते देवुक्कलिताते देवकहकहते
४।४३७-४४१ एवं देवाणं भाणियव्वं
२।१५४ एवं देवुक्कलिया देवकहकहए
३७७,७८ एवं दोग्ग तिगामिणीओ सोगतिगामिणीओ संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ अमणुण्णाओ मणुण्णाओ अविसुद्धाओ विसुद्धाओ अपसत्थाओ पसत्थाओ सीतलुक्खाओ णि ण्हाओ ३१५१७,५१८ एवं पडिसडंति विद्धसंति
२।२२४,२२५ एवं परिणते जाव परक्कमे
५१३६-४४ एवं परिग्गहिया वि
२०१६ एवं पासे वि
३१५३३ एवं पुट्टियावि
२०२२ एवं पुन्वफग्गुणी उत्तराफग्गुणी
२।४४५,४४६ एवं फुरित्ताणं एवं फुडित्ताणं एवं संवट्टइत्ताणं एवं णिवट्टतित्ताणं
२।३६६-४०२ एवं बलसंपण्णण य रूवसंपण्णण य बलसंपण्णण य जयसंपण्णेण य सम्वत्थ पुरिसजाया पडिवक्खो
४१४७७,४७८ एवं बलेण य सुतेण य एवं बलेण य सीलेण य एवं बलेण य चरित्तेण य
४।४०२-४०४ एवं मणुस्साणवि एवं मोहे मुढा
२।४२२,४२३ एवं मोहे मूढा
३३१७८,१७६ एवं रज्जति मुच्छंति गिझंति अज्झो
५७-१० एवं रूवाई गंधाइरसाई फासाई एक्केक छ-छ आलावगा भाणियव्वा
३१२६१-३१४ एवं रूवाइपास गंधाइ अग्घाति रसाई आसादेति फासाइ पडिसंवेदेति
२।२०२-२०५ एवं रुवेण य सीलेण य एवं रुवेण य चरितण य .
४१४०६,४०७ एवं वइक्कमाणं अतिचाराणं अणायाराणं ३१४४५-४४७ एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ
४।४७२,४७३
४१४०१
२१४०१ ३।१७६
ववज्जति
३।२८५-२६०२।२०२-२०५
२।२०१
४.४०५
३१४४४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं वाणमंतराणं एवं जोइसियाणं एवं विततेवि
एवं विसोही
एवं वेदेति एवं णिज्ज रेंति
एवं वेयावच्चे अणुग्गहे अणुसट्ठी उवालंभे एवमेकेके तिष्णि तिण्णि आलावा जहेव उक्कमे
एवं संकप्पे पण्णे दिट्ठी सोमाचारे
ववहारे परक्कमे एगे पुरिसजाए afsaral afte
एवं सक्कारे सम्माणेति पुएइ वाएइ पच्छिति पुच्छ वागरेति
एवं सम्मद्दिट्ठि परित्ता पज्जत्तम सुहुम सण्णि भविया य
एवं सव्वेसि चउभंगो भाणियव्वो
एवं सामंतोवणिवाइयावि
एवं सुंदरी वि
एवं सुत्तेण य चरितेण य
एवं मज्भोवज्जणा परियावज्जणा एवमणारंभे वि एवं सारंभे वि एवमसारंभ वि एवं समारंभे वि एवं असमारंभे वि जाव अजीवकाय असमारंभ एवमणुण्णवत्तते उवातिणित्तते
एवमज्जा अज्झा अगिज्झा अड्डा
अमज्झा अपएसा
एवमाधारातिणिताते
एवमासणाई' चलेज्जा सोहणातं करेज्जा लुक्लेव करेज्जा
एवमिट्ठा जाव मणामा
एवमिमी से ओसप्पिणीए जाव पण्णत्ते
एवं आगमिस्साए उस्सप्पिणीए जाव भविस्सति
एवमेगसमपठितिया
२६
७।१०७,१०५
२२१७
३४३३
२/३६६, ३६७
६।४१२-४१५
४।६-११
४१११३ ११६
३।३१८
४२०३
२/२५
५।१६३
४४०६
३१५०६, ५१०
७१८५-८६
३१४२०, ४२१
३।३२६-३३४
५/४६
३८२-८४
२।२३४,२३५
२ ३१०,३११
१।२५५
७ १०६
२२१६
३।४३२
२४३६५
३/४११
४५
४|१११
३।३१८
४१६५
२।२४
५।१५६
४/४०८
३।५०८
७ ८४
३/४१६
३।३२८
५।४८
३।८१
२।२३३
२३०६
११२५४
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
३१४१८
५।१०८
एवमेतणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्वा - सवर्ण जाणे य विण्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे । अणण्णहते तवे चेव वोदाणे अकिरिय णिव्याणे॥ जाव से णं भंते !
३।४१८ एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरिसप्पावि भाणियन्वा भूजपरिसप्पा वि भाणियव्वा एवं चेव
३१४२-४७ एवमेतेणं गमएणं दित्तचित्ते जक्खाति? उम्मायपत्ते
५११०८ एवमेतेणमभिलावेणं चत्तारि कसाया पंतं कोहकसाए ४ पंचकामगुणे पं तं सद्द ५ छज्जीवनिकाता पं तं पूढविकाइया जाव तसकाइया एवामेव जाब तसकाइया
६।६२ कते जाव मणामे
८।१० कंदे जाव पुप्फे
१०.१५५ कक्खडे जाव लुक्खे
११८४-८९ कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा
६।४७,४८,७१७३ कालोभासे जाव परमकिण्हे
९६२ किण्हा जाव सुक्किला
५।२३,२२५ किण्हे जाव सुक्किले
५२६,२२८ किरियावादी जाव वेणइयावादी
४।५३१ कंडला चेव जाव रयणसंजया
८७४ कुलमतेण वा जाव इस्सरिय०
१०1१२ केवली जाणइ पासई जाब गंधं
८।२५ कोहअपडिसंलोणे जाव लोभ०
४।१६१ कोहकसाई जाव लोभकसाई
५/२०८ कोहणिव्वत्तिए जाव लोभ०
४.६२५ कोहमुंडे जाव लोभमुंडे
१०।६६ कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्ल. १२११५-१२५ कोहसण्णा जाव लोभसण्णा
१०।१०५ कोहे जाव एगे
१९७,६८ खिप्पमवेति जाव असंदिद्ध० खेमपुरी जाव पुंडरीगिणी
८७३
६।६२ ८।१० ८।३२
८।१३ समवाओ ६१
वृत्ति २३
४१५३० २१३४४ ८१२१ ७१७८ ४।१६० ४/७५ ४१७५ ५३१७७ १९९७-१०७
४/७५ ४/७५
२।३४१
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५
७५६ ८।११५ ७।१३६ ४।२५२ ३१४४४ ४।३ ४।१२ ४१४५ ४१४६८ ४.६११
७१५२ पइण्णगसमवाय सू०४५
७१३५ ४१२८२ ३१३३८
४३ ४११२ ४।२४ ४१४६८
४.४५-५४ ४१२४-२६ ४२७-३३
गंगा जाव रत्ता गतिकल्लाणं जाव आगमे० गमणं जाव अणाउत्तं गोमुत्ति जाव कालं गरहेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो चउभंगो एवं जहेव सुद्धेणं वत्थेणं भणित तहेव सुतिणा वि जाव परक्कमे चउभंगो एवं परिणतरूवे वत्था सपडिवक्खा चउभंगो एवं संकप्पे जाव परक्कमे चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे चिण जाव मिज्जरा चित्तविचित्तपक्खगं जाव पडिबुद्धे चुल्ल हिमवंते जाव मंदरे जधा सालीणं जाव केवतितं जह पंचट्ठाणे जाव परिहरणोवघाते जहा दोच्चा णवरं दीहेणं परितातेणं जहेव णेसत्थियाओ जाणइ जाव हे जाणइ (ति) जाव हेउणा जाणइ जाव अहेउ जाणति जाव अहेउणा जातिणामणिहत्ताउते जाव अणुभाग० जातिसंपण्णे जाव रूवसंपण्णे जायमाणेहिं जाव तं चेव जाव केवलणाणंउप्पाडेज्जा जाव चउरिदियाणं जाव दवा जिणे जाव सव्वभावेणं जीवणिकाएहिं जाव अभिभवई
४१२४-३३
४॥२-४ ४१५-११
७७६ ३१५४० १०।१०३
७१५१
३३१२५ ५।१३१
७१५३ १०.१०३ ७५५ ५।२०६ १०१८४ ४१ २।३०,३१
ভও ५७६,७८ ५७६,८१ ५।००,८२ ६.११७ ४२२६ ३५१
२०६४-७३ १२।१५७,१५८ २।१४६-१५०
रा२८ ५/७५ ५७५
१७५ ५७५
४।२२६
३१७६
२।४२-५१ १।१५८,२११५६ २११४०-१४४
५।१६५ ३३५२३
३१५२३
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४
५.१०७ ५३४
५११०७ ५।१०३
श२२
५११०४ आयारचूला ११२८
RREEEEE
ठाणं वा जाव णातिक्कमंति
५।१०७ ठाणाइं जाव अब्भणुण्णायाई
५।३७-४२ ठाणाइजाव भवंति
५.४२,४३ ठाणेहि जाव णातिक्कमति ठाणेहिं जाव धरेज्जा
५।१०३ ठाणेहि जाव को खंभातेज्जा
५२२ ठाणेहिं जाव णो धरेज्जा
५।१०४ जगरंसि वा जाव रायहाणिसि
५।१०७ जग्गभावं जाव लद्धावलद्धवित्ती
६४६२ णमसामि जाव पज्जुवासामि णाणत्तं जाव विउवित्ता
७.२ मासि जाव णिच्चे
५१७४ णिक्कखिए जाव परिस्सहे
३३५२४ णिग्गथीण दा जाव णो समुप्प०
४।२५४ णिग्गंथीण वा जाव समुप्प०
४।२५५ णिग्गंथे जाव णातिक्कम
५१०२ णियमं जाव परति
६।१२२ णिस्संकिते जाव णो कलुससमावणे ३३५२४ णिस्संकिते जाव परिस्सहे.
