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वीशण कोमिनां जे कियां ॥ गुण ॥ जिम वायें अंबुद नास रे ॥ गुण ॥ २२ ॥ पोते वली एम कहे ॥
salu गुण ॥ मुनिना प्रणमी पाय रे ॥ गुण ॥ जन्म सफल निज मानतो॥ गुण ॥ निज सुरलोकें ॥१३॥
जाय रे ॥ गुण ॥२३॥ समेतशिखर जा करी ॥ गुण ॥ अणसण करे मुनिराज रे ॥ गुण॥ ब्रह्मलोक सुर नपन्यो ॥ गुण ॥ ज्योति सकल शिरताज रे ॥ गुण ॥ ॥ तिहाथी चवि जिन al होशे ॥ गुण ॥ महाविदेह मोकार रे ॥ गुण ॥ श्रीमरुपन्न महामुनि ॥ गुण ॥ लहेशे नवनोपार रे Salगुण ॥ २५ ॥श्म जिनमत नन्नत करे ॥ गुण ॥ प्रतिबोधे नरवृंद रे॥ गुण ॥ ते जिनपति पदवी लहे ॥ गुण ॥ कहे जिनहर्ष मुणिंद रे ॥ गुण ॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ अरिहंतधर्मना जाण जे, वीशमांहेलुं एक ॥ आराधे नावें करी, विधिपूर्वक सुविवेक ॥१॥ Salक्लिष्ट वर्गणा नूयसी, अशुनकर्मनी बेद ॥ चंचगोत्र कुल पामिने, ते होय जिन ए अवेद ॥२॥rail
वजनान्न नामें पुरी, सार्वनौम नूपति ॥ हादशांग सम्यग् विदा, चारित्रोज्वल चित्त ॥३॥ कीधा sal ए अंतर रहित, त्रिशत नोजन त्याज ॥ तेहना पुण्यप्रन्नावश्री, अयो प्रथम जिनराज ॥४॥ तीर्थनाथ श्रीवीर जिन, पोटिलनवें संलग्न ॥ त्रिशत मित कपणे करी, एकांत निःस्पृह मन ॥ ५ ॥
कर्म नपशमावता, विंशति थानक एह ॥ आराध्यां अंतरातमा, निर्मल करि निःसंदेह ॥६॥ त्यारपठी सुरपद लही, दशमे गया देवलोक ॥ वर्द्धमान स्वामी श्रया, जिन बेला विलोक ॥ ७॥
॥ढाल चोपाई॥ श्रीजिनप्रतिमानी बहुपरे, नक्तिनावरां पूजाकरे ॥ चोखे चित्त स्तुति करी सीवे, पहिलुं थानक
१ अरिहंत.
॥१३॥
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