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स्थान
Avi आव्यो पुरुषोत्तम जिहा, मुनिरूपे हो ते प्रवर्तक होई ॥ गुण ॥१५॥ दोष प्रगट करतो घणा, वली
कहेतो हो नाना अपवाद ॥ कटुक वचन मुख लांखतो, नपजावे हो पगपग विषवाद ॥ गुण ॥१६॥
नितुरपणे करे तर्जना, वली निंदे हो मुनिवरनी जात ॥ नावन्नगति गुरु नपरें, नवि जाये हो तेहISelनी तिलमात ॥ गु० ॥१७॥ तीन प्रदक्षणा देई करी, सुरें प्रणम्या हो मुनिवरना पाय ॥ ईश्स्व-Sal Isal रूप कही करी, ते नाकी हो निजनाकें जाय ॥ गुण ॥१॥ गुरुवात्सल्य, विनयें करी, जेणे पाल्यो
हो अन्निग्रह मुनिराय ॥ निःस्पृह शुभ संयमधरी, तप करीने हो शोषी निजकाय ॥ गुण ॥ Nal all श्रीगुरुराज नमो कही, जेणे कीधुं हो अनशन एक मास ॥ अच्युत सुरलोकं थयो, सुर महोटो
हो तिहां कर्यो विलास ॥ गुण ॥ २०॥ तिहाथी चवी विदेहमा, पाशे नावि दो तीर्थकर तेह ॥ श्रीsa Kalगुरुन्नक्ति प्रत्नावथी, राखो गुरुनोहो ईम नक्तिसुं नेह ॥ गुण ॥१॥ पुरुषोत्तम नरपतित', सुणी
श्रवणे हो ए चरित्र रसाल, तीर्थकर गुरुन्नक्तिथी, पद पाम्योहो जिनहर्ष विशाल ॥ गुण ॥ २२ ॥Sal Isalइतिश्रीविंशतिस्थाने चतुर्थ पुरुषोत्तमं कथानकं नृप चरित्रं समाप्तम् ॥
॥ अथ पंचमं स्थविरपदम् ॥
॥दोहा॥ हवे पंचम थानक विषे, लोक लोकोत्तर नेद ॥यविरतणा गुण पामवा, करवा नाक्त नमद॥१॥ प्रथम अविर लौकिक कह्या, मातपितादिक वृह ॥ एहनी पण नगति करो,बे नव सुखनी लिहिाशा गुणे वृद्ध वय वडजे.करेनक्ति नन्नास ॥ बेजव सख पामे सही.करयो शास्त्रमा व्यास ॥३॥ alमातपितादिक वृद्धनें, करे नमस्कार जेह ॥ तीर्थयात्रा फल ते लहे, दिन दिन करतो तेह ॥ ४ ॥ सुण लोकोत्तरवृद्ध हवे, पंचमहाव्रत धार ॥ चित्तवृत्ति निःसंगता, मुनि जगत आधार॥पातप विवेक
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२२॥
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