३१५२४ जेरइयत्ताए वा जाव देवत्ताए
४१६१४ णेरइया जाव देवा
५।२०८ रतिआउते जाव देवाउते
४।२८६ णेरतिते जाव णो चेव
४।५८ रतियणिव्वत्तिते जाव देवणिवत्तिते
७.१५३ णेरतिय भवे जाव देवभवे
४१२८७ रतियसंसारे जाव देवसंसारे
४।२८५ णो आलोएज्जा जाव गोपडिवज्जेज्जा ३।३४०८।१० णो आसाएति जाव अभिलसति ४१४५१ णो चेव णं जाव करिस्सति
४.५१४ गो पडिक्कमेज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा ६।३३६८९ णो महिड्डिए जाव णो चिरद्वितिते
बा१० णो महिड्डिएसु जाव णो दूरंगतितेसु ८.१० तं चेव
४॥२३८ तं चेव
४।२३६
३१३६२
७२ ५११७० ३३५२४ ४१२५४ ४।२५५ ५१०२ ६१११६ ३३५२३ ३१५२४ ४१६१४ ४.६०८ ४।६०८
४१५८ ७१७१ ४।६०८ ४॥६०८ ३।३३८ ४।४५० ४१५१४ ३१३३८
८.१० २।२७१
४।२३
४१२३
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
३०
तं चेव जाव संकिण्णे
४।२४० तं चेव विवरीतं जाव मणुण्णा फासा १०।१४१ तंजहा जाव मिच्छादसणवत्तिया
५११३ तत्थेगओ जाव णातिक्कमति
५११०७ तयक्खायसमाणे जाव सारक्खायसमाणे तलवर जाव अण्णमण्ण
६६२ तहेव
४१४२८ तहेव
४।५६३ तहेव
Y1 ୫୪ तहेव चउभंगो
४॥४ तहेव चत्तारिगमा
४।४२६ तहेव जाव अवहरति
५७३,७४ तहेब जाव पणते
४.२ तहेव जाव हलिद्द०
४।२८४ तित्ता जाव मधुरा
५५४,३३ तित्ते जाव मधु (हु) रे
५२६,२२८ तिरियगती जाव सिद्धिगती दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं चेव
२।४२५ दिणयरं जाव पडिबुद्धे
१०११०३ दुभिक्खंसि वा जाव महता
५१९१ दुस्समदुस्समा जाव एगा
१११३६-१३६ दस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा
६२४ देवलोगे [ए] सु जाव अणभोववणे ३१३६२,४।४३४ दो अदाओ एवं भाणियन्वं-- संगहणी-गाहा कत्तिया रोहिणिमगसिर 'अद्दा य' पुणव्वसू अ पूसो य । तत्तोऽवि' अस्सलेसा महा य दो फरगुणीओ य ॥१॥ हत्थो चित्ता साई विसहिा तह य होति अणुराहा । जेट्ठा मूलो पुत्वाऽऽसाढा तह उत्तरा चेव ॥२॥
४।२४० १०.१४० ५३११२ ५.१०७ ४/५६ ६।६२ ४१४२६ ४१५६३ ५५६४
४४ ४।४२६ ५।७३
४।२ ४१२८४,२८२
११७६-८१
२४
५।१७५ २।४२४ १०।१०३
५८
१११३६-१३६
१. कत्तिय (कप)। २. अद्दाओ (क, ग)। ३. तत्तो य (क, ग)। ४. साई य (क, ख, ग)।
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--------------------------------------------------------------------------
________________
संगहणीगाहा
वृत्ति चंद० १०११
५।१६५
६४
७७८
८।२५ १०.१०३
६।६२ ६६२ ३।३३८
अभिई सवणे धणिट्रा, सयमिसया दोय होंति भद्दवया । रेवति अस्सिणि भरणी, णेयव्या अणुपुवीए ॥३॥ एवं गाहाणुसारेणं णेयव्वं जाव दो भरणीओ। २३२३ दोसे जाव एगे
१११०२-१०४ धणिट्टा जाव भरणी धम्मत्थिकांतं जाव परमाणपोग्गलं
५१६५ धम्मत्थिकातं जाव सई धम्मत्थिकायं जाव गंध
७१७८८।२५ धम्मत्थिगातं जाव वातं
१०११०६ पउमसरं जाव पडिबुद्धे
१०११०३ पचमहव्वतितं जाव अचेलगं
हा६२ पंचाणुव्वतितं जाव सावगधर्म
६।६२ पडिक्कमेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा
३।३४१ पढमसमयएगिदियणिबत्तिए जाव पंचिदियणिव्वत्तिए
१०१७३ पढमसमयणेरतितणिव्वत्तिते जाव अपढम० ८।१२६ पणगसुहुमे जाव सिणेहसुहुमे
१०.२४ पण्णवेति जाव उवदंसेति
१०११०३ पण्णवेहिति........."
६।६२ पमिलायति जाव जोगी
७६० पमिलायति जाव तेण परं
५।२०६ पम्हकूडे जाव सोमणसे
१०११४५ पम्हे जाव सलिलावती
८.७१ परिताले जाव पूतासक्कारे पल्लाउत्ताण जाव पिहियाणं
७६० पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमण १४११०-११२ पाणातिवाए जाव एगे
११६२-६४ पाणातिवातवेरमणे जाव परिग्गह० ५१७,१२६ पाणातिवाते जाव परिग्गहे
१०११४ पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं
५१६,१२८ पाणातिवायाओ जाव सव्वातो
५११ पातीणाते जाव अधाते पायत्ताणिते जाव उसभाणिते
५६४
१०.१५२ ८।१०५
८.३५ १०।१०३
६।६२ ३।१२५
३।१२५ ५।१५०,१५१
२१३४०
६.३२ ३।१२५ १०१३ १०।१३ १०११३ १०११३ १०.१३ १०।१३ ६।३७ ५६५
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
५।५८ ७.१३४
५११७ ७.१३२ ७।७३
६६
७
है।
१२ ६८ ६।१२८
६७ ७१७३
हा७२ ६१६,८ ६७,१०११५३ ७८३ ५।१४१ ७१८४
पायत्ताणिते जाव रघाणिते पावते जाव भूताभिसंकणे पुढविकाइएहिंतो वा जाव तस० पुढविकाइएहितो वा जाव पंचिदिएहितो पुढविकाइएत्ताए जाव पंचिदियत्ताए पुढविकाइएताए वा जाव पंचिदियत्ताते पुडविकाइयणिव्वत्तिमे जाव तस० पुढविकाइयणिव्वत्तिते जाव पंचिदियणिवत्तिते पुढविकाइया जाव तसकाइया पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया पुढविकातितअसं जने जाव तस० पुढविकातितअसंजमे जाव वणस्सति० पुढविकातितआरंभे जाव अजीव० पुढविकातितत्ताते वा जाव तस० पुढविकातितसंज मे जाव तस० पुढविकातित [य] संजमे जाव वणस्सति० पुप्फए जाव विमलवरे पुरिसे जाव अवहरति पुवासाढा एवं चेव पोतगत्ताते वा जाव उब्भिगताते पोतगत्ताते वा जाव उववातितत्ताते पोतगा जाव उब्भिगा पोतजेहितो वा जाव उभिगेहितो पोततेहिंतो वा जाव उववातितेहितो फरिस जाव गंधाई फुसित्ता जाव विकुन्वित्ता बहुमीहति जाव असंदिद्ध मीहति बेइंदिया जाव पंचिदिया बेदिता जाव पंचेंदिता भरहे जाव महाविदेहे भवति जाव फासामतेणं भवित्ता जावं पन्धइए [तिते] भवित्ता जाव पव्वयाहिति
१७ ७७३ ७७३ ७७३ ७१७३ ७८२ ७७३ ७७३ ७७३ ८.१०३ ५७३ ४१६५४
६९
७१८२ ५।१४०१०१८ १०।१५० ५७४ ४१६५५
७४
८।३
८२
८२
७४
८.३
७१३ ७१३ s૨ १०७ ७२
६४६१
१०७ ७२ ६१६२ हा७ १०११५३ ७१५४ ६५८२ ३१५३२,४११,४५०,५१६७,९।६२ ६६२
६।११ ९।११ ७३५० ६।८१ ३१५२३ ३११२३
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
भवेत्ता जाव पव्वतिता
भाषासमिती जाव पारिट्ठावणियासमिती भिण्णे जाव अपरिस्साई
मंदुक्कजातिमासीदिसरस पुच्छा मणअपडलंलीणे जाव इंदिय०
मण दुप्पणिहाणे जाव उवकरण •
मण सुप्पणि हाणे जाव उवगरण०
मणुरजाति पुच्छा मस्साणं वि एवं चैव
मणस्सा भाषियव्या
मरणाई जाब जो णिच्चं
महावीरेण जाव अम्भणुष्णाबाई
महिडिए जाव चिरद्वितिते महिडिएस जाव चिरद्वितिएमु
महिद्वियं जाव महासोक्खं महिडिया जाव महासोक्सा माताति वा जाव तुम्हाति
