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________________ ३६ जैन - परम्परा में श्रुत-पुरुष की कल्पना भी प्राप्त होती है । आचार आदि बारह आगम श्रुत-पुरुष के अंगस्थानीय हैं। संभवतः इसीलिए उन्हें बारह अंग कहा गया। इस प्रकार द्वादशांग 'पिटक' और 'श्रुत पुरुष दोनों का विशेषण बनता है। आयारो नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पहला अंग है । इसमें आचार का वर्णन है, इसलिए इसका नाम 'आमा' (आधार) है। इसके दो तस्कन्ध हैं-आपरो और आधारचुला । विषय-वस्तु समवायांग और नन्दी में आचारांग का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके अनुसार प्रस्तुत सूत्र आचार, गोचर, विनय, वैनयिक (विनय-फल), स्थान ( उत्थितासन, निषण्णासन, और शयितासन), गमन, चंक्रमण, भोजन आदि की मात्रा, स्वाध्याय आदि में योग-नियंजन, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या उपधि, भक्त-पान, उद्गम-उत्थान, एषणा आदि की विशुद्धि, शुद्धाशुद्ध-ग्रहण का विवेक, व्रत, नियम, तप, उपधान आदि का प्रतिपादक है । आचार्य उमास्वाति ने आवासंध के प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया है । वह क्रमश: इस प्रकार है --- १. षड्जीवकाय यतना । २. लौकिक संतान का गौरव त्याग । ३. शीत-उष्ण आदि परीषहों पर विजय ४. अप्रकम्पनीय सम्यक्त्व ५. संसार से उद्वेग ६. कर्मों को क्षीण करने का उपाय । ७. वैयावृत्य का उद्योग ८. तपस्या की विधि । ८. स्त्री - संग-त्याग | १. मूलाराधना, ४ ५६९ विजयोदया : श्रतं पुरुषः मुखचरणाद्यंग स्थानीयत्वादंगशब्देनोच्यते । २. (क) समवाओ, पइण्णग समवायो, सू० प (ख) नदी, सु० ८० ३. प्रशमरति प्रकरण, ११४- ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003560
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages267
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size5 MB
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