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________________ ४३ दोनों विवरणों की समीक्षा करने पर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं १. नन्दी में समवायांग का जो विवरण है, उससे उपलब्ध समवायांग क्या भिन्न नहीं है ? २. क्या उपलब्ध समवायांग देवघराणी की वाचना का है ? यदि है तो समवायांग के दोनों विवरणों में इतना अन्तर क्यों ? प्रथम प्रश्न के समाधान में यह कहा जा सकता है कि नन्दीगत समवायांग विवरण के अनुसार समवायांग सूत्र का अन्तिमविषय द्वादशांगी के आगे अनेक विषय प्रतिपादित हैं। इससे ज्ञात होता है कि समवायांग का वर्तमान आकार नन्दीगत समवायांग विवरण से भिन्न है। दूसरे प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर देना कठिन है, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि आगमों की अनेक वाचनाएं रही हैं। इसीलिए प्रत्येक अंग के विवरण में अनेक वाचनाओं (परित्ता वाणा) का उल्लेख किया गया है । अभयदेवसूरि ने समवायांग की वृहद वाचना का उल्लेख किया है'। इससे अनुमान किया जा सकता है कि नन्दी में लघु वाचना वाले समवायांग का विवरण है ! अभयदेवसूरि को प्रस्तुत सूत्र के वाचनान्तर प्राप्त थे, ऐसा उनकी वृत्ति से ज्ञात होता है। समवायांग परिवर्धित आकार के विषय में दो अनुमान किये जा सकते हैं १. प्रस्तुत सूत्र देवधिगणी की वाचना से भिन्न वाचना का है । २. अथवा द्वादशांगी के उत्तरवर्ती अंश देवगिणी के पश्चात् इसमें जोड़े गए हैं। यदि प्रस्तुत सूत्र भिन्न याचना का होता तो इस विषय में कोई अनुभूति मिल जाती। ज्योतिकरण्ड माधुरी वाचना का है - यह अनुश्रुति वराबर चलती आ रही है । उपलब्ध समवायांग भी यदि माधुरी वाचना का होता तो उस विषय को कोई अनुश्रुति मिल जाती। प्रथम अनुमान की पुष्टि की संभावना कम होने पर दूसरे अनुमान की संभावना बढ़ जाती है किन्तु भगवती तथा स्थानांग से दूसरे अनुमान का भी निरसन हो जाता है। भगवती में कुलकर, तोकर आदि के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है'। इसी प्रकार स्थानांग में भी बलदेव- वासुदेव के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है। इससे ज्ञात होता है कि परिशिष्ट भाग देवधिगणी के जोड़ा गया था । समय में ही १ (क) माग वृत्ति पत्र ५८ वाचनायामन्यं नाधीयते। (ब) वही पत्र ५२ बृहद्वचनायामिदमादतिपक्षी २.वृति पत्र १४४ वाचनान्तरे तु पाकोक्तमेत्यमिलिम ३. भगवई शतक ५, उद्देशक ५ ४. ठाणं ६।१६, २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003560
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages267
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size5 MB
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