माहणस्स वा जाव समुत्पज्जेति मुंडा जाव पव्वतिता
मुंडे जाव पचइए [तिखे ] मुच्छिते जाव अभोववणे मुझे जाय सय्यदुक्त० मुसावाते जाव परिग्महे
रताओ जान अउसभकूश
रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा
रूषा जाव मणुष्णा
लोगविजओ जाव उवहाणसुर्य
बंजण जाब सुरुवं
बंदाणि जाव पज्जुवासामि
वंशी मूलकेतणासमाणा जाव अवलेह०
३३
१०/२८
५२०३
४१५६५
४५१४
४।१६३
४:१०६
४/१०५
४१५१४
२१६०
४:३२३, ३२४, ३२५.३२६
२/४१३
५।३५
१०
८/१०
५।२१
२।२७१:९६१
३०३६२४१४३४
७२
५।२३४
४/४५०, ४५१:६७९, १०४
३१३६१
११२४६
१२६
**
८१०८
७।१४३
हार
१/६२
४।४३४
४१२८२
३।५२३
८।१७
४१५६५
४५१४
४१६२
Vitor
४/१०४
४:५१४
२।१५६
४।३२२,३२३,
३२४,६२५,३२६
૨૪૨
५।३४
८/१०
८1१०
२।२७१
वृत्ति
सू० २।२१७
स्थानाङ्गवृत्तौ — 'पिपाइ वा भज्जा इ वा भाया ६ वा भगिणी इ वा पुस्ता इ वा घूया इवे' ति यावच्छन्दाक्षेप (पत्र १३४) । 'आया इ वा भज्जा इ वा भट्टणी इ वा पुत्ता ६ वा घ्या इ वे' त्ति यावच्छद्वाक्षेपः ( पत्न २३३ ) ।
७१२
३।५२३
३१५२३
३।३६१
वृत्ति
१०११३
८८२
७ २४
५।५
वृत्ति
ज०म० १४३
३।३६२
४२८२
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०१८
५।१५२,१५३ ओ०सू० १४४
२१३४१ ६।४३
३१५२३
४१
६।६२
४१४५० २।३८०-३८३
७।२७
वणियाई जाव अब्भणुण्णायाई
२१४१४ वणस्सतिकातितअसंजामे जाव अजीवकाय० १018 बदमाणे जाब विवक्कतव.
५।१३४ वसित्ता जाव पव्वाहिती
६।६२ विज्जुप्पभे जाव गंधमातणे
१०११४६ वीइक्कते जाव वारसाहे
६६२ वेजयंति जाव अउज्झा
८७६ वेयड्ड.....
81५३ वेरमणं जाव सव्वतो
४११३७ संकिते जाव कलुसमावणे
३१५२३ संजमबहुले जाव तस्स गं संवच्छराई जाव बावत्तरिवासाई
६६२ संवरबहले जाव उवहाणवं
४१ संवाहण जाव गातु०
४।४५० सक्के जाव सहस्सारे
८।१०२ सत्त भयाणा पंतं
हा६२ सदं सुणेत्ताणामेगे सुमणे भवति ३ एवं सुणमीति' ३ एवं सुणेस्सामीति ३ एवं असुणेत्ताणामेगे सु ३ ण सुणमीति ३ ण सुणिस्सामीति
३१२८५-२६० सद्द जाव अवहरिसु
१०१७ सद्द जाव अवहरिस्सति
१०१७ सह जाव उवहस्रंसु सद्द जाव उवहरिस्सति
१०७ सद्द जाव गंधाई
१०७ सद्दहति जाव णो से
३३५२३ सदा जाव फासा
५।१२-१५,१२५-१२७ सद्दा जाव वतिदुहता
७।१४४ सद्देहिं जाव कासेहि सभासुहम्मा जाव ववसातसभा
५१२३६ समणस्स जाव समुप्पज्जति
७२ समणेणं जाव अब्भणुण्णायाई सव्वरयणा जाव पडिबुद्धे
१०।१०३ १. सुणेमाणे (ख); सुणेमोति (ग)।
३११८६-१६४
१०१७
१०७
१०७ १०७ १०७ ३१५२३
५१५
७।१४३
५२३५
७।२ ५१३४ १०११०३
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
११२४८ ४।४५१ ५१७३ २०७४
५७३,७४
७१५७
४१
हा६१ ६।६२
४११४१
८५३ १०॥७५,७६,७८,७६
सव्वदीवसमुदाणं जाव अद्धंगुलगं सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स सहिस्संति जाव अहियासिस्संति सहेज्जा जाव अहियासेज्जा सिंघु जाव रत्तावती सिझति जाव मंतं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण. सिज्झिहिंति जाव अंतं सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाण. सिन्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाण सिद्धसुग्गता जाव सुकुल. सिद्धाइं जाद सव्वदुक्ख० सिद्धाओ जाव सव्वदुक्ख० सिद्धे जाव प्पहीणे सिद्धे जाव सब्वदुक्ख. सुंबकडसमाणे जाव कंबलकड० सुक्किलपक्खगं जाव पडिबुद्धे सुभाते जाव आणुगामियत्ताए सुमिणे जाव पडिबुद्धे सुवच्छे जाव मंगलावती सुवप्पे जाव गंधिलावती सुसमसुसमा जाव एमा सुसमसुसमा जाव दूसमदूसमा से जहाणामते ...... सेलथंभसमाणे जाव तिणिस० सेसं जहा पंचट्ठाणे एवं जाव अच्चुतस्सवि
तन्वं सेसं तं चेव जाव करिस्संति सेसं तहेव जाव भवणगिहेसु सेसं तहेव जाव भासं
४/४५१ ५।७२ ५७३ ५७३ ७१५३ ४१ ४१ ४१ ४१
४।१ ४।१३६ ११२४६ १२२४६ ११२४६ ११२४६ ४१५४६ १०१०३
५।१२ १०११०३ २१३२६ २१३२६
वृत्ति १।१२६-१३२
६६२ ४।२८३
४१५४६ १०।१०३
१०११०३ ८.७० ८७२ १२१२६-१३२ ६२२३ है।६२ ४१२८३
७१२१,१२२ ४।५१४ ५२२ १०।१५६
५१६६,६७ ४१५१४
५२२ १०।१५४
१. वृत्तो अस्य पाठस्य पूर्ति निम्नप्रकारा विद्यते-यावदुग्रहण देव सूत्रं द्रष्टव्यम्-सबभतरए सन्बखुडुडाए बट्टे
बेल्लापुयसंठाणसंठिए एगें जोयण सयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयण सयसहस्साई सोलससहस्साई दोन्नि सयाई सत्तावीसाई तिन्नि कोसा अट्टावीसं धणु सयं तेरस अंगलाई (पन्न ३३) ।
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________________
६।१४ ६६८ ५।१३५ ८।११ १०.११ १०१५ १०६६
पण्ण० १५१ समवायाओ २८३
पुष्ण० १५०१ पण्ण०१५६१
१०१० पण्ण० १५१ पण्ण० १३१ पण्ण०११ पण्ण० १५१
८५११ पण १५११
सोइंदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदिय० सोइंदियपडिसलीणे जाव फासिं दिय० सोइंदियसंवरे जाव फासिं दिय. सोतिदितअसंवरे जाव सूचीकुसग्ग० सोतिदितबले जाव फासिदितवले सोतिदितमुंडे जाव फासिदित. सोतिदियअपडिसंलीणे जाव फासिदिय० सोतिदियअसंजमे जाव फासिदिय. सोतिदियअसंवरे जाव काय असंवरे सौतिदियअसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियअसाते जाव णोइंदियअसाते सोतिदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोतिदियमडे जाव फासिदिय० सोतिदियसंजमे जाव फासिदिय० सोतिदियसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियसाते जाव णोइंदिथसाते सोहम्मे जाव सहस्सारे हरिवेरुलित जाव पडिबुद्धे हव्वमागच्छति...... हिताते जाव आणुगामित[य]त्ताते हिरण्णगोलसमाणे जाव वइरगोल. हेमवए"
५।१४३ ८.१२ ५११३८,६११६ ६.१८
५११७७ ५।१४२ ५।१३७६१५,१०११० ६१७ ८.१०१:१०।१४८ १०११०३ ३.८० ३३५२४६१३३ ४१५४७
पण्ण० १५१ पण्ण० १५१ पण्ण० १२१ पण्ण० १५१
६।१४ २३८०-३८४ १०।१०३
३१७६ ३२५२३ ४१५४७ ६।८३
अक्खराइं जाव एवं चरण अक्खरा जाव एवं चरण अक्खरा जाव चरण-करण अक्खराणि जाव एवं चरण अक्खराणि जाव सेत्तं
समवाओ प०६५ प०६६ प०६१,६४ प० ६७,६६ प०६२
१.पण्णगसमवाय-सून्न ।
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________________
३७
प० ८६
१६५ अ० सू० २२७
१०८६ प० ८६ प० ८६
प०६१ अ० सू०२२७
वृत्ति
आवरा तंत्र जाव परित्ता
