Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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वीश
॥१३१॥
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मूलोत्तर गुणतली प्रर्वृत्ति, निरतिचार धारे शुनमति ॥ १२ ॥ कण शुभध्यान मन गृहे, लव लव समतामें रहे | करी प्रमादतणो परिहार, थानक एह त्रयोदश सार ॥ बारप्रकार निरंतर साधि ॥ तनमन वेदे नदि समाधि ॥ यथाशक्ति तप करे सुजाएा । एह चतुर्दश थानक जाए | ॥ १४ ॥ संविभाग अन्नादिकतणो, यथाशक्ति तपस्विने जो ॥ मनवच काया करी विशु.६, स्थानक एह पन्नरमुं बुद्ध ॥ १५ ॥ अरिहंतादिकती सुन्नक्ति, नक्तपानाशन आदिकशक्ति । वैयावृत्य करे नमदी, स्थानक षोमश जालो सहि ॥ १६ ॥ संघ चतुर्विध तणो अपाय, सहू निषेधे जे मुनिराय ॥ मनसमाधि नृपावणहार, स्थानक एह सप्तदश सार ॥ कैरी प्रयत्न निरंतर लदे, अर्थ सिद्धांत अपूर्व ग्रहे । आलस मूके तजे प्रमाद, स्थानक अष्टादश सुप्रसाद ॥ १८ ॥ सदासप्रवेषण प्रखेद, अवरणवादतणो नच्छेद | श्रुतज्ञानती करे भक्ति, स्थानक एकोनविंशति रक्त ॥ १७ ॥ विद्या निमि उत्तक कविता वाद, धर्म कथादिकना रसस्वाद ॥ करे प्रभावना शासनतणी, कहे जिनदर्ष विंशति दिनी ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ २७ ॥ कलश ||
॥ राग धन्याश्री ॥
राहो ॥ नविण धानक आराहो ॥ श्रमितप्रभाव वीश स्थानक नाख्या, ए सेवी ब्यो लाहो रे ॥नवियण थानक प्राराहो ॥ १ ॥ वीश निदर्शन दर्शित तुमने, निजचित्तमांहे वसीया हो ॥ जो जिन पदवीनी होय इच्छा तो, रूमी परे ध्यावो रे ॥ ज० ॥ २ ॥ पुण्य तणो भंडार जरो तुमे, पातक दूरे गमावो ॥ तप करी नक्तिकरो निजशक्तें, निर्मल भावना जावोरे ॥ ज० ॥ ३ ॥ जिनवर वचनातीत कह्यं मूढपणुं असुदावो ॥ संघतली साखे ते मुजने, मिन्नादुक्कर थावो रे ॥ ज० ॥ ए तप मोटुं सहु १ तप २ गोयम ३ जिन ४ संयम ५ ज्ञान ६ श्रतपद सने
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स्थान
| ॥ १३१ ॥
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