प०१० अगाराओ जाव पब्वइए
६७४ अजित जच बद्धमाणे
२४.१५० २२२ अणंतागमा जाव चरण-करण
प०६८ अणंतागमा जाव सासया
प०६३ अगुओगदारा जाव संखेज्जाओ
प०६४,६५,६८,६६,१३१ अणुओगदारा संखेज्जाओ
प०६७ अभिणंदण जाव पास
२३१३,४ अयले जाव रामे
प० २४१ अवसेसाई परिकम्माई पाढाइयाई एक्कारसविहाई पण्णत्ताई
प०१०४-१०८ अस्सगीवे जाव जरासंधे
प० २४६ अहासुतं जाव आराहिया
४६।१६४१८१४११००१ आधविज्जति जाव उवदंसिज्जति
प०१० आपविजंति जाव एवं
प०६३ आघविज्जति जाव नाया०
प०६४ आपविज्जति०
प० १०,६१,६३-६६,१३१ आहारय जह देसूगारयणि उ पडिपुण्णारयणी प० १६६ आहारयसरीरे समचउरंससंठाण सठिते प० १६५ उववाएणं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियवाणि जहा नंदीए
८८.२ एवं गतिनाम"ओगाहणानाम
१० १७६ एवं चउदिसिपि नेयवं
५८४ एवं चउसुवि दिसासु नेयव्वं'
८८।४,५,६ एवं चेव दोमासिया आरोवणा सचराय दोमासिया आरोवणा एवं तेमासिया आरोवणा एवं चउमासिया आरोवणा
२८१ एवं चेव मंदरस्स
८७४
प० १०१,१०२
वृत्ति वृत्ति' प० ८६
प० ८६ वृत्ति; प० ६६
प० ८६ पण्ण० २१ पण्ण० २१ पग्ण०६
नंदी १०२
प०१७६ ५८1३,५२१३
८८.३
२८.१ ८७११
१. वृतौ किञ्चिद् भेदेन लभ्यते, यथा ---६४।१ यावत्करणात् 'महाकप्पं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया सम्म प्राणाए प्राराहियावि भवति । ५११ जाव' तिकरणाद्य थाकल्पं यथामार्ग यथातत्व समय
कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीत्तिता आज्ञयाऽऽराधितेति । २. नायव्वं (क); नातव्वं (ख, ग)।
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________________
एवं जइ मणस्स किंगभवक्कंतिय संमृच्छिम गो गब्भवक्कंतिय णो समुच्छिम ज इ गम्भवक्कंतिय किं कम्मभूमग अकम्मभूमग गो कम्मभूमग णो अकम्मभूमग जइ कम्मभूमग कि संखेज्जवासाउय असंखेज्जवासाउय गो संखेज्जवासाउय णो असंखेज्जवासाउय जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तय अपज्जत्तय गोयमा पज्जत्तय णो अपज्जत्तय जइ पज्जत्तय कि सम्म मिच्छ सम्मामिच्छ गो सम्मद्दिट्रिनो मिच्छदिछि नो सम्मामिच्छदिट्टि जइ सम्मदिदि कि संजतं असंजत संजतासंजत गो संजय णो असंजय णो संजतासंजत जति संजय किं पमत्तसंजय अपमत्तसंजय गो पमत्तसंजय णो अपमत्तसं जइ पमत्तसंजय कि इडिपत्त अणिडिपत्त गो इडिपत्त नो अनिविपत्त वयणावि भतियव्वा
प०१६४ एवं थेरे वि अज्जसुहम्मे
१००१५ एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे
६६३ एवं दिवसोऽवि नायब्बो
१२।६ एवं धणू नालिया जुगे अक्खे मुसले वि ६६।४-८ एवं पंचवि
२७११ एवं पंचवि इंदिया
२११ एवं पंचवि रसा
२२१६ एवं पदुप्पण्णेवि अणागएवि एवं मंदरस्स पच्चस्थिमिल्लिाओ चरिमंताओ संखस्स पुरथिमिल्ले च
८७।३ एवं माणे माया लोभे
१६।२२१।२ एवं संतिस्सवि
६०१३ एवं सगरे वि राया चाउरंतचक्कवट्टी एकसरि पुव्व जाव पव्वदाए कंतं वण्णं लेसं जाव णंदुत्तरवडेंस
१५॥१३ कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे
८६२ कालगयाई जीव सव्वदुक्ख०
प०६३ कीयं आहट्ट जाव अभिक्खणं
२१११
प० १६४ १००१४ ६६२ १२।८
५२ पण्य० १५१ ठा० १.७८-१२
प० १३२
८७१ अस्य पूतिः अत्रैव
६०१२
७१।३ ३३२१ ८६१
८६१ दसा० २
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________________
४०१
कोहविवेगे जाव लोभ
२७११ चउरंसा जाव असुभा
प० १४१ जातिनाम जाव ओगाहणानाम
प० १७७ जूवे जाव माउया
प० २४५ णितिया जाव णिच्चा ताईचेव माउया पयाणि जाव नंदावत्तं प० १०३ तिविठू य जाव कण्हे
प० २४१ धम्मस्थिकाए जाव अद्धासमए
प० १३७ नेरइया०
प० १७३ पज्जत्तगाणं
प० १५५ पडिसत्तू जाव सचक्केहिं
प० २४६ पढभाए पढमं भागं जाव पण्णरसेसु पम्हलेसं जाव पम्हुत्तरवडेंसगं
६।१७ परूवेई जाव से णं
प०६६ पुढवी कायसंजमे एवं जाव कायसंजमे १७१२ बलिस्स .....
१७८ बुद्धे.........
१२१२ बुद्धे जाव प्पहीणे
५५३१,४,७२१३,८४१२,६५१४;प० ४० बुद्धे जाव सम्बदुक्ख०
३०१२,५११४,५०६१ बे ते चउ पंच
प० १६७ भद्दवए णं मासे कित्तिए णं पोसे णं फरगुणे णं वइसाहे णं मासे
२६।३-७ भवित्ता जाव पव्वइए
७११३७५०२ भवित्ता णं जाव पवइए
८३.४ भविस्सइ य जाव अवट्टिए
प० १३३ भूयाणंदे जाव घोसे
३२१२ महुरा जाव हत्थिणपुरं
प० २४४ मुंडे जाव पव्वइए
५६२ मुंडे जाव पव्वइया
७७१२ मुसावायाओ जाव सब्वाओ रुइल्लप्पभं जाब रुइल्लुत्तरवडेंसग
१७ लोगप्पभं जाव लोगत्तरवडेंसगं
१३३१४ वइरावतं जाव वइरुत्तरवडेंसगं
१३।१४ वायणा जाव अंगट्टयाए
१०६३
वृत्ति ५० १७६
वृत्ति प० १३३ प० १०२
वृत्ति पण. १ पषण० ३५ प०१५४
वृत्ति केवलं संख्यापूरिता
३।२१ प०६५
१७११ ठा० ४।१५१
४२११ ४२।१
१५॥३
४२११
५० १६७
२६२ १६५
१६५
प० १३३ ठा० २१३५५-३६१
वृत्ति
१६०५ १६५
३२१ ३।२१
३१२१ प०६१
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--------------------------------------------------------------------------
________________
वायणा जाव संखेज्जा वायणा जाव से गं विजया एवं चेव जाव वासुदेवा वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सणंकुमारे जाव पाणए सत्तमाए णं पुढवीए पुच्छा सवणो जाव भरणी सिज्झिस्संति जाव अंतं
सिभिस्सति जाव सव्वदुक्खाण ०
प०११
प० ८६ प०६२
प०६१ ६८।४-६
६५१-३ ५६०१
जं०२ ३२२२
ठा० २।३८१-३८४ प० १४३
प० १४१ ६६
चंद०१०१११ ५।२२:७१२३,८,१५,१०१२५; १३।१७:१५।१६,१६३१६
११४६ ३३२४,४११८,६१७६२०११११६ १२।२०१४।१८,१७१२११०।१८, १६१५,२०।१७,२१३१४,२२६१७; २३३१३२४।१५:२५।१८२६।११; २७।१५:२८1१५:२६।१८,३०११६; ३१।१४,३२।१४,३३३१४ ४४२ ७२।४;७३१२,७४।१:७८२,८३१३; ८४१४;६५१५१००।४
४२११ ४२११
वृत्ति' हा१७
३।२१ २ ३३।१
दसा०३ २८१३
२८३ २७।१
२८१३ २८१३
२८३
२८३ ५० १७५
प० १७५
२४६ ४२।१
सिद्धाइं जाव प्पहीणाई सिद्धे जाव प्पहीणे
सिद्धे जाव सम्वदुक्ख सुज्जतं जाव सुज्जुत्तरवडे सगं सेवणया सिवित्ता जाव सावासोक्व० सेहस्स जाव सेहे राइणि यस्स सोइदियधारणा जाव णोइंदियधारणा सोइ दियनिग्गहे जाव फासि दिय० सोतिदियईहा जाव फासिदियईहा सोतिदियाघाते जाव णोइंदियावाते हंता गोयमा !............
२८.३
१- वृत्तौ किञ्चद्भेदेन लभ्यते यथा--
४२।१ जाव तिकरणात् 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिन्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे'त्ति दृश्यम् । ४४।२ जाच तिकरणेण 'बुद्धाइं मुत्ताई अंतयडाइ सव्वदुरूख रहीणाईति दृश्यम् । ५६१ जाव तिकरणात् 'अंतगडे सिद्ध बुद्ध मुत्ते' ति दृश्यम् ।
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________________
परिशिष्ट-२ आलोच्य-पाठ तथा वाचनान्तर
आलोच्य-पाठ परियावेणं [आयारो २।२, पृ० १७]
यद्यपि चूर्णी वृत्तीच 'परियावेणं' इति पाठो व्याख्यातोऽस्ति, आदर्शष्वपि एष एव पाठो जाते। तथापि 'माया मे, पिया मे' इत्यादि पदानां अर्थप्रसंगतया 'परियारेणं' इति पाठस्थ परिकल्पना सहज मेव जायते । प्राचीन लिप्या रकारवकारयोः सादश्यात् एतत्
परिवर्तनं नास्वाभाविकमस्ति । मानवा [आयारो ५२६३, पृ० ४३]
वृत्तिकृता 'मानवा' मनुजाः इति विवृतम् । चूणिकृता च नैतत् पदं विवतम् । किन्तु 'एवं थंभे मायाए वि लोभे वि जोण्यन्वं' इति निर्देशः कृतः । तेन 'माणवा' इति पदस्य
स्थाने 'माणओं' इति पाठस्य परिकल्पना जायते । अचिरं [आयारो ८।८।२०, पृ० ७१]
चुर्णी वृत्तौ च 'अचिरं, पदं स्थानार्थे व्याख्यातमस्ति । यद्येतत् स्थानावाची स्यात् तदा 'अहर' मिति पाठः संगच्छते । 'अजिरं प्रांगणम,' इति तस्यार्थो भवेत् । 'अइर' इति अतिरोहितार्थवाची देशीशब्दो पि विद्यते । केनापि कारणेन इकारस्य चकारो जात इति प्रतीयते ।
अथवा चर्णिकारेण वैकल्पिक रूपेण कालाथें अचिरशब्दस्य प्रयोगो निर्दिष्टः, सोपि युक्तः स्यात् । एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए [आयारचूला ११२६, पृ० ६०]
आयारचूलाया: पाठ-संशोधने षड्आदर्शाः प्रयुक्ताः, चूर्णिवृत्तिश्च । तत्र पञ्चादशेषु उक्तपाठस्य ये पाठ-भेदास्ते तत्रैव पादटिप्पणे प्रदर्शिताः सन्ति । वृत्ती (पत्र ३००) 'एस विलंगयामो सेज्जाए' इति पाठो व्याख्यातोस्ति---"गृहस्थश्चानेनाभिसन्धानेन संस्कुर्याद्-- यथेष साधुः शय्यायाः संस्कारे विधातव्ये 'विलुंगयामो' त्ति निर्ग्रन्थ: अकिञ्चन इत्यत: स गृहस्थः कारणे संयतो वा स्वयमेव संस्कारयेदिति ।” अस्माभिः 'घ' प्रत्यनूसारी पाठः स्वीकृतः । चूर्णावपि (प० ३३२) 'एस खलु भगवया' इति पाठो लभ्यते । सेज्जाए अक्खाए'
४१
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________________
अंत्र दोषशब्द: अध्याहर्तव्यः । वस्तुत: उक्तपाठः व्याख्यागत: प्रतीयते । 'संथरेज्जा' इति पाठस्यानन्तरं 'तम्हा से संजए' इत्यादि पाठः स्यात्तदानीमपि स खण्डितो न प्रतिभाति । दत्तिकता उक्तपाठस्य या व्याख्या कृता, तथापि पूर्वानुमानस्य पुष्टिर्जायते । वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'विलुंगयामो' पाठ आसीत् स केषुचिदेव आदर्शषु उपलभ्यते, नतु सर्वेषु ।
कप्पस्स [पइण्णगसमवाय सू० २१५, पृ० ६४१]
अत्र 'कप्पस्स' इति पाठस्याशयो वृत्तिकृता कल्पभाष्यत्वेन सूचितः, वाचनान्तरे च पर्यषणाकल्पत्वेन सूचित:, यथा--'कप्पस्स समोसरण नेयवं' ति इहावसरे कल्पभाष्यक्रमेण समवसरणवक्तव्यताऽध्येया, सा चावश्यकोक्ताया न व्यतिरिच्यते, वाचनान्तरे तु पर्युषणाकल्पोक्तक्रमेणेत्यभिहितम् (वृत्ति, पत्र १४४)।
पर्यषणाकल्पे समवस रणवक्तव्यता इत्थमस्ति--तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥२०१।।
से केपट्टेणं भंते ! एवं दुच्चइ--समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ? समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे इंदभूई अणगारे गोयमे गोतेणं पंच समणसयाई वातेइ, मज्झिमे अणगारे अग्गिभूई नामेण गोयमे गोतेणं पंच समसयाई वाएइ, कणीयसे अणगारे वाउभूई नामेणं गोयमे गोत्तेण पंच समणसयाइ बाएइ, थेरे अज्ज वियत्ते भारदाये गोतेणं पंच समसयाई वाएइ, थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गोते पच समणसयाइ वाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिठे गोत्तेणं अधुटाइ समणसयाई वाएइ, थेरे मोरियपुत्ते कासवगोत्तेणं अधुट्ठाई समणसयाई वाएइ, थेरे अकपिए गोयमे गोत्रेण थेरे अयनभाया हारियायणे गोत्तेणं ते दुन्नि वि थेरा तिन्नि तिन्नि समणसयाइं वाइंति, थेरे मेयज्जे थेरे य प्पभासे एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोतेण तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाएंति, से एतेणं अट्ठेणं अज्जो ! एवं वच्चइ---समणस्स भगवओ महाबीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥२०॥
सव्वे एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्का रस वि गणहरा दुवालसंगिणो चोद्दसपुस्विणो समत्तगणिपिडगधरा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्तिएणं अपाण एणं कालगया जाव सव्व दुक्खप्पहीणा। थेरे इंदभूई थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परिनिव्वुया ॥२०३।।
जे इमे अज्जत्ताते समणा निग्गंथा विहति एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना ॥२०४१। कल्पसूत्र, पृ० ६०,६१
प्रस्तुताङ्गस्य उपसंहारसूत्रे ऋषि-यति-मुनि-वंशानां वर्णनस्योल्लेखोस्ति । वृत्ति कृतास्य संबन्धः पर्युषणाकल्पगतसमवसरणप्रकरणेन सहयोजितः, यथा-गणधर व्यतिरिक्ताः शेषा जिनशिष्या ऋषयस्तद्वंशप्रतिपादकत्वादषिवंश इति च तत्प्रतिपादनं चात्र पर्यषणाकल्पस्य ऋषिवंशपर्यवसानस्य समवसरणप्रक्रमेण भणितत्त्वादत एव यतिवंशो मुनिवंशश्चैतदुच्यते, यतिमुनिशब्दयोः ऋषिपर्यायत्वात् । वृत्ति, पत्र १४७, १४८
Page #257
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पूर्वोक्तसमर्पणेन पर्युषणाकल्पस्य २०१ सूत्रात् २०४ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणं जायते, किन्तु वृत्तिकृता ऋषिवंशस्य यद् व्याख्यानं कृतं तेन २०१ सूत्रात् २२३ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणामावश्यक भवति । अत्र महती समस्या वर्तते । यदि पुर्ववर्ति समर्पणं मान्यं क्रियेत तदा ऋषिवंशस्य वर्णनं नान्यत्र क्वापि समुपलभ्यते । यदि च ऋषिवंशस्य वर्णनं समवसरणप्रक्रमेण सह संबध्यते तदा पूर्वोक्तसमर्पणस्याप्रयोजनीयता सिध्यति । वृत्तिकारेण नास्या असंगतेः कापि चर्चा कृता । किमत्र रहस्यमिति निश्चयपूर्वक वक्तुं न शक्यते, तथापि संभाव्यते समवसरणस्य संक्षेपीकरणसमये किंचित् परिवर्तनं जातम् । ऋषिवंशवर्णनम् --
समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अज्जमूहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबूनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते। थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायगसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसेज्जभवस्स मणगपि उणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायणसगोत्ते ॥२०॥
संखितवायणाए अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तं०--थेरस्स णं अज्जजसभइस्स तुंगियायणसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोत्ते, थेरे अज्ज भद्दबाहु पाइणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढर सगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्जथूलभदस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोते थेरे अज्जसुहत्थी वासिटसमोत्ते। थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-सुट्टियसुपडिबुद्धा कोडियकाकंदगा वाघावच्चसगोत्ता । थेराणं सुट्रियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदगाणं वग्यावच्चसमोत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्जइददिन्ने कोसियमोत्ते। थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जदिन्ने गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्ज दिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते । थेरस्स ण अज्जसीहगिरिस्स जातिसरस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले थेरे अज्जपोगिले थेरे अज्जजयते थेरे अज्जतावसे । थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया, थेराओ अज्जपोगिलाओ अज्जपोगिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताजो अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥२०६।।
वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभद्दाओ परओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा-थेरस्स गं अज्जजसभहस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जभहवाह पाईणसगोत्ते, थेरे अज्जसंभूयविजये माढरसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जभबाहस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिण्णाया होत्या, तं०-थेरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जण्णदत्ते थेरे सोमदत्ते कासवगोते णं । थेरेहितो णं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो
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एत्थ णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्स ण इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहातामलित्तिया कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासी खब्बडिया ॥२०७॥
थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयम्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा---
नंदणभद्दे उवनंदभद्द तह तीसभद्द जसभद्दे । थेरे य सुमिणभद्दे मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य ॥११॥ थेरे य थूलभद्दे उज्जुमती जबुनामधेज्जे य ।
थेरे य दीहभद्दे थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥ थेरस्स णं अज्जसंभूइविजयस्स माढरस गोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिन्नाताओ होत्था, तं जहा
जक्खा य जक्खदिन्ना भूया तह होइ भूयदिन्ना य ।
सेणा वेणा रणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥१॥ ॥२०८।। थेरस्स णं अज्जथूलभहस्स गोयगोत्तस्स इमे दो थेरा अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहाथेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगात्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्टसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्छसगोत्तस्स इमे अट्ट थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं०-थेरे उत्तरे थेरे बलिस्सहे थेरे धण थेरे सिरिड थेरे कोडिन्ने थेरे नागे थेरे नागमित्त थेरे छलुए रोहगुत्ते कोसिए गोत्तेणं। थेरेहितो गं छलुएहितो रोहगुत्तेहिंतो कोसियगोत्तेहितो तत्थ णं तेरासिया निग्गया। थेरेहिंतो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्थ गं उत्तरबलिस्सहगणे नाम गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहा- कोसंबिया सोतित्तिया कोडवाणी चंदनागरी ।।२०६॥
थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिट्टसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा--
थेरे स्थ अज्जरोहण भद्दज से मेहगणी य कामिड्ढी। सुट्ठियसुप्पडिबुद्धे रक्खिय तह रोहगुत्ते य ॥१॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते गणी य बंभे गणी य तह सोमे ।
दस दो य गणहा खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ ॥२१॥ थेरेहितो णं अज्जरोहणेहितो कासयतेहितो तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए। तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ छच्च कुलाइएवमाहिज्जति । से कि तं साहाओ? एवमाहिज्जंति --उदंबरिज्जिया मासपूरिया मतिपत्तिया सुवन्नपत्तिया, से तं सहाओ से किं तं कुलाइ ? एवमाहिज्जति, तं जहा
पढमं च नागभूयं बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं चउत्थयं हथिलिज्ज तु ॥१॥ पंचमगं नंदिज्जं छ8 पुण पारिहासियं होइ । उद्देहगणस्सेते छच्च कुला होति नायव्वा ॥२॥ ॥२११॥
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थेरेहितो गं सिरिगुत्तेहितो णं हारियसगोत्तेहितो एस्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ सत्त य कुलाई एवमाहिज्जति । से कि तं साहातो? एवमाहिज्जंति, तं जहा - हारिय'मालागारी संकासिया गवेधूया वज्जनागरी, से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं? एवमाहिज्जंति, तं जहा
पढमेत्थ वत्थलिग्जं बीयं पुण वीचिधम्मक होइ । तइयं पुण हालिज्ज चउत्थगं पूसमित्तेजं ॥१॥ पंचमग मालिज्जं शुद्धं पूण अज्जवेडयं होई।
सत्तमग कण्हसह सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥ ॥२१२॥ थेरेहितो भहजसे हितो भारद्दायसगोत्तेहितो एस्थ णं उड़वाडियगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिन्नि कुलाई एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? एवमाहिअंति, तं०- चंपिज्जिया भद्दिज्जिया काकदिया मेहलिज्जिया, से तं साहाओ से कि तं कलाई ? एवमाहिज्जति--
भहज सियं तह भद्द गुत्तियं तइयं च होइ जसभई ।
एयाई उडुवाडियगणस्स तिन्नेव य कुलाइं॥१॥ ॥२१३।। थेरेहितो णं कामिड्ढिहितो कुंडिल सगोत्तेहितो एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि सहाओ चत्तारि कुलाइ एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ? एव०सावत्थिया रज्जपालिया अन्तरिज्जिया खेमलिज्जिया, से तं साहाओ। से कि तं कूलाई? एव०
गणिय मेहिय कामड्ढियं च तह होइ इदपुरग च ।
एयाई वेसवाडियगणस्स चत्तारि उकुलाइ ॥१॥ ॥२१४।। थेराहतो णं इसिगोत्तेहितो णं काकदएहितो वासिट्रसगोत्तेहितो एत्थ णं माणवगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिण्णि य कुलाइ एव० । से कि तं साहायो ? साहाओ एवमाहिति-कास विज्जिया गोयमिज्जिया वासिट्रिया सोरट्रिया, से तं साहाओ। से किं तं कुलाई? २ एवमाहिज्जंति, तं जहा--
इसिगोत्तियऽत्थ पढम, बिइयं इसिदत्तियं मूणेयध्वं ।
तइयं च अभिजसंत तिन्नि कुला माणवगणस्स ॥१॥ ॥२१॥ थेरेहितो णं सुट्ठियसुप्पडिबुद्धेहितो कोडियकाकंदिरहितो वग्घावच्चसगोत्तेहितो एत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाइएव० ! से कि तं साहाओ ? २ एवमाहिज्जंति, तं जहा~
उच्चानागरि विज्जाहरी य वइरी य मज्झिमिल्ला य ।
कोडियगणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाओ ।।१।। से किं तं कुलाइ? २ एव० तं जहा
पढमेत्थ बंभलिज्जं बितियं नामेण वच्छलिज्जंतु । ततियं पूण वाणिज्ज चउत्थयं पन्नवाहणयं ॥१॥
॥२१६॥
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थेराणं सुट्टियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदाणं वग्धावच्चसगोत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या तं जहा-थेरे अज्जइंददिन्ने थेरे पियगथे थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्ते णं थेरे इसिदते थेरे अरहदत्ते। थेरेहिंतो गं पियगंथेहितो एत्थ ण मज्झिमा माहा निग्गया । थेरेहितो णं विजाहरगोवाहितो तत्थ ण विज्जाहरी साहा निम्मया ॥२६७।।
थेरस्त णं अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिन्ने थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया वि होत्या, तं०-थेरे अज्जसंतिमेणिर माढरसगोते थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोते । थेरेहितो ए अज्जसतिसेणिएहितो णं माढरसगोत्तेहितो एत्थ ण उच्चानागरी साहा निग्गया ॥२१८।।
थेरस्स ण अज्ससंतिसेणियस्स माढरसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं० ---थेरे अज्जसे णिए थेरे अज्जतावसे थेरे अज्जकुबेरे येरे अज्जकुबेरे थेरे अज्जइसिपालिते । थेरेहिनो णं अज्जसेणितेहिंतो एत्थ णं अज्जोणिया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जतावसे हिनो एत्य णं अज्जतावासी साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्ज कुबेरेहितो एत्थ णं अज्ज कुवेरा साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जइसिपालेहितो एत्थ णं अज्जइसिपालिया साहा निग्गया ॥२१॥
थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जातीसरस्स कोसियगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं० ----थेरे धणगिरी थेरे अज्जवइरे थेरे अज्जसमिए थेरे अरहदिन्ने । थेरेहितोपं अज्जसमिएहितो एत्थ णं बंभदेवीया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जवहरेहितो गोयमसगोत्तेहितो एत्थ णं अज्जव इरा साहा निग्गया ॥२२॥
थेरस्स अज्जवइरस्स गोत्तमसगोत्तमस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिन्नाया होत्था, तं० ----थेरे अज्जवइरसेणिए थेरे अज्जपउमे थेरे अज्जरहे । थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिहितो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। थेरेहिंतो णं अज्जरहेहितो एत्य णं अज्जजयंती साहा निम्मया ॥२२१।।
थेरस्म णं अज्जरहरा बच्छसगोत्तस्स अज्जपूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते । थेररस णं अज्जयूस गिरिरस कोसियगोत्तस्स अज्जफरगुमित्ते थेरे अंतेवासी गायमसगुत्ते ।।२२२॥
वंदामि फरगुमित्तं च गोयपं धणगिरि च वासिटुं । कोच्छि सिवभूइ पि य कोसिय दोज्जितकंटे य॥१॥ त वंदिऊण सिरसा चित्तं वदामि कासवं गोत्त । णक्खं कासवगोत्तं रक्खं पि य कासवं वदे ।।२।। वंदामि अज्जनागं च गोयम जेहिलं च वासिदें। विण्ठं माढरगोतं कालगवि गोयमं वंदे ॥३॥ गोयमगोत्तभारं सप्पलयं तह य भयं वंदे। थेरं च संघवालियकासवगोत्तं पणिक्यामि ॥४॥ वंदामि अज्ज हत्थिं च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण' पढममासे कालगयं चेतसुद्धस्स ॥५॥
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वंदामि अज्जधम्मं च सुव्वयं सीसलद्धिसंपन्न । जस्स निक्खमणे देवो छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥६॥ हत्थं कासवगोतं धम्म सिवसाहगं पणिवयामि । सीहं कासवगोतं धम पि य कासवं बंदे ॥७॥ सुत्तत्यरयणभरिए खमदममद्दव गुणेहि संपन्ने । देविडिढखमासमणे
कासवगोत्ते पणिवयामि ॥
॥२२३॥
कल्पभाष्ये समवसरणवक्तव्यता---
गाथा १९७७-१२१७ वृहत्कल्पसूत्र, भाग २, पृ० ३६६-३७७ आवश्यकनियुक्ती समवसरणवक्तव्यता---गा० ५४५-६५८ आवश्यकनियुक्तिमलयगिरीया वृत्ति, पत्र ३०१-३३६
वाचनान्तर [आयारचूला १५॥३५ के पश्चात् प० २४०]
स्थानाङ्गसूधे महापद्मप्रकरणे (६२) वृत्तिकारप्रदर्शिते वाचनान्तरे "कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जान सुहुपहुयास गेति व तेयसा जले।” इति पाठे आया रचूलाया भावनाध्ययनस्य समर्पणं सूचितमस्ति। वृत्तिकृता श्रीमदभय देव (रिणाऽपि एत। संवादि समुल्लिखितम्-"यया भाबनायामाचाराद्वितीयश्रुतस्कन्ध-पञ्चदशाध्ययने तथा अयं वर्णको व.'च्य इति भावः, कियदरं यावदित्याह-'जाव सुहुये' त्यादि" (वृत्ति, पत्र ४४०)।
औपपातिकसूत्रे (सूत्राङ्क २७, वृत्ति पृष्ठ ६६) “वरमाणपदानां च भावनाध्ययनायुक्ते इमे संग्रहगाथे--
कसे सखे जीवे, गयणे वाए य सारए सलिले ।। पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे । कुंजर बसहे सोहे, नगराया चेव सागरमखोहे ।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव मुहुयहुए ॥" इति वृत्तिकृता भावनाध्ययनगतसंग्रहगाश्रयोः सूचनं कृतमस्ति ।
एतयोद्वयोः समर्पण-सूचनयोः सन्दर्भ भावनाध्ययनं दृष्टं तदा क्वापि समर्पितः पाठो नोपलल्यः । भावनाध्ययनस्य वृत्तिरत्यन्तं संक्षिप्ताऽसि, तत्र तस्य पाठय नास्ति कोपि संकेत: आदर्शषु चापि जस्थानपलब्धिरेव । चुगौं उक्तपाठस्य व्याख्या समुपलब्धा तेनेति निर्णयः कर्तुं शक्यते---णिव्याख्याताज पाठात् आदर्शतः पाठो भिन्नोस्ति । अयं वाचनाभेदः चूर्णिकारस्य समक्षमासीन्नवेति नानुमान क किञ्चित् साधन लभ्यते ।
स्थानाङ्गस्य वाचनान्तर-पाठे भावनाध्ययनस्य समर्षणमस्ति तस्यं सम्बन्धः चण्यं नुसारीपाटेनव विद्यते, तथैव औपपातिकवृत्तेः सूचनस्यापि सम्बन्धस्तेनैव ।
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स्थानाङ्ग महापद्मप्रकरणे एव स्वीकृतपाठेपि 'जहा भावणाते' इति समर्पणमस्ति । तस्यापि सम्बन्धश्चयॆनुसारिपाठेन विद्यते ।
आलोच्यमानपाठः किञ्चिद् भेदेनानेकेषु आगमेषु लभ्यते । तस्य तुलनात्मकमध्ययनमत्र प्रस्तूयते । आचाराङ्गचूर्णी पूर्णः पाठो विवृतो नास्ति । स. स्थानाङ्गस्य, कल्पसूत्रस्य, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः, आचाराङ्गचूर्णेश्च सम्बन्ध-समीक्षा-पूर्वक संयोजित: । स च इत्थं सम्भाव्यते---
संयोजित पाठः
तए णं से भगवं अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए जाव गुत्तबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नसोते निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव अप्पडिहयगई जच्चकणगं पिव जायरूवे आदरिसफलगे इव पागडभावे कुमो इव गुत्तिदिए पुखरपत्तं य निरुवले वे गमणमिव निरालंबणे अणिलो इव निरालए चंदो इव सोमलेसे सूरो इव दित्ततेए सागरो इव गंभीरे विहग इव सव्वओ विप्पमुक्के मंदरो इव अप्पकंपे सारयसलिलं व सुद्धहियए खग्गविसाणं व एगजाए भार डपक्खी व अप्पमत्ते कुंजरो इव सोंडीरे वसभे इव जायत्थामे सीहो इव दुद्ध रिसे वसुंधरा इव सव्वभासविसहे सुहुयहुयासणे इव तेयसा जसंते।
[कंसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कूम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥शा कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे ।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥] नस्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भवइ । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तंजहा--- अंडरा वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जंणं दिसं इच्छइ तं तं गं दिसं अपडिबद्धे सूचिभूए लहुभूए अणप्पगथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरई।
तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुतरेणं दसणेणं अणुतरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं महदेणं लाघवेणं खंतीए मुत्तीए सक्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोवचिय-फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने ।
तर णं से भगवं अरहे जिणे जाए केवली सन्दन्न सव्वदरिसी सनेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जेव जाणइ पास इ, तं जहा-आगति गति ठिति चयणं उववायं तक्कं मणोमाणसियं भूत्तं कर्ड परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी, तं तं कालं मणसवयसकाएहि जोगेहि बदमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे अजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहरह।
तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुयासुरं लोग अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं पंचमहन्वयाई सभावणाई छजीवनिकाए धम्म अक्खाइ देसमाणे बिहरइ], तंज हा--पुढविकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए।
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स्नानाङ्ग (६।६२):
तस्स णं भगवंतस्स' साइरेगाई दुवालसवासाइं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जिहिति तं दिव्वा वा माणसा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते सव्वे सम्म सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्स इ अहियासिस्सइ।।
तए णं से भगवं अणगारे भविस्सइ इरियासमिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभडमत्तनिक्खेवणासमिए, उच्चारपासवणखेलजल्लसिंधाणपारिद्वावणियासमिए, मणगुत्ते, वय गुत्ते, काय गत्ते, गुत्ते, गतिदिए गूतबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नगंथे [.पा. किन्नगंथे] निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहयद्यासणे तिव तेयसा जलते।
कसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥ नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबधे भविस्सई, सेय पडिबधे घउब्विहे पन्नत्ते, तंजहाअंडएइ वा पोयएइ वा उम्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं गं तं गं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणुप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेण अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंतिए मुत्तीए गुत्तीए सच्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोय-विय-[चिय ?]-फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाण भावेमाणस्स झागंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुतरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे समुप्पज्जिहिति ।
तए णं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति, केवली सव्वण्णसव्वदरिसी सदेवमणआसूरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासुइ सबलोर सव्व जीवाणं आगई गति ठियं चयणं उववाय तक्क मणोमाणसियं भूतं कडं परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सञ्चलोहे सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ ।।
तए णं से भगवं तेण अणुत्तरेणं केवलवरनाणदसणेणं सदेवमणुआसुरं लोगं अभिसमिच्चा समणाण निगथाण सणेरइए जाव पंचमहत्वयाइ सभावणाई छजीवनिकाया धम्म देसेमाणे विहरिस्सति । कल्पमूत्र :
तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए इरियासभिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभडमत्तनिवखेवणासमिए, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिए, मणसमिए, वइसमिए, कायसमिए, मणगुते, वयगुत्ते, कायगुत्ते, गुते, गुत्तिदिए, गुत्तबंभयारी, अकोहे, अमाणे, अमाए, अलोभे, संते, पसंते, उवसते परिनिव्वुडे, अणासवे, अममे, अकिंचणे, छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोये १, संखो इव निरंजणे २, जीवो इव अप्पडिहयाई ३, गगणं पिव निरालंबणे ४,
१. अस्य स्थाने से णं भगवं' युज्यते ।
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वायुरिव अप्पडिबद्धे ५, सारयसलिलं व सुद्धहियए ६, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे ७, कुम्मो इव गुक्ति दिए ८, खग्गि विसाणं व एगजाए ६, विहग इव विप्पमुक्के १०, भारुडपक्खी इव अप्पमत्ते ११, कुंजरो इव सोंडीरे १२, वसभो इव जायथामे १३, सीहो इव दुद्धरिसे १४, मंदरो इव अप्पकंपे १५, सागरो इव गभीरे १६, चंदो इव सोमलेसे १७, सूरो इव दित्तनेए १८, जच्चकणगं व जायस्वे १६, वसुंधरा इव सब्वभासविसहे २०, सुहुयहुयासणी इव तेयसा जलंते २१ । एतेसि पदाणं इमातो दुन्नि संघयणगाहाओ
कंसे संखे जीवे, गगणे वायू य सरयसलिले य । पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे ॥१॥ कंजरे बसभे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे ।।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥ नत्थि णं तरस भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधो भवति । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालो भावओ। दवओ णं सचित्ताचित्तमीसिएसु दन्वेसु । खेत्तओ ण गामे वा नगरे वा अरणे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा । कालओ णं समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरते वा पक्खे वा मासे वा उवा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकालसंजोगे वा । भावओ णं कोहे वा माणे वा मायारा वा लोभे या भये वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अन्भक्खाणे वा पेसन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा। तस्स गं भगवंतस्स नो एवं भव।
से णं भगवं वामावासवज्जं अट्ट गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराईए वाचीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेढुकचणे समदुवखसुहे इहलोगपरलोगअपडिवद्ध जीवियमरणे रिवकखे संसारपागामी कम्पसंगनिग्घायणट्टाए अब्भुट्टिए एवं च णं विपरइ ।
तस्स णं भगवंतस्स अणु त्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेरेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुतरेणं वोरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेण महवेणं अणत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणु त्तराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए तुवीए अणत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचिरियसोवचक्ष्यफलपरिनिव्वाण मग्गेणं अप्पाणं भावेमाणरस दुवालस संवच्छराई विइक्कताइ। तेरसमस संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पवखे वसाहमुद्धे तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीए पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिभिवटाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स बहिया उजवालियाए नईए तीरे वियावत्तस्म चेईयस्स अदूरसामंते सामागस्स गाहावइस्स कट्रकरणसि सालपायवस्स अहे गोदोहियाए उक्कुडुयनिसिज्जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्युत्तराहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवल वरनाणदसणे समुन्पने । ।
तए णं से भगवं अरहा जाए जिणे केवली सम्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणयासुररस लोगस्स परियायं जाणइ पासइ, सव्यलोए सव्वजीवाणं आगई गई लिइ चवणं उववायं तवक मणो
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माणसियं भुत्तं कडं पडिसेवियं आविकम्म रहोकम्म अरहा अरहस्सभागी तं तं कालं मणवयणकायजोगे वट्टमाणाणं सब्वलोए सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्ष २ (पत्र १४६)
तए णं से भगवं समणे जाए इरिआसमिए जाव परिट्ठावणिआसमिए मणसमिए क्यसमिए कायसमिए मण गुत्ते जाव गुत्तबंभयारी अकोहे जाव अलोहे संते पसंते उवसते परिणिबुडे छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे जच्चकणगं व जायरूवे आदरिसपडिभागे इव पागड भावे कम्मो इव गुत्तिदिए प्रक्खरपत्तमिव निरुवलेवे गगणमिव निरालंबणे अणिले इव णिरालए चंदो इव सोमदंसणे सुरो इव तेअंसी विहग इव अपडिबद्धगामी सागरो इव गंभीरे मंदरो इव अपे पूढवी विव सब्वफासविसहे जीवो विव अप्पडिहयगइत्ति । णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कधइ पडिबंधे, से पडिवंबे चउविहे भवंति, तंजहा-दवओ खित्तओ कालओ भावओ, दव्वओ इह खलु माया मे माया मे भगिणी में जाव संगथसंथुआ मे हिरणं मे सुवण्णं मे जाव उवगरणं मे, अहवा समासओ सचित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दव्वजाए सेवं तस्स ण भवइ, खित्तओ गामे वा णगरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगणे वा एवं तस्स ण भवइ, कालओ थोवे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊए वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा अन्नयरे वा दीहकालपडिबंधे एवं, तस्स ण भवइ, भावओ कोहे वा जाव लोहे वा भए वा हासे वा एवं तस्स न भवइ, से णं भगवं वासावासवज्ज हेमंतगिम्हासु गामे एगराइए णगरे पंचराइए ववगयहा ससोगअरइभवपरित्तासे णिम्भमे णिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणं अट्ठठे चंदणाणुलेवणे अरत्ते लेटेठुमि कंत्रणमि असमे इह लोए अपडिवद्ध जीवियमरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्घायणाए अन्भुदुिए विहरइ। तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्य एगे वाससहस्से विइकते समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिआ सगडमुहंसि उज्जाणंसि णि गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरिआए वटमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कारसिए पुवण्ह कालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अणुत्तरेणं ताणेणं जाव चरित्तेणं अणुत्तरेण तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएण विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीरा मुत्तीए तुदीए अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं सुचरिअसोवचिअफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणंते अणत्तरे णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपणे केवल-वरनाणदंसणे समुप्पण्णे जिणे जाए केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सरइअतिरियनरामरस्स लोग्गरस पज्जवे जाणइ पासइ, तंजहा-आगई गई टिइं उबवायं भूतं कडं पडिसेविअं आवीकम्म रहोकम्मं तं तं कालं मणवयकायजोगे एयमादी जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग म्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे एस खलु मोक्खमयो मम अण्णेसि च जीवाणं हियसुहणिस्सेसकरे सव्वदुक्खविमोक्खणे परम सुहसमाणणे भविग्सइ । तते णं से भगवं समणाणं निग्गंथाणं य णीगंथीण य पंच महब्वयाइ सभावणगाई छच्च जीवणिकाए धम्म देसेमाणे विहरति, तंजहापूढविकाइए भावणागमेणं पंच महव्वाईसभावणागाई भाणिअव्वाइति ।
सुत्रकृतांगे (२१६४-६६) प्रश्नव्याकरणे (संवरद्वार ५।११) रायपसेणइयसूत्रे (सुत्रांक ८१३८१६) औपणातिकसूत्रे (सूत्र २७-२६, १५२,१५३,१६४,१६५) चालोच्यमानपाठेनांशिकी क्वचिच्च तदधिकापि तुलना जायते। किन्तु एतेषां सूत्राणां पाठा: अनगार-वर्णन-संबद्धाः सन्ति, ततः पूर्णा तुलना प्रस्तुतपाठेन न नाम जायते ।
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शुद्धि-पत्र
पंक्ति
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अशुद्ध मंदस सत्थ दियंति जाणे पाव समण णियाणाओ णिज्झोसइत्ता णियटुंति तितिक्खा०
मंदस्स सत्थं वयंति जाण पावं समणु० णियाणओ णिज्झोस इता पियट्टति तितिक्खा उवगरण-पदं पाओवगमण-पदं भूज्जियं अणासेवियं पट्टणंसि जाणेज्जा उवणिमंतेज्जा
x
अज्जियं अणासेविय पट्टणसि লাইন্স उवाणिमतेज्जा
१०३
१६४
१७४
१७८
अमेसणिज्ज वियडेण पेहाए
१८१ १८७
पूण
२६६ ३४८
अणसणिज्ज वियडण पहाए पण सोस परक्कमण्ण गंधमंत मारत्धा मच्छा -पदं अलमंथ
३४८
सीसं परक्कमण्ण गंधमतं गारत्था मुच्छा -पदं अलमंथू
३६३
६२२ ६५२ ८९५
मडे
नगर
२६६ ३१०
निगर पाठान्तर विधीत समक्खाय आय तेउ अतोमतेण घत
विधति समक्खातं
आयं
३
०४
Marur m
तेउ अतोमतेणं
४००
४३५
धृतं
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